Monday, May 11, 2020

अर्थ व्यवस्था हालत खस्ता 

रोती सड़के सुनसान चौराहे

खाली शाला राह देखती

मजदूरी के लाले पड़ गए

हालत सबकी खस्ता हो गई। 

पगड़ी आज टंगी पड़ी है

महावर हाथ नही रचती है

बन्द पड़ी है आज हथाई

अर्थ व्यवस्था बिखरी हुई है। 

मंदिर की टुन टुन वो घण्टी

स्वर सुर नही गा रही है 

मदिरालय तो हो गए मंदिर

भीड़ उस कारण बड़ी चली है। 

मौन हो गए हसी तमाशे 

मौन हो गई मल्हार पुरानी

मौन हो गयी आज लावणी

आफत सब पर आ पड़ी है। 

भीड़ पड़ी तो घर याद आया 

याद आई खलिहानो की

याद आई आँखो में सबके 

बाबा की वो सीख पुरानी। 

गूंगी हो गई है सब दुकानें

जैसे कोई विरह गा रही 

सुनी है महाजन की कोठी

धन की कैसी विपदा आई। 

खाली हो गई जेब भरी जो

खाली बटुआ खाली पेटी

जोड़ी थी पाई पाई जो

नही बची है एक भी भाई। 

कैसा आ गया समय भय का

मानव से मानव डरता है 

जहाँ कभी थे बन्द पिंजरे

आज वो सुख भोग रहे है। 

रुपया के आँखो मे पानी

कैसी आ गयी विपदा भारी

कैसी हस्ती कैसी अमीरी

सबकी हालत खस्ता हो गई हे। 

बन्द पड़ी है चिमनी ऊँची

बन्द पड़ी वो बड़ी फेक्ट्री

बन्द पड़ा रेलों का कलरव

बन्द पड़ा मेहनतकश सारा। 

अरे विधाता आज मिटा दे

रुपये की दशा  बेचारी

क्या से पल मे क्या हो गया है 

अर्थ व्यवस्था खस्ता हाल है। 

 

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