Tuesday, May 12, 2020

जनपद में बनाए गए कई कोरन्टीन सेंटर को सुविधाओ के नाम पर सिर्फ कागजी खाना पूर्ति




वैश्विक महामारी घोषित कोरोना से जहां पूरे विश्व जगत में हाहाकार मचा हुआ है और इसी के चलते हर देश अपने सुविधा अनुसार लॉक डाउन का पालन करता हुआ दिखाई दे रहा है तो वही हमारे देश भारत मे भी इस महामारी को लेकर पूरे देश मे लॉक डाउन का पालन करवाना प्रशासन की प्रथम जिम्मेदारी बन चुकी है ।ऐसे में जब सारे कारोबार ठप हो चुके है और प्रवासी मजदूरों को रहने और खाने के लाले पड़े हुए है और जब उनकी हिम्मत जवाब दे चुकी तो वह कैसे भी अपने घर पहुचना चाहते है वह चाहे पैदल ,साइकिल ,या अन्य कोई साधनों की व्यवस्था करके ।जिसका उदाहरण वापस आने वाले मजदूरो के झुंड डर झुंड जनपद बलरामपुर में प्रवेश करते देखा जा सकता है ।जिन्हें शासन स्तर पर थर्मल स्क्रिनिग कर कोरन्टीन करने का कार्य स्वास्थ विभाग की टीम और प्रशासनिक अमला जीजान से लगा हुआ ।ऐसे में जब बात करे कोरन्टीन सेंटरों की कि वहां शासन के द्वारा क्या व्यवस्था की गई है।तो जब पत्रकार टीम ने कई कोरन्टीन सेंटरों का दौरा तुलसीपुर तहसील के अंतर्गत आने वाले सेंटरों का किया जो तुलसीपुर नगर और ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में बनाया गया है तो उसकी जमीनी हकीकत कुछ अलग ही दास्तान बयां कर रहे है।आईये बात करते है कोरन्टीन सेंटर कस्तूरबा बालिक विद्यालय बजरंगबली चौराहा तुलसीपुर ,मनकौरा कांशीराम ,cms तुलसीपुर,

और गैसड़ी क्षेत्र के भंगहा कला ,जमुनी कला,दुल्हन डीह की तो वहां का नजारा ही कुछ अलग ही दिखा । कोरन्टीन प्रवासी मजदूरों की जबानी यह बात सामने आई की व्यस्था के नाम पर हमें कोई सुविधा नही दी गई है और जब सम्बंधित जिम्मेदारों से अपनी समस्या बताई गई तो हमे डराया और धमकाया गया ।कि रहना हो तो रहो नही तो तुम्हे अन्य जनपद कोरन्टीन भेज दे गे ।जबकि जांच में वहां की सच्चाई नही छुप सकी शौचालयों में गन्दगी का अंबार ,सफाई व्यवस्था ध्वस्त ,लाइट की व्यवस्था नही और नियमों के विपरीत कुछ सेंटरों में प्रवासी मजदूरों की हालत भेड़ बकरियों से भी बदतर और खाने की व्यवस्थाओं पर जिम्मेदारों की मनमानी देखने में पाई गई ।जब इस सम्बंध में वहां के जिम्मेदारों से सवाल किया गया तो वह अपना पल्ला झाड़ते हुए नजर आए और गोल मोल सा जवाब मिला ।जबकि सरकार व्यस्थाओ के नाम पर भारीभरकम रकम कोरन्टीन सेंटर के व्यवस्थाओं पर खर्च कर रही ।लेकिन मगरमच्छ बने कोरन्टीन सेंटरों के जिम्मेदार सरकार के द्वारा दी जारही सुविधाओ से सिर्फ अपना पेट भरने में जुटे दिखाई दे रहे और प्रवासी मजदूरों को कोरन्टीन में नर्क का जीवन जीने पर मजबूर कर रहे है।और अगर कोई समस्याओं को लेकर आवाज उठाता भी है तो स्थानीय प्रशासन की मदद से उसकी आवाज दबा दी जाती है। *टीम अयोध्या टाइम्स*


 

 



 

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