Monday, May 11, 2020

कोरोना की इस लड़ाई में फ़्रंट लाइन पर काम कर रहे है जिनमें प्रमुख रूप से डाक्टर,नर्सें, प्रशासन, सफ़ाईकर्मी, पुलिसकर्मी, पत्रकार और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति






बलरामपुर इस वैश्विक महामारी में कई योद्धा अपने घरों से निकल कर इंसानियत बचाने और कोरोना की इस लड़ाई में फ़्रंट लाइन पर काम कर रहे है जिनमें प्रमुख रूप से डाक्टर,नर्सें, प्रशासन, सफ़ाईकर्मी, पुलिसकर्मी, पत्रकार और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करने वालों के काम को सराहने के लिए कोई भी शब्द बहुत छोटा लगता हैं। लेकिन मेरा यह पोस्ट ऐसी साइलेंट कोरोना वीरांगनाओं को समर्पित है जिसके लिए ना देश थाली बजाता है ना दिया जलाता है और ना ताली बजाता है। शायद इसलिए कि उन्हें हम फ़्रंट लाइन पर काम करते हुए देख नहीं पाते यदि देख भी पाते है तो उनकी समर्पित सेवाओं का संज्ञान नहीं ले पाते ऐसी लाखों-करोड़ों वीरांगनाओं को मेरा सलाम है जो विगत 47 दिनों से घर के सभी सदस्यों की निरन्तर सेवा कर इस कठिन समय में परिवारों को समेटे मज़बूती से खड़ी हैं। तालाबंदी में घर पर बैठे लोग ना सिर्फ़ उकता गए हैं बल्कि अर्थव्यवस्था डूबते देख, काम-धंधा नष्ट होता देख, अपने ख़ाते से बचत को तेज़ी से घटता देख अपने क्रोध और इज़्तिराब का शिकार अकसर औरत को बना देते हैं पर मातृशक्ति हार नहीं मानती, दिन-भर घर और रसोई को संभालने के साथ-साथ मर्दों का हौसला बढ़ाते हुए मुस्कुराती हुई हर दिन एक नई जंग पर निकल पड़ती हैं,द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब जर्मनी पूरी तरह से नष्ट हो गया था, तो वहाँ की औरतों ने उस मलबे को फिर आकार दिया था जंग से सहमे और हारे हुए मर्दों को संभाला था और पूरी तरीके से बर्बाद हो गए गर्भ जर्मनी को  एक बार फिर से जर्मनी बनाया था जो आज भी  मिसाल है इतिहास गवाह है औरतों की ख़ामोशी से लड़ने और जीतने वाली जंग का। इन सभी साइलेंट वीरांगनाओं को मेरा श्रद्धापूर्ण नमन। *शिवांशु शुक्ला बलरामपुर*


 

 



 



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