Saturday, May 9, 2020

!!मातृ दिवस विशेष:-माँ का प्यार नही होता कभी शेष!!

मातृ दिवस प्रत्येक वर्ष मई महीने के दूसरे रविवार को  मनाया जाता है। इस वर्ष 2020 में यह 10 मई को मनाया जा रहा है। मातृ दिवस का उद्देश्य संसार के उन सारी माताओं को सम्मान और आदर देने के लिए है, जो अपने पुत्र के लिए अपने जीवन में न जाने कितने कष्ट सहती हैं। बच्चों एवं मां के रिश्तो में अधिकाधिक प्रगाढ़ता बढ़ पाये इसलिए  इसे एक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में निर्धारित किया गया है।

संतान को जन्म देने हेतु नव माह के गर्भधारण के प्रसव पीड़ा को सहते हुए संतान के जन्म होने के पश्चात अगर किसी को सबसे अधिक प्रसन्नता होती है तो वो माँ ही होती है। जीवन के सभी पीड़ाओं को दरकिनार करते हुए माँ का प्यार बेटे के लिए अटूट होता है। पूरे विश्व की एकमात्र इंसान माता ही होती है, जो अपने काम को बिना रुके और बिना थके करते रहती है। और इस काम के बावजूद आश्चर्यजनक बात ये हैं  की वो कभी भी अपने संतान को पलकों से ओझल नहीं होने देती।

     भारत जैसे पवित्र देश एवं पावन धरा पर माता के प्रति स्नेह, ईश्वर और ऋषियों द्वारा जो रहा है उसे पूरा विश्व जानता हैं। वैदिक काल से ही  माँ का स्थान सर्वश्रेष्ठ रहा है। यहां सर्वश्रेष्ठ का मतलब केवल मानव जाति नहीं बल्कि ईश्वर से भी है अर्थात माँ, से  बढ़कर भगवान नहीं है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार माता का गुणगान तो स्वयं भगवान भी करते नहीं थकते। यह वास्तविकता हैं मां की महत्ता के बारे में जितना कहा जाए, वर्णित किया जाय उतना ही कम पड़ेगा। जिस प्रकार मनुष्य एवं समस्त जीव जंतुओं द्वारा हर पल श्वसन क्रिया की जाती है, पर वायु कभी समाप्त नहीं होती। ठीक उसी प्रकार माँ की ममता के बारे में जितना भी कह लें वह कभी समाप्त नहीं होता।जिस प्रकार वायु प्रत्येक जगह व्याप्त है ठीक उसी प्रकार माँ की ममता की छांव उसकी संतान पर प्रतिक्षण हैं।

माँ का प्यार पाने के लिए स्वयं ईश्वर भी तरसते रहते हैं वे इस धरा पर माँ का प्यार पाने के लिए  कभी राम, कभी कृष्ण आदि अनेकानेक रूपों में अवतरित होते हैं। इस बात को सभी जानते हैं। फिर भी मातृ दिवस मनाने की परंपरा की बात है तो यह कहना गलत नहीं होगा की समय परिवर्तन के साथ दूसरे देशों में इसके चलन को देखते हुए  इसे भारतवर्ष में भी मनाया जाने लगा हैं।

विश्व के कई देशों में मातृ सम्मान हेतु इसे अलग-अलग दिन मनाया जाता हैं। इतिहासकारों का भी इस पर एकमत नहीं  हैं।हालांकि पुष्ट ख़बरों के अनुसार पहली बार इस दिवस को 1908 में अमेरिका में बनाया गया था। 1914 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने एक कानून बनाया। उस कानून के अंतर्गत यह सुनिश्चित हुआ कि प्रत्येक वर्ष मई महीने के द्वितीय रविवार को मातृ दिवस के रूप में मनाया जाएगा।भारत, अमेरिका सहित कई अन्य देश इसी दिन को मातृ दिवस के रूप में मनाते हैं। माँ का  पुत्र के लिए कल्याण की कामना हमेशा रहती है।दुर्गासप्तशती में लिखा हुआ है-कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।

अर्थात पुत्र, कुपुत्र हो जाता  है। लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती ।

बच्चे को नहलाना,खाना खिलाना,उसके लिए लंच बॉक्स तैयार करना,गृहकार्य करवाना,  स्कूल के लिए तैयार करना,फिर घर लाना अन्य यह सभी कार्य बचपन से ही माँ के द्वारा ही  तो सम्भव हो पाता है।माँ की ममता  पुत्र के लिए कभी शेष अर्थात समाप्त नही होती।

कोरोना के कारण इस वर्ष लॉकडाउन हैं। बहुत खूबसूरत पल की कई लोग अपने कार्य जैसे शिक्षा, रोजी-रोटी के जुगाड़ आदि के कारण उन्हें घर से दूर रहना पड़ता है।वो माता-पुत्र के  इस जश्न के दिवस को मना नही पाते।लॉकडाउन इस वर्ष है तो माँ के लिए इस वर्ष कुछ खास होना चाहिए। माता कभी शिक्षक तो कभी मित्र के रूप में हमेशा मार्गदर्शित करते रहती है। किसी भी मुश्किल में जब इंसान फंसता है तो उसके जुबा से पहला शब्द माँ ही निकलता है।

ध्यान रहें कुछ पाश्चात्य सभ्यताओं का असर भारत मे भी दिख रहा। लोगों का रवैया माता के अस्वस्थ या वृद्ध हो जाने पर उनका ध्यान नही देना,उनका इलाज नही करवाना  आदि है।हमसबको  समाज से इस बुराई को उखाड़ फेंकने को संकल्प लेना चाहिए और लोगों को प्रेरित भी करना चाहिए। क्योंकि माँ एक शब्द नही बल्कि पूरा संसार हैं।

 

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