Sunday, May 10, 2020

सरकार की बड़ी लापरवाही -पैदल  पैदल मजदूर और चार्टर प्लेन पर अधिकारी

पुष्पेन्द्र सिंह संवाददाता दैनिक अयोध्या टाइम्स लखनऊ

सरकारों को जनता का दु:ख बहुत दिनों तक दिखाई नहीं देता । लेकिन जब दुर्घटना हो जाती है तो दुःख प्रकट करने में सरकार के भीतर बैठे लोग बिजली की गति से आगे निकल जाते हैं । जैसे ही खबर आई कि महाराष्ट्र के जालना और औरंगाबाद के बीच 16 मजदूरों की मौत मालगाड़ी से कट जाने के कारण हुई है । तो ट्वीटर पर संवेदनाओं की बाढ़ आ गई । समर्थकों ने भी ट्वीट करना शुरू कर दिया और चारों ओर मौत का प्रसार हो गया । छोटी घटना बन गई लोगों को समय रहते देखना चाहिए था कि मजदूर पैदल चलने के लिए क्यों मजबूर हो रहे हैं । उन्होंने कुछ नहीं किया और लोगों को बाहर से उन्हें देखना चाहिए था । जब 16 लोगों की मौत हो गई तब संवेदना ओं को ट्वीट किया जा रहा है ।और किसी भी बात को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है । 40 दिन कम नहीं होते हैं सरकार के पास फीडबैक पहुंचने के लिए लगातार फीडबैक पहुंचाया जा रहा है मीडिया के जरिए की मजदूर किन किन हालात में पैदल चल रहे हैं कुछ कीजिए लेकिन जो हुआ वह काफी नहीं था और जो सरकारों ने बस और ट्रेन का इंतजाम किया उसके बाहर लाखों मजदूर पैदल चलने के लिए मजबूर हो कोई सरकार की 4 लाख मजदूर लेकर आए हैं कोई कहेगी कि 2 लाख मजदूर लेकर आए इतनी संख्या में लोग तो पार्टी के कार्यकर्ता पैसा खर्चा करके बसों का जुगाड़ करके किसी मैदान में जमा कर देते । लेकिन देश भर से मजदूरों के लाने में इस तरह की कोताही हुई है कि जब 16 मजदूरों की मौत हुई है । तो अब ट्विटर पर संवेदना प्रकट करने का नाटक किया जा रहा है । 36 किलोमीटर लगातार पैदल चलने के बाद थकान इतनी बढ़ गई होगी  कि नींद आने लगी हम नहीं जानते कि 36 किलोमीटर पैदल चलने के दौरान उन्होंने क्या खाया होगा क्या पिया होगा । तो जाहिर सी बात है कमजोर शरीर थक कर चूर हो गया होगा । बहुत दिनों से रेलगाड़ी चलते नहीं देखी होगी नींद आई तो पटरी पर ही पीठ सीधी करके लेट गए होंगे और फिर गहरी नींद में खो गए होंगे और उनके ऊपर से मालगाड़ी से 16 मजदूर कटकर मर गए । ये मजदूर जालना से पैदल चलते हुए जा रहे थे औरंगाबाद की तरफ से वहां से मध्यप्रदेश के लिए कोई ट्रेन खुलने वाली है । उन्हें क्या पता कि एक ट्रेन उन्हें मार देने वाली है । अगर वह औरंगाबाद पहुंच जाते तो शायद मध्यप्रदेश अपने घर भी पहुंचते लेकिन 36 किलोमीटर की पैदल यात्रा ने इतना थका दिया की आंख ही न खुली कि  पटरी पर ट्रेन आ रही है और वह भी मालगाड़ी जो काफी आवाज करती हुई आती है उसके आने की आवाज भी उनको जगह नहीं सकी । यह हादसा उनके साथ ही  नहीं हुआ है और उस समाज के साथ भी हुआ है जो अपने आसपास के झूठ के सहारे जीने लगा है । वो देख रहा था टीवी के जरिए की मजदूर कई दिनों से पैदल चलने के लिए मजबूर हैं । मगर उसे अपनी बोरियत का ख्याल था क्योंकि उसे टीवी पर एक्साइमेंट पैदा करने वाली डिबेट  का चस्का लगा हुआ है । मजदूरों के पैदल चलने का दृश्य पहले से ही हल्ला हंगामा किया होता तो सरकार पर भी दबाव पड़ता कि इन्हें वापस लाने की खानापूर्ति कम की जाए और इन्हें बाइज्जत वापस लाया जाए ताकि इस जिंदगी के साथ खिलवाड़ ना हो । सभी मध्य प्रदेश उमरिया और शहडोल जिले के रहने वाले थे जालना में एक स्टील फैक्ट्री में काम करते थे । धन सिंह गौड़ , निर्वेश सिंह गौड़ , बुधराज सिंह गौड़ , अच्छे लाल सिंह, रविंद्र सिंह गौड़ , सुरेश सिंह कौल , राजपोहरम पारस सिंह , धर्मेंद्र सिंह , भूपेंद्र सिंह , चैन सिंह , प्रदीप सिंह गौड़ , बृजेश भैया, मुनीम सिंह , शिव रतन सिंह , दयाल सिंह , नेम शाह सिंह , दीपक सिंह अशोक सिंह ये मरने वालों के नाम है । जब ये सभी जीवित थे तो कभी पांच रुपए भी नहीं मिले जब मर गए तो ऐलान हुआ है कि पांच लाख मिलेंगे मजदूरों की जिंदगी की कीमत कम आती जाती है इसलिए 05 लाख की दयावान सरकार के द्वारा मेहरबानी हुई है और मध्य प्रदेश सरकार ने बड़ा ही शानदार से लगने वाला फैसला लिया है कि विशेष विमान से अधिकारियों का दल वहां भेजा जा रहा है । इस विशेष विमान से मजदूरों को भी वापस लाया जा सकता था । मर गए तो खबरों में अच्छी खासी जगह बनाने के लिए विमान भेजने का फैसला किया जाता है  । इनका ध्यान इतना था कि पुलिस लगा दो हाईवे पर और आने वाले मजदूरों को तरह-तरह से तंग करो । मजदूरों ने उन रास्तों को खोजना शुरू कर दिया जिन पर ज्यादा मुस्किलें थी । पटरियों पर चलना भी मुश्किल था ।  और इन दिनों में जब श्रमिक स्पेशल और कई तरह की गाड़ियां फिर से चलनी शुरू हुई है आप समझ गए कि वह अपनी जिंदगी से खेलने के लिए मजबूर हुए आज भी  महाराष्ट्र सहित कई प्रदेशों में रेल की पटरियों पर अनगिनत मजदूर पैदल चल रहे हैं । हमारी संवेदनाएं मरने के बाद के लिए ही क्यों होती है । सवाल तो असली यही है ।जो मजदूर बिहार की तरफ जा रहे हैं कटिहार या उत्तर प्रदेश आ रहे हैं । इन पटरियों के किनारे चलते चलते हैं और इन पर चलना कितना जोखिम का काम है ।  यूपी के शाहजहांपुर स्टेशन पर अमृतसर से आने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन से 4 मजदूरों को किसी ने बता दिया था कि गाड़ी  शाहजहांपुर भी रुकेगी लेकिन जब ट्रेन नहीं रुकी तभी चारों मजदूर चलती ट्रेन से कूद गए लेकिन सुरक्षित रहे । मजदूरों के साथ उन्हें सारी बातें ठीक से नहीं बता रहे हैं हमने मान लिया है कि सारा भारत ट्वीटर टाइम लाइन पर ही मुफ्त खोरी कर रहा है या व्हाट्सएप में खोया हुआ है आज के जमाने में इस पर विचार किया जाना चाहिए । पैदल चलने वाले मजदूरों के साथ सड़कों पर दुर्घटनाएं भी हो रही हैं लेकिन वह दुर्घटनाएं भी छोटी मोटी नहीं है ।आगरा जा रहे हैं घायल अवस्था में सड़क के किनारे पड़े हुए कोई एंबुलेंस नहीं है यही नहीं चलने वाले मजदूरों के साथ अच्छी खासी संख्या में गर्भवती महिलाएं भी हैं इसी तरह अपने आप को संभाले हुए मिलो सैकड़ों किलोमीटर दिन-रात पैदल चलने के लिए मजबूर और ना ही खाना पा रही हैं । और उन महिलाओं के साथ कई छोटे-छोटे बच्चे भी हैं । सवाल क्या इतने सारे मंत्रियों मुख्यमंत्रियों की ट्वीटर इसलिए आए कि मालगाड़ी से कटकर मर जाने वालों की संख्या 16 थी क्या उनकी संवेदना का आधार मरने वालों की संख्या है । अगर नहीं है तो लखनऊ में भी इसी तरह के हालात में दो लोगों की मौत हो गई बुधवार को लखनऊ के जानकीपुरम से छत्तीसगढ़ के लिए पति पत्नी का जोड़ा साइकिल से निकल पड़ा कृष्णा की तालाबंदी के कारण स्थिति और असहनीय हो गई थी । पति-पत्नी अपने दो बच्चों के साथ निकल पड़े निकलने के बाद किसी वाहन ने जोरदार टक्कर मारी जिसमें कृष्णा और प्रमिला की मौत हो गई लेकिन दोनों बच्चों की जान बच गई ।बच्चे बहुत छोटे हैं इनके लिए आईटी सेल इनके लिए कभी हेस्टैक नहीं चलाएगा वह सिर्फ धार्मिक उन्माद के समय जनता का पहरेदार बन कर आता है पिछले 45 दिनों में जनता के जीवन मरण से संबंधित आपने कितने टीवी पर डिबेट और अखबारों  देखा और खतरे में पड़े धर्म को लेकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से निकलकर धार्मिक उन्माद में ये आपसे हिसाब मांगेगा । कृष्णा और प्रमिला लखनऊ के जानकीपुरम में एक झुग्गी झोपड़ी में रहते थे लखनऊ से छत्तीसगढ़ लगभग 744 किलोमीटर चलने के लिए साइकिल पर पति पत्नी व बच्चों सहित सवार हुए थे । गरीबों का दिल बड़ा होता है कृष्णा के भाई का परिवार भी चल रहा था भाई ने कहा है कि उसके तीन बच्चे हैं अब वह तो और बच्चों को पालेगा  किसी को नहीं देगा यह है हमारे गरीबों के बीच की संवेदनशीलता मजदूरों के बीच बचा हुआ जीवन और उसकी प्रासंगिकता । केंद्र व राज्य सरकारों को मजदूरों के प्रति गहनता से सोचना चाहिए ना की चाटुकार अधिकारियों और खानापूर्ति बस से ही ऐसे ही गरीब मजदूरों व बेबस बेसहारा लोगों का इस महामारी में तालाबंदी होने पर मजदूरों के पैर के छाले नहीं छुपाये जा सकते हैं और न ही गरीबों के पेट में निवाला नहीं पहुंचाया जा सकता है । 

 

 

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