Wednesday, May 13, 2020

शिक्षा के अभीष्ट परिणाम पर कोविड-19 की कुदृष्टि

इस कोविड-19 अर्थात कोरोना काल के सम्मुख शिक्षा को अभीष्ट परिणाम दे पाने की चुनौती भारत देश में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर सबसे अहम व चिंतनशील मुद्दे के रूप में देखा जा रहा है। जैसा कि सर्वविदित है कि शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास की नींव होती है जिसके आधार पर ही अर्थव्यवस्था की गाड़ी को गतिमान रखा जा सकता है। शिक्षा के बिना मानव महज एक आदिम जीव सदृश है। शिक्षा ही मानव को प्रकृति का एक श्रेष्ठ जीव का दर्जा प्रदान करती है।
ऐसे में अगर शिक्षा स्तर में गिरावट आती है तो यह भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत होगा। जैसा कि विश्व बैंक के शिक्षा विशेषज्ञों ने एक रिपोर्ट के द्वारा यह दावा किया है कि कोविड-19 महामारी के चलते शिक्षा के अभीष्ट परिणामों में भारी गिरावट देखी जा सकती है। यह बात अपने आप में काफी हद तक सही भी है। जैसा कि पहले से ही कोरोना की कड़ी को तोड़ने के लिए लॉकडाउन स्वरूप लगभग सभी शैक्षणिक संस्थान बंद चल रहे हैं तो ऐसे में शिक्षा का अभीष्ट परिणाम प्रभावित होना लाजिमी है।
जहाँ पहले से ही वैश्विक शिक्षा सतत विकास लक्ष्य ४ के लक्ष्यों को पूरा करने में असमर्थ रही हो वहाँ अभीष्ट परिणाम की अपेक्षा रखना बेमानी होगी। इन लक्ष्यों के अन्तर्गत यह तय किया गया था कि सभी देश शिक्षा के स्तर को बढ़ाने हेतु सभी बालक व बालिकाओं को एक समान, मुफ्त व गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा हेतु प्रतिबद्ध हैं। मगर यह लक्ष्य महामारी के पहले तक भी अधूरे थे। ऐसे में जब हर देश की सरकारें इस वैश्विक महामारी से उबरने हेतु अपने आर्थिक कोष का बड़ा हिस्सा लगाने को मजबूर हैं तो शिक्षा का प्रभावित होना अटल सत्य है।
शिक्षा का अभीष्ट परिणाम न आना युवा प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों का मनोबल गिराएगा जिसका परिणाम बेहद खतरनाक होगा। महामारी ने जहाँ सम्पूर्ण जगत को घुटने पर ला दिया है वहीं शिक्षा के स्तर को भी दीमक की तरह चाट रहा है। ऐसे में शिक्षा के स्तर को बरकरार रखने के लिए सरकारों को शैक्षणिक तकनीकी में बड़े व प्रभावी बदलाव करने की अत्यंत आवश्यकता आन पड़ी है ताकि शिक्षा के अभीष्ट परिणाम को कोविड-19 महामारी द्वारा प्रभावित होने से बचाया जा सके और एक सुंदर व शिक्षित समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया सके!


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