Wednesday, May 13, 2020

स्वास्थ्य सुविधाओं पर विचार की आवश्यकता






स्वास्थ सुविधाएं, एक बड़ा सवाल रहा है हमेशा से ही। किन्तु कोरोनावायरस के देश में आने के बाद इस पर और अधिक चर्चा होने लगी है। हमारे देश की स्वास्थ सुविधाएं कई विकसित देशों के साथ ही साथ, विकासशील देशों से भी पिछड़ी हुई है। हमारी स्वास्थ सुविधाओं में एक बड़ी हिस्सेदारी प्राइवेट अस्पतालों और निजी क्लिनिकों की रहीं हैं। यहां सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए यह बहुत ही बड़ी कीमत आम जनता से वसूलते हैं। जिसके चलते आम आदमी की कमाई का एक मोटा भाग प्राइवेट अस्पतालों की जेबों में जाता है। 

इस सबके बाद भी हमारी सरकार स्वास्थ्य सुविधाएं को अधिक दुरुस्त बनाने के लिए प्राइवेट सेक्टर पर निर्भर है। जिसके लिए हमारी सरकार द्वारा बजट में भी सस्ती जमीन उपलब्ध करवाने से लेकर कई ऐसे ऐलान किए गए, जिनका फायदा प्राइवेट और निजी चिकित्सक सुविधाएं उपलब्ध करवाने वालों को दी जा सकें। 

 यह सत्य है कि हमारे देश में जितनी जल्दी और जितना अच्छा इलाज प्राइवेट सेक्टर में उपलब्ध है, उतना सरकारी सेक्टर में नहीं। जिसके कारण हमारे देश की जनता प्राइवेट अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर हैं। किन्तु सोचने की बात यह है कि क्या हमारी सरकार को सरकारी विभागों को सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सेवा सुधारने के प्रयास नहीं करने चाहिए। प्राइवेट चिकित्सा सेवा देने वाले अस्पतालों को सरकारी सस्ती जमीन और सरकारी योजनाओं का लाभ दे कर कभी भी यह कार्य नहीं कर सकतीं है। 

आज हमारा देश कोरोनावायरस जैसी बड़ी परेशानी से जूझ रहा है। जिसके लिए हमें अच्छी स्वास्थ सुविधाओं की आवश्यकता है। किन्तु हमारी स्वास्थ सुविधाएं बहुत अच्छी नहीं है साथ ही अधिक से अधिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्राइवेट अस्पतालों और निजी क्लीनिक द्वारा उपलब्ध होती है। जिन्होंने इस समय सहयोग नहीं कर रहें हैं। प्राइवेट अस्पतालों द्वारा कोरोनावायरस के टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव होने बाद ही इलाज की बात कही जा रही है। कई मरीजों को कोरोनावायरस के डर से इलाज देने से मना करना और इलाज के नाम पर मोटी रकम वसूलना अब भी जारी है। 

हम और हमारी सरकारें सरकारी अस्पतालों को गरीबों लोगों की जरूरत और स्थान समझ कर उनके विकास और बढ़त में सहयोग देने के स्थान पर। उनके अस्तित्व को ही नकारते आएं हैं। वहीं आज इस आपातकाल के समय में अपना फर्ज़ निभा रहे हैं।  प्रत्येक परेशानी से जूझते हुए भी यहां काम करने वाले स्वास्थ कर्मचारी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। डाक्टरो द्वारा खाई जाने वाली कसम, आज केवल सरकारी अस्पतालों के डाक्टर और स्वास्थ कर्मचारियों द्वारा ही निभाई जा रही है। 

सरकार का कार्य है सभी देश वासियों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करना। जिसको ध्यान में रखते हुए 2017 में भारत सरकार ने आयुष्मान योजना की शुरुआत की। जिसकी सहायता से गरीब तबके के लोगों को पांच लाख तक मुफ्त चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने की योजना थीं। इस योजना में सात हजार के करीब प्राइवेट अस्पतालों ने आवेदन किया। जिसके चलते आम लोगों का टेक्स का पैसा प्राइवेट अस्पतालों की ही जेबी में गया। चंद प्राइवेट अस्पतालों को इस योजना से अधिक फायदा पहुंचाने की कोशिश करते हुए, इस योजना के असल कार्य पर ही सवाल उठ गए। 

हमारी सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों को कोरोना के मरीजों के इलाज के आदेश तो दिए हैं। किन्तु इस इलाज के लिए कितना कीमत ली जा सकती है। इसका के कोई नियम नहीं बनाएं है। जिसके चलते निजी अस्पतालों द्वारा हजारों से लाखों का बिल इलाज के लिए अपनी इच्छा द्वारा वसूल रही है। जिसके चलते आम जनता पर बोझ बढ़ रहा है।

भारत सरकार ने रेपिड टेस्ट किट असल कीमत से कई अधिक कीमत पर ख़रीदीं, जिसके कारण जनता के टेक्स का पैसा बर्बाद हुआ। 245 रुपए प्रति किट के हिसाब से जो किट चाइना से खरीदी गई। वहीं किट हमारी सरकार ने 600 रूपये प्रति किट के हिसाब से खरीदी। जिससे सरकार को कोई आपत्ति नहीं थीं। जैसे वह उन प्राइवेट कम्पनियों की मदद कर रही हो कोरोना काल से जुझने में। बाद में यह हाईकोर्ट के आदेश पर 400 रूपये प्रति किट के हिसाब से सभी किट ख़रीदीं गई। 

निजी अस्पतालों और लेव द्वारा 4500 रूपये प्रति टेस्ट लिए जा रहें हैं। जिसके चलते प्रत्येक टेस्ट पर उन्हें हजार रूपए का फायदा हो रहा है। क्या इस आपदा के समय में भी प्राइवेट अस्पतालों को फायदा उपलब्ध करवाना हमारी जिम्मेदारी है या फिर इस देश की जनता के लिए अपना फर्ज़ निभाना। 

अमेरिका में आज सभी स्वास्थ्य सेवा प्राइवेट सेक्टर के हिस्से में है। जहां हम प्रत्येक दिन कोरोनावायरस की बढ़ती परेशानी को देख रहें हैं। दूसरी ओर क्यूबा हैं है जिसकी सभी स्वास्थ्य सुविधाएं सरकारी हैं और सभी देशवासियों को सरकार द्वारा मुफ्त चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराई जाती है। कोरोनावायरस संकट के समय वहां के डॉक्टर अपने देश में ही नहीं कई अन्य देशों में भी जा कर मदद कर रहे हैं। 

हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी कहते हैं कि यह समय बहुत सारी सकारात्मक चीजों को सीखने का समय है। फिर हमारी सरकार क्यों नहीं इस आपदा के समय सीखने का विचार करते हुए, क्यूबा चिकित्सा मॉडल को अपने देश में अपनाती है। हम क्यों लालच के जाल में इतने गिर गए हैं कि हम अपने देश वासियों को अच्छी सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास करने के नाम पर। प्राइवेट सेक्टर पर निर्भर हो जातें हैं और उनको ही मदद करतें हैं। 

हमें विचार करना होगा। देश की 130 करोड़ जनता के लिए  केन्द्र ही नहीं राज्य सरकारों को भी चिकित्सा सेवा में सुधार करने के लिए सरकारी अस्पतालों में बढ़त करने के साथ सुविधाओं में भी सुधार करना होगा। ताकि अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं सभी को मिल सकें‌, बिना किसी भ्रष्टाचार के। 

             राखी सरोज


 

 



 



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