राष्ट्रहित का गला घोंटकर,
छेद न करना थाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में...
देश के धन को देश में रखना,
नहीं बहाना नाली में..
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में...
बने जो अपनी मिट्टी से,
वो दिये बिकें बाजारों में...
छुपी है वैज्ञानिकता अपने,
सभी तीज-त्यौहारों में...
चायनिज झालर से आकर्षित,
कीट-पतंगे आते हैं...
जबकि दीये में जलकर,
बरसाती कीड़े मर जाते हैं...
कार्तिक दीप-दान से बदले,
पितृ-दोष खुशहाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना...
अबकी बार दीवाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना...
अबकी बार दीवाली में...
कार्तिक की अमावस वाली,
रात न अबकी काली हो...
दीये बनाने वालों की भी,
खुशियों भरी दीवाली हो...
अपने देश का पैसा जाये,
अपने भाई की झोली में...
गया जो दुश्मन देश में पैसा,
लगेगा रायफल गोली में...
देश की सीमा रहे सुरक्षित,
चुक न हो रखवाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना...
अबकी बार दीवाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना..
अबकी बार दीवाली में...
Thursday, October 17, 2019
मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दीवाली में...
लंकाधीश रावण की मांग..!
( अद्भुत प्रसंग, भावविभोर करने वाला प्रसंग जरुर पढ़ें )बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी महर्षि कम्बन की #इरामावतारम्' मे यह कथा है.!रावण केवल शिवभक्त, विद्वान एवं वीर ही नहीं, अति-मानववादी भी था..! उसे भविष्य का पता था..! वह जानता था कि श्रीराम से जीत पाना उसके लिए असंभव है..!जब श्री राम ने खर-दूषण का सहज ही बध कर दिया तब तुलसी कृत मानस में भी रावण के मन भाव लिखे हैं--!खर दूसन मो सम बलवंता.! तिनहि को मरहि बिनु भगवंता.!!रावण के पास जामवंत जी को #आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा गया..!जामवन्त जी दीर्घाकार थे, वे आकार में कुम्भकर्ण से तनिक ही छोटे थे.! लंका में प्रहरी भी हाथ जोड़कर मार्ग दिखा रहे थे.! इस प्रकार जामवन्त को किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा.! स्वयं रावण को उन्हें राजद्वार पर अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवन्त ने मुस्कराते हुए कहा कि मैं अभिनंदन का पात्र नहीं हूँ.! मैं वनवासी राम का दूत बनकर आया हूँ.! उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहा है.!रावण ने सविनय कहा -- "आप हमारे पितामह के भाई हैं.! इस नाते आप हमारे पूज्य हैं.! कृपया आसन ग्रहण करें.! यदि आप मेरा निवेदन स्वीकार कर लेंगे, तभी संभवतः मैं भी आपका संदेश सावधानी से सुन सकूंगा.!"जामवन्त ने कोई आपत्ति नहीं की.! उन्होंने आसन ग्रहण किया.! रावण ने भी अपना स्थान ग्रहण किया.! तदुपरान्त जामवन्त ने पुनः सुनाया कि वनवासी राम ने सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्व-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं.! इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होंने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव रावण को आचार्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है.!" मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूँ.!"प्रणाम.! प्रतिक्रिया, अभिव्यक्ति उपरान्त रावण ने मुस्कान भरे स्वर में पूछ ही लिया..! "क्या राम द्वारा महेश्व-लिंग-विग्रह स्थापना लंका-विजय की कामना से किया जा रहा है..?""बिल्कुल ठीक.! श्रीराम की महेश्वर के चरणों में पूर्ण भक्ति है..!"जीवन में प्रथम बार किसी ने रावण को ब्राह्मण माना है और आचार्य बनने योग्य जाना है.! क्या रावण इतना अधिक मूर्ख कहलाना चाहेगा कि वह भारतवर्ष के प्रथम प्रशंसित महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई महर्षि वशिष्ठ के यजमान का आमंत्रण और अपने आराध्य की स्थापना हेतु आचार्य पद अस्वीकार कर दे..?रावण ने अपने आपको संभाल कर कहा –" आप पधारें.! यजमान उचित अधिकारी है.! उसे अपने दूत को संरक्षण देना आता है.! राम से कहिएगा कि मैंने उसका आचार्यत्व स्वीकार किया.!"जामवन्त को विदा करने के तत्काल उपरान्त लंकेश ने सेवकों को आवश्यक सामग्री संग्रह करने हेतु आदेश दिया और स्वयं अशोक वाटिका पहुँचे, जो आवश्यक उपकरण यजमान उपलब्ध न कर सके जुटाना आचार्य का परम कर्त्तव्य होता है.! रावण जानता है कि वनवासी राम के पास क्या है और क्या होना चाहिए.!अशोक उद्यान पहुँचते ही रावण ने सीता से कहा कि राम लंका विजय की कामना से समुद्रतट पर महेश्वर लिंग विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और रावण को आचार्य वरण किया है..! " यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है.! तुम्हें विदित है कि अर्द्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं.! विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना.! ध्यान रहे कि तुम वहाँ भी रावण के अधीन ही रहोगी.! अनुष्ठान समापन उपरान्त यहाँ आने के लिए विमान पर पुनः बैठ जाना.! "स्वामी का आचार्य अर्थात स्वयं का आचार्य.! यह जान जानकी जी ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया.! स्वस्थ कण्ठ से "सौभाग्यवती भव" कहते रावण ने दोनों हाथ उठाकर भरपूर आशीर्वाद दिया.!सीता और अन्य आवश्यक उपकरण सहित रावण आकाश मार्ग से समुद्र तट पर उतरे.!" आदेश मिलने पर आना" कहकर सीता को उन्होंने विमान में ही छोड़ा और स्वयं राम के सम्मुख पहुँचे.!जामवन्त से संदेश पाकर भाई, मित्र और सेना सहित श्रीराम स्वागत सत्कार हेतु पहले से ही तत्पर थे.! सम्मुख होते ही वनवासी राम आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया.!" दीर्घायु भव.! लंका विजयी भव.! "दशग्रीव के आशीर्वचन के शब्द ने सबको चौंका दिया.! सुग्रीव ही नहीं विभीषण की भी उन्होंने उपेक्षा कर दी.! जैसे वे वहाँ हों ही नहीं.! भूमि शोधन के उपरान्त रावणाचार्य ने कहा.." यजमान.! अर्द्धांगिनी कहाँ है.? उन्हें यथास्थान आसन दें.!" श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर अत्यन्त विनम्र स्वर से प्रार्थना की, कि यदि यजमान असमर्थ हो तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ट विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी तो अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं..!" अवश्य-अवश्य, किन्तु अन्य विकल्प के अभाव में ऐसा संभव है, प्रमुख विकल्प के अभाव में नहीं.! यदि तुम अविवाहित, विधुर अथवा परित्यक्त होते तो संभव था.! इन सबके अतिरिक्त तुम संन्यासी भी नहीं हो और पत्नीहीन वानप्रस्थ का भी तुमने व्रत नहीं लिया है.! इन परिस्थितियों में पत्नीरहित अनुष्ठान तुम कैसे कर सकते हो.?"" कोई उपाय आचार्य.?"
" आचार्य आवश्यक साधन, उपकरण अनुष्ठान उपरान्त वापस ले जाते हैं.! स्वीकार हो तो किसी को भेज दो, सागर सन्निकट पुष्पक विमान में यजमान पत्नी विराजमान हैं.!"श्रीराम ने हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हुए मौन भाव से इस सर्वश्रेष्ठ युक्ति को स्वीकार किया.! श्री रामादेश के परिपालन में, विभीषण मंत्रियों सहित पुष्पक विमान तक गए और सीता सहित लौटे.! " अर्द्ध यजमान के पार्श्व में बैठो अर्द्ध यजमान ..."आचार्य के इस आदेश का वैदेही ने पालन किया.!गणपति पूजन, कलश स्थापना और नवग्रह पूजन उपरान्त आचार्य ने पूछा - लिंग विग्रह.?यजमान ने निवेदन किया कि उसे लेने गत रात्रि के प्रथम प्रहर से पवनपुत्र कैलाश गए हुए हैं.! अभी तक लौटे नहीं हैं.! आते ही होंगे.!आचार्य ने आदेश दे दिया - " विलम्ब नहीं किया जा सकता.! उत्तम मुहूर्त उपस्थित है.! इसलिए अविलम्ब यजमान-पत्नी बालू का लिंग-विग्रह स्वयं बना ले.!"
जनक नंदिनी ने स्वयं के कर-कमलों से समुद्र तट की आर्द्र रेणुकाओं से आचार्य के निर्देशानुसार यथेष्ट लिंग-विग्रह निर्मित किया.! यजमान द्वारा रेणुकाओं का आधार पीठ बनाया गया.! श्री सीताराम ने वही महेश्वर लिंग-विग्रह स्थापित किया.! आचार्य ने परिपूर्ण विधि-विधान के साथ अनुष्ठान सम्पन्न कराया.!अब आती है बारी आचार्य की दक्षिणा की..! श्रीराम ने पूछा - "आपकी दक्षिणा.?"पुनः एक बार सभी को चौंकाया ... आचार्य के शब्दों ने.." घबराओ नहीं यजमान.! स्वर्णपुरी के स्वामी की दक्षिणा सम्पत्ति नहीं हो सकती.! आचार्य जानते हैं कि उनका यजमान वर्तमान में वनवासी है ..."" लेकिन फिर भी राम अपने आचार्य की जो भी माँग हो उसे पूर्ण करने की प्रतिज्ञा करता है.!""आचार्य जब मृत्यु शैय्या ग्रहण करे तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहे ....." आचार्य ने अपनी दक्षिणा मांगी.! "ऐसा ही होगा आचार्य.!" यजमान ने वचन दिया और समय आने पर निभाया भी----- " रघुकुल रीति सदा चली आई.! " प्राण जाई पर वचन न जाई.!!" यह दृश्य वार्ता देख सुनकर उपस्थित समस्त जन समुदाय के नयनाभिराम प्रेमाश्रुजल से भर गए.! सभी ने एक साथ एक स्वर से सच्ची श्रद्धा के साथ इस अद्भुत आचार्य को प्रणाम किया.! रावण जैसे भविष्यदृष्टा ने जो दक्षिणा माँगी, उससे बड़ी दक्षिणा क्या हो सकती थी.? जो रावण यज्ञ-कार्य पूरा करने हेतु राम की बंदी पत्नी को शत्रु के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है, वह राम से लौट जाने की दक्षिणा कैसे मांग सकता है.?( रामेश्वरम् देवस्थान में लिखा हुआ है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना श्रीराम ने रावण द्वारा करवाई थी )
AJAY PATRAKAR
500 साल पुराने विवाद में 206 साल से फैसले का इंतजार
नमन पांडे अयोध्या
अयोध्या| | देश के सबसे संवेदनशील और चर्चित मामलों में शामिल अयोध्या केस (Ayodhya Case) की सुप्रीम कोर्ट में प्रतिदिन चल रही सुनवाई आज (16 अक्टूबर 2019) शाम तक पूरी हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले 17 अक्टूबर तक केस की सुनवाई पूरी करने की समय सीमा निर्धारित की थी। बाद में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने 16 अक्टूबर तक मामले की सुनवाई खत्म करने की समय सीमा तय कर दी थी। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इस माह के अंत या अगले माह के शुरूआती हफ्ते तक इस बहुप्रतीक्षित केस में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है।
मालूम हो कि अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक को लेकर चल रहा विवाद करीब 500 साल पुराना है। माना जाता है कि इस विवाद की शुरूआत 1528 में तब हुई थी जब मुगल शासक बाबर ने राम मंदिर को गिराकर वहां मस्जिद का निर्माण कराया था। इसी वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा था। विवादित स्थल पर हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों में मालिकाना हक का विवाद सबसे पहले 1813 में शुरू हुआ, जब हिंदुओं ने इस स्थल पर अपने हक की आवाज उठाई। आइये जानते हैं- अयोध्या केस में कब-कब और क्या-क्या हुआ?
अयोध्या केस की टाइमलाइन..............................................
▪15 अक्टूबर 2019- सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस की सुनवाई ▪16 अक्टूबर 2019 तक पूरी करने की समय सीमा निर्धारित की।
▪06 अगस्त 2019- अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की।
▪02 अगस्त 2019- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता के जरिए अयोध्या केस नहीं सुलझाया जा सकता। साथ ही कोर्ट ने छह अगस्त से केस में प्रतिदिन सुनवाई की तिथि तय की।
▪08 मार्च 2019- सुप्रीम कोर्ट ने श्री श्री रविशंकर, श्रीराम पंचू और जस्टिस एफएम खलीफुल्ला को अयोध्या केस में मध्यस्थता करने की मंजूरी प्रदान की।
▪06 मार्च 2019- सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता को तैयार हुआ, लेकिन हिंदू महासभा और रामलला पक्ष ने ये कहकर असहमति जताई कि जनता मध्यस्थता के फैसलो को नहीं मानेगी। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के मामले पर फैसला सुरक्षित रखा।
▪26 फरवरी 2019- सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मध्यस्थता के जरिए विवाद सुलझाने की सलाह दी। कोर्ट ने कहा था कि अगर इसकी एक फीसद भी गुंजाइश है तो मध्यस्थता होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में मध्यस्थता के जरिए विवाद का निपटारा कराने को तैयार हुआ।
▪27 जनवरी 2019- न्यायमूर्ति बोबडे के अवकाश पर होने की वजह से 29 जनवरी 2019 की प्रस्तावित सुनवाई टली। सुप्रीम कोर्ट ने 26 फरवरी 2019 की नई तिथि निर्धारित की।
▪10 जनवरी 2019- मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन द्वारा सवाल उठाए जाने पर जस्टिस यूयू ललित ने खुद को इस केस की सुनवाई से अलग किया। राजीव धवन ने सवाल उठाया था कि 1994 में इसी केस में जस्टिस यूयू ललित ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की कोर्ट में पैरवी की थी।
▪जनवरी 2019- अयोध्या केस की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संवैधानिक पीठ गठित हुई। पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस बोबडे और जस्टिस एनवी रमन्ना को शामिल किया गया।
▪29 अक्टूबर 2018- सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था इस मामले की सुनवाई के लिए जनवरी के प्रथम सप्ताह में उचित पीठ का गठन होगा, जो इसकी सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगा।
▪27 जनवरी 2018- तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। साथ ही पीठ ने इस केस को पांच जजों की पीठ के पास नए सिरे से सुनवाई करने के लिए भेजने से इनकार कर दिया था।
▪09 मई 2011- सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने के फैसले पर रोक लगा दी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।
▪24 सितंबर 2010- हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए दिया और हिन्दुओं को विवादित स्थल का शेष हिस्सा समेत मंदिर बनाने के लिए बाकी जमीन देने का फैसला सुनाया। फैसले से असंतुष्ट होकर दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
▪08 सितंबर 2010- हाईकोर्ट ने मामले में फैसला सुनाने के लिए 24 सितंबर की तारिख तय की।
▪26 जुलाई 2010- अयोध्या विवाद पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हुई।
▪20 मई 2010- विवादित ढांचा विध्वंस मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य नेताओं पर आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी।
▪24 नवंबर 2009- संसद के दोनों सदनों में लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट पेश की गई। इसमें नरसिंह राव को क्लीन चिट दे दी गई।
▪07 जुलाई 2009- तत्कालीन यूपी सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया कि अयोध्या विवाद से जुड़ीं 23 महत्वपूर्ण फाइलें सचिवालय से गायब कर दी गईं हैं।
▪30 जून 2009- अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में जांंंचच के लिए बनाए गए लिब्रहान आयोग ने 17 साल बाद अपनी जांच रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी।
▪जुलाई 2006- यूपी सरकार ने विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा पुख्ता करने के लिए बुलेटप्रूफ शीशे का घेरा लगाने का प्रस्ताव तैयार किया। मुस्लिम पक्ष ने अदालत द्वारा दिए गए स्टे की अवहेलना का हवाला देकर विरोध किया।
▪20 अप्रैल 2006- यूपीए सरकार ने लिब्राहन आयोग को लिखित बयान दिया कि विवादित ढांचे को गिराना सुनियोजित साजिश थी। भाजपा, आरएसएस, बजरंग दल और शिवसेना ने मिलकर इस साजिश को अंजाम दिया।
▪04 अगस्त 2005- फैजाबाद की जिला अदालत ने विवादित परिसर के पास हुए हमले में चार लोगों को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा।
▪जुलाई 2005- पांच आतंकियों ने विवादित परिसर पर जानलेवा हमला किया। इसमें पांच आतंकी समेत छह लोगों की मौत हुई।
▪अप्रैल 2004- भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या के विवादित स्थल पर बने अस्थाई राममंदिर में पूजा की। साथ ही बयान दिया कि भव्य राम मंदिर का निर्माण जरूर होगा।
▪अगस्त 2003- विहिप ने अनुरोध किया कि राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार विशेष विधेयक लाए। इस मांग को तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने ठुकरा दिया था।
▪जून 2003- कांची पीठ शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की पहली की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
▪मई 2003- सीबीआई ने 1992 में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया।
▪अप्रैल 2003- हाईकोर्ट के आदेश पर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की जांच के लिए खुदाई शुरू की। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि विवादित स्थल की खुदाई में मंदिर से मिलते-जुलते कई अवशेष मिले हैं। इस रिपोर्ट ने हिंदू पक्ष के दावे पर मुहर लगा दी थी।
▪मार्च 2003- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस मांग को ठुकराया, जिसमें विवादित स्थल पर पूजापाठ करने की अनुमति मांगी गई थी।
▪जनवरी 2003- रेडियो तरंगों के जरिए विवादित स्थल के नीचे किसी प्राचीन इमाररत के अवशेष का पता लगाने का प्रयास किया गया, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला।
▪22 जून 2002- विहिप ने विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण की मांग उठाई।
▪13 मार्च 2002- सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का दिया आदेश। साथ ही स्पष्ट किया कि किसी को विवादित भूमि पर शिलापूजन की अनुमति नहीं होगी।
▪फरवरी 2002- भाजपा ने यूपी चुनाव के लिए घोषणा पत्र से राम मंदिर निर्माण का मुद्दा हटा दिया। हालांकि, विहिप ने 15 मार्च से राम मंदिर बनाने की घोषणा कर दी। इसके बाद हजारों हिंदू अयोध्या में एकत्र हो गए।
▪जनवरी 2002- प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विवाद सुलझाने के लिए अयोध्या समिति बनाई। वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को वार्ता के लिए नियुक्त किया गया।
▪06 दिसंबर 1992- हजारों की भीड़ ने अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया। इसके बाद देश भर में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क गए। इन दंगों में दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।
▪वर्ष 1990- विहिप कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद तत्कालीन पीएम चंद्रशेखर ने बातचीत से विवाद सुलझाने का प्रयास किया, लेकिन विफल रहे।
▪वर्ष 1989- विहिप ने विवादित स्थल के पास राम मंदिर की नींव रख, मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज किया।
▪वर्ष 1986- फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दुओं के अनुरोध पर प्रार्थना करने के लिए विवादित स्थल का दरवाजा खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों विरोध में उतरे और बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति बनाई।
▪वर्ष 1949- विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्तियां मिलीं। कहा गया कि कुछ हिन्दुओं ने ये मूर्तियां वहां रखीं थीं। विवाद बढ़ने पर हिंदू व मुस्लिम पक्ष अदालत पहुंच गए। सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित कर ताला लगा दिया।
▪वर्ष 1859- विवादित स्थल पर अंग्रेजों ने बाड़ लगा दी थी। साथ ही परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी
▪वर्ष 1853- पहली बार अयोध्या में विवादित स्थल के पास सांप्रदायिक दंगा हुआ।
▪वर्ष 1528- राम मंदिर गिराकर विवादित ढांचा (बाबरी मस्जिद) का निर्माण हुआ। इसे मुगल शासक बाबर ने बनवाया था, इस वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा।
Wednesday, October 16, 2019
उद्यानिकी विभाग देवास में महाघोटाला
अधिकारियों की मनमानी, योजनाओ की उड़ाई जा रही धज्जियां करोड़ों रुपए का किया घोटाला।
दैनिक अयोध्या टाइम (म.प्र.) संवादाता नितेश शर्मा के साथ अनिल पाटीदार की रिपोर्ट
देवास। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के कार्यकाल में करोड़ो का जमीनी घोटाला देखने को मिला । यह घोटाला मध्यप्रदेश के देवास जिले के उद्यानिकी विभाग में देखने को मिला। मध्यप्रदेश के देवास में उद्यानिकी विभाग में करोड़ो का जमीनी घोटाला हुवा है। उद्यानिकी विभाग में भाजपा सरकार में आई एक योजना प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में सन 2016,17 एवं 2016/17 में ड्रीप एरिगेशन में हुवा है। यह भ्रष्टाचार कम्पनियों ओर अधिकारियों की सांठ गांठ से हुवा है। इस सरकारी योजना में किसानों के साथ खिलवाड़ हुवा है। किसानों के नाम से करोड़ो रुपयों का काला खेल अधिकारियों और कंपनियों की मिली भगत से खेला गया।किसानों के नाम से करोड़ो रुपयों का गमन विभाग के अधिकारियों ओर कम्पनियों के द्वारा किया गया ।
नियम के हिसाब से जहाँ किसानों को 1 हेक्टेयर पर 8400 मीटर नली मिलना थी वहाँ किसानों को केवल 2000 मीटर नली भी नही मिली । और किसानों के यहाँ कंपनियों को सामान उनके खेत मे सिंचाई करने के लिये लगाना था वो भी कम्पनियो द्वारा लगा नही यह भ्रष्टाचार यही नही रुका किसानों से ना ही कृषक अंश की राशि ली गई। अधिकारियों ने इतना बड़ा जमीनी घोटाला कर दिया और सरकार को कानो कान तक खबर नही हुई। भाजपा शासन में भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया। अब देखना होगा कि सत्ता परिवर्तन होने के बाद इन भ्रष्ट अधिकारियों और कंपनियों पर कब तक गाज गिरेगी । आखिर भाजपा शासन काल मे किसानों के साथ हुवे इस छलावे का जिम्मेदार कोंन है आखिर इतना बड़ा जमीनी घोटाला होने के बावजूत भी स्थानीय प्रशासन क्यों मौन है। क्यों जिम्मेदारो का धियान नही है। जबकि इस मामले की कई बार जांच हो चुकी है पर मामले को दबाने में लगे विभाग के आला अधिकारी। अगर इस मामले की जांच निष्पक्ष तरीके से की जाए तो करोड़ों का भ्रष्टाचार आम जनता के सामने होगा।
क्या कहते है नियम
1.किसानों को मिलना थी 1 हेक्टर पर 8400 मीटर नली पर किसानों को मिली 2000 मीटर नली
2.नियम के मुताबिक किसानो के खेत में होना थी सामग्री फीटिंग पर कम्पनियों के द्वारा नही की खेतों में सामग्री फीटिंग
3.नियम के मुताबिक किसानों द्वारा लिया जाता है कृषक अंश जो कि नहीं लिया गया
4.नियम के मुताबिक किसानों के खेत में सामग्री फिटिंग होने के बाद होता है अधिकारियों द्वारा भौतिक सत्यापन जबकि एक किसान के खेत पर सामग्री फिटिंग कर समस्त किसानों की फोटोग्राफी की गई
कानपुर - कभी चलती थी यहाँ ट्राम
अपने बिंदास अंदाज और दिलचस्प बोली के लिए मशहूर कानपुर अब बेतरतीब ट्रैफिक के जाना जाता है। मंगलवार को मेट्रो प्रॉजेक्ट के शिलान्यास के साथ ही कानपुर नए दौर में कदम रखेगा। हालांकि कम ही लोग जानते हैं कि स्वतंत्रता के पहले ही शहर में इंटिग्रेटिड ट्रांसपॉर्ट सिस्टम मौजूद था। 1933 तक शहर के एक बड़े हिस्से में ट्राम चलती थी। उस दौर में यह सेवा दिल्ली के पहले कानपुर में आई थी।
यह था रूट
कानपुर के पुराने रेलवे स्टेशन (वर्तमान में जीटी रोड पर) से सरसैया घाट तक डबल ट्रैक पर ट्राम चलती थी। वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के मुताबिक, इसका रूट पुराने स्टेशन से शुरू होकर घंटाघर, हालसी रोड, बादशाही नाका, नई सड़क, हॉस्पिटल रोड, कोतवाली, बड़ा चौराहा और सरसैया घाट पर खत्म होता था। नई सड़क के आगे बीपी श्रीवास्तव मार्केट (मुर्गा मार्केट) में ट्राम के रखरखाव के लिए यार्ड बना था। उस काल में इस जगह को कारशेड चौराहा कहते थे, जो बाद में अपभ्रंश होकर कारसेट चौराहा हो गया।
नई सड़क पर ट्रैक रोड के दोनों तरफ बिछा हुआ था। यह सर्विस जून-1907 से शुरू होकर 16 मई, 1933 तक चली थी। यह दूरी करीब चार मील थी। इसके डिब्बों की कुछ विशेषताएं सिंगल डेक और खुली छत थी। ट्राम के गंगा किनारे टर्मिनेट होने की बड़ी वजह लोगों की नदी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। इस इतिहास का गवाह बीपी श्रीवास्तव मार्केट अब भी पूरी शान से मौजूद है। अंदर से यह अब भी वैसा दिखता है।
मुंबई-दिल्ली से था मुकाबला
कपूर कहते हैं कि ब्रिटिश राज में शहर के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1900 में कोलकाता में ट्राम आने के बाद 1907 में कानपुर और मुंबई में ट्राम चलाई गई। बिजली भी यहां दिल्ली से पहले आई। दिल्ली में ट्राम 1908 में आई। ये सभी ट्राम बिजली से चलती थीं। मद्रास में घोड़े से खींची जाने वाली ट्राम चलती थी। 1933 में ट्राम बंद हो गई। तत्कालीन जिला प्रशासन ने बड़े चौराहे से सरसैया घाट जाने वाले ट्रैक (दाईं पट्टी) को महिलाओं के लिए रिजर्व कर दिया था। इसे गंगाजी की पट्टी कहा जाता था।
Tuesday, October 15, 2019
1200 वर्ष प्राचीन धरोहर अमरकोट के किले पर कब्जे का प्रयास
"सुसनेर की लगभग 1200 वर्ष प्राचीन धरोहर अमरकोट के किले पर कब्जे के प्रयास जारी ।"
दैनिक अयोध्या टाइम (म.प्र.)ब्यूरो नितेश शर्मा के साथ अनिल गिरी।
आगर मालवा। "सुसनेर की लगभग 1200 वर्ष प्राचीन धरोहर अमरकोट के किले पर कब्जे के प्रयास जारी ।"
कोटा स्टेट के राजपुरोहित की सातवी पीढ़ी के वारिस मुरली मनोहर पारिख ने किले को बताया अपनी निजी सपत्ति ।
कोटा के महाराजा द्वारा अमरकोट की भूमि उनके पूर्वजो को देने की बात कही ।
मनोहर पारिख का दावा भूमि मिलने पर उनके पूर्वजो ने ही बनवाया था यहां पर किला ।
स्वयं के पास मालिकाना हक के समस्त दस्तावेज मौजूद होने की बात कही ।
किले और आस पास स्थित भूमि पर निजी संपत्ति के बोर्ड लगाए गए ।
सुसनेर एसडीएम ने किले और भूमि को शासकीय संपत्ति बताते हुए मुरली मनोहर को आज स्वामित्व के दस्तावेज दिखाने को कहा था ।
अभी तक नही दिखाए गए दस्तावेज ।
शासकीय संपत्ति पर यदि कब्जे का प्रयास पाया तो तहसीलदार द्वारा नोटिस जारी कर विधि अनुसार कार्यवाही करने की बात एसडीएम ने कही ।
मछली पर लिखा है 'अल्लाह', 5 लाख रुपये लगी कीमत
कैराना में एक मछली लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है, मछली पर लिखा है 'अल्लाह', 5 लाख रुपये लगी कीमत
यूपी के शामली में एक मछली लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है। इस मछली के पेट पर 'अल्लाह' लिखा हुआ है और इसी वजह से यह अद्भुत मछली चर्चा का विषय बन गई है।
मछली पर लिखा है 'अल्लाह', देखने को उमड़ी भीड़
यूपी के शामली जिले के कैराना में एक मछली लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है
इस मछली के पेट पर 'अल्लाह' लिखा हुआ है और यह मछली चर्चा का विषय बन गई
आलम यह है कि इस मछली को खरीदने के लिए लोग 5 लाख रुपये देने को भी तैयार हैं
शामली उत्तर प्रदेश के शामली जिले के कैराना में एक मछली लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है और बड़ी संख्या में लोग इसे देखने के लिए पहुंच रहे हैं। आलम यह है कि इस मछली के लिए लोग 5 लाख रुपये देने को भी तैयार हैं। दरअसल, इस मछली के पेट पर 'अल्लाह' लिखा हुआ है और इसी वजह से यह अद्भुत मछली चर्चा का विषय बन गई है। कैराना में मछली का पालन करने वाले शबाब अहमद इसे अपने एक्वेरियम में पाल रहे हैं। उन्होंने बताया कि करीब 8 महीने पहले वह इस मछली को लेकर आए थे। एक्वेरियम में जैसे-जैसे यह मछली बड़ी हो रही है, उसके पेट पर पीले रंग में 'अल्लाह' लिखा नजर आने लगा है। शादाब ने बताया कि जब से यह मछली उनके घर में आई है, तब से उनके परिवार में काफी तरक्की हुई है।
अनोखी मछली देखने के लिए लोगों की भारी भीड़
शबाब ने बताया कि अब इस मछली की लाखों में बोली लगने लगी है। उन्होंने कहा, 'शामली के हाजी राशिद खान ने इस मछली की 5 लाख रुपये कीमत लगाई है। हालांकि मैं अभी और ज्यादा कीमत लगाए जाने का इंतजार कर रहा हूं।' शबाब कैराना के मोहल्ला आलकला में रहते हैं और इस अनोखी मछली को देखने के लिए लोगों की भीड़ जुट रही है। दूर-दूर से लोग इसे देखने आ रहे हैं।
शबाब अहमद ने इस मछली के साथ एक्वेरियम में 10 अन्य मछलियों को भी रखा है। इस अनोखी मछली से अन्य मछलियां काफी छोटी हैं। उन्होंने कहा कि अल्लाह लिखी मछली कुदरत का करिश्मा है। हम इसे और अच्छे रेट मिलने पर ही बेचेंगे।
अधिकारियों और ठेकेदारों ने की मनमानी, योजनाओं की उड़ाई जा रही धज्जियां
भाजपा शासन काल में अधिकारियों और ठेकेदारों ने की मनमानी, योजनाओं की उड़ाई धज्जियां
दैनिक अयोध्या टाइम(म.प्र.)@नितेश शर्मा।
आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग ने पंप ऊर्जीकरण योजना में किया करोड़ो का घफला , फिर भी जिम्मेदार खामोश।
एक तरफ जहां मध्य प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के हित में कई योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है किसानों के हित के लिए कई तरह की योजनाओं को सरकार जमीन से जोड़ने के हर संभव प्रयास कर रही है और कई हद तक यह संभव भी हो रहा है ।। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी यानी शिवराज सरकार के कार्यकाल में इतने बड़े जमीनी घोटाले को अंजाम दिया गया अधिकारियों को भाजपा सरकार में किसी बात का डर नहीं था और ना ही इन अधिकारियों और ठेकेदारों पर जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों ने कोई ठोस कार्यवाही की इस ट्रांसफार्मर घोटाले की अगर निष्पक्ष जांच की जाए तो इसमें कई बड़े अधिकारी और ठेकेदार ब्लैक लिस्ट हो सकते हैं भाजपा सरकार पर कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोप विपक्ष में रहकर लगाती थी और वही आरोप आगर मालवा में कहीं ना कहीं सिद्ध होते हुए नजर आ रहे हैं जी हाँ
आगर मालवा में दूसरी ओर विभाग के ठेकेदार और कर्मचारी अधिकारी उन्हीं योजनाओं पर पलीता लगाते नजर आ रहे हैं ऐसी एक योजना आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग की है जिसमें विभाग के अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से किसानों के नाम पर फर्जी बिल भुगतान कर राशि निकाली गई। आगर मालवा जिले में आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग द्वारा पम्प ऊर्जीकरण योजना में वर्ष 2013-14 व 2014-15 में किसानो के नाम पर लाखो रुपये की राशि निकाली गई। जिसमे बिजली विभाग व ठेकेदार और आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के अधिकारी शामिल है। आगर मालवा जिले में कई ऐसे गाँव है, जिसमे आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग की योजना द्वारा किसानो के यहाँ ट्रांसफार्मर तो लगाया गया है, किंतु जिस किसान के नाम से ट्रांसफार्मर स्वीकृत हुआ था उस किसान के नाम से तो ट्रांसफार्मर लगा ही नहीं और बिल भुगतान हो गया हो गया बहुत से किसान के यहा तो काम कम और बिल ज्यादा करवाया गया। जहा 2 लाख का काम था वहा 5 लाख का बिल भुकतान हो गया। ऐसे कई किसानो के नाम से लाखो रूपये के फर्जी बिल भुगतान किया है। इतना बड़ा घोटाला हो जाता है और जिम्मेदार अधिकारी का कोई ध्यान नही है। और इस पूरे मामले की जांच कलेक्टर अजय गुप्ता के द्वारा करवाई गई थी। जिसमें जांच प्रतिवेदन में लिखा हुआ है कि सामग्री सभी को प्राप्त हुई। कागजी कार्रवाई में तो सामान सभी किसानों को मिला लेकिन धरातल में स्थिति कुछ और निर्मित होती है पूरी पंप उर्जीकरण योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है किसानों को पता ही नहीं और उनके नाम से लाखों रुपए की राशि सरकारी खजाने में से अधिकारियों और ठेकेदारों के द्वारा डकार ली गई है भ्रष्ट अधिकारी और ठेकेदार पर अभी तक जिम्मेदारों ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिखाइए है
क्या कहते हैं नियम।
नियम
1 पौल लगाने मे सीमेंट क्रांकीट होना चाहिए था जो नही किया गया।
2 नियम के हिसाब से 80 से 85 मीटर की दुरी पर पौल लगना चाहिए पर ठैकेदार के द्वारा 50 से 60 मीटर की दुरी पर ही लगा दिया पोल।
3 किसी भी ट्रांसफार्मर पर डेंजर बोर्ड लगना चाहिए था पर नही लगा। जबकि नियमानुसार हर ट्रांसफार्मर पर बोर्ड लगाना जरूरी है। पर किसी भी ट्रांसफार्मर पर बोर्ड नहीं लगाया गया
4 प्रत्येक ट्रांसफार्मर पर लोहे की सामग्री पर कलर होना चाहिए पर किसी भी सामग्री पर नही हुआ कलर।
5 प्रत्येक ट्रांसफार्मर पर 3 अर्थ केबल लगायी जाती है। पर ठैकेदार के द्वारा एक ही अर्थ केबल लगाई गई।
6 वही स्टीमेट के आधार पर कार्य नही हुआ घटिया सामग्री का उपयोग किया गया।
आखिर कौन हैं ये बार बार उजड़ने वाले
सालों साल बीतते गए! नेता बनते गए, फिर मंत्री संत्री भी हो गए पर नहीं बदले तो इनके हालात! हैं कौन ये आखिर जिनकी कहने बताने को अफसर अधिकारी भी झिझकता बचता है! कानपुर की वो जगह जिसमे कभी कच्ची बस्ती होती है, तो कभी बन्द हो चुकने का दम्भ भरने वाली पन्नी (plastic) की!
नंगे-नंगे घूमते ये बच्चे कैमरा नाम की चीज देखकर ही अचंभित हो जाते हैं ये सोंचकर "कि क्या वो भी टीवी नाम की बला पर दिखाए जाएंगे"! अमीरों की कही जाने वाली इस सरकार में गरीबों की में कुसुम भी परेशान है और मुन्नी भी!
कानपुर के विजयनगर डबल पुलिया में कच्ची बस्ती के कई -कई पीढ़ियों से रहने वाले ये बाशिंदे इंटरस्टेट हो चुके वाली जिंदगी जी रहे हैं! मौजूदा समय भाजपा से अब एमपी हो चुके सांसद सत्यदेव पचौरी ने अगस्त 2019 के महीने में इनमें से 40 लोगों के लिए शहर के सनिगवां में मकान उपलब्ध करवाने की बाबत डीएम विजय विस्वास पंत को लिखित आदेश किया था! बाद में स्थानीय लोगों की डिमांड पर इन्हें पनकी में 40 मकान उपलब्ध कराने की कहा गया और उन 40 लोगों की लिस्ट भी जारी कर दी जा चुकी है!
बस्ती में रहने वाले जवान बच्चे बूढ़ों में रोष है कि खत्म होने का नाम नहीं लेता! पीढ़ियों से चली आ रही उनकी इस समस्या का समाधान आजतक सिर्फ आदेशों में ही सिमटता आ रहा है! हंसने लगते हैं ये लोग कैमरा रिपोटर नाम की व्यवस्था को देख-जानकर कहते हैं" सरकारें बदल जाती हैं लोग आकर विधायक, सांसद, मंत्री लोग हो जाते हैं! फिर हमें भूल जाते हैं!
यहीं के निवासी संजय कुमार के मुताबिक बस्ती गिराए जाने के बाद बरसात के सीजन में वो लोग बाल-बच्चों सहित पानी में भीगते हुए डीएम ऑफिस गए थे, किसी तरह घण्टों बाद आये साहब ने अस्वासन देकर इन्हें वापस भेज दिया! वोट किसे किया था के सवाल पर बचपन से रहकर पचपन की हो चुकी दुलारी देवी कहती है कि "उन सबने वोट कमल वाले बटन पर दिया था, वही की सरकार है, फिर भी न जाने क्यों 56 की छाती वाले प्रधानमंत्री के दिल मे इनके लेशमात्र भी जगह नहीं है"!
Monday, October 14, 2019
प्रतिभाशाली (भारतीयों) की खोज
प्रतिभाशाली (भारतीयों) की खोज
1. भूत-प्रेत
2. राक्षस/चुड़ैल
3. आत्मा- परमात्मा
4. स्वर्ग- नरक
5. पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है।
6. गंगा शिवजी के जटा से निकलती है
7. कलियुग में मनुष्य के सारे दुखों के अंत का उपाय - सत्यनारायण कथा
8. मृत्यू से छुटकारा पाने का उपाय- महामृत्युंजय मंत्र
9. भगवान के 10 अवतार
10. 33 करोड़ देवी-देवता
11. बंदर पढ़ा लिखा था , पत्थर पर राम लिखता था।
12. सभी देवी-देवताओं के पास अलग-अलग प्रकार की शक्ति जैसे :- अनाज की देवी, धन की देवी, शिक्षा की देवी, मजदूर(कामगार) की देवी, भूत-प्रेत से बचाने वाले देवी-देवता, ग्रहों की दिशा बदलने वाले/प्रकोप दूर करने वाले आदि
13.अनेक व्रत/उपवास
14. सर्वाधिक मंदिरों का निर्माण
15. सर्वाधिक आध्यात्मिक गुरु जो सैक्स कांड में जेल जाते हैं
16. मंत्र/उपवास से इलाज करने वाले डाक्टर
17. मन चाहा प्यार, नौकरी, व्यापार में घाटा, गृह क्लेश, वशीकरण आदि का समाधान
18. शिक्षा में विज्ञान एवं महापुरुषों के योगदान की जगह आध्यात्मिक (गीता) शिक्षा
19. बाल विवाह
20. सती प्रथा
21. जाति वर्ग
22. शिक्षा, व्यापार का एकाधिकार
23. वैज्ञानिकता को आध्यात्मिकता से जोड़ना
24. मानव जाति का मुख्य वर्ग स्त्री को अधिकार देने पर हंगामा
25. परशुराम, राम, कृष्ण जैसे तीन तीन अवतार का एक साथ होना
26. गणपति के रूप में आदमी पर हाथी फिट कर देना
27. हनुमानजी सूर्य को निगल गए
28. ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ बाकि सारे नींच
29. मिठाई देवता पर चढ़ाते हैं डायबिटीज पुजारी को
ईत्यादि ईत्यादि
विदेशियों द्वारा की गई मानवोपयोगी खोज* और भारत के अतिप्रतिभाशाली की खोज
विदेशियों की खोज :-
1. मोबाईल फोन
2. Facebook (फेसबुक)
3. WhatsApp (ह्वाटसएप)
4. Email (ई मेल)
5. Fan (पंखा)
6. जहाज
7. रेलगाड़ी
8. रेडियो
9. टेलीविजन
10. कम्प्यूटर
11. चीप (Memory Card)
12. कागज
13. प्रिंटर
14. वाशिंग मशीन
15. AC (एयर कंडीशनर)
16. फ्रीज
17. इंटरनेट
18. चंद्रमा की दूरी
19. सुर्य का तापमान
20. पृथ्वी की आकृति
21. दूरबीन
22. सैटेलाइट
23. चुम्बक
24. घर्षण, गुरुत्वाकर्षण, न्यूटन के नियम
25. रोबोट
26. मैट्रो रेल
27. बुलेट ट्रेन
28. परमाणु बम, हाइड्रोजन बम
29. बंदुक
30. मिसाईल
31. दवाईयाँ
32. कृत्रिम हार्ट
33. स्टेंट (खून की नलियों में लगने वाला)
34. साईकिल
35. कार
36. लिफ्ट
ईत्यादि ईत्यादि
दिमाग की बत्ती जलाओ!
अँधविश्वास दूर भगाओ!
खत्म होता बुंदेलखंड से खाद्य तेल का निर्यात
कर्वी से प्रतिदिन मालगाड़ी के टैंकर से खाने वाला तेल देश के कई राज्यों तथा विदेश जाता था तत्कालीन देश के सबसे बड़ी उद्योगपति सेठ जुग्गीलाल कमलापति ने उत्तर प्रदेश का पहला आधुनिक तेल प्लांट कर्वी में स्थापित किया था इस तेल मिल में सैकड़ों स्थानीय मजदूर काम करते थे अंग्रेज भी नौकर की हैसियत से काम करते थे। चित्रकूट बांदा महोबा हमीरपुर के किसानों द्वारा बड़ी संख्या में तेल उत्पादन के लिए अलसी सरसों अपने खेतों में उत्पादित कर इस मिल को दिया जाता था।
कर्वी शहर में हजारों मीटर जमीन में इस मिल का फैलाव था जिसे आज भी खंडार के रूप में कर्वी के बलदाऊ गंज में देख सकते हैं इस आधुनिक तेल मिल में उस जमाने में सरसों अलसी के तेल के साथ नीम की निमोली तथा कपास के बीज से निकाला जाता था खुरहंड अतर्रा बांदा नरैनी के किसानों द्वारा बड़ी संख्या में कच्चा माल तैयार किया जाता था जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण यह मिल प्लांट 1970 के करीब बंद हो गया था तेल मिल की जमीन में प्लाटिंग कर मकान बनाए जा रहे हैं।
इस तेल मिल प्लांट को देखने के लिए भूदान आंदोलन के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे पद्म विभूषण दीदी देवला देशपांडे तथा उनके साथियों ने भूदान पद यात्रा के दौरान देखा था और सराहना की थी और कहा था कि बांदा चित्रकूट के किसानों की वजह से भारत को शुद्ध तेल मिल रहा है खाने के लिए। हम सबको यह सुनकर गर्व होगा कि किसानों की मेहनत की वजह से चित्रकूट मंडल तेल उत्पादन की उत्तर प्रदेश की भारी मंडी थी एशियन पेंट वर्जन नैरोलैक जैसी कंपनियां हमारे तेल पर निर्भर थी देश के सबसे बड़े तत्कालीन उद्योगपति उद्योग नगरी कानपुर के जनक शेठ जुग्गीलाल कमलापति ने चित्रकूट में सबसे पहले आधुनिक आयल मिल प्लांट डाला था। और इस मिल तक रेल लाइन गई थी। देश के जाने-माने रेल लाइन व रेल पुल के बनाने वाले ठेकेदार प्रागी लाल उपाध्याय ने रेल लाइन मिल तक डाली थी जो गिरवां के निवासी थे। बांदा जनपद के विभिन्न कस्बों में 5 वर्ष पूर्व तक 200 से अधिक स्पेलर तेल निकालने का काम करते थे। एक स्पेलर 1 दिन में अट्ठारह सौ लीटर 1800ली0 तेल निकालता था प्रतिदिन नागपुर इंदौर कानपुर 1 टैंक तेल बांदा शहर से जाता था एक स्पेलर में 6 छह व्यक्ति काम करते थे तेल व्यवसाय में 2500 ढाई हजार मजदूर नियमित रूप से रोजगार पाते थे यह व्यवसाय किसानों पर निर्भर था प्राकृतिक आपदा सरकार द्वारा सहयोग न मिलने के कारण किसानों ने अलसी सरसों बोना बंद कर दिया और यह व्यवसाय भी बांदा से पलायन कर गया तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने इस उद्योग को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते युवा पीढ़ी को जानकारी देना उचित समझता हूं अपने पुराने वैभव को कैसे बचाया जाए आप हम सब सोचे। चित्रकूट मंडल का तेल खाने की दृष्टि से सबसे उपयुक्त था क्योंकि यहां के किसान अपने खाद्यान्न उत्पादन में केमिकल का उपयोग नहीं करते थे शुद्ध तेल होता था दुनिया के बाजार में इस तेल की मांग थी। पेंट में अभी इस तेल का इस्तेमाल होता था इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जाना था लेकिन कम से कम जानकारी दे पा रहा हूं क्षमा करें। किसान और किसानी को बचा कर पुनः यह रोजगार शुरू हो हम सब विचार करें जय जगत।
उमाकांत पाण्डेय
बांदा
खत्म होती जा रही बुंदेलखंड से कपास की खेती
युवा पीढ़ी जाने हमारे बांदा चित्रकूट के किसानों के पैदा कपास से बने धागे से भारत नहीं एशिया की पहली कपड़ा मिल 1862 मे चली थी बांदा गैजेट ईयर 1902 तथा 1972 के अनुसार बांदा कर्वी कपास की बहुत बड़ी मंडी थी कलकत्ता, जबलपुर, पटना, कानपुर की बड़े व्यापारी यहां की मंडियों से कपास खरीदते थे तिंदवारी पैलानी, बबेरू, मऊ, राजापुर, मानिकपुर, कालिंजर, क्षेत्र के किसानों द्वारा बड़ी मात्रा में कपास पैदा किया जाता था। यह कहा जाए कि कपास यहां के किसानों की मुख्य फसल थी। एशिया की पहली कपड़ा मिल 1862 में एलियन मिल के नाम से कानपुर में स्थापित हुई थी ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन वी आई सी ने इस मिल का संचालन शुरू किया था इंडिया यूनाइटेड मिल, लाल इमली, कानपुर कॉटन मिल, अर्थ टन स्वदेशी कॉटन मिल, जेके कॉटन मिल, जैसी विश्व प्रसिद्ध कपड़ा मिलें कानपुर में स्थापित इन मिलों प्रतिदिन 1100000 (11लाख) मीटर कपड़ा बनता था कई लाख मजदूर काम करते थे। जेके कॉटन मिल के मालिक कमलापति सिंघानिया जी ने कर्वी शहर के शंकर नगर में कपास रखने के लिए एक बहुत बड़ा गोदाम बनवाया था। जो आज भी देखा जा सकता है बांदा शहर के खुटला मोहल्ले में कपास की बहुत बड़ी मंडी थी जिसे आज भी देख सकते हैं इस संबंध में चित्रकूट कर्वी श्री दीनदयाल मिश्र, बांदा के श्री बाबूलाल गुप्ता जी, के पास इस संबंध में काफी जानकारी उपलब्ध है। बांदा चित्रकूट के किसानों का सबसे अधिक कपास कमलापति सिंघानिया जी के कॉटन मिल में 1924 से खरीदा जाने लगा था। उनका लगाव बांदा और चित्रकूट के किसानों से था इसी वजह से उन्होंने अपने गोदाम कर्वी क्षेत्र में बनवाए थे। उच्च क्वालिटी का शुद्ध सूती कपड़ा बांदा और चित्रकूट के कपास के धागे से बनता था जो उस समय के 21 देशों को कपड़ा जाता था। उस समय कपास की खेती महाराष्ट्र, गुजरात में कम थी और कपड़ा मिले भी स्थापित नहीं हुई थी। कानपुर को भारत का मैनचेस्टर कहा जाता था। 1980 तक कपास की खेती बांदा और चित्रकूट के किसान करते थे। प्राकृतिक आपदा सरकारों का सहयोग न मिलने के कारण कपास उद्योग यहां से पूरी तरीके से खत्म हो गया। कपास ना होने के कारण कानपुर की मिले भी लगभग बंद जैसी स्थिति में है।
सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते मुझे अपनी क्षेत्र पर गर्व है और उन लोगों को बताना चाहता हूं जो कहते हैं कि बुंदेलखंड बहुत गरीब है बुंदेलखंड का खाएंगे, बुंदेलखंड में रहेंगे, बुंदेलखंड से लेंगे, और बुंदेलखंड को गरीब बताएंगे। युवा पीढ़ी अपने वैभवशाली इतिहास को जानने और इसे पुनः संभालने के लिए कुछ प्रयास करें जय जगत।
umakant pandey
banda
बुंदेलखंड में नहीं रोक पा रही सरकार जन्मस्थान से पलायन
पलायन आयोग गठित हो बुंदेलखंड से पलायन रोकने के लिए पिछले 20 वर्ष में 25 लाख विभिन्न प्रतिभा संपन्न नागरिकों ने अपने जन्म के गांवों से स्वरोजगार के लिए पलायन किया। बुंदेलखंड के जनपद बांदा मे 468 ग्राम पंचायतें तथा 694 राजस्व गांव है 17 लाख 90 हजार जनसंख्या है जिसमें से 80ः जनसंख्या गांव में रहती है उसमें से 90ः जनसंख्या का जीवन यापन किसी ना किसी रूप में कृषि पर आधारित रहा है।इसी प्रकार चित्रकूट की कुल जनसंख्या 9 लाख नब्बे हजार है कुल ग्राम पंचायत 339 है 553 राजस्व गांव है। हमीरपुर की कुल जनसंख्या 11 लाख 40 हजार है 314 ग्राम पंचायतें हैं 597 राजस्व गांव हैं। महोबा जिले की कुल जनसंख्या 804000 है 523 राजस्व गांव है। इसी प्रकार जालौन की जनसंख्या 16 लाख 70 हजार, झांसी की जनसंख्या 20 लाख 20 हजार, ललितपुर की जनसंख्या 1210000 है उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की जनसंख्या एक करोड़ के आसपास है, मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड की जनसंख्या 50 लाख से अधिक है। प्राकृतिक आपदा के कारण किसान और किसानी दोनों बुरी तरीके से टूट गई सरकारों ने भी अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के उद्देश्य हवा हवाई घोषणाएं की जो गांव तक जिस उद्देश्य योजना बनी थी वह पहुंची हो या नहीं। किसी जमाने में सबसे संपन्न हर दृष्टि से बुंदेलखंड जिसकी छटा देखने के लिए दुनिया से लोग आते थे। चाहे धर्म की दृष्टि से चित्रकूट हो, कला की दृष्टि से खजुराहो, साधना की दृष्टि से ओरछा हो, चाहे सबसे कीमती पन्ना का हीरा हो, भोजन की दृष्टि से अतर्रा का चावल हो।
ज्ञान, विज्ञान, वीरता, धीरता, गंभीरता की शिक्षा के लेने के लिए आदिकाल से लोग बुंदेलखंड आते रहे। इस धरती में सर्वमान्य धर्म ग्रंथ लिखे गए, मानव विकास का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिस पर यहां स्थाई ऐतिहासिक काम ना किया गया हो, लेकिन वर्तमान में बुंदेलखंड के गांव में हर घर से स्थानीय स्तर पर रोजगार ना होने के कारण रोजगार के लिए लोग पलायन कर रहे हैं।
बुंदेलखंड के किसानों की आत्महत्या रोकने के विषय में मानव अधिकार आयोग ने भी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश नोटिस जारी किए उसमें क्या कार्यवाही हुई पता नहीं। बुंदेलखंड से पलायन करने वालों ने दिल्ली सूरत, मुंबई, सहित देश के कई महानगरों में अपना आशियाना ढूंढने की कोशिश की है। बुंदेलखंड से कई भारतीय प्रशासनिक सेवा में बड़े बड़े अधिकारी हैं विभिन्न क्षेत्रों में देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में, उच्च पदों पर निर्णायक स्थिति में बुंदेलखंड के जनप्रतिनिधि हैं लेकिन अपने क्षेत्र के लिए अपनी जन्म भूमि के लिए शायद इक्का-दुक्का ने कुछ किया हो बाकी ने कुछ नहीं किया यह भी एक चिंता का विषय है। अभी चेते तो भी कुछ हो सकता है।
ऐसा नहीं कि केवल किसानों मजदूरों बेरोजगारों ने पलायन किया है उच्च शिक्षा प्राप्त युवा, डॉक्टर, इंजीनियर, व्यापारी, कलाकार, साहित्यकार, लेखक, लोक कलाओं ने आश्रय ना मिलने के कारण पलायन किया है। छतरपुर जिले की लव कुश नगर तहसील के कई गांव के घरों में वृद्ध माता पिता, अपनी संतान की आस लगाए बैठे हैं बहने, भाई की प्रतीक्षा में है पत्नी, पति की प्रतीक्षा में हैं। ऐसा ही हाल टीकमगढ़ महोबा बांदा के जिलों सहित विभिन्न कस्बों और गांव का है। बुंदेलखंड के जिलों में कोई भी ऐसा उद्योग नहीं जिसमे बड़ी संख्या में स्थानीय स्तर पर रोजगार मिल सके।
पलायन आयोग बनने से बुंदेलखंड से हो रहे पालन के बारे में स्पष्ट और प्रमाणित कारणों का पता लगेगा। इस आयोग में भारत सरकार और राज्य सरकार ऐसे व्यक्तियों को सम्मिलित करें जो न्याय के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में, कृषि के क्षेत्र में, व्यापार के क्षेत्र में, स्थानीय स्तर पर बड़ी जानकारी सकारात्मक सोच रखते हो। बुंदेलखंड के ही उच्च शिक्षा प्राप्त उनको सम्मिलित करें जिन्हें हर क्षेत्र की संपूर्ण बुंदेलखंड की पलायन से संबंधित जानकारी हो पलायन रोकने के उपाय भी स्थाई और ठोस किए जा सके। महानगर की ओर जाने वाली ट्रेनों, बसों के स्टेशनों पर उपस्थित जनसंख्या को देख कर ऐसा लगता है कि कुछ समय में प्रतिभा बिहीन बुंदेलखंड हो जाएगा। अतः शीघ्र ग्राम स्तर पर, न्याय पंचायत स्तर पर, ब्लॉक स्तर पर, तहसील स्तर पर, जिला स्तर पर, मंडल स्तर पर, स्थानीय व्यवस्था के अनुकूल स्वरोजगार पलायन रोकने के उद्देश्य से योग्यता अनुसार, ठीक करने के उद्देश्य हेतू बुंदेलखंड पलायन आयोग समझता हूं। ऐसा मैंने बुंदेलखंड के भ्रमण के दौरान समझा है। आचार्य विनोबा भावे गांधीजी के ग्राम स्वराज ग्राम गणराज्य को यदि बचाना है तो गांव बचाने होंगे, गांव बचेगा,
देश बचेगा। यह मेरे निजी अपने विचार हैं यदि गलत हो तो क्षमा करिएगा ठीक हो तो आगे बढ़ें जय जगत।
UMAKANT PANDEY
BANDA