Tuesday, July 16, 2019

16-17 जुलाई 2019 चंद्र ग्रहण, सम्पूर्ण जानकारी

यह खंडग्रास चंद्रग्रहण है|


तो आइये जानते है 16 जुलाई 2019 को पड़ने वाले खंडग्रास चंद्रग्रहण की पूरी जानकारी कि किस समय दिखेगा और कहाँ दिखाई देगा|


चंद्रग्रहण कैसे होता है


चंद्रग्रहण एक अद्भुत आकाशीय घटना है| वैज्ञानिकों के अनुसार जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के बीच आ जाती है| इस अवस्था में पृथ्वी चंद्रमा को ढक लेती है, और चंद्रमा का प्रकाश धरती पर नहीं आ पाता और अँधेरा छा जाता है| इसी को चंद्रग्रहण होता है|


खंडग्रास चन्द्र ग्रहण


16 जुलाई 2019 को साल का दूसरा चंद्रग्रहण पड़ेगा| यह खंडग्रास चंद्रग्रहण है| इसमें पृथ्वी चन्द्रमा को आंशिक रूप से ढक लेगी| इस अवस्था को खंडग्रास चंद्रग्रहण कहते है|


चन्द्र ग्रहण कहाँ दिखाई देगा


दोस्तों 2019 का यह दूसरा चंद्रग्रहण भारत सहित अगानिस्तान, यूक्रेन, टर्की, ईरान, इराक, सऊदी अरब, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, अन्टार्कटिका में दिखाई देगा|


चन्द्र ग्रहण किस समय दिखाई देगा


साल का दूसरा चंद्रग्रहण 16 जुलाई 2019 को लगने वाला है| यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को दिन मंगलवार को लगने वाला है| यह खंडग्रास चंद्रग्रहण के रूप में दिखाई देगा| यह चंद्रग्रहण 16 जुलाई 2019 को रात 1 बजकर 31 मिनट से लेकर रात 4 बजकर 30 मिनट तक होगा|


चन्द्र ग्रहण के सूतक काल का समय


इस चंद्रग्रहण का सूतक काल 16 जुलाई 2019 को शाम 4 बजकर 32 मिनट से प्रारम्भ होगा, जोकि चंद्रग्रहण के साथ ही 16-17 जुलाई 2019 की मध्य रात्रि उपरांत को 4 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगा|


यह चंद्रग्रहण भारत में दिखाई देंगे इसलिए इसका सूतक काल भारत में मान्य होगा, जो ग्रहण लगने से 9 घंटे पहले लग जायेगा| ये चंद्रग्रहण जिन देशों में दिखाई देगा वहाँ सूतक व ग्रहण काल में पूरी सावधानी बरतनी चाहिए खासकर गर्भवती महिलाओं को उन्हें ग्रहण के दौरान विशेष सावधानी बरतने की जरुरत होती है|


चन्द्र ग्रहण में वर्जित कार्य


ग्रहण काल के दौरान सोना वर्जित है|
ग्रहण काल में खाना वर्जित होता है|
भगवान की मूर्ति स्पर्श ना करें|
मल, मूत्र और शौच आदि न जाये|
किसी नए काम की शुरुआत ना करें।


Thursday, July 11, 2019

युवा अन्वेषकों के हाइटेक नवाचारों को पुरस्कार

उमाशंकर मिश्र
 नई दिल्ली, जुलाई (इंडिया साइंस वायर): खेत में कीटनाशकों का छिड़काव करते समय
रसायनिक दवाओं के संपर्क में आने से किसानों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इंस्टीट्यूट फॉर
स्टेम सेल साइंस ऐंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन, बेंगलूरू के छात्र केतन थोराट और उनकी टीम ने
मिलकर डर्मल जैल नामक एक ऐसी क्रीम विकसित की है, जिसे त्वचा पर लगाने से कीटनाशकों
के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।



आईआईटी, दिल्ली की रोहिणी सिंह और उनकी टीम द्वारा विकसित नई एंटीबायोटिक दवा
वितरण प्रणाली भी देश के युवा शोधकर्ताओं की प्रतिभा की कहानी कहती है। इस पद्धति को
विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि शरीर में दवा के वितरण की यह प्रणाली
भविष्य में कैंसर के उपचार को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।
आईआईटी, खड़गपुर की शोधार्थी गायत्री मिश्रा और उनकी टीम ने एक ई-नोज विकसित की है,
जो अनाज भंडार में कीटों के आक्रमण का पता लगाने में उपयोगी हो सकती है। इसी तरह,
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरू के छात्र देवल करिया की टीम द्वारा मधुमेह रोगियों के लिए
विकसित सस्ती इंसुलिन पंप युवा वैज्ञानिकों की प्रतिभा का एक अन्य उदाहरण है।
इन युवा शोधार्थियों को उनके नवाचारों के लिए वर्ष 2019 का गांधीवादी यंग टेक्नोलॉजिकल
इनोवेशन (ग्यति) अवार्ड दिया गया है। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ये पुरस्कार शनिवार को
उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने प्रदान किए हैं। चिकित्साशास्त्र, ऊतक इंजीनियरिंग, मेडिसिन,
रसायन विज्ञान, जैव प्रसंस्करण, कृषि और इंजीनियरिंग समेत 42 श्रेणियों से जुड़े नवोन्मेषों के
लिए 21 युवा शोधकर्ताओं को ये पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने अग्रणी विचारों और नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए एक ऐसा
राष्ट्रीय नवाचार आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया है, जो जीवन में सुधार और समृद्धि को
बढ़ावा देने का जरिया बन सके। उपराष्ट्रपति ने नए और समावेशी भारत के निर्माण के लिए
समाज के हर वर्ग में मौजूद प्रतिभा को उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सोसायटी फॉर रिसर्च ऐंड इनिशिएटिव्स फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन्स (सृष्टि) द्वारा
स्थापित ग्यति पुरस्कार जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत संस्था बायोटेक्नोलॉजी
इंडस्ट्री असिस्टेंस काउंसिल (बाइरैक) द्वारा संयुक्त रूप से प्रदान किए जाते हैं। तीन श्रेणियों में
दिए जाने वाले इन पुरस्कारों में बाइरैक-सृष्टि पुरस्कार, सृष्टि-ग्यति पुरस्कार और ग्यति


प्रोत्साहन पुरस्कार शामिल हैं। पुरस्कृत छात्रों की प्रत्येक टीम को उनके आइडिया पर आगे काम
करने के लिए 15 लाख रुपये दिए जाते हैं और चयनित तकनीकों को सहायता दी जाती है।
इस वर्ष लाइफ साइंसेज से जुड़े नवाचारों के लिए 15 छात्रों को बाइरैक-सृष्टि अवार्ड और
इंजीनियरिंग आधारित नवाचारों के लिए छह छात्रों को सृष्टि-ग्यति अवार्ड प्रदान किए गए हैं।
इसके अलावा, 23 अन्य परियोजनाओं को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किया गया है। इस बार 34
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 267 विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थानों में अध्ययनरत छात्रों
की 42 विषयों में 1780 प्रविष्टियां मिली थी।
एनआईटी, गोवा के देवेन पाटनवाड़िया एवं कल्याण सुंदर द्वारा टोल बूथ पर ऑटोमेटेड
भुगतान के लिए विकसित एंटीना, ऑस्टियोपोरोसिस की पहचान के लिए एनआईटी, सूरतकल
के शोधकर्ता अनु शाजु द्वारा विकसित रेडियोग्रामेट्री निदान पद्धति, केरल के कुट्टीपुरम स्थित
एमईएस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के मुहम्मद जानिश द्वारा बनाया गया कृत्रिम पैर, गाय के
थनों में सूजन का पता लगाने के लिए श्री वेंकटेश्वरा वेटरिनरी यूनिवर्सिटी, तिरुपति के हरिका
चप्पा द्वारा विकसित पेपर स्ट्रिप आधारित निदान तकनीक, अमृता विश्वविद्यापीठम,
कोयम्बटूर के जीतू रविंद्रन का एनीमिया मीटर, आईआईटी, मद्रास की शोधार्थी स्नेहा मुंशी
द्वारा मिट्टी की लवणता का पता लगाने के लिए विकसित सेंसर और चितकारा यूनिवर्सिटी,
पंजाब के कार्तिक विज की टीम द्वारा मौसम का अनुमान लगाने के लिए विकसित एंटीना तंत्र
इस वर्ष पुरस्कृत नवाचारों में मुख्य रूप से शामिल हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ हर्षवर्धन, जैव प्रौद्योगिकी विभाग की
सचिव डॉ रेणु स्वरूप, सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक आर.ए. माशेलकर और हनी-बी
नेटवर्क के संस्थापक तथा सृष्टि के समन्वयक प्रोफेसर अनिल गुप्ता पुरस्कार समारोह में उपस्थित
थे। (इंडिया साइंस वायर)


Wednesday, July 10, 2019

पौधों की विविधता के लिए पर्याप्त पानी सबसे महत्वपूर्ण है


मोनिका कुंडू श्रीवास्तव द्वारा

नई दिल्ली, 9 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्र लगभग 329 मिलियन हेक्टेयर है।
जलवायु उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक बदलती रहती है। हालांकि, इस विविधता के बावजूद, थोड़ा
इस बारे में जाना जाता है कि जलवायु किसी विशेष क्षेत्र में बढ़ने वाले पौधों की विविधता को कैसे प्रभावित करती है।
डॉ। पूनम त्रिपाठी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), खड़गपुर की टीम द्वारा हाल ही में एक अध्ययन,
यह दर्शाता है कि किसी स्थान पर वर्षा की मात्रा और तापमान प्रमुख पौधों की विविधता को कैसे प्रभावित करते हैं
भारत के बायोग्राफिकल जोन। अनुसंधान के तहत एकत्र पौधों की प्रजातियों की समृद्धि डेटा का उपयोग किया
राष्ट्रीय परियोजना 'लैंडस्केप स्तर पर भारतीय राष्ट्रीय स्तर की जैव विविधता विशेषता'।
पिछले 100 वर्षों के आंकड़ों से एक स्थान के तापमान और वर्षा की मात्रा की गणना की गई।
हालांकि सबसे शुष्क महीने (न्यूनतम वर्षा) के लिए वर्षा की मात्रा का सबसे अधिक प्रभाव था, ए
न्यूनतम वर्षा और न्यूनतम तापमान का संयोजन वांछनीय पाया गया। यह था
पानी और ऊर्जा संयंत्र की शारीरिक प्रक्रियाओं, पौधों की वृद्धि और इसकी उपज को प्रभावित करती है।
मध्यम तापमान और अच्छे जल की उपलब्धता वाले वातावरण में विविधता अधिक होती है
अधिकांश पौधे मध्यम जलवायु को चरम जलवायु से बेहतर सहन कर सकते हैं।
वैज्ञानिक पत्रिका PLoS ONE में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र न केवल पौधे में सबसे समृद्ध हैं
विविधता लेकिन उन पौधों की संख्या में भी जो नमी में प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण हो सकते हैं
पर्याप्त पानी की उपस्थिति। के बीच के क्षेत्र में पौधों की अधिकतम विविधता (623) पाई गई
गंगा का मैदान और हिमालय क्षेत्र। दक्कन में प्रजातियों की संख्या 10 से 609 के बीच है
पश्चिमी घाट में प्रायद्वीप, 31 और 581, उत्तर-पूर्व में 30 और 344, ट्रांस में 97 और 531
हिमालय, 14 और 160 तट के साथ, 3 और 517 अर्ध-शुष्क क्षेत्र में, और 6 और 175 रेगिस्तानी क्षेत्र में हैं।


पश्चिमी घाट, दक्कन प्रायद्वीप और हिमालय और ट्रांस-हिमालय में पौधों की विविधता अधिक थी
शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्रों की तुलना में क्षेत्र। जैसा कि इन क्षेत्रों में कमोबेश इसी तरह के उच्च तापमान हैं
इस तथ्य के कारण पौधे की विविधता पर पानी का एक मजबूत प्रभाव इंगित करता है कि शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्र
कम बारिश होती है। उत्तर-पूर्व क्षेत्र, इसके अलावा पहाड़ी जैसे अन्य कारकों से भी प्रभावित था
इलाके इस प्रकार पौधों की संख्या और विविधता को प्रभावित करते हैं।
ड्रियर जोन में पाए जाने वाले किस्मों की बहुत कम से मध्यम संख्या को निम्न द्वारा समझाया जा सकता है
मिटटी की नमी। ये जोन बहुत गर्म हैं। वर्षा अनियमित और कम (0.41 मिमी से 94 मिमी) है। की कमी
मिट्टी में पानी पौधों को बढ़ने नहीं देता है। इसके अलावा, तापमान की बड़ी रेंज अतिरंजित होती है
अत्यधिक जलवायु के प्रभाव से सीमित किस्म के पौधे पैदा होते हैं जो शुष्क स्थानों में उगते हैं। हालाँकि,
तापमान में लगातार और बड़े उतार-चढ़ाव भी पौधों को बहुत कम समय के भीतर समायोजित करने का कारण बनते हैं
चरम सीमाओं से सामना करना पड़ता है, अर्थात् बहुत अधिक से बहुत कम तापमान तक। यहाँ पाए जाने वाले हार्डी पौधे हो सकते हैं
कठोर पर्यावरणीय चुनौतियों को पार किया।
डॉ। पूनम त्रिपाठी के अनुसार, “विभिन्न पर्यावरण के तहत पौधों की समृद्धि पैटर्न का ज्ञान
जैव विविधता संरक्षण और प्रबंधन कार्यों से निपटने के लिए परिस्थितियाँ महत्वपूर्ण हैं। ”
अनुसंधान दल के अन्य सदस्य डॉ। मुकुंद देव बेहरा और डॉ। पार्थ सारथी रॉय हैं। (इंडिया
विज्ञान तार)
कीवर्ड: विविधता, जैव-भौगोलिक क्षेत्र, अत्यधिक जलवायु, उष्णकटिबंधीय जलवायु, गंगा का मैदान, दक्कन
पठार, पश्चिमी घाट और रेगिस्तान, हार्डी पौधे

 


 


 

युवा अन्वेषकों के हाइटेक नवाचारों को पुरस्कार

उमाशंकर मिश्र

नई दिल्ली, 8 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): खेत में कीटनाशकों का छिड़काव करते समय
रसायनिक दवाओं के संपर्क में आने से किसानों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इंस्टीट्यूट फॉर
स्टेम सेल साइंस ऐंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन, बेंगलूरू के छात्र केतन थोराट और उनकी टीम ने
मिलकर डर्मल जैल नामक एक ऐसी क्रीम विकसित की है, जिसे त्वचा पर लगाने से कीटनाशकों
के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
आईआईटी, दिल्ली की रोहिणी सिंह और उनकी टीम द्वारा विकसित नई एंटीबायोटिक दवा
वितरण प्रणाली भी देश के युवा शोधकर्ताओं की प्रतिभा की कहानी कहती है। इस पद्धति को
विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि शरीर में दवा के वितरण की यह प्रणाली
भविष्य में कैंसर के उपचार को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।
आईआईटी, खड़गपुर की शोधार्थी गायत्री मिश्रा और उनकी टीम ने एक ई-नोज विकसित की है,
जो अनाज भंडार में कीटों के आक्रमण का पता लगाने में उपयोगी हो सकती है। इसी तरह,
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरू के छात्र देवल करिया की टीम द्वारा मधुमेह रोगियों के लिए
विकसित सस्ती इंसुलिन पंप युवा वैज्ञानिकों की प्रतिभा का एक अन्य उदाहरण है।
इन युवा शोधार्थियों को उनके नवाचारों के लिए वर्ष 2019 का गांधीवादी यंग टेक्नोलॉजिकल
इनोवेशन (ग्यति) अवार्ड दिया गया है। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ये पुरस्कार शनिवार को
उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने प्रदान किए हैं। चिकित्साशास्त्र, ऊतक इंजीनियरिंग, मेडिसिन,
रसायन विज्ञान, जैव प्रसंस्करण, कृषि और इंजीनियरिंग समेत 42 श्रेणियों से जुड़े नवोन्मेषों के
लिए 21 युवा शोधकर्ताओं को ये पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने अग्रणी विचारों और नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए एक ऐसा
राष्ट्रीय नवाचार आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया है, जो जीवन में सुधार और समृद्धि को
बढ़ावा देने का जरिया बन सके। उपराष्ट्रपति ने नए और समावेशी भारत के निर्माण के लिए
समाज के हर वर्ग में मौजूद प्रतिभा को उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सोसायटी फॉर रिसर्च ऐंड इनिशिएटिव्स फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन्स (सृष्टि) द्वारा
स्थापित ग्यति पुरस्कार जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत संस्था बायोटेक्नोलॉजी
इंडस्ट्री असिस्टेंस काउंसिल (बाइरैक) द्वारा संयुक्त रूप से प्रदान किए जाते हैं। तीन श्रेणियों में
दिए जाने वाले इन पुरस्कारों में बाइरैक-सृष्टि पुरस्कार, सृष्टि-ग्यति पुरस्कार और ग्यति


प्रोत्साहन पुरस्कार शामिल हैं। पुरस्कृत छात्रों की प्रत्येक टीम को उनके आइडिया पर आगे काम
करने के लिए 15 लाख रुपये दिए जाते हैं और चयनित तकनीकों को सहायता दी जाती है।
इस वर्ष लाइफ साइंसेज से जुड़े नवाचारों के लिए 15 छात्रों को बाइरैक-सृष्टि अवार्ड और
इंजीनियरिंग आधारित नवाचारों के लिए छह छात्रों को सृष्टि-ग्यति अवार्ड प्रदान किए गए हैं।
इसके अलावा, 23 अन्य परियोजनाओं को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किया गया है। इस बार 34
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 267 विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थानों में अध्ययनरत छात्रों
की 42 विषयों में 1780 प्रविष्टियां मिली थी।
एनआईटी, गोवा के देवेन पाटनवाड़िया एवं कल्याण सुंदर द्वारा टोल बूथ पर ऑटोमेटेड
भुगतान के लिए विकसित एंटीना, ऑस्टियोपोरोसिस की पहचान के लिए एनआईटी, सूरतकल
के शोधकर्ता अनु शाजु द्वारा विकसित रेडियोग्रामेट्री निदान पद्धति, केरल के कुट्टीपुरम स्थित
एमईएस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के मुहम्मद जानिश द्वारा बनाया गया कृत्रिम पैर, गाय के
थनों में सूजन का पता लगाने के लिए श्री वेंकटेश्वरा वेटरिनरी यूनिवर्सिटी, तिरुपति के हरिका
चप्पा द्वारा विकसित पेपर स्ट्रिप आधारित निदान तकनीक, अमृता विश्वविद्यापीठम,
कोयम्बटूर के जीतू रविंद्रन का एनीमिया मीटर, आईआईटी, मद्रास की शोधार्थी स्नेहा मुंशी
द्वारा मिट्टी की लवणता का पता लगाने के लिए विकसित सेंसर और चितकारा यूनिवर्सिटी,
पंजाब के कार्तिक विज की टीम द्वारा मौसम का अनुमान लगाने के लिए विकसित एंटीना तंत्र
इस वर्ष पुरस्कृत नवाचारों में मुख्य रूप से शामिल हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ हर्षवर्धन, जैव प्रौद्योगिकी विभाग की
सचिव डॉ रेणु स्वरूप, सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक आर.ए. माशेलकर और हनी-बी
नेटवर्क के संस्थापक तथा सृष्टि के समन्वयक प्रोफेसर अनिल गुप्ता पुरस्कार समारोह में उपस्थित
थे। (इंडिया साइंस वायर)