Tuesday, October 29, 2019

जाड़े जी

 जाड़े जी! ओ जाड़े जी! तेरे बजें नगाड़े जी,
 डर के मारे कूलर पंखें भागे छोड़ अखाड़े जी।
  ऊनी कपड़ों ने फिर आकर अपने झडें गाड़े जी,
  बैठ तुम्हारे मेल टेªन पर बिना किरायें भाड़े जी।
 जाड़े जी! ओ जाड़े जी!.................
 आए पहलवान कुहरें जी
 उनको कौन लताड़े जी, जाड़े जी ओ जाड़े जी
 तेरे बजे नगाड़े जी।।
  सूरज जी तो चले आ रहे,
  छिपकर आड़े-जी, जाड़े जी! ओ जाड़े जी!
  तेरे बजे नगाड़े जी।।
 कुछ प्रेरक प्रसग-
 हमें अच्छी सीख चाहे जहाँ से गिले ग्रहण करनी चाहिए। महापुरूषों के जीवन से हमें विशेष रूप से शिक्षा मिलती हे। उनके जीवन के प्रेरक प्रसंगों से न केवल शिक्षा मिलती है, उनके जीवन के प्रेरक प्रसगोंसे जीवन के लिए पे्ररण मिलती है। उन आदर्शो का बोध होता है जो हमारे जीवन को सुखमय एवं सफल बनाने के लिए आवश्यक है।


चूहा और बिल्ली

बिल्ली मौसी बोली, बेटा! आओ-आओ,
मैं आई हूँ हरिद्धार से,
लो थोड़ा सा पेड़ा खाओ।
चूहा बोला, बस, बस, मौसी,
तुम मुझको न ऐसे बहकाओ।
तुम तो मुझको खा जाओगी,
दूर रहो बस पास न आऊँ।
बिल्ली बोली बेटा, मैने,
छोड़ दिया है पाप कमाना।
हरि नाम मैं हूँ जयती,
जल्दी से स्वर्ग मुझे है जाना।
इसी बीच चूहा लगा सोचने,
यह डायन है कैसी बदली।
इस बीच मौका पाकर,
बिल्ली उसके ऊपर ऊछली।
चूहा था चालाक झट,
घुस गया बिल के अन्दर।
रहगई बिल्ली हाथ मसल कर।।


राष्ट्रीय एकता व हिन्दी

  मानव शरीर में जिस प्रकार से एक ही प्रकार के रक्त समूह के संचार से शरीर स्वस्थ व पुष्ट रहता है, ठीक उसी प्रकार से किसी भी राष्ट्र के स्वतन्त्र स्वरूप के लिए एक राष्ट्रभाषा आवश्यक है।
 आज देश की सबसे बड़ी समस्या है राष्ट्रीय एकता। राष्ट्रीय एकता के लिजए राजनीतिक, धार्मिक साम्प्रदायिक तत्वा भाषायी एकता का होना जरूरी है। तो आइये, हम देखतें है कि क्या भारतवर्ष की भाषा, भारतवर्ष को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँध सकती है?
 सन् 1950 मंे पंण्डित जवाहर लाल नेहरू ने भी कहा था, ''प्रान्तीय भाषाओं के अधिकार क्षेत्रों की सीमाओं का उल्लघंन किए बिना हमारे लिए यह आवश्यक है अखिन भारतीय व्यवहार की एक भाषा हो। करोड़ो लोगों को एक नितांत विदेशी भाषा से शिक्षित नहीं किया जा सकता ।'' जाहिर है उनका इशारा हिन्दी की ओर था। इसलिए उन्होंने अंग्रेजी को संविधान से बाहर ही रखा।
 एक आयरिश कवि टौमस ने कहा है- ''कोई भी राष्ट्र मातृ-भाषा का परित्याग करके राष्ट्र नहीं कहला सकता। मातृ भाषा की रक्षा सीमाओं की रक्षा से भी ज्यादा जरूरी है।'' साहित्य समाज का दर्पण है तथा भाषा साहित्य सृजन का मूलभूत साधना। इसके माध्यम से व्यक्ति से व्यक्ति अपनी अन्तर्मुखी अनुमतियों तथा योग्ताओं को व्यक्त करता है। समय के साथ-साथ भाषा का महत्व तथा उपादेयता बढ़ती जा रही है। साहित्य, विज्ञान तथा अध्यात्म को विदेशी भाषा में अभिव्यक्त करने की बजाए देशी भाषा में अभिव्यक्त करना स्वाभाविक,सरल तथा उचित है।
 पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने एक सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा था। ''हिन्दी ही एकमात्र भाषा है, जो सारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोती है। यदि हिन्दी कमजोर हुई तो देश कमजोर होगा और यदि हिन्दी मजबूत हुई तो देश की एकता मजबूत होगी।''
 आशा की जानी चाहिए कि केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान, आयोग, विश्वविद्यालय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाओं तथा इन सबसे बढ़कर जनता जनदिन के सहयोग से हिन्दी राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होगी।


महापुरुषों का चरित्र-चिन्तन की कल्याणकारी

 इस संसार में उन्नति करने-उत्थान के जितने की साधन हंै। सत्संग उन सब में अधिक फलदायक है और सुविधा जनक है। सत्संग का जितना गुणवान किया जाय थोड़ा है पारस लोहे को सोना बना देता है। रामचन्द्र जी के सत्संग से रीछ, वानर भी पवित्र हो गये थे। कृष्ण जी के संग मंे रहने से गँवार समझे जाने वाले गोप-गोपियाँ भक्त शिरोमणि बन गये। सत्संग मनुष्यों का हो सकता है और पुस्तकों का भी श्रेष्ठ मनुष्यों के साथ उठना बातचीत करना आदि उत्तम पुस्तकों का मध्ययन भी सत्संग कहलाता है। मनुष्यों के सत्संग से जो लाभ होता है वह पुस्तकों के सत्संग से भी सम्भव है। अन्तर इतना है कि संतजनों का प्रभाव शीघ्रपड़ता है। आत्म संस्कार के लिए सत्संग से सरल व श्रेष्ठ साधन दूसरा नहीं है। बड़े-बड़े दुष्ट, बड़े-बड़े पापी घोर दूराचारी सज्जन और सच्चरित्र व्यक्ति के सम्पर्क में आकर सुधरे बिना नहीं रह सकते सत्संग अपना ऐसा जादू डालता है। कि मनुष्य की आत्मा अपने आप शुद्ध होने लगती है। महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आ कर न जाने कितनों का उद्धार हो गया था कभी-कभी विलाजी और फैशन परस्त सच्चे जनसेवक और परोपकारी बन गये थे। पुस्तकों का सत्संग भी आत्म संस्कार के लिए अच्छा साधन हो इस उदद्ेश्य के लिए महापुरूषों के जीवन चरित्र विशेष लाभ प्रद होते हैं। उनके स्वाध्याय से मनुष्य सत्कार्यों मंे प्रकृत होता है। और बुरे कार्यों से मुँह मोड़ता है। गोस्वामी जी की रामयण में राम का आर्दश पढ़ कर न जाने कितनों ने कुमग्र्ग से अपना पैर हटा लिया। महाराणा प्रताप और महाराज शिवाजी की जीवनियों को देश सेवा का पाठ पढ़ाया। सत्संग मनुष्य के चरित्र निमार्ण मंे बड़ा सहायक होता है। हम प्रायः देखते है कि जिनके घरों में बच्चे छोटे दर्जे के नौकरो चाकरों या अशिक्षित पड़ोसियों के संसर्ग में रहते है। वे भी असभ्य हो जाते हैं। और अशिष्ट बन जाते हैं। उनमें तरह-तरह के दोष उत्पन्न हो जाते हैं। और उनमें से कितनों का जीवन बिगड़ जाता है। इसलिए हमें अपने बच्चों की देखरेख स्वयं भली प्रकार करना चाहियें। उन्हें भले आदमियों के पास उठने-बैठने दिया जाना चाहिये जिसमें उनमें अच्छे आचरण व विचार पनपते हैं। जो स्वयं भी भद्रोचित ढंग से बातचीत करते है। उनके बच्चे भी सभ्यव सुशील होते हैं। और उनकी बात चीत से सुनने वालों को प्रसन्नता होती है। इसलिए संत्सग की आवश्यकता बड़ी आयु में ही नहीं है। वरन् आरम्भ से ही हे। हमको इसविषय में सचेत हरना चाहिये और खराब व्यक्तियों का संग नहीं करना चाहिए। सत्संग का महत्व इस पौराणिक कथा द्वारा भी हम जान सकते है।
 एक कथा प्रसिद्ध है कि एक बार विश्वामित्र ने वशिष्ठ को अपनी एक हजार वर्षों की तपस्या दान कर दी, बदले में वशिष्ठ ने एक क्षण के सत्संग का फल विश्वामित्र को दिया। विश्वामित्र ने अपना समझा। उन्होंने पूछा कि मेरे इतने बड़े दान का बदला आपने इतना कम क्यों दिया? वशिष्ठ जी विश्वामित्र को शेष जी के पास फैसला कराने ले गये शेष जी ने कहा, मैं पृथ्वी का बोझ धारण किये हूँ तुम दोनों अपनी वस्तु के बल से मेरे इस बोझ को अपने ऊपर ले लो हजार वर्ष भी तपस्या की शक्ति से वशिष्ठ पृथ्वी का बोझ न उठा सकें किन्तु क्षणभर के सत्संग के बल से विश्वामित्र ने पृथ्वी को उठा लिया। तब शेष जी ने फैसला किया कि हजार वर्ष की तपस्या से क्षण भर के सत्संग का फल अधिक है। तुलसी दास जी ने सत्संगी को सब मगंलो का मूल कहा है।
सत्संगति मुद मगंल मूला, सोई फल सिधि सब साधन फूला।


विपत्तियों से डरिये नहीं जूझिये

 मनुष्य की इच्छा हो या न हो जीवन में परिवर्तनशील परिस्थितियाँ आती रहती हैं। आज उतार है तो कल चढ़ाव। चढ़े हुए गिरते हैं और गिरे हुए उठते हैं आज उँगली के इशारे पर चलने वाले अनेक अनुयायी हैं, तो कल सुख-दुख की पूछने वाला एक भी नहीं रहता। रंक कहाने वाला एक दिन घनपतिबन जाता है तो धनवान निर्धन बन जाता हैं। जीवन मं इस तरह की परिवर्तनशील परिस्तिथया आते जाते रहना नियति चक्र का सहज स्वाभाविक नियम है। अधिकांश व्यक्ति सुख सुविधा, सम्पन्नता, लाभ-उन्नति आदि में प्रसन्न और सुखी रहते हैं किन्तु दुःख कठिनाई, हानि आदि में दुःखी और उद्विग्न हो जाते हैं यह मनुष्य के एकांगी दृष्टिकोंण का परिणाम है और इसी के कारण कठिनाई, मुशीबत, कष्ट आदि शब्दों की रचना हुई वस्तुतः परिवर्तन मानव जीवन में उतना ही महत्वपूर्ण सहज और स्वाभाविक है। जितना रात और दिन का होना, ऋतुओं का बदलना, आकाश में ग्रह-नक्षत्रो का विभिन्न स्थितियों मंे गतिशील रहना। किेन्तु केवल सुख, लाभ अनुकूल परिस्थियाँ की ही चाह के एकांगी दृष्टिकोण के फल स्वरूप मनुष्य दुःख कठिनाई और विपरीतताओं में रोता है, दूसरों को अथवा ईश्वर को अपनी विपरीतताओं के लिए को सता है, शिकायत करता है किन्तु इससे तो उसकी समस्याएँ बढ़ती हैं, घटती नहीं है। कठिनाइयाँ जीवन की एक सहज स्वाभाविक स्थिति है जिन्हें स्वीकार करके मनुष्य अपने लिए उपयोगी बना सकता है जिन कठिनाइयों मंे कई व्यक्ति रोते हैं। मानसिक क्लेश अनुभव करते है। उन्हीं कठिनाइयों मंे दूसरे व्यक्ति नवनी प्रेरणा, नवउत्साह पाकर सफलता का वरण करते हैं। सबल मन वाला व्यक्ति बड़ी कठिनाइयों को भी स्वीकार करके आगे बढ़ता है तो निर्बल मन वाला सामान्य सी कठिनाई में भी निश्चेष्ट हो जाता है। परीक्षा की कसौटी पर प्रतितिष्ठ हुए बिना कोई भी वस्तु उत्कृष्टता प्राप्त नहीं कर सकती न उसका कोई मूल्य ही होता है। कड़ी धूप में तपने पर ही खेतों में खड़ी फसल पकती है आग की भयानक गोद में पिघलकर ही लोहा साँचे में ढलने के उपयुक्त बनता है परीक्षा की अग्नि में तपकर ही वस्तु शक्तिशील, सौंदर्ययुक्त और उपयोगी बनती है। कठिनाइयाँ मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इन्हें खुले मन से स्वीकार मानसिक विकास प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसे जीवन मंे कभी मुसीबतों का सामना न करना पड़ा हों। दिन और रात के समान सुख-दुख का कालचक्र सदा घूमता ही रहता है। जैसे दिन के बाद रात आना आवश्यक है वैसे ही सुख के बाद दुख आना भी अनिवार्य है। इससे मनुष्य के साहस, धैर्य, सहिण्णुता और आध्यामित्कता की परीक्षा होती है। विपत्तियाँ साहस के साथ कर्म क्षेत्र में बढ़ने के लिए चुनौती है। हम उनसे घबरायें नहीं बहुत सी मुसीबतें तो केवल काल्पनिक होती है। छोटी-मोटी बातों को तूल देकर हम व्यर्थ ही चारों और भय का भूत खड़ा करते हैं। सुबोधराय का जन्म 4 बंगाल में हुआ 6 वर्ष की आयु में एक दिन लेटे-लेटे उनकी नेत्र ज्योति चली गई, उन्होंने निश्चय किया कि ज्ञान चक्षुओं का उपयोग करेगे। अंध विंघालय से उन्होंने एम. ए. प्रथम श्रेणी में किया। छात्रवृति मिली तो अमेरिका, इंग्लैण्ड पढ़ने चले गये। उनकी कुशाग्र कृषि देख कर एक बंगाली विदुषी ने उनसे विवाह कर लिया। डा. सुबोधराय ने पी. एच. डी करने के उपरान्त अपना जीवन उन्धों के विद्यालय बनाने तथा उनके कल्याण की संस्थाएँ बनाने में लगाया। याद रखिए विपत्तियाँ केवल कमजोर कायर और निठल्ले को ही डराती हैं। और उन लोगों के वश में रहती है। जो उनसे जूझने के लिए कमर कस कर तैयार रहते है। इस प्रकार दृढ़ संकल्प वालें व्यक्ति कभी निराश नहीं होते, वरन् दूसरे के लिए प्रेरणा के केन्द्र बन जाते हैं। राम, कृष्ण, महावीर, ब ुद्ध, ईसा, मोहम्मद साहब, दयानन्द, महात्मा गांधी आदि महापुरूषों के जीवन संकट और विपत्तियों से भरे हुए थे पर वे संकटों की तनिक भी परवाह न करते हुए अपने कत्र्तव्य मार्ग पर अविचल अग्रसर होते रहे। सफतः वे अपने उद्देश्य के सफल हुए और आज संसार उन्हें ईश्वरीय अवतार मानकर पूजा करता है। विपत्तियों एवं कठिनाईयों से जूझने मंे ही हमारा पुरूषार्थ ही यदि हम कोई महत्वपूर्ण कार्य करना चाहते हंै तो उसमें अनेक आपत्तियों का मुकाबला करने के लिए हमें तैयार ही रहना चाहये जिन्होंने इस रहस्य को समझकर धैर्य का आप्रय ग्रहण किया हो आपत्तियाँ संसार का स्वाभाविक धर्म हैं। वे आती हैं और सद आती रहेंगी उनसे न तो भयभीत होइए और न भागने की कोशिश करिए बल्कि अपने पूरे आत्मबल साहस और शूरता से अनका सामना कीजिए उन पर विजय प्राप्त कीजिए और जीवन में बड़े से बड़ा लाभ उठाइए।  


कम्यूनिकेशन स्किल की कला

 आज के भौतिक युग में रोजी, रोटी और मकान की आवश्यकताओं से परे इंसान की एक अन्य आवश्यकता भी है अनय लोगों से संवाद, यानी कैम्पू स्किल स्थापित करने की आवश्यकता-अब्राहम मोस्लो की यह प्रसिद्ध उक्ति मानव सभ्यता के जन्म से जुड़ी है, जहाँ एक व्यक्ति दूसरे से अपनी इच्छाओं, आशाओं, अपेक्षाओं तथा भावनाओं को एक दूसरे से शेयर करना चाहता है। दरअसल एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य तक अपने मनोभावो-उद्गारों और विचारों को विभिन्न माध्यमों, यथा-वाणी, लेखन या अन्य इलेक्ट्राॅनिक तकनीकों द्वारा पहुँचाता ही कैम्पू कहलाता है। इन तीनों में माउथ कॅम्यूनिकेशन सबसे पुराना होने के साथ-साथ सर्वाधिक प्रभावशाली भी है। क्योंकि इसमें वक्ता प्रवक्ता का संदेश श्रोता यानी सुनने वाले तक सीधे और तेजी से पहुँचाता है। हाँलकि डायरेक्टर कैम्पू में यह खतरा भी होता है कि कहीं वक्ता के विचार कठिन भाषा एवं प्रवाह ममी भाषा और आक्रामक प्रदर्शन श्रोता को भ्रमित करके उसको निष्प्रभावी न बना दें। अतः माउथ कॅम्यूनिकेशन में वक्ता को सरल भाषा स्पष्ट व शुद्ध उच्चारण, आवाज में भापानुकूलता उतार-चढ़ाव चेहरे का भावपूर्ण प्रदर्शन आदि का ध्यान रखना जरूरी है क्योंकि कॅम्यूनिकेशन का उद्देश्य है अपने विचारों की बिना किसी भ्रम के स्पष्टता के साथ श्रोता तक पहुँचाना। कॅम्यूनकेशन तभी सफल माना जाता है। जब वक्ता और श्रोता दोनों उसके अर्थ को ठीक-ठीक समझने का प्रयत्न करें।
 आज के दौर में चुनौतीपूर्ण जीवन में कसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए सशक्त व प्रभावशाली कैम्पू की जरूरत पड़ती है। क्योंकि इसमें व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व की झलक मिलती है। हर व्यक्ति को यह बात गाँठ-बाँध लेनी चाहिए कि कोई जन्म से ही प्रभावी कॅम्यूनिकेशन की क्षमता लेकर पैदा नहीं होता। वस्तुतः कॅम्यूनिकेशन एक कला है जिसे निरंतर अभ्यास द्वारा सीखा जा सकता है। जिसकी भाषा में सरलता, सुगमता विचार में गहनता व स्पष्टता, अभिव्यक्ति में ओज तेज व प्रवाह तथा वाणी में जादू होगा श्रोता मंत्र मुग्ध होकर उसकी बातों को ग्रहण करेगा। कैसे हासिल करें प्रभावी कॅम्यूनिकेशन इसके लिए निम्नलिखित तीन चरणों का ध्यान रखें।
 1.  बाधाओं को पहचाने व दूर करें।
 2.  कॅम्यूनिकेशन को बताए प्रभावशाली।
 3.  श्रोता का रखें पूर्ण ध्यान।
कला सीखने के लिए जरूरी है कि प्रभावशाली अभिव्यक्ति के रास्ते में आने वाली बाधाओं को पहचान कर उन्हें दूर करें। संवाद नहीं कर पाना विचारां की स्पष्टता और सारगर्भित तरीके से अभिव्यक्त न कर पाना अशुद्ध कठिन भाषाा का प्रयोग करना, विषय की अच्छी समझ न होना, आवेश में अपनी बात रखना, श्रोता की जरूरत समझे बिना अपनी बात करते रहना।
 प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए भाषा की अच्छी समझ जानकारी, तर्कपूर्ण शैली, आवाज में मधुरता और बुलंदी, सुगंठित विचार होना जरूरी है। लगातार प्रयास से इसे डिवलप किया जा सकता है।
 शैक्षणिक, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सांस्कृतिक परिवेश का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। यदि श्रोता प्रबुद्ध है तो समझदार की भाषा और विवेचना शैली प्रभावी होती है। यदि श्रोता वक्ता की अपनी स्थिति से भिन्न है तो उसके स्तर पर पहुँचकर उसके अनुकूल भाषा का प्रयोग कर कैम्प स्थापित करना चाहिए। इस कला के माध्यम से कला सीखकर कोई भी लक्ष्य हासिल करने में सफल हो सकते हैं।


कौन माँ

    माँ संक्षिप्त होते हुए भी कितना व्यापक और सारगर्भित शब्द है। इसीलिये तो माँ को जन्मभूमि के समान तथा स्वर्ग से महान बताया गया है। वस्तुतः माँ का स्थान जन्मभूमि से भी बढ़कर है क्योंकि वही तो मानव सृष्टि का मूल स्त्रोत है। वैदिक काल से ही माँ का सर्वोच्च स्थान रहा। सत्य कहा जाये तो माँ देवी के रूप में धरा पर अवतरित होकर सृष्टि में संचालन का गुरूतर भारत वहन करके अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराती है।
 जन्म से लेकर सात वर्षो। तक बालक पूर्णतया माँ पर आश्रित होता है। इसी बीच माँ अपने बालक के भविष्य का निर्माण करती है। इसी बीच बालक की शिक्षा की नींव मजबूत होती है। किसी ने सत्य ही कहा है-
 ''यदि बालक की शिक्षा की नींव सुदृढ़ व सुन्दर होगी तो बालक उन्नति करेगा'' बालक अस्थिर चर्ममय वह आकृति है जिसे माॅ का स्नेह, त्याग, और तपस्या, उसे शारीरिक विकास प्रदान करती है। और पिता का अनुशासन, नैतिकता तथा गंगा का अमृत सिंचन करता है जिससे बालक संसार में पुष्पित तथा पल्लवित होता है। ''शिशु सुन्दर प्रभु का रूप है माँ कोमलता की खान पिता ज्ञान गंगा भरे, बालक बने महान्''।।


साष्टाँग दण्डवत् प्रणाम का महत्व

  आजकल स्कूल, कालेज के बड़े-बड़े शिक्षा शास्त्रियों की शिकायत है कि शिक्षकों के प्रति विद्यार्थियों का श्रद्धाभाव बिल्कुल घट गया है। अतएव देश में अनुशासनहीनता तेजी से बढ़ रही है। इसका कारण यह है कि हम ऋषियों द्वारा निर्दिष्ट दण्डवत् प्रणाम की प्रथा को विदेशी अंधानुकरण के जोश में छोड़ने लगे है।।
 साष्टांग दण्डवत् प्रणाम का अर्थ है कि साधक और शिष्य का शरणागतभाव जितना प्रबल होगा, उतना ही वह ज्ञानी महापुरूष के आगे झुकेगा और जितना झुकेगा उतना पायेगा। शिष्य का समर्पण देखकर गुरू का हाथ स्वाभाविक ही उसके मस्तक पर जाता है।
 महापुरूषों की आध्यात्मिक शक्तियाँ समस्त शरीर की अपेक्षा शरीर के जो नोंक वाले अंग हैं उनके द्वारा अधिक बहती है। इसी प्रकार साधक के जो गोल अंग हैं उनके द्वारा तेजी से ग्रहण होती है। इसी कारण गुरू शिष्य के सिर पर हाथ रखते हैं ताकि हाथ की अंगुलियों द्वारा वह आध्यात्मिक शक्ति शिष्य में प्रवाहित हो जाये। दूसरी ओर शिष्य जब गुरू के चरणों में मस्तक रखता है तब गुरू के चरणों की अंगुलियाँ और विशेषकर अँगूठा द्वारा जो आध्यात्मिक शक्ति प्रवाहित होती है वह मस्तक द्वारा शिष्य अनायास ही ग्रहण करके आध्यात्मिक शक्ति का अधिकारी बन जाता है।
 विदेश के बड़े-बड़े विद्वान एवं वैज्ञानिक भारत में प्रचलित गंुरू समक्ष साधक के साष्टाँग दण्डवत् प्रणाम की प्रथा को पहले समझ नहीं पाते थे। लेकिन अब बड़े-बड़े प्रयोगों के द्वारा उनकी समझ में आ रहा है कि यह सब युक्ति-युक्त है। इस श्रद्धा भाव से किये हुये प्रणाम आदि द्वारा ही शिष्य गुरू से लाभ ले सकता है अन्यथा आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग पर वह कोरा ही रह जायेगा।
 एक बल्गेरियन डाॅ0 लोजानोव ने इंस्टीट्यूट आॅफ एजेस्टोलाजी की स्थापना की। एक अन्तर्राष्ट्रीय सभा में इस युक्ति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि भारतीय योग में जोशवासन प्रयोग है उसमें से मुझे इस पद्धति को विकसित करने की प्रेरणा मिली''।


औपचारिक शिक्षा और अभिभावक

 मनुष्य अपने जीवन में दो प्रकार की शिक्षा ग्रहण करता है-औपचारिक शिक्षा और अनौपचारिक शिक्षा। औपचारिक शिक्षा उसे शैक्षिक संस्थाओं से प्राप्त होती है जैसे कि विद्यालय, कालेज और तकनीकी संस्थान। इसके साथ ही अनौपचारिक शिक्षा उसे परिवार, समुदाय, समाज और धर्म जैसी संस्थाओं सें प्राप्त होती है। दोनो प्रकार की शिक्षाओं की हमारे जीवन के संवर्धन एवं परिमार्जन के लिये महती आवश्यकता होती है।
 आज के भौतिकवादी आधुनिक तापरस्त विश्व में औपचारिक शिक्षा अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी है। यह जीवन की आधार शिला होती है। समुचित दिशा निर्देशों के अभाव में यह मनुष्य को लक्ष्यहीन कर देती है। अतः औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में अभिभावकों की भूमिका बहुत कम अभिभावक ऐसे हैं जो अपने बच्चों की औपचारिक शिक्षा के विषय में चिन्तन-मन्थन करते है।
 सर्वप्रथम प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान देना आवश्यक होता है क्योंकि बच्चे कच्ची तैयार मिट्टी के समान होते हैं जिन्हें कोई भी रूप और आकार दिया जा सकता है। अतः यह अभिभावक का कर्तव्य है कि वे निश्चित करें कि अपने पाल्य को वे कैसा शैक्षिक परिवेश देने जा रहे हैं। शिशु या बालक के जीवन रूपी भवन की नींव जितनी सुदृढ़ और अटल होगी। उतना ही उसके जीवन का भवन स्थाई, महत्वपूर्ण और प्रभवशाली तथा समृद्ध होगा। इस अवस्था की शिक्षा भयमुक्त वातावरण में श्रवय एवं दृश्य सामग्री के माध्यम से प्रदान केी जानी चाहिये। बालक या बालिकाइस शिक्षा को स्वयं पर, लदा हुआ बोझ न समझे बल्कि इसके प्रति उसमें स्वयं रूचि उत्पन्न हो ऐसा इस शिक्षा का स्वरूप होना चाहिये।
 इसके पश्चात कक्षा-6 से 8 तक के छात्र उन पनपते हुये पादपों के रूप में होते हैं, जिन्हें जल, उर्वरक एवं प्रकाश की अत्यधिक आवश्यकता होती हैं। यदि उन्हें अनुकूल परिस्थितियाँ और संसाधन तथा मार्ग निर्देश प्राप्त होते रहते हैं तो वे अभीप्सित दिशा की ओर उन्नयन प्राप्त करते हैं। इस अवस्था में छात्र/छात्रायें जहाँ पादप के रूप में होते हैं वही अभिभावक माली की भूमिका का निर्वहन करते है। यही छात्र/छात्रायें भावी पीढ़ी की बगिया की पौध होते हैं।
 कक्षा-9 एवं 10 में छात्र/छात्राओं के कदम किशोरावस्था की ओर बढ़ने लगते हैं। स्वाभाविक है कि उनमें अनेक शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन आते हैं। अतः अभिभावकों को उनके प्रति सहज, सरल एवं मित्रवत होना चाहिये। इस अवस्था में स्पेयर द रोड एंड स्पोइल द चाइल्ड के सिद्धान्त को लागू नहीं करना चाहिए। अरस्तू के अनुसार  We should never be commanding to them instead of directiveand a true guide.'
 कक्षा-11 एवं 12 किशोरावस्था के उत्कर्ष काल हैं। यही है-बौद्धिक ऊर्जा का संग्रह काल। इसी काल में या तो यह ऊर्जा वृद्धि की ओर गमन करती अथवा भिन्न दिशाओं में फैलकर निरूद्देश्य हो जाती है। अतः अभिभावक को बहुत अधिक सावधान एवं सचेत रहना पड़ता है। उन्हें अपने पाल्य के दैनिक क्रिया-कलापों का ज्ञान अवश्य रखना चाहिये। यदि वे लक्ष्य से भटक रहे हों तो उन्हें अपने अनुभूत परिणामों से अवगत कराते हुये निश्चित दिशा एवं लक्ष्य केी ओर प्रोत्साहित करना चाहिये। यही वह अवस्था है जब छात्र/छात्रा को उसके द्वारा प्राप्त परिणाम एवं उसकी रूचि के आधार पर उसे व्यावसायिक शिक्षा की ओर मोड़ा जाता है। यही व्यावसायिक शिक्षा उसके जीवन में सुख और समृद्धि की जननी होती है।
 यदि इस अवस्था में विद्यार्थी भटक जाता है, तो वह देश एवं समाज के लिये अनुत्पादक सिद्ध होता है। वह सुयोग्य नागरिक बनने के बजाय अपराध जगत से जुड़ जाता है। इस प्रकार वह प्रशासन और कानून के लिये भी चुनौती बन जाता है। ऐसी परिस्थिति में वह अभिभावकों में चिन्ताजनित करता है और उनके शान्तिमय जीवन को अशान्त कर देता है।
 लेकिन यहीं यदि उसे उचित व्यावसायिक शिक्षा की दिशा की ओर मोड़ दिया जाता है तो वह सफल, सुयोग्य, सम्पन्न एवं सुशिक्षित नागरिक के रूप में परिणित हो जाता है। अतः अभिभावकों को कर्तव्य हैं कि वे अपने पालय की सभी सुविधाओं का ध्यान रखने के साथ-साथ समयानुसार उसका मार्गदर्शन करते रहें और उद्देश्य के पूर्णता के पथ पर आने वाले अवरोधों को हटाते रहें क्योंकि समय व्यतीत हो जाने के बाद प्रायश्चित के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रह जाता है-
 ''समय चूँकि पुनि का पछताने, का वर्षा जब कृषी सुखाने'' और ''अवसर चूँकि ग्वालिनें गावैं सारी रात'' वाली कहावतें हमारे जीवन में घटित हो जाती है।
 हम प्रायः अपने समाज में देखते हैं कि लोग (विशेषरूप से माध्यम वर्ग) फैशन और दिखावे पर तो पैसा पानी की तरह बहाते हैं। लेकिन और दिखावे पर तो पैसा पानी की तरह बहाते है।। लेकिन अपने पाल्यों की शिक्षा के मद पर ठीक से पैसा खर्च करने से कतराते हैं। यह शिक्षा ही है जो हमें जीवन जीने के सर्वथा उपयुक्त बनाती है और हमें उन्नति के शिखर तक पहुँचाती है। जिस प्रकार शरीर रीढ़ की हड्डी के बिना लचर और असमर्थ हो जाता है, उसी प्रका शिक्षा के बिना समाज और राष्ट्र रूपी शरीर की 'रीढ़ की हड्डी' होती है। अतः हम सभी अभिभावकों को शिक्षा का विशेष ध्यान रखते हुये, इस शिक्षा के मद को व्यय की सूची मेें सर्वोपरि रखना चाहिये। हम सभी अभिभावकों को अपने बच्चों को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार समुचित शिक्षा अवश्य प्रदान करनी चाहिए जिससे कि वे अपने जीवन में कहीं भी किसी प्रकार के अभाव का अनुभव न करें। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो निश्चित ही हम उनके साथ शत्रुता का व्यवहार कर रहे हैं। क्योंकि-
''माता शत्रुः, पिता वैरी, येन बालो न पाठितः।
ते न शोभन्ते संभामध्ये, हंस मध्ये वको यथा।''
आज यद्यपि हमारे समाज में वैचारिक क्रांति आ चुकी है तथापि कतिपय परिवार लिंग-भेद करते हैं अर्थात् बालिकाओं की शिक्षा पर बालकों की अपेक्षा बहुत कम ध्यान देते है। इस विषय में उनका चिन्तन होता है कि बालिकायें विवाह के पश्चात अपना घर-बसा लेती हैं और उनसे पितृपक्ष को आर्थिक सहायता और संबल प्राप्त नहीं हो पाता है। वास्तविकता यह है कि यह ऋणात्मक चिन्तन हमारे समाज, राज्य एवं राष्ट्र को पतन की ओर ले जा रहा है। यदि हम चाहते हैं कि हमारा सामाजिक शैक्षिक, आर्थिक  तथा राजनैतिक उन्नयन हो तो निश्चित रूप से हमें बालिकाओं की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा क्योंकि प्रसिद्ध शिक्षा-शास्त्री, दार्शनिक एवं हमारे स्वतंत्र भारत के द्वितीय राष्ट्रपति महोदय श्री सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा है-


“Give us good and well-educated mothers and I will give you a developed nation in all respects.”


युवा पीढ़ी और नैतिकता 

 यदि हम वर्तमान भारतीय समाज पर दृष्टि डालें तो हम देखते हैं कि हमारे चारों ओर भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार, लूटपाट का नग्न नृत्य हो रहा है। हमारी चिरसंचित संस्कृति और सभ्यता पर तुषारापात होने के लक्षण स्पष्ट प्रतीत हो रहे हैं। आज हमारे देश ने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में चाहे जितनी सफलता अर्जित कर ली हो परन्तु फिर भी आज हमारा देश दिन-प्रतिदिन अवनति के पथ पर बढ़ता जा रहा है। नैतिकता का हृास दिन-प्रतिदिन तीव्र गति से हो रहा है जो इस राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध होगा। देश में फैली इस अशान्ति का कारण युवा वर्ग कमें व्याप्त असन्तोष, अनंुशासनहीनता, अनैतिकता और असंयम है।
 आज का युवा वर्ग अनुशासन और नैतिकता को भूलता जा रहा है तथा अपने बड़े बुजुर्गो, माताओं एवं बहनों को अपशब्द एवं अश्लील शब्द कहकर अपने को गर्वित महसूस करते हैं।
 स्वामी विवेकानंद, संत ज्ञानेश्वर, रामानुज, सुभाष चन्द्र बोस जैसे महापुरूषों की इस पावन भूमि पर जहाँ के युवा सद्गुणों एवं नैतिकता से भरपूर संयमी, चरित्रवान, कत्र्तव्यनिष्ठ होने चाहिए थे वहाँ पर नकारा, अनुशासनहीन, सवार्थी ऐसे का पुरूष युवाओं की फौज तैयार हो रही है जो अपने बड़े-बुजुर्गों एवं गुरूओं का अपमान करके इस दिव्य भारतभूमि को कलंकित कर रहे हैं।
 आज युवा कालेजों से बहुत काबिल परन्तु पढ़े-लिखे जाहिल, गँवार बनकर निकल रहे है। क्योंकि युवाओं के पास नैतिकता ही नहीं है जिसकी उन्हें ज्यादा आवश्यकता है।
 वर्तमान का युवा वर्ग माँ-बहनों के विषय में अश्लील टिप्पणी करके, दुर्बलों को सताकर पशुता का परिचय देकर अपने को वीर समझता है परन्तु महापुरूषों की दृष्टि में वीर तो वो हैं जो दुर्बलों का बल बनें, माताओं-बहनों की मर्यादा का ख्याल रखें बुजुर्गों का सम्मान करें। अरे! संसार में वीरता तो तब है जब युवा त्याग और सेवा को अपने जीवन में ग्रहण करके मनुष्यता का परिचय दे, कीट पतंगों की तरह लड़ना मनुष्यता नहीं है।
हमारे देश को अनुशासी, विनम्र, मर्यादित एवं साहसी युवकों की आवश्यकता है जिसके लिए हमें स्वामी विवेकानन्द की बातों का ध्यान करना चाहिए।
 स्वामी विवेकानन्द ने युवाशक्ति को ललकारते हुए कहा-''इस देश को केवल अनुशासी, दृढ़विश्वासी, निष्कपट, श्रद्धासम्पन्न एवं संयमी युवकों की आवश्यकता है। ऐसे वीर युवकों से इस देश को बदला जा सकता है। याद रखो तुम्हारे आदर्श सर्वत्यागी 'उमानाथ भगवान शंकर जी एवं श्री रामचन्द्र जी हैं। तुम उनसे प्रार्थना करो कि वे तुम्हारी का पुरूषता, दुर्बलता, अनुशासनहीनता, अविवेक को समाप्त करके तुम्हें मनुष्यता प्रदान करें।''
 हमारे देश के कर्णधार युवाओं याद रखो। हमें ईश्वर और अपने महापुरूषों पर दृढ़विश्वास करके अपने मन और इन्द्रियों पर संयम करना पड़ेगा। हमें सहयोग एवं सेवा की भावना सीखनी पड़ेगी। जिससे आगे आने वाली पीढ़ी हमें सम्मानित दृष्टि से देखे। याद रखो हमारा और आपका युवा होना तभी सार्थक है यदि हम अनुशासन, नैतिकता, सदाचार, संयम एवं मनुष्यता का परिचय देंगे।
 युवाओं! प्रतिज्ञा करो कि छोटों के साथ नरमी से, बड़ों के साथ करूणा से, संघर्ष करने वालों के साथ हमदर्दी और कमजोर व गलती करने वालों के साथ सहनशीलता से पेश आने की क्योंकि हम अपने जीवन में कभी न कभी इनमें से किसी न किसी स्थिति से गुजरते हैं।


तुम्हें खुद से ही मिलाने वाला कोई और भी था

इस लम्बे सफर में साथ तुम्हारे कोई और भी था
हर ठोकर पर सम्भालने  वाला कोई और भी था

कितनी  ही  बरसातों  ने कोशिशें की  डराने की  
सर पर आसमान  उठाने वाला कोई और भी था

हर मोड़ पे कोई न कोई छोड़ कर जाता ही रहा
दूर मंज़िल तलक निभाने वाला कोई और भी था

जिसे भी अपना कहा,सबने ही बेगाना कर दिया
नए  रिश्तों को  संवारने  वाला  कोई और भी था
 
कुछ तो खाली रह गया था तुम्हारे खुद के होने में
तुम्हें  खुद  से ही  मिलाने वाला कोई  और भी था

सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन
नई दिल्ली   


 

 

Thursday, October 24, 2019

ओ भगवाधारी सिंह पुत्र,है कहाँ तुम्हारी हुंकारें

ओ भगवाधारी सिंह पुत्र,है कहाँ तुम्हारी हुंकारें,
हिंदुत्व तुम्हारा कहाँ गया,हैं कहाँ तुम्हारी तलवारें,


तुमको गद्दी पर बिठा दिया यह सोच कि कुछ बदलाव मिले,
अफसोस तुम्हारे रहते भी,हमको घावों पर घाव मिले,


जेहादी मंसूबो से हम लड़ते लड़ते झल्लाये थे,
यू पी का हिन्दू बचा रहे,योगी योगी चिल्लाए थे,


तुम रहो हितैषी हिन्दू के,यह सपने हमने पाले थे,
बस यही सोचकर सत्ता से आजम अखिलेश निकाले थे,


पर हाल तुम्हारे शासन का पहले से ज्यादा तंग मिला,
हमला शिव की बारातों पर,गणपति पर भी हुड़दंग मिला,


सबका विश्वास कमाने के चक्कर मे नैना बंद मिले,
शहरों में पुण्य तिरंगे की यात्राओं पर प्रतिबंध मिले,


जिनका विश्वास कमाना था,उन सबने यह उपहार दिया,
छाती पर चढ़कर योगी की,कमलेश तिवारी मार दिया,


यह सिर्फ नही है इक हत्या,यह कालिख है सरकारों पर,
ढोंगी हिन्दू पाखंडों पर,प्रभु श्री राम के नारों पर,


यह कालिख है गौ माता के उन झूठे सेवादारों पर,
यह कालिख है हिन्दू समाज के कायर ठेकेदारों पर,


ये हत्या एक संदेशा है,हिन्दू अस्तित्व उजाड़ेंगे,
योगी मोदी क्या कर लेंगे,यूँ ही चुन चुन कर मारेंगे,


गर्दन रेती गोली मारी,यह दृश्य देखकर डरे नही?
हिन्दू हिन्दू रटने वाले क्या आज शर्म से मरे नही?


यूँ ही कन्या पूजन या गौ सेवा का स्वांग रचा लोगे?
शहरों के नाम बदलने से हिन्दू की जान बचा लोगे?


योगी जी दो बरसों में ही रक्षा के बंधन छूट गए,
अब क्या राज चैहान कहे,विश्वास सभी के टूट गए,


तुम ही बेसुध हो जाओगे,हम किससे आस लगाएंगे,
जेहादी गुंडों से हमको,आजम अखिलेश बचाएंगे?


गर नही संभलता है शासन तो गोरखपुर में ध्यान करो,
या फिर यू पी के जख्मों का योगी जी तुरत निदान करो,


सबका विश्वास कमाने में,अपनो की मत कुर्बानी दो,
बाहर की नागफनी छोड़ो,घर की तुलसी को पानी दो,


हम धर्म सनातन के प्रहरी आवाज लगाते आएंगे,
हर बार पड़े मरना चाहे,हम जान गंवाते जाएंगे,


कातिलों!सुनो!हम डरे नही,हम परशुराम अवतारी हैं,
इक हिन्दू के अंदर सौ-सौ,जिंदा कमलेश तिवारी हैं।


 


Monday, October 21, 2019

कोरल ड्रा की शार्टकट की

Here's a list of default keyboard shortcuts.









































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































Align Bottom 





Aligns selected objects to the bottom



Align Centers Horizontally 





Horizontally aligns the centers of the selected objects



Align Centers Vertically 





Vertically aligns the centers of the selected objects



Align Left 



L



Aligns selected objects to the left



Align Right 



R



 Aligns selected objects to the right



Align To Baseline



Alt+F12 



Aligns text to the baseline



Align Top 





Aligns selected objects to the top



Artistic Media 





Draws curves and applies Preset, Brush, Spray, Calligraphic or Pressure Sensitive effe



Back One 



Ctrl+PgDn 



Back One



Break Apart 



Ctrl+K



Breaks apart the selected object



Brightness/Contrast/Intensity



Ctrl+B 



Brightness/Contrast/Intensity... 



Bring up Property Bar 



Ctrl+Enter 



Brings up the Property Bar and gives focus to the first visible item that can be tabbed to



Center to Page



 P 



Aligns the centers of the selected objects to page



Character Formatting 



Ctrl+T 



Character Formatting



Color Balance... 



Ctrl+Shift+B 



Color Balance



Combine 



Ctrl+L 



Combines the selected objects



Contour 



Ctrl+F9 



Opens the Contour Docker Window



Convert 



Ctrl+F8 



Converts artistic text to paragraph text or vice versa



Convert Outline To Object 



Ctrl+Shift+Q 



Converts an outline to an object



Convert To Curves 



Ctrl+Q 



Converts the selected object to a curve



Copy 



Ctrl+C 



Copies the selection and places it on the Clipboard



Copy  



Ctrl+Insert



Copies the selection and places it on the Clipboard



Cut 



Ctrl+X 



Cuts the selection and places it on the Clipboard



Cut 



Shift+Delete 



Cuts the selection and places it on the Clipboard



Delete  



Delete



Deletes the selected object(s)



Distribute Bottom 



Shift+B 



Distributes selected objects to the bottom



Distribute Centers Horizontally 



Shift+E 



Horizontally Distributes the centers of the selected objects



Distribute Centers Vertically 



Shift+C 



Vertically Distributes the centers of the selected objects



Distribute Left



Shift+L 



Distributes selected objects to the left



Distribute Right 



Shift+R



Distributes selected objects to the right



Distribute Spacing Horizontally  



Shift+P



Horizontally Distributes the space between the selected



Distribute Spacing Vertically 



Shift+A 



Vertically Distributes the space between the selected objects



Distribute Top 



Shift+T 



Distributes selected objects to the top



Duplicate 



Ctrl+D 



Duplicates the selected object(s) and offsets by a specified amount



Dynamic Guides 



Alt+Shift+D 



Shows or hides the Dynamic Guides (toggle)



Edit Text... 



Ctrl+Shift+T 



Opens the Edit Text dialog box



Ellipse 



F7 



Draws ellipses and circles; double-clicking the tool opens the Toolbox tab of the Option



Envelope 



Ctrl+F7 



Opens the Envelope Docker Window



Eraser 





Erases part of a graphic or splits an object into two closed paths



Exit  



Alt+F4



Exits CorelDRAW and prompts to save the active drawing



Export... 



Ctrl+E 



Exports text or objects to another format



Font Size Decrease 



Ctrl+NUMPAD2 



Decreases font size to previous point size



Font Size Increase  



Ctrl+NUMPAD8



Increases font size to next point size



Font Size Next Combo Size 



Ctrl+NUMPAD6 



Increase font size to next setting in Font Size List



Font Size Previous Combo Size 



Ctrl+NUMPAD4 



Decrease font size to previous setting available in the Font Size List



Forward One 



Ctrl+PgUp 



Forward One



Fountain Fill... 



F11 



Applies fountain fills to objects



Freehand 



F5 



Draws lines and curves in Freehand mode



Full-Screen Preview 



F9 



Displays a full-screen preview of the drawing



Graph Paper 





Draws a group of rectangles; double-clicking opens the Toolbox tab of the Options dial



Graphic and Text Styles 



Ctrl+F5 



Opens the Graphic and Text Styles Docker Window



Group 



Ctrl+G 



Groups the selected objects



Hand 





Hand Tool



Horizontal Text C



Ctrl+, 



Changes the text to horizontal direction



Hue/Saturation/Lightness... 



Ctrl+Shift+U 



Hue/Saturation/Lightness



Import... 



Ctrl+I 



Imports text or objects



Insert Symbol Character 



Ctrl+F11 



Opens the Insert Character Docker Window



Interactive Fill 





Adds a fill to object(s); clicking and dragging on object(s) applies a fountain fill



Lens 



Alt+F3 



Opens the Lens Docker Window



Linear 



Alt+F2 



Contains functions for assigning attributes to linear dimension lines



Macro Editor... 



Alt+F11 



Macro Editor...



Mesh Fill 





Converts an object to a Mesh Fill object



Micro Nudge Down  



Ctrl+DnArrow



Nudges the object downward by the Micro Nudge factor



Micro Nudge Left  



Ctrl+LeftArrow



Nudges the object to the left by the Micro Nudge factor



Micro Nudge Right  



Ctrl+RightArrow



Nudges the object to the right by the Micro Nudge factor



Micro Nudge Up 



Ctrl+UpArrow 



Nudges the object upward by the Micro Nudge factor



Navigator 





Brings up the Navigator window allowing you to navigate to any object in the document



New 



Ctrl+N 



Creates a new drawing



Next Page 



PgDn



Goes to the next page



Nudge Down 



DnArrow 



Nudges the object downward



Nudge Left 



LeftArrow 



Nudges the object to the left



Nudge Right  



RightArrow



Nudges the object to the right



Nudge Up  



UpArrow



Nudges the object upw



Open... 



Ctrl+O 



Opens an existing drawing



Options... 



Ctrl+J 



Opens the dialog for setting CorelDRAW options



Outline Color... 



Shift+F12 



Opens the Outline Color dialog box



Outline Pen... 



F12 



Opens the Outline Pen dialog box



Pan Down 



Alt+DnArrow



Pan Down 



Pan Left 



Alt+LeftArrow



Pan Left 



Pan Right 



Alt+RightArrow



Pan Right 



Pan Up 



Alt+UpArrow



Pan Up 



Paste 



Ctrl+V 



Pastes the Clipboard contents into the drawing



Paste 



Shift+Insert 



Pastes the Clipboard contents into the drawing



Place Inside Container... 



Ctrl+1 



Places selected object(s) into a PowerClip container object



Polygon 





Draws polygons



Position 



Alt+F7



Opens the Position Docker Window



Previous Page 



PgUp



Goes to the previous page



Print... 



Ctrl+P 



Prints the active drawing



Properties 



Alt+Enter 



Allows the properties of an object to be viewed and edited



Record Temporary Macro 



Ctrl+Shift+R



Record Temporary Macro



Rectangle 



F6 



Draws rectangles; double-clicking the tool creates a page frame



Redo 



Ctrl+Shift+Z



Reverses the last Undo operation



Refresh Window 



Ctrl+W 



Redraws the drawing window



Repeat 



Ctrl+R 



Repeats the last operation



Rotate 



Alt+F8 



Opens the Rotate Docker Window



Run Temporary Macro  



Ctrl+Shift+P



Run Temporary Macro



Save As... S 



Ctrl+Shift+



Saves the active drawing with a new name



Save...  



Ctrl+S



Saves the active drawing



Scale 



Alt+F9 Window



Opens the Scale Docker 



Select all 



Ctrl+A



Select all object of the active page



Shape  



F10



Edits the nodes of an object; double-clicking the tool selects all nodes on the selected



Size 



Alt+F10 Window



Opens the Size Docker 



Smart Drawing  



Shift+S Dbl-click



opens Smart Drawing Tool options; Shift+drag backwards over line erases



Snap to Grid 



Ctrl+Y 



Snaps objects to the grid (toggle)



Snap to Objects 



Alt+Z



 Snaps objects to other objects (toggle)



Spell Check...  



Ctrl+F12



Opens the Spell Checker; checks the spelling of the selected text



Spiral 





Draws spirals; double-clicking opens the Toolbox tab of the Options dialog



Step and Repeat...  



Ctrl+Shift+D



Shows Step and Repeat docker



Stop Recording 



Ctrl+Shift+O



 Stop Recording



Super Nudge Down 



Shift+DnArrow 



Nudges the object downward by the Super Nudge factor



Super Nudge Left 



Shift+LeftArrow 



Nudges the object to the left by the Super Nudge factor



Super Nudge Right  



Shift+RightArrow



Nudges the object to the right by the Super Nudge factor



Super Nudge Up 



Shift+UpArrow 



Nudges the object upward by the Super Nudge factor



Symbol Manager 



Ctrl+F3 



Symbol Manager Docker



Text 



F8 



Adds text; click on the page to add Artistic Text; click and drag to add Paragraph Text



To Back Of Layer 



Shift+PgDn 



To Back Of Layer



To Back Of Page 



Ctrl+End 



To Back Of Page



To Front Of Layer 



Shift+PgUp 



To Front Of Layer



To Front Of Page  



Ctrl+Home



To Front Of Page



Toggle Pick State 



Ctrl+Space 



Toggles between the current tool and the Pick tool



Toggle View 



Shift+F9 



Toggles between the last two used view qualities



Undo 



Ctrl+Z



Reverses the last operation



Undo



Alt+Backspace 



Reverses the last operation



Ungroup 



Ctrl+U 



Ungroups the selected objects or group of objects



Uniform Fill... 



Shift+F11 



Applies uniform color fills to objects



Use bullets 



Ctrl+M 



Show/Hide Bullet



Vertical Text 



Ctrl+. 



Changes the text to vertical



View Manager 



Ctrl+F2 



Opens the View Manager Docker Window



What's This? 



Shift+F1 



What's This? Help



Zoom 





Zoom Tool



Zoom One-Shot 



F2



 



Zoom Out 



F3 



Zoom Out



Zoom To Fit 



F4 



Zoom To All Objects



Zoom To Page 



Shift+F4 



Zoom To Page



Zoom To Selection 



Shift+F2 



Zoom To Selected