Monday, November 16, 2020

भाई दूज मनाने की रोचक कथा

रक्षाबंधन पर्व के समान भाई दूज पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है|  इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है| भाई दूज का पर्व भाई बहन के रिश्ते पर आधारित पर्व है, भाई दूज दीपावली के दो दिन बाद आने वाला एक ऐसा उत्सव है, जो भाई के प्रति बहन के अगाध प्रेम और स्नेह को अभिव्यक्त करता है| इस दिन बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए कामना करती हैं|

 

इस बार भाई दूज का त्योहार 16 नवंबर को मनाया जाएगा। यह त्योहार भाई बहन के अटूट प्रेम और रिश्ते का प्रतीक होता है। इस दिन बहनें अपने भाई का तिलक करके उनकी लंबी उम्र और उन्नति की प्रार्थना करती हैं। भाई भी अपनी बहन के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन का संकल्प लेते हैं। इस त्योहार की पौराणिक कथा सूर्य पुत्र यम और पुत्री यमुना से जुड़ी हुई है।

 

शास्त्रों के अनुसार सूर्यदेव और पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं - एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पा रही थी जिसके कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण किया और अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गई। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव नहीं था, परंतु यम और यमुना दोनों भाई बहनों में बहुत प्रेम था।

 

यमदेव अपनी बहन यमुना से बहुत प्रेम करते थे। लेकिन काम की अधिकता के कारण अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते थे। एक दिन यम अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने के लिए उनसे  मिलने उनके घर चले गए। जब यमुना ने अपने भाई को देखा तो खुशी से प्रफुल्लित हो उठीं। भाव विभोर होकर यमुना ने अपने भाई के लिए व्यंजन बनाए औऱ उनका आदर सत्कार किया। अपने प्रति बहन का प्रेम देखकर यमराज को अत्यंत प्रसन्नता हुई। उन्होंने यमुना को खूब सारी भेंटें दीं।

 

जब चलने का समय हुआ तो बहन से विदा लेते समय यमराज ने बहन यमुना से कहा कि अपनी इच्छा का कोई वरदान मांग लो। तब यमुना ने अपने भाई के इस आग्रह को सुनकर कहा कि,अगर आप मुझे कोई वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन हर साल आप मेरे यहां आएंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे। कहते हैं कि इसी के उपलक्ष्य में हर वर्ष भाईदूज का त्यौहार मनाया जाता है।

 

गाय माता के पूजा का पर्व गोवर्धन पूजा

गोवर्धनका अर्थ है गौ संवर्धन। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत मात्र इसीलिए उठाया था कि पृथ्वी पर फैली बुराइयों का अंत केवल प्रकृति एवं गौ संवर्धन से ही हो सकता है। गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। जो यह संदेश देता है कि हमारा सम्पूर्ण जीवन प्रकृति पर निर्भर करता है। इसलिए हमें प्रकृति का धन्यवाद देना चाहिए। इस दिन विशेष रुप से गाय माता की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन कोई दुखी है तो साल भर दुखी रहेगा। मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को मनाना चाहिए। इस दिन स्नान से पूर्व तेला लगाना चाहिये। इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दु:ख दारिद्र का नाश होता है। इस दिन जो शुद्ध भाव से भगवान के चरण में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह सालभर सुखी और समृद्ध रहता है।

               दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन और गौ पूजा का विशेष महत्व है। आज गोवर्धन पूजा का पावन पर्व है, मान्यता है कि इस दिन गाय की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। आज गोवर्धन पूजा के साथ भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा की जाएगी। शिल्पकार और श्रमिक वर्ग गोवर्धन पूजा के दिन दिन विश्वकर्मा का पूजन भी श्रद्धा भक्तिपूर्वक करते हैं। आज अपने घर- व्यवसाय के विकास व वृद्धि की कामना से दीप जलाए जाते हैं।

            दीपावली के उत्सव के चौथे दिन शाम के समय में विशेष रुप से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय लोकजीवन में इस पर्व का अधिक महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानि गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरुप भी कहा गया है। इसलिए गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है। इस दिन के लिए मान्यता प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन धाम के लोगों को तूफानी बारिश से बचाने के लिए पर्वत अपने हाथ पर ऊठा लिया था। अन्नकूट पूजा को अत्यधिक कृतज्ञता, जुनून और उत्सुकता के साथ मनाया जाता है।

 


भाई- बहन के प्यार व स्नेह का प्रतीक : भैया दूज

भाई-बहन के अटूट प्यार व स्नेह का प्रतीक भैया दूज का त्यौहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भैया दूज का त्योहार पूरे भारत ने बड़े उत्साह व उल्लास से मनाया जाता है। रक्षाबंधन की तरह भैया दूज का त्यौहार भाई बहन के अनन्य प्रेम और स्नेह का प्रतीक है ।  

  दीपावली के पांच दिवसीय त्योहार के अंतिम पांचवे  दिन भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है ।इसको यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विवाहिता बहन अपने भाई को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करती है और भाई को तिलक कर,मुंह मीठा कराकर कलाई के कलावा बांधती है।और भाई की दीर्घायु व खुशहाल जीवन के लिए कामना करती है। एवं भाई भी अपनी बहन को उसके मान सम्मान की रक्षा करने व उसका साथ देने का वादा करता है ।और बहन को उपहार देता है। इससे भाई-बहन के अटूट प्यार व स्नेह में प्रगाढ़ता आती है।   

     प्राचीन काल से भाई-बहन के परस्पर प्यार व स्नेह का पर्व भाई दूज का त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है । रक्षाबंधन के बाद बहन भाई दूज की बेसब्री से इंतजार करती है,और विश्वास होता है उसका भाई कहीं भी,कितनी दूर क्यों ना हो,भाई दूज पर जरूर उसके घर आएंगे।आधुनिकता के दौर में भी आज भी भाई -बहन के अनन्य प्यार,स्नेह और  विश्वास का प्रतीक यह त्यौहार मनाया जा रहा है।

*पौराणिक मान्यताएं*

   पौराणिक कथाओं के अनुसार

सूर्य देव की पुत्री यमुना ने अपने भाई यमराज को बड़े प्यार और स्नेह से अपने घर भोजन करने के लिए कई बार आग्रह किया। लेकिन यमराज हर बार बहन की बात को टालते रहे।आखिर कार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुंच गए, बहन यमुना अपने भाई यमराज को अचानक अपने घर आया देखकर बहुत खुश हो जाती है ।यमुना अपने भाई का बड़े प्यार-स्नेह से आदर सत्कार करती है ।यमराज अपनी बहन यमुना का अपने प्रति स्नेह और आदर सत्कार देखकर भाव विभोर हो जाते हैं। यमराज बहन के प्यार व स्नेह से बहुत खुश होते हैं औरअपनी बहन यमुना से वर मांगने के लिए कहते हैं।

 यमुना भाई यमराज से वर मांगती है की है कि आप हर वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मेरे घर आकर भोजन करें और जो भी बहन प्यार और जो भी बहन स्नेह से अपने भाई को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित कर, भाई को तिलक करके भोजन कराती है।उसको आपका भय ना हो।यमराज बहन को तथास्तु कहकर यम लोक चले जाते है।उस दिन से यह प्राचीन परंपरा भाई-बहन के अटूट प्यार का प्रतीक भैया दूज का त्यौहार पूरे देश में बड़े उत्साह और स्नेह से मनाया जाता है।

अपने ढँग से जीने दो


माना हम छोटे बच्चे हैं,

अपनी भी इक्षाएं हैं।

अपने भी तो कुछ सपने हैं,

अपनी भी आशाएं हैं।

 

खेल खिलौने अजब अनूठे,

अपनी भी कुछ बातें हैं।

उजले-उजले दिन हैं अपने,

सपनों बाली रातें हैं।

 

मन पतंग की तरह हमेशा,

उच्च उड़ाने भरता है।

अपने ढँग का काम अनोखा,

करने को मन करता है।

 

इंद्रधनुष सा रंग-रँगीला,

अपना तो संसार है।

जिसमें राज कुँवर के जैसा,

अपना तो किरदार है।

 

लेकिन कोई नहीं समझता,

अपनी सोच थोपते हैं।

उनके जैसा बनूँ, करूँ मैं,

हमसे यही बोलते हैं ।

 

कैसे उनको समझाऊँ मैं,

अमृत रस को पीने दो।

बचपन की मस्ती के ये दिन,

अपने ढँग से जीने दो।

 


दीपोत्सव, गोवर्धन  का पर्व बड़े   हर्षोउल्लास से मनाया

नई दिल्ली 16 नवम्बर(डॉ शम्भू पंवार) भारतीय संस्कृति में हिंदुओं का सबसे प्रमुख त्यौहार दीपावली बड़े उत्साह ओर हर्षोल्लास से मनाया गया इस बार दीवाली पूजन का समय गोधूलि वेला से प्रारम्भ होने से सांय होते ही व्यवसायी अपने अपने प्रतिष्ठानों में ओर आमजन अपने अपने घरों में साफ-सफाई कर के

युवतियां,बच्चे बड़े उत्साह से सुंदर सुंदर रंगोली बनाने में लग गई तथा सांय होते ही विधि विधान से विघ्नहर्ता गणेश लक्ष्मी,कुबेर जी की पूजा अर्चना की।

 आज मार्किट में सुबह से लोगो की काफी गहमागहमी रही।कोरोना काल से त्रस्त लोग काफी समय बाद खुल कर बाजारों में खरीददारी को आये।फिर भी मास्क लगाना नही भूले।पूरी सतर्कता अपनाए हुवे थे। 

    यधपि कोरोना काल मे हुई आर्थिक मार का असर मार्किट में खरीदारी पर देखने को मिला।इलेक्ट्रॉनिक्स, ज्वेलरी, व  नए वाहन के प्रतिष्ठानों की सेल पहले की अपेक्षा बहुत कम रही। जबकि मार्केट में मिष्ठान,रेडिमेड, पूजा सामग्री, सजावटी सामान की दुकानों पर भीड़ देखने को मिली। दीपावली पर व्यवसायियों ने अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को रंगीन इलेक्ट्रिक लाइट, बन्दरवार से काफी आकर्षक ढंग  से सजाया। 

लोकल फ़ॉर वोकल:-

भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव को लेकर आमजन ने इस बार चाइनीज समान इलेक्ट्रिक लाइट,बन्दरवार,दीपक आदि समान का बहिष्कार किया। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल फ़ॉर वोकल के आह्वान पर लोकल बन्दरवार,लाइट व मिट्टी के दीयो से दीवाली का त्यौहार मनाया। इस बार दीवाली कुंभकारों के लिए खुशियां की सौगात लेकर आई है। कुम्भकारों ने भी समय के साथ आधुनिकता की हवा और जनमानस की भावनाओं को समझा। और मिट्टी के दीपको पर अपनी कला को आधुनिक  डिजाइनिंग और रंग बिरंगे रंगों में कलात्मक रूप देकर नए जोश और उत्साह से मार्केट में लेकर आए ।मिट्टी के बने इन रंग बिरंगे कलात्मक दीपकों ने आमजन को काफी आकर्षित किया। दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन  पूजा भी बड़े उत्साह से की।लोगो ने अपने घर के आगे गोबर से  गिरिराज जी का चित्र बना कर पूजा की।मंदिरों में अन्नकूट का प्रसाद बनाया गया।

Thursday, November 12, 2020

मिस्टर एन्ड मिस आगरा के सेमीफाइनल में हुआ जमकर मुकाबला

रैंप पर मॉडल अपने अलग अलग अंदाज में नजर आये


टलेंगे राउंड में सपना चैधरी के गानों पर प्रतिभागियों ने दी प्रस्तुतियां


आगरा । आरोही इवेंट्स के मिस्टर एन्ड मिस आगरा , सीजन-9, 2020 का सेमीफाइनल होटल मार्क रॉयल के प्रांगड़ में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगल सिंह धाकड़ एवं ग्लैमर लाइव फिल्म के निर्देशक सूरज तिवारी ने किया।आज के कार्यक्रम वशिष्ठ अतिथि के रूप में अनमोल जो कक फेम है आंटी जी जिसको सबाना आजमी के निर्देशन में थी।


निदेशक अमित तिवारी ने बताया कि आज मिस्टर एन्ड मिस आगरा के सेमीफाइनल में मिस आगरा व मिस्टर आगरा के शीर्षक के लिए 20ध्20 प्रतिभागियों ने इंट्रोडक्शन व सवाल जवाब के साथ अपने टैलेंट राउंड से हुनर दिखाया। फाइनल में 7ध्7 प्रतिभागियों के चयन किया गया है, सेमीफाइनल में निर्णायक की भूमिका में  सारा मून (मिस यु.पी 2009),पी.एस गीत( मिस इंडिया क्वीन ऑफ ब्रिलिएन्सी इंटरनेशनल), मोनिका यादव(मिस नार्थ इंडिया फोटोजनिक) रही।  सारा मून ने बताया कि सेमीफाइनल में चुने गए प्रतिभागियों को 5 दिन की ग्रूमिंग दी जाएगी व इस बार की शो की थीम बहुत ही आकर्षित होगी। कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित  मंगल सिंह धाकड़ ,डॉ राशिद चैधरी, अरविंद राणा , ऐ. पी साउंड से आंनद आदि उपस्थित रहे।
विशेषरू मिस्टर एन्ड मिस आगरा के विजयी प्रतिभागियों को ताज पहनाने आएंगी सपना चैधरी।


Wednesday, November 11, 2020

सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब को जमानत दी, पुलिस कमिश्नर से कहा- आदेश पर तत्काल अमल किया जाए

इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार अर्नब गोस्वामी को 7 दिन बाद बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी। कोर्ट ने मुंबई पुलिस कमिश्नर से कहा कि इस आदेश पर तत्काल अमल किया जाए।


अर्नब के साथ ही इस मामले में दो अन्य आरोपियों नीतीश सारदा और फिरोज मोहम्मद शेख को भी जमानत दी गई है। अर्नब की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उद्धव सरकार को भी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकारें किसी को निशाना बनाएं तो उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि हम उसकी हिफाजत करेंगे।


अर्नब अपनी जमानत के लिए हाईकोर्ट भी गए थे, लेकिन हाईकोर्ट ने उनसे कहा था कि अंतरिम जमानत के लिए उनके पास लोअर कोर्ट का भी विकल्प है, लेकिन 4 नवंबर को गिरफ्तारी के बाद ही अलीबाग सेशन कोर्ट ने उनकी जमानत नामंजूर कर दी थी। हालांकि, अलीबाग कोर्ट ने पुलिस को रिमांड न देते हुए अर्नब को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।


बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
डेमोक्रेसी पर: हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से लचीला है। महाराष्ट्र सरकार को यह सब नजरअंदाज करना चाहिए।


आजादी पर: अगर किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाता है, तो यह न्याय का दमन होगा। क्या महाराष्ट्र सरकार को इस मामले में कस्टडी में लेकर पूछताछ की जरूरत है। हम व्यक्तिगत आजादी के मुद्दे से जूझ रहे हैं।


SC के दखल पर: आज अगर अदालत दखल नहीं देती है तो हम विनाश के रास्ते पर जा रहे हैं। इस आदमी (अर्नब) को भूल जाओ। आप उसकी विचारधारा नहीं पसंद कर सकते। हम पर छोड़ दें, हम उसका चैनल नहीं देखेंगे। सबकुछ अलग रखें।


राज्य सरकार पर: अगर हमारी राज्य सरकारें ऐसे लोगों के लिए यही कर रही हैं, इन्हें जेल में जाना है तो फिर सुुप्रीम कोर्ट को दखल देना होगा।


हाईकोर्ट पर: HC को एक संदेश देना होगा। कृपया, व्यक्तिगत आजादी को बनाए रखने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करें। हम बार-बार देख रहे हैं। अदालत अपने अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल में विफल हो रही हैं। लोग ट्वीट के लिए जेल में हैं।



इस शर्त पर मिली जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अर्नब गोस्वामी और दो अन्य आरोपी सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे। इसके अलावा आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले की जांच के दौरान वो पूरा सहयोग करेंगे।


2018 में इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां ने खुदकुशी कर ली थी। अन्वय की पत्नी ने सुसाइड लेटर में अर्नब का नाम होने के बावजूद कार्रवाई न होने पर सवाल उठाया था। इसके बाद रायगढ़ पुलिस ने अर्नब और दो अन्य लोगों को 4 नवंबर को गिरफ्तार किया था। बाद में अदालत ने इन्हें 18 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। अर्नब फिलहाल तलोजा जेल में बंद हैं।


 

 


Tuesday, November 10, 2020

मौन साधक, मित्र मेरा- सुरेशचंद्र रोहरा 




*डॉ टी महादेव राव*

चारों तरफ से हरे भरे और घने जंगलों से आच्छादित छत्तीसगढ़ अ हसदेव नदी के पावन तट पर बसी देश की ऊर्जाधानी कोरबा यूँ तो  अपनी अनेकों कोयला खादानों एवं बिजली के कल - कारखानों के नाम से मशहूर है। लेकिन इस रत्नागर्भा वसुन्धरा को अपनी मेहनत  , लगन और निष्ठा से आज के इस मुकाम तक पहुँचाया है यहाँ के आम मेहनत कश्मीर लोगों ने  । जहाँ एक तरफ यहाँ के श्रमिकों , किसानों , अधिकारियों , कर्मचारियों एवं शासन प्रशासन , व्यापार , व्यवसाय के लोगों ने इसके विकास पथ में अपनी भूमिका निभाई है वहीं इसकी सांस्कृतिक परंपरा और विरासत को समृद्ध करने का कार्य यहाँ के विविध कला क्षेत्रों में साधनारत कलासाधकों ने किया है । ये अलग बात है कि क्षेत्र के कलात्मक विकास में सक्रिय रहे कलासाधकों में कुछ चुने हुए और मुट्ठी भर लोगों के ही नाम कोरबा के जनमानस के सामने आ पाएँ  हैं। आज भी ऐसे कई कलमसाधक हैं जो प्रचार प्रसार को किनारे रख एक के बाद एक अनगिनत सृजन किए जा रहे हैं। और वह भी किसी लालसा या विशेष ईच्छा के बिना सिर्फ समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी और सर्जनात्मकता के प्रति अपने अनुराग के कारण । वैसे तो  कोरबा साहित्यजगत एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में  अनेकानेक बुद्धिजीवी साधनारत हैं लेकिन उनमें से एक कलम  के साधक ऐसे हैं जिनकी जुबान नहीं सिर्फ और सिर्फ कलम बोलती है! अख़बारों में बेहतरीन संपादकीय लेखों , काँलम लेखों  , देश की नामी गिरामी पत्र  पत्रिकाओं में विशेष लेखों , कई प्रकाशित पुस्तकों - संकलनों के रूप में  .... और कोरबा साहित्य एवं पत्रकारिता जगत को 

नई दिशा और दशा प्रदान करने वाले वह मौन कलम साधक हैं प्रख्यात  गाँधीवादी , निष्पक्ष एवं बेबाक पत्रकार, साहित्यकार , हमारे दैनिक  लोकसदन के संपादक  सुरेशचंद्र रोहरा  ... ।

     कुछ लोग कुछ न करते हुए भी अपनी पीठ थपथपाने और प्रचार-प्रसार में इतने माहिर होते हैं कि उनकी साहित्यिक प्रतिभा से अधिक हमें उनके स्वयं को प्रचारित करने की प्रतिभा का कायल होना पड़ेगा।  लेकिन एक और तरह के व्यक्ति होते हैं दुर्लभ किस्म के। ये शख्स  केवल अपने काम से मतलब रखते हैं। साहित्य सृजन हो या पत्रकारिता या स्तंभ लेखन या लेखन संबंधी कोई अन्य कार्य भी क्यों न हो, बस लगे रहते हैं - कृष्ण के द्वारा भगवदगीता में कहे गए कर्म के सिद्धांत को अपनाते हुए, फल की आशा न करते हुए, पूरी सहनशीलता, शांति और प्रतिबद्धता के साथ अपना काम करते हुए।

 

      आज मैं अपने ऐसे ही  मित्र के विषय में आपको बताने जा रहा हूँ।  इस तरह उनके बारे में लिखना भी उन्हें  भाता नहीं, क्योंकि वह कर्मयोगी है, कलम का श्रमिक है और कारीगर है कागजों  का। यह मेरी ही जिद है कि उस दोस्त रूपी, छोटे भाई के बारे में लिखूँ। आज जबकि ठीक से ककहरा भी न लिख पाने वाले लोग स्वयं को साहित्यकार, रचनाकार, कलमकार  और पता नहीं क्या-क्या कार कहने में जरा भी संकोच नहीं करते, ऐसे में भाई का जिक्र ज़रूरी लगता है मुझे।

 

      बात शुरू करता हूं सन 1986 से।  मुझसे बालको में मिलने कोरबा से एक नवजवान आया। बी. ए . हिंदी का छात्र, साथ ही स्वतंत्र  पत्रकारिता करता हुआ। साहित्य के प्रति समर्पण की भावना लिए कहानियां, कविताएं, लेख लिखा करता था।  जो छपती भी थीं। मैं एक लेखक के रूप में मिला उस अति शालीन, सुसंस्कृत  और युवा साथी से। पहली ही मुलाक़ात में उसका “भैया” संबोधन से इस तरह बांध लिया कि आज भी मेरे लिए उसके मुंह से वही संबोधन निकलता है, जिसे  सुनकर बहुत खुशी होती है।  उसका अपनापन इतने सालों बाद भी कम नहीं हुआ।  हम मिलते रहे, लिखते रहे बिना किसी गुटबाजी के।  उस समय काफी चलती थी गुटबाजी कवियों और लेखकों में। हम लोग  अपने काम से काम रखते ।  हफ्ता दस दिन में मिलना, कुछ सार्थक चर्चा।  उसने अपने युवा मित्रों की एक मंडली बनाई, जो साहित्य के छात्र थे उसी की तरह लेखन का काम भी करते थे।  यह अलग बात है कि जितना सफल मेरा मित्र हुआ, वे उतने न हो सके।  बाद में सभी अपने अपने काम धंधे में लग गए।  मेरे मित्र छोटे भाई ने जो कलम का हाथ थामा आज उसकी उम्र 53 वर्ष की हो गई है। कलम  का हाथ थामे हुये ही नई मंज़िलें पा रहा है, नए शिखर छू रहा है। ईश्वर उसे दीर्घायु दे,  और भी अनेक सफलताएं उसकी झोली में डाले यही कामना है।

 

      यह जो 1987 का नव लेखक था, आज पत्रकारिता का पर्याय बन चुका है।  दैनिक, मासिक, पाक्षिक पत्रों, वेब पोर्टल , दूरदर्शन,दिल्ली  प्रेस की पत्रिकाओ  आदि में अपनी पत्रकारिता के जौहर पर दिखाता ही है, साथ ही व्यंग्य स्तम्भ लेखन,  धारावाहिक उपन्यास लेखन,  सामयिक विषयों पर गहन चिंतन के साथ संपादकीय  और साथ साथ  कविताएं, कहानियां भी उसी प्रभावोत्पादकता के साथ लिखता है. जिस प्रभावी ढंग से पत्रकारिता करता है।  इस व्यक्ति में जो सहनशीलता है,  सामंजस्य का भाव है, क्षमा गुण है - वह श्लाघनीय है।  उन सब के पीछे मित्र का "गांधी दर्शन" पर अटूट  विश्वास का होना है। गांधीश्वर  पत्रिका का संपादक है ही, साथ ही पिछले दस वर्षों से अधिक समय से कोरबा से प्रकाशित लोकप्रिय  दैनिक लोकसदन का  सफल, सक्षम  और योग्य संपादक भी है। जी हाँ... मेरे छोटा भाई समान इस मित्र का नाम है सुरेशचंद्र रोहरा। अब तक इनकी पंद्रह से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हुआ, जिनमें उपन्यास, कविता, व्यंग्य, गांधी दर्शन आदि शामिल हैं। कोई विधा ऐसी नहीं जिनमें इन्होंने कलम न चलाई हो।  यही नहीं युवावस्था में (वैसे भी आज भी युवा हैं मेरी तुलना में) साहित्य साधना समिति का गठन कर सामयिक साहित्य चर्चाएं, संगोष्ठियाँ,  संध्या पर नुक्कड़ नाटक (दूसरी संस्थाओं से मंगाकर)  आयोजन करते रहे।  साहित्यिक माहौल का निर्माण उस समय भाई के कारण ही कहूंगा कोरबा,छत्तीसगढ़  में हुआ था।  उस समय के वरिष्ठ रचनाकार केवल खेमों में बटे हुए थे।  केवल कविताएं, गजलें, मुक्तक, रुबाइयां लिखकर गोष्ठियों  में सुनाते अलग अलग संस्था समितियों की बैठकों में।   इन रचनाकारों में भाई  सुरेश शामिल न थे, क्योंकि मेरा भी अनुभव रहा इन वरिष्ठों के साथ कि कविता के अलावा अन्य किसी भी विधा में लिखने वाले इनके लिए वर्जित हैं, अछूत हैं पता नहीं क्यों। मैं भी भाई सुरेश रोहरा की तरह इन समितियों से दूर था।  

 

  मैं 1990 में बालको से आ गया, लेकिन हमेशा संपर्क में रहने वाले भाई सुरेश रोहरा अपनी गतिविधियों से लगातार अवगत कराता। अपनी प्रकाशित पुस्तकें, रचनाएँ भेजता, जिस पर हम चर्चा करते। बीच में एक बार वह विशाखापटनम भी आया, प्रत्यक्ष मुलाकात में लंबी चर्चा चली। मतलब उनकी हर खबर से मैं हमेशा वाकिफ रहा।  

 

      इस बीच  एक बात दिल में बुरी तरह चुभी  कि  34 वर्षों से लेखन से जुड़े भाई सुरेश चंद्र रोहरा जी का कोरबा के तथाकथित साहित्यकारों की सूची में नाम लेने से कुछ बुजुर्ग साहित्यकार मे घबराहट हैं या उनके कृतित्व को नकार रहे हैं।   यह सब लिखने के पीछे भी एक कारण है  मैं कुछ ऐसे कवियों को जानता हूं  जिनको शब्दों के सही अर्थ और वर्तनी तक का पता नहीं, वे इन बुजुर्ग साहित्यकारों की नजर में महान कवि हैं। तू मुझे सराह , मैं तेरी तारीफ करूंगा  वाली बात हो गई।

 

  मेरा कथन है कि जिस कोरबा के साहित्य के इतिहास की चर्चा  जोरों पर है,  काम भी किया जा रहा है, उसमें चंद रचनाएं  करने वालों का जिक्र है।  कई ऐसे हैं जिनकी कोई भी पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई।  कई ऐसे थे जिन्होंने आदर्शवाद केवल कविताओं तक सीमित रखे हुए थे  वास्तविक जीवन में ऐसे आदर्श उनके लिए नहीं रहे।   जिस व्यक्ति ने इतनी सारी पुस्तकें, इतनी सारी सभी विधाओं की सामग्री लिखी,  बहुत सारा साहित्य वह भी स्तरीय  लिखा ऐसे व्यक्ति का जिक्र न हो पाना हमारी सोच की संकीर्ण मानसिकता को उजागर करती है।  मेरा तो मानना है  यदि कोरबा का साहित्य के इतिहास लिखा जाएगा  तो भाई सुरेश रोहरा का नाम एक महत्वपूर्ण नाम के रूप में लिखा जाना ना केवल अनिवार्य है बल्कि समय की मांग है।

( डाक्टर टी. महादेव राव  हिंदी और तेलुगु के ख्यात लेखक है)


 

 




ऐतिहासिक कथा की मौलिकता

ऐतिहासिक कथा काल्पनिक शैलियों का सबसे आम है तकनीकी तौर पर, ऐतिहासिक कथाएं अतीत में किसी भी कहानी को सेट करती हैं, जिसमें समय की सच्ची विशेषताएं शामिल होती हैं, जिसमें काल्पनिक पात्रों या घटनाएं भी शामिल हैं। सदियों और संस्कृतियों में इस तरह के कार्यों के अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं। इलियाड और ओडिसी के रूप में, जहां तक ​​प्राचीन यूनानियों (हालांकि वे भी विलक्षण तत्व होते हैं) का इतिहास एकाकी करने का प्रयास करता है।

 

सच्ची ऐतिहासिक कथा अपने संपूर्ण साजिश तत्वों में यथार्थवाद पर निर्भर करती है। ऐतिहासिक कथा के लेखक एक विश्वसनीय ऐतिहासिक दुनिया का निर्माण करने के लिए सावधान रहना चाहिए जिसमें सेटिंग, पात्रों, और वस्तुएं उनके युग में अपेक्षित होगा। अक्षरों को विश्वसनीय अवधि वार्ता के साथ बोलना चाहिए और परिवहन के उपयुक्त साधनों के साथ यात्रा करना चाहिए। आपको 1600 के दशक में एक चरित्र नहीं मिलना चाहिए, उदाहरण के लिए, "यह बहुत अच्छा था!" या सड़क पर साइकिल चलाने के लिए ऐतिहासिक कथा में, सभी संघर्षों, साजिश की घटनाओं, और विषयों को ऐतिहासिक रूप से संभवतः दुनिया के भीतर होना चाहिए जो लेखक ने चयनित किया है।

 

समकालीन समाज और राजनीति को प्रभावित करने के लिए ऐतिहासिक कथा का उपयोग कभी-कभी किया जा सकता है राइटर्स एक विशेष ऐतिहासिक घटना पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं क्योंकि उनके बीच और उनके अपने समय के बीच के संबंधों को देखते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बीच में देशभक्ति को प्रेरित करने के लिए घटनाओं को लेकर क्रांतिकारी युद्ध का नेतृत्व किया। नाटक या साहस के लिए सामग्री प्रदान करने के लिए अन्य लेखक एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि चुन सकते हैं फिर भी दूसरों को एक पिछली त्रासदी में प्रासंगिक विषय या सबक देख सकते हैं।

 

युद्धकालीन, विशेष रूप से ऐतिहासिक कथा के लेखकों के लिए एक लोकप्रिय विषय है पाठकों को किसी भी युद्ध में कल्पना सेट करने के लिए दूर देखने की ज़रूरत नहीं है। हालांकि काल्पनिक, ऐतिहासिक कथा किताबें जानकारी का उत्कृष्ट स्रोत हो सकती हैं। प्रत्येक ऐतिहासिक उपन्यास पुस्तक के साथ, पाठकों ने अतीत के बारे में कुछ और सीखते हैं और इतिहास, राजनीति, संस्कृति और मानव अनुभव की उनकी समझ को व्यापक करते हैं।

 

आप के लिए दुनियां में सब  कुछ संभव है !

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन में एक समानता थी साथियों ये दोनों ही अपने आप को निरंतर सार्थक विचारो से ऊर्जावान बनाए रखते थे ।याद रखना आप दृढ़ निश्चय वाले व्यक्ति कभी भी हार नहीं मानते हैं ,जब तक दोस्त हम प्रयत्न करना बंद नहीं कर देते ,तब तक कोई भी हार अंतिम हार नहीं होती है।हमें भी अपने  मार्ग पर निरंतर चलते रहना चाहिए,आप भी आज ही उमंग और कल्पना की उड़ान की सहायता से जीवन में ऊंचे लक्ष्यों को अपने मस्तिष्क में संजोइए।

देखो साथियों दुनिया में सब कुछ सम्भव है, और आख़िर तक हार न मानने वाले एक दिन जीत ही जाते हैं।

आप ही देखो साथियों जो बाइडेन 7 नवंबर 1972 को पहली बार अमेरिकी सीनेट के लिए चुने गए थे।आज 48 साल बाद नवंबर 2020 में  पहली बार राष्ट्रपति बने। अब जब बाइडेन राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए हैं तब उनकी उम्र 78 वर्ष है, वो अमेरिकी इतिहास के सबसे जवान सीनेटर बने थे और सबसे बूढ़े राष्ट्रपति बने हैं। वैसे दोस्त आम भारतीयों को इससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता कि अमेरिका का राष्ट्रपति कोई डेमोक्रेट बनता है या रिपब्लिकन लेकिन इस बात से ज़रूर फ़र्क़ पड़ता है कि दुनिया में कुछ भी संभव है या कहा जाए कि सब कुछ संभव है। ट्रम्प पिछली बार राष्ट्रपति बनने के सिर्फ़ एक साल पहले राजनीति में आए थे और बाइडेन पिछले 48 साल से राजनीति में हैं लेकिन राष्ट्रपति बने वो अब जाकर।इस बीच एक और बात जो जानने योग्य है वो ये कि बाइडेन का बेटा राष्ट्रपति पद का तगड़ा उम्मीदवार माना जाने लगा था, लेकिन बदकिस्मती से 46 वर्ष की उम्र में उसकी मौत हो गयी और अपने बेटे का अधूरा सपना पूरा करने के लिए जो बाइडेन अब जाकर देश के 46 वें राष्ट्रपति बन रहे हैं।तो कुल मिलाकर ऐसा है कि दुनिया में सब कुछ संभव है, और आख़िर तक हार न मानने वाले एक दिन जीत ही जाते हैं।याद रखना आप दोस्त आप के ही भीतर सभी शक्तियां निहित है,महान से महानतम बनने के बीज आपके अंत:करण में मौजूद हैं, लेकिन जब तक आप इन शक्तियों को विकसित नहीं करेंगे,आपको जीवन में सफलता हासिल कैसे होगी?याद रखना आप बीज से अंकुर तभी फूटता है ,जब वह फटता है और बाद में यहीं अंकुर एक महा वृक्ष बन जाता है।याद रखना आप जो भी व्यक्ति अपने शक्तियों को पहचान लेता है, वही सफलता के शिखर पर पहुंचता है,बाकी लोग तो केवल समय पुरा करने के लिए इस धरती पर आते हैं और गुमनामी की मौत मरकर भुला दिए जाते हैं।आप प्रभु  के संतान ,अमर आंनद के हिस्सेदार ,पवित्र और पूर्ण हो,इसीलिए खुद के अंदर के शक्तियों का महा वृक्ष को विकसित करने के लिए निरंतर सार्थक प्रयास करते रहिए ,देखना आप भी एक दिन जरूर सफल होंगे।।

Sunday, November 8, 2020

दिवाली मनाते है









'हम शिक्षक नित ही अज्ञानता का अंधकार मिटाते है,

ज्ञान दीप के प्रकाश से हम तो रोज दिवाली मनाते है।

कब,कहाँ,क्यो,कैसे ? यह सब बच्चों को समझाते है।

क्या भला,क्या बुरा ? यह सब भी हम सिखलाते है।

सरस्वती के पावन मन्दिर मे नया सबक सिखाते है,

नवाचार का कर प्रयोग छात्रों को निपुण बनाते है।

कबड्डी,खो-खो और दौड़ प्रतियोगिता हम करवाते है,

पाठ्यसहगामी क्रियाओं का भी हम महत्व बताते है।

बच्चो का कर चहुँमुखी विकास हम फूले नही समाते है।

हम शिक्षक शिक्षा की लौ से रोज दिवाली मनाते है।'

 

रचनाकार:-

अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'




 

 








बाइडेन के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने पर भारत पर क्या असर होगा?

 साथियों  बाइडेन ने अमेरिका का राष्‍ट्रपति चुनाव जीत लिए है ,ये  उम्रदराज अमेरिकी राष्ट्रपति बनने तक का शानदार सफर तय करके शनिवार को इतिहास रच दिए हैं।  जैसा कि हम सभी जानते हैं कि  ट्रंप को हराकर बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बन गए हैं। आपको बता दें कि  77 साल 11 महीने के  बाइडेन लंबे समय से ही राजनीति कर रहे हैं जो कि ओबामा  सरकार के दौरान बाइडेन ही उपराष्ट्रपति थे. मतलब  दोस्त बाइडेन राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं।

अमेरिका राजनीति में करीब पांच दशकों से सक्रिय जो बाइडेन ने सबसे युवा सीनेटर से लेकर सबसे उम्रदराज अमेरिकी राष्ट्रपति बनने तक का शानदार सफर तय करके इतिहास रच दिए हैं। आपको बता दें कि 77 वर्षीय बाइडेन छह बार सीनेटर रहे और अब अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को हराकर देश के राष्ट्रपति बन रहे हैं. ऐसा नहीं है कि यह कामयाबी उन्होंने अपने पहले प्रयास में पा लिया  है. बाइडेन को वर्ष 1988 और 2008 में राष्ट्रपति पद की दौड में नाकामी  भी मिली थी ।

साथियों बाइडेन  को  अमेरिका के राष्ट्रपति बनने से  पूरी दुनिया का नजर कहीं ना कहीं भारत की तरफ भी है , मुझे लगता है कि भारत अमेरिका रक्षा संबंध की बात किया जाए तो बड़े बदलाव की संभावना नजर अभी तो नहीं आ रहा है, जैसे पहले संयुक्त युद्धअभ्यास और सैन्य समझौते होते रहे हैं उसी तरह आगे भी होंगे। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव भारत और अमेरिका के आर्थिक संबंध और बेहतर होने की उम्मीदें हैं जिससे कि दोनों देशों के बीच और अधिक कारोबार बढ़ सकता है ।इन सभी में सबसे अच्छी बात मुझे यह लग रही है कि अब हम भारतीयों को अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन के निर्वाचित हो जाने से ज्यादा ग्रीन कार्ड मिल पाएगा यानी ज्यादा भारतीय अमेरिका में बस सकते हैं। इसके साथ ही साथियों आईटी सेक्टर की कंपनियों को बाइडेन के आने का फायदा जरूर होगा।

साथियों जैसा कि हम जानते हैं कि राष्ट्रपति बनने का सपना संजोये डेलावेयर से आने वाले दिग्गज नेता बाइडेन को सबसे बडी सफलता उस समय मिली जब वह दक्षिण कैरोलीना की डेमोक्रेटिक पार्टी प्राइमरी में 29 फरवरी को अपने सभी प्रतिद्वंद्वी को पछाडकर राष्ट्रपति पद की दौड में जगह बनाने में कामयाब रहे. वाशिंगटन में पांच दशक गुजारने वाले बाइडेन अमेरिकी जनता के लिए एक जाना-पहचाना चेहरा थे क्योंकि वह दो बार तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उप राष्ट्रपति रहे है।

 74 वर्षीय ट्रंप को हराकर व्हाइट हाउस में जगह पाने वाले बाइडेन अमेरिकी इतिहास में अब तक के सबसे अधिक उम्र के राष्ट्रपति बन गए हैं. डेलावेयर राज्य में लगभग तीन दशकों तक सीनेटर रहने और ओबामा शासन के दौरान आठ वर्षों के अपने कार्यकाल में वह हमेशा ही भारत-अमेरिकी संबंधों को मजबूत करने के हिमायती रहे. बाइडेन ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के पारित होने में भी अहम भूमिका निभायी थी.भारतीय राजनेताओं से मजबूत संबंध रखने वाले बाइडेन के दायरे में काफी संख्या में भारतीय-अमेरिकी भी हैं. चुनाव के लिए कोष जुटाने के एक अभियान के दौरान जुलाई में बाइडेन ने कहा था कि भारत-अमेरिका 'प्राकृतिक साझेदार' हैं। 

 उन्होंने बतौर उप राष्ट्रपति अपने आठ साल के कार्यकाल को याद करते हुए भारत से संबंधों को और मजबूत किए जाने का जिक्र भी किए थे और यह भी कहे थे कि अगर वह राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो भारत-अमेरिका के बीच रिश्ते उनकी प्राथमिकता रहेगी. पेनसिल्वेनिया में वर्ष 1942 में जन्मे जो रॉबिनेट बाइडेन जूनियर ने डेलावेयर विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की और बाद में वर्ष 1968 में कानून की डिग्री हासिल की. बाइडेन डेलावेयर में सबसे पहले 1972 में सीनेटर चुने गए और उन्होंने छह बार इस पद पर कब्जा जमाया. 29 वर्ष की आयु में सीनेटर बनने वाले बाइडेन अब तक सबसे कम उम्र में सीनेटर बनने वाले नेता हैं।

आपको बता दें की मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब तक हार नहीं मानी है। बाइडेन की जीत की घोषणा पर करीब 5 घंटे चुप्पी साधे रहने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किए और खुद के जीतने का दावा किए है। उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। ट्रंप ने ट्वीट किया कि पर्यवेक्षकों को काउंटिंग रूम में घुसने की इजाजत नहीं दी गई। यह चुनाव मैं ही जीता हूं और मुझे 7 करोड़ 10 लाख वैध वोट मिले हैं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कई गलत चीजें हुई हैं, जिन्हें पर्यवेक्षकों को नहीं देखने दिया गया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।

वैसे दोस्त डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद भी 128 साल पुराना रेकॉर्ड तोड़कर विदाई ले रहे हैं। वे अमेरिका के ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्हें जनता ने लगातार दूसरी बार पॉपुलर वोट में हरा दिया है। ट्रंप से पहले बैंजामिन हैरिसन के साथ भी ऐसा वाकया हो चुका है। रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बेंजामिन 1888 में हुए चुनाव के दौरान पॉपुलर वोट में हारने के बावजूद अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे। उन्होंने 1892 का राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ा, लेकिन पॉपुलर वोट में ग्रोवर क्लेवलेंड के हाथों हार का सामना करना पड़ा।   अब आगे  देखते हैं कि अमेरिका में बाइडेन के राष्ट्रपति बन जाने से भारत के रिश्ते में कितना मजबूती और परिवर्तन आती है।

 

Saturday, November 7, 2020

मानव स्वास्थ्य के लिए काल है वायु प्रदूषण 

 

एक सूचकांक से पता चला है कि वायु प्रदूषण पृथ्वी पर हर पुरुष, महिला और बच्चे की आयु संभाविता यानी लाइफ एक्सपेक्टेंसी को लगभग दो साल घटा देता है. सूचकांक का दावा है कि वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। 

 

यह दावा एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) द्वारा जारी किए ताजा आंकड़ों में किया गया है. एक्यूएलआई एक ऐसा सूचकांक है जो जीवाश्म ईंधन के जलाए जाने से निकलने वाले पार्टिकुलेट वायु प्रदूषण को मानव स्वास्थ्य पर उसके असर में बदल देता है. सूचकांक का कहना है कि एक तरफ तो दुनिया कोविड-19 महामारी पर काबू पाने के लिए टीके की खोज में लगी हुई है लेकिन वहीं दूसरी तरफ वायु प्रदूषण की वजह से पूरी दुनिया में करोड़ों लोग का जीवन और छोटा और बीमार होता चला जा रहा है। 

 

एक्यूएलआई ने पाया कि चीन में पार्टिकुलेट मैटर में काफी कमी आने के बावजूद, पिछले दो दशकों से वायु प्रदूषण कुल मिला कर एक ही स्तर पर स्थिर है. भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में वायु प्रदूषण की स्थिति इतना गंभीर है कि कुछ इलाकों में इसकी वजह से लोगों की औसत जीवन अवधि एक दशक तक घटती जा रही है. शोधकर्ताओं ने कहा है कि कई जगहों पर लोग जिस हवा में सांस लेते हैं उसकी गुणवत्ता से मानव स्वास्थ्य को कोविड-19 से कहीं ज्यादा बड़ा खतरा है। 

 

एक्यूएलआई की रचना करने वाले माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा, "कोरोना वायरस से गंभीर खतरा है और इस पर जो ध्यान दिया जा रहा है वो दिया ही जाना चाहिए, लेकिन अगर थोड़ा ध्यान वायु प्रदूषण की गंभीरता पर भी दे दिया जाए तो करोड़ों लोगों और लंबा और स्वस्थ जीवन जी पाएंगे। 

 

दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी सिर्फ उन चार दक्षिण एशियाई देशों में रहती है जो सबसे ज्यादा प्रदूषित देशों में से हैं - बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान. एक्यूएलआई ने पाया कि इन देशों में रहने वालों की जीवन अवधि औसतन पांच साल तक घट जाएगी, क्योंकि ये ऐसे हालात में रह रहे हैं जिनमें 20 साल पहले के मुकाबले प्रदूषण का स्तर अब 44 प्रतिशत ज्यादा है। 

 

एक्यूएलआई ने कहा कि पूरे दक्षिण-पूर्वी एशिया में पार्टिकुलेट प्रदूषण भी एक "गंभीर चिंता" है, क्योंकि इन इलाकों में जंगलों और खेतों में लगी आग ट्रैफिक और ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाले धुंए के साथ मिल कर हवा को जहरीला बना देती है. इस इलाके के 65 करोड़ लोगों में करीब 89 प्रतिशत लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां वायु प्रदूषण स्वास्थ्य संगठन के बताए हुए दिशा-निर्देशों से ज्यादा है। 

 

एक्यूएलआई  ने कहा कि अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देश वायु की गुणवत्ता को सुधारने में सफल रहे हैं लेकिन फिर भी प्रदूषण दुनिया भर में आयु संभाविता से औसत दो साल घटा ही रहा है. वायु गुणवत्ता का सबसे खराब स्तर बांग्लादेश में मिला और अगर प्रदूषण पर काबू नहीं पाया गया तो भारत के उत्तरी राज्यों में रहने वाले लगभग 25 करोड़ लोग अपने जीवन के औसत आठ साल गंवा देंगे। 

 

कई अध्ययनों ने यह दिखाया गया है कि वायु प्रदूषण का सामना करना कोविड-19 के जोखिम के कारणों में से भी है और ग्रीनस्टोन ने सरकारों से अपील की है कि वे महामारी के बाद वायु गुणवत्ता को प्राथमिकता दें. शिकागो विश्विद्यालय के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट में काम करने वाले ग्रीनस्टोन ने कहा, "हाथों में एक इंजेक्शन ले लेने से वायु प्रदूषण कम नहीं होगा. इसका समाधान मजबूत जन नीतियों में है।