Thursday, July 1, 2021

बिना किसान किसी भी देश का संपूर्ण होना संभव नहीं है

देश में कोरोना की रफ्तार कम हो गई है,अधिकतर राज्य धीरे-धीरे अनलॉक की तरफ बढ़ रहे हैं, इस बीच हमारे  अन्नदाता भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी में जुट गए हैं। देश में अन्नदाता का विरोध प्रदर्शन जारी है।,देशभर में जारी विरोध प्रदर्शन का करीब सात महीने से भी अधिक होने वाले हैं। देखे तो आजाद भारत में हम सबका पेट भरने वाले अन्नदाता को आये दिन अपने अधिकारों और हक को हासिल करने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है ,लेकिन देश की सरकारें है कि वो अपनी चतुर चाणक्य नीति से हर बार हम किसानों को आश्वासन देकर समझा-बुझाकर सबका पेट भरने के उद्देश्य से अन्न उगाने के लिए वापस खेतों में काम करने के लिए भेज देती है। देश में सरकार चाहें कोई भी हो, लेकिन अपने अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्षरत किसानों की झोली हमेशा खाली रह जाती है। आज अन्नदाता किसानों के हालात बेहद सोचनीय हैं, स्थिति यह हो गयी है कि एक बड़े काश्तकार को भी अपने परिवार के लालनपालन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, जो स्थिति देशहित में ठीक नहीं हैं। किसानों के इस हाल के लिए किसी भी एक राजनैतिक दल की सरकार को ज़िम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा। उनकी बदहाली के लिए पिछले 74 सालों में किसानों की वोट से देश में सत्ता सुख का आनंद लेने वाले सभी छोटे-बड़े राजनैतिक दल जिम्मेदार हैं। क्योंकि इन सभी की गलत नीतियों के चलते ही आज हम किसानों की स्थिति यह है कि भले-चंगे मजबूत किसानों को सरकार व सिस्टम ने कमजोर, मजबूर व बीमार बना दिया है। जिसमें रही सही कसर हाल के वर्षों में सत्ता पर आसीन रही राजनैतिक दलों की सरकारों ने पूरी कर दी है। जिनकी गलत नीतियों व हठधर्मी रवैये ने हम परेशान किसानों को सड़क पर आने के लिए मजबूर कर दिया है।

देखे तो वही अन्नदाताओं की आत्महत्याओं के पीछे भी सबसे बड़ा मुख्य कारण साहुकार व बैंकों के ऋण की समय से अदायगी न कर पाना है ,और बैंक से किसानों को ऋण लेने में इतनी परेशानियों का सामना करनी पड़ती है , जो की मैं खुद अपने परिवार और दूसरों के लिए कई बार बैंकों के उदासीन रवैया का सामना कर चुका हूं , वही किसान ब्याज के चलते कर्ज में भारी वृद्धि हो जाने से समय पर कर्ज नहीं चुका पाता है, इसके लिए फसल उत्पादन लागत में भारी वृद्धि के बाद भी फसल उत्पादन में कमी, फसल का उचित मूल्य नहीं मिलना तथा मौसम की बेरुखी के चलते लगातार फसलों का बर्बाद होना, बर्बाद फसलों का उचित मुआवजा नहीं मिल पाना आदि हालात जिम्मेदार है। हमारे देश में आजकल किसानों के द्वारा नगदी फसलें उगाने का चलन ज्यादा चल गया है, जिनकी लागत बहुत अधिक होती है। जिसके चलते किसानों को बहुत पैसे की आवश्यकता होती है और देश में आज भी स्थिति यह है कि बैंकों व अन्य संस्थाओं से किसानों को उनकी जरूरत के मुताबिक कर्ज आसानी से नहीं मिल पाता है। जिसके चलते किसान 24 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत ब्याज पर निजी साहूकारों से ऋण लेकर अपनी खेती की जरूरतों को पूरा करता है, लेकिन फसल तैयार होने के बाद गलत नीतियों के चलते उचित मूल्य ना मिल पाने, फसल बर्बाद व उत्पादन कम होने के चलते किसानों की कर्ज अदा करने की स्थिति नहीं रह पाती है, जिसके चलते वो कर्ज के इस खतरनाक दलदल में बुरी तरह धंसता चला जाता हैं और जब उसकी सहने की क्षमता जवाब दे जाती हैं तो वो जिंदगी से खफा हो आत्महत्या करने जैसा कदम उठा कर असमय मौत को गले लगा लेता है, देखो मत मारो गोलियों से मुझे मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ, मेरी मौत कि वजह यही हैं कि मैं पेशे से एक किसान हूँ, अंत में यही कहुंगा की हम सभी अन्नदाता के खेतों से उपजा हुआ अन्न ही खाएंगे,ना की गूगल से डाउनलोड करके रोटी खाएंगे, इसलिए तरक्की तो खूब करें लेकिन अन्नदाता की उपेक्षा करके तरक्की करके हम कंकड़ मिट्टी पत्थर नहीं खाएंगे, इसलिए आज आपसे अनुरोध करता हूं कि अगर आप हम अन्नदाता के उपजाया हुआ अन्न को खाते हैं तो अन्नदाता के  न्याय के लिए आवाज उठाते रहे, साथ ही जितना संभव हो आप अपने सामर्थ्य अनुसार आगे बढ़कर अन्नदाता की मदद के लिए भी आगे आएं।

डॉ.विक्रम चौरसिया (क्रांतिकारी)  चिंतक/आईएएस मेंटर/ दिल्ली
लेखक सामाजिक आंदोलनो से जुड़े रहे हैं व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहे है ।

Monday, June 21, 2021

मिट्टी के बर्तनों से टूटता नाता:-

हिमाचल प्रदेश मण्डी  जिला के पांगणा उप-तहसील मुख्यालय से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित तोगड़ा गांव देवी-देवताओं के देवगण "तोगड़ा" के कारण तोगड़ा नाम से जाना जाता है।"तोगड़ा" शब्द दिव्य शक्ति सम्पन्न देवगण के लिए व्यवहृत होता है।यह लोकोपकारी देवगण कुचाली स्वभाव का माना गया है।देवगण तोगड़ा अपने अनुयायियों की मनोकामनाएँ पूर्ण करने के लिए प्रसिद्ध है। इस गांव के पास धार,डूंघरु,कणाओग,मंशवाड़ा,फरैटल,सराई, देहरी आदि उप-गाँव हैं।तोगड़ा गांव कुम्हारों का गांव है।तोगड़ा निवासी मेहर चंद शर्मा का कहना है कि जनश्रुति है कि रियासती काल में मस्ता नामक ब्राह्मण के पुत्र घुइंया ने कुम्हारों को यहाँ लाकर बसाया था।जवाहर नामक कुम्हार ने सबसे पहले तोगड़ा में बर्तन बनाने शुरू किए।सम्पूर्ण  पांगणा के साथ लगते,नाचण,सुंदर नगर,सराज के शिकारी देवी से सटे ऊपरी क्षेत्र के गांवों में तोगड़ा के बने घड़े,घड़ोलु,पारू,ढोरणु,संजीउठिया,दीपक,सींजीए,चीड़ के पेड़ों का बिरोजा निकालने में प्रयुक्त होने वाले गमले आदि की बहुत मांग  रहती थी।आज तोगड़ा मे मिट्टी के बर्तन निर्माण से जुड़े एक मात्र कुम्हार इन्द्रदेव का कहना है कि आधुनिक समाज का मिट्टी से बने बर्तनों से नाता टूटता जा रहा है।लेकिन फिर भी कुछ लोग अभी भी ऐसे बचे हैं जो इस पारंपरिक सास्कृतिक विरासत के कद्रदान हैं।वे बताते हैं कि उनके पूर्वज लोगों को गर्मियों में निर्जला एकादशी के दौरान घड़े तथा दीपावली के अवसर पर संजीउठिया,सींझीए भेंट करते थे तथा बदले में सम्बंधित परिवार के लोग कुम्हारों को अन्न व दालें भेंट करते थे।सुभाषपालेकर प्राकृतिक खेती और अद्भुत प्राचीन अनाज के प्रति किसानों को जागरूक कर रहे तोगड़ा गांव के धार उप-गाँव निवासी सोमकृष्ण गौतम व पज्याणु गांव की लीना शर्मा  का कहना है कि मिट्टी के बर्तनों के दान के बदले अनाज व दालें दान करने की यह समृद्ध प्रथा "कमीण" कहलाती है।इस "कमीण प्रथा" से व सास्कृतिक कला कौशल से कुम्हारों की व्यवहारिक रोजी-रोटी तो जुड़ी होती थी वहीं एक दूसरे के प्रति आदर,श्रद्धा भाव और सदव्यवहार आज भी परिलक्षित होता है।इन्द्रदेव ने बताया कि उन्हें गर्व है कि वह सास्कृतिक संक्रमण के इस दौर में भी अपनी इस विरासत को बचाए हुए हैं।वहीं तोगड़ा में इस कला कौशल को सुकेत व मण्डी रियासत के ऊपरी क्षेत्रों में पहचान दिलवाना वाले कुम्हार स्व.हेतराम के दामाद नेत्रसिह आज भी समय-समय पर बल्ह से तोगड़ा  आकर इस मिट्टी के वर्तन निर्माण की इस कला कौशल के माध्यम से कुम्हारों के सुनहरे भविष्य के प्रति सजग और आशावान हैं।तोगड़ा निवासी स्व.बालकुराम ने तो भज्जी रियासत में भी मिट्टी के बर्तनों का निर्माण कर इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष हिमेन्द्रबाली'हिम"जी व डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि मिट्टी के वर्तनो  का प्रयोग हमें प्रकृति और आरोग्य की ओर लौटाता है।एल्युमिनियम और स्टील के बर्तनों का जहाँ मनुष्य के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है वहीं मिट्टी के बर्तनों का शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं  पड़ता।मिट्टी के बर्तनों में भोजन बनाने से भोजन में मौजूद पोषक तत्व नष्ट नहीं होते हैं। खाने में पौष्टिकता व स्वाद बना रहता है तथा अपच और गैस की समस्या दूर होती है।कब्ज की समस्या से राहत मिलती है तथा कई बीमारियों से बचाव होता है।तोगड़ा निवासी देवेन्द्र शर्मा राजस्व अधिकारी तथा हरिश शर्मा हिमाचल पथ परिवहन निगम में परिचालक हैं।इनका कहना है कि मिट्टी के बर्तनों के कौशल को बढ़ावा देने से ग्रामीण  विकास व रोजगार के साथ विलुप्त होते जा रही इस धरोहर को बचाया जा सकता है।


राज शर्मा (संस्कृति संरक्षक)
आनी कुल्लू हिमाचल प्रदेश

भारतीय नए आईटी नियम मामला संयुक्त राष्ट्र पहुंचा - भारत का जवाब, नए नियम सोशल मीडिया प्रयोगताओं को सशक्त बनाने के अनुरूप

भारत के नए आईटी नियम मुद्दे पर यूएन एक्सपर्ट के पत्र पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी - एड किशन भावनानी

गोंदिया - भारत में पिछले कई दिनों से इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से टूल बॉक्स मुद्दे के बारे में बहुत लंबे समय तक टीवी चैनल और अखबारों के माध्यम से सुन और देख रहे थे। बहुत कम लोगों को समझ में आया होगा कि यह टूलबॉक्स मैटर आखिर है क्या?? दरअसल टूल बॉक्स यह 72 वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय राजधानी में किसानों की ट्रैक्टर रैली के तथाकथित हिंसक होने, ट्विटर के माध्यम से कुछ अफवाहें फैलने की बात सामने आई थी और कई ट्विटर अकाउंट पर रोक लगी और फिर देर रात तक हटा दी गई और सरकार का कहना था कि कुछ ट्विटर हैश एम प्लानिंग कमेंट जिनोमाइंड लिखने वाले अकाउंट हटाने संबंधी उसका निर्देश माने या फिर कार्रवाई के लिए तैयार रहें।...बस यही से मामला शुरू हुआ और हम बहुत दिनों से देख रहे हैं कि ट्विटर और भारत सरकार में यह मामला चल रहा है और सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 बनाया जो 26 मई 2021 से लागू हो चुका है इसके पूर्व सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी कानून (आईटी कानून), 2000 को इलेक्‍ट्रोनिक लेन-देन को प्रोत्‍साहित करने, ई-कॉमर्स और ई-ट्रांजेक्‍शन के लिये कानूनी मान्‍यता प्रदान करने, ई-शासन को बढ़ावा देने, कंप्यूटर आधारित अपराधों को रोकने तथा सुरक्षा संबंधी कार्य प्रणाली और प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करने के लिये अमल में लाया गया था। यह कानून 17 अक्टूबर, 2000 को लागू किया गया। यह मसौदा सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश के बाद आया है जिसमें सरकार को गूगल, फेसबुक, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया मंचोंके जरिये चाइल्ड पोर्नोग्राफी, बलात्कार,और सामूहिक बलात्कार जैसे यौन दुर्व्यवहार संबंधी ऑनलाइन सामग्री के प्रकाशन और इनके प्रसार से निपटने के लिये दिशा-निर्देश या मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करने के लिये मंज़ूरी दी गई थी। इस आर्टिकल को बनाने में। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की सहायता ली गई है उसके अनुसार कुछ सोशल मीडिया कंपनियों ने अपने रोडमैप चेंज कर सकारात्मक रवैया अपनाया परंतु ट्विटर के साथ मामला बढ़ता ही गया, और भारत सरकार ने भी इधर सख्त कदम अपनाया हुआ है। नए आईटी रूल्स का पालन नहीं करना ट्विटर को भारी पड़ गया है। ट्विटर को भारत में मिलने वाला लीगल प्रोटेक्शन यानी कानून सुरक्षा खत्म हो गई है। ट्विटर को भारत में मिलने वाला विकल्प प्रोटेक्शन यानी कानूनी सुरक्षा समाप्त हो गई, अब जब तक ट्विटर नियम लागू नहीं करता उसे कानूनी सुरक्षा नहीं मिलेगी। उधर गाजियाबाद में पुलिस ने पहली एफआईआर  दर्ज कर ली है।..यह मामला अब अब संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में पहुंच गया है।...संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों ने भारत सरकार को पत्र लिखकर सोशल मीडिया इंटरमी‌डियरियों, स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म और डिजिटल समाचार माध्यमों को विनियमित करने के लिए अधिसूचित नए आईटी नियमों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। 8 पृष्ठ का पत्र एक अधिकारी ने विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रचार और संरक्षण और प्रसार की विशेष दूत, क्लेमेंट न्यालेतसोसी वौले, शांतिपूर्ण सभा और संघ की स्वतंत्रता के अधिकारों पर विशेष दूत, और जोसेफ कैनाटासी, निजता के अधिकार पर विशेष प्रतिवेदक ने लिखा है।विशेष दूतों ने लिखा, हम उपयोगकर्ता-जनित सामग्री की निगरानी और उन्हें तेजी से हटाने के लिए कंपनियों पर दायित्वों के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं, जिससे हमें डर है कि अभिव्यक्ति कीस्वतंत्रता के अधिकार को कमजोर किया जा सकता है। पत्र में कहा गया है, हमें चिंता है कि इंटरमी‌डियरी अपने दायित्व को सीमित करने के लिए निष्कासन अनुरोधों का पालन करेंगे, या सामग्री को प्रतिबंधित करनेके लिए डिजिटल रिकग्‍निशन बेस्ड कंटेट रिमूवल सिस्टम या स्वचालित उपकरण विकसित करेंगे। जैसा कि हमारे पूर्ववर्तियों द्वारा जोर दिया गया है, इन तकनीकोंमें सांस्कृतिक संदर्भों का सटीक मूल्यांकन करने और नाजायज सामग्री की पहचान करने की संभावना नहीं है। हम चिंतित हैं कि छोटी समय सीमा, उपरोक्त आपराधिक दंड के साथ, सेवा प्रदाताओं को प्रतिबंधों से बचने के लिए एहतियात के तौर पर वैध अभिव्यक्ति को हटाने के लिए प्रेरित कर सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत के नए आईटी कानून इंटरनेशनल कॉवनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स (ICCPR) का उल्लंघन कर रहे हैं, जो कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधि का आधार है। बता दें कि इंटरनेशनल कॉवनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स (ICCPR) एक बहुपक्षीय संधि है जो नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए कई तरह की सुरक्षा प्रदान करती है। इस संधि को 16 दिसंबर 1966 को यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली रेजॉलूशन में अपनाई गई थी। कॉवनेंट की आर्टिकल 49 के मुताबिक, ICCPR 23 मार्च 1976 को प्रभाव में आया। ब्रिटेन भी 1976 मेंICCPR को फॉलो करने के लिए राजी हुआ। दिसंबर 2018 तक, 172 देशों ने कॉवनेंट को अपनाया है।...भारत ने 6 पृष्ठो में इसके जवाब में भारत के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में भारत के स्थायी मिशन ने भारत के नए आईटी मानदंडों के संबंध मेंमानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया शाखा द्वारा उठाई गई चिंताओं का जवाब दिया है। इसमें स्थायी मिशन ने जोर देकर कहा है कि भारत की लोकतांत्रिक साख अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है और विभिन्न हितधारकों के साथ उचित परामर्श के बाद नए मानदंडों को अंतिम रूप दिया गया है। भारत ने स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के हो रहे गलत इस्तेमाल के चलते नए नियम को लागू करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के लिखे जवाब में कहा है कि नए मीडिया प्लेटफॉर्म (सोशल मीडिया) की मदद से आतंकियों की भर्ती, अश्लील सामग्री का बढ़ना, वित्तीय फ्रॉड, हिंसा को बढ़ावा मिलना जैसे मामले सामने आए थे। ऐसे में सरकार आईटी नियमों में बदलाव के लिए मजबूर हुई।भारतीय संविधान के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी है। भारत के स्थायी मिशन ने अपने पत्र में कहा, स्वतंत्र न्यायपालिका और एक मजबूत मीडिया भारत के लोकतांत्रिक ढांचे का हिस्सा हैं। इसमें कहा गया है, भारत का स्थायी मिशन अनुरोध करता है कि संलग्न जानकारी को संबंधित विशेष प्रतिवेदकों के ध्यान में लाया जाए। भारत सरकार और ट्विटर नए मानदंडों को लेकर एक तरह से संघर्ष की स्थिति में हैं, जिसमें केंद्र ने कहा है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मानदंडों का पालन करने में विफल रहा है। हालांकि, कंपनी ने हाल ही में कहा कि उसने नए मध्यस्थ दिशानिदेशरें के तहत सुझाव के अनुसार एक अंतरिम मुख्य अनुपालन अधिकारी नियुक्त किया है। नए मध्यस्थ दिशानिर्देशों का पालन न करने के कारण ट्विटर ने भारत में मध्यस्थ मंच का अपना दर्जा भी खो दिया है। अतः उपरोक्त पूरे विवरण का अगर अध्यन कर उसका विश्लेषण करें तो नए आईटी नियम को लागू करने से सोशल मीडिया के प्रयोगताओं को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे और यूएन द्वारा लिखे गए पत्र की भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी हैं जो भारत के कानून व्यस्था को लागू करने की ओर सकारात्मक कदम हैं।

-संकलनकर्ता- कर विशेषज्ञ- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

बैलगाड़ी में सवार बारातियों संग पालकी से पहुंचे दूल्हा राजा



देवरिया में रविवार को निकली एक बारात ने पुरानी परंपराओं की याद ताजा कर दी। इस बारात में दूल्हा पालकी से निकला तो वहीं बाराती बैलगाड़ी से रवाना हुए। इस बारत को जिसने भी देखा देखता ही रह गया। जिस चौराहे से भी यह बारात गुजरी वहां मजमा लग गया।  कुछ बुजुर्ग तो बाराती व दुल्हा दोनों की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। 


रामपुर कारखाना विकासखंड के कुशहरी गांव के रहने वाले छोटेलाल पाल धनगर पुत्र स्व जवाहर लाल की शादी जिले के रुद्रपुर क्षेत्र के पकड़ी बाजार के नजदीक बलडीहा दल गांव निवासी रामानंद पाल धनगर की पुत्री सरिता से तय थी। रविवार को बारात रवाना होनी थी। इसके लिए कुशहरी में पिछले एक सप्ताह से तैयारी चल रही थी।  छोटेलाल ने अपनी बारात पुराने रीति-रिवाज और परंपरा से निकालने की जानकारी दुल्हन पक्ष को पहले ही दे दिया था। सुबह 11 बैल गाड़ियां सज-धज कर छोटे लाल के दरवाजे पर पहुंची तो लोग देखते ही रह गए।