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Saturday, May 7, 2022
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Thursday, May 5, 2022
ग्वालियर में बनेगा एरोपॉनिक आधारित आलू बीज उत्पादन केंद्र
नई दिल्ली, 05 मई (इंडिया साइंस वायर): फसलों को रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए जूझ रहे किसानों की मुश्किलें अब बढ़ते प्रदूषण और सिमटती कृषि भूमि की चुनौतियों से और बढ़ गई हैं। इन चुनौतियों से लड़ने के लिए कृषि वैज्ञानिक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का विकास करने में जुटे हैं, जिससे फसल उत्पादन और खाद्य सुरक्षा बनी रहे। नये जमाने की अभिनव कृषि तकनीकों में अपनी जगह बना चुकी एरोपॉनिक पद्धति इनमें प्रमुखता से शामिल है।
एक नयी पहल के अंतर्गत विषाणु रोग रहित आलू बीज उत्पादन के लिए एरोपॉनिक पद्धति के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ग्वालियर में एक नया केंद्र स्थापित किया जाएगा, जहाँ आलू के बीजों का उत्पादन करने के लिए खेतों की जोताई, गुड़ाई, और निराई जैसी परंपरागत प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं होगी। रोगों एवं कीटों के प्रकोप से मुक्त आलू के बीजों का उत्पादन यहाँ अत्याधुनिक एरोपॉनिक पद्धति से हवा में किया जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की शिमला स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीपीआरआई) के वैज्ञानिकों द्वारा आलू बीज उत्पादन की यह तकनीक विकसित की गई है।
ग्वालियर में एरोपॉनिक पद्धति आधारित आलू बीज
उत्पादन केंद्र स्थापित करने के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री
नरेंद्र सिंह तोमर एवं मध्य प्रदेश के उद्यानिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत
सिंह कुशवाह की उपस्थिति में म.प्र. सरकार के साथ बुधवार को नई दिल्ली में एक अनुबंध
किया गया है। कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) सचिव व आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा, आईसीएआर
के उप-महानिदेशक (बागवानी विज्ञान) डॉ आनंद कुमार सिंह, मध्य प्रदेश के अपर संचालक-बागवानी डॉ के.एस. किराड़, केंद्रीय आलू अनुसंधान
संस्थान के प्रभारी निदेशक डॉ एन.के. पांडे, और एग्रीनोवेट
इंडिया की सीईओ डॉ सुधा मैसूर भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
एरोपॉनिक्स, मिट्टी या समग्र माध्यम के उपयोग के बिना
हवा या पानी की सूक्ष्म बूंदों (Mist) के वातावरण में पौधों को उगाने की प्रक्रिया है। एरोपॉनिक के जरिये पोषक तत्वों का
छिड़काव मिस्टिंग के रूप में जड़ों में किया जाता है। पौधे का ऊपरी भाग खुली हवा व
प्रकाश के संपर्क में रहता है। एक पौधे से औसत 35-60 मिनिकन्द (3-10 ग्राम) प्राप्त किए जाते हैं। चूंकि, इस पद्धति में मिट्टी का उपयोग नहीं होता, तो मिट्टी से
जुड़े रोग भी फसलों में नहीं होते। वैज्ञानिकों का कहना है कि पारंपरिक प्रणाली की
तुलना में एरोपॉनिक पद्धति प्रजनक बीज के विकास में दो साल की बचत करती है।
यह पद्धति पारंपरिक रूप से प्रचलित
हाइड्रोपोनिक्स, एक्वापॉनिक्स और इन-विट्रो (प्लांट टिशू कल्चर)
से अलग है। हाइड्रोपॉनिक्स पद्धति में पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिजों की
आपूर्ति के लिए माध्यम के रूप में तरल पोषक तत्व सॉल्यूशन का उपयोग होता है। एक्वापॉनिक्स
में भी पानी और मछली के कचरे का उपयोग होता है। जबकि, एरोपॉनिक्स पद्धति में किसी
ग्रोइंग मीडियम के बिना फसल उत्पादन किया जाता है। इसे कभी-कभी एक प्रकार का
हाइड्रोपॉनिक्स मान लिया जाता है, क्योंकि पोषक तत्वों को प्रसारित करने के लिए
एरोपॉनिक्स में पानी का उपयोग किया जाता है।
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि कृषि के समग्र विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार अनेक योजनाओं पर मिशन मोड में काम कर रही है। किसानों को फसलों के प्रमाणित बीज समय पर उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि विषाणु रोग रहित आलू बीज उत्पादन की एरोपॉनिक पद्धति के माध्यम से उत्पादित आलू के बीजों की उपलब्धता देश के कई भागों में सुनिश्चित की गई है। उन्होंने कहा कि यह नई तकनीक आलू के बीज की आवश्यकता को पूरा करेगी, और मध्य प्रदेश के साथ-साथ संपूर्ण देश में आलू उत्पादन बढ़ाने में मददगार होगी।
मां
मां के प्यार सा संबल
फालसा फल क्या है?
*फालसा फल क्या है? – What is Falsa Fruit*
“उमंगों की उड़ान (लघुकथा)”
जानकी गोपाल की परवरिश को लेकर बहुत चिंतित थी। बहुत सारी समस्याओं से घिरे होने के कारण वह हर समय गोपाल के बारे में सोचा करती थी। वह अपने बच्चे को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य कौशल में भी निपुण बनाना चाहती थी। कुछ समय पश्चात उसकी अपनी पुरानी सहेली उमा से भेंट हुई। उमा एक सरकारी नौकरी में ऊँचे ओहदे पर थी। उमा में आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा था। उसके लिए उपलब्धियाँ और आलोचना सहज रूप से शिरोधार्य थी। जीवन के कड़वे अनुभव और संघर्ष के बावजूद भी उसने अपने चेहरे से मुस्कुराहट कम नहीं होने दी। समस्याएँ तो उसके जीवन में भी थी पर समस्याओं को पीछे छोडते हुए सपनों को साकार करने का गुण उसे आता था। जब जानकी उमा से मिली तो पता नहीं क्यों उसमें सकारात्मक विचारों के भाव उत्पन्न हो रहे थे। वह अपनी सहेली की निपुणता तो पहले से ही जानती थी। उसने अपने असमंजस विचार और मन की बात उमा के सामने रखी। उमा ने उसे विचारों के भटकाव से दूर केवल गोपाल पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कही। उसने उसे समझाया की यदि वह गोपाल को उत्साह वाले उमंगों की उड़ान देना चाहती है तो उसे अपने प्रयत्नों की ऊँचाई बढ़ानी होगी। असफलता का सफर ही जीवन में अकेला तय करना होता है। वही समय खुद से जूझने वाला होता है। सफलता की सजावट में तो सभी के रंग शामिल होते है। सच्चे मन से किए गए प्रयास कभी भी निष्फल नहीं होते है।
उमा की इन बातों ने जानकी के मन में उमंग और उत्साह के भावों का संचार किया और उसने सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ्ने का निर्णय लिया और आने वाले समय में गोपाल को मनचाहे सपनों की ऊँची उड़ान दी। इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है की कभी-कभी सही लोगों के सही समय पर मार्गदर्शन से हमारे मन के संशय दूर हो जाते है और इस संशय के जाल से मुक्त होकर एक उज्ज्वल पथ की नींव रख सकते है। कभी-कभी दूसरों के अनुभव भी जीवन में सफलता की श्रेष्ठ कुंजी सिद्ध हो सकते है। जीवन में प्रगति के पथ पर हमें अडिग रूप से चलना होता है जिसकी उड़ान आशावादी नजरिए और निरंतर संघर्ष से ही प्राप्त की जा सकती है।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
हमारी बगिया का टमाटर और स्वदेशी अभियान
-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
संजीव-नी
नहीं दिखता इन्हें,
मिट्टी के गोले का अंतहीन,
आकार रहित बस्तर,
बस्तर का महुआ,सागौन,
साल, बुलाते हैं,
लोग बस कविता कर जाते हैं,
घूम जाते हैं तीरथगढ़
कुटुमसर, चित्रकूट,
दो शब्द लिख जाते हैं कटाक्ष की तरह,
गंगालूर की घाटियों में,
लोदे सा मरता आदमी नहीं दिखता,
महुआ से टपकती मौत की आवाज,
नाले का कीचड़ पिता मारिया,
चरोटा भाजी से ओंटता पेट,
पेचिश की खुनीं रफ्तार,
बाल की खाल खाता लगोंटी धारी,
मिर्च और इमली के पानी से भरता पेट,
नहीं दिखती विलासी कविता को
नहीं दिखती एठती आदिवासी सुप्रिया की नसे,
नहीं दिखती मिट जाती कीचड़ सनी
आंखों में मौत की नींद,
नहीं गंदा थी तपते धूप से जलते,
आदिवासी मांस की,
वही पलाश, टेसू और गुलर
जो कैनवास देते हैं,
इन विलासी कविताओं को,
मौत देते हैं वही पतझड़ में,
लंगोटी को,
नहीं दिखता भूख से जंगल में मौत का तांडव,
इन्हें दिखती है राजधानी से आदी बालाओं के,
नग्न शरीर के लुभावने कटाव,
दिखती है उन्हें खुली जिंदगी,
मस्त व्यसन कारी,
महुआ बीनती,
मदहोश आदी बालाएं,
यूएसए हुई अंत जिंदगियां नहीं दिखती,
कीचड़ से पानी के कतरे तलाश थी
गरीब मोरिया नहीं दिखती,
अंतहीन पसीने की बूंदे ,
मौत का अनवरत आदिवासी सिलसिला
नहीं दिखता इन्हें,
इन्हें दिखती हैं कविताएं,
अपने बस्तर प्रेम की
बुद्धिजीवी छाप, और
घड़ियाली आंसुओं का सैलाब|
संजीव ठाकुर, रायपुर छ.ग.