Saturday, May 7, 2022

छपरा के 70 साल का बुजुर्ग बना दूल्हा, धूमधाम से निकली बारात, पिता की शादी में 8 बच्चे बने बाराती

(रवि कुमार भार्गव राज्य को-आर्डिनेटर अयोध्या टाइम्स बिहार)


पटना  : छपरा में हुई एक अनोखी शादी इन दिनों काफी सुर्खियों में है। 70 साल का शख्स जब दूल्हा बनकर अपनी दुल्हन को लाने निकला तो इस नजारे को देख लोग हैरान रह गए। गाजे-बाजे के साथ निकाली इस बारात में बड़ी संख्या में लोग डीजे की धुन पर झुमते दिखे। बारातियों में दूल्हे की सात बेटियां और एक बेटा भी शामिल हुए। रथ पर सवार दूल्हा जिस रास्ते से भी गुजरा लोग एक झलक पाने के लिए बेताब नजर आए।दरअसल, करीब 42 साल पहले एकमा के आमदाढ़ी निवासी राजकुमार सिंह की शादी बड़े ही धूमधाम के साथ हुई थी। शादी के बाद पहली बार जब पत्नी मायके गई तो बिना गौना के ही ससुराल चली आई। गौना की रस्म पूरी नहीं हो सकी। 42 साल बाद 5 मई को उनकी सात बेटियों और एक बेटे ने इस दिन को खास बना दिया। जब 70 साल के बुजुर्ग की बारात निकली तो देखने वाले देखते ही रह गए। राजकुमार सिंह बताते हैं कि 42 साल पहले 5 मई को उनकी शादी हुई थी। शादी के 42 साल बाद भी वे अपने ससुराल आमदाढ़ी नहीं गए थे और ना ही गौना की रस्म ही पूरी हो सकी थी। लेकिन 42 साल बाद उनकी बेटी और बेटे ने उस रस्म को पूरा कराया। बता दें कि पहली बार राजकुमार सिंह अपनी सात बेटियों के कारण चर्चा में आए थे। मामूली आटा-चक्की की दुकान चलाकर उन्होंने अपनी सात बेटियों को पुलिस और सेना में नौकरी दिलाने का काम किया। जिन सात बेटियों को लोग बोझ समझते थे आज वे पुलिस और सेना की वर्दी पहनकर देश की सेवा कर रही हैं। शादी के 42 साल गुजर जाने के बाद सात बेटियां और इंजीनियर बेटा मां-बाप की शादी की वर्षगांठ को खास बनाने के लिए गाजे-बाजे के साथ पिता की बारात लेकर निकल पड़े। इस अनोखी बारात के कारण 70 साल की उम्र में दूल्हा बने राजकुमार सिंह एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं।

वतन

       वतन 


इन हवाओ में बसे है प्राण मेरे दोस्तों
 इस वतन की मिटटी में है जान मेरी दोस्तों 
और भी दुनिआ के नक़्शे में हज़ारो मुल्क है 
पर तिरंगे की सबसे जुदा है शान मेरे दोस्तों 

आज बैठी है ये दुनिआ ढेर पर बारूद के 
कौन देगा अमन का पैगाम मेरे दोस्तों 
राह से भटके है जो वो भी राह पर आ जाएंगे 
कोई उनको भी दे प्यार का पैग़ाम मेरे दोस्तों 

क्या मिला है जंग से किसको कभी जो अब मिले 
कितने कलिंगो में निकाले अरमां मेरे दोस्तों 
कितने सिकंदर लूट कर दुनिआ को ख़ाली चल दिए 
ख़ाली हाथ में देखा नहीं कोई सामान मेरे दोस्तों 

चन्द सिक्को में न बेचो तुम वतन की आबरू 
पहले भी खादी हो चुकी बदनाम मेरे दोस्तों 
और इंसानो को ज़रूरत है तो बस इंसान की 
दूर कर दो हैवान का गुमान मेरे दोस्तों 

बख्श दो आबो हवा इस ज़हर को रोको यही 
आने वाली नस्लों  पे करो अहसान मेरे दोस्तों 
दुनिआ की नज़रे जब तलाशेंगी धरम का रास्ता 
विश्व गुरु का तब मिलेगा सम्मान मेरे दोस्तों

हरविंदर सिंह गुलाम

Thursday, May 5, 2022

ग्वालियर में बनेगा एरोपॉनिक आधारित आलू बीज उत्पादन केंद्र

 नई दिल्ली, 05 मई (इंडिया साइंस वायर): फसलों को रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए जूझ रहे किसानों की मुश्किलें अब बढ़ते प्रदूषण और सिमटती कृषि भूमि की चुनौतियों से और बढ़ गई हैं। इन चुनौतियों से लड़ने के लिए कृषि वैज्ञानिक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का विकास करने में जुटे हैं, जिससे फसल उत्पादन और खाद्य सुरक्षा बनी रहे। नये जमाने की अभिनव कृषि तकनीकों में अपनी जगह बना चुकी एरोपॉनिक पद्धति इनमें प्रमुखता से शामिल है।

 एक नयी पहल के अंतर्गत विषाणु रोग रहित आलू बीज उत्पादन के लिए एरोपॉनिक पद्धति के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ग्वालियर में एक नया केंद्र स्थापित किया जाएगा, जहाँ आलू के बीजों का उत्पादन करने के लिए खेतों की जोताई, गुड़ाई, और निराई जैसी परंपरागत प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं होगी। रोगों एवं कीटों के प्रकोप से मुक्त आलू के बीजों का उत्पादन यहाँ अत्याधुनिक एरोपॉनिक पद्धति से हवा में किया जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की शिमला स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीपीआरआई) के वैज्ञानिकों द्वारा आलू बीज उत्पादन की यह तकनीक विकसित की गई है।

ग्वालियर में एरोपॉनिक पद्धति आधारित आलू बीज उत्पादन केंद्र स्थापित करने के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एवं मध्य प्रदेश के उद्यानिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सिंह कुशवाह की उपस्थिति में म.प्र. सरकार के साथ बुधवार को नई दिल्ली में एक अनुबंध किया गया है। कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) सचिव व आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा, आईसीएआर के उप-महानिदेशक (बागवानी विज्ञान) डॉ आनंद कुमार सिंह, मध्य प्रदेश के अपर संचालक-बागवानी डॉ के.एस. किराड़, केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के प्रभारी निदेशक डॉ एन.के. पांडे, और एग्रीनोवेट इंडिया की सीईओ डॉ सुधा मैसूर भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

एरोपॉनिक्स, मिट्टी या समग्र माध्यम के उपयोग के बिना हवा या पानी की सूक्ष्म बूंदों (Mist) के वातावरण में पौधों को उगाने की प्रक्रिया है। एरोपॉनिक के जरिये पोषक तत्वों का छिड़काव मिस्टिंग के रूप में जड़ों में किया जाता है। पौधे का ऊपरी भाग खुली हवा व प्रकाश के संपर्क में रहता है। एक पौधे से औसत 35-60 मिनिकन्द (3-10 ग्राम) प्राप्त किए जाते हैं। चूंकि, इस पद्धति में मिट्टी का उपयोग नहीं होता, तो मिट्टी से जुड़े रोग भी फसलों में नहीं होते। वैज्ञानिकों का कहना है कि पारंपरिक प्रणाली की तुलना में एरोपॉनिक पद्धति प्रजनक बीज के विकास में दो साल की बचत करती है।

यह पद्धति पारंपरिक रूप से प्रचलित हाइड्रोपोनिक्स, एक्वापॉनिक्स और इन-विट्रो (प्लांट टिशू कल्चर) से अलग है। हाइड्रोपॉनिक्स पद्धति में पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिजों की आपूर्ति के लिए माध्यम के रूप में तरल पोषक तत्व सॉल्यूशन का उपयोग होता है। एक्वापॉनिक्स में भी पानी और मछली के कचरे का उपयोग होता है। जबकि, एरोपॉनिक्स पद्धति में किसी ग्रोइंग मीडियम के बिना फसल उत्पादन किया जाता है। इसे कभी-कभी एक प्रकार का हाइड्रोपॉनिक्स मान लिया जाता है, क्योंकि पोषक तत्वों को प्रसारित करने के लिए एरोपॉनिक्स में पानी का उपयोग किया जाता है।

 केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि कृषि के समग्र विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार अनेक योजनाओं पर मिशन मोड में काम कर रही है। किसानों को फसलों के प्रमाणित बीज समय पर उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि विषाणु रोग रहित आलू बीज उत्पादन की एरोपॉनिक पद्धति के माध्यम से उत्पादित आलू के बीजों की उपलब्धता देश के कई भागों में सुनिश्चित की गई है। उन्होंने कहा कि यह नई तकनीक आलू के बीज की आवश्यकता को पूरा करेगी, और मध्य प्रदेश के साथ-साथ संपूर्ण देश में आलू उत्पादन बढ़ाने में मददगार होगी।

 मध्य प्रदेश के उद्यानिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सिंह कुशवाह ने बताया कि इस पहल से प्रदेश में गुणवत्तापूर्ण बीजों की माँग को पूरा किया जा सकेगा। मध्य प्रदेश के बागवानी आयुक्त ई. रमेश कुमार ने कहा कि ग्वालियर में एक जिला- एक उत्पाद पहल के अंतर्गत आलू फसल का चयन किया गया है। उन्होंने बताया कि राज्य को लगभग चार लाख टन बीज की आवश्यकता है, जिसे 10 लाख मिनी ट्यूबर उत्पादन क्षमता वाली इस तकनीक से पूरा किया जाएगा।

 आलू विश्व की सबसे महत्वपूर्ण गैर-अनाज फसल है, जिसकी वैश्विक खाद्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका है। मध्य प्रदेश आलू का छठा प्रमुख उत्पादक राज्य है, और राज्य का मालवा क्षेत्र आलू उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आलू प्रसंस्करण के आदर्श गंतव्य के रूप में भी मध्य प्रदेश उभरा है। इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, देवास, शाजापुर एवं भोपाल के अलावा छिंदवाड़ा, सीधी, सतना, रीवा, सरगुजा, राजगढ़, सागर, दमोह, जबलपुर, पन्ना, मुरैना, छतरपुर, विदिशा, रतलाम और बैतूल प्रदेश के प्रमुख आलू उत्पादक क्षेत्रों में शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)

मां

मां के प्यार सा संबल

नहीं जहां में,
दिवस हो या निशा
मां बच्चों के हर्ष हेतु
करती चिंतन मनन,
अहसास व्यथा का
तभी तक होता
यदा मां के प्रेम का
मरहम व्यथा पे लगता,
वरना दुनियां तो 
बना देती दर्द का पर्याय
मां के छांव से दूर होते ही,
जीवन से विलुप्त हो जाता
निश्छल प्रेम का अध्याय।
किंचित तबीयत नासाज होने पे,
अपार परवाह करती मां,
संपूर्ण धरा हेतु 
ईश्वर का वरदान मां,
अपार अनुराग तिरोहित
मां के क्रुद्ध में ,
क्या कोई करे मां पे 
रचना सृजन,
हम सब मां के सृजन।

                (स्वरचित)
                 सविता राज

फालसा फल क्या है?

 *फालसा फल क्या है? – What is Falsa Fruit*



फालसा के कई फायदे होते हैं, जो सेहत के लिए अच्छा होता है। इसके शरबत को गर्मियों के दिनों में मुख्य रूप से सेवन करना चाहिए। दरअसल,डॉक्टर की मानें, तो यह शरीर की गर्मी को कम करने का काम कर सकता है। साथ ही इलेक्ट्रोलाइट को भी संतुलित बनाए रखता है।
*फालसा फल के फायदे – Benefits of Falsa Fruit*
*1. गठिया*
फालसा फल का इस्तेमाल गठिया से संबंधित परेशानी को कम करने के लिए किया जा सकता है। दरअसल, फालसा फल में एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं , जो गठिया की वजह से जोड़ों में होने वाली सूजन और दर्द को कम करने में मदद कर सकते हैं। एक शोध के मुताबिक, फालसा फल के अर्क में एंटी-अर्थराइटिस प्रभाव पाया जाता है, क्योंकि इसमें फ्लेवोनोइड्स, फेनोलिक यौगिक और विटामिन सी पाया जाता है । वहीं, गठिया में फालसा पेड़ की छाल को भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है l
*2. कैंसर*
फालसा फल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स हमारे शरीर में बतौर एंटी कैंसर एजेंट काम करते हैं। इसलिए, फालसा फल का सेवन आपको कैंसर जैसी प्राणघातक बीमारी से भी बचा सकता है। माना जाता है कि इस फल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स ब्रेस्ट और लीवर कैंसर से हमारे शरीर की रक्षा कर सकते हैं ।
*3. डायबिटीज*
फालसा फल के रस में लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स पाया जाता है, जिसकी मदद से डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। दरअसल, लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ में मौजूद कार्बोहाइड्रेट शरीर में काफी धीरे-धीरे टूटते हैं, जिससे शरीर में ग्लूकोज लेवल एक दम से नहीं बढ़ता है। वहीं, ताजा फालसा फल में पॉलीफेनोल भी डायबिटीज के लिए लाभदायक हो सकते हैं ।
*4. अस्थमा*
अस्थमा और सांस से संबंधित अन्य समस्याओं के इलाज में फालसा फल के जूस को सहायक पाया गया है । फालसा फल में मौजूद फाइटोकेमिकल्स कंपाउंड श्वास संबंधी परेशानियों को कम कर सकता है। खासकर, फालसा के गर्म जूस का अदरक और काले नमक के साथ सेवन श्वास संबंधी परेशानी को दूर करने में फायदेमंद माना जाता है।
*5. मजबूत हड्डियां*
फालसा फल कैल्शियम से समृद्ध होता है, जिसकी वजह से इसे हड्डी स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। यह हड्डियों को मजबूत करने के साथ ही हड्डियों के घनत्व यानी डेंसिटी को बढ़ाने में भी मदद कर सकता है।
*6. हृदय*
फालसा फल में मौजूद फाइबर आपको हृदय संबंधी (कार्डियोवसकुलर) रोगों से बचाने में मदद करता है। फालसा फल और जूस में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट भी हृदय से संबंधित बीमारियों से लड़ने में सहायक साबित हो सकते हैं। यह लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला खाद्य पदार्थ है, जो कोरोनरी हृदय रोग और मोटापे के जोखिम को कम करने में मदद करता है। साथ ही इसमें पोटेशियम की भी अच्छी मात्रा होती है, जो रक्तचाप को नियंत्रित रखने का काम कर सकता है ।
*7. पेट दर्द*
पेट दर्द होने पर भी फालसा फल के सेवन की सलाह दी जाती है। दरअसल, इसमें फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो पेट दर्द में राहत पहुंचा सकता है। इसलिए, फालसा फल या इसके जूस का सेवन करने से पेट दर्द से राहत मिल सकती है । इसके साथ ही फालसा फ्रूट अपने कूलिंग एजेंट और भूख बढ़ाने व पाचन में सहायक माना जाता है । ऐसे में अगर आपका कभी पेट दर्द शरीर की गर्मी या अपच से हो रहा है, तो ऐसी स्थिति में भी फालसा उसे ठीक करने में मदद कर सकता है।
*8. डायरिया*
फालसा फल का सेवन डायरिया में लाभदायक माना जाता है  वहीं, फालसा के पेड़ की छाल का इस्तेमाल दस्त रोकने के लिए किया जाता रहा है । दरअसल, फालसा में पोटैशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो डायरिया में राहत दिलाने में मदद कर सकता है ।
*9. घाव*
फालसा आपके घाव भरने में भी मदद करता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि फालसा की पत्तियों को घाव और एक्जिमा को ठीक करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। फालसा की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाएं और कुछ मिनट के लिए छोड़ दें, ताकि वो अपना काम कर सकें । वहीं, फालसा में विटामिन-सी पाया जाता है, जो घाव भरने में सहायक माना जाता है। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि घावों पर इसकी पत्तियों का लेप और इसका सेवन दोनों तरीके से इस समस्या से राहत दिलाने में सहायक साबित हो सकते हैं ।
*10. एनीमिया*
फालसा फ्रूट में आयरन भरपूर होता है, इसलिए इसके सेवन से एनीमिया के इलाज में मदद मिल सकती है। इसमें मौजूद आयरन आपके शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने में मदद कर सकता है, जिसकी कमी की वजह से एनीमिया होता है। एनीमिया की वजह से थकान और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं ।
*फालसा फल के पौष्टिक तत्व – Falsa Fruit Nutritional Value* 
फालसा फल के फायदे जानने के बाद अब बात करते हैं इसमें मौजूद पौष्टिक तत्वों की। नीचे  देखें प्रति 100 ग्राम फालसा फल में कितनी मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं ।
*पोषक तत्वमात्रा* प्रति 100 ग्रामकैलोरी (ऊर्जा)72 kcal , कुल फैट0.1g , कार्बोहाइड्रेट21.1g , ऐश1.1g , फाइबर5.53g , कैल्शियम 136mg, आयरन1.08mg , फास्फोरस24.2mg , पोटैशियम372mg , सोडियम17.3mg , विटामिन-बी10.02mg ,विटामिन-बी20.264mg , विटामिन-बी30.825mg , विटामिन – सी22 mg, विटामिन-ए16.11mg
 
इतने पोषक तत्वों के मौजूद होने के बाद भी फालसा फल के नुकसान हमारे शरीर को उठाने पड़ सकते हैं। आपको फालसा फल के नुकसान से पहले इसके उपयोग के बारे में बता देते हैं।
*फालसा फल का उपयोग – How to Use Falsa Fruit*
1.फालसा फल को आप अपने आहार में कई तरीके से शामिल कर सकते हैं।
2.सबसे आसान तरीका तो फालसा को सीधे फल की तरह खाना है। ये इतने छोटे और नरम होते हैं कि एक दम आपके मुंह में घुल जाएंगे।
3.इसका आप शरबत बनाकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें थोड़ा-सा नींबू और पुदीना स्वाद के लिए मिलाया जा सकता है।
4.फालसा के जूस में हल्का-सा गुलाब भी मिलाया जा सकता है ।
5.आप फालसा को फ्रूट सलाद में मिक्स करके खा सकते हैं।
6.इसका इस्तेमाल आप आइसक्रीम, मीठा ब्रेड और अन्य पदार्थों के लिए मीठा सिरप बनाने के लिए भी कर सकते हैं ।
7.आप फालसा को कभी भी अपने आहार में संयमित मात्रा में शामिल कर सकते हैं।
फालसा फल के बारे में आप ऊपर दी गई जानकारी के माध्यम से काफी कुछ जान चुके हैं। बस अब जरूरत है, तो फालसा फल के नुकसान जानने की, क्योंकि किसी भी फल का सेवन करते समय उसके दुष्प्रभाव आपको पता होने चाहिए, ताकि उसी हिसाब से फल का सेवन किया जाए।
*फालसा फल के नुकसान – Side Effects of Falsa Fruit in Hindi*
फालसा खाने के फायदे जानने के बाद अब इसके नुकसान के बारे में बात कर लेते हैं, जो इस प्रकार हैं l
फालसा में एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक गतिविधि पाई जाती है, जिसकी वजह से ब्लड ग्लूकोज लेवल कम होता है। ऐसे में इसके अधिक सेवन से आपको हाइपरग्लाइसेमिक (लो ग्लूकोज लेवल) की परेशानी हो सकती है ।
आपको अगर फालसा में मौजूद किसी भी पोषक तत्व से एलर्जी है, तो आपके शरीर में इसका दुष्प्रभाव नजर आ सकता है।
जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि फालसा फल में काफी कैल्शियम होता है, ऐसे में इसे ज्यादा खाने से आपके शरीर में कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होने की आशंका रहती है। इससे आपको हाइपरलकसीमिया हो सकता है। हाइपरलकसीमिया की वजह से आपकी किडनी पर असर पड़ सकता है।
*डाॅ.रवि नंदन मिश्र*
*असी.प्रोफेसर एवं कार्यक्रम अधिकारी*
*राष्ट्रीय सेवा योजना*
( *पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज,वाराणसी*) *सदस्य- 1.अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी,*
*2. भास्कर समिति,भोजपुर ,आरा*
*3.अखंड शाकद्वीपीय* 
*4.चाणक्य राजनीति मंच ,वाराणसी*
*5.शाकद्वीपीय परिवार ,सासाराम*
*6. शाकद्वीपीय  ब्राह्मण समाज,जोधपुर*
*7.अखंड शाकद्वीपीय एवं*
*8. उत्तरप्रदेशअध्यक्ष - वीर ब्राह्मण महासंगठन,हरियाणा*

“उमंगों की उड़ान (लघुकथा)”

            जानकी गोपाल की परवरिश को लेकर बहुत चिंतित थी। बहुत सारी समस्याओं से घिरे होने के कारण वह हर समय गोपाल के बारे में सोचा करती थी। वह अपने बच्चे को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य कौशल में भी निपुण बनाना चाहती थी। कुछ समय पश्चात उसकी अपनी पुरानी सहेली उमा से भेंट हुई। उमा एक सरकारी नौकरी में ऊँचे ओहदे पर थी। उमा में आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा था। उसके लिए उपलब्धियाँ और आलोचना सहज रूप से शिरोधार्य थी। जीवन के कड़वे अनुभव और संघर्ष के बावजूद भी उसने अपने चेहरे से मुस्कुराहट कम नहीं होने दी। समस्याएँ तो उसके जीवन में भी थी पर समस्याओं को पीछे छोडते हुए सपनों को साकार करने का गुण उसे आता था। जब जानकी उमा से मिली तो पता नहीं क्यों उसमें सकारात्मक विचारों के भाव उत्पन्न हो रहे थे। वह अपनी सहेली की निपुणता तो पहले से ही जानती थी। उसने अपने असमंजस विचार और मन की बात उमा के सामने रखी। उमा ने उसे विचारों के भटकाव से दूर केवल गोपाल पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कही। उसने उसे समझाया की यदि वह गोपाल को उत्साह वाले उमंगों की उड़ान देना चाहती है तो उसे अपने प्रयत्नों की ऊँचाई बढ़ानी होगी। असफलता का सफर ही जीवन में अकेला तय करना होता है। वही समय खुद से जूझने वाला होता है। सफलता की सजावट में तो सभी के रंग शामिल होते है। सच्चे मन से किए गए प्रयास कभी भी निष्फल नहीं होते है।

            उमा की इन बातों ने जानकी के मन में उमंग और उत्साह के भावों का संचार किया और उसने सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ्ने का निर्णय लिया और आने वाले समय में गोपाल को मनचाहे सपनों की ऊँची उड़ान दी। इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है की कभी-कभी सही लोगों के सही समय पर मार्गदर्शन से हमारे मन के संशय दूर हो जाते है और इस संशय के जाल से मुक्त होकर एक उज्ज्वल पथ की नींव रख सकते है। कभी-कभी दूसरों के अनुभव भी जीवन में सफलता की श्रेष्ठ कुंजी सिद्ध हो सकते है। जीवन में प्रगति के पथ पर हमें अडिग रूप से चलना होता है जिसकी उड़ान आशावादी नजरिए और निरंतर संघर्ष से ही प्राप्त की जा सकती है।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

हमारी बगिया का टमाटर और स्वदेशी अभियान

-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’



अचानक जब देश में पहला लॉक डाउन लगा तब जनता असहज हो गई। लोगों को ऐसीं परिस्थितियों का न तो अभ्यास था न अशंका। अनाज, दालें तो कुछ लोगों के घर में थीं किन्तु शब्जी, फल आदि की किल्लत हो गई थी। उसपर ऐसीं अफवाहें भी आती थीं कि कुछ शरारती तत्त्व हाथ ठेले में आलू आदि शब्जियाँ और सेव जैसे फलों पर थूक कर बेच रहे हैं, जिससे कोविड अधिक से अधिक लोगों में फैले। ऐसे में संभ्रान्त लोग अधिक सतर्क थे। बुन्देलखण्ड के जैनों ने कहा हमारे तो पर्यूषण पर्व चल रहे हैं। पर्व के दिनों में यहाँ की जैन समाज के यहाँ हरी शब्जी नहीं बनती है। किन्तु अधिकांश लोग शब्जी और फलों के अभाव में परेशान थे। जिनके गांवों के लोगों से निजी संपर्क थे वे उनसे यदा कदा शब्जी मंगवा लेते थे। जिन्होंने अपने यहाँ बगिया लगा रखी है, लॉन या टेरिस पर फल-शब्जी बाले पेड़-पौधे लगा रखे हैं और उनमें थोड़े भी फल या शब्जी लग रहे थे वे बहुत महत्वपूर्ण हो गये थे। हमारे यहाँ भी टेरिस पर टमाटर लग रहे थे। ताज्जुब था कि इस वर्ष के सीजन में अच्छे टमाटर लग रहे थे और लगभग एक माह तक उन्होंने हमारी स्वदेशी क्या स्वोत्पादित शब्जी के रूप में रसोई की शान बढ़ाई।
ये साधारण संदर्भ नहीं है। यह टमाटर हमें स्वदेशी के महत्व को उद्घाटित करता है। उसने एहसास दिलाया है कि विपत्ति के समय स्वदेशी और स्वकीय ही काम आयेगा। अपनी बगिया का टमाटर कहता है कि स्वावलम्बी बनो, स्वदेशी अपनाओ। कब तक दूसरों पर निर्भर रहोगे। जिसके ऊपर निर्भर रहोगे वह कभी भी भृकुटी चढ़ाकर आपूर्ति रोक सकता है। स्वदेशी उत्पाद हमेशा हमारा साथ देंगे। बाहर के देशों से लड़ाकू विमान, टैंक आदि खरीदते हैं, तो कल-पुर्जा भी उन्हीं से लेने की मजबूरी होती है। यदि किन्हीं परिस्थितियों के कारण उन्होंने कल-पुर्जे ही भेजना बंद कर दिये तो हमारे वे विमान आदि बेकार हो जायेंगे। प्रत्येक क्षेत्र में हमें स्वदेशी अपना कर स्वावलम्बी बनना होगा। लॉक डाउन के दौरान एक-दो नामी गिरामी हस्तियाँ संपन्नता रहते हुए भी इलाज के लिए विदेश नहीं जा सकीं, देहान्त हो गया। हमें अपनी स्वास्थ्य सेवायें भी अन्य देशों से अधिक सुदृढ़ करना होंगीं, जिससे किसी को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अन्य देश न जाना पड़े। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने चीन से तना-तनी के समय से स्वदेशी को बहुत बढ़ावा दिया है। हम सभी को अपने अपने स्तर से स्वदेशी अभियान में सहयोग करना चाहिए।

संजीव-नी

नहीं दिखता इन्हें,

 मिट्टी के गोले का अंतहीन,

 आकार रहित बस्तर,

 बस्तर का महुआ,सागौन,

 सालबुलाते हैं,

 लोग बस कविता कर जाते हैं,

 घूम जाते हैं तीरथगढ़

 कुटुमसरचित्रकूट,

 दो शब्द लिख जाते हैं कटाक्ष की तरह,

 गंगालूर की घाटियों में,

 लोदे  सा मरता आदमी नहीं दिखता,

महुआ से  टपकती मौत की आवाज,

 नाले का कीचड़ पिता मारिया,

चरोटा भाजी से ओंटता पेट,

पेचिश की खुनीं  रफ्तार,

बाल की खाल खाता लगोंटी धारी,

मिर्च और  इमली के पानी से भरता पेट

नहीं दिखती विलासी कविता को

नहीं दिखती एठती आदिवासी सुप्रिया की नसे,

 नहीं दिखती मिट जाती  कीचड़ सनी

 आंखों में मौत की नींद,

 नहीं गंदा थी तपते  धूप से जलते,

आदिवासी मांस की,

 वही  पलाशटेसू और गुलर 

जो कैनवास देते हैं,

 इन विलासी कविताओं को,

 मौत देते हैं वही पतझड़ में,

 लंगोटी को,

 नहीं दिखता भूख से जंगल में मौत का तांडव,

 इन्हें दिखती है राजधानी से आदी  बालाओं के,

नग्न शरीर के लुभावने कटाव,

 दिखती है उन्हें  खुली जिंदगी,

मस्त व्यसन कारी,

महुआ बीनती,

 मदहोश आदी  बालाएं

यूएसए हुई अंत जिंदगियां नहीं दिखती,

 कीचड़ से पानी के कतरे तलाश थी

 गरीब मोरिया नहीं दिखती,

 अंतहीन पसीने की बूंदे ,

 मौत का अनवरत आदिवासी सिलसिला

 नहीं दिखता इन्हें,

 इन्हें  दिखती हैं कविताएं,

 अपने बस्तर प्रेम की

 बुद्धिजीवी छापऔर

 घड़ियाली आंसुओं का सैलाब|

संजीव ठाकुर, रायपुर छ.ग.


Wednesday, May 4, 2022

आम की बागवानी को प्रदेश सरकार दे रही है बढ़ावा

अयोध्या टाईम्स एस० बी० यादव ब्यूरो चीफ अमेठी। 04 मई 2022,* 

आम भारतवर्ष का ही नहीं, देश-विदेश की अधिकांश जनसंख्या का भी एक पसंदीदा और सबसे लोकप्रिय फल है। इसकी सुवास, उपलब्ध पोषक तत्वों, विभिन्न क्षेत्रों एवं जलवायु में उत्पादन क्षमता, आकर्षक रंग, विशिष्ट स्वाद और मिठास विभिन्न प्रकार के बनाये जाने वाले खाद्य पदार्थ आदि विशेषताओं के कारण इसे फलों का राजा (King of Fruits) की उपाधि से विभूषित किया गया है। आम लगभग 3-10 मी0 तक की ऊँचाई प्राप्त करने वाला सदाबहार वृक्ष है। भारत आम उत्पादन में विश्व के अनेक देशों में से एक अग्रणी देश है। विश्व के कुल आम उत्पादन में से 40 प्रतिशत से अधिक आम का उत्पादन भारत में होता है। भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश, प्रमुख आम उत्पादक राज्य है। इसके अतिरिक्त यह छोटे स्तर पर लगभग सभी मैदानी क्षेत्रों में उगाया जाता है। आम उत्पादन में उचित परिपक्वता निर्धारण के साथ वैज्ञानिक ढंग से तुड़ाई, सुरक्षित रखरखाव एवं पैकेजिंग बेहतर प्रबंधन विपणन को दृष्टिगत रखते हुए उ0प्र0 सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आम उत्पादन को बढ़ावा दे रहे है। आम (मैंजीफेरा इंडिका एल0) भारतीय उप-महाद्वीप का एक महत्वपूर्ण फल है तथा भारत में विश्व का सबसे अधिक आम उत्पादन होता है। बहुपयोगी होने के कारण ही आम का भारत की संस्कृति से गहरा संबंध रहा है। आम का उत्पादन भारत में प्राचीन काल से ही किया जा रहा है। भारत में इस फल की समाज के आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में इसकी बहुमुखी उपयोगिता के कारण ही विशेष महत्व है। आम का फल सभी जनमानस को सरलता से उपलब्ध होता है। इस फल की पौष्टिकता व विभिन्न गुणों के कारण ही यह सभी लोगों की पसन्द है। आम कच्चा हो या पक्का हो सभी तरह से प्रयोग किया जाता है। आम का अचार तो विश्व प्रसिद्ध है ही साथ में उसकी गुठली के अचार आदि बनते हैं। आम की खट्ठी-मीठी चटनी, आम का पना, आम का जूस/शेक, आइसक्रीम, खटाई, रायता, आम रस का सुखाकर बनाया गया अमावट, आदि विभिन्न खाद्य पदार्थ बनाये जाते हैं। आम उ0प्र0 की मुख्य बागवानी फसल है। उ0प्र0 के 280 हजार हे0 क्षेत्रफल में आम का बगीचा है। प्रदेश में लगभग 48 लाख मी0टन से अधिक आम उत्पादित होता है, जो देश के कुल उत्पादन का लगभग 83 प्रतिशत है। आम उत्पादन की दृष्टि से उ0प्र0 के बाद आंध्र प्रदेश, बिहार एवं कर्नाटक, महाराष्ट्र आम उत्पादन करने वाले अग्रणी राज्य है। उ0प्र0 में सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद, वाराणसी, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, सुल्तानपुर जनपद आम फल पट्टी क्षेत्र घोषित है, जहां पर दशहरी, लंगड़ा, लखनऊ सफेदा, चौसा, बाम्बे ग्रीन रतौल, फजरी, रामकेला, गौरजीत, सिन्दूरी आदि किस्मों का उत्पादन किया जा रहा है। मलिहाबाद फल पट्टी क्षेत्र के 26,400 हे0 क्षेत्रफल में दशहरी, लंगड़ा, लखनऊ सफेदा, चौंसा उत्पादित किया जा रहा है। आम उष्ण तथा उपोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में पैदा किया जा सकता है। भारत में इसकी खेती समुद्र तल से 1500 मी0 की ऊॅचाई तक वाले हिमालय क्षेत्र में की जा सकती है। लेकिन व्यावसायिक दृष्टि से समुद्र तल से 600 मी0 तक की ही ऊचाई में अधिक सफलता से आम पैदा किया जा सकता है। आम के पौधों का जड़ विन्यास काफी गहराई तक जाता है। अतः इसके विकास के लिए कम से कम 2 मी0 तक की गहराई की अच्छी मिट्टी आवश्यक है। आम के लिए सबसे उपयुक्त भूमि गहरी, उचित निकास वाली दोमट मानी जाती है। उत्तर प्रदेश में प्रमुख व्यावसायिक प्रजातियों के आम उत्पादित होते हैं। प्रदेश की दशहरी प्रजाति की उत्पत्ति उ0प्र0 के लखनऊ जनपद के समीप दशहरी गॉव से हुई है। उत्तर भारत की यह प्रमुख व्यावसायिक प्रजाति का फल है। फल मध्यम आकार के तथा फलों का रंग हल्का पीला होता है। फलों की गुणवत्ता एवं भण्डारण तथा विपणन के लिए प्रदेश सरकार ने मलिहाबाद में विशेष व्यवस्था की हैं प्रदेश की लॅगड़ा प्रजाति उत्तर प्रदेश के बनारस जनपद से हुई है। उत्तर भारत की यह प्रमुख व्यावसायिक प्रजाति है। फल मध्यम आकार के तथा फलों का रंग हल्का पीला होता है फलों की गुणवत्ता एवं भण्डारण अच्छा है। यह प्रजाति मध्य मौसम में पकनें वाली होती है। लखनऊ सफेदा प्रजाति के फल 15 जून के बाद पकना शुरू होते हैं। फल मध्यम आकार के, पीले रंग के तथा अच्छी मिठास वाले होते हैं। चौसा आम की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के सण्डीला स्थान से हुई है। इसके स्वाद व रंग के कारण उत्तर भारत में इसका व्यावसायिक उत्पादन किया जा रहा है। फलों का आकार लम्बा, रंग हल्का पीला होता है। यह देर से पकने वाली प्रजाति है। प्रदेश में आम्रपाली प्रजाति दशहरी एवं नीलम के संकरण से प्राप्त, बौनी एवं नियमित फल देने वाली संकर प्रजाति है। यह सघन बागवानी के लिए उपयुक्त प्रजाति है। एक हेक्टेयर में 1600 पौधे रोपित किया जा सकते हैं तथा 16 टन से अधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है। यह देर से पकने वाली प्रजाति है। मल्लिका प्रजाति नीलम एवं दशहरी के संकरण से प्राप्त संकर प्रजाति है फलों का आकार लम्बा एवं भण्डारण क्षमता अच्छी है। यह मध्य मौसम में पकने वाली प्रजाति है। प्रदेश में कलमी एवं देशी आम का भी अच्छा उत्पादन होता है। प्रदेश सरकार आम की फसल के उत्पादन करने वाले किसानों को भरपूर सहायता कर रही है। उ0प्र0 राज्य औद्यानिक सहकारी विपणन संघ (हापेड़) द्वारा गुणवत्तायुक्त निर्यातोन्मुखी प्रगतिशील आम उत्पादकों को आम की तुड़ाई हेतु मैंगो हार्वेस्टर एवं रख-रखाव हेतु प्लास्टिक क्रेट्स अनुदान पर दे रही है। प्रदेश सरकार आम की प्रजातियों को अन्य प्रदेशों में स्थापित करने तथा प्रदेश से घरेलू विपणन/निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश व प्रदेश के बाहर आम वायर, सेलर मीट कार्यक्रम आयोजित कर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। प्रदेश सरकार आम के विपणन, निर्यात प्रोत्साहन हेतु निरन्तर कार्य कर रही है। आम के निर्यात से प्रदेश के आम उत्पादकों को आर्थिक लाभ मिल रहा है।

Tuesday, April 19, 2022

सुल्तानपुर की धरोहर है देववृक्ष परिजात : डा.आर.ए.वर्मा

दैनिक अयोध्या टाइम्स सुल्तानपुर

ब्यूरो चीफ घनश्याम वर्मा




भारतीय जनता पार्टी द्वारा मनाया जा रहे समाजिक न्याय पखवाड़े के अंतर्गत विश्व धरोहर दिवस के उपलक्ष्य में स्थानीय निकाय प्रकोष्ठ के जिला संयोजक अनिल कुमार बरनवाल के संयोजन में नगर पालिका परिषद सुल्तानपुर अंतर्गत परिजात वृक्ष परिसर एवं नगर पंचायत दोस्तपुर, कोइरीपुर व नगर पंचायत लंभुआ में मंदिरों व सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छता अभियान सफाई कर्मियों को सम्मानित किया गया।भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ.आर.ए. वर्मा की अगुवाई में  विश्व धरोहर दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में भाजपाइयों ने  परिजात वृक्ष परिसर में स्वच्छता अभियान चलाकर परिसर को लकदक किया।इस दौरान संगठन जिलाध्यक्ष डॉ.आर. ए.वर्मा ने कहा पारिजात वृक्ष जिले की एक धरोहर है।इसे देववृक्ष भी कहा जाता है। उन्होंने कहा ऐसी धार्मिक मान्यता है कि यह वृक्ष मनोवांछित कामनाओं को पूरा करने वाला है।उन्होंने आगे कहा सामाजिक न्याय पखवाड़े के तहत भाजपा कार्यकर्ता गरीबों, वंचितों, दलितों,शोषितों एवं पिछड़े समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्तियों तक पहुंचेंगे।पार्टी प्रवक्ता विजय सिंह रघुवंशी ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि केंद्र व प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों से निरंतर सम्पर्क कायम रखा जाए।आजादी का अमृत काल होने के चलते भाजपा सामाजिक न्याय पखवाड़े को यादगार बनाने में जुटी है। सोमवार को सामाजिक न्याय पखवाड़े में भाजपा जिलाध्यक्ष डा.आर.ए.वर्मा के नेतृत्व में भाजपाइयों ने नगर पालिका परिषद के 15 सफाई कर्मचारियों को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया।वही स्थानीय निकाय प्रकोष्ठ के  संयोजन में नगर पंचायत दोस्तपुर , लंभुआ एवं कोइरीपुर में भी 10-10 सफाई कर्मचारियों को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। स्थानीय निकाय प्रकोष्ठ के जिला संयोजक अनिल बरनवाल ने विभिन्न कार्यक्रमों में आए हुए लोगों का आभार प्रकट किया।आज आयोजित कार्यक्रमों में पूर्व जिलाध्यक्ष डॉ. सीतासरण त्रिपाठी, जगजीत सिंह छंगू, नगर पालिका अध्यक्ष बबीता जयसवाल,जिला उपाध्यक्ष प्रवीन कुमार अग्रवाल, ज्ञान प्रकाश जयसवाल,आलोक आर्या,गोविंद तिवारी टाड़ा,ब्लाक प्रमुख कुंवर बहादुर सिंह, भाजपा नेता व सभासद रमेश सिंह टिन्नू,आकाश जायसवाल,सुधीर साहू, डा. रामचरित पांडे, इन्द्रदेव मिश्रा,मधु अग्रहरि, डॉ के. पी.सिंह अरविंद तिवारी, सजनलाल कसौधन,राज कुमार अग्रहरी, अखिलेश प्रताप सिंह, संजय सरोज,दिनेश चौरसिया,आत्मजीत सिंह टीटू, संदीप गुप्ता, अरुण कुमार,अनिल सोनी, मधु अग्रहरि, राजीव सिंह, राजेंद्र कुमार रावत, दिनेश कसौधान, राजेश श्रीवास्तव, सुनील जायसवाल आदि मौजूद रहे।

दहेज में मिली दूल्हे की साइकिल चोरी

सुरेंद्र मौर्य

मिल्कीपुर-अयोध्या। कुमारगंज थाना क्षेत्र के सराय धनेठी गांव में दहेज में दूल्हे को मिली साइकिल चोरों द्वारा पार किए जाने का मामला प्रकाश में आया है। ग्रामीणों द्वारा साइकिल चोर को रंगे हाथ पकड़ कर पुलिस के सुपुर्द किए जाने के बावजूद भी कुमारगंज पुलिस आरोपी चोरों पर मेहरबान हो गई है। एक साइकिल चोर पुलिस हिरासत में लेने के बावजूद भी पुलिस ने चोरी के बरामद माल साइकिल को बिना कोई कार्यवाही किए पीड़ित के सुपुर्द कर दिया है। पुलिस ने प्रकरण में प्रभावी कार्रवाई के बजाय गिरफ्तार युवक का मात्र शांतिभंग में चालान कर प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक कुमारगंज थाना क्षेत्र के सराय धनेठी गांव निवासी तेज प्रताप पासी के भांजी की शादी थी। जिसमें दहेज में देने के लिए तेज प्रताप 48 सौ रुपए की हीरो साइकिल खरीद कर लाया था और कलेवा के दौरान दूल्हे के सुपुर्द भी कर दिया था। विदाई से पूर्व दहेज का सारा सामान दरवाजे पर जगह कम होने के चलते बगल में रख दिया गया था। आरोप है कि इसी बीच गोयड़ी पूरे शुक्ल निवासी रोहित चौहान पुत्र रामकेवल तथा बाबूराम पुत्र रामकिशन मौके पर पहुंच गए थे और साइकिल लेकर रफूचक्कर हो गए थे। साइकिल गायब होने के उपरांत कुछ ग्रामीणों ने दौड़ा कर एक युवक बाबूराम को पकड़ लिया था और 112 नंबर डायल कर पुलिस को सूचना दी थी मौके पर पहुंची पुलिस टीम पकड़े गए युवक बाबूराम को थाने ले गई थी। घटना के दूसरे दिन अल सुबह साइकिल रोहित के परिवारी जनों के कब्जे से मिली। साइकिल मिलने के उपरांत पुनः तेज प्रताप ने 112 नंबर डायल कर पुलिस को सूचना दी सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस टीम साइकिल थाने ले आई। मामले में पुलिस ने आरोपी युवकों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही करना मुनासिब नहीं समझा और बरामद चोरी के माल साइकिल को बिना किसी कार्रवाई के पीड़ित तेज प्रताप के सुपुर्द कर दिया।  युवक बाबूराम का चालान मात्र शांति भंग में कर प्रकरण को रफा-दफा कर दिया। थानाध्यक्ष वीर सिंह ने बताया कि मामले में असली चोर बाबूराम नहीं बल्कि रोहित है। उसकी तलाश की जा रही है। बिना किसी कार्यवाही के बरामद चोरी के माल को पीड़ित के सुपुर्द किए जाने के सवाल पर वह चुप्पी साध गए।

Monday, April 18, 2022

मिड- डे मील का गल्ला गोलमाल करने में लगे प्रधानाध्याक और अध्यापक

दैनिक अयोध्या टाइम्स फतेहपुर



_ :हथगांव विकासखंड क्षेत्र के शाहपुर गांव जहां प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्याक और अध्यापक दोनों मिडडे मिल का गल्ला बिना तौल किए वितरण किया जा रहा है अब तक खाद्यान्न वितरण में आप लोगों ने कोटेदारों पर चोरी का आरोप लगते और दोषी पाए जाते देखे होगे। ताजा मामला है_ _फतेहपुर जिले के विकास खंड हथगांव के प्राथमिक विद्यालय शाहपुर के जूनियर हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक और अध्यापक बिना तौल के बच्चो को गेंहू चावल जग से नाप कर दे रहे थे।_

_बताया गया कि 1से 5 तक 9किलो 300ग्राम और 6से 8तक 13किलो 500ग्राम गल्ला वितरण किया गया है। लेकिन जब बच्चों के माता पिता ने तौल कराई तब किसी में 5किलो तो किसी में 6 किलो ही निकला। जब शिकायत ग्राम प्रधान तक पहुंची तो इलेक्ट्रॉनिक कांटे से तौल कराकर गल्ला वितरण किया गया।_

अभी तक आप लोगों जानते थे कोटेदार चोरी करने में एक्सपर्ट होते हैं लेकिन अब उन्हीं के साथ में शाहपुर गांव के प्राइमरी स्कूल में गांव के प्रधानाध्याक और अध्यापक दोनों मिडडे मिल का गल्ला बिना तौल बच्चों को वितरण किया जाता है और बच्चों से वजन बताया जाता है 1 से 5 तक 9किलो 3 ग्राम और 6 से 8 तक 13किलो 500 ग्राम लेकिन जब बच्चों को गल्ला वितरण किया गया प्रधानाध्याक और अध्यापक द्वारा तो बच्चों को जग से नाप कर दिया जा रहा था और बताया जा रहा था प्रति बच्चों का गल्ला 1 से 5   9 किलो 300,  6 से 8 ,13 किलो 500 जब बच्चों के माता पिता ने देखा कि गला का वजन कम है तो उन्होंने दूसरी दुकान में गला का वजन कराया जिसमें किसी को 5 किलो तो किसी को 6 किलो मिला गल्ला

          प्राइमरी स्कूल का बच्चा चाहे वो 1 से 5 तक का हो या 6 से 8 तक जब बच्चों के माता-पिता ने प्रधानाध्याक और अध्यापक से सही तोल के लिए कहा तो वह लड़ने झगड़ने लगे उन्होंने कहा कोटेदार ने आधे लोगों को गल्ला नहीं दिया वही गुस्साए हुए बच्चों के परिजनों ने ग्राम प्रधान से सिकायात की जिसमें ग्राम प्रधान मोहम्मद शमी ने तुरंत मामले को संज्ञान में लेकर इलेक्ट्रॉनिक काटा तौल करने के लिए मंगवाया फिर उसी इलेक्ट्रॉनिक काटा से तौल कराया गया जिसमें बच्चों को गल्ला तौल के बराबर दिया गया कोटेदार का तो नाम ही था कि तौल में चोरी और एक यूनिट कम देते है पर अब ग्राम शाहपुर के प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्याक और स्कूल के अध्यापक अपना अपना हिस्सा लगाए बहटे हुए है आप लोग कोटा में हो या स्कूल में गल्ला तौल कर लें 1 किलो 2 किलो कर के यही। उन लोगों का अच्छा खासा बचा लेते है कोटेदार गांव का गल्ला में घटतौली करने में लगा और उन्हीं की सराहना से शाहपुर के प्राइमरी स्कूल के अध्यापक बच्चों का गल्ला घपला करने में लगे हुए है।

विलुप्त होती कुएं की पूजा

दैनिक अयोध्या टाइम्स

फतेहपुर 18 अप्रैल ।फ़तेहपुर में कुएं का खोता अस्तित्व व जल संरक्षण को लेकर होता कूप विवाह का आयोजन,कई गांव के लोग होते शामिल,वर्षों से चल रही परंपरा

यूपी के फतेहपुर जिले में कुएं के खो रहे अस्तित्व एवं जल संरक्षण व जल स्रोतों को संरक्षित करने के लिए वर्षों से कूप विवाह की अनूठी प्रथा चलाई जा रही है इस प्रथा में कुओ का विधि विधान से मंत्रोच्चारण के साथ विवाह किया जाता है।इस परंपरा का असर भी देखने को मिला कि तालाब व कुएं में पानी कभी नही सूखता है।



फतेहपुर जिले के जहानाबाद स्थित गढ़वा गांव में कूप विवाह की प्रथा सदियों से चली आ रही है जिसके माध्यम से लोगों को जल संरक्षण व जल की महत्ता के साथ कुएं के खो रहे अस्तित्व को बचाने के बारे में बताया जाता है कार्यक्रम के संबंध में जानकारी देते हुए कार्यक्रम संयोजक रामस्वरूप दिवाकर ने बताया कि जल संरक्षण व जल स्रोतों के संरक्षण के लिए हमारे गांव में सदियों से कूप विवाह की प्रथा चली आ रही है जिसमें पूरे विधि विधान के साथ कूप विवाह किया जाता है जिसमें सारी रस्में रिवाज के साथ विवाह संपन्न किया जाता है साथ ही लोगों को जल संरक्षण के बारे में जागरूक करने के साथ-साथ जल संरक्षण प्राकृतिक जल स्रोतों की महत्ता के बारे में भी कार्यक्रम के माध्यम से जानकारी दी जाती है। कुएं के खो रहे अस्तिव को लेकर प्रदेश सरकार से मांग किया है कि इसके लिये भी योजना बनाई जाए जिससे कुएं को बचाया जा सके। कूप विवाह में ग्रामीण भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और जल व प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के प्रति संकल्प लेते है।बैंड बाजा के बारात निकाली जाती हैं।जिसमें गांव के लोग नाचते गाते कुएं व तालाब की पूजा करते है।