Thursday, May 12, 2022

पार्थ सारथी तलास एक नई राह


 हे जग सारथी अब टूट रहा है इंसान ।
 एक बार को पुनः सुसज्जित
 कुरुक्षेत्र का यह मैदान ।।

उस रथ पर तो एक धनुर्धर 
न्याय पताका ले बैठा था ।
 अब तो ना रथ और रथी 
केवल तेरा आसरा है ।।

 असत्य पर सत्य कैसे जीतता 
इसका राह दिखाया था ।
 आज दोनो साथ बैठा है 
जनता भ्रमित सा दिखता है ।।

 धर्म विजय के खातिर तुमने
 वहाँ दिया गीता का ज्ञान ।
अहंकारी और दंभी को
 दिखाया अपना होने का प्रमाण ।।

 अब तो सब दंभी ही 
अपने को समझते हैं भगवान ।
एक बार तुम रथ सजाकर
 करवा दो अपना भान ।।

 हे पीत वसन धारी हे लीलाधर, 
दिखलाओ अपनी लीला ।
 भारतवर्ष की पुण्य धरा 
भूल रही आपकी लीला ।।

 वाका काका पूतना आदि
 शर ताने हो रहा खड़ा ।
 कान्हा के उस बाल रूप का 
जनता कर रहा आशा ।।

 कंस का आतंक अब 
फिर फैला है चारों ओर ।
मुरली छोड़ो कान्हा अब 
शांति कर दो चारों ओर ।।

 जरासंध का अत्याचार अब 
फैल रहा संपूर्ण भूभाग ।
अधर्मी और अताताई का
 संघार कौन करेगा आज ।।

 कुटिलों की कुटिल चालें अब
 एक जगह एकत्रित है ।
इस चक्रव्यूह में फंसे आम जन, 
वेधने की जरूरत है ।।

 तुम तो हो न्याय रथी फिर
 अन्याय कैसे देख सकते हो ।
जरूरत हो तो पुनः एक
 पार्थ तो तैयार कर सकते हो ।।

 पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बैठा,
 पुत्र मोह में द्रोण है ।
अब ना कोई गंगा पुत्र 
और ना विदुर का कोई ज्ञान है ।।

 अब तो बस एक ही चिंता 
सत्ता कैसे लूटें ।
आम जन में भ्रम फैला कर 
जनता को कैसे लूटें ।।

 शकुनि का बस एक काम 
छल और प्रपंच बढ़ाना ।
लाक्षागृह में जो भी हो 
उसमें आग लगाना ।।

 आर्यावर्त कि यह पुण्य धरा
 गवाही इस बात का देता ।
जब जब धरा पर अन्याय बढ़ा
 तेरा ही अवतारण होता ।।

 मन में बस एक प्रश्न -
क्या अन्याय की घड़ा है भरने वाली ?
और अपने क्या एक समर्थ 
पार्थ की खोज कर दी जारी ??

 हाथ जोड़ बस एक निवेदन
 धर्म पताका अब पुनः लहराओ ।
अधर्म का मर्दन कर
 आम जन को सत्य पथ दिखलाओ ।।
श्री कमलेश झा
नगरपारा भागलपुर 

हर वर्ष पुनरावृति करने वाला संक्रमण करोनाl घबराइए नहीं सिर्फ सावधान रहिए

करोना कभी न नष्ट होने वाला वाला ऐसा जानलेवा संक्रमण है जिसके महीनों तथा वर्ष के अंतराल में लौट लौट कर मानव शरीर में आने की संभावना सदैव बनी रहती है । वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि करोना संक्रमण के वैरीअंट को समूचा खत्म नहीं किया जा सकता उसकी केवल प्रीवेंटिव मेडिसिन या वैक्सीन ही ली जा सकती है। करोना से दूर रहने के लिए केवल और केवल सावधानी और चिकित्सा विशेषज्ञ द्वारा दी गई गाइडलाइंस का ही पालन करना होगा, अन्यथा करोना जानलेवा तो है ही। क्या आपको नहीं लगता एक दूसरे के संक्रमण से फैलने वाला भयानक करोना सिर्फ प्राकृतिक विपदा एवं प्राकृतिक असंतुलन का नतीजा है, बल्कि कुछ मांस भक्षी लोगों मानसिक असंतुलन का भी भयानक परिणति है। प्रकृति ने हमें पहले से ही सचेत करके रखा था, पहले सुनामी, बाढ़, सूखा और भूस्खलन के परिणामों से हमें आगाह किया था और न जाने इन भयानक विपदाओं से कितने लोग काल के गाल में समा चुके हैं। हर वर्ष सुनामी,भूस्खलन,बाढ़ से मरने वालों की संख्या हजारों में होती रही है, पर कुछ देशों के नागरिकों के मानसिक संतुलन का क्या कहें, जिन्हें सब्जी,भाजी,दूध,फल, सूखे मेवे को छोड़कर कुत्ता, बिल्ली,सांप, चमगादड़, सूअर खाने की न जाने क्यों इच्छा बलवती हुई है,और उन्होंने इसका रोजमर्रा की जिंदगी में सेवन करना शुरू कर दिया,चीन सहित विश्व में कई ऐसे देश है जो हर जंतु के मांस का खाने में रोज इस्तेमाल कर नई-नई बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। चीन के द्वारा चमगादड़, सांप, केकड़े और ना जाने कितने जीव जंतुओं का मांस अपने आहार के रूप में इस्तेमाल करते हैं, और इसी की परिणति हुई है कि चमगादड़ में नाना प्रकार के प्रयोग कर करोना वायरस जैसे भयानक संक्रमण वाली बीमारी की उत्पत्ति कर दी और यही करोना वायरस ने पूरे विश्व में मौत का तांडव मचा कर लाखों लोगों की मृत्यु का कारण भी बना है। यह मानवीय मानसिक आसंतुलन तथा दिवालियापन का एक भयानक परिणाम है। जिसकी एकदम सही और सटीक इलाज खोजने में चिकित्सकों को वैज्ञानिकों को सिर से पैर तक पसीना छूट गया है। फिर भी इस कोविड-19 के वायरस का 100% इलाज नहीं खोज पाए हैं। पृथ्वी में बहुत सारी सकारात्मक चीजें हैं जल, वायु, मृदा तत्व, पेड़, झरने,समुद्र, तालाब,नदियां इन सब का सकारात्मक इस्तेमाल कर मानव धरती को समृद्ध तथा मालामाल करता आया है, एवं अपने जीवन यापन हेतु सुचारू रूप से सब्जियां, फल,आयुर्वेदिक दवाएं और न जाने कितने मृदा तत्व जिनमें हीरे,मोती, जवाहर, लोहा,पीतल, तांबा,सोना,चांदी आदि निकालकर जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु सफल हुआ है। पर कुछ लोगों ने दिमागी असंतुलन के चलते मूक जानवरों का वध करके उसे भोजन की वस्तु बनाकर प्राकृतिक असंतुलन बढ़ाने का जोखिम उठाया, इसी तरह पेड़, जल, मिट्टी, वायु का संरक्षण न करके उसने अप्राकृतिक वस्तुओं का इस्तेमाल करके विश्व का तापमान बढ़ाकर मानव जाति के लिए अनेक खतरे एवं मुसीबतें पैदा कर ली है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण पर्यावरण असंतुलित हो गया है। पर्यावरण प्रदूषण हमारी आधुनिक जीवन शैली के कारण बुरी तरह से शहरों में फैला हुआ है।पर्यावरण प्रदूषण तथा तापमान असंतुलन भी वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों की मौत का कारण बना। प्रकृति के इस भयानक असंतुलन के कारण हर शहर हर देश में लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं, पर मानसिक असंतुलन के कारण न सिर्फ मानव शरीर नष्ट हो रहा है, बल्कि लाखों निरीह जानवर, जीव,जंतु भी मौत के घाट उतार दिए गए। चीन और विश्व के आदिवासी बाहुल्य देश के लोग सांप बिच्छू, चमगादड़ एवं अन्य जीव-जंतुओं का शिकार कर अपने मानसिक असंतुलन का परिचय देकर अपने पेट के दावानल को शांत कर रहे हैं। ऐसा सामान्य मनुष्य सोच भी नहीं सकता। ऐसे में प्रकृति भी इस प्राकृतिक असंतुलन तथा मानसिक दिवालियापन को आत्मसात ना करके प्रक्रियागत नाना प्रकार की बीमारियों तथा मृत्यु के अनेक कारणों को जन्म दे रही है। बहुत महत्वपूर्ण बात यह है की वैश्विक स्तर पर करोना ने अलग-अलग देशों में लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। और इस महामारी के जनक चीन पर कोई क्रिया प्रतिक्रिया या व्यापारिक सामाजिक नागरिक रोक तथा प्रतिबंध लगाने पर किसी भी देश में संगठित होकर विचार नहीं किया। चीन द्वारा यह एक तरह का केमिकल अस्त्र इस्तेमाल कर अपनी मानव विरोधी मानसिक स्थिति को उजागर किया है।आपको ऐसा नहीं लगता है कि चीन इसी तरह के अन्य रासायनिक अथवा जैविक अस्त्रों का इस्तेमाल कर पूरे विश्व को एवं मानव जाति को भविष्य में भी खतरे में डाल सकता है, क्योंकि चीन और वहां का शासन तंत्र पूरी तरह अपने औपनिवेशिक वादी और विस्तार वादी इरादों को लेकर पूरी तरह कटिबद्ध है। चीन की साजिश के तहत यह वायरस पूरे विश्व में फैला है। अतः वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ को वैश्विक स्तर पर विश्व के हर राष्ट्र पर इस तरह के किसी भी रासायनिक अथवा जैविक प्रयोग पर तुरंत प्रतिबंध लगाकर उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता से निष्कासित कर, इस घृणित कार्य के लिए प्रताड़ित एवं प्रतिबंधित किया जाना चाहिए ,अन्यथा मानव जाति का भविष्य इसी तरह के रसायनिक तथा जैविक हथियारों की बलि चढ़ता रहेगा एवं उत्तर कोरिया तथा चीन जैसे देशों के हुक्मरानों के मानसिक दिवालियापन के कारण अनेक खतरनाक एवं शरीर को नष्ट करने वाले केमिकल अस्त्र शस्त्र भविष्य में संपूर्ण मानवीय जीवन से भी खेलते रहेंगे और लोग इसी तरह मृत्यु की भेंट चढ़ते रहेंगे, यह एक वैश्विक समस्या बनकर सामने खड़ी हुई है। इसका निदान अत्यंत आवश्यक है।

संजीव ठाकुर,स्वतंत्र लेखक, रायपुर, छत्तीसगढ़, 

मुस्कराना खूबसूरत जिंदगी का इम्यूनिटी बूस्टर!!

हमेशा ऐसे हंसते मुस्कुराते रहो कि आपको देखकर लोग कहें वह देखो! जिंदगी कितनी खूबसूरत है!! 

मनोभाव से मुस्कुराना, हंसना स्वस्थ जिंदगी का मंत्र - मुस्कान की दूसरों के दिलों पर राज करने में अहम भूमिका! - एड किशन भावनानी
गोंदिया - कुदरत नें इस ख़ूबसूरत सृष्टि रूपी कायनात में एक खूबसूरत प्राणी मनुष्य की रचना कर 84 लाख़ जीवों से अलग एक विशेष कलाकृति बुद्धि का सृजन मानव शरीर में समाहित किया ताकि उस के बल पर अन्य जीवों से अति उत्तम जीव बन कर रहे! वैसे तो मानव शरीर की संरचना के अंग हर दूसरे प्राणियों में भी होते हैं पर बुद्धि अपेक्षाकृत सर्वश्रेष्ठ होती है! जिसका उपयोग हम सकारात्मकता से अपने अपने क्षेत्रों और अपने शरीर को स्वस्थ, निरोगी काया बनाने में करने की विचारधारा को रेखांकित करना होगा! 
साथियों बात अगर हम अपने शरीर के स्वस्थ एवं निरोगी रखने की करें तो उसके अनेक तरीकों में से एक हंसना और मुस्कुराना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है जिसका उपयोग करने से हमारे स्वास्थ्य पर बहुत अधिक फायदा होता है यह स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा भी कहा गया है परंतु वह हंसना मुस्कुराना असली होना चाहिए! इसीलिए बड़ों की तुलना में बच्चे ज़्यादा ख़ुश रहते है, ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम मुस्कुराना भूल जाते हैं। बच्चे हम बड़ों की तुलना में 10 गुना ज़्यादा मुस्कुराते हैं। आमतौर पर बच्चे एक दिन में करीब 400 बाद मुस्कुराते और हँसते हैं, वहीं हम एडल्ट लोग सिर्फ़ 40 से 50 बार ही मुस्कुराते हैं? 
असली मुस्कान में आंखों के नीचे की मांसपेशियां एक्टिव होती हैं। जबकि झूठी स्माइल हमारे होंठों के आसपास की मांसपेशियों के इस्तेमाल से ही आती है। जब स्माइल असली होती है, हमारे दिमाग में न्यूरोनल सिग्नल्स चेहरे की मसल्स को एक्टिवेट कर देते हैं। असली मुस्कान में हमारा दिमाग हमारे चेहरे को बताता है कि हमें मुस्कुराना है।
साथियों बात अगर हम मुस्कान और हंसी की करें तो, मुस्कान एक चेहरे की अभिव्यक्ति है जो तब होती है जब हम खुश और प्रसन्न होते हैं, लेकिन मुस्कान की शक्ति हमारे विचार से कहीं अधिक मजबूत होती है। यह न केवल हमारे स्वास्थ्य और कल्याण को लाभ पहुंचाता है, बल्कि यह हमारे आस-पास के लोगों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। कहावत सच है - मुस्कान वास्तव में संक्रामक होती है । एक मुस्कान बहुत आगे तक जा सकती है और यह हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव डालती है। हम अधिक मिलनसार, हो जाते हैं और लोग हमारे आस-पास सहज महसूस करते हैं।
मुस्कुराना कोई कठिन कार्य नहीं है, परंतु फिर भी हमको कम ही लोग ऐसे दिखेंगे जो हर वक्त खुश दिखते हैं या मुस्कुराते रहते हैं, ये वो लोग है जिनके अंदर खुशी का संचार चौबीस घंटे ही बना रहता है, जिनको तनाव वाली स्थितियां अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाती, क्योंकि खुशी उनके व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा बन जाती है जिसको बदलना इतना आसान नहीं, ऐसे व्यक्तित्व के आस पास भी हम रहेंगे तो खुशी ही महसूस करते हैं।
साथियों बात अगर हम मुस्कान को जिंदगी का इम्यूनिटी बूस्टर होने की करें तो, मुस्कुराने से हमारी मांसपेशियों को शांत करने में मदद मिलती है और हमको आराम का एहसास होता है। एक मुस्कान चिंता से बचने में मदद कर सकती है और इसलिए हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार कर सकती है।  एक मुस्कान एंडोर्फिन जारी करती है और मानसिक परिश्रम को बढ़ाती है। यह तनाव को कम करता है और हमारे दिमाग को सकारात्मक दृष्टिकोण की ओर ले जाता है। एक खुश चेहरा उदास और सुस्त चेहरे की तुलना में उज्जवल और छोटा दिखता है। अध्ययनों से पता चलता है कि मुस्कुराहट मुंह और होंठोंके आसपास की मांसपेशियों को प्रशिक्षित करती है और उन्हें झुर्रीदार होने और झुर्रियों से बचाती है। 
साथियों बात अगर हम मुस्कुराने हंसने में स्वास्थ्य लाभों की करे तो,(1)तनाव को दूर करने में जो काम हंसी करती है वो कोई दवाई नहीं कर सकती। दरअसल, हंसने से हम लोगों के साथ ज्यादा सोशली एक्टिव हो जाते हैं, जिससे हमारा तनाव खुद ही कम हो जाता है।(2)जब हम हंसते हैं तो हमारे फेफड़ों से हवा तेजी से निकलती है, जिस वजह से हमें गहरी सांस लेने में मदद मिलती है, इससे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई बेहतर तरीके से होती है, साथ ही हंसने से हमें एनर्जी भी मिलती है, जो हमारे शरीर से थकावट और सुस्ती को दूर करती है।(3) मुस्कुराने का सरल कार्य हमारे मस्तिष्क को एक संकेत भेजता है कि आप अच्छा महसूस करते हैं, और यदि हम अक्सर मुस्कुराते हैं , तो हमारा मस्तिष्क नकारात्मक विचारों के विपरीत सकारात्मक विचारों का एक पैटर्न तैयार करेगा (4) उत्पादकताा और रचनात्मकता को बढ़ाता है मुस्कुराने से एंडोर्फिन निकलता है, और इसी तरह जब उन्हें कसरत के दौरान छोड़ा जाता है, तो इस रिलीज के परिणामस्वरूप अधिक कुशल कार्य दर और उत्तेजित मस्तिष्क गतिविधि हो सकती है। (5) शोधकर्ताओं ने पाया कि मुस्कुराते हुए कई कार्यों को करते हुए हृदय गति और रक्तचाप में कमी आई है, यह दर्शाता है कि एक व्यक्ति अधिक आराम से है।(6)तनाव कम करता है अध्ययनों से पता चला है कि जो लोग मुस्कुराते हैं वे तनावपूर्ण स्थितियों से अधिक तेज़ी से उबरने में सक्षम होते हैं। दिन भर में कई बार एक वास्तविक मुस्कान दिखाना अवास्तविक लग सकता है, लेकिन इसे नकली बनाने से वही परिणाम मिलते हैं। (7)वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि मुस्कुराहट प्रतिरक्षा को मजबूत करती है क्योंकि यह आपके शरीर को तनाव को दूर करने की अनुमति देती है, जिससे कोशिकाएं कठोरता को छोड़ देती हैं और हमको बीमारी से लड़ने में अधिक सक्षम बनाती हैं।
साथियों बात अगर हम स्वयं को ख़ुश रख कर मुस्कुराने की कला की करें तो, जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि हम परिस्थितियों को कैसे देखते और प्रतिक्रिया करते हैं। विषाक्तता से दूर रहने की कोशिश करें और अपने मन में सकारात्मक विचारों को पनपने दें। हम ऐसे लोगों के साथ रहें जो हमको अच्छा करने के लिए प्रेरित करते हैं। जरूरतमंदों की मदद करें। जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को समझने और उनकी सराहना करने के लिए किसी के चेहरे पर मुस्कान लाना जरूरी है। अपनी अजीब हड्डी को जीवित रखें। एक चुटकुला, एक मज़ेदार पहेली या यहाँ तक कि एक मज़ाक भी कुछ ही सेकंड में आपके मूड को ऊपर उठाने में मदद कर सकता है। इसलिए दुनियाकी अद्भुत खुशियों का आनंद लें, विविधताओं में रहें, इसकी सुंदरता की सराहना करें और जहां भी जाएं, मुस्कान बिखेरना याद रखें।इस आर्टिकल में लेकर मीडिया की सहायता ली गई है।
साथियों हमारी एक छोटी सी मुस्कान दूसरों को खुशी का एहसास करा सकती है और यह खुद के लिए भी काफी फायदेमंद होती है। जिस तरह अच्छी हवा, अच्छा खानपान सेहतमंद रहने के लिए जरूरी होता है, उसी प्रकार हमारी हंसी हमको स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाती है। अगर हमर सुबह-शाम हंसने की आदत डाल लें तो कोई भी बीमारी, चाहे मानसिक हो या शारीरिक हमारे पास भी नहीं आएगी। हेल्थ एक्पर्ट के मुताबिक, रोजाना हंसने से सेहत तो अच्छी रहती ही है साथ ही इससे शरीर में एनर्जी भी बनी रहती है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि हसना मुस्कुराना खूबसूरत जिंदगी का इम्यूनिटी बूस्टर है। हमेशा ऐसे हंसते मुस्कुराते रहो कि आपको देखकर लोग कहें वह देखो! जिंदगी कितनी खूबसूरत है!! मनोभाव से मुस्कुराना हंसना स्वस्थ जिंदगी का मंत्र है। मुस्कान की दूसरों के दिलों पर राज करने में अहम भूमिका है। 

-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

Wednesday, May 11, 2022

सुकून मिले

तपती देह जब उमस और भीषण गर्मी से

ओंठ कंठ तक प्राण बसते सूखे  आकर।
माथे से टपके स्वेदो टपके है पग में छाले
नदिया पोखर शीतलता से सुकून पाकर।

मन में जब और अवसाद भरा क्षण भर
मां की ममता शीतल आंचल मिल जाए।
मन की पीड़ा और व्यथा में मिले शांति
मां की ममता से भरा सुकून मिल जाए।।

भूख बढ़ी ज्वाला में असह भूख मिटाने
रूखी सूखी रोटी भी प्रिय भोजन मीठा
उदर ज्वाला को एक सुकून मिल जाए
पेट भरा हो तब तो फिर सब सो इतराए।

प्रिया प्रेम की आंखों में प्रीतम प्यारे को
रसभरी मद मुग्ध नयन फिर सदा बिछे।
करकी किबाड़ ओट से झलक मिले तो
विरहिन प्रिय को एक सुकून शांति मिले।

प्रणय प्रेम में भरी प्रिय चाहत उम्मीदों से
प्रियवर से कर मान मनौती पूरी चली है
उठी प्रेम की ज्वाला में प्रियतम बोली से
उम्मीद भरी ताप धरा सी सुकून मिले हैं।

बच्चों की प्रिय तोतली बोली दिल  बसती
वीणा गुंजन सरगम कीमत सबसे फीके है।
नन्हे पग रखते बच्चा मां का आंचल पकड़े
मां बाप को सुकून मिले जंग सभी जीते है।

दिन मेहनत मजदूरी करके श्रममूल्य मिले
दर्पण सा चेहरा चमका है सौसौ बार खिले।
अपनी झोपड़पट्टी में कुछ मटकी में चावल
लाकर रखता घर को पोषण सुकून मिले।

चले शहर से गांव  घर देख धुआ चूल्हा में
अपने घरके सुखयादों में पग से जल्दी चले
दिनभर की श्रमपीड़ा से विमुक्त हुए घर में
प्रियहाथों से जल पी आंखों में सुकून मिले।

खेती-बाड़ी निज गौशाला में गायों को देख
कृषकआंखें चमकी नेहभरी धरती को चूमे
घरअनाज भंडार भरा सुकून मिले दिल को
घर आंगन में रंग भरे बिखरी मस्ती से झूमे।

     लेखन ✍️🙏🌷
    के एल महोबिया

Saturday, May 7, 2022

छपरा के 70 साल का बुजुर्ग बना दूल्हा, धूमधाम से निकली बारात, पिता की शादी में 8 बच्चे बने बाराती

(रवि कुमार भार्गव राज्य को-आर्डिनेटर अयोध्या टाइम्स बिहार)


पटना  : छपरा में हुई एक अनोखी शादी इन दिनों काफी सुर्खियों में है। 70 साल का शख्स जब दूल्हा बनकर अपनी दुल्हन को लाने निकला तो इस नजारे को देख लोग हैरान रह गए। गाजे-बाजे के साथ निकाली इस बारात में बड़ी संख्या में लोग डीजे की धुन पर झुमते दिखे। बारातियों में दूल्हे की सात बेटियां और एक बेटा भी शामिल हुए। रथ पर सवार दूल्हा जिस रास्ते से भी गुजरा लोग एक झलक पाने के लिए बेताब नजर आए।दरअसल, करीब 42 साल पहले एकमा के आमदाढ़ी निवासी राजकुमार सिंह की शादी बड़े ही धूमधाम के साथ हुई थी। शादी के बाद पहली बार जब पत्नी मायके गई तो बिना गौना के ही ससुराल चली आई। गौना की रस्म पूरी नहीं हो सकी। 42 साल बाद 5 मई को उनकी सात बेटियों और एक बेटे ने इस दिन को खास बना दिया। जब 70 साल के बुजुर्ग की बारात निकली तो देखने वाले देखते ही रह गए। राजकुमार सिंह बताते हैं कि 42 साल पहले 5 मई को उनकी शादी हुई थी। शादी के 42 साल बाद भी वे अपने ससुराल आमदाढ़ी नहीं गए थे और ना ही गौना की रस्म ही पूरी हो सकी थी। लेकिन 42 साल बाद उनकी बेटी और बेटे ने उस रस्म को पूरा कराया। बता दें कि पहली बार राजकुमार सिंह अपनी सात बेटियों के कारण चर्चा में आए थे। मामूली आटा-चक्की की दुकान चलाकर उन्होंने अपनी सात बेटियों को पुलिस और सेना में नौकरी दिलाने का काम किया। जिन सात बेटियों को लोग बोझ समझते थे आज वे पुलिस और सेना की वर्दी पहनकर देश की सेवा कर रही हैं। शादी के 42 साल गुजर जाने के बाद सात बेटियां और इंजीनियर बेटा मां-बाप की शादी की वर्षगांठ को खास बनाने के लिए गाजे-बाजे के साथ पिता की बारात लेकर निकल पड़े। इस अनोखी बारात के कारण 70 साल की उम्र में दूल्हा बने राजकुमार सिंह एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं।

वतन

       वतन 


इन हवाओ में बसे है प्राण मेरे दोस्तों
 इस वतन की मिटटी में है जान मेरी दोस्तों 
और भी दुनिआ के नक़्शे में हज़ारो मुल्क है 
पर तिरंगे की सबसे जुदा है शान मेरे दोस्तों 

आज बैठी है ये दुनिआ ढेर पर बारूद के 
कौन देगा अमन का पैगाम मेरे दोस्तों 
राह से भटके है जो वो भी राह पर आ जाएंगे 
कोई उनको भी दे प्यार का पैग़ाम मेरे दोस्तों 

क्या मिला है जंग से किसको कभी जो अब मिले 
कितने कलिंगो में निकाले अरमां मेरे दोस्तों 
कितने सिकंदर लूट कर दुनिआ को ख़ाली चल दिए 
ख़ाली हाथ में देखा नहीं कोई सामान मेरे दोस्तों 

चन्द सिक्को में न बेचो तुम वतन की आबरू 
पहले भी खादी हो चुकी बदनाम मेरे दोस्तों 
और इंसानो को ज़रूरत है तो बस इंसान की 
दूर कर दो हैवान का गुमान मेरे दोस्तों 

बख्श दो आबो हवा इस ज़हर को रोको यही 
आने वाली नस्लों  पे करो अहसान मेरे दोस्तों 
दुनिआ की नज़रे जब तलाशेंगी धरम का रास्ता 
विश्व गुरु का तब मिलेगा सम्मान मेरे दोस्तों

हरविंदर सिंह गुलाम

Thursday, May 5, 2022

ग्वालियर में बनेगा एरोपॉनिक आधारित आलू बीज उत्पादन केंद्र

 नई दिल्ली, 05 मई (इंडिया साइंस वायर): फसलों को रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए जूझ रहे किसानों की मुश्किलें अब बढ़ते प्रदूषण और सिमटती कृषि भूमि की चुनौतियों से और बढ़ गई हैं। इन चुनौतियों से लड़ने के लिए कृषि वैज्ञानिक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का विकास करने में जुटे हैं, जिससे फसल उत्पादन और खाद्य सुरक्षा बनी रहे। नये जमाने की अभिनव कृषि तकनीकों में अपनी जगह बना चुकी एरोपॉनिक पद्धति इनमें प्रमुखता से शामिल है।

 एक नयी पहल के अंतर्गत विषाणु रोग रहित आलू बीज उत्पादन के लिए एरोपॉनिक पद्धति के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ग्वालियर में एक नया केंद्र स्थापित किया जाएगा, जहाँ आलू के बीजों का उत्पादन करने के लिए खेतों की जोताई, गुड़ाई, और निराई जैसी परंपरागत प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं होगी। रोगों एवं कीटों के प्रकोप से मुक्त आलू के बीजों का उत्पादन यहाँ अत्याधुनिक एरोपॉनिक पद्धति से हवा में किया जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की शिमला स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीपीआरआई) के वैज्ञानिकों द्वारा आलू बीज उत्पादन की यह तकनीक विकसित की गई है।

ग्वालियर में एरोपॉनिक पद्धति आधारित आलू बीज उत्पादन केंद्र स्थापित करने के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एवं मध्य प्रदेश के उद्यानिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सिंह कुशवाह की उपस्थिति में म.प्र. सरकार के साथ बुधवार को नई दिल्ली में एक अनुबंध किया गया है। कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) सचिव व आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा, आईसीएआर के उप-महानिदेशक (बागवानी विज्ञान) डॉ आनंद कुमार सिंह, मध्य प्रदेश के अपर संचालक-बागवानी डॉ के.एस. किराड़, केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के प्रभारी निदेशक डॉ एन.के. पांडे, और एग्रीनोवेट इंडिया की सीईओ डॉ सुधा मैसूर भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

एरोपॉनिक्स, मिट्टी या समग्र माध्यम के उपयोग के बिना हवा या पानी की सूक्ष्म बूंदों (Mist) के वातावरण में पौधों को उगाने की प्रक्रिया है। एरोपॉनिक के जरिये पोषक तत्वों का छिड़काव मिस्टिंग के रूप में जड़ों में किया जाता है। पौधे का ऊपरी भाग खुली हवा व प्रकाश के संपर्क में रहता है। एक पौधे से औसत 35-60 मिनिकन्द (3-10 ग्राम) प्राप्त किए जाते हैं। चूंकि, इस पद्धति में मिट्टी का उपयोग नहीं होता, तो मिट्टी से जुड़े रोग भी फसलों में नहीं होते। वैज्ञानिकों का कहना है कि पारंपरिक प्रणाली की तुलना में एरोपॉनिक पद्धति प्रजनक बीज के विकास में दो साल की बचत करती है।

यह पद्धति पारंपरिक रूप से प्रचलित हाइड्रोपोनिक्स, एक्वापॉनिक्स और इन-विट्रो (प्लांट टिशू कल्चर) से अलग है। हाइड्रोपॉनिक्स पद्धति में पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिजों की आपूर्ति के लिए माध्यम के रूप में तरल पोषक तत्व सॉल्यूशन का उपयोग होता है। एक्वापॉनिक्स में भी पानी और मछली के कचरे का उपयोग होता है। जबकि, एरोपॉनिक्स पद्धति में किसी ग्रोइंग मीडियम के बिना फसल उत्पादन किया जाता है। इसे कभी-कभी एक प्रकार का हाइड्रोपॉनिक्स मान लिया जाता है, क्योंकि पोषक तत्वों को प्रसारित करने के लिए एरोपॉनिक्स में पानी का उपयोग किया जाता है।

 केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि कृषि के समग्र विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार अनेक योजनाओं पर मिशन मोड में काम कर रही है। किसानों को फसलों के प्रमाणित बीज समय पर उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि विषाणु रोग रहित आलू बीज उत्पादन की एरोपॉनिक पद्धति के माध्यम से उत्पादित आलू के बीजों की उपलब्धता देश के कई भागों में सुनिश्चित की गई है। उन्होंने कहा कि यह नई तकनीक आलू के बीज की आवश्यकता को पूरा करेगी, और मध्य प्रदेश के साथ-साथ संपूर्ण देश में आलू उत्पादन बढ़ाने में मददगार होगी।

 मध्य प्रदेश के उद्यानिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सिंह कुशवाह ने बताया कि इस पहल से प्रदेश में गुणवत्तापूर्ण बीजों की माँग को पूरा किया जा सकेगा। मध्य प्रदेश के बागवानी आयुक्त ई. रमेश कुमार ने कहा कि ग्वालियर में एक जिला- एक उत्पाद पहल के अंतर्गत आलू फसल का चयन किया गया है। उन्होंने बताया कि राज्य को लगभग चार लाख टन बीज की आवश्यकता है, जिसे 10 लाख मिनी ट्यूबर उत्पादन क्षमता वाली इस तकनीक से पूरा किया जाएगा।

 आलू विश्व की सबसे महत्वपूर्ण गैर-अनाज फसल है, जिसकी वैश्विक खाद्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका है। मध्य प्रदेश आलू का छठा प्रमुख उत्पादक राज्य है, और राज्य का मालवा क्षेत्र आलू उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आलू प्रसंस्करण के आदर्श गंतव्य के रूप में भी मध्य प्रदेश उभरा है। इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, देवास, शाजापुर एवं भोपाल के अलावा छिंदवाड़ा, सीधी, सतना, रीवा, सरगुजा, राजगढ़, सागर, दमोह, जबलपुर, पन्ना, मुरैना, छतरपुर, विदिशा, रतलाम और बैतूल प्रदेश के प्रमुख आलू उत्पादक क्षेत्रों में शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)

मां

मां के प्यार सा संबल

नहीं जहां में,
दिवस हो या निशा
मां बच्चों के हर्ष हेतु
करती चिंतन मनन,
अहसास व्यथा का
तभी तक होता
यदा मां के प्रेम का
मरहम व्यथा पे लगता,
वरना दुनियां तो 
बना देती दर्द का पर्याय
मां के छांव से दूर होते ही,
जीवन से विलुप्त हो जाता
निश्छल प्रेम का अध्याय।
किंचित तबीयत नासाज होने पे,
अपार परवाह करती मां,
संपूर्ण धरा हेतु 
ईश्वर का वरदान मां,
अपार अनुराग तिरोहित
मां के क्रुद्ध में ,
क्या कोई करे मां पे 
रचना सृजन,
हम सब मां के सृजन।

                (स्वरचित)
                 सविता राज

फालसा फल क्या है?

 *फालसा फल क्या है? – What is Falsa Fruit*



फालसा के कई फायदे होते हैं, जो सेहत के लिए अच्छा होता है। इसके शरबत को गर्मियों के दिनों में मुख्य रूप से सेवन करना चाहिए। दरअसल,डॉक्टर की मानें, तो यह शरीर की गर्मी को कम करने का काम कर सकता है। साथ ही इलेक्ट्रोलाइट को भी संतुलित बनाए रखता है।
*फालसा फल के फायदे – Benefits of Falsa Fruit*
*1. गठिया*
फालसा फल का इस्तेमाल गठिया से संबंधित परेशानी को कम करने के लिए किया जा सकता है। दरअसल, फालसा फल में एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं , जो गठिया की वजह से जोड़ों में होने वाली सूजन और दर्द को कम करने में मदद कर सकते हैं। एक शोध के मुताबिक, फालसा फल के अर्क में एंटी-अर्थराइटिस प्रभाव पाया जाता है, क्योंकि इसमें फ्लेवोनोइड्स, फेनोलिक यौगिक और विटामिन सी पाया जाता है । वहीं, गठिया में फालसा पेड़ की छाल को भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है l
*2. कैंसर*
फालसा फल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स हमारे शरीर में बतौर एंटी कैंसर एजेंट काम करते हैं। इसलिए, फालसा फल का सेवन आपको कैंसर जैसी प्राणघातक बीमारी से भी बचा सकता है। माना जाता है कि इस फल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स ब्रेस्ट और लीवर कैंसर से हमारे शरीर की रक्षा कर सकते हैं ।
*3. डायबिटीज*
फालसा फल के रस में लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स पाया जाता है, जिसकी मदद से डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। दरअसल, लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ में मौजूद कार्बोहाइड्रेट शरीर में काफी धीरे-धीरे टूटते हैं, जिससे शरीर में ग्लूकोज लेवल एक दम से नहीं बढ़ता है। वहीं, ताजा फालसा फल में पॉलीफेनोल भी डायबिटीज के लिए लाभदायक हो सकते हैं ।
*4. अस्थमा*
अस्थमा और सांस से संबंधित अन्य समस्याओं के इलाज में फालसा फल के जूस को सहायक पाया गया है । फालसा फल में मौजूद फाइटोकेमिकल्स कंपाउंड श्वास संबंधी परेशानियों को कम कर सकता है। खासकर, फालसा के गर्म जूस का अदरक और काले नमक के साथ सेवन श्वास संबंधी परेशानी को दूर करने में फायदेमंद माना जाता है।
*5. मजबूत हड्डियां*
फालसा फल कैल्शियम से समृद्ध होता है, जिसकी वजह से इसे हड्डी स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। यह हड्डियों को मजबूत करने के साथ ही हड्डियों के घनत्व यानी डेंसिटी को बढ़ाने में भी मदद कर सकता है।
*6. हृदय*
फालसा फल में मौजूद फाइबर आपको हृदय संबंधी (कार्डियोवसकुलर) रोगों से बचाने में मदद करता है। फालसा फल और जूस में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट भी हृदय से संबंधित बीमारियों से लड़ने में सहायक साबित हो सकते हैं। यह लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला खाद्य पदार्थ है, जो कोरोनरी हृदय रोग और मोटापे के जोखिम को कम करने में मदद करता है। साथ ही इसमें पोटेशियम की भी अच्छी मात्रा होती है, जो रक्तचाप को नियंत्रित रखने का काम कर सकता है ।
*7. पेट दर्द*
पेट दर्द होने पर भी फालसा फल के सेवन की सलाह दी जाती है। दरअसल, इसमें फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो पेट दर्द में राहत पहुंचा सकता है। इसलिए, फालसा फल या इसके जूस का सेवन करने से पेट दर्द से राहत मिल सकती है । इसके साथ ही फालसा फ्रूट अपने कूलिंग एजेंट और भूख बढ़ाने व पाचन में सहायक माना जाता है । ऐसे में अगर आपका कभी पेट दर्द शरीर की गर्मी या अपच से हो रहा है, तो ऐसी स्थिति में भी फालसा उसे ठीक करने में मदद कर सकता है।
*8. डायरिया*
फालसा फल का सेवन डायरिया में लाभदायक माना जाता है  वहीं, फालसा के पेड़ की छाल का इस्तेमाल दस्त रोकने के लिए किया जाता रहा है । दरअसल, फालसा में पोटैशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो डायरिया में राहत दिलाने में मदद कर सकता है ।
*9. घाव*
फालसा आपके घाव भरने में भी मदद करता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि फालसा की पत्तियों को घाव और एक्जिमा को ठीक करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। फालसा की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाएं और कुछ मिनट के लिए छोड़ दें, ताकि वो अपना काम कर सकें । वहीं, फालसा में विटामिन-सी पाया जाता है, जो घाव भरने में सहायक माना जाता है। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि घावों पर इसकी पत्तियों का लेप और इसका सेवन दोनों तरीके से इस समस्या से राहत दिलाने में सहायक साबित हो सकते हैं ।
*10. एनीमिया*
फालसा फ्रूट में आयरन भरपूर होता है, इसलिए इसके सेवन से एनीमिया के इलाज में मदद मिल सकती है। इसमें मौजूद आयरन आपके शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने में मदद कर सकता है, जिसकी कमी की वजह से एनीमिया होता है। एनीमिया की वजह से थकान और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं ।
*फालसा फल के पौष्टिक तत्व – Falsa Fruit Nutritional Value* 
फालसा फल के फायदे जानने के बाद अब बात करते हैं इसमें मौजूद पौष्टिक तत्वों की। नीचे  देखें प्रति 100 ग्राम फालसा फल में कितनी मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं ।
*पोषक तत्वमात्रा* प्रति 100 ग्रामकैलोरी (ऊर्जा)72 kcal , कुल फैट0.1g , कार्बोहाइड्रेट21.1g , ऐश1.1g , फाइबर5.53g , कैल्शियम 136mg, आयरन1.08mg , फास्फोरस24.2mg , पोटैशियम372mg , सोडियम17.3mg , विटामिन-बी10.02mg ,विटामिन-बी20.264mg , विटामिन-बी30.825mg , विटामिन – सी22 mg, विटामिन-ए16.11mg
 
इतने पोषक तत्वों के मौजूद होने के बाद भी फालसा फल के नुकसान हमारे शरीर को उठाने पड़ सकते हैं। आपको फालसा फल के नुकसान से पहले इसके उपयोग के बारे में बता देते हैं।
*फालसा फल का उपयोग – How to Use Falsa Fruit*
1.फालसा फल को आप अपने आहार में कई तरीके से शामिल कर सकते हैं।
2.सबसे आसान तरीका तो फालसा को सीधे फल की तरह खाना है। ये इतने छोटे और नरम होते हैं कि एक दम आपके मुंह में घुल जाएंगे।
3.इसका आप शरबत बनाकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें थोड़ा-सा नींबू और पुदीना स्वाद के लिए मिलाया जा सकता है।
4.फालसा के जूस में हल्का-सा गुलाब भी मिलाया जा सकता है ।
5.आप फालसा को फ्रूट सलाद में मिक्स करके खा सकते हैं।
6.इसका इस्तेमाल आप आइसक्रीम, मीठा ब्रेड और अन्य पदार्थों के लिए मीठा सिरप बनाने के लिए भी कर सकते हैं ।
7.आप फालसा को कभी भी अपने आहार में संयमित मात्रा में शामिल कर सकते हैं।
फालसा फल के बारे में आप ऊपर दी गई जानकारी के माध्यम से काफी कुछ जान चुके हैं। बस अब जरूरत है, तो फालसा फल के नुकसान जानने की, क्योंकि किसी भी फल का सेवन करते समय उसके दुष्प्रभाव आपको पता होने चाहिए, ताकि उसी हिसाब से फल का सेवन किया जाए।
*फालसा फल के नुकसान – Side Effects of Falsa Fruit in Hindi*
फालसा खाने के फायदे जानने के बाद अब इसके नुकसान के बारे में बात कर लेते हैं, जो इस प्रकार हैं l
फालसा में एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक गतिविधि पाई जाती है, जिसकी वजह से ब्लड ग्लूकोज लेवल कम होता है। ऐसे में इसके अधिक सेवन से आपको हाइपरग्लाइसेमिक (लो ग्लूकोज लेवल) की परेशानी हो सकती है ।
आपको अगर फालसा में मौजूद किसी भी पोषक तत्व से एलर्जी है, तो आपके शरीर में इसका दुष्प्रभाव नजर आ सकता है।
जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि फालसा फल में काफी कैल्शियम होता है, ऐसे में इसे ज्यादा खाने से आपके शरीर में कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होने की आशंका रहती है। इससे आपको हाइपरलकसीमिया हो सकता है। हाइपरलकसीमिया की वजह से आपकी किडनी पर असर पड़ सकता है।
*डाॅ.रवि नंदन मिश्र*
*असी.प्रोफेसर एवं कार्यक्रम अधिकारी*
*राष्ट्रीय सेवा योजना*
( *पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज,वाराणसी*) *सदस्य- 1.अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी,*
*2. भास्कर समिति,भोजपुर ,आरा*
*3.अखंड शाकद्वीपीय* 
*4.चाणक्य राजनीति मंच ,वाराणसी*
*5.शाकद्वीपीय परिवार ,सासाराम*
*6. शाकद्वीपीय  ब्राह्मण समाज,जोधपुर*
*7.अखंड शाकद्वीपीय एवं*
*8. उत्तरप्रदेशअध्यक्ष - वीर ब्राह्मण महासंगठन,हरियाणा*

“उमंगों की उड़ान (लघुकथा)”

            जानकी गोपाल की परवरिश को लेकर बहुत चिंतित थी। बहुत सारी समस्याओं से घिरे होने के कारण वह हर समय गोपाल के बारे में सोचा करती थी। वह अपने बच्चे को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य कौशल में भी निपुण बनाना चाहती थी। कुछ समय पश्चात उसकी अपनी पुरानी सहेली उमा से भेंट हुई। उमा एक सरकारी नौकरी में ऊँचे ओहदे पर थी। उमा में आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा था। उसके लिए उपलब्धियाँ और आलोचना सहज रूप से शिरोधार्य थी। जीवन के कड़वे अनुभव और संघर्ष के बावजूद भी उसने अपने चेहरे से मुस्कुराहट कम नहीं होने दी। समस्याएँ तो उसके जीवन में भी थी पर समस्याओं को पीछे छोडते हुए सपनों को साकार करने का गुण उसे आता था। जब जानकी उमा से मिली तो पता नहीं क्यों उसमें सकारात्मक विचारों के भाव उत्पन्न हो रहे थे। वह अपनी सहेली की निपुणता तो पहले से ही जानती थी। उसने अपने असमंजस विचार और मन की बात उमा के सामने रखी। उमा ने उसे विचारों के भटकाव से दूर केवल गोपाल पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कही। उसने उसे समझाया की यदि वह गोपाल को उत्साह वाले उमंगों की उड़ान देना चाहती है तो उसे अपने प्रयत्नों की ऊँचाई बढ़ानी होगी। असफलता का सफर ही जीवन में अकेला तय करना होता है। वही समय खुद से जूझने वाला होता है। सफलता की सजावट में तो सभी के रंग शामिल होते है। सच्चे मन से किए गए प्रयास कभी भी निष्फल नहीं होते है।

            उमा की इन बातों ने जानकी के मन में उमंग और उत्साह के भावों का संचार किया और उसने सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ्ने का निर्णय लिया और आने वाले समय में गोपाल को मनचाहे सपनों की ऊँची उड़ान दी। इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है की कभी-कभी सही लोगों के सही समय पर मार्गदर्शन से हमारे मन के संशय दूर हो जाते है और इस संशय के जाल से मुक्त होकर एक उज्ज्वल पथ की नींव रख सकते है। कभी-कभी दूसरों के अनुभव भी जीवन में सफलता की श्रेष्ठ कुंजी सिद्ध हो सकते है। जीवन में प्रगति के पथ पर हमें अडिग रूप से चलना होता है जिसकी उड़ान आशावादी नजरिए और निरंतर संघर्ष से ही प्राप्त की जा सकती है।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

हमारी बगिया का टमाटर और स्वदेशी अभियान

-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’



अचानक जब देश में पहला लॉक डाउन लगा तब जनता असहज हो गई। लोगों को ऐसीं परिस्थितियों का न तो अभ्यास था न अशंका। अनाज, दालें तो कुछ लोगों के घर में थीं किन्तु शब्जी, फल आदि की किल्लत हो गई थी। उसपर ऐसीं अफवाहें भी आती थीं कि कुछ शरारती तत्त्व हाथ ठेले में आलू आदि शब्जियाँ और सेव जैसे फलों पर थूक कर बेच रहे हैं, जिससे कोविड अधिक से अधिक लोगों में फैले। ऐसे में संभ्रान्त लोग अधिक सतर्क थे। बुन्देलखण्ड के जैनों ने कहा हमारे तो पर्यूषण पर्व चल रहे हैं। पर्व के दिनों में यहाँ की जैन समाज के यहाँ हरी शब्जी नहीं बनती है। किन्तु अधिकांश लोग शब्जी और फलों के अभाव में परेशान थे। जिनके गांवों के लोगों से निजी संपर्क थे वे उनसे यदा कदा शब्जी मंगवा लेते थे। जिन्होंने अपने यहाँ बगिया लगा रखी है, लॉन या टेरिस पर फल-शब्जी बाले पेड़-पौधे लगा रखे हैं और उनमें थोड़े भी फल या शब्जी लग रहे थे वे बहुत महत्वपूर्ण हो गये थे। हमारे यहाँ भी टेरिस पर टमाटर लग रहे थे। ताज्जुब था कि इस वर्ष के सीजन में अच्छे टमाटर लग रहे थे और लगभग एक माह तक उन्होंने हमारी स्वदेशी क्या स्वोत्पादित शब्जी के रूप में रसोई की शान बढ़ाई।
ये साधारण संदर्भ नहीं है। यह टमाटर हमें स्वदेशी के महत्व को उद्घाटित करता है। उसने एहसास दिलाया है कि विपत्ति के समय स्वदेशी और स्वकीय ही काम आयेगा। अपनी बगिया का टमाटर कहता है कि स्वावलम्बी बनो, स्वदेशी अपनाओ। कब तक दूसरों पर निर्भर रहोगे। जिसके ऊपर निर्भर रहोगे वह कभी भी भृकुटी चढ़ाकर आपूर्ति रोक सकता है। स्वदेशी उत्पाद हमेशा हमारा साथ देंगे। बाहर के देशों से लड़ाकू विमान, टैंक आदि खरीदते हैं, तो कल-पुर्जा भी उन्हीं से लेने की मजबूरी होती है। यदि किन्हीं परिस्थितियों के कारण उन्होंने कल-पुर्जे ही भेजना बंद कर दिये तो हमारे वे विमान आदि बेकार हो जायेंगे। प्रत्येक क्षेत्र में हमें स्वदेशी अपना कर स्वावलम्बी बनना होगा। लॉक डाउन के दौरान एक-दो नामी गिरामी हस्तियाँ संपन्नता रहते हुए भी इलाज के लिए विदेश नहीं जा सकीं, देहान्त हो गया। हमें अपनी स्वास्थ्य सेवायें भी अन्य देशों से अधिक सुदृढ़ करना होंगीं, जिससे किसी को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अन्य देश न जाना पड़े। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने चीन से तना-तनी के समय से स्वदेशी को बहुत बढ़ावा दिया है। हम सभी को अपने अपने स्तर से स्वदेशी अभियान में सहयोग करना चाहिए।

संजीव-नी

नहीं दिखता इन्हें,

 मिट्टी के गोले का अंतहीन,

 आकार रहित बस्तर,

 बस्तर का महुआ,सागौन,

 सालबुलाते हैं,

 लोग बस कविता कर जाते हैं,

 घूम जाते हैं तीरथगढ़

 कुटुमसरचित्रकूट,

 दो शब्द लिख जाते हैं कटाक्ष की तरह,

 गंगालूर की घाटियों में,

 लोदे  सा मरता आदमी नहीं दिखता,

महुआ से  टपकती मौत की आवाज,

 नाले का कीचड़ पिता मारिया,

चरोटा भाजी से ओंटता पेट,

पेचिश की खुनीं  रफ्तार,

बाल की खाल खाता लगोंटी धारी,

मिर्च और  इमली के पानी से भरता पेट

नहीं दिखती विलासी कविता को

नहीं दिखती एठती आदिवासी सुप्रिया की नसे,

 नहीं दिखती मिट जाती  कीचड़ सनी

 आंखों में मौत की नींद,

 नहीं गंदा थी तपते  धूप से जलते,

आदिवासी मांस की,

 वही  पलाशटेसू और गुलर 

जो कैनवास देते हैं,

 इन विलासी कविताओं को,

 मौत देते हैं वही पतझड़ में,

 लंगोटी को,

 नहीं दिखता भूख से जंगल में मौत का तांडव,

 इन्हें दिखती है राजधानी से आदी  बालाओं के,

नग्न शरीर के लुभावने कटाव,

 दिखती है उन्हें  खुली जिंदगी,

मस्त व्यसन कारी,

महुआ बीनती,

 मदहोश आदी  बालाएं

यूएसए हुई अंत जिंदगियां नहीं दिखती,

 कीचड़ से पानी के कतरे तलाश थी

 गरीब मोरिया नहीं दिखती,

 अंतहीन पसीने की बूंदे ,

 मौत का अनवरत आदिवासी सिलसिला

 नहीं दिखता इन्हें,

 इन्हें  दिखती हैं कविताएं,

 अपने बस्तर प्रेम की

 बुद्धिजीवी छापऔर

 घड़ियाली आंसुओं का सैलाब|

संजीव ठाकुर, रायपुर छ.ग.


Wednesday, May 4, 2022

आम की बागवानी को प्रदेश सरकार दे रही है बढ़ावा

अयोध्या टाईम्स एस० बी० यादव ब्यूरो चीफ अमेठी। 04 मई 2022,* 

आम भारतवर्ष का ही नहीं, देश-विदेश की अधिकांश जनसंख्या का भी एक पसंदीदा और सबसे लोकप्रिय फल है। इसकी सुवास, उपलब्ध पोषक तत्वों, विभिन्न क्षेत्रों एवं जलवायु में उत्पादन क्षमता, आकर्षक रंग, विशिष्ट स्वाद और मिठास विभिन्न प्रकार के बनाये जाने वाले खाद्य पदार्थ आदि विशेषताओं के कारण इसे फलों का राजा (King of Fruits) की उपाधि से विभूषित किया गया है। आम लगभग 3-10 मी0 तक की ऊँचाई प्राप्त करने वाला सदाबहार वृक्ष है। भारत आम उत्पादन में विश्व के अनेक देशों में से एक अग्रणी देश है। विश्व के कुल आम उत्पादन में से 40 प्रतिशत से अधिक आम का उत्पादन भारत में होता है। भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश, प्रमुख आम उत्पादक राज्य है। इसके अतिरिक्त यह छोटे स्तर पर लगभग सभी मैदानी क्षेत्रों में उगाया जाता है। आम उत्पादन में उचित परिपक्वता निर्धारण के साथ वैज्ञानिक ढंग से तुड़ाई, सुरक्षित रखरखाव एवं पैकेजिंग बेहतर प्रबंधन विपणन को दृष्टिगत रखते हुए उ0प्र0 सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आम उत्पादन को बढ़ावा दे रहे है। आम (मैंजीफेरा इंडिका एल0) भारतीय उप-महाद्वीप का एक महत्वपूर्ण फल है तथा भारत में विश्व का सबसे अधिक आम उत्पादन होता है। बहुपयोगी होने के कारण ही आम का भारत की संस्कृति से गहरा संबंध रहा है। आम का उत्पादन भारत में प्राचीन काल से ही किया जा रहा है। भारत में इस फल की समाज के आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में इसकी बहुमुखी उपयोगिता के कारण ही विशेष महत्व है। आम का फल सभी जनमानस को सरलता से उपलब्ध होता है। इस फल की पौष्टिकता व विभिन्न गुणों के कारण ही यह सभी लोगों की पसन्द है। आम कच्चा हो या पक्का हो सभी तरह से प्रयोग किया जाता है। आम का अचार तो विश्व प्रसिद्ध है ही साथ में उसकी गुठली के अचार आदि बनते हैं। आम की खट्ठी-मीठी चटनी, आम का पना, आम का जूस/शेक, आइसक्रीम, खटाई, रायता, आम रस का सुखाकर बनाया गया अमावट, आदि विभिन्न खाद्य पदार्थ बनाये जाते हैं। आम उ0प्र0 की मुख्य बागवानी फसल है। उ0प्र0 के 280 हजार हे0 क्षेत्रफल में आम का बगीचा है। प्रदेश में लगभग 48 लाख मी0टन से अधिक आम उत्पादित होता है, जो देश के कुल उत्पादन का लगभग 83 प्रतिशत है। आम उत्पादन की दृष्टि से उ0प्र0 के बाद आंध्र प्रदेश, बिहार एवं कर्नाटक, महाराष्ट्र आम उत्पादन करने वाले अग्रणी राज्य है। उ0प्र0 में सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद, वाराणसी, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, सुल्तानपुर जनपद आम फल पट्टी क्षेत्र घोषित है, जहां पर दशहरी, लंगड़ा, लखनऊ सफेदा, चौसा, बाम्बे ग्रीन रतौल, फजरी, रामकेला, गौरजीत, सिन्दूरी आदि किस्मों का उत्पादन किया जा रहा है। मलिहाबाद फल पट्टी क्षेत्र के 26,400 हे0 क्षेत्रफल में दशहरी, लंगड़ा, लखनऊ सफेदा, चौंसा उत्पादित किया जा रहा है। आम उष्ण तथा उपोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में पैदा किया जा सकता है। भारत में इसकी खेती समुद्र तल से 1500 मी0 की ऊॅचाई तक वाले हिमालय क्षेत्र में की जा सकती है। लेकिन व्यावसायिक दृष्टि से समुद्र तल से 600 मी0 तक की ही ऊचाई में अधिक सफलता से आम पैदा किया जा सकता है। आम के पौधों का जड़ विन्यास काफी गहराई तक जाता है। अतः इसके विकास के लिए कम से कम 2 मी0 तक की गहराई की अच्छी मिट्टी आवश्यक है। आम के लिए सबसे उपयुक्त भूमि गहरी, उचित निकास वाली दोमट मानी जाती है। उत्तर प्रदेश में प्रमुख व्यावसायिक प्रजातियों के आम उत्पादित होते हैं। प्रदेश की दशहरी प्रजाति की उत्पत्ति उ0प्र0 के लखनऊ जनपद के समीप दशहरी गॉव से हुई है। उत्तर भारत की यह प्रमुख व्यावसायिक प्रजाति का फल है। फल मध्यम आकार के तथा फलों का रंग हल्का पीला होता है। फलों की गुणवत्ता एवं भण्डारण तथा विपणन के लिए प्रदेश सरकार ने मलिहाबाद में विशेष व्यवस्था की हैं प्रदेश की लॅगड़ा प्रजाति उत्तर प्रदेश के बनारस जनपद से हुई है। उत्तर भारत की यह प्रमुख व्यावसायिक प्रजाति है। फल मध्यम आकार के तथा फलों का रंग हल्का पीला होता है फलों की गुणवत्ता एवं भण्डारण अच्छा है। यह प्रजाति मध्य मौसम में पकनें वाली होती है। लखनऊ सफेदा प्रजाति के फल 15 जून के बाद पकना शुरू होते हैं। फल मध्यम आकार के, पीले रंग के तथा अच्छी मिठास वाले होते हैं। चौसा आम की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के सण्डीला स्थान से हुई है। इसके स्वाद व रंग के कारण उत्तर भारत में इसका व्यावसायिक उत्पादन किया जा रहा है। फलों का आकार लम्बा, रंग हल्का पीला होता है। यह देर से पकने वाली प्रजाति है। प्रदेश में आम्रपाली प्रजाति दशहरी एवं नीलम के संकरण से प्राप्त, बौनी एवं नियमित फल देने वाली संकर प्रजाति है। यह सघन बागवानी के लिए उपयुक्त प्रजाति है। एक हेक्टेयर में 1600 पौधे रोपित किया जा सकते हैं तथा 16 टन से अधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है। यह देर से पकने वाली प्रजाति है। मल्लिका प्रजाति नीलम एवं दशहरी के संकरण से प्राप्त संकर प्रजाति है फलों का आकार लम्बा एवं भण्डारण क्षमता अच्छी है। यह मध्य मौसम में पकने वाली प्रजाति है। प्रदेश में कलमी एवं देशी आम का भी अच्छा उत्पादन होता है। प्रदेश सरकार आम की फसल के उत्पादन करने वाले किसानों को भरपूर सहायता कर रही है। उ0प्र0 राज्य औद्यानिक सहकारी विपणन संघ (हापेड़) द्वारा गुणवत्तायुक्त निर्यातोन्मुखी प्रगतिशील आम उत्पादकों को आम की तुड़ाई हेतु मैंगो हार्वेस्टर एवं रख-रखाव हेतु प्लास्टिक क्रेट्स अनुदान पर दे रही है। प्रदेश सरकार आम की प्रजातियों को अन्य प्रदेशों में स्थापित करने तथा प्रदेश से घरेलू विपणन/निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश व प्रदेश के बाहर आम वायर, सेलर मीट कार्यक्रम आयोजित कर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। प्रदेश सरकार आम के विपणन, निर्यात प्रोत्साहन हेतु निरन्तर कार्य कर रही है। आम के निर्यात से प्रदेश के आम उत्पादकों को आर्थिक लाभ मिल रहा है।