Thursday, October 13, 2022

ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण

 ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण।

यह विश्व का ऐसा अनोखा मंदिर है जो 24 घंटे में मात्र दो मिनट के लिए बंद होता है। यहां तक कि ग्रहण काल में भी मंदिर बंद नहीं किया जाता है। कारण यह कि यहां विराजमान भगवान कृष्ण को हमेशा तीव्र भूख लगती है। भोग नहीं लगाया जाए तो उनका शरीर सूख जाता है। अतः उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है, ताकि उन्हें निरंतर भोजन मिलता रहे। साथ ही यहां आने वाले हर भक्त को भी प्रसादम् (प्रसाद) दिया जाता है। बिना प्रसाद लिये भक्त को यहां से जाने की अनुमति नहीं है।


मान्यता है कि जो व्यक्ति इसका प्रसाद जीभ पर रख लेता है, उसे जीवन भर भूखा नहीं रहना पड़ता है। श्रीकृष्ण हमेशा उसकी देखरेख करते हैं।
केरल के कोट्टायम जिले के तिरुवरप्पु में यह प्राचीन मंदिर स्थित है। लोक मान्यता के अनुसार कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण बुरी तरह से थक गए थे। भूख भी बहुत अधिक लगी हुई थी। उनका वही विग्रह इस मंदिर में है। इसलिए मंदिर साल भर हर दिन खुला रहता है। मंदिर बंद करने का समय दिन में 11.58 बजे है। उसे दो मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है।
पुजारी को मंदिर के ताले की चाबी के साथ कुल्हाड़ी भी दी गई है। उसे निर्देश है कि ताला खुलने में विलंब हो तो उसे कुल्हाड़ी से तोड़ दिया जाए। ताकि भगवान को भोग लगने में तनिक भी विलंब न हो। चूंकि यहां मौजूद भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं है इसलिए उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है। उनको 10 बार नैवेद्यम (प्रसाद) अर्पित किया जाता है।
मंदिर खोले रखने की व्यवस्था आदि शंकराचार्य की है।
ऐसा मंदिर जहां श्रीकृष्ण से भूख बर्दाश्त नहीं होता है। पहले यह आम मंदिरों की तरह बंद होता था। विशेष रूप से ग्रहण काल में इसे बंद रखा जाता था। तब ग्रहण खत्म होते-होते भूख से उनका विग्रह रूप पूरी तरह सूख जाता था। कमर की पट्टी नीचे खिसक जाती थी। एक बार उसी दौरान आदि शंकराचार्य मंदिर आए। उन्होंने भी यह स्थिति देखी। तब उन्होंने व्यवस्था दी कि ग्रहण काल में भी मंदिर को बंद नहीं किया जाए। तब से मंदिर बंद करने की परंपरा समाप्त हो गई।
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भूख और भगवान के विग्रह के संबंध को हर दिन अभिषेकम के दौरान देखा जा सकता है। अभिषेकम में थोड़ा समय लगता है। उस दौरान उन्हें नैवेद्य नहीं चढ़ाया जा सकता है। अतः नित्य उस समय विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है। यह दृश्य अद्भुत और अकल्पनीय सा प्रतीत होता है लेकिन है पूर्णतः सत्य।
प्रसादम् लेने वाले के भोजन की श्रीकृष्ण करते हैं चिंता।
इस मंदिर के साथ एक और मान्यता जुड़ी हुई है कि जो भक्त यहां पर प्रसादम् चख लेता है, फिर जीवन भर श्रीकृष्ण उसके भोजन की चिंता करते हैं। यही नहीं, उसकी अन्य आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हैं।
प्राचीन शैली के इस मंदिर के बंद होने से ठीक पहले 11.57 बजे प्रसादम् के लिए पुजारी जोर से आवाज लगाते हैं। इसका कारण मात्र यही है कि यहां आने वाला कोई भक्त प्रसाद से वंचित न हो जाए।
यह अत्यंत रोचक है कि भूख से विह्वल भगवान अपने भक्तों के भोजन की जीवन भर चिंता करते हैं। उनके अपनी भूख की यह हालत है कि उसे देखते हुए मंदिर को नित्य सिर्फ दो मिनट बंद रखा जाता है। इसका कारण भगवान को सोने का समय देना है। अर्थात इस मंदिर में वे मात्र दो मिनट सोते हैं।
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Sunday, October 9, 2022

राजा दशरथ के मुकुट का एक अनोखा राज

 राजा दशरथ के मुकुट का एक अनोखा राज!!!!!!


**अयोध्या के राजा दशरथ एक बार भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले वहां उनका समाना बाली से हो गया। राजा दशरथ की किसी बात से नाराज हो बाली ने उन्हें युद्ध के लिए चुनोती दी। राजा दशरथ की तीनो रानियों में से कैकयी अश्त्र शस्त्र एवं रथ चालन में पारंगत थी।

**अतः अक्सर राजा दशरथ जब कभी कही भ्रमण के लिए जाते तो कैकयी को भी अपने साथ ले जाते थे इसलिए कई बार वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ होती थी। जब बाली एवं राजा दशरथ के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था उस समय संयोग वश रानी कैकयी भी उनके साथ थी।
**युद्ध में बाली राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा वह इसलिए क्योकि बाली को यह वरदान प्राप्त था की उसकी दृष्टि यदि किसी पर भी पद जाए तो उसकी आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी। अतः यह तो निश्चित था की उन दोनों के युद्ध में हर राजा दशरथ की ही होगी।
**राजा दशरथ के युद्ध हारने पर बाली ने उनके सामने एक शर्त रखी की या तो वे अपनी पत्नी कैकयी को वहां छोड़ जाए या रघुकुल की शान अपना मुकुट यहां पर छोड़ जाए। तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़ रानी कैकेयी के साथ वापस अयोध्या लौटना पड़ा।


**रानी कैकयी को यह बात बहुत दुखी, आखिर एक स्त्री अपने पति के अपमान को अपने सामने कैसे सह सकती थी। यह बात उन्हें हर पल काटे की तरह चुभने लगी की उनके कारण राजा दशरथ को अपना मुकुट छोड़ना पड़ा।
**वह राज मुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं। जब श्री रामजी के राजतिलक का समय आया तब दशरथ जी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई। यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे। कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भिजवाया। उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है।
**श्री राम जी ने जब बाली को मारकर गिरा दिया। उसके बाद उनका बाली के साथ संवाद होने लगा। प्रभु ने अपना परिचय देकर बाली से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था। तब बाली ने बताया- रावण को मैंने बंदी बनाया था। जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया। प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें। वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा।
जब अंगद श्री राम जी के दूत बनकर रावण की सभा में गए। वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी। रावण के महल के सभी योद्धा ने अपनी पूरी ताकत अंगद के पैर को हिलाने में लगाई परन्तु कोई भी योद्धा सफल नहीं हो पाया।
**जब रावण के सभा के सारे योद्धा अंगद के पैर को हिला न पाए तो स्वयं रावण अंगद के पास पहुचा और उसके पैर को हिलाने के लिए जैसे ही झुका उसके सर से वह मुकुट गिर गया। अंगद वह मुकुट लेकर वापस श्री राम के पास चले आये। यह महिमा थी रघुकुल के राज मुकुट की।
** ग्रहदशा जब राजा दसरथ के पास गई तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी। बाली से जब रावण वह मुकुट लेकर गया तो तो बाली को अपने प्राणों को आहूत देनी पड़ी। इसके बाद जब अंगद रावण से वह मुकुट लेकर गया तो रावण के भी प्राण गए।
**तथा कैकयी के कारण ही रघुकुल के लाज बच सकी यदि कैकयी श्री राम को वनवास नही भेजती तो रघुकुल सम्मान वापस नही लोट पाता. कैकयी ने कुल के सम्मान के लिए सभी कलंक एवं अपयश अपने ऊपर ले लिए अतः श्री राम अपनी माताओ सबसे ज्यादा प्रेम कैकयी को करते थे।

Friday, October 7, 2022

सही जगह पर ही तुम्हें सही महत्व मिलेगा

 पिता ने बेटे से कहा, "तुमने बहुत अच्छे नंबरों से ग्रेजुएशन पूरी की है। अब क्यूंकि तुम नौकरी पाने के लिए प्रयास कर रहे हो , मैं तुमको यह कार उपहार स्वरुप भेंट करना चाहता हूँ , यह कार मैंने कई साल पहले हासिल की थी, यह बहुत पुरानी है। इसे कार डीलर के पास ले जाओ और उन्हें बताओ कि तुम इसे बेचना चाहते हो। देखो वे तुम्हें कितना पैसा देने का प्रस्ताव रखते हैं।"

बेटा कार को डीलर के पास ले गया, पिता के पास लौटा और बोला, "उन्होंने 60,000 रूपए की पेशकश की है क्योंकि कार बहुत पुरानी है।" पिता ने कहा, "ठीक है, अब इसे कबाड़ी की दुकान पर ले जाओ।"
बेटा कबाड़ी की दुकान पर गया, पिता के पास लौटा और बोला, "कबाड़ी की दुकान वाले ने सिर्फ 6000 रूपए की पेशकश की, क्योंकि कार बहुत पुरानी है।"
पिता ने बेटे से कहा कि कार को एक क्लब ले जाए जहां विशिष्ट कारें रखी जाती हैं।
बेटा कार को एक क्लब ले गया, वापस लौटा और उत्साह के साथ बोला, "क्लब के कुछ लोगों ने इसके लिए 60 लाख रूपए तक की पेशकश की है! क्योंकि यह निसान स्काईलाइन आर34 है, एक प्रतिष्ठित कार, और कई लोग इसकी मांग करते हैं।"
पिता ने बेटे से कहा, "कुछ समझे? मैं चाहता था कि तुम यह समझो कि सही जगह पर ही तुम्हें सही महत्व मिलेगा। अगर किसी प्रतिष्ठान में तुम्हें कद्र नहीं मिल रही, तो गुस्सा न होना, क्योंकि इसका मतलब एक है कि तुम गलत जगह पर हो।
सफलता केवल अपने हुनर और परिश्रम से नहीं मिल जाती, लोगों के साथ मिलती है, और तुम किन लोगों के बीच में हो , कुछ समय में तुमको स्वतः ही ज्ञात हो जाएगा I तुम्हें सही जगह पर जाना होगा, जहाँ लोग तुम्हारी कीमत जानें और सराहना करें।
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Ashish Narayana Gupta, CP Prateek Chandra and 42K others
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Friday, September 30, 2022

मां दुर्गा की मूर्ति के शेर द्वारा दूध पीने का मामला कौतूहल का विषय बना

 मां दुर्गा की मूर्ति के शेर द्वारा दूध पीने का मामला कौतूहल का विषय बना है।


जलालाबाद शामली रिपोर्टर फैसल मलिक तहसील संवाददाता दैनिक अयोध्या टाइम्स जनपद शामली।



 वीडियो सोशल मीडिया में खूब शेयर की जा रही है। जिसमें कुछ महिलाएं मां दुर्गा की मिट्टी से बनी मूर्ति के शेर को चम्मच से दूध पिलाती दिख रही हैं। वीडियो में कहा जा रहा है कि मां दुर्गा का शेर दूध पी रहा है जब यह खबर गांव में फैली तो गांव की महिलाएं शेर को दूध पिलाने के लिए पहुंचने लगी। मामला जनपद शामली के थानाभवन क्षेत्र के गांव मादलपुर का है मादलपुर में अमित पुत्र तेजा कश्यप के यहां देखने को मिला की अमित के परिवार ने नवरात्रि में मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित कर पूजन किया अमित ने बताया कि उनकी बेटी रिया जब भोग लगा रही थी तो उसने चम्मच से दूध लेकर दुर्गा मां की मूर्ति के शेर के मुंह पर लगा दी देखते-देखते चम्मच खाली हो गई जबकि दूध की एक बूंद भी बाहर नहीं गिरी। रिया ने परिवार को इस बारे में बताया तो परिवार के लोग भी चम्मच से शेर की मूर्ति को दूध पिलाने लगे। इसके बाद धीरे-धीरे खबर पूरे गांव में फैल गई तो लोगों की भीड़ बढ़ने लगी अब वीडियो खूब सोशल मीडिया में शेयर की जा रही है। वह इस मामले में एक्सपर्ट से फोन पर बात की गई तो उनका कहना है कि मिट्टी की प्रकृति नमी को सोखने की होती है जब मिट्टी की मूर्ति को कोई द्रव्य लगाया जाता है तो वह उसे सोख लेता है। यह वैज्ञानिक तथ्य हैं इसमें चमत्कार जैसा कुछ भी नहीं। लोगों को यह समझना चाहिए लेकिन भारत में इस तरह की चमत्कारी घटनाओं की वीडियो अक्सर सामने आती रहती हैं। अब इसे  चमत्कार कहे या भ्रम लेकिन लोगों में यह वीडियो कोतूहल का विषय बनी है।

Wednesday, September 28, 2022

पानी में डूबे व्यक्ति का ईलाज

 अगर कभी कोई पानी में डूब के मर जाये और उसका शरीर 3 से 4 घंटे में मिल जाये तो उसकी जिंदगी वापस ला सकता हूँ।अगर कभी किसी को ऐसी दूर्घटना दिखे या सुनाई दे तो तुरंत हमे बताये।।। किसी की जान बच सकती है।। 

प्रशान्त त्रिपाठी

 ़919454311111 और

 ़919335673001 है

आप सभी से विनम्र अनुरोध है कि इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये।

किसी एक की भी जान बचा सका तो अपना जीवन सफल महसूस करूँगा।।धन्यवाद

पानी में डूबे व्यक्ति का ईलाज 

डेढ़ क्विंटल डले वाला खड़ा नमक को बिस्तर जैसा बिछाकर मरीज को उस पर कपड़े कम करके लेटा दें । नमक धीरे धीरे शरीर से पानी सोख लेगा ।  मरीज के होश आने पर अस्पताल ले जाये । इससे पहले आप अस्पताल ले गये हो और डाँक्टर ने मृत घोषित कर दिया तो आप नमक वाला उपचार करें प्रभु कृपा से खुशी की लहर फैल जायेगी । 

डाँक्टर के मृत घोषित करने पर 

दाह संस्कार करने में जल्दी ना करें ।

जल्दी से जल्दी नमक का उपचार करने के लिये -



मरीज को किसी कार जीप से शहर में ले जायें जहाँ नमक की बोरिया रात में भी बाहर ही पड़ी रहती है उन्हें खाली करके मरीज को जल्दी से सुला दें । 

दुकानदार का हिराब बाद में सुबह या दिन में भी किया जा सकता है ।

नोटरू- डूबे हुए जितना कम समय हुआ होगा उतना जल्दी व्यक्ति के होश में आने की सम्भावना होती है । अतः हर कार्य युद्य स्तर से करें ।

कुछ लोग नमक लेने पहले से ही चलें जायें तो परिणाम शीघ्र मिलेगा ।

के. सी. रूपरा 

नारायणगढ़ ,मन्दसौर म. प्र. 


बिना पढ़ी लिखी पायलट

हमीरपुर जिले के बदनपुर गांव की रुफूलमती बुंदेलखंड की धरती पर वह कर रही हैं, जिसे देखकर पुरुष भी दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। इतनी पढ़ी लिखी तो हैं नहीं कि पायलट बन सकें, लेकिन ऊपर वाले ने बाजुओं में वो ताकत जरूर दी है कि अपने पौरुष से सम्मानपूर्वक परिवार का पालन-पोषण कर सकें। 



पति नशेबाज व अकर्मण्य निकला तो वह प्रतिदिन हमीरपुर से बदनपुर के बीच रिक्शा चलाकर सवारियां ढोती हैं।और अपने बच्चो का पालन पोषण करती है

फूलमती देवी उन महिलाओं के लिए भी प्रेरणाश्रोत है जो अपने पति की नशे की आदत से तंग आकर गलत कदम उठा लेती है 

प्रणाम इस महान महिला  को जो मेहनत करके पैसा कमा रही है। ईश्वर इन पर जल्दी कृपा करे ......!!

 

गोबर गणेश

गणेश विसर्जन (गोबर गणेश) 

यह यथार्थ है कि जितने लोग भी गणेश विसर्जन करते हैं उन्हें यह बिल्कुल पता नहीं होगा कि यह गणेश विसर्जन क्यों किया जाता है और इसका क्या लाभ है ?? 

हमारे देश में हिंदुओं की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि देखा देखी में एक परंपरा चल पड़ती है जिसके पीछे का मर्म कोई नहीं जानता लेकिन भयवश वह चलती रहती है 



आज जिस तरह गणेश जी की प्रतिमा के साथ दुराचार होता है , उसको देख कर अपने हिन्दू मतावलंबियों पर बहुत ही ज्यादा तरस आता है और दुःख भी होता है 


शास्त्रों में एकमात्र गौ के गोबर से बने हुए गणेश जी या मिट्टी से बने हुए गणेश जी की मूर्ति के विसर्जन का ही विधान है 


गोबर से गणेश एकमात्र प्रतीकात्मक है माता पार्वती द्वारा अपने शरीर के उबटन से गणेश जी को उत्पन्न करने का 


चूंकि गाय का गोबर हमारे शास्त्रों में पवित्र माना गया है इसीलिए गणेश जी का आह्वाहन गोबर की प्रतिमा बनाकर ही किया जाता है 


इसीलिए एक शब्द प्रचलन में चल पड़ा = ष्गोबर गणेशष् 


इसिलिए पूजा , यज्ञ , हवन इत्यादि करते समय गोबर के गणेश का ही विधान है जिसको बाद में नदी या पवित्र सरोवर या जलाशय में प्रवाहित करने का विधान बनाया गया 


अब आईये समझते हैं कि गणेश जी के विसर्जन का क्या कारण है ?


भगवान वेदव्यास  ने जब शास्त्रों की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने प्रेरणा कर प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी को वेदव्यास जी की सहायता के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भेजा 


वेदव्यास जी ने गणेश जी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक आसन पर स्थापित एवं विराजमान किया 


( जैसा कि आज लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की प्रतिमा को अपने घर लाते हैं ) 


वेदव्यास जी ने इसी दिन महाभारत की रचना प्रारम्भ की या ष्श्री गणेशष् किया 


वेदव्यास जी बोलते जाते थे और गणेश जी उसको लिपिबद्ध करते जाते थे लगातार दस दिन तक लिखने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन इसका उपसंहार हुआ 


भगवान की लीलाओं और गीता के रस पान करते करते गणेश जी को अष्टसात्विक भाव का आवेग हो चला था जिससे उनका पूरा शरीर गर्म हो गया था और गणेश जी अपनी स्थिति में नहीं थे 


गणेश जी के शरीर की ऊष्मा का निष्कीलन या उनके शरीर की गर्मी को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया इसके बाद उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया , जिसे विसर्जन का नाम दिया गया 


बाल गंगाधर तिलक जी ने अच्छे उद्देश्य से यह शुरू करवाया पर उन्हें यह नहीं पता था कि इसका भविष्य बिगड़ जाएगा 


गणेश जी को घर में लाने तक तो बहुत अच्छा है , परंतु विसर्जन के दिन उनकी प्रतिमा के साथ जो दुर्गति होती है वह असहनीय बन जाती है 


आजकल गणेश जी की प्रतिमा गोबर की न बना कर लोग अपने रुतबे , पैसे , दिखावे और अखबार में नाम छापने से बनाते हैं 


जिसके जितने बड़े गणेश जी , उसकी उतनी बड़ी ख्याति , उसके पंडाल में उतने ही बड़े लोग , और चढ़ावे का तांता

इसके बाद यश और नाम अखबारों में अलग 


सबसे ज्यादा दुःख तब होता है जब पब्लिक को आकर्षित करने के लिए लोग डीजे पर फिल्मी अश्लील गाने और नचनियाँ को नचवाते हैं 


आप विचार करके हृदय पर हाथ रखकर बतायें कि क्या यही उद्देश्य है गणेश चतुर्थी या अनंत चतुर्दशी का ?? क्या गणेश जी का यह सम्मान है ?? 


इसके बाद विसर्जन के दिन बड़े ही अभद्र तरीके से प्रतिमा की दुर्गति की जाती है 


वेदव्यास जी का तो एक कारण था विसर्जन करने का लेकिन हम लोग क्यों करते हैं यह बुद्धि से परे है 


क्या हम भी वेदव्यास जी के समकक्ष हो गए ??? क्या हमने भी गणेश जी से कुछ लिखवाया ? 


क्या हम गणेश जी के अष्टसात्विक भाव को शांत करने की हैसियत रखते हैं ??


गोबर गणेश मात्र अंगुष्ठ के बराबर बनाया जाता है और होना चाहिए , इससे बड़ी प्रतिमा या अन्य पदार्थ से बनी प्रतिमा के विसर्जन का शास्त्रों में निषेध है 


और एक बात और गणेश जी का विसर्जन बिल्कुल शास्त्रीय नहीं है 


यह मात्र अपने स्वांत सुखाय के लिए बिना इसके पीछे का मर्म, अर्थ और अभिप्राय समझे लोगों ने बना दिया 


एकमात्र हवन , यज्ञ , अग्निहोत्र के समय बनने वाले गोबर गणेश का ही विसर्जन शास्त्रीय विधान के अंतर्गत आता है 

प्लास्टर ऑफ पैरिस से बने , चॉकलेट से बने , केमिकल पेंट, से बने गणेश प्रतिमा का विसर्जन एकमात्र अपने भविष्य और उन्नति के विसर्जन का मार्ग है 


इससे केवल प्रकृति के वातावरण , जलाशय , जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र , भूमि , हवा , मृदा इत्यादि को नुकसान पहुँचता है 


इस गणेश विसर्जन से किसी को एक अंश भी लाभ नहीं होने वाला 


हाँ बाजारीकरण , सेल्फी पुरुष , सेल्फी स्त्रियों को अवश्य लाभ मिलता है लेकिन इससे आत्मिक उन्नति कभी नहीं मिलेगी


इसीलिए गणेश विसर्जन को रोकना ही एकमात्र शास्त्र अनुरूप है 


चलिए माना कि आप अज्ञानतावश डर रहे हैं कि इतनी प्रख्यात परंपरा हम कैसे तोड़ दें तो करिए विसर्जन  लेकिन गोबर के गणेश को बनाकर विसर्जन करिए और उनकी प्रतिमा 1 अंगुष्ठ से बड़ी नहीं होनी चाहिए 

 

मुझे पता है मेरे इस पोस्ट से कुछ कट्टर झट्टर बनने वालों को ठेस लगेगी और वह मुझे हिन्दू विरोधी घोषित कर देंगे 


बाकी का - सोई करहुँ जो तोहीं सुहाई 


तस्वीर मे जो मुर्तियों की दुर्दशा दिख रही है ये हर साल होती है 

इस साल भी आज से दुर्दशा चालू हो चुकी है।


छात्रों को डिजिटल साक्षरता के बारे में जानने की आवश्यकता क्यों

विजय गर्ग

डिजिटल साक्षरता छात्रों को यह जानने में मदद करती है कि इंटरनेट का सुरक्षित और जिम्मेदारी से उपयोग कैसे करें
युवा कई प्रकार के तकनीकी उपकरणों का उपयोग करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि डिजिटल साक्षरता के बारे में जानते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय डिजिटल साक्षरता को "व्यक्तियों और समुदायों की जीवन स्थितियों में सार्थक कार्यों के लिए डिजिटल तकनीकों को समझने और उपयोग करने की क्षमता" के रूप में परिभाषित करता है। महामारी जिस गति से विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल तकनीक को अपना रही है, उसे देखते हुए छात्रों को इसे सुरक्षित और प्रभावी ढंग से उपयोग करने के बारे में जानने की जरूरत है। कई युवा कई प्रकार के तकनीकी उपकरणों का उपयोग करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे सीखने के लिए एक ही उपकरण का उपयोग करते हैं। यहां कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे छात्रों को डिजिटल साक्षरता के बारे में पढ़ाया जा सकता है:


ऑनलाइन सामग्री के लिए महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा देना: इंटरनेट सभी प्रकार की सूचनाओं के साथ एक विशाल संसाधन है, जिसकी सभी छात्रों तक आसानी से पहुंच है। इसलिए, वे नकली समाचार और गलत सूचना के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। कई स्रोतों से जानकारी की तुलना करने के बाद छात्रों को प्रश्न पूछने और उत्तरों को अंतिम रूप देने के लिए प्रोत्साहित करें।


सीखने के लिए सोशल मीडिया: अधिकांश छात्र सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और इसका इस्तेमाल करने में माहिर हैं। उन्हें इस बात से अवगत कराया जाना चाहिए कि ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल रिसर्च पोल करने के लिए किया जा सकता है और फेसबुक और लिंक्डइन का इस्तेमाल साथियों से जुड़ने के लिए किया जा सकता है।

साहित्यिक चोरी से बचना: छात्र अक्सर मूल कार्य को उचित श्रेय दिए बिना एक उद्धरण या एक पैराग्राफ का हवाला देते हैं। उन्हें मूल लेखक को जानकारी का श्रेय देकर उद्धरणों, उद्धरणों का उपयोग करने और उनके उत्तरों का समर्थन करने का सही तरीका सिखाया जाना चाहिए।

इंटरनेट सुरक्षा सिखाएं: व्यक्तिगत या संवेदनशील जानकारी चोरी होने के साथ, छात्रों को एक मजबूत पासवर्ड रखने की आवश्यकता, सार्वजनिक नेटवर्क का उपयोग करते समय क्या करना है, फ़िशिंग क्या है, और बहुत कुछ पता होना चाहिए। इंटरनेट चोरी एक गंभीर मुद्दा है और डिजिटल साक्षरता इसका मुकाबला करने में मदद कर सकती है।


खोज इंजन का प्रभावी उपयोग: छात्रों को यह सिखाया जाना चाहिए कि उनके प्रश्नों के लिए प्रासंगिक परिणाम कैसे प्राप्त करें। दो खोज क्वेरी के बीच "OR" का उपयोग करने जैसी तकनीक परिणामों को जोड़ सकती है। एक वेब पते के सामने एक "संबंधित" अन्य समान साइटों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

डिजिटल विकर्षणों का प्रबंधन: लगातार डिजिटल उपकरणों के आसपास रहने से व्यक्ति दूर और थका हुआ महसूस कर सकता है। डिजिटल साक्षरता छात्रों को व्याकुलता-प्रबंधन तकनीक सीखने में मदद कर सकती है जैसे कि कई ब्रेक लेना और पढ़ते समय सूचनाओं को म्यूट करना।

यह सब वास्तविक जीवन के उदाहरणों के माध्यम से सिखाया जाना चाहिए ताकि इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सके और छात्रों को उनके शैक्षणिक और पेशेवर जीवन में मदद मिल सके।

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राध्यापक शैक्षिक स्तंभकार मलोट पंजाब

शिवलिंग कोई साधारण (मूर्त्ति) नहीं है पूरा विज्ञान है!

 शिवलिंग कोई साधारण (मूर्त्ति) नहीं है पूरा विज्ञान है!


शिवलिंग में विराजते हैं तीनों देव:-

सबसे निचला हिस्सा जो नीचे टिका होता है वह ब्रह्म है, दूसरा बीच का हिस्सा वह भगवान विष्णु का प्रतिरूप और तीसरा शीर्ष सबसे ऊपर जिसकी पूजा की जाती है वह देवाधिदेव महादेव का प्रतीक है, शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है तथा अन्य मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग का निचला नाली नुमा भाग माता पार्वती को समर्पित तथा प्रतीक के रूप में पूजनीय है... अर्थात शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है। अन्य मान्यता के अनुसार, शिवलिंग का निचला हिस्सा स्त्री और ऊपरी हिस्सा पुरुष का प्रतीक होता है। अर्थता इसमें शिव और शक्ति, एक साथ में वास करते हैं।

शिवलिंग का अर्थ:-



शास्त्रों के अनुसार 'लिंगम' शब्द 'लिया' और 'गम्य' से मिलकर बना है, जिसका अर्थ 'शुरुआत' व 'अंत' होता है। तमाम हिंदू धर्म के ग्रंथों में इस बात का वर्णन किया गया है कि शिव जी से ही ब्रह्मांड का प्राकट्य हुआ है और एक दिन सब उन्हीं में ही मिल जाएगा।

शिवलिंग में विराजते त्रिदेव:-

हम में लगभग लोग यही जानते हैं कि शिवलिंग में शिव जी का वास है। परंतु क्या आप जानते हैं इसमें तीनों देवताओं का वास है। कहा जाता है शिवलिंग को तीन भागों में बांटा जा सकता है। सबसे निचला हिस्सा जो नीचे टिका होता है, दूसरा बीच का हिस्सा और तीसरा शीर्ष सबसे ऊपर जिसकी पूजा की जाती है।

निचला हिस्सा ब्रह्मा जी (सृष्टि के रचयिता), मध्य भाग विष्णु (सृष्टि के पालनहार) और ऊपरी भाग भगवान शिव (सृष्टि के विनाशक) हैं। अर्थात शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है। तो वहीं अन्य मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग का निचला हिस्सा स्त्री और ऊपरी हिस्सा पुरुष का प्रतीक होता है। अर्थता इसमें शिव-शक्ति, एक साथ वास करते हैं।

शिवलिंग की अंडाकार संरचना:-

कहा जाता है शिवलिंग के अंडाकार के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक, दोनों कारण है। अगर आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो शिव ब्रह्मांड के निर्माण की जड़ हैं। अर्थात शिव ही वो बीज हैं, जिससे पूरा संसार उपजा है। इसलिए कहा जाता है यही कारण है कि शिवलिंग का आकार अंडे जैसा है। वहीं अगर वैज्ञानिक दृष्टि से बात करें तो 'बिग बैंग थ्योरी' कहती है कि ब्रह्मांड का निमार्ण अंडे जैसे छोटे कण से हुआ है। 

एक जमाना था.. वो बचपन हर गम से बेगाना था

हमारा भी एक जमाना था...
हमें खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल, बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था।
🤪पास/ फैल यानि नापास यही हमको मालूम था... परसेंटेज % से हमारा कभी संबंध ही नहीं रहा।
😛 ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको ढपोर शंख समझा जा सकता था।
🤣
किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं, ऐसी हमारी धारणाएं थी।
☺️ कपड़े की थैली में बस्तों में और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में किताब, कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी।
😁 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम लगभग एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था। 
🤗  साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी और न ही पाठ्यक्रम।
🤪 हमारे माताजी/ पिताजी को हमारी पढ़ाई का बोझ है ऐसा कभी लगा ही नहीं। 
😞  किसी दोस्त के साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी।इस तरह हम ना जाने कितना घूमे होंगे।


🥸😎 स्कूल में मास्टर जी के हाथ से मार खाना,पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना,और कान लाल होने तक मरोड़े जाते वक्त हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था सही बोले तो ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था।
🧐😝घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनिक जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी।
मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे। मार खाने वाला इसलिए क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं और मारने वाला है इसलिए कि आज फिर हाथ धो लिए😀......

😜बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है।

😁 हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने भी दी नहीं.....इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं। साल में कभी-कभार एक आद बार मैले में जलेबी खाने को मिल जाती थी तो बहुत होता था उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे।
छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे।
दिवाली में लिए गये पटाखों की लड़ को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा।

😁 हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको आई लव यू कहना ही नहीं आता था।
😌आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और टाॅन्ट खाते हुए और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला कि नहीं क्या पता
स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है।वह दोस्त कहां खो गए वह बेर वाली कहां खो गई....वह चूरन बेचने वाला कहां खो गया...पता नहीं।

😇 हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है।

🙃 कपड़ों में सिलवटें ना पड़ने देना और रिश्तों में औपचारिकता का पालन करना हमें जमा ही नहीं......सुबह का खाना और रात का खाना इसके सिवा टिफिन क्या था हमें अच्छे से मालूम ही नहीं...हम अपने नसीब को दोष नहीं देते जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं और यही सोचते हैं और यही सोच हमें जीने में मदद कर रही है जो जीवन हमने जिया उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती।

😌 हम अच्छे थे या बुरे थे नहीं मालूम पर हमारा भी एक जमाना था। वो बचपन हर गम से बेगाना था।