Tuesday, February 21, 2023

बेवफा बिल्ली

बिल्ली प्रजाति मे  संभोग करने का अवसर सिर्फ उसी नर बिल्ले को मिलता है जो सबसे ज्यादा ताकतवर होता है....

  बिल्ली सेक्स के लिये ताकतवर बिल्ला इसलिए चुनती है ताकि उसके होने वाले बच्चे में एक ताकतवर बिल्ले के गुण आएं। 

 जैसे ही मादा बिल्ली को ये अहसास हो जाता है की वो अब प्रेग्नेंट हो चुकी है तो वो उस ताकतवर नर से दूर भागना शुरू कर देती है । 

कारण ये कि जब मादा बच्चों को जन्म दे देती है तो उन 3-4 बच्चों मे भी जो बच्चा नर होता है वो ताकतवर बिल्ला  उन नर बच्चों को मार डालता है ताकि भविष्य मे वो नर बच्चा  उसका प्रतिद्वंद्वी ना बन जाये।

इसीलिए मादा बिल्ली अपने बच्चों को जन्म देने से पहले ,उनकी सुरक्षा के लिए एक ऐसे नर बिल्ले  का चुनाव करती है जो ताकत की दृष्टि से उस मादा से भी कमजोर हो,........जो उसके ही इलाके या परिवार का हो।

तथा जिस नर को संभोग का अवसर नहीं मिला हो ,......!

वह मादा उस बिल्ले के  सामने प्रणय निवेदन करती हैं उस नर बिल्ले के ऊपर अपने सेक्स हार्मोन का स्राव करती है ताकि नर उत्तेजित हो जाए । 

इस तरह वो मादा बिल्ली जो प्रेग्नेंट है बावजूद इस प्रक्रिया के दौरान वो एक नये नर बिल्ले के साथ भी सेक्स करती है इस प्रक्रिया को वैज्ञानिकों ने  sneaker fuckers  कहा है..... । 

ताकि जन्म के कुछ सप्ताह तक भोजन के लिये उस मादा को अपने बच्चों को खतरे मे छोड़कर कहीं जाना ना पड़े 



वो नर बिल्ला उस मादा को खाने की चीजें लाकर देता रहे ।

मादा बिल्ली जन्म के 5 सप्ताह के बाद जब उसके बच्चे दौडने लगते हैं तब वो उस कमजोर नर बिल्ले का साथ छोड़कर चली जाती है। 

मादा पहले कई ताकतवर नरों के साथ लिव इन रिलेशन में रह चुकी थी.. । 

कैरियर अब ढलान पर आ चुका था भविष्य असुरक्षित होता दिख रहा था। 

फिर अंततः मादा नर दोनों ने जीव विज्ञान की वही प्रक्रिया से एक दूसरे का चयन कर लिया जिसे sneaker fuckers  कहते हैं । 

बिल्ली ही नही, जानवरो की किसी भी प्रजाति मे नर  तथा मादा मे भाई बहन के रिश्ते नही होते।

यहां ना मादा ने नर को भाई माना ना बहन ने भाई माना है। 

दोनों ने स्नीकर फकर्स  वाली प्रक्रिया के अनुरूप काम किया है, ये महज पाश्विक प्रकृति है और कुछ नही।

सतीश एस चंद्रा जी

जागो ग्राहक जागो

 स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के ऑफिस के बाहर राजू केले बेच रहा था।

बिजली विभाग के एक बड़े अधिकारी न पूछा : " केले कैसे दिए" ?
राजू : केले किस लिए खरीद रहे हैं साहब ?
अधिकारी :- मतलब ??
राजू :- मतलब ये साहब कि,
मंदिर के प्रसाद के लिए ले रहे हैं तो 10 रुपए दर्जन।
वृद्धाश्रम में देने हों तो 15 रुपए दर्जन।
बच्चों के टिफिन में रखने हों तो 20 रुपए दर्जन।
घर में खाने के लिए ले जा रहे हों तो, 25 रुपए दर्जन
और अगर *पिकनिक* के लिए खरीद रहे हों तो 30 रुपए दर्जन।


अधिकारी : - ये क्या बेवकूफी है ? अरे भई, जब सारे केले एक जैसे ही हैं तो,भाव अलग अलग क्यों बता रहे हो ??
राजू : - ये तो पैसे वसूली का, आप ही का स्टाइल है साहब।
1 से 100 रीडिंग का रेट अलग,
100 से 200 का अलग,
200 से 300 का अलग।
आप भी तो एक ही खंभे से बिजली देते हो।
तो फिर घर के लिए अलग रेट,
दूकान के लिए अलग रेट,
कारखाने के लिए अलग रेट,
फिर इंधन भार, विज आकार.....
और हाँ, एक बात और साहब,
मीटर का भाड़ा।
मीटर क्या अमेरिका से आयात किया है ? 25 सालों से उसका भाड़ा भर रहा हूँ। आखिर उसकी कीमत है कितनी ?? आप ये तो बता दो मुझे एक बार।
जागो ग्राहक जागो
बिजली बिल से पीड़ित एक आम नागरिक की व्यथा !
आगे सेंड कर रहा हूँ, और अगर आपको अच्छी लगे तो...

सतवाहना राजवंश के महान शासक गौतमपुत्र सताकर्णी


सतवाहना राजवंश एक प्रमुख शासक राजवंश था जो भारत के दक्कन क्षेत्र पर 230 ईसा पूर्व से 220 सीई तक हावी था। सतवाहन कला, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों के लिए जाना जाता था। उन्होंने खगोल विज्ञान, गणित और चिकित्सा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसका भारत के बौद्धिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर स्थायी प्रभाव था।
खगोल विज्ञान
सतवाहनों को खगोल विज्ञान के ज्ञान के लिए जाना जाता था। वे सिक्के जारी करने वाले पहले भारतीय राजवंशों में से थे, जिन्होंने खगोल विज्ञान प्रतीकों और नक्षत्रों को दर्शाया था। माना जाता है कि सतवाहना शासक गौतमपुत्र सतकर्णी प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और गणितज्ञ वाराहमिरिर के संरक्षक रहे थे, जो अपने शासनकाल में रहे थे। खगोल विज्ञान और ज्योतिष पर वराहमिहीर के कार्यों को प्राचीन भारत में व्यापक रूप से जाना जाता था और उनका इन क्षेत्रों के विकास पर स्थायी प्रभाव पड़ा था।


गणित
सतवाहनों ने गणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे अंकों की एक दशमलव प्रणाली का उपयोग करने के लिए जानते थे, जो आधुनिक भारतीय संख्या प्रणाली का पूर्वकर्ता था। माना जाता है कि सतवाहना शासक हाला ने प्रसिद्ध पाठ "गाथा सप्तसती" लिखा है, जिसमें कई गणितीय पहेली और पहेलियाँ हैं। पाठ में बीजगणित और ज्यामिति के संदर्भ भी शामिल हैं, जो पता चलता है कि सतवाहनों को गणित के इन क्षेत्रों की अच्छी समझ थी।
Medicine
सतवाहनों को चिकित्सा के ज्ञान के लिए भी जाना जाता था। माना जाता है कि सतवाहना शासक सतकर्णी द्वितीय प्रसिद्ध चिकित्सक चरका के संरक्षक रहे थे, जो अपने शासनकाल के दौरान रहे थे। आयुर्वेद पर चरक के कार्य, जो कि एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली है, प्राचीन भारत में व्यापक रूप से ज्ञात और सम्मानित थे और उनका भारत और विश्व के अन्य हिस्सों में चिकित्सा के विकास पर स्थायी प्रभाव था।
खगोल विज्ञान, गणित और चिकित्सा के ज्ञान के अलावा, सतवाहनों को कला और साहित्य के संरक्षण के लिए भी जाना जाता था। उन्होंने कई महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्रों के विकास में समर्थन किया, जैसे कि अमरावती शहर, जो अपने प्रसिद्ध स्तूप और मूर्तिकलाओं के लिए जाना जाता था।
निष्कर्ष में, सतवाहन एक प्रमुख राजवंश थे जिन्होंने प्राचीन भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। खगोल विज्ञान, गणित और चिकित्सा के बारे में उनके ज्ञान ने भारत के बौद्धिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर स्थायी प्रभाव डाला, और कला और साहित्य के उनके संरक्षण ने एक समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने में मदद की जो भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है।
गौतमपुत्र सताकर्णी सतवाहना राजवंश के प्रमुख शासक थे, जो प्रमुख राजवंशों में से एक था जिन्होंने भारत के दक्कन क्षेत्र पर लगभग 230 ईसा पूर्व से 220 सीई तक शासन किया। उन्हें सतवाहना राजवंश के सबसे बड़े राजाओं में से एक माना जाता है, और उनका शासन सैन्य विजय, प्रशासनिक सुधार, और सांस्कृतिक संरक्षण के क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों से अंकित है।
शुरुआती जीवन और सिंहासन के लिए प्रवेश
गौतमपुत्र सताकर्णी का जन्म सतवाहना राजा नहापना और उनकी रानी नयनिका से हुआ था। वह पिछले सतवाहना राजा सिमुका का पोता था, जिसने दक्कन क्षेत्र में राजवंश की स्थापना की थी। गौतमपुत्र सताकर्णी को छोटी उम्र से ही युद्ध कला में प्रशिक्षित किया गया था, और उन्होंने लड़ाइयों में असाधारण कौशल और रणनीतिक सोच दिखाई।
गौतमपुत्र सताकर्णी लगभग 78 सीई में सतवाहनों के राजा बने, जब उसके पिता नहपना को सतवाहन जनरल कान्हा द्वारा पराजित कर मार दिया गया था। गौतमपुत्र सताकर्णी अपने पिता-दादा के योग्य उत्तराधिकारी साबित हुए, और उनका शासन सतवाहन वंश के इतिहास के सबसे गौरवशाली काल में से एक माना जाता है।
सैन्य जीत
गौतमपुत्र सताकर्णी एक शानदार सैन्य रणनीतिकार और एक कुशल योद्धा थे। उन्होंने कई सफल सैन्य अभियान शुरू करके सतवाहना साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। उसने साकास को हराया, जिसने पहले सतवाहना साम्राज्य के पश्चिमी हिस्सों पर कब्जा कर लिया था, और उन्हें सिंधु नदी के पार धकेल दिया। उन्होंने गुजरात और राजस्थान के कुछ हिस्सों पर राज करने वाले पश्चिमी क्षत्रपों को भी हराया और उनके क्षेत्रों को सतवाहना साम्राज्य में जोड़ दिया।
गौतमपुत्र सताकर्णी का सबसे प्रसिद्ध सैन्य अभियान शाकस के खिलाफ था, जो भारत के उत्तर पश्चिमी हिस्सों में बस चुकी केंद्रीय एशियाई जनजाति थी। उसने शाकस पर आश्चर्यजनक हमला किया और उन्हें लड़ाई की श्रृंखला में हराया। उन्होंने उनकी राजधानी पर भी कब्जा कर लिया, जो कि वर्तमान पंजाब में स्थित थी, और उन्हें हिन्दू कुश पहाड़ों के पार पीछे हटने को मजबूर कर दिया। शाकास पर गौतमपुत्र सताकर्णी की जीत दक्कन क्षेत्र के इतिहास में एक मोड़ माना जाता है, क्योंकि इसने शाका शासन का अंत और सतवाहन वर्चस्व के नए युग की शुरुआत को चिह्नित किया था।
प्रशासनिक सुधार
गौतमपुत्र सताकर्णी सिर्फ एक सफल सैन्य कमांडर ही नहीं, बल्कि एक बुद्धिमान और कुशल प्रशासक भी थे। उन्होंने कई प्रशासनिक सुधार शुरू किए जिन्होंने सतवाहना साम्राज्य को मजबूत बनाने और अपने विषयों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद की। उन्होंने साम्राज्य को कई प्रांतों में विभाजित किया, जिनमें से प्रत्येक एक राज्यपाल द्वारा शासित किया गया था जो कानून और व्यवस्था बनाए रखने, कर वसूलने और राजा के आदेशों को लागू करने के लिए जिम्मेदार था। उन्होंने सिक्के की एक नई प्रणाली भी पेश की, जिसने साम्राज्य के भीतर व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने में मदद की।
सांस्कृतिक संरक्षक
कला और संस्कृति के महान संरक्षक थे गौतमपुत्र सताकर्णी। उन्होंने साहित्य, कविता और अन्य कला रूपों के विकास को प्रोत्साहित किया, और अपने समय के कई प्रसिद्ध विद्वानों और कलाकारों का समर्थन किया। उन्होंने कई मंदिरों के निर्माण में भी काम किया, जो जटिल मूर्तिकलाओं और नक्काशी से सजाया गया था। अपने शासनकाल में बने सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक अमरावती स्तूप है, जो वर्तमान में आंध्र प्रदेश में स्थित है और इसे बौद्ध कला और वास्तुकला के सबसे अच्छे उदाहरणों में से एक माना जाता है।
विरासत
गौतमपुत्र सताकर्णी शासनकाल ने दख्खन क्षेत्र में सतवाहन वंश की शक्ति और प्रभाव का शिखर चिह्नित किया। उनकी सैन्य जीत और प्रशासनिक सुधारों ने सतवाहना साम्राज्य को एकीकृत करने और प्राचीन भारत में इसे एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में मदद की। शाकस और पश्चिमी क्षत्रपस पर उनकी जीत ने व्यापार मार्गों को सुरक्षित करने में मदद की जिन्होंने दुनिया के बाकी के साथ डेक्कन क्षेत्र को जोड़ा, जिसने सतवाहना साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया।
कला और संस्कृति के गौतमपुत्र सताकर्णी के संरक्षण ने भी दक्कन क्षेत्र पर स्थायी प्रभाव छोड़ा। उनके शासनकाल के दौरान बने मंदिर और अन्य सांस्कृतिक स्मारकों न केवल उनके कलात्मक स्वाद की गवाही हैं बल्कि महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निशानों के रूप में भी काम करते हैं जो दुनिया भर के आगंतुकों को आकर्षित करते हैं। अमरावती स्तूप, विशेष रूप से, एक महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थल और यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है।
निष्कर्ष में, गौतमपुत्र सताकर्णी एक महान शासक थे जिन्होंने भारत के दख्खन क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति पर अमिट निशान छोड़ा। उनकी सैन्य जीत, प्रशासनिक सुधार, और सांस्कृतिक संरक्षण ने सतवाहना राजवंश को प्राचीन भारत में एक प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक बल के रूप में स्थापित करने में मदद की। उनकी विरासत भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है और दक्कन क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के स्मरण के रूप में काम करती है।

Friday, February 17, 2023

सहारनपुर की लड़कियां भी किसी से पीछे नही ज़ेबा रहबर ने किया सहारनपुर का नाम रोशन

 सहारनपुर की लड़कियां भी किसी से पीछे नही ज़ेबा रहबर ने किया सहारनपुर का नाम रोशन

सहारनपुर| आपको बता दें होटल केआर प्लाजा द्वारा 9 स्टेट टॉप मॉडल में हुआ ज़ेबा रहबर का चयन 9 स्टेट रनवे नाइट का आयोजन रुड़की में दिल्ली में और दिल्ली रोड सेलिब्रेशन होटल में किया गया इस शो के संस्थापक रीना चांद शो डायरेक्टर तानिया शो मैनेजमेंट हेड साकिब गाड़ा प्रिंस अंसारी सचिन नामदेव एंकर माही बैक स्टेज मैनेजर दक्श मब्रान चेयर पर्सन मोजूद रहे शो के जज में सीरियल एक्ट्रेस पारुल चौहान मौजूद रही जिसमें ज़ेबा रहबर को मिस सहारनपुर का ख़िताब मिला व आकांक्षा बेस्ट ब्लॉक बनी पूजा ने फिटनेस के लिए सपोर्ट किया।

Wednesday, February 15, 2023

विवाह परम्परा

*क्या नाचने गाने को विवाह कहते हैं, क्या दारू पीकर हुल्लड़ मचाने को विवाह कहते हैं, क्या रिश्तेदारों और दोस्तों को इकट्ठा करके दारु की पार्टी को विवाह कहते हैं ? डीजे बजाने को विवाह कहते हैं, नाचते हुए लोगों पर पैसा लुटाने को विवाह कहते हैं, घर में सात आठ दिन धूम मची रहे उसको विवाह कहते हैं? दारू की 20-25 पेटी लग जाए उसको विवाह कहते हैं ? किसको विवाह कहते हैं?*
*विवाह उसे कहते हैं जो बेदी के ऊपर मंडप के नीचे पंडित जी मंत्रोच्चारण के साथ देवताओं का आवाहन करके विवाह की वैदिक रस्मों को कराने को विवाह कहते हैं।*
*लोग कहते हैं कि हम आठ 8 महीने से विवाह की तैयारी कर रहे हैं और पंडित जी जब सुपारी मांगते हैं तो कहते हैं अरे वह तो भूल गए जो सबसे जरूरी काम था वह आप भूल गए विवाह की सामग्री भूल गए और वैसे तुम 10 महीने से विवाह की कोनसी तैयारी कर रहे हैं।*
*विवाह - नहीं साहब आप दिखावे की तैयारी कर रहे हो कर्जा ले लेकर दिखावा कर रहे हो हमारे ऋषियों ने कहा है जो जरूरी काम है वह करो । ठीक है अब तक लोगों की पार्टियां खाई है तो खिलानी भी पड़ेगी ठीक है समय के साथ रीति रिवाज बदल गए हैं मगर दिखावे से बचे।*
*मैं कहना चाहता हूं आज आप दिखावा करना चाहते हो करो खूब करो मगर जो असली काम है जिसे सही मायने में विवाह कहते हैं वह काम गौण ना हो जाऐ, 6 घंटे नाचने में लगा देंगे, 4 घंटे मेहमानो से मिलने में लगा देंगे', 3 घंटे जयमाला में लगा देंगे, 4 घंटे फोटो खींचने में लगा देंगे और पंडित जी के सामने आते ही कहेंगे पंडितजी जी जल्दी करो जल्दी करो , पंडित जी भी बेचारे क्या करें वह भी कहते है सब स्वाहा स्वाहा जब तुम खुद ही बर्बाद होना चाहते हो तो पूरी रात जगना पंडित जी के लिए जरूरी है क्या उन्हें भी अपना कोई दूसरा काम ढूंढना है उन्हें भी अपनी जीविका चलानी है, मतलब असली काम के लिए आपके पास समय नहीं है। मेरा कहना यह है कि आप अपने सभी नाते, रिश्तेदार, दोस्त ,भाई, बंधुओं को कहो कि आप जो यह फेरों का काम है वह किसी मंदिर, गौशाला, आश्रम या धार्मिक स्थल पर किसी पवित्र स्थान पर करें ।*
*जहां दारू पीगई हों जहां हड्डियां फेंकी गई हों क्या उस मैरिज हाउस उह पैलेस कंपलेक्स मैं देवता आएंगे, आशीर्वाद देने के लिए, आप हृदय से सोचिए क्या देवता वहां आपको आशीर्वाद देने आऐंगे, आपको नाचना कूदना, खाना-पीना जो भी करना है वह विवाह वाले दिन से पहले या बाद में करे मगर विवाह का कोई एक मुहूर्त का दिन निश्चित करके उस दिन सिर्फ और सिर्फ विवाह से संबंधित रीति रिवाज होने चाहिए , और यह शुभ कार्य किसी पवित्र स्थान पर करें। जिस मै गुरु जन आवें, घर के बड़े बुजुर्गों का जिसमें आशीर्वाद मिले ।*
*आप खुद विचार करिये हमारे घर में कोई मांगलिक कार्य है जिसमें सब आये और अपने ठाकुर को भूल जाऐं अपने भगवान को भूलजाऐं अपने कुल देवताओं को भूलजाये।*
*मेरा आपसे करबद्ध निवेदन है कि विवाह नामकरण अन्य जो धार्मिक उत्सव है वह शराब के साथ संपन्न ना हो उन में उन विषय वस्तुओं को शामिल ना करें जो धार्मिक कार्यों में निषेध है ।

Tuesday, February 14, 2023

शिक्षिका

एक शिक्षिका की कलम से

कितना मुश्किल होता है एक माँ के लिए छोटे बच्चे को सोता हुआ छोड़कर घर से बाहर अपने जॉब पर जाना ? इस तकलीफ को सिर्फ एक माँ ही समझ सकती है !
बच्चा उठेगा मम्मा मम्मा करके थोड़ी देर रोएगा, जब माँ नही दिखेगी तो चुपचाप चप्पल पहन कर अपनी दादी या घर के किसी बड़े सदस्य के पास चला जाएगा। समय से पहले ऐसे बच्चे बड़े व जिम्मेदार होते जाते हैं, लेकिन माँ अपने जिम्मेदार बच्चे को भरी आँखों से ही देखती है, कि भला अभी इसकी उम्र ही क्या है ?
पता नही एक माँ में इतनी हिम्मत इतनी ममता इतनी ताकत आती कहाँ से है ? किसी से कुछ कहती भी नही। बस आँखे भरती है, डबडबा जाती है, फिर खुद को कंट्रोल करती हुई भरी आँखों को सुखा लेती है।
जॉब के साथ साथ घर परिवार संभालना, बच्चों के टिफिन से लेकर हसबैंड के कपड़ो तक, ब्रेकफास्ट से लेकर रात के डिनर तक, कितना बेहतर मैनेज करती है फिर भी मन में लगा रहता है कि बच्चे को बादाम पीस कर नही दे पाई वो ज्यादा फायदा करता। कहीं न कहीं कुछ छूटा छूटा सा लगा रहता है।
इतना काम अगर स्त्री अपने मायके में करे तो वहां उसको बहुत तारीफ और प्रोत्साहन मिले या कह लें कि वहां उसे कोई करने ही न दे, सब सहयोग करें।


बच्चे का नाश्ता खाना सब बना कर जाना, फिर बच्चे ने क्या खाया क्या नही ? इसकी चिंता में लगे रहना।
सच में एक माँ घर से बाहर, बच्चे से दूर कभी रिलेक्स ही नही रह पाती। घर पहुँचो तो बच्चे के टेढ़े मेढ़े बाल, गलत ढ़ंग से बंद हुआ शर्ट का बटन देखकर एक साथ बेहद ख़ुशी और पीड़ा दोनों होती है, मुँह फिर भी कुछ नही बोलता बस आँखों को रोकना मुश्किल हो जाता है। बच्चे के सामने सब कुछ ज़ब्त करके प्यारी मुस्कान देना एक माँ के ही बस का काम है।
बाहर से जितनी मजबूत अंदर से उतनी ही कमजोर होती हैं माँ। सुबह से छूटा हुआ बच्चा जब दौड़कर गले लगता है तो मानो सारी कायनात की खुशियाँ मिल गयी, फिर वैसी ख़ुशी वैसा सुकून स्वर्ग में भी नही मिले। सारे दिन की भागदौड़ भूलकर उस पल ऐसा लगता है कि जैसे इस सुकून के लिए सदियाँ गुजर गयी।
कभी कभी सोचती हूँ कि जेंट्स लोग जो इतने रिलेक्स रहते है परिवार और बच्चों की तरफ से उसमे बहुत बड़ा हाथ स्त्रियों का होता है।
एक पुरुष आफिस से लौटता है तो कहीं चौराहे पर चाय पीते हुए अपने दोस्तों के साथ गप्पें मारता है फिर रात तक घर आता है उसी जगह एक स्त्री अपने काम को खत्म करने के बाद सिर्फ और सिर्फ अपने घर अपने बच्चे के पास पहुंचती है जबकि अच्छा उसे भी लगता है बाहर अपनी फ्रेंड्स के साथ गपशप करते हुए चाय की चुस्की लेना। पर अपने बच्चे तक पहुंचने की बेताबी सारी दुनिया की खुशियोँ को एक ओर कर देती है।

सही बंटवारा

"पापा जी ! पंचायत इकठ्ठी हो गई , अब बँटवारा कर दो।" कृपाशंकर जी के बड़े लड़के गिरीश ने रूखे लहजे में कहा।

"हाँ पापा जी ! कर दो बँटवारा अब इकठ्ठे नहीं रहा जाता" छोटे लड़के कुनाल ने भी उसी लहजे में कहा।
पंचायत बैठ चुकी थी, सब इकट्ठा थे।
कृपाशंकर जी भी पहुँचे।
"जब साथ में निर्वाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है , अब यह बताओ तुम किस बेटे के साथ रहोगे ?" सरपंच ने कृपाशंकर जी के कन्धे पर हाथ रख कर के पूछा।
कृपाशंकर जी सोच में शायद सुननें की बजाय कुछ सोच रहे थे। सोचने लगे वो दिन जब इन्ही गिरीश और कुनाल की किलकारियों के बगैर एक पल भी नहीं रह पाते थे। वे बच्चे अब बहुत बड़े हो गये थे।
अचानक गिरीश की बात पर ध्यानभंग हुआ,
"अरे इसमें क्या पूछना, छ: महीने पापा जी मेरे साथ रहेंगे और छ: महीने छोटे के पास रहेंगे।"
"चलो तुम्हारा तो फैसला हो गया, अब करें जायदाद का बँटवारा ???" सरपंच बोला।


कृपाशंकर जी जो काफी देर से सिर झुकाए सोच मे बैठे थे, एकदम उठ के खड़े हो गये और क्रोध से आंखें तरेर के 
बोले, "अबे ओये सरपंच, कैसा फैसला हो गया ? अब मैं करूंगा फैसला, इन दोनों लड़कों को घर से बाहर निकाल कर।"
सुनो बे सरपंच , इनसे कहो चुपचाप निकल लें घर से, और जमीन जायदाद या सपंत्ति में हिस्सा चाहिए तो छः महीने बारी बारी से आकर मेरे पास रहें, और छः महीने कहीं और इंतजाम करें अपना। फिर यदि मूड बना तो सोचूँगा।
"जायदाद का मालिक मैं हूँ ये सब नहीं।"
दोनों लड़कों और पंचायत का मुँह खुला का खुला रह गया, जैसे कोई नई बात हो गई हो। इसी नयी सोच और नयी पहल की जरूरत है।
"यदि मूड बना तो सोचूँगा"

Friday, February 10, 2023

द्रौपदी का दान

इन्सान जैसा कर्म करता है, कुदरत या परमात्मा उसे वैसा ही उसे लौटा देता है।
एक बार द्रौपदी सुबह तड़के स्नान करने यमुना घाट पर गयी भोर का समय था। तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी। साधु स्नान के पश्चात अपनी दूसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोंके से उड़ पानी में चली गयी ओर बह गयी। संयोगवश साधु ने जो लंगोटी पहनी वो भी फटी हुई थी। साधु सोच मे पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए। थोड़ी देर में सूर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड़ बढ़ जाएगी। साधु तेजी से पानी के बाहर आया और झाड़ी में छिप गया। द्रौपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साड़ी जो पहन रखी थी, उसमे आधी फाड़ कर उस साधु के पास गयी ओर उसे आधी साड़ी देते हुए बोली, "तात! मैं आपकी परेशानी समझ गयी। इस वस्त्र से अपनी लाज ढ़क लीजिए। साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा ले लिया और आशीष दिया। जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान तुम्हारी लाज बचाएंगे।
जब भरी सभा मे चीरहरण के समय द्रौपदी की करुण पुकार नारद ने भगवान तक पहुँचायी तो भगवान ने कहा, "कर्मों के बदले मेरी कृपा बरसती है, क्या कोई पुण्य है। द्रौपदी के खाते में?" जाँचा परखा गया तो उस दिन साधु को दिया वस्त्र दान हिसाब में मिला, जिसका ब्याज भी कई गुणा बढ़ गया था। जिसको चुकता करने भगवान पहुँच गये द्रौपदी की मदद करने, दुस्सासन चीर खींचता गया और हजारों गज कपड़ा बढ़ता गया।
इंसान यदि सुकर्म करे तो उसका फल सूद सहित मिलता है, और दुष्कर्म करे तो सूद सहित भोगना पड़ता है।

Wednesday, February 1, 2023

विश्व का सबसे धनी व्यक्ति जगत सेठ अपने समय में

मुर्शिदाबाद में नवाब सिराजुद्दौला के समय एक जगत सेठ हुआ करते थे नाम था फतेहचंद , वह मारवाड़ी थे

वह अपने समय में विश्व के सबसे धनी व्यक्ति थे , हुंडी व सूद पर क़र्ज़ का कारोबार करते थे ,उनका कारोबार पूरे उत्तर भारत में फैला हुआ था राजा महाराजा नवाब उन से कर्ज लिया करते थे ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी उनके पैसों के सहारे ही भारत में क़दम जमाए थे वह ईस्ट इंडिया कंपनी को भी कर्ज देते थे
उनके पास कितनी दौलत थी इस का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता खुद अंग्रेजों का कहना था कि उनकी दौलत ब्रिटेन की कुल जीडीपी से ज़्यादा है


आगे चलकर उन पर राजनीति सवार हुई , नवाब सिराजुद्दौला के विरुद्ध मीर जाफर को खड़ा कर दिया, फिर मीर जाफर की हत्या करा कर उनके भतीजे मीर कासिम को नवाब बना दिया फिर मीर कासिम को भी उनके बच्चों के साथ कत्ल करवा दिया
शुरू में अंग्रेज देखते रहे जब जगत सेठ की राजनीति ज्यादा बढ़ने लगी उन्होंने हाथ खींच लिया पैसे पैसे का मोहताज कर दिया एक समय ऐसा भी आया कि उनकी संतान अंग्रेजी सरकार के पेंशन पर जीती रही और आखिर में सन 1912 में वह पेंशन भी बंद कर दी गई

Saturday, January 28, 2023

रिसोर्ट मे शादियां !

नई सामाजिक बीमारी  


हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की!

सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हे
शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं
कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है!
अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादीया होने लगी है!
शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है
आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं।
इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं!
और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि सिर्फ कार वाले मेहमान ही  रिसेप्शन हॉल में आए!!

और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है 
दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है
किसको सिर्फ लेडीस संगीत में बुलाना है !
किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है !
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है !
और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है!!
इस आमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है!
सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है!!
महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं!
मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं!
हल्दी लगाने के लिए भी एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं!
ब्यूटी पार्लर को दो-तीन दिन के लिए बुक कर दिया जाता है !
प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं जिसके कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है!!
क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं!
मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है!
रस्म अदायगी पर मोबाइलो से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं !
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं!
और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है !
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं
परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता !
वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते हैं!!

विवाह समारोह के मुख्य स्वागत द्वार पर नव दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें, हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं!
अंदर एंट्री गेट पर आदम कद  स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं!
आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते है
पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर पास में लगा मंच जहां नव दंपत्ति लाइव गल - बहियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं!
मंच पर वर-वधू के नाम का बैनर लगा हुआ होता है!
अब वर वधू के नाम के आगे कहीं भी चि० और सौ०का० नहीं लिखा जाता क्योंकि अब इन शब्दों का कोई सम्मान बचा ही नहीं
इसलिए अंग्रेजी में लिखे जाने लगे है
हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है 
आपका पैसा है , आपने कमाया है,
आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं,
पर किसी दूसरे की देखा देखी नही!
कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा!
जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा
4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है !
और आप कितना ही बेहतर करें 
लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे!
और लिफाफा दे कर आपके द्वारा की गई आव भगत की कीमत अदा करके निकल जाएंगे!

मेरा युवा वर्ग से भी अनुरोध है कि 
अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें!
आपके इस महत्वपूर्ण दिन के लिए 
आपके माता-पिता ने कितने समर्पण किए हैं यह आपको खुद माता-पिता बनने के उपरांत ही पता लगेगा!

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए!

अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !   

Sunday, January 22, 2023

बागेश्वर धाम और धीरेंद्र शास्त्री

बागेश्वर धाम और धीरेंद्र शास्त्री
बागेश्वर धाम मेरे घर से लगभग 50 km की दूरी पर स्थित है, बुंदेलखंड का एक typical गांव जो मुख्य सड़क से लगभग 6 से 7km अंदर है,
आज से चार पांच साल पहले तक, खुद उस गांव (गड़ा) के लोगों और उनके रिश्तेदारों के अलावा उस गांव और उस हनुमान मंदिर को कोई नहीं जानता था, में भी नही
फिर उसी ठेठ गांव का एक इक्कीस बाइस साल का ठेठ बुंदेलखंडी नौजवान जो श्री श्री रामभद्राचार्य महाराज का शिष्य है और कलयुग में सर्वाधिक पूजे जाने वाले भगवान श्री हनुमान जी का अनन्य भक्त है अपनी शास्त्री की शिक्षा दीक्षा पूरी करके अपने गांव लौटता है।
ठेठ गांव का ठेठ लड़का जिस गांव को कोई नहीं जानता था उसने पिछले चार पांच साल में अपने Aura, वाकपटुता, धर्म ज्ञान, कथा करने का रोचक अंदाज, और भगवान हनुमान के आशीर्वाद से लोगों के मन में भगवान, हिंदू धर्म, सनातन और राष्ट्रवाद की एक ऐसी अलख जगानी शुरू की जिसमें न कोई अगड़ा था न कोई पिछड़ा, न कोई ऊंचा था न कोई नीचा, उसकी कथाओं में सिर्फ और सिर्फ धर्म था, सनातन था, हिंदू था, राष्ट्रवाद था।
आदिवासियों के लिए जंगल में जाकर उनके बीच बैठकर रामकथा करना हो या सैकड़ों लड़कियों की हर साल शादी कराने का महायज्ञ, बुंदेलखंड जैसे पिछड़े इलाके में कैंसर हॉस्पिटल शुरू करने की वकालत हो उसने न सिर्फ इसका सपना दिखाया बल्कि उसे करके भी दिखाया और सबसे बड़ी बात ये सब कुछ निःशुल्क, स्वेच्छा से जो देना है दे दो नही तो कोई बात नही...
...
उसने बिना किसी ऊंच नीच की परवाह किए सभी को एक पंडाल के नीचे इकट्ठा कर दिया, साथ ही साथ वो गरीब लोग जो किसी लालचवश या मजबूरी में किसी और धर्म मेंं जाने को मजबूर हो गए थे उन्हें भी पुनः वापिस लाने का काम किया...
बस.......यही गलती हो गई उस छब्बीस साल के लड़के से
सभी जाति को एक साथ एक पंडाल में बैठाकर रामकथा ...... ये नही चलेगा बाबू
आदिवासियों के लिए जंगल में जाकर उनके बीच में रामकथा करना और उनको अहसास दिलाना की आप प्रभु राम के वंशज हो.... राम राम इतना बड़ा घोर पाप...... ये कतई नहीं चलेगा लड़के
धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को वापिस लाने का जघन्य पाप...... आप अपराधी है बाबा
जात पात, अंगड़ा पिछड़ा को छोड़कर सिर्फ सनातन की बात करना और लोगों को उस पर चलने को प्रेरित करना...... पगला गए हो का धीरेंद्र शास्त्री
खैर, छब्बीस साल की उम्र में यदि इस अत्यंत पिछड़े हुए इलाके के बेहद ठेठ गांव से निकला यह लड़का जिसने खुद की प्रतिभा से अपना लोहा पूरे देश विदेश में मनवाया है तो यह निश्चित है की इसके ऊपर अत्यंत ईश्वरीय कृपा है और जिस पथ पर यह आगे निकला है तो ऐसे आरोप और कीचड़ उछलना तो महज एक शुरुआत है, अभी आरोपों की तीव्रता और स्तर बहुत नीचे जाने वाला है,
में बागेश्वर धाम मंदिर में दो तीन बार गया हूं लेकिन धीरेंद्र शास्त्री से व्यक्तिगत तौर पर कभी नहीं मिला और न ही मिलने की कोई तीव्र इच्छा है, उनके चमत्कार सही होते हैं या गलत इस पर भी में कुछ नही कहना चाहता, में तो इतना कहना चाहता हूं की एक गांव से निकले इस नौजवान ने सनातन को उठाने, बढ़ाने और देश को सशक्त बनाने का जो काम शुरू किया है वो विरले लोग ही करते हैं
दुराचार, हत्या, रंगदारी के आरोप लाइन में हैं तैयार रहिए
लेकिन
जब तक वो धर्म के रास्ते पर है में उनके साथ हूं
जब तक वो धर्म को धंधा नहीं बनाते में उनके साथ हूं
जब तक वो सनातन की बात करेंगे में उनके साथ हूं
जब तक गरीब उत्थान का काम करते रहेंगे में उनके साथ हूं
जब तक उन्हे साजिश के तहत टारगेट किया जाता रहेगा तब तक में उनके साथ हूं
धर्म की जय हो
अधर्म का नाश हो
प्राणियों में सद्भाव हो
विश्व का कल्याण हो


Sabhar

Friday, January 20, 2023

मैय्यत में मेन्यू कार्ड

मेरा कुछ दिन पहले एक बन्दे के घर जाना हुआ ,

जहाँ किसी की मैय्यत हुई थी , 

मै क्या देखता हूँ एक लड़का बहुत ज्यादा रो रहा है ,

मालूम करने पर ये पता चला कि जिनका इंतेकाल हुआ है वे इस लड़के के वालिदह थीं !

     मैं हक्का बक्का एक तरफ खड़ा होकर सोचने लगा कि भरपूर जवानी के वक्त इतना बेरहम दुख इस नौजवान को आधा कर देगा ,

  मुझे उसका रोना देखा ही नहीं जा रहा था , उसकी चीखें ऐसी लगती थी क्यामत ले आयेगी ,वह इकलौता बेटा था अपने मां बाप का , अचानक एक भाई साहब आगे आते हैं, वह उससे खाने का मेन्यू पूछते हैं ,

मै हैरान हो गया कि इस हालत में वह कैसे खाना खा सकता है ,उससे तो सही से बोला भी नहीं जा रहा है ,

     बाद में पता चला कि वह उन लोगों के खाने की बात कर रहे थे  जिन्हें इनके घर अफसोस करने आना था द्य

यह हो क्या रहा है यह चल क्या रहा है इनके घर शादी या सालगिरह का फंक्शन नहीं है बल्कि एक लड़के की जन्नत उसे छोड़कर चली गयी है,बजाये इस चीज के कि हम उस घर का हौसला बने उस घर के दुख में शरीक हों उल्टा वह लोग हमारी गंदी और कभी ना मिटने वाली भूक का इंतजाम करने में लगे हैं , 

मै सोचने लगा क्या हम इस कदर नीच और घटिया लोग है कि मैय्यत वाले के घर खाना पीना नहीं छोड़ते ,

     और फिर जनाजे के बाद घिनावनग खेल शूरू हुआ एक ऐसा खेल जिसे देख के किसी गैरत मंद को मौत आ जाये लेकिन अफसोस ..३

वही लड़का जिसकी दुनिया लुट गयी बर्बाद हो गयी हां हां वही लड़का,रोती आंखो के साथ उन  भूकी नंगी जिन्दा लाशों जिनके अक्लों पर मातम करना चाहिए उनको खाना दे रहा है ,क्या उन्को शर्म नहीं आती  क्यों ये गैरत से मर नहीं जाते ,

          फिर मेरे कानों ने सुना एक आदमी उस लड़के को आवाज देकर कहा कि भाई ये प्लेट में लेग पीस डालकर लाना ,

    उफ्फफफफ मेरे खुदा ये कौन लोग हैं जिनके पेट नही भरते ,ऐसे लोग दुनिया में ही क्यों हैं ये मर क्यों नहीं जाते , 

शर्म नहीं आती उसी से लेग पीस मांगते जिसकी मां मर गयी है द्यद्य

बजाये इसके कि तुम्हारा हाथ उसके कंधो पर हो और हौसला दे रहा हो तुम्हारा हाथ लेग पीस को पड़ रहा है द्य

     किसी दानी आदमी का कौल याद आ गया ,

  सबसे गलीज तरीन खाना वह है जो हम मैय्यत वाले घर से खाते हैं !!

       सायद हमें रहम या तरस नहीं आता ये देखकर भी कि लोग रोते हुये भी खाना बांट रहे हैं 

    मैने ऐसे लोग भी देखे हैं जो मैय्यत वाले घर से भी नाराज होकर चले जाते हैं कि हमे खाना नहीं दिया द्य


Thursday, January 19, 2023

साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी

 हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी ,

पहला चरण - कैंची
दूसरा चरण - डंडा
तीसरा चरण - गद्दी ...
*तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।*
*"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे*।


और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और *"क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है* ।
*आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था*।
हमने ना जाने कितने दफे अपने *घुटने और मुंह तोड़वाए है* और गज़ब की बात ये है कि *तब दर्द भी नही होता था,* गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।
अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और *अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में* ।
मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी! *"जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं* ।
*इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए* !
और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।
और ये भी सच है की *हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी* ।
हम लोग की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !
*पहला चरण कैंची*
*दूसरा चरण डंडा*
*तीसरा चरण गद्दी।*
● *हम वो आखरी पीढ़ी हैं*, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।
● *हम वो आखरी लोग हैं*, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं l