Saturday, July 29, 2023

मौत का स्वाद

 अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी ...

थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना
मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ...
थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ...
मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है.....
बकरे का,
गाय का,
भेंस का,
ऊँट का,
सुअर,
हिरण का,
तीतर का,
मुर्गे का,
हलाल का,
बिना हलाल का,
ताजा बकरे का,
भुना हुआ,
छोटी मछली,
बड़ी मछली,
हल्की आंच पर सिका हुआ। न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।
क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा....

स्वाद से कारोबार बन गई मौत।
मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।
नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*❗
स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।
जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं...
उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?
कैसे मान लिया

कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ?
या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?
डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !
बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...??
जिसे काटा गया होगा ?
जो कराहा होगा ?
जो तड़पा होगा ?
जिसकी आहें निकली होंगी ?
जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?
कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..❓
क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .❓
क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ..❓
धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो ।
कभी सोचा ...!!!
क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ?
किसे ठग रहे हो ?
भगवान को ?
अल्लाह को ?
जीसस को?
या खुद को ?
मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!!
आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!!
अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!!
नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!!
झूठ पर झूठ....

Saturday, July 22, 2023

नेकी करता चला जा, पुण्य खुद मिलता जायेगा

एक विडियो जिसे देख आंखें खुद ब खुद बहती चली गयी मेरी, मेरे आंसूंओं कि कशिश सिर्फ उस विडियो की तरफ थी जो टकटकी लगाए बार-बार उसे ही देखे जा रही थी। इतना भाव विभोर कर देने वाला था विडियो। सही कहते हमारे बड़े कि नेकी कर दरिया में डाल, बस नेकी का पुण्य फल आज नहीं तो कल किसी न किसी रूप में मिल ही जाता है या मिलता ही रहता है जो हमें महसूस भी नहीं हो पाता है। कब नेकी से ही धरा पर पड़ा इंसान उठ उस आसमां की बुलंदियों को छू लेता है जो उसे पता नहीं चलता है। वह तो नेकी का कार्य कर के भूल जाता है। उसे तो याद ही नहीं रहता कि उसने कभी कोई नेक काम किया था परंतु उसे नेकी का जब फल मिलता है तो वह फूला नहीं समाता है।

कहा जाता है समाज में सोशल मीडिया का प्रयोग आज के नवयुवा बहुत ही गलत तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं जिसके चलते हमारे नवयुवा, नौनिहाल पथ भ्रमित होकर गलत राह पर चले जा रहे हैं और सोशल मीडिया का प्रयोग अनैतिक रूप से प्रयोग कर रहे हैं। सच यह देखा भी जा रहा है कि किसका तो सोशल मीडिया के जरिए कैसे वाहयात लोग वीडियो बना रहे, जिसे हम रियल कहते हैं और कुछ तो अवैधानिक कृत्य होते हुए देख रहे हैं परंतु बस खड़े-खड़े तमाशबीन की तरह वीडियो बनाते फिर रहे हैं और उसे अपलोड कर दिया जाता है सोशल मीडिया पर जन-जन तक पहुंचाने के लिए जैसे उन्होंने एक बड़ा कोई तीर मारा हो परंतु ऐसा नहीं है सोशल मीडिया का प्रयोग हम करना चाहे तो बहुत ही अच्छे तरीके से भी कर सकते हैं जैसा की मैंने ऊपर बताया कि मैंने एक वीडियो देखा जिसको देखकर इतना भाव विभोर हो उठी कि मेरे आंसू नहीं रुक रहे थे जानते हैं उस वीडियो के अंतर्गत क्या था उससे पहले मैं एक बात बताना चाहूंगी कि जिन्होंने यह वीडियो बनाया उन्होंने सोशल मीडिया का बहुत ही बेहतरीन उपयोग किया और दुनिया को एक संदेश देना चाहा कि जो हमारे बड़े बुजुर्ग कहते हैं वह गलत नहीं कहते हैं जैसे कि नेकी कर दरिया में डाल और इसका फल परिणाम कभी ना कभी हमें जरूर मिलता है हमारे हिसाब किताब के खाते प्रभु के द्वारा लिखे जा रहे हैं और उसी आधार पर हमारे द्वारा किये गये हर एक कर्मों का ही फल मिलता है जैसे कि हमें पैसा मिलता हैं, सम्मान, शौहरत, रूतबा। यदि हमारे पुण्य कर्म गलत होंगे तो न जाने कब हम अपने पाप के कर्मों की गठरी के कारण ही आसमां से धरा पर आकर औंधे मुंह गिर पड़े इसलिए कहते हैं कि पुण्य कर्म करते चलो फल की इच्छा मत करो।
 इस वीडियो के अंतर्गत यह था एक आदमी एक भिखारी को कुछ रुपए देता है। वो रुपए इतने थे की भिखारी 2 दिन आराम से खाना खा सकता था। उसे भीख मांगने की जरूरत नहीं पड़ती परंतु उस भिखारी ने उन्हीं पैसों में से प्यासे एक आदमी को पानी खरीद कर दिया, एक दवा की दुकान पर गया कोई दवाई खरीदनी थी। वहां पर एक मां अपने बच्चे के लिए दवाई खरीदने आई थी परंतु कुछ पैसे कम पड़ते हैं । दुकानदार ने दवाई देने से मना कर दिया। महिला अपने ही पास में खड़ी हुई दूसरी महिला से कुछ पैसे उधार देने के लिए कहा परंतु दूसरी महिला ने उधार देने से मना कर दिया तब उस भिखारी ने अपने पैसों में से उसे कुछ पैसे दे दिए और बच्चे के लिए दवाई दिलवा दी उस औरत ने कहा कि मैं आपके पैसे लौटा दूंगी परंतु उस भिखारी ने मना कर दिया कहा कि मुझसे ज्यादा इस बच्चे को जरूरत है दवा की। इस समय दवा देकर आप पहले बच्चे को ठीक होने दें। जिस इंसान में भिखारी को 2 दिन के खाने के पैसे दिए थे भिखारी का पीछा कर रहा था तब से जब उसने एक प्यासे व्यक्ति को पानी की बोतल खरीद कर दी थी, बच्चे को दवाई दिलवाने के बाद भिखारी खाने की दुकान पर गया और वहां से एक पराठा और चिप्स का पैकेट और पानी की बोतल खरीदी जब वह खाने ही बैठ रहा था तभी एक उसके दूसरे भिखारी मित्र जो की बहुत बुजुर्ग था अपनी भख जाहिर की, उस भिखारी में खरीदा हुआ पराठा उसे खाने के लिए दे दिया। जो आदमी उस भिखारी का पीछा कर रहा था वह सब देखने के बाद अपने घर वापस लौट आया उसने समस्त वाक्या अपनी मां को बताया उसने बताया कि किस कदर उसने भिखारी को  पैसे दिया और उस भिखारी ने पूरे के पूरे पैसे इस्तेमाल कर लिए दूसरों की मदद् करके तब मां की आंखों में आंसू आ गए और उसने अपने बेटे को बताया कि एक समय ऐसा था जब तुम्हारे पिता हमें छोड़ कर चले गए थे मुझे तुमको पालने के लिए पैसों की जरूरत थी और मेरे पास कोई काम ही नहीं था तब एक आदमी ने मेरी मदद की और जब तक मेरी नौकरी नहीं लगी तब तक उस आदमी ने मुझे रोज खाना दिया और तुम्हारे लिए दूध का इंतजाम भी करता था जब मेरी नौकरी लग गई तब मैं तुम्हें लेकर दूसरे शहर में आ गई जब मैंने अपना घर ले लिया तो मैं उस आदमी की तलाश में गई थी जहां उसे वो आदमी नहीं मिला। चलो कोई बात नहीं जिस आदमी है दूसरों की मदद की मैं उसी को ही अपने हाथों से कुछ बेटा देना चाहती हूं मुझे लेकर चलो। अपनी मां की बात सुनकर अपनी मां को उस भिखारी के पास लेकर जाता है और उन्हें वो भिखारी से मिल जाता है। मां जब उस भिखारी से मिलती है तो वह बहुत हैरान में पड़ जाती है। यह तो वही आदमी है जिसने मेरी बरसों पहले मदद की थी और जिसके कारण आज मैं और मेरा बेटा ऐशों आराम में रह रहे हैं। उस महिला ने उस भिखारी को पुरानी बातें याद दिलाई परंतु उस आदमी ने कहा कि मुझे कुछ भी याद नहीं मैं तो नेकी करता हूं और दरिया में डाल देता हूं। मेरी मां ने उस आदमी के लिए एक छोटा सा कमरा बनवाया , उसे वहीं रहने के लिए कहा और उसके लिए हर इंसान की जरूरत में आने वाले कपड़े व अन्य सामान दिया। आपके द्वारा कार्यकिसी न किसी रूप में आपको जरूर मिलेगा यही सीख दे रहा था वो विडियो ।सही में कुछ लोग सोशल मीडिया का प्रयोग इतना अच्छा करते हैं कि लोगों के लिए एक मिसाल कायम हो जाती है और कुछ अच्छा सीखने के लिए मिल पाता है काश हर कोई एक अच्छी सोच के साथी सोशल मीडिया का प्रयोग करें तो आज देश खुशहाल समृद्धि और प्रेम से परिपूर्ण हो जाएगा। 


वीना आडवाणी तन्वी

Friday, July 21, 2023

पत्नी के अलग अलग रूप

 जेठ के घर में एक गरीब आदमी काम करता है, नाम है प्रेम। जैसे ही प्रेम के फ़ोन की घंटी बजी, वह डर सा गया।

जेठ जी ने एक दिन पूछ ही लिया ?
"प्रेम तुम अपनी पत्नी से इतना क्यों डरते हो ?"
मैं डरता नही बाबूजी, उसकी कद्र करता हूँ उसका सम्मान करता हूँ। उसने जबाव दिया।
जेठजी हँसे और बोले-"ऐसा क्या है उसमें। ना बहुत सुन्दर है, ना पढी लिखी।"
जबाव मिला-"कोई फर्क नहीं पड़ता बाबूजी कि वह कैसी है, पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है।"
"जेठ जी उसे छेड़ रहे थे मुँह से निकला - जोरू का गुलाम।" और सारे रिश्ते कोई मायने नही रखते तेरे लिये ? उन्होंने पूछा।
उसने बहुत इत्मिनान से जबाव दिया- बाबू जी माँ बाप रिश्तेदार नहीं होते। वे भगवान होते हैं।
उनसे रिश्ता नहीं निभाते, उनकी पूजा करते हैं। भाई-बहन के रिश्ते जन्मजात होते हैं, दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है। आपका मेरा रिश्ता भी जरूरत और पैसे का है पर, पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिये हमारी हो जाती है, अपने सारे रिश्तों को पीछे छोड़कर और हमारे हर सुख-दुख की सहभागी बन जाती है आखिरी सांसों तक।"
मैं अचरज से उसकी बातें सुन रही थी। वह आगे बोला-"बाबू जी, पत्नी अकेली रिश्ता नहीं है, बल्कि वह पूरा रिश्तों की भण्डार है। जब वह हमारी सेवा करती है, हमारी देखभाल करती है, हमसे दुलार करती है तो एक माँ जैसी होती है। वह हमें जमाने के उतार-चढाव से आगाह करती है और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूँ क्योंकि जानता हूँ वह हर हाल मे मेरे घर का भला करेगी तब पिता जैसी होती है। जब हमारा ख्याल रखती है, हमसे लाड़ करती है, हमारी गलती पर डाँटती है, हमारे लिये खरीदारी करती है तब बहन जैसी होती है। जब हमसे नयी-नयी फरमाईश करती है,
नखरे करती है, रूठती है, अपनी बात मनवाने की जिद करती है तब बेटी जैसी होती है। जब हमसे सलाह करती है, मशवरा देती है,
परिवार चलाने के लिये नसीहतें देती है, झगड़े करती है तब एक दोस्त जैसी होती है। जब वह सारे घर का लेन-देन, खरीददारी, घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक मालकिन जैसी होती है और जब वही सारी दुनिमा को यहां तक
कि अपने बच्चों को भी छोड़कर हमारे पास में आती है तब वह पत्नी, प्रेमिका, प्रेयसी, अर्धांगिनी, हमारी प्राण और आत्मा होती है जो अपना सब कुछ सिर्फ हम पर न्योछावर करती है।"
नौकर प्रेम के अंतिम शब्द हमेशा-हमेशा याद रहेंगे कि केवल पत्नी के साथ के रिश्ते को ही सात जन्मों का बंधन माना जाता है और किसी दूसरे रिश्ते को नहीं।

Friday, July 7, 2023

टोल फ्री नम्बर

_________________________
C M शिकायत पोर्टल          181

विद्युत सेवा                        1912

पशु सेवा                           1962

पुलिस सेवा                        112, 100

अग्नि  सेवा                        101

एमबुलैस  सेवा                   102

यातायात  पुलिस                103

आपदा  प्रबंधन                  108

चाइल्ड लाइन                  1098

रेलवे  पूछताछ                   139

भ्रष्टाचार  विरोधी              1031

रेल  दुर्घटना                     1072

सड़क  दुर्घटना                 1073

सी एम सहायता लाइन     1076

क्राइम  सटायर                 1090

महिला  सहायता  लाइन     1091

पृथ्वी  भूकम्प                  1092

बाल शोषण  सहायता       1098

किसान  काल  सेन्टर        1551

नागरिक  काल  सेन्टर  155300

 ब्लड बैंक         9480044444


सनातन की जानकारी

 ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो  सके

🙏प्रिंस शुक्ला 🙏7068108888

आपका आभार धन्यवाद होगा


1-अष्टाध्यायी               पाणिनी

2-रामायण                    वाल्मीकि

3-महाभारत                  वेदव्यास

4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य

5-महाभाष्य                  पतंजलि

6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन

7-बुद्धचरित                  अश्वघोष

8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष

9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र

10- स्वप्नवासवदत्ता        भास

11-कामसूत्र                  वात्स्यायन

12-कुमारसंभवम्           कालिदास

13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  

14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास

15-मेघदूत                    कालिदास

16-रघुवंशम्                  कालिदास

17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास

18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि

19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त

20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक

21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट

22-वृहतसिंता               बरामिहिर

23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा

24-कथासरित्सागर        सोमदेव

25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु

26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त

27-रावणवध।              भटिट

28-किरातार्जुनीयम्       भारवि

29-दशकुमारचरितम्     दंडी

30-हर्षचरित                वाणभट्ट

31-कादंबरी                वाणभट्ट

32-वासवदत्ता             सुबंधु

33-नागानंद                हर्षवधन

34-रत्नावली               हर्षवर्धन

35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन

36-मालतीमाधव         भवभूति

37-पृथ्वीराज विजय     जयानक

38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर

39-काव्यमीमांसा         राजशेखर

40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त

41-शब्दानुशासन         राजभोज

42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र

43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष

44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण

45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र

46-गीतगोविन्द            जयदेव

47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई

48-राजतरंगिणी           कल्हण

49-रासमाला               सोमेश्वर

50-शिशुपाल वध          माघ

51-गौडवाहो                वाकपति

52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी

53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र


वेद-ज्ञान:-


प्र.1-  वेद किसे कहते है ?

उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।


प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने दिया।


प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।


प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?

उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।


प्र.5-  वेद कितने है ?

उत्तर- चार ।                                                  

1-ऋग्वेद 

2-यजुर्वेद  

3-सामवेद

4-अथर्ववेद


प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।

        वेद              ब्राह्मण

1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय

2 - यजुर्वेद      -     शतपथ

3 - सामवेद     -    तांड्य

4 - अथर्ववेद   -   गोपथ


प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।

उत्तर -  चार।

      वेद                     उपवेद

    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद

    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद

    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद

    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद


प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।

उत्तर -  छः ।

1 - शिक्षा

2 - कल्प

3 - निरूक्त

4 - व्याकरण

5 - छंद

6 - ज्योतिष


प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?

उत्तर- चार ऋषियों को।

         वेद                ऋषि

1- ऋग्वेद         -      अग्नि

2 - यजुर्वेद       -       वायु

3 - सामवेद      -      आदित्य

4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा


प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?

उत्तर- समाधि की अवस्था में।


प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?

उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।


प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?

उत्तर-   चार ।

        ऋषि        विषय

1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान

2-  यजुर्वेद    -    कर्म

3-  सामवे     -    उपासना

4-  अथर्ववेद -    विज्ञान


प्र.13-  वेदों में।


ऋग्वेद में।

1-  मंडल      -  10

2 - अष्टक     -   08

3 - सूक्त        -  1028

4 - अनुवाक  -   85 

5 - ऋचाएं     -  10589


यजुर्वेद में।

1- अध्याय    -  40

2- मंत्र           - 1975


सामवेद में।

1-  आरचिक   -  06

2 - अध्याय     -   06

3-  ऋचाएं       -  1875


अथर्ववेद में।

1- कांड      -    20

2- सूक्त      -   731

3 - मंत्र       -   5977

          

प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।


प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?

उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।


प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?

उत्तर-  नहीं।


प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

उत्तर-  ऋग्वेद।


प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 


प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?

उत्तर- 

1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।

2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।

3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।

4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।

5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।

6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।


प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?

उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।


प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?

उत्तर-  केवल ग्यारह।


प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?

उत्तर-  

01-ईश ( ईशावास्य )  

02-केन  

03-कठ  

04-प्रश्न  

05-मुंडक  

06-मांडू  

07-ऐतरेय  

08-तैत्तिरीय 

09-छांदोग्य 

10-वृहदारण्यक 

11-श्वेताश्वतर ।


प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?

उत्तर- वेदों से।

प्र.24- चार वर्ण।

उत्तर- 

1- ब्राह्मण

2- क्षत्रिय

3- वैश्य

4- शूद्र


प्र.25- चार युग।

1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।

2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।

3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।

4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।

कलयुग के 5122  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।

4,27024 वर्षों का भोग होना है। 


पंच महायज्ञ

       1- ब्रह्मयज्ञ   

       2- देवयज्ञ

       3- पितृयज्ञ

       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ

       5- अतिथियज्ञ

   स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।

नरक  -  जहाँ दुःख है।.

*#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,


Monday, July 3, 2023

हथौड़ा

 एक बढ़ई किसी गांव में काम करने गया, लेकिन वह अपना हथौड़ा साथ ले जाना भूल गया। उसने गांव के लोहार के पास जाकर कहा, श्मेरे लिए एक अच्छा सा हथौड़ा बना दो।

मेरा हथौड़ा घर पर ही छूट गया है।श् लोहार ने कहा, ना दूंगा पर तुम्हें दो दिन इंतजार करना पड़ेगा।

हथौड़े के लिए मुझे अच्छा लोहा चाहिए। वह कल मिलेगा।



दो दिनों में लोहार ने बढ़ई को हथौड़ा बना कर दे दिया। हथौड़ा सचमुच अच्छा था। बढ़ई को उससे काम करने में काफी सहूलियत महसूस हुई। बढ़ई की सिफारिश पर एक दिन एक ठेकेदार लोहार के पास पहुंचा।

उसने हथौड़ों का बड़ा ऑर्डर देते हुए यह भी कहा कि श्पहले बनाए हथौड़ों से अच्छा बनाना।श् लोहार बोला, श्उनसे अच्छा नहीं बन सकता। जब मैं कोई चीज बनाता हूं तो उसमें अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता, चाहे कोई भी बनवाए।

धीरे-धीरे लोहार की शोहरत चारों तरफ फैल गई। एक दिन शहर से एक बड़ा व्यापारी आया और लोहार से बोला, श्मैं तुम्हें डेढ़ गुना दाम दूंगा, शर्त यह होगी कि भविष्य में तुम सारे हथौड़े केवल मेरे लिए ही बनाओगे। हथौड़ा बनाकर दूसरों को नहीं बेचोगे। 

लोहार ने इनकार कर दिया और कहा, श्मुझे अपने इसी दाम में पूर्ण संतुष्टि है। अपनी मेहनत का मूल्य मैं खुद निर्धारित करना चाहता हूं। आपने फायदे के लिए मैं किसी दूसरे के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता।

आप मुझे जितने अधिक पैसे देंगे, उसका दोगुना गरीब खरीदारों से वसूलेंगे। मेरे लालच का बोझ गरीबों पर पड़ेगा, जबकि मैं चाहता हूं कि उन्हें मेरे कौशल का लाभ मिले। मैं आपका प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकता। 

सेठ समझ गया कि सच्चाई और ईमानदारी महान शक्तियां हैं। जिस व्यक्ति में ये दोनों शक्तियां मौजूद हैं, उसे किसी प्रकार का प्रलोभन अपने सिद्धांतों से नहीं डिगा सकता.....!!


*गुरु होना क्यों जरूरी है*

एक बार नारद जी विष्णु जी के पास गए। विष्णु जी ने नारद जी का बहुत आदर किया, और जब नारद जी वहां से निकले तो विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा कि, *जहां नारद बैठे थे, उस स्थान को शुद्ध करने हेतु गोबर से लिप दो* नारद जी ने ये बात सुन ली, और पुनः अंदर आकर बोले "प्रभु, मेरे आने पर आपने आदर भाव दर्शाया और जाते ही मेरे स्थान को पवित्र करने लगे, क्यों..?

विष्णु जी बोले, जब आप अतिथि थे, तब सम्मान के पात्र थे लेकिन आप के कोई गुरु नही और बिना गुरु के (निगुरे )के कही बैठने पर स्थान अशुद्ध हो जाता है, इसलिए उसे पवित्र करना जरूरी है

नारद जी ने दुःखी होकर कहा, प्रभु आप ही बताएं कि मैं किसे अपना गुरु बनाऊं..?
विष्णु जी बोले, आप पृथ्वीलोक पर जाइए और सर्वप्रथम जिससे भेंट होगी उसे ही अपना गुरु बना लीजिएगा..
नारदजी जैसे ही पृथ्वी पर आए उन्हे सबसे पहले एक मछुआरा मिला लेकिन देव ऋषि नारद जी को ये बिलकुल नहीं भाया की एक मामूली सा मछुआरा उसका गुरु बने, लेकिन विष्णु जी की आज्ञानुसार उन्होंने मछुआरा से विनती कर उन्हे अपना गुरु बना ही लिया..
वो वापस विष्णु भगवान के पास गए और कहा, प्रभु एक तुच्छ मछुआरा, एक अज्ञानी मेरा गुरु कैसे हो सकता है..?
विष्णु जी को उनके अभिमान भरे स्वर पर क्रोध आ गया और बोले, *नारद, आपने अपने गुरु का अपमान किया है, अतः आपको मैं श्राप देता हु कि, आप ८४ लाख योनियों मे घूमकर आयेंगे तभी आपको क्षमा मिलेगी*..
नारद जी अत्यंत डर गए और क्षमा याचना करने लगे तब माता लक्ष्मी जी ने कहा, नारद आप अपने गुरु से इसका कोई हल पूछकर क्यों नही आते..?
नारद जी, भागते हुए अपने गुरु मछुआरे के पास आए और अपनी व्यथा सुनाई..
मछुआरा ने कहा, *आप विष्णु भगवान से कहिए की पृथ्वीलोक पर पूरे ८४ लाख योनियों का चित्र अंकित कर दे, फिर आगे मैं बताऊंगा क्या करना है*
नारद जी ने गुरु की बात विष्णु जी से कही तब विष्णु जी ने पृथ्वी लोक पर ८४ लाख योनियों का चित्र अंकित कर दिया..
अब मछुआरा ने नारद जी से कहा, *शिष्य, आप लेट कर पूरे चित्र पर घूम जाओ*
नारद जी लेट कर पूरे चित्र पर घूम गए तब विष्णु जी मुस्कुराएं और नारद जी को श्राप मुक्त किया..
*विष्णु भगवान के कहा, गुरु कोई भी हो, वो किसी भी परिस्थिति मे सही ज्ञान देता है*
गुरु गूंगे गुरु बाबरे, गुरु के रहिये दास..
गुरु जो भेजे नरक को, स्वर्ग कि रखिये आस..

Friday, June 30, 2023

लोहे के बर्तन ही बेहतर है

#बर्तन तो लोहे के ही बेहतर है
खाने के बर्तन कैसे होने चाहिए यह सवाल लगातार पूछा गया है .एक पत्र भी मिला .खाने के बर्तन के बारे में मेरा मानना है कि
परम्परागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले बेहतर थे .मिर्जापुरी ' भरत ' पीतल के मुकाबले थोड़ी सफ़ेद धातु है .इसके बर्तन काफी
वजनदार होते हैं .एक बार गर्म हो जाने के बाद दाल सब्जी आसानी से पकती है .भार की वजह से नीचे लगने का भी डर कम होता
है .भरत की पतीली कुछ ज्यादा ही भारी होती है .इसमें रखा भोजन न पितलाता है न ही कसियाता है .यह धातु पीतल स्टेनलेस
स्टील के मुकाबले महंगी तो जरुर है लेकिन एलोपैथिक डाक्टरों को चुकाए जाने वाले हर्जाने में इतनी बचत कर देते हैं कि ये महंगे
बर्तन सस्ते ही साबित होते हैं .खटाई युक्त भोजन कच्चे पक्के लोहे की कड़ाही में ही पकाया जा सकता है लेकिन पकते ही उसे
मिटटी ,पत्थर या चीनी मिटटी के बर्तन में निकाल लेना चाहिए .इस तरह के भोजन को बार बार गर्म नहीं करना चाहिए .जिन्हें सिर्फ
गर्म खाना ही रुचता हो उन्हें पुराने दिनों की तरह रसोई में आसन पर बैठकर आंच से उतरता भोजन करना चाहिए .
रसोई में खड़ा चूल्हा अगर अनिवार्य हो गया हो तो वहीँ एक मेज लगा ले .मौसम ठीक हो तो मिर्जापुरी भरत में रखा भोजन चार छह
घंटे बिलकुल ठीक रहता है .तीस चालीस साल पहले बर्तन की आम दूकानों पर भरत की पतीली ,कड़ाही सहज उपलब्ध हुआ
करती थी .अब तो जगाधरीतक में भरत की ढलाई आखिरी सांस गिन रही है .फिर भी बनारस और कोलकता के बर्तन बाजार में
ढूढने पर ये मिल जाते हैं .अमदावाद शहर में जैन संत श्रीमंत हितरुचि विजय महाराज की चार पांच उत्साही युवाओं ने शुद्ध और
अहिंसात्मक अन्न वस्त्र भांडों का व्यापर शुरू किया है .
बर्तन के मामले में यह जान लें कि कुम्हार के आंवें में पके मिटटी के बर्तन तो उपयुक्त हैं ही साथ ही बिहार ,बंगाल ,दक्षिण में ढले
लोहे के बर्तन भी उपयुक्त हैं .मिर्जापुर में पीतल कसकूट आदि मिलकर ढाले गए भरत के बर्तन सभी तरह का भोजन बनाने के लिए
उपयुक्त हैं .एल्यूमीनियम के बर्तन ठीक नहीं होते .स्टील में भी अगर अच्छी गुणवत्ता का स्टील न हुआ तो उसमे बना भोजन ठीक
नहीं होता .आजकल जो कूकर चल रहे हैं उनसे हो सके तो बचना चाहिए या फिर स्टील के कूकर का इस्तेमाल करना चाहिए .


लोहे की कड़ाही में दमपुख्त
यह मूल नुस्खा तो अवध के ग्रामीण अंचल से आया था .भीगे चनो में पालक ,परवल ,लौकी ,आलू और टमाटर का सालन .आज की
खिचड़ी तो अपने आप में संपूर्ण भोजन है .पहला नुस्खा -गेंहू ,मूंग मोठ चना भीगोकर साठ से बहत्तर घंटे तक अंकुरित हो जाने दें
.इस दौरान चारो अन्न बारी बारी से धोते रहिए .स्टार्च बचेगा ही नहीं .हीं चारो अन्न पूरी तरह अंकुरित होने पर सिर्फ प्रोटीन ,रफेज और

उर्जा रूप रह जाएंगे .स्टार्च की जरूरत हो तो इसे पकाते समय इसमें मक्के का दलिया मिला सकते हैं . 

भोजन विधि (आयुर्वेदोक्त)

 आयुर्वेदोक्त #भोजन विधि

"भोजन विधि" (भोजन खाने के नियम)


(1) भोजनाग्रे सदा पथ्यनलवणार्द्रकभक्षणम् |
अग्निसंदीपनं रुच्यं जिह्वाकण्ठविशोधनम् ||
भोजन शुरू करने से पहले आपको आद्रक (अदरक) का छोटा टुकड़ा और चुटकी भर सैंधव (सेंधा नमक) मिलाकर खाना चाहिए।
यह आपके पाचन को बढ़ावा देने के लिए आपकी अग्नि (पाचन अग्नि) को बढ़ाएगा, आपकी जीभ और गले को साफ करेगा जिससे आपकी स्वाद कलिकाएं सक्रिय होंगी।
(2) घृतपूर्वं संश्नीयात कठिनं प्राक् ततो मृदु।
अन्ते पुनर्द्रवाशि च बलरोग्ये न मुञ्चति।।
घृत को अपने भोजन में शामिल करना चाहिए। सबसे पहले सख्त खाद्य पदार्थ जैसे रोटी आदि से शुरुआत करें, फिर नरम खाद्य पदार्थ खाएं। भोजन के अंत में आपको तक्र (छाछ) जैसे तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से आपको ऊर्जा और स्वास्थ्य मिलता है।
(3) अश्नियात्तनमना भूत्वा पूर्वं तु मधुरं रसम्।
मध्येऽमल्लवणौ मूर्ति कटुतिक्तक्षायकं।।
भोजन एकाग्रचित्त होकर करना चाहिए। सबसे पहले, मधुर द्रव्य (मीठा भोजन) से शुरू करें, फिर बीच में, अमला द्रव्य (खट्टा भोजन) और लवण युक्त द्रव्य (नमकीन भोजन), और अंत में, तिक्त द्रव्य (कड़वा भोजन), कटु द्रव्य (मसालेदार भोजन), और कषाय द्रव्य (कसैला भोजन)।
(4) फलान्यादौ समश्नीयाद दादिमादीनि बुद्धि।
विना मोचाफलं तद्वद् वरिअय च कर्कति।।
नरम भोजन में सबसे पहले दाड़िमा आदि फलों से शुरुआत करें, लेकिन भोजन की शुरुआत में केला और खीरा जैसे फल न खाएं क्योंकि खीरे में पानी होता है इसलिए यह पाचन अग्नि को कम कर देगा।
(5) अन्नेन कुक्षेर्द्वावंशौ पवेनैकं प्रापुरयेत्।
आश्रयं पवनदीनां चतुर्थमवशेषयेत्।।
पेट के दो हिस्से (पेट की आधी क्षमता) ठोस भोजन से भरे होने चाहिए, पेट का एक हिस्सा तरल भोजन से भरा होना चाहिए और पेट का बाकी हिस्सा वात यानी हवा के मुक्त प्रवाह के लिए खाली रखा जाना चाहिए।
वैधानिक अधिसूचना करने से पूर्व पंजीकृत आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें

Thursday, June 22, 2023

गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है

*गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।*
*जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।*
*बेचा है ईमान धरम तब, घर में शानो शौकत आई है।*
*संतोष बेच, तृष्णा खरीदी, देखो कितनी मंहगाई है।।*
बीघा बेच स्कवायर फीट खरीदा, ये कैसी सौदाई है।
संयुक्त परिवार के वट वृक्ष से टूटी, ये पीढ़ी मुरझाई है।।
*रिश्तों में है भरी चालाकी, हर बात में दिखती चतुराई है।*
कहीं गुम हो गई मिठास, जीवन से, हर जगह कड़वाहट भर आई है।।

रस्सी की बुनी खाट बेच दी, मैट्रेस ने जगह बनाई है।
अचार, मुरब्बे को धकेल कर, शो केस में सजी दवाई है।।
*माटी की सोंधी महक बेच के, रुम स्प्रे की खुशबू पाई है।*
मिट्टी का चुल्हा बेच दिया, आज गैस पे बेस्वाद सी खीर बनाई है।।
*पांच पैसे का लेमनचूस बेचा, तब कैडबरी हमने पाई है।*
*बेच दिया भोलापन अपना, फिर मक्कारी पाई है।।*
सैलून में अब बाल कट रहे, कहाँ घूमता घर- घर नाई है।
दोपहर में अम्मा के संग, गप्प मारने क्या कोई आती चाची ताई है।।
मलाई बरफ के गोले बिक गये, तब कोक की बोतल आई है।
*मिट्टी के कितने घड़े बिक गये, तब फ्रिज में ठंढक आई है ।।*
खपरैल बेच फॉल्स सीलिंग खरीदा, हमने अपनी नींद उड़ाई है।
*बरकत के कई दीये बुझा कर, रौशनी बल्बों में आई है।।*
गोबर से लिपे फर्श बेच दिये, तब टाईल्स में चमक आई है।
*देहरी से गौ माता बेची, फिर संग लेटे कुत्ते ने पूँछ हिलाई है ।।*
*बेच दिये संस्कार सभी, और खरीदी हमने बेहयाई है।*
ब्लड प्रेशर, शुगर ने तो अब, हर घर में ली अंगड़ाई है।।
*दादी नानी की कहानियां हुईं झूठी, वेब सीरीज ने जगह बनाई है।*
बहुत तनाव है जीवन में, ये कह के मम्मी ने दो पैग लगाई है।।
*खोखले हुए हैं रिश्ते सारे, नहीं बची उनमें सच्चाई है।।*
*चमक रहे हैं बदन सभी के, दिल पे जमी गहरी काई है।*
*गाँव बेच कर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।।*
*जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।।*

Wednesday, June 14, 2023

हैप्पी हेल्थ डे

 सभी को स्वास्थ्य दिवस की शुभकामनाएं

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 ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें:

1. बीपी: 120/80

2. नाड़ी :70 -100

3. तापमान: 36.8 - 37

4. श्वास: 12-16

5. हीमोग्लोबिन: पुरुष -13.50-18

 स्त्री -11.50 - 16

6.कोलेस्ट्रॉल: 130 - 200

7.पोटेशियम: 3.50 - 5

8. सोडियम: 135 - 145

9. ट्राइग्लिसराइड्स: 220

10. शरीर में खून की मात्रा: पीसीवी 30-40%

11. शुगर लेवल: बच्चों (70-130) वयस्कों के लिए: 70 - 115

12. आयरन :8-15 मिलीग्राम

13. श्वेत रक्त कोशिकाएं WBC: 4000 - 11000

14. प्लेटलेट्स: 1,50,000- 4,00,000

15. लाल रक्त कोशिकाएं आरबीसी: 4.50 - 6 मिलियन।

16. कैल्शियम: 8.6 -10.3 mg/dL

17. विटामिन डी3: 20 - 50 एनजी/एमएल।

18. विटामिन B12:  200 - 900 पीजी/एमएल।

40/50/60 वर्ष वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष सुझाव:

1- पहला सुझाव:  प्यास या ज़रूरत न होने पर भी हर समय पानी पिएं, सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं और उनमें से ज्यादातर शरीर में पानी की कमी के कारण होती हैं।  प्रति दिन कम से कम 2 लीटर। 2-दूसरा निर्देश: शरीर से जितना हो सके उतना काम करें, शरीर का मूवमेंट होना चाहिए, जैसे चलना, तैरना, या किसी भी तरह का खेल।

3-3 टिप: कम खाएं... ज्यादा खाने की लालसा छोड़ें... क्योंकि इससे कभी अच्छा नहीं होता।  अपने आप को वंचित मत करो, बल्कि मात्रा कम करो।  प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों का अधिक प्रयोग करें।

4- चौथी हिदायत: वाहन का प्रयोग तब तक न करें जब तक कि अत्यंत आवश्यक न हो।  यदि आप कहीं भी किराने का सामान लेने जा रहे हैं, किसी से मिल रहे हैं, या कोई काम कर रहे हैं, तो अपने पैरों पर चलने की कोशिश करें।  लिफ्ट, एस्केलेटर का इस्तेमाल करने के बजाय सीढ़ियां चढ़ें।

5- 5वां निर्देश गुस्सा छोड़ दें, चिंता करना छोड़ दें, बातों को इग्नोर करने की कोशिश करें।  अपने आप को परेशानी वाली स्थितियों में शामिल न करें, वे सभी स्वास्थ्य को खराब करते हैं और आत्मा की महिमा को हर लेते हैं।  सकारात्मक लोगों से बात करें और उनकी बात सुनें।

6- छठा निर्देश सबसे पहले धन का मोह त्याग दें

 अपने आसपास के लोगों से जुड़ें, हंसें और बात करें!  पैसा जीवित रहने के लिए बनाया जाता है, जीवन पैसे के लिए नहीं।

7-  7वाँ नोट अपने लिए, या किसी ऐसी चीज़ के बारे में खेद महसूस न करें जिसे आप हासिल नहीं कर सके, या ऐसी किसी चीज़ के बारे में जिसका आप सहारा न ले सकें। इसे अनदेखा करें और इसे भूल जाएं।

8- आठवीं सूचना धन, पद, प्रतिष्ठा, शक्ति, सौंदर्य, जाति और प्रभाव;  ये सब चीजें अहंकार को बढ़ाती हैं।  विनम्रता लोगों को प्यार से करीब लाती है।

9- नौवां टोटका अगर आपके बाल सफेद हैं तो इसका मतलब जीवन का अंत नहीं है।  यह एक अच्छे जीवन की शुरुआत है।  आशावादी बनो, स्मृति के साथ जियो, यात्रा करो, आनंद लो।  यादें बनाएं!

10-10वां निर्देश अपने छोटों से प्यार, सहानुभूति और स्नेह से मिलें!  कुछ भी व्यंग्यात्मक मत कहो!  अपने चेहरे पर मुस्कान रखें!

भूतकाल में आपने कितना भी बड़ा पद क्यों न धारण किया हो, उसे वर्तमान में भूल जाइए और सभी के साथ घुलमिल जाइए! 

 


"मृत्यु के १४ प्रकार"

राम-रावण युद्ध चल रहा था, तब अंगद ने रावण से कहा- तू तो मरा हुआ है, मरे हुए को मारने से क्या फायदा?

रावण बोला– मैं जीवित हूँ, मरा हुआ कैसे?
अंगद बोले, सिर्फ साँस लेने वालों को जीवित नहीं कहते - साँस तो लुहार की धौंकनी भी लेती है!
तब अंगद ने मृत्यु के १४ प्रकार बताए-
कौल कामबस कृपन विमूढ़ा।
अति दरिद्र अजसि अतिबूढ़ा।।
सदा रोगबस संतत क्रोधी।
विष्णु विमुख श्रुति संत विरोधी।।
तनुपोषक निंदक अघखानी।
जीवत शव सम चौदह प्रानी।।
१. कामवश: जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है। वह अध्यात्म का सेवन नहीं करता है, सदैव वासना में लीन रहता है।
२. वाममार्गी: जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले, जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो, नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।
३. कंजूस: अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याणकारी कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो, दान करने से बचता हो, ऐसा आदमी भी मृतक समान ही है।
४. अति दरिद्र: गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वह भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ है। गरीब आदमी को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योंकि वह पहले ही मरा हुआ होता है। दरिद्र-नारायण मानकर उनकी मदद करनी चाहिए।
५. विमूढ़: अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ ही होता है। जिसके पास बुद्धि-विवेक न हो, जो खुद निर्णय न ले सके, यानि हर काम को समझने या निर्णय लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृतक समान ही है, मूढ़ अध्यात्म को नहीं समझता।
६. अजसि: जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर-परिवार, कुटुंब-समाज, नगर-राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता, वह व्यक्ति भी मृत समान ही होता है।
७. सदा रोगवश: जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मृत्यु की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।
८. अति बूढ़ा: अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों अक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार वह स्वयं और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।
९. सतत क्रोधी: २४ घंटे क्रोध में रहने वाला व्यक्ति भी मृतक समान ही है। ऐसा व्यक्ति हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता। पूर्व जन्म के संस्कार लेकर यह जीव क्रोधी होता है। क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है और नरकगामी होता है।
१०. अघ खानी: जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है और पाप की कमाई से नीच गोत्र, निगोद की प्राप्ति होती है।
११. तनु पोषक: ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना न हो, ऐसा व्यक्ति भी मृतक समान ही है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकी किसी अन्य को मिलें न मिलें, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है, क्योंकि यह शरीर विनाशी है, नष्ट होने वाला है।
१२. निंदक: अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियाँ ही नजर आती हैं, जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता है, ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे, तो सिर्फ किसी न किसी की बुराई ही करे, वह व्यक्ति भी मृत समान होता है। परनिंदा करने से नीच गोत्र का बंध होता है।
१३. परमात्म विमुख: जो व्यक्ति ईश्वर यानि परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति यह सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं; हम जो करते हैं, वही होता है, संसार हम ही चला रहे हैं, जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।
१४. श्रुति संत विरोधी: जो संत, ग्रंथ, पुराणों का विरोधी है, वह भी मृत समान है। श्रुत और संत, समाज में अनाचार पर नियंत्रण (ब्रेक) का काम करते हैं। अगर गाड़ी में ब्रेक न हो, तो कहीं भी गिरकर एक्सीडेंट हो सकता है। वैसे ही समाज को संतों की जरूरत होती है, वरना समाज में अनाचार पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा।
अतः मनुष्य को उपरोक्त चौदह दुर्गुणों से यथासंभव दूर रहकर स्वयं को मृतक समान जीवित रहने से बचाना चाहिए। .......

Monday, June 12, 2023

लोटा और गिलास के पानी में अंतर

कभी भी गिलास में पानी ना पियें,
भारत में हजारों साल की पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नही है, ये गिलास जो है विदेशी है. गिलास भारत का नही है. गिलास यूरोप से आया. और यूरोप में पुर्तगाल से आया था. ये पुर्तगाली जबसे भारत देश में घुसे थे तब से गिलास में हम फंस गये. गिलास अपना नही है. अपना लौटा है. और लौटा कभी भी एकरेखीय नही होता. तो वागभट्ट जी कहते हैं कि जो बर्तन एकरेखीय हैं उनका त्याग कीजिये. वो काम के नही हैं. इसलिए गिलास का पानी पीना अच्छा नही माना जाता. लौटे का पानी पीना अच्छा माना जाता है. इस पोस्ट में हम गिलास और लोटा के पानी पर चर्चा करेंगे और दोनों में अंतर बताएँगे.
फर्क सीधा सा ये है कि आपको तो सबको पता ही है कि पानी को जहाँ धारण किया जाए, उसमे वैसे ही गुण उसमें आते है. पानी के अपने कोई गुण नहीं हैं. जिसमें डाल दो उसी के गुण आ जाते हैं. दही में मिला दो तो छाछ बन गया, तो वो दही के गुण ले लेगा. दूध में मिलाया तो दूध का गुण.
लौटे में पानी अगर रखा तो बर्तन का गुण आयेगा. अब लौटा गोल है तो वो उसी का गुण धारण कर लेगा. और अगर थोडा भी गणित आप समझते हैं तो हर गोल चीज का सरफेस टेंशन कम रहता है. क्योंकि सरफेस एरिया कम होता है तो सरफेस टेंशन कम होगा. तो सरफेस टेंशन कम हैं तो हर उस चीज का सरफेस टेंशन कम होगा. और स्वास्थ्य की दष्टि से कम सरफेस टेंशन वाली चीज ही आपके लिए लाभदायक है.अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाली चीज आप पियेंगे तो बहुत तकलीफ देने वाला है. क्योंकि उसमें शरीर को तकलीफ देने वाला एक्स्ट्रा प्रेशर आता है.
गिलास और लोटा के पानी में अंतर
गिलास के पानी और लौटे के पानी में जमीं आसमान का अंतर है. इसी तरह कुंए का पानी, कुंआ गोल है इसलिए सबसे अच्छा है. आपने थोड़े समय पहले देखा होगा कि सभी साधू संत कुए का ही पानी पीते है. न मिले तो प्यास सहन कर जाते हैं, जहाँ मिलेगा वहीं पीयेंगे. वो कुंए का पानी इसीलिए पीते है क्यूंकि कुआ गोल है, और उसका सरफेस एरिया कम है. सरफेस टेंशन कम है. और साधू संत अपने साथ जो केतली की तरह पानी पीने के लिए रखते है वो भी लोटे की तरह ही आकार वाली होती है. जो नीचे चित्र में दिखाई गई है.
सरफेस टेंशन कम होने से पानी का एक गुण लम्बे समय तक जीवित रहता है. पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना. अब वो गुण कैसे काम करता है वो आपको बताते है. आपकी बड़ी आंत है और छोटी आंत है, आप जानते हैं कि उसमें मेम्ब्रेन है और कचरा उसी में जाके फंसता है. पेट की सफाई के लिए इसको बाहर लाना पड़ता है. ये तभी संभव है जब कम सरफेस टेंशन वाला पानी आप पी रहे हो. अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाला पानी है तो ये कचरा बाहर नही आएगा, मेम्ब्रेन में ही फंसा रह जाता है.
दुसरे तरीके से समझें, आप एक एक्सपेरिमेंट कीजिये. थोडा सा दूध ले और उसे चेहरे पे लगाइए, 5 मिनट बाद रुई से पोंछिये. तो वो रुई काली हो जाएगी. स्किन के अन्दर का कचरा और गन्दगी बाहर आ जाएगी. इसे दूध बाहर लेकर आया. अब आप पूछेंगे कि दूध कैसे बाहर लाया तो आप को बता दें कि दूध का सरफेस टेंशन सभी वस्तुओं से कम है. तो जैसे ही दूध चेहरे पर लगाया, दूध ने चेहरे के सरफेस टेंशन को कम कर दिया क्योंकि जब किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के सम्पर्क में लाते है तो वो दूसरी वस्तु के गुण ले लेता है.
इस एक्सपेरिमेंट में दूध ने स्किन का सरफेस टेंशन कम किया और त्वचा थोड़ी सी खुल गयी. और त्वचा खुली तो अंदर का कचरा बाहर निकल गया. यही क्रिया लोटे का पानी पेट में करता है. आपने पेट में पानी डाला तो बड़ी आंत और छोटी आंत का सरफेस टेंशन कम हुआ और वो खुल गयी और खुली तो सारा कचरा उसमें से बाहर आ गया. जिससे आपकी आंत बिल्कुल साफ़ हो गई. अब इसके विपरीत अगर आप गिलास का हाई सरफेस टेंशन का पानी पीयेंगे तो आंते सिकुडेंगी क्यूंकि तनाव बढेगा. तनाव बढते समय चीज सिकुड़ती है और तनाव कम होते समय चीज खुलती है. अब तनाव बढेगा तो सारा कचरा अंदर जमा हो जायेगा और वो ही कचरा भगन्दर, बवासीर, मुल्व्याद जैसी सेंकडो पेट की बीमारियाँ उत्पन्न करेगा.


इसलिए कम सरफेस टेंशन वाला ही पानी पीना चाहिए. इसलिए लौटे का पानी पीना सबसे अच्छा माना जाता है, गोल कुए का पानी है तो बहुत अच्छा है. गोल तालाब का पानी, पोखर अगर खोल हो तो उसका पानी बहुत अच्छा. नदियों के पानी से कुंए का पानी अधिक अच्छा होता है. क्योंकि नदी में गोल कुछ भी नही है वो सिर्फ लम्बी है, उसमे पानी का फ्लो होता रहता है. नदी का पानी हाई सरफेस टेंशन वाला होता है और नदी से भी ज्यादा ख़राब पानी समुन्द्र का होता है उसका सरफेस टेंशन सबसे अधिक होता है.
अगर प्रकृति में देखेंगे तो बारिश का पानी गोल होकर धरती पर आता है. मतलब सभी बूंदे गोल होती है क्यूंकि उसका सरफेस टेंशन बहुत कम होता है. तो गिलास की बजाय पानी लौटे में पीयें. तो लौटे ही घर में लायें. गिलास का प्रयोग बंद कर दें. जब से आपने लोटे को छोड़ा है तब से भारत में लौटे बनाने वाले कारीगरों की रोजी रोटी ख़त्म हो गयी. गाँव गाँव में कसेरे कम हो गये, वो पीतल और कांसे के लौटे बनाते थे. सब इस गिलास के चक्कर में भूखे मर गये. तो वागभट्ट जी की बात मानिये और लौटे वापिस लाइए।