Saturday, November 4, 2023

समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों का रहस्य

समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों का रहस्य, जानिए..??
यह वह समय था जबकि देवता लोग धरती पर रहते थे। धरती पर वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। काम था धरती का निर्माण करना। धरती को रहने लायक बनाना और धरती पर मानव सहित अन्य आबादी का विस्तार करना। देवताओं के साथ उनके ही भाई बंधु दैत्य भी रहते थे। तब यह धरती एक द्वीप की ही थी अर्थात धरती का एक ही हिस्सा जल से बाहर निकला हुआ था। यह भी बहुत छोटा-सा हिस्सा था। इसके बीचोबीच था मेरू पर्वत। धरती के विस्तार और इस पर विविध प्रकार के जीवन निर्माण के लिए देवताओं के भी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने लीला रची और उन्होंने देव तथा उनके भाई असुरों की शक्ति का उपयोग कर समुद्र मंथन कराया। समुद्र मंथन कराने के लिए पहले कारण निर्मित किया गया। दुर्वासा ऋषि ने अपना अपमान होने के कारण देवराज इन्द्र को ‘श्री’ (लक्ष्मी) से हीन हो जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु ने इंद्र को शाप मुक्ति के लिए असुरों के साथ 'समुद्र मंथन' के लिए कहा और दैत्यों को अमृत का लालच दिया। इस तरह हुआ समुद्र मंथन। यह समुद्र था क्षीर सागर जिसे आज हिन्द महासागर कहते हैं। जब देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मंथन आरंभ किया, तब भगवान विष्णु ने कच्छप बनकर मंथन में भाग लिया। वे समुद्र के बीचोबीच में वे स्थिर रहे और उनके ऊपर रखा गया मदरांचल पर्वत। फिर वासुकी नाग को रस्सी बानाकर एक ओर से देवता और दूसरी ओर से दैत्यों ने समुद्र का मंथन करना शुरू कर दिया।


1. मंथन करने पर सबसे पहले निकला, हलाहल (विष) : - समुद्र का मंथन करने पर सबसे पहले पहले जल का हलाहल (कालकूट) विष निकला जिसकी ज्वाला बहुत तीव्र थी। हलाहल विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की। शंकर ने उस विष को हथेली पर रखकर पी लिया, किंतु उसे कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया तथा उस विष के प्रभाव से शिव का कंठ नीला पड़ गया इसीलिए महादेवजी को 'नीलकंठ' कहा जाने लगा। हथेली से पीते समय कुछ विष धरती पर गिर गया था जिसका अंश आज भी हम सांप, बिच्छू और जहरीले कीड़ों में देखते हैं।
2. दूसरा महत्वपूर्ण रत्न कामधेनु : - विष के बाद मथे जाते हुए समुद्र के चारों ओर बड़े जोर की आवाज उत्पन्न हुई। देव और असुरों ने जब सिर उठाकर देखा तो पता चला कि यह साक्षात सुरभि कामधेनु गाय थी। इस गाय को काले, श्वेत, पीले, हरे तथा लाल रंग की सैकड़ों गौएं घेरे हुई थीं। गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र पशु माना जाता है। गाय मनुष्य जाति के जीवन को चलाने के लिए महत्वपूर्ण पशु है। गाय को कामधेनु कहा गया है। कामधेनु सबका पालन करने वाली है। उस काल में गाय को धेनु कहा जाता था।
3. तीसरा महत्वपूर्ण रत्न उच्चैःश्रवा घोड़ा : - घोड़े तो कई हुए लेकिन श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा सबसे तेज और उड़ने वाला घोड़ा माना जाता था। अब इसकी कोई भी प्रजाति धरती पर नहीं बची। यह इंद्र के पास था। उच्चै:श्रवा का पोषण अमृत से होता है। यह अश्वों का राजा है। उच्चै:श्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे जिसका यश ऊंचा हो, जिसके कान ऊंचे हों अथवा जो ऊंचा सुनता हो।
4. चौथा महत्वपूर्ण रत्न ऐरावत हाथी : - हाथी तो सभी अच्छे और सुंदर नजर आते हैं लेकिन सफेद हाथी को देखना अद्भुत है। ऐरावत सफेद हाथियों का राजा था। 'इरा' का अर्थ जल है, अत: 'इरावत' (समुद्र) से उत्पन्न हाथी को 'ऐरावत' नाम दिया गया है। यह हाथी देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान निकली 14 मूल्यवान वस्तुओं में से एक था। मंथन से प्राप्त रत्नों के बंटवारे के समय ऐरावत को इन्द्र को दे दिया गया था। चार दांतों वाला सफेद हाथी मिलना अब मुश्किल है। महाभारत, भीष्म पर्व के अष्टम अध्याय में भारतवर्ष से उत्तर के भू-भाग को उत्तर कुरु के बदले 'ऐरावत' कहा गया है। जैन साहित्य में भी यही नाम आया है। उत्तर का भू-भाग अर्थात तिब्बत, मंगोलिया और रूस के साइबेरिया तक का हिस्सा। हालांकि उत्तर कुरु भू-भाग उत्तरी ध्रुव के पास था संभवत: इसी क्षेत्र में यह हाथी पाया जाता रहा होगा।
5. पांचवां रत्न कौस्तुभ मणि : - मंथन के दौरान पांचवां रत्न था कौस्तुभ मणि। कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। महाभारत में उल्लेख है कि कालिय नाग को श्रीकृष्ण ने गरूड़ के त्रास से मुक्त किया था। उस समय कालिय नाग ने अपने मस्तक से उतारकर श्रीकृष्ण को कौस्तुभ मणि दे दी थी। यह एक चमत्कारिक मणि है। माना जाता है कि इच्छाधारी नागों के पास ही अब यह मणि बची है या फिर समुद्र की किसी अतल गहराइयों में कहीं दबी पड़ी होगी। हो सकता है कि धरती की किसी गुफा में दफन हो यह मणि।
6. छटा रत्न कल्पद्रुम : - यह दुनिया का पहला धर्मग्रंथ माना जा सकता है, जो समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुआ। कुछ लोग इसे संस्कृत भाषा की
उत्पत्ति से जोड़ते हैं और कुछ लोग मानते हैं कि इसे ही कल्पवृक्ष कहते हैं। जबकि कुछ का कहना है कि पारिजात को कल्पवृक्ष कहा जाता है। यह स्पष्ट नहीं है कि कल्पद्रुम आखिर क्या है? ज्योतिषियों के अनुसार कल्पद्रुप एक प्रकार का योग होता है।
7. सातवां रत्न रंभा : - समुद्र मंथन के दौरान एक सुंदर अप्सरा प्रकट हुई जिसे रंभा कहा गया। पुराणों में रंभा का चित्रण एक प्रसिद्ध अप्सरा के रूप में माना जाता है, जो कि कुबेर की सभा में थी। रंभा कुबेर के पुत्र नलकुबर के साथ पत्नी की तरह रहती थी। ऋषि कश्यप और प्राधा की पुत्री का नाम भी रंभा था। महाभारत में इसे तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है।
समुद्र मंथन के दौरान इन्द्र ने देवताओं से रंभा को अपनी राजसभा के लिए प्राप्त किया था। विश्वामित्र की घोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने रंभा को बुलाकर विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भेजा था। अप्सरा को गंधर्वलोक का वासी माना जाता है। कुछ लोग इन्हें परी कहते हैं।
8. आठवां रत्न लक्ष्मी :- समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी की उत्पत्ति भी हुई। लक्ष्मी अर्थात श्री और समृद्धि की उत्पत्ति। कुछ लोग इसे सोने (गोल्ड) से जोड़ते हैं। माना जाता है कि जिस भी घर में स्त्री का सम्मान होता है, वहां समृद्धि कायम रहती है। दूसरी लक्ष्मी : महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति के गर्भ से एक त्रिलोक सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम लक्ष्मी था और जिसने भगवान विष्णु से विवाह किया।
9. नौवां रत्न वारुणी (मदिरा) : - वारुणी नाम से एक शराब होती थी। वारुणी नाम से एक पर्व भी होता है और वारुणी नाम से एक खगोलीय योग भी। समुद्र मंथन के दौरान जिस मदिरा की उत्पत्ति हुई उसका नाम वारुणी रखा गया। वरुण का अर्थ जल। जल से उत्पन्न होने के कारण उसे वारुणी कहा गया। वरुण नाम के एक देवता हैं, जो असुरों की तरफ थे। असुरों ने वारुणी को लिया। वरुण की पत्नी को भी वरुणी कहते हैं। कदंब के फलों से बनाई जाने वाली मदिरा को भी वारुणी कहते हैं।
11. दसवां रत्न चन्द्रमा : - ब्राह्मणों-क्षत्रियों के कई गोत्र होते हैं उनमें चंद्र से जुड़े कुछ गोत्र नाम हैं, जैसे चंद्रवंशी। पौराणिक संदर्भों के अनुसार चंद्रमा को तपस्वी अत्रि और अनुसूया की संतान बताया गया है जिसका नाम 'सोम' है। दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियां थीं जिनके नाम पर 27 नक्षत्रों के नाम पड़े हैं। ये सब चन्द्रमा को ब्याही गईं। आज आसमान में हम जो चंद्रमा देखते हैं वह समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुआ था। इस चंद्रमा का चंद्रवंशियों के चंद्रमा से क्या संबंध है, यह शोध का विषय हो सकता है। पुराणों अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति धरती से हुई है।

11. ग्यारहवां रत्न पारिजात वृक्ष : - समुद्र मंथन के दौरान कल्पवृक्ष के अलावा पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति भी हुई थी। 'पारिजात' या 'हरसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है जिसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प प्रिय हैं। यह माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है। पारिजात वृक्ष में कई औषधीय गुण होते हैं। हिन्दू धर्म में कल्पवृक्ष के बाद पारिजात को महत्व दिया गया है। इसके बाद बरगद, पीपल और नीम का महत्व है।
12. बारहवाँ रत्न शंख : - शंख तो कई पाए जाते हैं लेकिन पांचजञ्य शंख मिलना मुश्किल है। समुद्र मंथन के दौरान इस शंख की उत्पत्ति हुई थी। 14 रत्नों में से एक पांचजञ्य शंख को माना गया है। शंख को विजय, समृद्धि, सुख, शांति, यश, कीर्ति और लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि शंख नाद का प्रतीक है। शंख ध्वनि शुभ मानी गई है। 1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने की उत्तम औषधि है।
शंख 3 प्रकार के होते हैं- दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। इनके अलावा लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरूड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि प्रकार के होते हैं।
13. तेरहवां रत्न धन्वंतरि वैद्य : - देवता एवं दैत्यों के सम्मिलित प्रयास के शांत हो जाने पर समुद्र में स्वयं ही मंथन चल रहा था जिसके चलते भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत का स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए। विद्वान कहते हैं कि इस दौरान दरअसल कई प्रकार की औषधियां उत्पन्न हुईं और उसके बाद अमृत निकला।
हालांकि धन्वंतरि वैद्य को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया। धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब केवल
धन्वंतरि संहिता ही पाई जाती है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था। बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। धन्वंतरि 10 हजार ईसापूर्व हुए थे। वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों अनुसार 100 प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है। ' धनतेरस' के दिन उनका जन्म हुआ था। धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं। रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण आदि में उनका उल्लेख मिलता है। धन्वंतरि नाम से और भी कई आयुर्वेदाचार्य हुए हैं। आयु के पुत्र का नाम धन्वंतरि था।
14. अंत में 14वां रत्न 'अमृत', जानिए महत्वपूर्ण रत्न अमृत : - अमृत' का शाब्दिक अर्थ 'अमरता' है। निश्चित ही एक ऐसे पेय पदार्थ या रसायन रहा होगा जिसको पीने से व्यक्ति हजारों वर्ष तक जीने की क्षमता हासिल कर लेता होगा। यही कारण है कि बहुत से ऋषि रामायण काल में भी पाए जाते हैं और महाभारत काल में भी। समुद्र मंथन के अंत में अमृत का कलश निकला था। अमृत के नाम पर ही चरणामृत और पंचामृत का प्रचलन हुआ। देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत बंटवारे को लेकर जब झगड़ा हो रहा था तथा देवराज इंद्र के संकेत पर उनका पुत्र जयंत जब अमृत कुंभ लेकर भागने की चेष्टा कर रहा था, तब कुछ दानवों ने उसका पीछा किया। अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग में 12 दिन तक संघर्ष चलता रहा और उस कुंभ से 4 स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं। यह स्थान पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक थे। यहीं पर प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ का आयोजन होता है। बाद में भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण करके अमृत बांटा था।
अमृत' शब्द सबसे पहले ऋग्वेद में आया है, जहां यह सोम के विभिन्न पर्यायों में से एक है। संभवत: 'सोमरस' को ही 'अमृत' माना गया हो। सोम एक रस है या द्रव्य, यह कोई नहीं जानता। कुछ विद्वान सोम को औषधि मानते है। उनके अनुसार सुश्रुत के चिकित्सास्थान में लिखा है कि इसका सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है, वृद्ध पुनः युवा हो जाता है।

किंतु वेद में एक और सोम की भी चर्चा है जिसके संबंध में लिखा है कि ब्राह्मणों को जिस सोम का ज्ञान है उसे कोई नहीं पीता। ब्राह्मण के सोम की महिमा इन शब्दों में है। देखो हमने सोमपान किया और हम अमृत हो गए या जी उठे।

Friday, November 3, 2023

“ कानपुर अतीत की विरासत, भविष्य का उद्देश्य"

 

 

कानपुर के जन साधारण के हित में एअरपोर्ट को नाईट लैन्डिंग सुविधा प्रदान करवाने, कानपुर देहात का नाम कानपुर ग्रेटर करवाने के संबंध में माननीय मुख्यमंत्री जी, उत्तर प्रदेश, को ज्ञापन प्रेषित करने, जरूरतमंद महिलाओं को सिलाई मशीन वितरित करने के पश्चात् कानपुर अतीत के विरासत, भविष्य का उद्देश्य की ओर मर्चेन्ट्स चैम्बर ऑफ उत्तर प्रदेश का अगला कदम।

 

मर्चेन्ट्स चैम्बर ऑफ उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अभिषेक सिंहानिया द्वारा कानपुर नगर के मंडलायुक्त को एक पत्र प्रेषित किया गया है जिसके साथ कानपुर के सर्वांगीण विकास हेतु तथा वर्तमान और भावी पीढ़ी के चतुर्मुखी लाभ के लिए महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का चित्र सहित विस्तृत प्रस्तुतीकरण का एक ऐसा डोजियर (दस्तावेज) सौंपा गया जिसमें कानपुर शहर की प्राचीन गौरवशाली गाथा से लेकर वर्तमान तक की यात्रा का तथ्य आधारित तुलनात्मक वर्णन निहित है जो यह पूर्णतया दर्शाता है की कानपुर कहां था, वर्तमान में कानपुर का क्या परिदृश्य है साथ ही यह भी वर्णित है कि कुछ अथक प्रयासों से हमारा कानपुर शहर अपने खोए हुए मैनचेस्टर आफ ईस्ट का गौरव पुनः प्राप्त कर सकता है।

डोजियर की झलकियां संक्षेप में निम्नलिखित रूप से प्रेषित है, तथा विस्तृत वर्णन पृथक रूप से पीडीएफ फाइल में उपलब्ध है, कृपया ध्यान दें :

- गंगा नदी के तट पर स्थित कानपुर का अपना गौरवमयी एवं समृद्धशाली इतिहास रहा हैं। जब जब कानपुर का जिक्र होता है जय गंगा मैया का उद्घोष ही मन में गूंजने लगता है और यह भी एक बात मन में आती है कि कानपुर जो की कभी 52 घाटों की नगरी कही जाती थी जो कि 1857 की क्रांति एवं 20वीं सदी के औद्योगीकरण के बाद नष्ट होते चले गए की आज गिनती के कुछ चंद घाट ही बचे हैं। यदि इन घाटों एवं बिठूर का जीर्णोद्धार एवं कायाकल्प हो जाता है तो हमारी गंगा मैया का जल तो निर्मल एवं स्वच्छ हो जाएगा साथ ही कानपुर का समृद्धशाली इतिहास भी प्राप्त किया सकता है। 

- एक समय, अविभाज्य भारत 1947 में ऐसा भी था जब जीडीपी के तौर पर कानपुर तीसरा सबसे बड़ा शहर था, जो कि अब रैंकिंग में 20वें स्थान पर चुका है। इस विडंबना से हमें पार पाना होगा और अथक प्रयास करना होगा की कानपुर की आर्थिक संपन्नता को वापस प्राप्त करवा सके।

- कानपुर में रोजगार को बढ़ावा देने हेतु इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एवं इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी इनेबल्ड सिस्टम संस्थाओं को विशेष रूप से प्रोत्साहन एवं संरक्षण देना होगा जिससे प्रतिभा पलायन तो रुकेगा ही साथ ही कानपुर की आर्थिक प्रगति फलीभूत हो सकेगी।

- कानपुर में वर्तमान स्थिति में आईआईटी और जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के अलावा और कोई उच्च शिक्षण संस्थान उपलब्ध नहीं है इसलिए कानपुर को उच्च शिक्षा संस्थान जैसे आईआईएम, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की आवश्यकता है। यह हमारे कानपुर शहर की भविष्य की सफलता का द्योतक होगी।

- कानपुर में औद्योगिकरण व्यापरीकरण एवं रोजगार की असीम संभावनाएं उपलब्ध है बस इन आर्थिक अवसरों को धरातल पर उतरने की आवश्यकता है।

- हमारा लक्ष्य कानपुर से 29 किलोमीटर की दूरी पर उपस्थित रमईपुर में ,मेगा लेदर क्लस्टर स्थापित करना है जो की लेदर इंडस्ट्री को पुनर्जिवित करेगा तथा पर्यावरण को सुरच प्रदान करने के साथ कानपुर में रहने वाले व्यक्तियों के जीवन जीने की गुणवत्ता को भी बढ़ाएगा।

- कानपुर के विभिन्न स्थानों जैसे पनकी, दादा नगर, जाजमऊ, रनिया इत्यादि क्षेत्रों में फैले, या बिखरे भी कह सकते है, उद्योगों को विशेष आर्थिक क्षेत्रों (S.E.Z.) में स्थानांतरित करना होगा जो कि क्षेत्रीय दृष्टिकोण के तर्कसंगत एवं रणनीतिक कदम होगा जिसका लाभ औद्योगिक क्षेत्रों और आसपास के समुदायों / निवास करने वाले लोगों दोनों को विभिन्न प्रकार से प्राप्त हो सकेगा।

- क्षेत्रीय आर्थिक विकास और निवेश को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सुविधाओं के साथ कानपुर में चकेरी हवाई अड्डे के पास एक नया बिजनेस सिटी स्थापित करना होगा जो कि एक दूरदर्शी प्रस्ताव है लेकिन जन एवं व्यापारिक समुदाय के प्रत्यक्ष लाभ हेतु प्रासंगिक एवं तर्कसंगत है।

- कानपुर वर्तमान में एक विभाजित शहर है जिसका एकीकरण अति आवश्यक बिंदु है, उदाहरणार्थ (1) उत्तर और दक्षिण कानपुर को शहर के बीचों-बीच से गुजरती एक रेलवे लाइन दो हिस्से में विभाजित कर देती है और रेलवे क्रासिंग होने की स्थिति में दोनो दिशाओं को आर-पार जाने वालों का जन-जीवन स्थिर हो जाता है इसके लिए अनवरगंज से मंधना तक एलिवेटेड रेलवे ट्रैक महत्वपूर्ण परियोजना है जो लाखों यात्रियों को 16 रेलवे क्रॉसिंग से बचने में मदद करेगी। (2) न्यू नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट की तर्ज पर, कानपुर देहात का नाम बदलकर ग्रेटर कानपुर करके इसे एक नई पहचान प्रदान करना वर्तमान समय की आवश्यकता है।   

- KDA क्षेत्रीय योजना 2021 के अंतर्गत कानपुर के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए हम अग्रलिखित बिंदुओं की अनुशंसा करते है जिसमें प्रमुख रूप से पीपीपी मॉडल अपनाने, समस्त वृहद और मध्यम औद्योगिक को पुनर्वर्गीकृत करके शहर की सीमा के भीतर के क्षेत्रों को मिश्रित भूमि क्षेत्रों में उपयोग करने की आवश्यकता है जिससे वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण कम होगा साथ ही शहर के सामान्य वातावरण में सुधार हो सकेगा। 

- एल्गिन मिल की (वर्तमान में) अप्रयुक्त जमीन का उपयोग : कानपुर को पहचान तथा पहचान को शान दिलाने के लिए पर्यटन एवं आतिथ्य का एक नया एवं अद्भुद संगम विकसित करना होगा इसके लिए एल्गिन मिल की अप्रयुक्त जमीन का भावी उपयोगी हेतु PPP मॉडल के अंतर्गत प्रतिष्ठित समूहों के साथ मिलकर वाटरफ़्रन्ट पर्यटन विकासीकरण हेतु सामूहिक एवं आदर्श स्तर पर विकास करना होगा तथा PPP मॉडल के अभिनव ढांचे के माध्यम से ही कई अतिरिक्त रिवरफ्रंट संपत्तियां भी विकसित की जा सकती हैं, उदाहरण-एयरोसिटी-दिल्ली, रिवरफ्रंट-वाराणसी, रिवरफ्रंट- अहमदाबाद आदि।

- 1991 से अनुपयोगी म्योर मिल कैंपस को औद्योगिक / व्यापारिक हब के रूप में उपयोग किया जा सकता है जिसका उपयोग एक सुझाव के तौर पर केंद्रीय व्यावसायिक जिला - Central Business District (CBD) विकसित करके किया जा सकता है।

- कूड़ा जैसा शब्द दिमाग में आते ही यहां वहां फेंकने का विचार आता है परंतु इस घोड़े को भी हम स्वास्थ्यवर्धक बना सकते हैं एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग से एवं वेस्ट मशीन की सहायता से आर्थिक प्रगति के रूप में उपयोग कर सकते हैं।

कानपुर को विश्व पटल पर स्थापित करने हेतु असीम संभावनाएं विद्यमान है जिसमें हमें ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, विरासत को संजोने एवं प्रचार-प्रसार करने, मजबूत पर्यटन स्थल के रूप में विकास करने के साथ-साथ विकसित होती आधारभूत सुविधाओं को और अधिक विकसित करना होगा, वह दिन दूर नहीं होगा जब कानपुर एक दार्शनिक तीर्थ के रूप में स्थापित हो जाएगा।