Monday, May 12, 2025

भूमि आंवला

#भूमिआंवला #फैटी_लीवर, कब्ज, अपच, गैस, एसिडिटी, पेट साफ न होने की आयुर्वेदिक औषधि
#भूमिआंवला के अदभुत फायदे ,यह लीवर के साथ शरीर में अनेक बीमारीयों के लिए लाभाकरी हे
भुई आंवला एक जड़ी-बूटी है। आयुर्वेद के अनुसार, भुई आंवला से अनेक बीमारियों को ठीक किया जाता है।
भूमि आंवला लीवर की सूजन, सिरोसिस, फैटी लिवर, पीलिया में, हेपेटायटिस B और C में, किडनी क्रिएटिनिन बढ़ने पर, मधुमेह आदि में चमत्कारिक रूप से उपयोगी हैं।
यह पौधा लीवर व किडनी के रोगो में चमत्कारी लाभ करता है। यह बरसात मे अपने आप उग जाता है और छायादार नमी वाले स्थानों पर पूरा साल मिलता है। इसके पत्ते के नीचे छोटा सा फल लगता है जो देखने मे आंवले जैसा ही दिखाई देता है। इसलिए इसे भुई आंवला कहते है। इसको भूमि आंवला या भू धात्री भी कहा जाता है। यह पौधा लीवर के लिए बहुत उपयोगी है। इसका सम्पूर्ण भाग, जड़ समेत इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके गुण इसी से पता चल जाते हैं के कई बाज़ीगर भूमि आंवला के पत्ते चबाकर लोहे के ब्लेड तक को चबा जाते हैं।
बरसात मे यह मिल जाए तो इसे उखाड़ कर रख ले व छाया में सूखा कर रख लें। ये जड़ी-बूटी की दुकान पंसारी आदि के पास से आसानी से मिल जाता है।


आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ दिन मे 2-4 बार तक। या पानी मे उबाल कर छान कर भी दे सकते हैं। इस पौधे का ताज़ा रस अधिक गुणकारी है।
लीवर की सूजन और पीलिया में फायदेमंद -
लीवर की यह सबसे अधिक प्रमाणिक औषधि है। लीवर बढ़ गया है या या उसमे सूजन है तो यह पौधा उसे बिलकुल ठीक कर देगा। पीलिया हो गया है तो इसके पूरे पौधे को जड़ों समेत उखाडकर, उसका काढ़ा सुबह शाम लें। सूखे हुए पंचांग का 3 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम लेने से पीलिया की बीमारी से मुक्ति मिलेगी। पीलिया किसी भी कारण से हो चाहे पीलिया का रोगी मौत के मुंह मे हो यह देने से बहुत अधिक लाभ होता है। अन्य दवाइयो के साथ भी दे सकते (जैसे कुटकी/रोहितक/भृंगराज) अकेले भी दे सकते हैं। पीलिया में इसकी पत्तियों के पेस्ट को छाछ के साथ मिलाकर दिया जाता है।
वैकल्पिक रूप से इसके पेस्ट को बकरी के दूध के साथ मिलाकर भी दिया जाता है। पीलिया के शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर भी इसकी पत्तियों को सीधे खाया जाता है।
कभी नहीं होगी लीवर की समस्या -
अगर वर्ष में एक महीने भी इसका काढ़ा ले लिया जाए तो पूरे वर्ष लीवर की कोई समस्या ही नहीं होगी। LIVER CIRRHOSIS जिसमे यकृत मे घाव हो जाते हैं यकृत सिकुड़ जाता है उसमे भी बहुत लाभ करता है। Fatty LIVER जिसमे यकृत मे सूजन आ जाती है पर बहुत लाभ करता है।
हेपेटायटिस B और C में. Hepatitis b – hepatitis c
हेपेटायटिस B और C के लिए यह रामबाण है। भुई आंवला +श्योनाक +पुनर्नवा ; इन तीनो को मिलाकर इनका रस लें। ताज़ा न मिले तो इनके पंचांग का काढ़ा लेते रहने से यह बीमारी बिलकुल ठीक हो जाती है।
इसमें शरीर के विजातीय तत्वों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है।
मुंह में छाले और मुंह पकने पर
मुंह में छाले हों तो इनके पत्तों का रस चबाकर निगल लें या बाहर निकाल दें। यह मसूढ़ों के लिए भी अच्छा है और मुंह पकने पर भी लाभ करता है।
स्तन में सूजन या गाँठ।
स्तन में सूजन या गाँठ हो तो इसके पत्तों का पेस्ट लगा लें पूरा आराम होगा।
जलोदर या असाईटिस
जलोदर या असाईटिस में लीवर की कार्य प्रणाली को ठीक करने के लिए 5 ग्राम भुई आंवला +1/2 ग्राम कुटकी +1 ग्राम सौंठ का काढ़ा सवेरे शाम लें।
खांसी में इसके साथ तुलसी के पत्ते मिलाकर काढ़ा बनाकर लें .
यह किडनी के इन्फेक्शन को भी खत्म करती है। इसका काढ़ा किडनी की सूजन भी खत्म करता है। SERUM CREATININE बढ़ गया हो, पेशाब मे इन्फेक्शन हो बहुत लाभ करेगा।
प्रदर या प्रमेह की बीमारी भी इससे ठीक होती है। रक्त प्रदर की बीमारी होने पर इसके साथ दूब का रस मिलाकर 2-3 चम्मच प्रात: सायं लें। इसकी पत्तियाँ गर्भाधान को प्रोत्सहित करती है। इसकी जड़ो एवं बीजों का पेस्ट तैयार करके चांवल के पानी के साथ देने पर महिलाओ में रजोनिवृत्ति के समय लाभ मिलता है।
पेट में दर्द हो और कारण न समझ आ रहा हो तो इसका काढ़ा ले लें। पेट दर्द तुरंत शांत हो जाएगा। ये पाचन प्रणाली को भी अच्छा करता है।
शुगर की बीमारी में घाव न भरते हों तो इसका पेस्ट पीसकर लगा दें . इसे काली मिर्च के साथ लिया जाए तो शुगर की बीमारी भी ठीक होती है।
पुराना बुखार हो और भूख कम लगती हो तो , इसके साथ मुलेठी और गिलोय मिलाकर, काढ़ा बनाकर लें। इसका उपयोग घरेलू औषधीय के रूप में जैसे ऐपेटाइट, कब्ज. टाइफाइट, बुखार, ज्वर एवं सर्दी किया जाता है। मलेरिया के बुखार में इसके संपूर्ण पौधे का पेस्ट तैयार करके छाछ के साथ देने पर आराम मिलता है।
आँतों का इन्फेक्शन होने पर या अल्सर होने पर इसके साथ दूब को भी जड़ सहित उखाडकर , ताज़ा ताज़ा आधा कप रस लें . रक्त स्त्राव 2-3 दिन में ही बंद हो जाएगा .
अन्य उपयोग -
खुजली होने पर इसके पत्तों का रस मलने से लाभ होता है।
इसे मूत्र तथा जननांग विकारों के लिये उपयोग किया जाता है।
प्लीहा एवं यकृत विकार के लिये इसकी जडों के रस को चावल के पानी के साथ लिया जाता है।
इसे अम्लीयता, अल्सर, अपच, एवं दस्त में भी उपयोग किया जाता है।
इसे बच्चों के पेट में कीडे़ होने पर देने से लाभ पहुँचाता है।
इसकी पत्तियाँ शीतल होती है।
इसकी जडों का पेस्ट बच्चों में नींद लाने हेतु किया जाता है।
इसकी पत्तियों का पेस्ट आंतरिक घावों सुजन एवं टूटी हड्डियो पर बाहरी रूप से लगाने में किया जाता है।

एनीमिया, अस्थमा, ब्रोकइटिस, खांसी, पेचिश, सूजाक, हेपेटाइटिस, पिलिया एवं पेट में ट्यूमर होने की दशा में उपयोग किया जा सकता है।

Sunday, May 11, 2025

माँ के प्रेम की पराकाष्ठा

गाँव के सरकारी स्कूल में संस्कृत की क्लास चल रही थी। गुरूजी दिवाली की छुट्टियों का कार्य बता रहे थे।


तभी शायद किसी शरारती विद्यार्थी के पटाखे से स्कूल के स्टोर रूम में पड़ी दरी और कपड़ो में आग लग गयी। देखते ही देखते आग ने भीषण रूप धारण कर लिया। वहां पड़ा सारा फर्निचर भी स्वाहा हो गया।


सभी विद्यार्थी पास के घरो से, हेडपम्पों से जो बर्तन हाथ में आया उसी में पानी भर भर कर आग बुझाने लगे।


आग शांत होने के काफी देर बाद स्टोर रूम में घुसे तो सभी विद्यार्थियों की दृष्टि स्टोर रूम की बालकनी (छज्जे) पर जल कर कोयला बने पक्षी की ओर गयी।


पक्षी की मुद्रा देख कर स्पष्ट था कि पक्षी ने उड़ कर अपनी जान बचाने का प्रयास तक नही किया था और वह स्वेच्छा से आग में भस्म हो गया था।


सभी को बहुत आश्चर्य हुआ।


एक विद्यार्थी ने उस जल कर कोयला बने पक्षी को धकेला तो उसके नीचे से तीन नवजात चूजे दिखाई दिए, जो सकुशल थे और चहक रहे थे।


उन्हें आग से बचाने के लिए पक्षी ने अपने पंखों के नीचे छिपा लिया और अपनी जान देकर अपने चूजों को बचा लिया था।


एक विद्यार्थी ने संस्कृत वाले गुरूजी से प्रश्न किया - गुरूजी, इस पक्षी को अपने बच्चो से कितना मोह था, कि इसने अपनी जान तक दे दी ?


गुरूजी ने तनिक विचार कर कहा - नहीं, यह मोह नहीं है अपितु माँ के प्रेम की पराकाष्ठा है, मोह करने वाला ऐसी विकट स्थिति में अपनी जान बचाता और भाग जाता।प्रेम और मोह में जमीन आसामान का फर्क है।


मोह में स्वार्थ निहित होता है और प्रेम में त्याग होता है।


भगवान ने माँ को प्रेम की मूर्ति बनाया है और इस दुनिया में माँ के प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

   माँ के उपकारो से हम कभी भी उपकृत नहीं हो सकते।

इसलिए दोस्तों मां के आँखों में कभी आंसू मत आने देना!!


Tuesday, May 6, 2025

बद्रीनाथ धाम

 एक बार श्री हरि (विष्णु) के मन में एक घोर तपस्या

करने की इच्छा जाग्रत हुई। वे उचित जगह की तलाश

में इधर उधर भटकने लगे।

खोजते खोजते उन्हें एक जगह तप के लिए सबसे अच्छी

लगी जो केदार भूमि के समीप नीलकंठ पर्वत के

करीब थी। यह जगह उन्हें शांत, अनुकूल और अति

प्रिय लगी।

वे जानते थे की यह जगह शिव स्थली है अत: उनकी

आज्ञा ली जाये और यह आज्ञा एक रोता हुआ

बालक ले तो भोले बाबा तनिक भी माना नहीं कर

सकते है।

उन्होंने बालक के रूप में इस धरा पर अवतरण लिए और

रोने लगे। उनकी यह दशा माँ पार्वती से देखी नही

गयी और वे शिवजी के साथ उस बालक के समक्ष

उपस्थित होकर उनके रोने का कारण पूछने लगे।

बालक विष्णु ने बताया की उन्हें तप करना है और

इसलिए उन्हें यह जगह चाहिए।

भगवान शिव और

पार्वती ने उन्हें वो जगह दे दी और बालक घोर

तपस्या में लीन हो गया।

तपस्या करते करते कई साल बीतने लगे और भारी

हिमपात होने से बालक विष्णु बर्फ से पूरी तरह ढक

चुके थे, पर उन्हें इस बात का कुछ भी पता नहीं था।

बैकुंठ धाम से माँ लक्ष्मी से अपने पति की यह हालत

देखी नही जा रही थी। उनका मन पीड़ा से दर्वित

हो गया था।

अपने पति की मुश्किलो को कम करने के लिए वे स्वयं

उनके करीब आकर एक बेर (बद्री) का पेड़ बनकर उनकी

हिमपात से सहायता करने लगी। फिर कई वर्ष गुजर

गये अब तो बद्री का वो पेड़ भी हिमपात से पूरा

सफ़ेद हो चुका था।

कई वर्षों बाद जब भगवान् विष्णु ने अपना तप पूर्ण

किया तब खुद के साथ उस पेड़ को भी बर्फ से ढका

पाया। क्षण भर में वो समझ गये की माँ लक्ष्मी ने

उनकी सहायता हेतू यह तप उनके साथ किया है।

भगवान विष्णु ने लक्ष्मी से कहा की हे देवी, मेरे

साथ तुमने भी यह घोर तप इस जगह किया है अत इस

जगह मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी। तुमने

बद्री का पेड़ बनकर मेरी रक्षा की है अत: यह धाम

बद्रीनाथ कहलायेगा।

भगवान विष्णु की इस मंदिर में मूर्ति

शालग्रामशिला से बनी हुई है जिसके चार भुजाये है।

कहते है की देवताओ ने इसे नारदकुंड से निकाल कर

स्थापित किया था।

यहाँ अखंड ज्योति दीपक जलता रहता है और नर

नारायण की भी पूजा होती है | साथ ही गंगा की

12 धाराओ में से एक धार अलकनन्दा के दर्शन का

भी फल मिलता है।

विश्वास की शक्ति

किसी गांव में राम नाम का एक नवयुवक रहता था। वह बहुत मेहनती था, पर हमेशा अपने मन में एक शंका लिए रहता कि वो अपने कार्यक्षेत्र में सफल होगा या नहीं!

कभी-कभी वो इसी चिंता के कारण आवेश में आ जाता और दूसरों पर क्रोधित भी हो उठता।

एक दिन उसके गांव में एक प्रसिद्ध महात्मा जी का आगमन हुआ।

खबर मिलते ही राम, महात्मा जी से मिलने पहुंचा और बोला,

“महात्मा जी मैं कड़ी मेहनत करता हूँ, सफलता पाने के लिए हर-एक प्रयत्न करता हूँ; पर फिर भी मुझे सफलता नहीं मिलती। कृपया आप ही कुछ उपाय बताएँ।”

महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा- बेटा, तुम्हारी समस्या का समाधान इस चमत्कारी ताबीज में है, मैंने इसके अन्दर कुछ मन्त्र लिखकर डालें हैं जो तुम्हारी हर बाधा दूर कर देंगे। लेकिन इसे सिद्ध करने के लिए तुम्हे एक रात शमशान में अकेले गुजारनी होगी।”

शमशान का नाम सुनते ही राम का चेहरा पीला पड़ गया,

“लल्ल..ल…लेकिन मैं रात भर अकेले कैसे रहूँगा…”, राम कांपते हुए बोला।

“घबराओ मत यह कोई मामूली ताबीज नहीं है, यह हर संकट से तुम्हे बचाएगा।”, महात्मा जी ने समझाया।

राम ने पूरी रात शमशान में बिताई और सुबह होती ही महात्मा जी के पास जा पहुंचा,

“हे महात्मन! आप महान हैं, सचमुच ये ताबीज दिव्य है, वर्ना मेरे जैसा डरपोक व्यक्ति रात बिताना तो दूर, शमशान के करीब भी नहीं जा सकता था। निश्चय ही अब मैं सफलता प्राप्त कर सकता हूँ।”

इस घटना के बाद राम बिलकुल बदल गया, अब वह जो भी करता उसे विश्वास होता कि ताबीज की शक्ति के कारण वह उसमें सफल होगा, और धीरे-धीरे यही हुआ भी…वह गाँव के सबसे सफल लोगों में गिना जाने लगा।

इस वाकये के करीब १ साल बाद फिर वही महात्मा गाँव में पधारे।

राम तुरंत उनके दर्शन को गया और उनके दिए चमत्कारी ताबीज का गुणगान करने लगा।

तब महात्मा जी बोले,- बेटे! जरा अपनी ताबीज निकालकर देना। उन्होंने ताबीज हाथ में लिया, और उसे खोला।

उसे खोलते ही राम के होश उड़ गए जब उसने देखा कि ताबीज के अंदर कोई मन्त्र-वंत्र नहीं लिखा हुआ था…वह तो धातु का एक टुकड़ा मात्र था!

राम बोला, “ये क्या महात्मा जी, ये तो एक मामूली ताबीज है, फिर इसने मुझे सफलता कैसे दिलाई?”

महात्मा जी ने समझाते हुए कहा-

"सही कहा तुमने, तुम्हें सफलता इस ताबीज ने नहीं बल्कि तुम्हारे विश्वास की शक्ति ने दिलाई है। पुत्र, हम इंसानों को भगवान ने एक विशेष शक्ति देकर यहाँ भेजा है। वो है, विश्वास की शक्ति। तुम अपने कार्यक्षेत्र में इसलिए सफल नहीं हो पा रहे थे क्योंकि तुम्हें खुद पर यकीन नहीं था…खुद पर विश्वास नहीं था। लेकिन जब इस ताबीज की वजह से तुम्हारे अन्दर वो विश्वास पैदा हो गया तो तुम सफल होते चले गए ! इसलिए जाओ किसी ताबीज पर यकीन करने की बजाय अपने कर्म पर, अपनी सोच पर और अपने लिए निर्णय पर विश्वास करना सीखो, इस बात को समझो कि जो हो रहा है वो अच्छे के लिए हो रहा है और निश्चय ही तुम सफलता के शीर्ष पर पहुँच जाओगे।