Wednesday, June 29, 2022

कर्मप्रधान विश्व रचि राखा

दुर्योधन ने एक अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी।


महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया।

भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा...।

भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब-तक सब देख नहीं लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था।

धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका।

दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला।

द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्म को सबसे अधिक प्रेम करते थे, तो कृष्ण ने उन्ही के हाथों पितामह को निर्मम मृत्यु दिलाई।

अर्जुन रोते रहे, पर तीर चलाते रहे... क्या लगता है, अपने ही हाथों अपने अभिभावकों, भाइयों की हत्या करने की ग्लानि से अर्जुन कभी मुक्त हुए होंगे क्या ? नहीं... वे जीवन भर तड़पे होंगे। यही उनका दण्ड था।

युधिष्ठिर ने स्त्री को दाव पर लगाया, तो उन्हें भी दण्ड मिला। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ने वाले युधिष्ठिर ने युद्धभूमि में झूठ बोला, और उसी झूठ के कारण उनके गुरु की हत्या हुई। यह एक झूठ उनके सारे सत्यों पर भारी रहा... धर्मराज के लिए इससे बड़ा दण्ड क्या होगा ?

दुर्योधन को गदायुद्ध सिखाया था स्वयं बलराम ने। एक अधर्मी को गदायुद्ध की शिक्षा देने का दण्ड बलराम को भी मिला। उनके सामने उनके प्रिय दुर्योधन का वध हुआ और वे चाह कर भी कुछ न कर सके...

उस युग में दो योद्धा ऐसे थे जो अकेले सबको दण्ड दे सकते थे, कृष्ण और महात्मा बर्बरीक। पर कृष्ण ने ऐसे कुकर्मियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने तक से इनकार कर दिया, और बर्बरीक को युद्ध में उतरने से ही रोक दिया।

लोग पूछते हैं कि बर्बरीक का वध क्यों हुआ? यदि बर्बरीक का बध नहीं हुआ होता तो द्रौपदी के अपराधियों को यथोचित दण्ड नहीं मिल पाता। कृष्ण युद्धभूमि में विजय और पराजय तय करने के लिए नहीं उतरे थे, कृष्ण इन अपराधियों को दण्ड दिलाने के लिए ही कुरुक्षेत्र में उतरे थे।

कुछ लोगों ने कर्ण का बड़ा महिमामण्डन किया है। पर सुनिए! कर्ण कितना भी बड़ा योद्धा क्यों न रहा हो, कितना भी बड़ा दानी क्यों न रहा हो, एक स्त्री के वस्त्र-हरण में सहयोग का पाप इतना बड़ा है कि उसके समक्ष सारे पुण्य छोटे पड़ जाएंगे। 

स्त्री कोई वस्तु नहीं कि उसे दांव पर लगाया जाय। कृष्ण के युग में दो स्त्रियों को बाल से पकड़ कर घसीटा गया।

देवकी के बाल पकड़े कंस ने, और द्रौपदी के बाल पकड़े दु:शासन ने। श्रीकृष्ण ने स्वयं दोनों के अपराधियों का समूल नाश किया। किसी स्त्री के अपमान का दण्ड  अपराधी के समूल नाश से ही पूरा होता है, भले वह अपराधी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ही क्यों न हो...।

*कर्म करते समय सदैव सचेत रहें क्योंकि कर्म फल कभी पीछा नहीं छोड़ते..!!*

पूजा अर्चना में वर्जित काम


१) गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं
२) देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं
३) शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं
४) विष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं
५) दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें
६) मंदिर में तीन गणेश मूर्ति न रखें
७) तुलसी पत्र चबाकर न खाएं
८) द्वार पर जूते चप्पल उल्टे न रखें
९) दर्शन करके बापस लौटते समय घंटा न बजाएं
१०) एक हाथ से आरती नहीं लेना चाहिए
११) ब्राह्मण को बिना आसन बिठाना नहीं चाहिए
१२) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम वर्जित है
१३) बिना दक्षिणा ज्योतिषी से प्रश्न नहीं पूछना चाहिए
१४) घर में पूजा करने अंगूठे से बड़ा शिवलिंग न रखें
१५) तुलसी पेड़ में शिवलिंग किसी भी स्थान पर न हो
१६) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श नहीं करना है
१७) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल नहीं फोडना है
१८) रजस्वला स्त्री का मंदिर प्रवेश वर्जित है
१९) परिवार में सूतक हो तो पूजा प्रतिमा स्पर्श न करें
२०) शिव जी की पूरी परिक्रमा नहीं किया जाता
२१) शिव लिंग से बहते जल को लांघना नहीं चाहिए
२२) एक हाथ से प्रणाम न करें
२३) दूसरे के दीपक में अपना दीपक जलाना नहीं चाहिए
२४.१)चरणामृत लेते समय दायें हाथ के नीचे एक नैपकीन रखें ताकि एक बूंद भी नीचे न गिरे 
२४.२) चरणामृत पीकर हाथों को शिर या शिखा पर न पोछें बल्कि आंखों पर लगायें शिखा पर गायत्री का निवास होता है उसे अपवित्र न करें
२५) देवताओं को लोभान या लोभान की अगरबत्ती का धूप न करें
२६) स्त्री द्वारा हनुमानजी शनिदेव को स्पर्श वर्जित है
२७) कंवारी कन्याओं से पैर पडवाना पाप है
२८) मंदिर परिसर में स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग दें
२९) मंदिर में भीड़ होने पर  लाईन पर लगे हुए भगवन्नामोच्चारण करते रहें एवं अपने क्रम से ही  अग्रसर होते रहें
३0) शराबी का भैरव के अलावा अन्य मंदिर प्रवेश वर्जित है
३१) मंदिर में प्रवेश के समय पहले दाहिना पैर और निकास के समय बाया पांव रखना चाहिए
३२)घंटी को इतनी जोर से न बजायें कि उससे कर्कश ध्वनि उत्पन्न हो
३४)हो सके तो मंदिर जाने के लिए एक जोड़ी वस्त्र अलग ही रखें
३५) मंदिर अगर ज्यादा दूर नहीं है तो बिना जूते चप्पल के ही पैदल जाना चाहिए
३६) मंदिर में भगवान के दर्शन खुले नेत्रों से करें और मंदिर से खड़े खड़े वापिस नहीं हों,दो मिनट बैठकर भगवान के रूप माधुर्य का दर्शन लाभ लें
३७) आरती लेने अथवा दीपक का स्पर्श करने के बाद हस्तप्रक्षालन अवश्य करें
इन सभी बताई गई बातें हमारे ऋषि मुनियों से परंपरागत रूप से प्राप्त हुई है। 

🚩जय सनातन धर्म

शुरुआती कक्षाओं के बच्चों की शिक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण दौर से निपटने के लिए करना होगा आवश्यक उपाय

 शुरुआती कक्षाओं के बच्चों की शिक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण दौर से निपटने के लिए करना होगा आवश्यक उपाय –

एक लम्बे समय बाद फिर से स्कूल खुल गये गए है l बच्चों की चहल स्कूलों में बढ़ने लगी है l स्कूल परिसर में फिर से रौनक आने लगी हैl मासूम बच्चे फिर विद्या के मंदिर के पुजारी बनने की तैयारी से चल पड़े है l बच्चों के माता-पिता उनके सपनो को सजाने फिर से अपनी गाढ़ी कमाई को शिक्षा के लिए नौछावर करने के लिए निकल पड़े है l हर माता-पिता का एक सपना होता है कि उसका बच्चा उनसे भी अच्छा पद पर आसीन होकर जीवन के अच्छे से अच्छे मुकाम हासिल करे l इसके लिए वह हर संभव पढ़ाने की कोशिश करते है; और अपने बच्चों के भविष्य को सवारने के लिए शिक्षक रुपी गुरु के हाथो सौप देते है l गुरु की महिमा से हम सब परिचित है; गुरु बच्चों की कमजोर बुद्धि को कुशाग्र करने में अपना पूरा हुनर लगा देता है, तब कही बच्चे भविष्य के लिए सभ्य समाज में अपने कुशल नेतृत्व से रहने व सभी जीवन जीने के लिए तैयार हो पाते है l

अभी कोरोनाकाल के बाद एक लम्बे समय बाद स्कूल अपने पूर्व गति से पुनः लगने के लिए तैयार है l हर स्कूल ने बच्चों को पढ़ाने का एक माइंडमेप बना लिया है l दो वर्षों में सरकार बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने लिए अपनी कई तरकीब लगा चुकी है l इसके लिए शिक्षको को समय-समय पर उचित निर्देश एवं प्रशिक्षण भी दिया गया l शिक्षको ने बच्चों को पढ़ाई की घुट्टी पिलाने का काफी प्रयास किया; इस घुट्टी का कितना असर हुआ ये हम सभी से छुपा नहीं है l समय परिस्थिति अच्छी से अच्छी योजना पर पानी फेरने या सफल बनाने के लिए काफी होती है l कोरोना काल ने बच्चों को सीखने की प्रवर्ती पर काफी प्रभाव डाला है l हम सभी पर बच्चों की सही स्थिति में लाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है; केवल शिक्षक के भरोसे बच्चों के भविष्य की कल्पना करना हमारी नासमझी हो सकती है, इस मिशन में हमें अपना पूर्ण समर्थन देना होगा l  

मार्च 2019 की कालावधि में कोरोना ने जैसे ही दस्तक दी सबसे पहले स्कूल को बंद किया गया और वही से बच्चो के सीखने की चाहत में परिवर्तन आना प्रारंभ हो गया l बच्चे को घर में रहने को मिला एवं स्वतंत्र तरीको से खेलने के लिए मिला; सारा दिन बस एक काम खेल..खेल..खेल..l अभिभावकों का बच्चों को ज्यादा दखल भी बच्चों में विपरीत प्रभाव का कारण बना l बहुत से अभिभावक बच्चो के लिए दुश्मन इसलिए बन गए कि उन्होंने बच्चों को पढने के लिए दबाव डाला l

शिक्षक को करना होगा उचित प्रबंधन –

बच्चे एक गीली मिटटी के सामान होते है उसे जिस आकर में गढ़े वह वही आकर ले लेता है l इस गीली  मिट्टी रूपी बच्चो को सही दिशा में ले जाने, सही आकर देने का काम शिक्षक करते है l बच्चों को सही समय पर सही ज्ञान देना शिक्षक की जिम्मेदारी है l शिक्षक को अपनी पूर्ण जिम्मेदारी से यह कर्तव्य निभाना होगा l एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट 2018 के आकडे बताते है कि कक्षा पाँचवी के आधे से अधिक बच्चे कक्षा दूसरी के स्तर का पाठ भी नहीं पढ़ पाते, यही स्थिति उनके गणित स्तर का भी है l प्रश्न यह उठता है कि सरकार शिक्षा के लिए इतना पैसा खर्च कर रही है तो उसके एवज में बच्चों को पढ़ना यानि कक्षा अनुसार समझ क्यों विकसित नहीं हो पा रही है ! क्या हम यह कह सकते है कि हमारे शिक्षकगण बच्चों को उनकी कक्षा के अनुसार दक्षता देने के लिए तैयार नहीं है; या फिर हमारी शिक्षा प्रणाली में ही कही कमी है l जो भी हो परन्तु इस प्रणाली को सुधारने के लिए सरकार के साथ-साथ जन समुदाय को भी अपनी भूमिका अदा करनी होगी l

शिक्षा के लिए सामुदायिक पहल जरुरी –

सामुदायिक पहल से शिक्षा के स्तर में सुधार करने की पहल की जा सकती है l कोरोनाकाल में शिक्षा का बेसिक ढ़ांचा में बहुत परिवर्तन आया है l ऑनलाइन शिक्षा को लेकर सरकार गंभीरता से कार्य कर रही थी ऑनलाइन शिक्षा की पहुँच गाँव-गाँव तक पहुचने का जो जिम्मा सरकार ने लिया था; कुछ हद तक तो पूरा हुआ है परन्तु अभी भी बहुत से ग्रामीण क्षेत्र ऑनलाइन शिक्षा से पूरी तरह नहीं जुड़ पाए है l शिक्षा को उत्तम धुरी प्रदान करने के लिए जन सामुदायिक सहयोग जरुरी है l स्कूल के साथ –साथ बच्चों को घर में एक उचित माहौल देने का प्रयास करना होगा l अभिभावको को बच्चों के शिक्षकों से मिलाकर बच्चों के शैक्षिक विकास के बारे में निरंतर चर्चा करते रहना चाहिए, जिससे शिक्षक-अभिभावक बच्चों की उन्नति के लिए एक सेतु का कम कर सके l

शुरूआती कक्षाओं के बच्चों लिए प्रारंभ से पढ़ाई की शुरुआत करने की आवश्यकता –

पिछले 2 वर्षों से कोरोनाकाल के कारण शुरूआती कक्षा में बच्चों का दाखिला स्कूल में तो हो गया था परन्तु बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जा पाए l उन्होंने स्कूल में पढ़ाई का कोई अनुभव नहीं लिया l केवल स्कूल में दाखिला हुआ पढ़ाई से केवल सरकारी स्कूल के शिक्षकों का ऑनलाइन क्लास के नाम पर व्हाट्सएप्प पर भेजी गई सामगी पहुँचाई गई, उनको पुस्तक एवं अन्य सामग्री, असाइनमेंट के माध्यम से जुड़े रहे, परन्तु यह दूरस्त माध्यम था l छोटे बच्चों को दूरस्त शिक्षा से पढ़ाई करना कितना कारगर हुआ यह अभी स्कूल खुलने के बाद पता चलेगा l स्कूल में शुरूआती कक्षा की शुरुआत प्रारंभिक शिक्षा से ही करनी पड़ेगी l बच्चों को वर्णमाला से पढ़ने के स्तर के सुधार को लेकर कार्य प्रारंभ करना होगा l बच्चों को पहले उनका वर्तमान शिक्षा स्तर को जानना होगा तभी उनकी समझ के अनुसार उनको उपचारात्मक शिक्षा प्रदान करना होगा l बच्चों को उनके स्तर अनुसार पढ़ाने की तैयारी करनी होगी न कि उनकी कक्षा के अनुसार l अभी कुछ स्कूलों में बच्चों का यह हाल है कि बच्चों की कक्षा तो आगे बढ़ गयी है किन्तु बच्चे का शिक्षा स्तर अभी कक्षा के अनुसार नहीं बढ़ पाया है l सबसे पहले इसी को सुधरने की आवश्यकता है l

पढ़ने का कौशल आगे की शिक्षा के लिए है जरुरी –

बच्चों को अपनी कक्षा की पुस्तक यदि समझ के साथ पढ़ना आ गया तो वह अपनी समझ से आगे की शिक्षा हासिल करने में सक्षम हो जाता है l हम सबने देखा होगा कि यदि पढ़ना आ गया तो बहुत से कठिन अवधारणाओं को समझना आसान हो जाता है l यही बच्चा को पढ़ना ही नहीं आ रहा और उनको कक्षा के पाठ्यक्रम से जोड़कर पढ़ाया जाए तो इस अवधारणा को समझना बच्चों के लिए बहुत कठिन हो जाता है l बच्चा केवल उपरी मन से पाठ्यक्रम के साथ चलता है समझ के साथ नही l इसलिए बच्चों को उसके समझ के स्तर को और अधिक मजबूत करने के लिए कार्य करना अतिआवश्यक हो जाता है l

(यह लेखक के निजी विचार है ) 


लेखक/ विचारक 

श्याम कुमार कोलारे


मिट्टी के घर खिलौनों की दुनिया

 खिलौनों की दुनिया के वो मिट्टी के घर याद आते हैं।


-प्रियंका 'सौरभ'

सदियों से मिटटी के घर बनाने की जो परम्परा चली आ रही है; भारत में 118 मिलियन घरों में से 65 मिलियन मिट्टी के घर हैं? यह भी सच है कि कई लोग अपने द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों के लिए मिट्टी के घरों को पसंद करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि हम शहरी केंद्रों में भी एक छोटा बदलाव देख रहे हैं, घर के मालिकों को लगता है कि उनके दादा-दादी के पास यह सही था। मिट्‌टी की झोपड़ी... फूस या खपरैल की छत। अगर यह विवरण सुनकर आप भारत के किसी दूर-दराज के पिछड़े गांव की तस्वीर दिमाग में बना रहे हैं तो आप गलत हैं। बदलते दौर में यह तस्वीर अब अमेरिका जैसे विकसित देश के मॉन्टेना या एरिजोना जैसे राज्यों में आपको दिख सकती है।  कोरोनाकाल के बाद लोगों को खर्च कम करने के साथ ही पर्यावरण की भी चिंता हुई। इसकी वजह से कई लोग वैकल्पिक आवासीय प्रणालियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

आज के आधुनिक समय में सभी लोग सीमेंट से बने घर में रहना पसंद करते हैं और मिट्टी से बने घर में किसी को भी रहना अच्छा नहीं लगता है। अब तो ज्यादातर गाँव में ही मिट्टी से बने घर देखने को मिलते हैं नहीं तो शहर में तो हर कोई सीमेंट से बने घर में ही रहता है। वास्तु के अनुसार हर व्यक्ति को मिट्टी या भूमि तत्व के पास ही रहना चाहिए। मिट्टी से बनी वस्तुएं सौभाग्य और समृद्धिकारक होती हैं। पहले लोग मिटटी के ही मकान बनाते थे, इसका यह मतलब नहीं है कि कम पैसो के लागत के चलते लोग मिट्टी का मकान बनाते थे। मिट्टी सस्ती तो जरूर होती हैं, लेकिन मिट्टी के मकान बनाने पीछे कुछ कारण भी है, इसमें हमें शुद्ध हवा मिलती हैं । यहाँ तक की मिट्टी के मकान में अंदर का तापमान सामान्य होता है। मिट्टी के मकान हमें और पर्यावरण दोनों को लाभ पहुंचाते हैं। मिट्टी के घरों को टिकाऊ, कम लागत और सबसे महत्वपूर्ण, बायोडिग्रेडेबल होने के लिए जाना जाता है।

पहुंच में आसानी और कम लागत से, सीमेंट या स्टील के मुकाबले मिट्टी के घरों में कई फायदे हैं। आधुनिक सामग्रियों के विपरीत, वे दशकों के बाद भी स्थिर रहते हैं, और जब इन्हें नष्ट किया जाता है, तो कार्बन उत्सर्जन उत्पन्न नहीं होता है। मिट्टी की ईंट, यदि स्थिर हो जाती है, तो दीवारों और फर्शों के लिए एक ठोस और टिकाऊ निर्माण सामग्री साबित हो सकती है। यह भूकंप या बाढ़ के दौरान भी दरारें विकसित किए बिना सदियों तक रह सकता है। भारत के गाँव भी तीव्र गति से आधुनिकीकरण का शिकार हो रहें है। पिछले दशक में, समय की कसौटी पर खरे उतरे बहुत से घरों को वर्तमान पीढ़ियों द्वारा स्वेच्छा से नीचे गिरा दिया गया है, उनके पीछे के समृद्ध ज्ञान से अनजान, कम आंका गया और अंततः उन्हें तथाकथित आधुनिक घरों का शिकार होने दिया गया।

'मिट्टी के घर करीब 200 साल तक रह सकते हैं। इनमें पीढ़ी दर पीढ़ी लोग रह सकते हैं। इनके टूटने के बाद भी इनकी सामग्री पुनः इस्तेमाल की जा सकती है।  दूसरी तरफ कंकरीट-सीमेंट के घरों की उम्र करीब 50 साल की होती है। उनके मलबे के निपटान की लागत भी चिंता का विषय है। उसमें भी बहुत ऊर्जा (डीजल) लगती है। सीमेंट और गिट्टी बनाने के लिए हर साल पहाड़ों को नष्ट किया जा रहा है, उन्हें तोड़ा जा रहा है। मिट्टी का घर बनाने के लिए चार बुनियादी निर्माण तकनीकें हैं जो जलवायु परिस्थितियों, स्थान और उसके आकार पर निर्भर करती हैं। इसमें, सिल: मिट्टी, मिट्टी, गोबर, घास, गोमूत्र और चूने के मिश्रण को औजारों, हाथों या पैरों से गूँथकर गांठें बनाई जाती हैं जो अंततः नींव और दीवारों का निर्माण करती हैं।

छत का भार या वजन दीवार पर नहीं, बल्कि लकड़ी के खंभों पर रखा जाता है। मिट्टी के मकान के लिए नीम की लकड़ी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है;उसमें दीमक लगने की संभावना बहुत ही कम होती है। जो कई मायनों में टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल और आपदाओं से सुरक्षित हैं। मिट्टी की दीवारें प्राकृतिक रूप से इंसुलेटेड होती हैं, जिससे घर के अंदर आराम मिलता है। भीषण गर्मियों के दौरान अंदर का तापमान कम होता है, जबकि सर्दियों में मिट्टी की दीवारें अपनी गर्मी से आपको सुकून देती हैं। इसके अलावे छिद्र से भी ठंडी हवा घर में प्रवेश करती हैं। मिट्टी के मकान आज की जरूरत भी हैं, विशेषकर, तब जब सीमेंट-कंकरीट के घर बहुत महंगे बनते हैं, उनमें ऊर्जा की खपत होती है। ऐसे में मिट्टी के घरों से सैकड़ों बेघर लोगों का खुद के मकान का सपना साकार हो सकता है।

यूएन वर्ल्ड कमीशन ने पर्यावरण और विकास को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने भविष्य में ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग करके सस्टेनेबल कंस्ट्रक्शन पर जोर देने की वकालत की है। उनके अनुसार, पुरानी शैली से प्रेरणा लेकर हमें बिना प्रकृति को नुकसान पहुचाएं,  मजबूत और अच्छी इमारतें बनाने पर ध्यान देना होगा। ऐसे कई तरीके हैं, जिन्हें अपनाकर हम एक सस्टेनेबल जीवन जी सकते हैं। ऑर्गेनिक भोजन से लेकर, घर में इस्तेमाल होने वाली चीजों तक, आधुनिक दुनिया में आउट-ऑफ-द-बॉक्स सस्टेनेबल विकल्प ढूंढना, एक नई बात लगती है।

जबकि, सच्चाई तो यह है कि यह कोई नया विकास नहीं है। खासतौर पर सस्टेनेबल आर्किटेक्चर और डिजाइन की बात करें, तो हमारी प्राचीन निर्माण तकनीक ज्यादा कमाल की है, जिससे काफी कुछ सीखा जा सकता है।
-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस


Friday, June 24, 2022

मंदी क्यों है व्यापार में ?

 मंदी क्यों है व्यापार में ???

बर्तन का व्यापारी परिवार के लिये जूते ऑनलाइन खरीद रहा है...
जूते का व्यापारी परिवार के लिये मोबाइल ऑनलाइन खरीद रहा है...
मोबाइल का व्यापारी परिवार के लिए कपडे ऑनलाइन खरीद रहा है...
कपड़े का व्यापारी परिवार के लिये घड़ी ऑनलाइन ख़रीद रहा है...
घडी का व्यापारी बच्चों के लिए खिलोने ऑनलाइन ख़रीद रहा है...
खिलोने का व्यापारी घर के लिये बर्तन ऑनलाइन खरीद रहा है ...
और ये सब रोज सुबह अपनी-अपनी दुकान खोल कर अगरबत्ती लगा कर भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि आज धंधा अच्छा हो जाये...
कहाँ से होगी बिक्री ???
खरीददार आसमान से नहीं आते हम ही एक दूसरे का सामान खरीद कर बाजार को चलाते हैं क्योंकि हर व्यक्ति कुछ न कुछ बेच रहा है और हर व्यक्ति खरीददार भी है...
ऑनलाइन खरीदी करके आप भले 50-100 रु की एक बार बचत कर लें लेकिन इसके नुक्सान बहुत हैं क्योंकि ऑनलाइन खरीदी से सारा मुनाफा बड़ी बड़ी कंपनियों को जाता है जिनमें काफी विदेशी कंपनियां भी हैं...
ये कम्पनियाँ मुठ्ठीभर कर्मचारियों के बल पर बाजार के एक बहुत बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं, ये कम्पनियां बेरोजगारी पैदा कर रही हैं और इनके द्वारा कमाये गये मुनाफे का बहुत छोटा हिस्सा ही पुनः बाजार में आता है...
यदि आप सोचते हैं कि मैं तो कोई दुकानदार नहीं हूं और ना ही व्यापारी , मैं तो नौकरी करता हूँ ऑनलाइन खरीदी से मुझे सिर्फ फायदा है नुक्सान कोई नहीं तो आप सरासर गलत हैं क्योंकि जब समाज में आर्थिक असमानता बढ़ती है या देश का पैसा देश के बाहर जाता है तो, देश के हर व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसका नुक्सान उठाना पड़ता है चाहे वह अमीर हो या गरीब, व्यापारी हो या नौकरी करने वाला,बीमा ऐजेंट, दुकानदार हो या किसान हर कोई प्रभावित होता है...

Wednesday, June 15, 2022

पूजा अर्चना में वर्जित काम

१) गणेश जी को तुलसी

२) देवी पर दुर्वा
३) शिव लिंग पर केतकी फूल
४) विष्णु को तिलक में अक्षत
५) दो शंख एक समान
६) तीन गणेश
७) तुलसी चबाना
८) द्वार पर जूते चप्पल उल्टे
९) दर्शन करके बापस लौटते समय घंटा
१०) एक हाथ से आरती लेना
११) ब्राह्मण को बिना आसन बिठाना
१२) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम
१३) बिना दक्षिणा ज्योतिषी से पूछना
१४) घर में अंगूठे से बड़ा शिवलिंग
१५) तुलसी पेड़ में शिवलिंग
१६) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श
१७) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल फोडना
१८) रजस्वला स्त्री का मंदिर प्रवेश
१९) परिवार में सूतक हो तो पूजा प्रतिमा स्पर्श
२०) शिव जी की पूरी परिक्रमा
२१) शिव लिंग से बहते जल को लांघना
२२) एक हाथ से प्रणाम
२३) दूसरे के दीपक में अपना दीपक जलाना
२४) अगरबत्ती जलाना बांस की सींक वाली
२५) देवता को लोभान या लोभान की अगरबत्ती
२६) स्त्री द्वारा हनुमानजी शनिदेव को स्पर्श
२७) कन्या ओ से पैर पडवाना
२८) मंदिर में परस्त्री को ग़लत निगाह से देखना
२९) मंदिर में भीड़ में परस्त्री से धक्का मुक्की
३०) साईं की अन्य प्रतिमाओं के साथ स्थापना
३१) शराबी का भैरव के अलावा अन्य मंदिर प्रवेश
३२) किसी तांत्रिक का दिया प्रसाद।


Sunday, June 12, 2022

चलो साथ दे दो जीत हम जाएंगे

वक्त की आंधियां आओ सह लें चलो

लड़खड़ाते कदम फिर संभल जाएंगे

आओ हम ही चलो आज झुक जाएंगे

टूटते रिश्ते फिर से संभल जाएंगे..।।


रिश्तों के खेत में हो उपज प्रेम की

खुशियों के उर्वरक से ही हरियाली हो

काट लें आओ मिलकर फसल प्रेम की

मन के खलिहान फिर से संवर जाएंगे..।।


जो कभी थे हमारे वो अब क्यों नहीं

प्रीति सच्ची थी पहले तो अब क्यों नहीं

आओ छोड़ो शिकायत ख़तम करते हैं

आज फिर पहले जैसे निखर जाएंगे..।।


अपनों से खेद ज्यादा उचित भी नहीं

रख लो मत भेद मन भेद फिर भी नहीं

अपनों से जीत जाना भी इक हार है

हार मानो चलो एक हो जाएंगे..।।


सच्ची निष्ठा प्रतिष्ठा सदा प्रेम से

जीवन में बस प्रगति अपनों के साथ से

एक जुटता से ही मिलता संबल सदा

साथ दे दो चलो जीत हम जाएंगे..।।

साथ दे दो चलो जीत हम जाएंगे..।।


् विजय कनौजिया


Tuesday, June 7, 2022

बंटवारा दो भाइयों के बीच का

 दो भाइयों के बीच "बंटवारे" के बाद की बनी हुई तस्वीर है।

बाप-दादा के घर की देहलीज को जिस तरह बांटा गया है यह हर गांव घर की असलियत को भी दर्शाता है।
दरअसल हम "गांव" के लोग जितने खुशहाल दिखते हैं उतने हैं नहीं।
जमीनों के केस, पानी के केस, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस,बंजर तालाब के झगड़े, ब्याह शादी के झगड़े , दीवार के केस,आपसी मनमुटाव, चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है।


अब "गांव" वो नहीं रहे कि "बस" या अन्य 'वाहनो' में गांव की लडकी को देखते ही सीट खाली कर देते थे बच्चे।
दो चार "थप्पड" गलती पर किसी बड़े बुजुर्ग या ताऊ ने ठोंक दिए तो इश्यू नहीं बनता था तब। लेकिन अब..आप सब जानते ही है
अब हम पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं। "गांव" में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवतः अब मिलने मुश्किल हैं।वह लगभग गायब से हो गये हैं ...
हालात इस कदर "खराब" है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे। इतनी नफरत कहां से आई है लोगों में ये सोचने और चिंतन का विषय है।
गांवों में कितने "मर्डर" होते हैं, कितने "झगड़े" होते हैं और कितने केस अदालतों व संवैधानिक संस्थाओं में लंबित है इसकी कल्पना भी भयावह है।
संयुक्त परिवार अब "गांवों" में शायद एक आध ही हैं, "लस्सी-दूध" की जगह यहां भी अब ड्यू, कोकाकोला, पेप्सी पिलाई जाने लगी है। बंटवारा केवल भारत का नहीं हुआ था, आजादी के बाद हमारा समाज भी बंटा है और शायद अब हम भरपाई की सीमाओं से भी अब बहुत दूर आ गए हैं। अब तो वक्त ही तय करेगा कि हम और कितना बंटेंगे।..
यूँ लगने लगा है जैसे हर आदमी के मन मे ईर्ष्या भरा हुआ है
कन फुसफुसाहट ..जहां लोग झप्पर छान उठाने को हंसी हंसी में सैकड़ो जुट जाया करते थे वहां अब इकठ्ठे होने का नाम तक नही लेते..
एक दिन यूं ही बातचीत में एक मित्र ने कहा कि जितना हम "पढे" हैं दरअसल हम उतने ही बेईमान व संकीर्ण बने हैं। "गहराई" से सोचें तो ये बात सही लगती है कि "पढे लिखे" लोग हर चीज को मुनाफे से तोलते हैं और यही बात "समाज" को तोड रही है।

Monday, June 6, 2022

पतीला का दाल भात

पहले तसला, भगौना, पतीला (खुला बर्तन) में दाल-भात बनता था, अदहन जब अनाज के साथ उबलता था तो बार-बार एक मोटे झाग की परत जमा करती थी, जिसे अम्मा रह-रह के निकाल के फेक दिया करती थी। पूछने पर कहती कि "ई से तबियत खराब होत है



बाद में बड़े होने पर पता चला वो झाग शरीर मे यूरिक_एसिड बढ़ाता है और अम्मा इसीलिए वो झाग फेंक दिया करती थी। अम्मा ज्यादा पढ़ी लिखी तो नही थी पर ये चीज़े उन्होंने नानी से और नानी ने अपनी माँ से सीखा था।
अब कूकर में दाल-भात बनता है, पता नही झाग कहा जाता होगा, ज्यादा दाल खाने से पेट भी खराब हो जाते हैं।
डॉक्टर कहते हैं एसिडिटी है। पुराने ज्ञान को याद करिये विज्ञान छुपा है ।

डरता है मुर्दा, कहीं कफ़न बिक न जाए

बिक रहा पानी, पवन बिक न जाए,

बिक गयी धरती, गगन बिक न जाए ! 

अब तो चाँद पर भी बिकने लगी है ज़मीं 

डर है कि सूरज की तपन बिक न जाए ! 

देकर दहेज खरीदा गया है दुल्हे को 

कहीं उसी के हाथों दुल्हन बिक न जाए !

 धर्म लाचार है ठेकेदारों के पैरों तले, 

डर है कि कहीं ये अमन बिक न जाए ! 

हर काम की रिश्वत ले रहे हैं नेता. 

उनके हाथों कहीं ये वतन बिक न जाए !

 सरेआम बिकने लगे हैं अब तो सांसद, 

डर है कि संसद भवन बिक न जाए ! 

आदमी मरा तो भी आखें खुली हुई है, 

डरता है मुर्दा, कहीं कफ़न बिक न जाए !!

राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों को जानने का प्रयास

 महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों की कोई चर्चा पाठ्यपुस्तकों में नहीं है। जबकि सत्य यह है कि अकबर को महान सिद्ध करने के लिए महाराजा विक्रमादित्य की नकल करके कुछ धूर्तों ने इतिहास में लिख दिया कि अकबर के भी नौ रत्न थे ।

राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों को जानने का प्रयास करते हैं।
राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे।


ये हैं नवरत्न –
नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।
जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे।
इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे।
इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।
ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।
इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है।
विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता। ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।
जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया।
इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है।
इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।
ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया।
जो हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।
कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।
इनके नाम पर मतभेद है। क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से-
1.पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,
2.‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि
3.सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि
नोट आपको पता है ऐसे नवरत्न अब क्यों नहीं पैदा होते क्योंकि वेदों के ऊपर रिसर्च नहीं होता धर्म ग्रंथों को पढ़ाया नहीं जाता और धर्म ग्रंथों के ज्ञान को सिर्फ एक समाज के फायदे से जोड़ दिया और धर्म ग्रंथ के ज्ञान को पूजा-पाठ तक ही सीमित रख दिया मगर आप सच्चाई जानते हैं हमारे धर्म ग्रंथों का ज्ञान किसी भी विज्ञान गणित साइंस से भी आगे है ऋषि परंपरा गुरुकुल की बहुत आवश्यकता है
आकाश शर्मा

खाटू श्याम बाबा की कहानी

राजस्थान के सीकर जिले में श्री खाटू श्याम जी का सुप्रसिद्ध मंदिर है. वैसे तो खाटू श्याम बाबा के भक्तों की कोई गिनती नहीं लेकिन इनमें खासकर वैश्य, मारवाड़ी जैसे व्यवसायी वर्ग अधिक संख्या में है. श्याम बाबा कौन थे, उनके जन्म और जीवन चरित्र के बारे में जानते हैं इस लेख में.
खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है. महाभारत की एक कहानी के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया था. इसीलिए बर्बरीक जी का नाम खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ. वर्तमान में खाटूनगर सीकर जिले के नाम से जाना जाता है. खाटू श्याम बाबा जी कलियुग में श्री कृष्ण भगवान के अवतार के रूप में माने जाते हैं.


श्याम बाबा घटोत्कच और नागकन्या नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं. पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा बर्बरीक के दादा दादी थे. कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे, अतः उनका नाम बर्बरीक रखा गया. बर्बरीक का नाम श्याम बाबा कैसे पड़ा, आइये इसकी कहानी जानते हैं.
बर्बरीक बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे. बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखकर निपुणता प्राप्त कर ली थी. बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिसके आशीर्वादस्वरुप भगवान ने शिव ने बर्बरीक को 3 चमत्कारी बाण प्रदान किए. इसी कारणवश बर्बरीक का नाम तीन बाणधारी के रूप में भी प्रसिद्ध है. भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ थे.
जब कौरवों-पांडवों का युद्ध होने का सूचना बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया. बर्बरीक अपनी माँ का आशीर्वाद लिए और उन्हें हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर निकल पड़े. इसी वचन के कारण हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा यह बात प्रसिद्ध हुई.
जब बर्बरीक जा रहे थे तो उन्हें मार्ग में एक ब्राह्मण मिला. यह ब्राह्मण कोई और नहीं, भगवान श्री कृष्ण थे जोकि बर्बरीक की परीक्षा लेना चाहते थे. ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया कि वो मात्र 3 बाण लेकर लड़ने को जा रहा है ? मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है. बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम है और इसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा. अतः अगर तीनों तीर के उपयोग से तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है.
ब्राह्मण ने बर्बरीक (Barbarik) से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए. बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया. उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने कृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा. असल में कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा दिया था. बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है. बर्बरीक बोले – हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लो, नहीं तो ये आपके पैर को वेध देगा.
श्री कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए. उन्होंने पूंछा कि बर्बरीक किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे. बर्बरीक बोले कि उन्होंने लड़ने के लिए कोई पक्ष निर्धारित किया है, वो तो बस अपने वचन अनुसार हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे. श्री कृष्ण ये सुनकर विचारमग्न हो गये क्योकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव जानते थे. कौरवों ने योजना बनाई थी कि युद्ध के पहले दिन वो कम सेना के साथ युद्ध करेंगे. इससे कौरव युद्ध में हराने लगेंगे, जिसके कारण बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ने आ जायेंगे. अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो उनके चमत्कारी बाण पांडवों का नाश कर देंगे.
कौरवों की योजना विफल करने के लिए ब्राह्मण बने कृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा. बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया. अब ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए. इस अनोखे दान की मांग सुनकर बर्बरीक आश्चर्यचकित हुए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है. बर्बरीक ने प्रार्थना कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों.
भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए. बर्बरीक बोले कि हे देव मैं अपना शीश देने के लिए बचनबद्ध हूँ लेकिन मेरी युद्ध अपनी आँखों से देखने की इच्छा है. श्री कृष्ण बर्बरीक ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया. बर्बरीक ने अपना शीश काटकर कृष्ण को दे दिया. श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया, जहाँ से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें. इसके पश्चात कृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया.
महाभारत का महान युद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए. विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है. श्री कृष्ण ने कहा – चूंकि बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं अतः इस प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानना चाहिए. तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्री कृष्ण को जाता है, क्योकि यह सब कुछ श्री कृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही सम्भव हुआ. विजय के पीछे सबकुछ श्री कृष्ण की ही माया थी.
बर्बरीक के इस सत्य वचन से देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे. श्री कृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – हे वीर बर्बरीक आप महान है. मेरे आशीर्वाद स्वरुप आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होओगे. कलियुग में आप कृष्णअवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करेंगे.
भगवान श्री कृष्ण का वचन सिद्ध हुआ और आज हम देखते भी हैं कि भगवान श्री खाटू श्याम बाबा जी अपने भक्तों पर निरंतर अपनी कृपा बनाये रखते हैं. बाबा श्याम अपने वचन अनुसार हारे का सहारा बनते हैं. इसीलिए जो सारी दुनिया से हारा सताया गया होता है वो भी अगर सच्चे मन से बाबा श्याम के नामों का सच्चे मन से नाम ले और स्मरण करे तो उसका कल्याण अवश्य ही होता है. श्री खाटू श्याम बाबा की महिमा अपरम्पार है, सश्रद्धा विनती है कि बाबा श्याम इसी प्रकार अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखें.

Saturday, June 4, 2022

“मैंने दहेज़ नहीं माँगा”

 साहब मैं थाने नहीं आउंगा, अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा, माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था, सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था, पर यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”

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मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है, महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है। चाहत मेरी भी बस ये थी कि माँ बाप का सम्मान हो, उन्हें भी समझे माता पिता, न कभी उनका अपमान हो । पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा, यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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परिवार के साथ रहना इसे पसंद नहीं है, कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही है, मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराए के आशियाने में, कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में, हाँ छोड़ दो, छोड़ दो इस माँ बाप के प्यार को, नहीं माने तो याद रखोगे मेरी मार को,
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फिर शुरू हुआ वाद विवाद माँ बाप से अलग होने का, शायद समय आ गया था, चैन और सुकून खोने का, एक दिन साफ़ मैंने पत्नी को मना कर दिया, न रहूँगा माँ बाप के बिना ये उसके दिमाग में भर दिया। बस मुझसे लड़कर मोहतरमा मायके जा पहुंची,
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2 दिन बाद ही पत्नी के घर से मुझे धमकी आ पहुंची, माँ बाप से हो जा अलग, नहीं सबक सीखा देंगे, क्या होता है दहेज़ कानून तुझे इसका असर दिखा देगें। परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले में टांगा, यकींन माँनिये साहब, "मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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जो कहा था बीवी ने, आखिरकार वो कर दिखाया, झगड़ा किसी और बात पर था, पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया। बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फ़ोन आया, क्यों बे, पत्नी से दहेज़ मांगता है, ये कह के मुझे धमकाया।
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माता पिता भाई बहिन जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम थे,
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घर में सब हैरान, सब परेशान थे,अब अकेले बैठ कर सोचता हूँ, वो क्यों ज़िन्दगी में आई थी,
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मैंने भी तो उसके प्रति हर ज़िम्मेदारी निभाई थी। आखिरकार तमका मिला हमें दहेज़ लोभी होने का, कोई फायदा न हुआ मीठे मीठे सपने संजोने का । बुलाने पर थाने आया हूँ, छुपकर कहीं नहीं भागा, लेकिन यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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• झूठे दहेज के मुकदमों के कारण, पुरुष के दर्द से ओतप्रोत एक मार्मिक कृति!
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