Saturday, September 19, 2020

"   आप ही के अंदर शक्तियों का महावृक्ष है "




सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो आप, अपने आप में विश्वास रखिए जब भी विचलित हो आप तो यह शब्द जरूर बोलो कि मैं समुंद्र पी जाऊंगा मेरी इच्छा से पर्वत टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। इस प्रकार की शक्ति और इच्छा आप रखो, इसके साथ ही कड़ा परिश्रम करो। देखना आप अपने उद्देश्य को एक दिन निश्चित पा लोगे।

याद रखना आप मेरी बात को आपके भीतर सभी शक्तियां निहित है, आप में ही महान से महानतम बनने के बीज आप के अंतः करण में मौजूद है। लेकिन दोस्त जब तक हम इन शक्तियों को विकसित नहीं करेंगे तब तक आप ही सोचो आपको जीवन का आनंद कैसे प्राप्त होगा?

आज चारों तरफ देखे तो अधिकतर लोग थोड़ी सी किसी ने आलोचना किया और वह परेशान हो जाते हैं, जबकि भाइयों हर जानदार तथा शानदार व्यक्ति की आलोचना होती है। यह सच है कि अधिकतर लोग उससे ईर्ष्या  भी करते हैं । एक बात अपने दिल में उतार लो कि आलोचना एवं ईर्ष्या इस बात की द्योतक है कि आप जीवित हैं, आप में दम है तथा आपका जीवन सार्थक है। सही आलोचना से आप हमेशा सीखो तथा अपने आपको बदलो एवं इसके साथ ही गलत आलोचनाओं से परेशान आप जरा भी ना होना। उन्हें मुस्कुरा कर हवा में उड़ा दो, अपने दिल पर इसका असर ना होने दो कि मेरा उसने आलोचना किया। अपनी आंतरिक शक्तियों के माध्यम से आलोचनाओं के बाहरी आक्रमण को ध्वस्त कर दीजिए। अपने चेहरे पर तनाव नहीं मुस्कान हमेशा रखिए। आपका जीवन ईश्वर द्वारा दिया हुआ एक अनमोल उपहार है, इसे कमजोर मत होने देना, आज से ही आशा उत्साह प्रेरणा एवं शक्ति को अपने जीवन में स्थान दीजिए तथा बन जाइए अपने जहाज के कप्तान स्वयं साथियों ।

यह आप भी जानते हैं कि बीज से अंकुर तभी फूटता है, जब वह फटता है और बाद में यही अंकुर एक दिन एक बड़ा पेड़ बन जाता है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि हमें अपने गुणों के विकास में सहायक अवसरों को बराबर खोजते रहना चाहिए। विकास का अर्थ ही होता है कि लगातार बढ़ते चले जाना और अपने साथ समाज के वंचित लोगों को भी आगे बढ़ाते चलना। याद रखना कैसा भी भय ,कैसा भी लोभ , कैसी भी चिंता यदि आपके बढ़ते कदमों को नहीं रोक पाती तो समझ लेना कि आपकी प्रगति भी नहीं रुक सकती आप एक दिन सफल होकर ही रहेंगे। इसीलिए मैं कह रहा हूं कि आप अपने सुप्त शक्तियों को जगा दो अपने आपको और अपनी शक्ति को पहचानो, जो अपनी शक्तियों को पहचान लेता है, वही एक दिन सफलता के शिखर पर पहुंचता है, बाकी लोग तो केवल समय पूरा करने के लिए इस धरती पर आते हैं और गुमनामी की मौत मर कर भुला दिए जाते हैं ।

 

कवि विक्रम क्रांतिकारी


 

 




बहु भी मुस्कुराना चाहती है




बहु भी किसी की बेटी है,

फिर क्यों इतना कष्ट पाती है।

छोड़कर आई है बहु,अपने पूरे घर को,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

अपने माँ बाप की प्यारी बेटी,

बहु बनकर ससुराल आती है।

बहु को दें बेटी का दर्जा,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

बेटी,बहु और कभी माँ बनकर

अपने सब फर्ज़ निभाती है।

सबके सुख-दुख को सहकर,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

बहु के बारे में क्या कहूँ, 

पूरे घर आंगन में खुशियां लाती है।

सास-ससुर की सेवा करके,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

सबका रखे ध्यान और ख्याल,

अंत में खाना खाती है।।

ससुराल में बेटी बनकर,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

दहेज प्रताड़ना दे देकर,

बहुएं जिंदा जलाई जाती है।

समर्पण की भावना अपनाकर,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

माँ लक्ष्मी, दुर्गा रूप में,

देवी रूपी बहु सबके मन को भाती है।

ज़रा "बेटी" उसे कह कर पुकारो,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।



गोपाल कृष्ण पटेल "जी1"
दीनदयाल कॉलोनी
जांजगीर छत्तीसगढ़


 

 




कभी तो

तुम ख्वाहिश हो मेरी 

कभी तो मुझे मिला करो।

तुम दुआ हो मेरी 

कभी तो कबूल हुआ करो।

तुम मोहब्बत हो मेरी

कभी तो पूरी हुआ करो।

तुम जहान हो मेरा

कभी तो मुझ पर 

मर मिटा करो।

तुम धड़कन हो मेरी

कभी तो मेरे

दहकते दिल में धड़का करो।

तुम सांस हो मेरी 

कभी तो जीने की 

ख्वाहिश से

मुझ में आया करो।

तुम इश्क हो मेरा

कभी तो तुम

मोहब्बत के बहाने 

मेरे शहर में आया करो।

तुम चाहत हो मेरी

कभी तो मेरे 

अनाहत द्वार को छुआ करो।

युवा वर्ग के लिए चुनौती एवं संदेश 






केंद्र सरकार ने नौकरियों में भरती की जिस नई प्रवेश परीक्षा और प्रक्रिया की योजना पेश की है, उसके भीतर दूरगामी संभावनाएं छिपी हुई हैं। यह एक प्रकार की सामाजिक क्रांति को जन्म दे सकती है, बशर्ते इसे सावधानी से लागू किया जाए। यह प्रक्रिया ग्रामीण क्षेत्र के युवकों को मुख्यधारा में आने का मौका देगी, लड़कियों को महत्वपूर्ण सरकारी सेवाओं से जोड़ेगी और भारतीय भाषाओं के माध्यम से सरकारी सेवाओं में आने के इच्छुक नौजवानों को आगे आने का अवसर देगी। इन सब बातों के अलावा प्रत्याशियों और सेवायोजकों दोनों के समय और साधनों का अपव्यय भी रुकेगा।

केंद्र सरकार ने गत 19 अगस्त को फैसला किया है कि सरकारी क्षेत्र की तमाम नौकरियों में प्रवेश के लिए एक राष्ट्रीय भरती एजेंसी का गठन किया जाएगा। इस आशय की जानकारियाँ प्रधानमंत्री कार्यालय से सम्बद्ध तथा कार्मिक, सार्वजनिक शिकायतों और पेंशन विभागों के राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने दी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केंद्र सरकार की नौकरियों की भरती में परिवर्तनकारी सुधार लाने हेतु राष्ट्रीय भरती एजेंसी (नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी-एनआरए) के गठन को मंज़ूरी दे दी है।

हर वर्ष सरकारी सेवाओं और बैंकों की नौकरी के लिए ढाई से तीन करोड़ प्रत्याशी परीक्षा में बैठते हैं। सीएटी में एकबार बैठने के बाद व्यक्ति भरती करने वाली दूसरी एजेंसियों की उच्चतर परीक्षा में बैठने का अधिकारी हो जाएगा। इस टेस्ट का पाठ्यक्रम समान होगा। प्रत्याशी एक सामान्य पोर्टल पर जाकर अपना नाम पंजीकृत करा सकेंगे और उपलब्ध परीक्षा केंद्रों में से अपनी इच्छा का केंद्र तय कर सकेंगे। उपलब्धि के आधार पर उन्हें केंद्र आबंटित किया जाएगा। इस व्यवस्था के लागू होने के बाद अलग-अलग परीक्षाओं के लिए फीस पर पैसा बर्बाद नहीं होगा। साथ ही जगह-जगह की यात्रा पर समय और साधनों का व्यय भी नहीं होगा। इन परीक्षाओं की बहुलता के कारण महिला प्रत्याशियों को खासतौर से परेशानियों का सामना करना होता है।

एनआरए की यह परीक्षा (सीईटी) पहले चरण में 12 भारतीय भाषाओं में आयोजित की जाएगी। इसके बाद दूसरी भाषाओं में भी इसे शुरू किया जा सकेगा। हालांकि अभी यह जानकारी नहीं मिल पाई है कि कौन सी भाषाओं में यह परीक्षा होगी, पर इतना स्पष्ट किया गया है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित भाषाओं में से 12 होंगी। कई मायनों में यह बड़ी महत्वाकांक्षी योजना है, जो राष्ट्रीय एकीकरण में भी सहायक होगी। भारत के इतिहास, भूगोल, संस्कृति और समाज से जुड़े सामान्य ज्ञान का समान पाठ्यक्रम भी सांस्कृतिक एकता की स्थापना में महत्वपूर्ण साबित होगा।

कार्मिक तथा प्रशिक्षण मंत्रालय के सचिव सी चंद्रमौलि के अनुसार सामान्यतः ढाई से तीन करोड़ युवा हर साल करीब सवा लाख सरकारी नौकरियों से जुड़ी परीक्षाओं में शामिल होते हैं। ये परीक्षाएं एक तरह से नागरिक के रूप में हमारा ज्ञानवर्धन करती हैं। भारतीय भाषाओं के मार्फत करीब ढाई-तीन करोड़ नौजवानों का एक ही परीक्षा में शामिल होना एक नए प्रकार की ऊर्जा को जन्म देगा। देश के हर जिले में इसका परीक्षा केंद्र होगा।

इस सिलसिले में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि क्या सरकारी नौकरियाँ इतनी हैं कि यह परीक्षा आकर्षक बनी रह सके? यह भी कहा जा रहा है कि रेलवे का निजीकरण हो रहा है। ये बातें सही हैं, पर सही यह भी है कि रेलवे का कार्यक्षेत्र बढ़ रहा है। उसके लिए कर्मचारियों की जरूरत कम होने के बजाय बढ़ेगी। उम्मीद है कि एनआरए की सीईटी का स्कोर निजी क्षेत्र की कंपनियों के काम भी आएगा, जैसे कि कैट का स्कोर निजी क्षेत्र के प्रबंध संस्थानों में भी स्वीकार किया जाता है।

अभी सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को समान शर्तों वाले विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग भरती एजेंसियों द्वारा संचालित अलग-अलग परीक्षाओं में शामिल होना पड़ता है। इतना ही नहीं उन्हें प्रत्येक परीक्षा के लिए विभिन्न पाठ्यक्रम के अनुसार अलग-अलग पाठ्यक्रमों की तैयारियाँ करनी होती हैं। इसके कारण उन्हें अलग-अलग एजेंसियों को अलग-अलग शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। साथ ही परीक्षा में हिस्सा लेने के लिए लंबी दूरी भी तय करनी पड़ती है।  इससे उनपर आर्थिक बोझ पड़ता है।

अलग-अलग भरती परीक्षाएँ आयोजन करने वाली एजेंसियों पर भी काम का बोझ बढ़ता है। बार-बार होने वाला खर्च, सुरक्षा व्यवस्था और परीक्षा केंद्रों से जुड़ी तमाम बातें संसाधनों के अपव्यय की कहानी कहती हैं। वर्तमान प्रक्रिया के कारण भरती की गति भी बहुत धीमी होती है। इस नई व्यवस्था से यह गति तेज हो जाएगी। इससे एक तरफ बेरोजगारी की समस्या दूर होगी, वहीं सरकारी कामकाज में गति आएगी। बहुत से सरकारी विभागों ने कहा है कि हम दूसरे चरण की परीक्षा लेंगे ही नहीं और एनआरए के स्कोर के आधार पर ही भरती कर लेंगे। भारत के रक्षा क्षेत्र में विस्तार का जबर्दस्त कार्यक्रम शुरू होने वाला है। इसके लिए हरेक स्तर की भरती होगी। बहुत से विभागों में पिछले कई वर्षों से भरती नहीं हुई है। उन पदों को भरने की प्रक्रिया तेज की जा सकती है। कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ गई है, उसे गति प्रदान करने में भी इस नई प्रक्रिया का काफी लाभ मिलेगा, बशर्ते उसका समय से इस्तेमाल किया जा सके।

 

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश




 

 




देश का भरोसा अभी आप पर है लेकिन

अगर आपको कहा जाए कि फ़्लैश बैक में जाकर कुछ याद कीजिए यूपीए-2 के अंतिम वर्ष।बुरी तरह से घोटालों के आरोपों से घिरी हुई सरकार।विपक्ष का चौतरफा हमला।यकायक अन्ना आंदोलन और उस आंदोलन के पीछे देश।याद कीजिए वह दिन जब रामलीला मैदान से अन्ना को गिरफ्तार कर लिया था और तिहाड़ जेल में भेज दिया था,तब एकदम से सारे देश में ऐसा लगा कि बस अब और नहीं,यह यूपीए की सरकार किसी भी कीमत पर अब एक दिन के लिए भी नहीं चाहिए।इसे जाना चाहिए।इसी क्रम में याद कीजिए मीडिया का सारा फोकस केवल अन्ना पर हो गया था और देश का विपक्ष एकदम नेपथ्य में चला गया था।हर और एक ही शोर कि अन्ना नहीं,यह गांधी है।आनन-फानन में अन्ना को उसी दिन तिहाड़ जेल से रिहा किया गया,तब देश का वातावरण देखते ही बनता था।ठीक इसी तरह जैसे आज रिया,कंगना आदि-आदि हो रहा है।उस समय केवल अन्ना बाकी कुछ नहीं।इस बीच यह बात भी ध्यान रखिए कि उस समय सरकार के मंत्री कपिल सिब्बल,सलमान खुर्शीद,प्रणव मुखर्जी आदि-आदि,ऐसे बौखला गए थे कि इन सबके लिए मीडिया का सामना करना मुश्किल हो गया था।लबोलुबाब यह था कि इन तमाम मंत्रियों को कुछ नहीं सूझता था और अनाप-शनाप बोलने लग गए थे।अगर आपको याद हो या आप थोड़ा फ़्लैश बैक में जाएं तो पाएंगे कि उस समय सरकार बुरी तरह घिरी हुई थी,उसे निकलने का कोई भी उपाय नहीं सूझ रहा था और सिर्फ अन्ना और उसके मुद्दे।अन्ना के साथी जो बाद में मुख्यमन्त्री और गवर्नर,केंद्रीय मंत्री तक बने हुए हैं,वे ही असली हीरो माने जाने लगे थे।ऐसा लगता था कि मानों भगत सिंह जैसे लोग धरा पर अवतरित हो गए हैं।लेकिन बाद में सबका भंडाफोड़ हो गया।देश ठगा-सा गया।इसी बीच तत्कालीन विपक्ष पर भी आरोप लगे मगर वे हवा में उड़ गए,किसी ने उन पर विश्वास ही नहीं किया।ज्यादा न कहते हुए आख़िरकार यूपीए-2 की चुनावों में ऐतिहासिक फजीहत हुई और सम्भवतः यह सबसे बड़ी हार थी जब उनके सांसदों का आंकड़ा अर्धशतक भी नहीं लगा सका,विशेषकर कॉंग्रेस का।यह केवल मोदी की जीत नहीं थी बल्कि यूपीए के कर्मकांडों की हर थी।ख़ैर,वो वर्ष था 2014 का,जब मोदी का उदय हुआ और देश भगवामय हो गया।एनडीए की पहली पारी में जो कुछ भी सरकार ने किया,पूरे देश ने उसे मान लिया,चाहे वह कोई भी फैसला किया हो।मजे की बात यह रही कि किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि सरकार के खिलाफ बोले।अगर कोई दबे स्वर में बोला भी तो उसका विरोध हुआ और इस देश ने देशद्रोही जैसे शब्द सुने।न केवल सुने बल्कि उनके साथ बेहद बुरा किया गया।ठीक अन्ना आंदोलन की तरह मीडिया भी पीछे नहीं रहा।ब्यानों का अपने ही तरीके से मतलब निकाला गया और एकाध को छोड़कर किसी की भी हिम्मत नहीं रही कि एनडीए सरकार की आलोचना कर सके।इसी बीच प्रधामन्त्री जी यहाँ तक आ गए कि प्रधामन्त्री जी ने जो कह दिया,बस वह ब्रह्मवाक्य माना जाने लगा।वैश्विक स्तर पर छाए रहे।सम्मानों की मानो झड़ी लग गयी।2019 के आते-आते जलवा बरकरार रहा जबकि याद रखिए नोटबन्दी जैसा निर्णय लेने,जीएसटी के लागू होने के बाद भी जनता का बड़ा तबका एनडीए के साथ ही बना रहा और 2019 में फिर से ऐतिहासिक जीत मिली।यह जीत विशुद्ध रूप से मोदी की जीत थी।किसी को भी यह मानने में गुरेज नहीं था कि बड़े दिनों के बाद मोदी एक करिश्माई नेता के रूप में आएं हैं।एनडीए की दूसरी पारी की शुरुआत हुई लेकिन 2020 के आते-आते करिश्माई नेतृत्व कुछ धीमा पड़ने लग गया।दिल्ली के विधानसभा चुनावों ने उसमें पलीता लगा दिया।हरियाणा में भी गठबंधन की ही सरकार बनानी पड़ी।राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भी हाथ से निकल गया।वो अलग बात है कि बाद में मध्यप्रदेश हाथ में आ गया।इस समय बिल्कुल 2014 वाला दौर खुद को दोहरा रहा है।किसानों का मसला थम नहीं रहा मगर सरकार और इसके मंत्रियों के ब्यान चौकानें वाले हैं।मजदूरों के बारे में सरकार ब्यान देने से ही हिचक रही है।चीन का मसला गले की फांस बनता जा रहा है।बढ़ता निजीकरण जनता में आक्रोश  पैदा कर रहा है।छोटे-छोटे पड़ौसी देश अनाप-शनाप बोल रहे हैं।कंगना और रिया से देश का वो तबका जो अधिकाँश है और मूल मुद्दों पर बात चाहता है,मीडिया से खासा नाराज है बल्कि मुखर होकर कहने लग गया है कि मीडिया बिकाऊ है।उधर कोरोना ने भी कसर नहीं छोड़ी है और लोग इसको भी अब  सरकार की विफलता बताने लग गए हैं।घटती जीडीपी,गिरता रुपया,आसमान छूती मंहगाई,बढ़ती बेरोजगारी ही सरकार के लिए बड़ी मुसीबत पैदा कर रही है क्योंकि अब लोग 2014 से पहले के ब्यान निकाल-निकालकर देखने- दिखाने लगे हैं।पीएम के जन्मदिन को राष्ट्रीय झूठ दिवस,जुमला दिवस,बेरोजगार दिवस के रूप में मनाना,अपने आप में बड़ी घटना है।मंत्रियों के ब्यान बेहद खराब हैं जैसे भाभी जी पापड़ खाना,ठेका नहीं ले रखा है,हर चीज के लिए पिछले लोग जिम्मेदार हैं।अब तो लोग हिन्दू-मुस्लिम से भी तंग आ चुके हैं।शुरू-शुरू में यह मुद्दा सिर चढ़कर बोला था।सोशल मीडिया में भी अब वो पहले जैसी बात नहीं रही।अब विरोधी स्वर ज्यादा हो रहे हैं।दिल्ली दंगों की जांच खुद जांच के घेरे में है।पूरे देश के हालात इस समय बेहद खराब गुजर रहे हैं।

लेकिन हमारा मानना यह है कि अब भी समय है।देर नहीं हुई है।सरकार को चाहिए कि समस्याओं का समाधान करें,कोरोना से निपटे,जीडीपी को उठाए,रूपये की हालात में सुधार करे,बेरोजगारों को रोजगार दे,किसानों की सुनकर किसानों के हित में काम करे,महिला सुरक्षा पर ध्यान दें,निजीकरण पर रोक लगाए,सार्वजनीकरण को बढ़ावा दे।हिन्दू-मुस्लिम करना बंद करे।अभी भी देश आप पर भरोसा करता है।कहीं ऐसा न हो कि हश्र यूपीए वाला हो जाए क्योंकि कहने को तो उनके पास भी बहुत कुछ था।कहने को तो इंडिया शाइनिंग भी था लेकिन जनता ने दोनों  को नकार दिया था।अभी समय है,चेत जाइए ताकि देश सही दिशा की और जा सके।उम्मीद भी आपसे ही है।जय राम जी की।भली करेंगे राम।

 

"   आप ही के अंदर शक्तियों का महावृक्ष है 

सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो आप, अपने आप में विश्वास रखिए जब भी विचलित हो आप तो यह शब्द जरूर बोलो कि मैं समुंद्र पी जाऊंगा मेरी इच्छा से पर्वत टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। इस प्रकार की शक्ति और इच्छा आप रखो, इसके साथ ही कड़ा परिश्रम करो। देखना आप अपने उद्देश्य को एक दिन निश्चित पा लोगे।

याद रखना आप मेरी बात को आपके भीतर सभी शक्तियां निहित है, आप में ही महान से महानतम बनने के बीज आप के अंतः करण में मौजूद है। लेकिन दोस्त जब तक हम इन शक्तियों को विकसित नहीं करेंगे तब तक आप ही सोचो आपको जीवन का आनंद कैसे प्राप्त होगा?

आज चारों तरफ देखे तो अधिकतर लोग थोड़ी सी किसी ने आलोचना किया और वह परेशान हो जाते हैं, जबकि भाइयों हर जानदार तथा शानदार व्यक्ति की आलोचना होती है। यह सच है कि अधिकतर लोग उससे ईर्ष्या  भी करते हैं । एक बात अपने दिल में उतार लो कि आलोचना एवं ईर्ष्या इस बात की द्योतक है कि आप जीवित हैं, आप में दम है तथा आपका जीवन सार्थक है। सही आलोचना से आप हमेशा सीखो तथा अपने आपको बदलो एवं इसके साथ ही गलत आलोचनाओं से परेशान आप जरा भी ना होना। उन्हें मुस्कुरा कर हवा में उड़ा दो, अपने दिल पर इसका असर ना होने दो कि मेरा उसने आलोचना किया। अपनी आंतरिक शक्तियों के माध्यम से आलोचनाओं के बाहरी आक्रमण को ध्वस्त कर दीजिए। अपने चेहरे पर तनाव नहीं मुस्कान हमेशा रखिए। आपका जीवन ईश्वर द्वारा दिया हुआ एक अनमोल उपहार है, इसे कमजोर मत होने देना, आज से ही आशा उत्साह प्रेरणा एवं शक्ति को अपने जीवन में स्थान दीजिए तथा बन जाइए अपने जहाज के कप्तान स्वयं साथियों ।

यह आप भी जानते हैं कि बीज से अंकुर तभी फूटता है, जब वह फटता है और बाद में यही अंकुर एक दिन एक बड़ा पेड़ बन जाता है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि हमें अपने गुणों के विकास में सहायक अवसरों को बराबर खोजते रहना चाहिए। विकास का अर्थ ही होता है कि लगातार बढ़ते चले जाना और अपने साथ समाज के वंचित लोगों को भी आगे बढ़ाते चलना। याद रखना कैसा भी भय ,कैसा भी लोभ , कैसी भी चिंता यदि आपके बढ़ते कदमों को नहीं रोक पाती तो समझ लेना कि आपकी प्रगति भी नहीं रुक सकती आप एक दिन सफल होकर ही रहेंगे। इसीलिए मैं कह रहा हूं कि आप अपने सुप्त शक्तियों को जगा दो अपने आपको और अपनी शक्ति को पहचानो, जो अपनी शक्तियों को पहचान लेता है, वही एक दिन सफलता के शिखर पर पहुंचता है, बाकी लोग तो केवल समय पूरा करने के लिए इस धरती पर आते हैं और गुमनामी की मौत मर कर भुला दिए जाते हैं ।

 

Friday, September 18, 2020

  आज परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा फेक न्यूज़ से है

जी दोस्तों आज देखा जाए तो झूठी खबरें किसी परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा बनता जा रहा है। जब दोस्तों कोविड-19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के शुरुआती दिनों में देशव्यापी लॉकडाउन किया गया तो हम सभी ने प्रवासी मजदूरों के पलायन की तस्वीरें देखें, लेकिन अब केंद्र सरकार के मुताबिक कहा जा रहा है कि फेक न्यूज़ की वजह से ही इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर पलायन के लिए मजबूर हो गए थे मतलब की हमारे भारत के लिए आज फेक न्यूज़ सबसे बड़ा खतरा बन गया है । दोस्तों आज फेक न्यूज़ को आप तक पहुंचाने का सबसे बड़ा भूमिका सोशल मीडिया निभा रहा है, यह आप भी देख रहे हैं कि फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे ऐप फेक न्यूज़ फैलाने का माध्यम बन चुके हैं और यह किसी परमाणु बम के धमाके से भी ज्यादा खतरनाक है। आज दोस्तों इन्हीं फेक न्यूज की वजह से कई जगहों पर हम देखते हैं कि दंगे हो जा रहे हैं, किसी बड़ी हस्ती के निधन के बारे में झूठी खबर फैला दी जाती है, और तो और आज फेक न्यूज़ के वजह से ही दो देश युद्ध के करीब पहुंच जाते हैं। दोस्तों आज यह फेक न्यूज़ एक ही समय में लाखों करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रहा है।

याद करो आप जब 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था, उसी प्रकार आज दोस्तों हम देख रहे हैं कि इस वैश्विक महामारी के वक्त भी कुछ अराजक तत्वों के द्वारा फेक न्यूज़ का बम गिराने का प्रयास किया जा रहा है। आप ही देखो ना जब देश में लॉक डाउन का ऐलान किया गया था तब प्रधानमंत्री जी ने कहा था जो जहां पर है वह वहीं पर रहे लेकिन कुछ अराजक तत्वों ने झूठी खबर फैला दी और अगले ही दिन दिल्ली से हजारों लोग अपने गांव जाने के निकल पड़े थे।

इस प्रकार से झूठी खबर लॉकडाउन के दौरान फैला दिया गया कि मजदूर लोग घर में रहेंगे तो खाना पानी नहीं मिलेगा और लॉकडाउन अभी बहुत लंबा चलेगा, जिसके कारण ही दोस्तों प्रवासी मजदूर लोग घबरा गए और फिर वह पलायन करने के लिए मजबूर हो गए। जिसमें हम सभी ने देखा कि बहुत से प्रवासी मजदूर अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में ही अपनी जान गवा बैठे कोई प्रवासी मजदूर किसी ट्रेन के नीचे दबा तो कोई मजदूर किसी ट्रक के नीचे दबकर मरा तो कहीं कहीं देखा गया कि हजारों किलोमीटर पैदल चलते हुए प्रवासी मजदूर भूखे प्यासे मारे गए, और सभी राजनैतिक दल इस विषम परिस्थिति में भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे थे।

दोस्तों हमारे भारत में लगभग 4 करोड़ प्रवासी मजदूर है, यह वह लोग हैं जो अपने घर से दूर किसी और राज्य में जाकर नौकरी किसी कंपनी में करते हैं। अब आप ही सोचो इस लॉकडाउन के दौरान लगभग 75 लाख  मजदूर वापस अपने घर लौट चुके है यानी कि हर 5 प्रवासी मजदूरों में से एक वापस अपने राज्य वापस चला गया है। दोस्तों याद रखना आज फेक न्यूज़ से सिर्फ दंगे ही नहीं हो रहे हैं बल्कि इस फेक न्यूज़ के कारण किसी देश की अर्थव्यवस्था और समाज को भी काफी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। आजकल देखो ना बड़े देश इसी तरीके का युद्ध कर रहे हैं जिसे आप हाइब्रिड युद्ध भी कह सकते हैं। देखने में आता है कि जिस देश को लक्ष्य बनाकर फेक न्यूज़ का यह हमला किया जाता है उसमें उस देश का मीडिया विपक्षी नेता और विपक्षी बुद्धिजीवी सभी शामिल होते हैं। लेकिन इसमें नुकसान देश के आम जनता और निचले दबे कुचले प्रवासी मजदूरों को ही होता है।

आप सभी से आज मैं विनम्र निवेदन करके अनुरोध कर रहा हूं कि किसी खबर को तब तक शेयर ना कीजिए जब तक आप उसकी सच्चाई को लेकर पूरी तरह भरोसा ना कर ले, मतलब कहने का मेरा है कि आंख बंद करके किसी अटैचमेंट को डाउनलोड या ओपन न करें और अगर आपने किसी भड़काने वाली खबर को शेयर किया तो इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के आर्टिकल 66 -A के के तहत आपको 3 साल की जेल भी हो सकती है। यह बात आप को डराने के लिए मैंने नहीं कहा बल्कि 137 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में आज फेक न्यूज़ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बनती जा रही है, इसलिए हम सभी का यह नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसे झूठी खबरों को आप ना फैलने दे नाही फैलाएं।।

 

धर्मनिष्ठ तथा धर्मभीरु में अंतर




धर्मनिष्ठ वह होता है जो श्रद्धा से धर्म को मानता है। जबकि धर्मभीरु का मतलब धर्म से डरने वाला होता है। धर्मभीरु भयवश धर्म को मानता है।

         धर्मनिष्ठ व्यक्ति धर्म के असली अर्थ और महत्व को भलीभांति जानता और समझता है, किंतु धर्मभीरु व्यक्ति धर्म के अर्थ और महत्व को समझे बिना ही धर्म का पालन करता है।

         धर्मनिष्ठ व्यक्ति मानवता के पालन को ही सबसे बड़ा धर्म मानता है। करुणा, क्षमा, सत्यवादन, चोरी न करना, अहिंसा, किसी को शारीरिक या मानसिक कष्ट न देना, दूसरों की सहायता करना, माता-पिता एवं गुरुजनों का आदर करना आदि मानवीय गुण और जीवन के मूलभूत सिद्धांत, धर्मनिष्ठ व्यक्ति के स्वभाव और चरित्र में निहित होते हैं। किंतु धर्मभीरु व्यक्ति धार्मिक-आध्यात्मिक पुस्तकों और गुरुजनों द्वारा भयभीत कराए जाने के कारण इन मानवीय गुणों और जीवन के मूलभूत सिद्धांतों का भयवश अनुपालन करता है।

          शायद ऐसे लोगों के लिए ही नर्क आदि लोकों की कल्पना की गई है और धार्मिक पुस्तकों में भांति-भांति के नर्कों और उनकी भांति-भांति की यातनाओं का वर्णन कर, ऐसे व्यक्तियों को धर्म के मार्ग पर चलाने का प्रयास किया गया है। अच्छे-बुरे कर्मों को पाप-पुण्य की श्रेणी में बांटने और स्वर्ग-नरक जाने की अवधारणा भी इन्हीं धर्मभीरु व्यक्तियों के कारण संभव हुई है।

         संत-महात्माओं के द्वारा दिए गए उपदेशों को एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति श्रद्धा से सुनता है, प्रशन्नचित्त होकर उनके द्वारा बताई हुई अच्छी और प्रेरणादायक बातों का चिंतन-मनन करता है और उनको अपने जीवन में निर्भीकता से उतारता है। किंतु धर्मभीरु व्यक्ति इन उपदेशों और उनके द्वारा बताई हुई अच्छी और प्रेरणादायक बातों का अनुपालन भयवश और स्वर्ग आदि प्राप्त करने के लालच में करता है। इसीलिए जनसामान्य में लोक-परलोक की चिंता रहती है।

          धर्मनिष्ठ व्यक्ति निस्वार्थ भाव से कर्तव्य का पालन करता है। किंतु धर्मभीरु व्यक्ति के प्रत्येक कर्म में स्वार्थ की भावना निहित होती है, वह धर्म का पालन अपने पुण्य कर्मों के खाते को बढ़ाने के लिए ही करता है। किंतु ऐसी भावना के कारण कभी-कभी वह जिन्हें पुण्य कर्म समझकर करता है, अनजाने में वही उसके पाप कर्म बन जाते हैं।

ऐसे लोगों के लिए ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है--

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।

 

इसका तात्पर्य यही है कि व्यक्ति को धर्मनिष्ठ होते हुए बिना कर्मफल की इच्छा के अपने कर्तव्य का पालन करते रहना चाहिए। उसे धर्मभीरु बनकर अच्छे कर्मों यानी पुण्य कर्मों के फलस्वरूप मिलने वाले स्वर्ग आदि लोकों के लालच में धर्म का पालन नहीं करना चाहिए।

      अतः स्पष्ट है कि व्यक्ति को धर्मनिष्ठ होना चाहिए न कि धर्मभीरु।

 

रंजना मिश्रा ©️®️

कानपुर, उत्तर प्रदेश


 

 




साक्षात विश्वकर्मा की अद्भुत स्मृति 

सृष्टि के आदिकाल, जो पाषाण युग कहलाता है, में आज का यह मानव समाज वनमानुष के रूप में वन-पर्वतों पर इधर से उधर उछल-कूद कर रहा था। मनुष्य की उस प्राकृतिक अवस्था में खाने के लिए कंदमूल, फल और पहनने को वलकल तथा निवास के लिए गुफाएं थीं। उस प्राकृतिक अवस्था से आधुनिक अवस्था में मनुष्य को जिस शिल्पकला विज्ञान ने सहारा दिया, उस शिल्पकला विज्ञान के अधिष्ठाता एवं आविष्कारक महर्षि आचार्य विश्वकर्मा थे। शिल्प विज्ञान प्रवर्तक अथर्ववेद के रचयिता कहे जाते हैं। अथर्ववेद में शिल्पकला विज्ञान के अनेकों आविष्कारों का उल्लेख है। पुराणों ने भी इसको विश्वकर्मा रचित ग्रंथ माना है, जिसके द्वारा अनेकों विद्याओं की उत्पत्ति हुई। 


मानव जीवन की यात्रा का लंबा इतिहास है और इसका बहुत लंबा संघर्ष है। भगवान विश्वकर्मा ने उसे सबसे पहले शिक्षित और प्रशिक्षित किया ताकि उसे विभिन्न शिल्पों में प्रशिक्षित किया जा सके। इस तरह मानव की संस्कृति और सभ्यता का प्रथम प्रवर्तक भगवान विश्वकर्मा जी हुए जिसे वेदों ने स्वीकार किया है और उनकी स्तुति की है।


विश्वकर्मा ने मानव जाति को शासन-प्रशासन में प्रशिक्षित किया। उन्होंने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का आविष्कार और निर्माण किया, जिससे मानव जाति सुरक्षित रह सके। उन्होंने अपनी विमान निर्माण विद्या से अनेक प्रकार के विमानों के निर्माण किए जिन पर देवतागण तीनों लोकों में भ्रमण करते थे। उन्होंने स्थापत्य कला से शिवलोक, विष्णुलोक, इंद्रलोक आदि अनेक लोकों का निर्माण किया। भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, इंद्र के वज्र और महादेव के त्रिशूल का भी उन्होंने निर्माण किया जो अमोघ अस्त्र माने जाते हैं। आज शिल्पकला विज्ञान के जो भी चमत्कार देखने को मिलते हैं, वे सभी भगवान विश्वकर्मा की देन हैं। 


भारतवर्ष के सामने अखंडता, सांप्रदायिक सद्भावना तथा सामाजिक एकता की समस्याओं का समाधान विश्वकर्मा दर्शन में है। भारत को स्वावलंबी और स्वाभिमानी राष्ट्र बनाने की जो बात कही जाती है, उसका समाधान भी विश्वकर्मा के शिल्पकला विज्ञान में ही है। यदि इसको विकसित किया जाए तो भारत से बेकारी और गरीबी दूर हो जाएगी और पृथ्वी पर भारत का एक अभिनव राष्ट्र के रूप में अवतरण होगा। सभी देवताओं की प्रार्थना पर विश्वकर्मा ने पुरोहित के रूप में पृथ्वी पूजन किया जिसमें ब्रह्या यजमान बने थे। पुुरोहित कर्म का प्रारंभ तभी से हुआ।


सभी देवताओं ने भगवान विश्वकर्मा को ही सक्षम देव समझा तथा उन सब के आग्रह पर वह पृथ्वी के प्रथम राजा बने, इन सभी चीजों का जिक्र भारतवर्ष के वेद पुराणों में है। कश्यप मुनि को राज-सत्ता सौंपकर विश्वकर्मा भगवान शिल्पकला विज्ञान के अनुसंधान के लिए शासन मुक्त हो गए क्योंकि भारत के आर्थिक विकास और स्वावलंबन के लिए यह आवश्यक था। कुछ दिनों के शासन में विश्वकर्मा भगवान ने शासन को सक्षम, समर्थ तथा शक्तिशाली बनाने के अनेकों सूत्रों का निर्माण किया जिस पर गहराई से शोध करने की आज आवश्यकता है। 


 


प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"


शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार


Thursday, September 17, 2020

दिल्ली की चालिस प्रतिशत आबादी का हिस्सा बेघर क्यों?


घर हम सभी की जरूरत या जिंदगी का सबसे बड़ा सहारा। घर का सपना हम सभी देखते हैं ओर उसे पूरा करने के लिए हर कोशिश करते हैं। हमारे जीवन में जितना बड़ा सहारा घर का है उतना अधिक सहारा तो अपने कहें जाने वाले भी नहीं दे पाते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब सत्ता में पहली बार आए तब उनका यही कहना था कि सभी के पास अपना मकान होना चाहिए। जिसके लिए उन्होंने सस्ते घरों की योजना भी निकाली थीं, ताकि सभी को घर मिल सकें।



किंतु आज जब कोविड 19 जैसी बिमारी से परेशान हैं और आर्थिक आपदा झेल रहे हैं। तब वह गरीब लोग जो अपने जीवन चलाने के लिए हर रोज कार्य करते हैं। उनको एक ओर जहां बेरोजगारी के चलते खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके सर से छत छिने के आदेश ने जीना मुश्किल कर दिया है।  31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि


"यदि कोई अतिक्रमण के संबंध में कोई अंतरिम आदेश दिया जाता है, जो रेलवे पटरियों के पास किया गया है, तो यह प्रभावी नहीं होगा।" 



जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के भीतर दिल्ली में 140 किलोमीटर लंबी रेल पटरियों के आसपास की लगभग 48 हजार झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण हटाने के काम में किसी भी तरह के राजनीतिक दबाव और दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण के संबंध में यदि कोई अदालत अंतरिम आदेश जारी करती है तो यह प्रभावी नहीं होगा।



रेलवे और हम सब की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का विरोध करना सही नहीं है। किंतु इस तरह से उनको नोटिस दे कर हटाने तीन महीने में हटाने का फैसला कहा तक उचित है यह भी विचार करना जरूरी है। राजनीति हमारे देश में आज बहुत ताकतवर हो चुकी है और यही राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते हैं, जो चुनाव जीतने के लिए इनके पास जाते हैं और वोट मांगते हैं। सवाल यह नहीं ‌है कि उनको वहां से क्यों हटाया जा रहा है। सवाल यह है कि जब यह लोग ‌वह बस रहें थें तब सरकार और रेलवे ने उनको रोका क्यों नहीं।  यदि वह वहां ग़ैर क़ानूनी तरीके से रह रहे थें तो उनके घर में बिजली पानी क्यों सरकार द्वारा पहुंचाया जा रहा है। जिस स्थान पर रहना गलत है उस स्थान के पत्ते पर वोटर कार्ड और आधार कार्ड क्यों बनाए गए। सरकारें चुनाव के समय वोट मांगने के लिए की वादें करतीं हैं। ऐसा ही एक वादा मोदी सरकार ने भी चुनाव के समय करते हुए कहा, जहां झुग्गी वहां मकान। किंतु आज जब 48 हजार लोग बेघर हो रहें हैं, तब सभी राजनीतिक पार्टियां राजनीति कर रही है।


आम जनता कोई आम नहीं है जिसे चुनाव के समय इस्तेमाल किया जाए और फिर बाद में उसे कचड़ा समझ कर फैंक दिया जाएं। सरकारें सालों से वादा कर रहीं हैं, लोगों को‌ सपना दिखा रहीं हैं घर मिलने का। आज तक घर नहीं मिलें लेकिन लोग बेघर जरूर हो रहें हैं। रेलवे की सुरक्षा जरूरी है। किंतु उन सभी लोगों को बेघर होने से बचाना भी जरूरी है जिन्होने सालों लगा कर अपने लिए एक छत बनाई है। राजनीति पार्टी का फ़र्ज़ केवल वादे कर वोट लेना नहीं होता है। उनको अपनी जिम्मेदारी समझ कर आज अपने फर्ज पूरे करने चाहिए ना कि राजनीति करतें हुए एक दूसरे पर छींटाकशी।


हम सभी को आज इंसानियत दिखा कर, उन 48 हजार लोगों का दर्द और तक़लिफों को समझना चाहिए। वह गरीब है, किन्तु इंसान है उनको भी हक है। हम तर्क दे सकते हैं कि गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीन पर कब्जा कर के रह रहे थें तो हटाया जाना गलत कहां है। किंतु यह तर्क देते हुए हम यह नहीं भूल सकते हैं कि वह भी नागरिक हैं उस देश और राज्य के जिसके हम है। दिल्ली की चालिस प्रतिशत आबादी उन झुग्गियों में रहतीं हैं जिन्हें ग़ैर क़ानूनी कह कर हम सभी गिरवाने की सोच शहर को साफ-सुथरा और सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जिस प्रकार हम सरकारों के बनाएं कानूनों का विरोध करते है, क्या हम उसी तरह आज सरकार को अपने दिए वादों को याद दिलाने के लिए क्यों नहीं कहते हैं। सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है ताकि बेघर हो‌ रहें लोगों को सरकार घर दें। उनको चुनाव में समय याद‌ करने वाली हमारी सरकार आज  अपनी जिम्मेदारी निभाएं।



           राखी सरोज


 


 



फेसबुक का विवाद एवं सच






भारत में अपनी भूमिका को लेकर फेसबुक ने औपचारिक रूप से यह स्पष्ट किया है कि सामग्री को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है, उसका निर्वाह सही तरीके से किया जा रहा है और वह एक खुला, पारदर्शी और पक्षपात- रहित मंच है। फेसबुक के भारत-प्रमुख अजित मोहन ने जो नोट लिखा है, उसके नीचे पाठकों की प्रतिक्रियाएं पढ़ें, तो लगेगा कि फेसबुक पर कम्युनिस्टों और इस्लामिक विचारों के प्रसार का आरोप लगाने वालों की संख्या भी कम नहीं है। फेसबुक ही नहीं ट्विटर, वॉट्सएप और सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर इन दिनों उन्मादी टिप्पणियों की बहुतायत है। क्यों हैं ये टिप्पणियाँ? क्या ये वे दबी बातें हैं, जिन्हें खुलकर बाहर आने का मौका सोशल मीडिया के कारण मिला है?  

ऐसे में सवाल दो हैं। क्या फेसबुक ने अपने आर्थिक हितों के लिए भारत में सत्ताधारी राजनीतिक दल से कोई गठजोड़ किया है या जो कुछ सामाजिक विमर्श में चलता है, वही सामने आ रहा है? सोशल मीडिया के सामने मॉडरेशन एक बड़ी समस्या है। एक तरफ सामाजिक ताकतें हैं, दूसरी तरफ राजनीतिक शक्तियाँ। कोई भी कारोबारी सरकार से रिश्ते बिगाड़ भी नहीं सकता। आज बीजेपी की सरकार है। जब कांग्रेस की सरकार थी, तब भी फेसबुक ने सरकार के साथ मिलकर काम किया ही था।

 

भारत से लेकर अमेरिका तक सोशल मीडिया को लेकर राजनीतिक रस्सा-कशी चल रही है। जैसे सवाल सोशल मीडिया की भूमिका को लेकर हैं, वैसे ही सवाल मुख्यधारा के मीडिया को लेकर भी हैं। वॉलस्ट्रीट जर्नल में भी इन दिनों समाचार और विचार के दो धड़ों के बीच टकराव चल रहा है, जिसकी तरफ हमारे पाठकों का ध्यान अभी गया नहीं है। अखबारों के संपादकीय विभागों के भीतर वैचारिक टकराव है। सूचना के स्वरूप, सामग्री और उसके माध्यमों में भारी बदलाव आ रहा है। इसके कारण भारत में ही नहीं संसार भर में लोगों का कार्य-व्यवहार बदल रहा है।

 

वैचारिक टकरावों के पीछे वह सामाजिक पृष्ठभूमि है, जिसके अंतर्विरोध मुख्यधारा के मीडिया ने सायास दबाकर रखे थे, पर सोशल मीडिया के खुलेपन ने उन अंतर्विरोधों को जमकर उभारा है। बहरहाल फेसबुक के वर्तमान प्रकरण पर वापस आएं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में फेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी डायरेक्टर आंखी दास और दो अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है, जिसमें पत्रकार को धमकाने तथा धार्मिक उन्माद फैलाने और सांप्रदायिक द्वेष फैलाने के आरोप हैं। उससे पहले 16 अगस्त को ही आंखी दास ने दिल्ली साइबर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि वॉलस्ट्रीट जर्नल की खबर प्रकाशित होने के बाद उनको जान से मारने की धमकी दी जा रही है।

 

यह मामला दो व्यक्तियों के बीच विवाद का नहीं है, बल्कि सवाल एक संस्था और सोशल मीडिया की भूमिका और भारत में उसके राजनीतिक निहितार्थ का है। गत 14 अगस्त को अमेरिकी अखबार ‘वॉलस्ट्रीट जर्नल’ में प्रकाशित रिपोर्ट में फेसबुक के अनाम सूत्रों के साथ साक्षात्कारों का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि भारतीय नीतियों से जुड़े फेसबुक के वरिष्ठ अधिकारी ने सांप्रदायिक आरोपों वाली पोस्ट के मामले में तेलंगाना के एक भाजपा विधायक पर स्थायी पाबंदी को रोकने से जुड़े मामले में दखलंदाजी की थी। मोटा आरोप है कि सत्तापक्ष के प्रति नरमी बरती जाती है और विवादित सामग्री को हटाने की नीति पर ठीक से अमल में नहीं होता।

 

ये विदेशी संस्थाएं हैं और सोशल मीडिया को लेकर कोई वैश्विक व्यवस्था नहीं है। वे हमारे नियमों को मानने पर बाध्य नहीं हैं, पर उन्हें कारोबार चलाना होगा, तो हमारी बात माननी भी होगी। चीन ने पश्चिमी सोशल मीडिया को अपने यहाँ आने से रोक रखा है। ऐसे में भारत सबसे बड़ा बाजार है। इस बाजार में बने रहने के लिए इन कंपनियों को सरकार के साथ बेहतर रिश्ते बनाने ही होंगे। सोशल मीडिया से जुड़ी समस्याएं कई हैं। इनमें एक है हेट स्पीच। हेट स्पीच यानी किसी सम्प्रदाय, जाति, वर्ग, भाषा वगैरह के प्रति दुर्भावना। खासतौर से राजनीतिक रुझान से उपजी दुर्भावना। इसके साथ जुड़े हैं फेक न्यूज के सवाल।

 

ये सवाल केवल भारत में ही नहीं उठे हैं। सभी देशों में ये अलग-अलग संदर्भों में उठे हैं या उठाए जा रहे हैं। भारत में संसदीय समिति के सामने मामला इन शिकायतों के आधार पर गया था कि ट्विटर इंडिया कुछ खास हैंडलों के प्रति कड़ा रुख अख्तियार करता है और कुछ के प्रति नरमी। ऐसा ही आरोप अब फेसबुक पर है। जब अदालतों के फैसलों तक पर विवाद हैं, तब सोशल मीडिया के हैंडलों की टिप्पणियों और उनपर की गई कार्रवाइयों को लेकर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। इन टिप्पणियों से राजनीतिक माहौल बनता है और बनता जा रहा है।  

 


 

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश




 

 




कोरोना वैक्सीन 2024 के अंत तक सभी को मिलेगी


                          वीरेन्द्र बहादुर सिंह


देश में इस समय कोरोना का कहर शिखर पर है। कोरोना वायरस के बारे में लापरवाही बरतने वाले चाहे वे अमीर हों या गरीब, राजनेता हों या सामान्य आदमी, मंत्री हों या संत्री, किसी को भी नहीं छोड़ रहा हैै। यह निश्चित हो गया है कि आप ने जरा भी लापरवाही की नहीं कि आप कोरोना का शिकार हो गए। सोमवार से देश में लोकसभा का मानसून सत्र शुरू हो गया है। लोकसभा और राज्यसभा का सत्र शुरू होने के पहले कोरोना टेस्ट जरूरी होने के कारण मानसून सत्र के पहले ही दिन कोरोना की जांच में दोनोें सदनों में 26 सांसद कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इसमें से 18 सांसद लोकसभा और 8 सांसद राज्यसभा के थे। लोकसभा के पॉजिटिव सांसदों में 12 सांसद भाजपा, शिवसेना और वाईआरएस के 2-2 सांसद और आरएलपी का एक सांसद है। एक साथ इतने सारे सांसदों के कोरोना पॉजिटिव होने से संसद में भी भय का माहौल बन गया है। संसद में  सोशल डिस्टेसिंग का खास ख्याल रखा गया है। दो सांसदों के बीच 5 से 6 फुट की दूर रखी गई है यानी दो सांसद कम से कम इतनी दूरी पर बैठेंगे। कोरोना पॉजिटिव पाए जाने वाले सांसादों में मीनाक्षी लेखी, अनंत ठेगडे और दिल्ली के प्रवेश वर्मा भी शमिल हैं। 


देशमेंइससमयरोजाना 90 हजारसेअधिककोरोनापॉजिटिवमामलेआरहेहैं।मंगलवारको 90027 मामलेसामनेआएथे।इससेदेशमेंकुलकोरोनापॉजिटिवकीसंख्या 50 लाखके पार होगईहै।मंगलवार कोकोरोनासेमरनेवालोंकीसंख्या 81989 होगईहै।देशमेेंइससमयकोरोनापॉजिटिवरोगियोंकीसंख्या 9,90,061 है।जिसमेंसे 60 प्रतिशतरोगीदेशकेपांचराज्यों- महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेशऔरतमिलनाडुकेहैं।इन 60 प्रतिशतरोगियोंमें 21-9 प्रतिशतरोगीमहाराष्ट्रके, 11-7 प्रतिशतरोगीआंध्रप्रदेशके, 10-4 प्रतिशतरोगीतमिलनाडुके, 9-5 प्रतिशतरोगीकर्नाटकके



कृषि में कौशल विकास की चुनौतियां 

हम सभी जानते हैं कि दोस्त किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कौशल और ज्ञान दो प्रेरक बल होते हैं। हमारा भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ ही वैश्विक स्तर पर भी सबसे अधिक युवाओं वाला देश भी है। कृषि क्षेत्र में हमने आजादी के बाद एक लंबा  संघर्ष भरा सफर तय किया है। आज दोस्त हरित क्रांति तथा कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान तथा प्रसार ने भारत को न सिर्फ खाद्यान्न में  बल्कि दुग्ध उत्पादन में भी विश्व के शिखर में खड़ा कर दिया है और आज भारत फल एवं सब्जियों में दूध , मसाले एवं जुट में वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा उत्पादक देश है। अगर हम धान एवं गेहूं में देखें तो हमारा भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं वैश्विक स्तर पर भारत 80% से अधिक फसलों के सबसे बड़ी उत्पादकों में से आज एक है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हरित क्रांति रणनीति द्वारा भारत में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाने और देश की खाद्य सुरक्षा में सुधार लाने पर जोर दिया गया था, जो आज अनाजों से हमारा भंडारण भरा हुआ है। परंतु दोस्तों आज समय की यह मांग है की खाद्य सुरक्षा में सुधार के साथ-साथ अधिक आय अर्जित कराना भी होगा किसानों को क्योंकि आप यह देख रहे हैं कि आए दिन हमारे अन्नदाता आत्महत्या कर रहे हैं। इसके साथ ही पर्याप्त भंडारण क्षमता को भी और अधिक सुदृढ़ करना होगा क्योंकि हम यह भी देख रहे हैं कि पर्याप्त भंडारण नहीं होने के कारण भी अनाज बर्बाद हो जाते हैं कभी-कभी तो राजनीतिक उदासीनता के कारण भी अनाज गोदामों में सड़ते रहते हैं लेकिन हमारा देश भुखमरी में सबसे ऊपर बना रहता है इन सब में सुधार करने की अत्यंत आवश्यकता है।

आप ही देखो ना दोस्तों जहां एक तरफ हमारा भारत ने विश्व में अपने आप को कृषि उत्पादन में साबित किया है वही हम देख रहे हैं दूसरी तरफ हमारे देश में अधिकतर किसान कृषि त्यागना चाहते हैं तथा युवा वर्ग तो गांव में कृषि को त्याग कर शहरो में नौकरी करने हेतु बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। आज दोस्त बढ़ती आबादी, घटती उपजाऊ कृषि भूमि , कम होते रोजगार तथा निवेश एवं बाजार के जोखिमो  ने कृषि क्षेत्र में कार्यरत युवाओं के समक्ष कृषि को लाभकारी बनाने में कहीं ना कहीं बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। अगर सरकार अपनी उदासीनता वाली भावना को त्याग कर युवाओं को प्रेरित करें तो कृषि  में कौशल विकास इन चुनौतियों का उचित समाधान बन सकता है किंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कृषि क्षेत्र में युवाओं का कौशल विकास अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।

130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में दोस्त 70.7 प्रतिशत लोग आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं तथा 57.8 प्रतिशत लोग आजीविका हेतु कृषि से ही जुड़े हुए हैं। लेकिन देख रहे हैं धीरे-धीरे की कृषि में कार्यरत लोगों की संख्या गिरती जा रही है। अगर आंकड़े देखें तो 1999 से लगातार प्रतिदिन 2000 किसान कृषि का त्याग कर रहे हैं तथा हमारे देश के आधे से ज्यादा किसान कृषि को त्याग कर मजदूर बन गए हैं। आप ही देखो ना आज देश के कुल कार्यबल में निरंतर वृद्धि हुई लेकिन ध्यान से देखें तो कृषि का कुल कार्यबल में योगदान लगातार घटता चला जा रहा है। ऐसे में आप सोचो जब हमारे अन्नदाता ही  नहीं होंगे तब हम सब खाएंगे क्या?

याद रखना किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कौशल और ज्ञान दो प्रबल होते हैं। वर्तमान परिदृश्य माहौल में देखे तो उभरती अर्थव्यवस्था की मुख्य चुनौती से निपटने में वे देश आगे हैं जिन्होंने आज कौशल का उच्च स्तर प्राप्त कर लिया है । आज देखे तो भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा उत्पादक आयु समूह में है क्योंकि भारत के पास 60.5 करोड़ लोग 25 वर्ष से कम आयु के हैं। दोस्तों यही भारत के लिए सुनहरा अवसर प्रदान करेगा अगर देश के नीति निर्माताओं ने युवाओं को कौशल विकास में आगे बढ़ने के लिए मदद करें तो, परंतु हम देख रहे हैं यह आज एक बड़ी चुनौती है। हमारी अर्थव्यवस्था को दोस्त इस युवा वर्ग का लाभ तभी मिलेगा जब हमारा जनसंख्या विशेषकर युवा स्वास्थ्य ,शिक्षित और कुशल होंगे। आंकड़ों के मुताबिक तो हम देख रहे हैं कि कृषि क्षेत्र में कार्यरत कार्यबल वर्ष 2022 में 33 प्रतिशत  तक घटकर मात्र 19 को रह जाएगा वही आंकड़ों के मुताबिक दूसरी तरफ कुल कार्यबल का मात्र 18.5 प्रतिशत ही कृषि में औपचारिक रूप से कुशलता प्राप्त करेगा।

दोस्तों आज किसानों को बदहाली से खुशहाली की स्थिति में लाने की दिशा में हमें सभी संभव प्रयास किए जाने की जरूरत है नहीं तो फिर भूखे मरना होगा। इसीलिए भारत सरकार की 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की पहल एक महत्वपूर्ण एवं उपयुक्त कदम है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु हमें विकास कार्यक्रम , तकनीकी तथा नीतियों का कुशल समन्वय कृषि क्षेत्र में कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। पिछले वर्ष ही राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के सर्वेक्षण के अनुसार किसानों की औसत आय 6426 रुपए प्रतिमाह है और इस आय में भी किसान 3078 रुपए कृषि से, 2069 रुपए मजदूरी /पेंशन 765 रुपए पशुधन व 514 रुपए गैर कृषि कार्यों से अर्जित करता है । आज भी सीमांत और छोटे किसान फसल उत्पादन में तेजी से तकनीकी विकास के साथ तालमेल रखने में असमर्थ हैं। अब आप ही सोच सकते हो कि 6426 रुपए  प्रति माह कमाने वाला किसान आखिर कैसे अपना और अपने परिवार का पालन करेगा। हमें किसानों के आय को दुगनी करने के साथ ही कौशल में भी उनको निपुण करना होगा, जिस प्रकार से हम देखते हैं कि किसानों के फलों सब्जियों और अनाजों का उचित मूल्य नहीं मिलता उस पर भी हमें विशेष तौर पर ध्यान देना होगा।

सबसे जरूरी चीज है इन सभी योजनाओं का क्रियान्वयन इमानदारी पूर्वक किया जाए।

 

कृषि में कौशल विकास की चुनौतियां 

हम सभी जानते हैं कि दोस्त किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कौशल और ज्ञान दो प्रेरक बल होते हैं। हमारा भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ ही वैश्विक स्तर पर भी सबसे अधिक युवाओं वाला देश भी है। कृषि क्षेत्र में हमने आजादी के बाद एक लंबा  संघर्ष भरा सफर तय किया है। आज दोस्त हरित क्रांति तथा कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान तथा प्रसार ने भारत को न सिर्फ खाद्यान्न में  बल्कि दुग्ध उत्पादन में भी विश्व के शिखर में खड़ा कर दिया है और आज भारत फल एवं सब्जियों में दूध , मसाले एवं जुट में वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा उत्पादक देश है। अगर हम धान एवं गेहूं में देखें तो हमारा भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं वैश्विक स्तर पर भारत 80% से अधिक फसलों के सबसे बड़ी उत्पादकों में से आज एक है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हरित क्रांति रणनीति द्वारा भारत में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाने और देश की खाद्य सुरक्षा में सुधार लाने पर जोर दिया गया था, जो आज अनाजों से हमारा भंडारण भरा हुआ है। परंतु दोस्तों आज समय की यह मांग है की खाद्य सुरक्षा में सुधार के साथ-साथ अधिक आय अर्जित कराना भी होगा किसानों को क्योंकि आप यह देख रहे हैं कि आए दिन हमारे अन्नदाता आत्महत्या कर रहे हैं। इसके साथ ही पर्याप्त भंडारण क्षमता को भी और अधिक सुदृढ़ करना होगा क्योंकि हम यह भी देख रहे हैं कि पर्याप्त भंडारण नहीं होने के कारण भी अनाज बर्बाद हो जाते हैं कभी-कभी तो राजनीतिक उदासीनता के कारण भी अनाज गोदामों में सड़ते रहते हैं लेकिन हमारा देश भुखमरी में सबसे ऊपर बना रहता है इन सब में सुधार करने की अत्यंत आवश्यकता है।

आप ही देखो ना दोस्तों जहां एक तरफ हमारा भारत ने विश्व में अपने आप को कृषि उत्पादन में साबित किया है वही हम देख रहे हैं दूसरी तरफ हमारे देश में अधिकतर किसान कृषि त्यागना चाहते हैं तथा युवा वर्ग तो गांव में कृषि को त्याग कर शहरो में नौकरी करने हेतु बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। आज दोस्त बढ़ती आबादी, घटती उपजाऊ कृषि भूमि , कम होते रोजगार तथा निवेश एवं बाजार के जोखिमो  ने कृषि क्षेत्र में कार्यरत युवाओं के समक्ष कृषि को लाभकारी बनाने में कहीं ना कहीं बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। अगर सरकार अपनी उदासीनता वाली भावना को त्याग कर युवाओं को प्रेरित करें तो कृषि  में कौशल विकास इन चुनौतियों का उचित समाधान बन सकता है किंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कृषि क्षेत्र में युवाओं का कौशल विकास अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।

130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में दोस्त 70.7 प्रतिशत लोग आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं तथा 57.8 प्रतिशत लोग आजीविका हेतु कृषि से ही जुड़े हुए हैं। लेकिन देख रहे हैं धीरे-धीरे की कृषि में कार्यरत लोगों की संख्या गिरती जा रही है। अगर आंकड़े देखें तो 1999 से लगातार प्रतिदिन 2000 किसान कृषि का त्याग कर रहे हैं तथा हमारे देश के आधे से ज्यादा किसान कृषि को त्याग कर मजदूर बन गए हैं। आप ही देखो ना आज देश के कुल कार्यबल में निरंतर वृद्धि हुई लेकिन ध्यान से देखें तो कृषि का कुल कार्यबल में योगदान लगातार घटता चला जा रहा है। ऐसे में आप सोचो जब हमारे अन्नदाता ही  नहीं होंगे तब हम सब खाएंगे क्या?

याद रखना किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कौशल और ज्ञान दो प्रबल होते हैं। वर्तमान परिदृश्य माहौल में देखे तो उभरती अर्थव्यवस्था की मुख्य चुनौती से निपटने में वे देश आगे हैं जिन्होंने आज कौशल का उच्च स्तर प्राप्त कर लिया है । आज देखे तो भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा उत्पादक आयु समूह में है क्योंकि भारत के पास 60.5 करोड़ लोग 25 वर्ष से कम आयु के हैं। दोस्तों यही भारत के लिए सुनहरा अवसर प्रदान करेगा अगर देश के नीति निर्माताओं ने युवाओं को कौशल विकास में आगे बढ़ने के लिए मदद करें तो, परंतु हम देख रहे हैं यह आज एक बड़ी चुनौती है। हमारी अर्थव्यवस्था को दोस्त इस युवा वर्ग का लाभ तभी मिलेगा जब हमारा जनसंख्या विशेषकर युवा स्वास्थ्य ,शिक्षित और कुशल होंगे। आंकड़ों के मुताबिक तो हम देख रहे हैं कि कृषि क्षेत्र में कार्यरत कार्यबल वर्ष 2022 में 33 प्रतिशत  तक घटकर मात्र 19 को रह जाएगा वही आंकड़ों के मुताबिक दूसरी तरफ कुल कार्यबल का मात्र 18.5 प्रतिशत ही कृषि में औपचारिक रूप से कुशलता प्राप्त करेगा।

दोस्तों आज किसानों को बदहाली से खुशहाली की स्थिति में लाने की दिशा में हमें सभी संभव प्रयास किए जाने की जरूरत है नहीं तो फिर भूखे मरना होगा। इसीलिए भारत सरकार की 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की पहल एक महत्वपूर्ण एवं उपयुक्त कदम है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु हमें विकास कार्यक्रम , तकनीकी तथा नीतियों का कुशल समन्वय कृषि क्षेत्र में कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। पिछले वर्ष ही राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के सर्वेक्षण के अनुसार किसानों की औसत आय 6426 रुपए प्रतिमाह है और इस आय में भी किसान 3078 रुपए कृषि से, 2069 रुपए मजदूरी /पेंशन 765 रुपए पशुधन व 514 रुपए गैर कृषि कार्यों से अर्जित करता है । आज भी सीमांत और छोटे किसान फसल उत्पादन में तेजी से तकनीकी विकास के साथ तालमेल रखने में असमर्थ हैं। अब आप ही सोच सकते हो कि 6426 रुपए  प्रति माह कमाने वाला किसान आखिर कैसे अपना और अपने परिवार का पालन करेगा। हमें किसानों के आय को दुगनी करने के साथ ही कौशल में भी उनको निपुण करना होगा, जिस प्रकार से हम देखते हैं कि किसानों के फलों सब्जियों और अनाजों का उचित मूल्य नहीं मिलता उस पर भी हमें विशेष तौर पर ध्यान देना होगा।

सबसे जरूरी चीज है इन सभी योजनाओं का क्रियान्वयन इमानदारी पूर्वक किया जाए।

 

संवेदनहीनता,लाचारी या दुर्भाग्य-किसान,मजदूर का

संसद सत्र शुरू हुआ।इधर चंद दिन पहले पीपली में किसानों पर लाठीचार्ज किया गया।प्रदेश के गृहमंत्री का ब्यान आया कि लाठीचार्ज हुआ ही नहीं,लेकिन भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष का ब्यान आया कि किसानों पर लाठीचार्ज दुर्भाग्यपूर्ण है।इसी बीच तीन सांसदों की एक कमेटी बना दी जाती है,जो किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकत करके उनकी समस्याओं के समाधान के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।हुआ भी वही।कमेटी ने कई जिलों में जाकर किसान प्रतिनिधियों से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट सौंप दी।इस दौरान कमेटी को कहीं-कहीं खरी-खोटी भी सुननी पड़ी और भाजपा समर्थित किसान संघ का ये ब्यान भी आया कि किसानों की मांगों का हल होगा।ख़ैर,ये सब हुआ ही था कि केंद्र सरकार ने वर्तमान में चल रहे संसद सत्र में तीनों अध्यादेशों को बिल के रूप में प्रस्तुत कर दिया और साथ ही यह भी दो टूक कह दिया कि किसी भी सूरत में ये अध्यादेश वापिस नहीं होंगे बल्कि बिल पास कर कानून बनाएंगे।इसे क्या कहे संवेदनहीनता,लाचारी या किसान और मजदूर का दुर्भाग्य कि इनकी किस्मत में ही यह लिखा होता है।यह भी तो हो सकता था कि किसानों की आपत्ति सुनकर बिलों में संशोधन करके प्रस्तुत किया जाता,लेकिन दुर्भाग्य कि ऐसा नहीं हुआ।एक बार दूसरी घटना और देखिए।चल रहे संसद सत्र में बीजू जनता दल के एक सांसद ने पुछ लिया कि आखिर लॉकडाउन के दौरान कितने मजदूरों की मौत हुए और उन्हें कितना मुआवजा दिया गया।हैरत की बात है कि इस समय संसद में सम्भवतः सबसे ज्यादा बार चुनकर आने वाले और अनुभवी सांसद और श्रम मंत्री का संसद में दिया गया ब्यान बेहद चिंतनीय है,शर्मनाक है।उनके ब्यान के अनुसार लॉकडाउन के दौरान कुल एक करोड़ चार लाख मजदूरों ने पलायन किया।इसके बाद जो ब्यान दिया वह बेहद खतरनाक है और वह यह है कि इस दौरान मरने वाले मजदूरों का डेटा सरकार के पास नहीं है,इसलिए उन्हें मुआवजा नहीं दिया जा सकता।क्या यह ब्यान किसी भी आदमी के गले से नीचे उतर सकता है?क्या यह ब्यान देने से पहले श्रम मंत्री ने जरा-सा सोचा है?क्या यह मान लिया जाए कि सरकार का यह चेहरा है और चरित्र है जबकि मुँह से बोला जाने वाला शब्द अलग होता है,लुभावना होता है।आजकल इन शब्दों का पर्यायवाची कुछ और हो गया है।जबकि दूसरी तरफ सेव लाइफ फाउंडेशन जो कि एक एनजीओ है,के पास पच्चीस मार्च से इकतीस मई तक का डेटा है,इस डेटा के अनुसार कुल एक सौ अठानवे मजदूरों की मौत हुई।यदि किसी एनजीओ के पास मजदूरों की मौत का डेटा हो सकता पर सरकार के पास नहीं,अपने आप में बेहद अजीब है।अगर आपको याद हो तो करीब सौलह मजदूरों की मौत तो रेल के नीचे कटकर हुई थी।औरैया में दो ट्रकों की भिंड़त में छियालीस मजदूरों की मौत हो गई थी,जिस पर खुद देश के प्रधानमन्त्री ने ट्वीट कर दुःख जताया था,सनद रहे कि उस वक्त के अखबार अब भी देखे जा सकते हैं कि हर रोज मजदूरों की ख़बरें छपती थी,प्राइम टाइम होते थे लेकिन दुर्भाग्य कि देश की सरकार के पास कोई डेटा नहीं है।हमने उस समय भी आलेख में लिखा था कि मजदूरों का पैदल ही निकल पड़ना,इस बात का प्रमाण है कि हम और हमारा देश और हमारी संवेदनाएं कहाँ हैं?यहाँ तक कि मरने वाले मजदूरों की मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा?याद रहे कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया और कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी भी की थी,इस मामले पर लेकिन हुआ कुछ नहीं और अब इस तरह का ब्यान और वह भी संसद के पटल पर,जिससे मुकरा नहीं जा सकता।

क्या यह मान लिया जाए कि देश के किसानों और मजदूरों की कोई सुनने वाला नहीं है।इनके नाम पर पिछले सत्तर सालों से केवल राजनीति और ब्यानबाजी हो रही है।कोई भी पार्टी और कोई भी नेता,चाहे वह सत्ता में हो या सत्ता से बाहर हो,इनके नाम पर सिर्फ राजनीति चमकाता है वरना तो दो घटनाएं जो इस समय टीवी की टीआरपी बढ़ा रही हैं,उनसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं किसान की समस्याएं और मजदूरों की मौत लेकिन क्या कहीं कोई चर्चा है?नहीं।आखिर चर्चा हो भी क्यों,क्योंकि ये सिर्फ वोट बैंक है बाकी कुछ नहीं।ये मेहनत की खाने वाले हैं,भूल जाएंगे लेकिन याद रखिए इतिहास कभी किसी चीज को नहीं भुलाता।समय रहते चेत जाइए वरना किसान और मजदूर के पास 'हाय' है,जो बहुत बुरी होती है।सुना है कि देश के बेरोजगार कल राष्ट्रीय झूठ दिवस के रूप में मनाने जा रहे हैं,सम्भवतः यह पहला मामला ही होगा और उम्मीद करें कि आखिरी भी हो क्योंकि इस तरह की बातें ठीक नहीं होती वैसे बेरोजगारों को रोजगार तो चाहिए और रोजगार देना या रोजगार का प्रबंध करना सरकार का न केवल काम होता है बल्कि जिम्मेदारी भी होती है।किसान,मजदूर और बेरोजगारों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी ही होगी,हर हाल में वरना हम बहुत पीछे चले जाएंगे।उधर सुदर्शन टीवी चैनल के कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए रोक लगा दी कि ये कार्यक्रम एक धर्म विशेष को टारगेट करता है।काश!सुप्रीम कोर्ट पूरे मीडिया को मछली बाजार होने से भी रोक दे,ये भी देश के लिए बेहद अच्छी बात ही होगी।

 

कृष्ण कुमार निर्माण

  करनाल,हरियाणा।

Wednesday, September 16, 2020

  जिंदगी चलने का ही दूसरा नाम है यारों 

आज दोस्त भारत में हर 4 मिनट में एक शख्स आत्महत्या कर रहा है, अब सवाल यह उठता है कि ऐसी कौन सी बातें हैं, जिनकी वजह से एक इंसान अपनी जान देने पर आमादा हो जाता है?

मुझे लगता है कि आत्महत्या को प्रेरित करने वाले कारणों में घरेलू ,पारिवारिक, निजी और सामाजिक सभी पहलू शामिल है, जो कि आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं। इन सभी कारणों को मिलाकर हम डिप्रेशन कहते हैं दोस्तों।

अब आप ही देखो ना पिछले  दिन ही यूपीपीसीएस का अंतिम परिणाम आया जिसमें एक हमारे देश के होनहार अभ्यार्थी  का अंतिम रूप से चयन नहीं होने के कारण आत्महत्या कर लिया आखिर दोस्तों आज हमारे युवाओं में इतना अवसाद क्यों बढ़ता जा रहा है? कुछ महीने पहले ही भारत में आत्महत्याओं को लेकर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े जारी हुए थे, जिसमें यह बताया गया था कि भारत में हर 4 मिनट में एक शख्स आत्महत्या कर लेता है। अगर हम घंटे के हिसाब से बात करें तो 1 घंटे में 15 भारतीय किसी न किसी वजह से अपनी ही जान ले लेते हैं। दोस्तों आज यह बेहद ही गंभीर समस्या है ।

दोस्त वैसे तो डिप्रेशन के बहुत से लक्षण होते हैं, लेकिन कुछ खास लक्षणों की हम बात यहां करेंगे जिनकी पहचान कर हम इलाज करा सकते हैं और उनको प्रेरित करके जीवन में आगे बढ़ा सकते हैं। अगर आपको कोई भी व्यक्ति परेशान दिखे, जिसका मन उदास हो, बात-बात पर चिड़चिड़ा हो जा रहा हो, या कोई अपने आपको व्यर्थ समझ रहा हो, किसी प्रतियोगी परीक्षा में असफल हो गया हो ,आशाहीन  महसूस कर रहा हो ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे अवसाद में चले जाते हैं और सोचने लगते हैं कि भगवान अब उसे उठा ले यहीं से दोस्तों आत्महत्या के प्रयास शुरू होते हैं और फिर मरने की योजना के साथ इंसान आत्महत्या कर लेता है। इसलिए आप सब से मेरा विनम्र निवेदन है कि ऐसे कोई भी निराश और परेशान व्यक्ति आपको नजर आए तो उससे बातें जरूर करें जितना संभव हो सके उसका मदद करें और प्रेरित करें कि जीवन में रुकना नहीं चाहिए बल्कि जीवन चलने का ही दूसरा नाम है। दोस्तों विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार कहा गया  था कि इस वर्ष यानी कि 2020 तक डिप्रेशन की बीमारी इंसान की डिसेबिलिटी की दूसरी सबसे बड़ी वजह बन जाएगी, जबकि दोस्तों डब्ल्यूएचओ के मुताबिक साल 2025 -30 तक यह पहली वजह बन जाएगी। ऐसे में अगर कोई बीमारी इस तरह से कॉमन हो रही है तो इसका इलाज बहुत जरूरी है। कोई भी बीमारी हो दोस्त बीमारी तो बीमारी होती है, आप ही सोचो अगर कबूतर के आंख बंद कर लेने से बिल्ली नहीं भागेगी, बल्कि कबूतर को खुद उड़ना  होगा । इसीलिए मैं कह रहा हूं दोस्तों की यह हम सबका कर्तव्य है कि कोई भी ऐसा व्यक्ति दिखे जो निराश है ,परेशान है उसका मदद अपने अनुसार करने का जरूर कोशिश करें।

आज कोविड 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण बहुतों की नौकरिया चली गई है और काम धंधे चौपट हो गए हैं। हमें ऐसे लोगों का अपने सामर्थ्य अनुसार जरूर मदद करना चाहिए। दोस्त देखा गया है कि जब जीवन में संघर्ष बढ़ता है और उससे तनाव कहीं ना कहीं उपजने ही लगता है तब देखा गया है कि दिमाग में खुशी और सीमित रहने के रसायन धीरे धीरे कम होते जाते हैं, डिप्रेशन बढ़ता जाता है और लोग गलत कदम उठा लेते हैं। आंकड़ों के मुताबिक हम देख रहे हैं पुरुषों में आत्महत्या की दर कुछ ज्यादा है महिलाओं की अपेक्षा क्योंकि दोस्त महिलाओं के मुकाबले पुरुष किसी काम को अंत तक अंजाम देने की प्रवृत्ति रखते हैं। याद रखना मेरे बात को दोस्त जब भी कोई व्यवहार या स्वभाव जरूरत से ज्यादा हो या फिर कहे की जरूरत से ज्यादा समय सीमा तक के लिए हो जो इंसान के सामाजिक ,व्यवसायिक और निजी जीवन पर असर डालने लगे तो दोस्तों वही बीमारी है। आज डिप्रेशन भी ऐसी ही बीमारी है, जो इंसान के लक्षणों में बदलाव और उसके स्वभाव में परिवर्तन से हम समझ सकते हैं। आप ही देखो ना जब एक दो बार कोई व्यक्ति अपने बच्चे को चांटा मारा तो यह गुस्सा चलेगा लेकिन आप ही सोचो अगर रोज गुस्सा होकर कोई व्यक्ति अपने बच्चे को चांटा मारे तो यह  कहीं ना कहीं मानसिक बीमारी है। अब दोस्तों विनम्र निवेदन आप सभी से है कि समाज में जब भी किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिखाई दे तो यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उसे अच्छे से मनोचिकित्सक के पास लेकर जाएं कभी भी उसे मात्र तसल्ली ना देकर की चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा, उसे यह भी मत कहना आप की फलां  बाबा के पास जाकर अपने जीवन को बदलने का उपाय पूछ लो । याद रखना दोस्त इससे डिप्रेशन ठीक नहीं होगा और इंसान फिर आत्महत्या की तरफ रुख करेगा। अगर हमें आत्महत्या को रोकना है तो डिप्रेशन के लक्षणों की अनदेखी करने से बचना होगा और मरीज को सहानुभूति के साथ डॉक्टर के पास लेकर जाना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए यही दोस्तों कारागार उपाय है। इसके साथ ही लोगों को प्रेरित करना चाहिए कि प्रात काल उठकर शैर करें और योगा मेडिटेशन का सहारा ले। देश के युवाओं को एक बात कहना चाहूंगा कि जिंदगी कभी रुकती नहीं है दोस्त अगर किसी परीक्षा में असफल हो जाते हो कोई बात नहीं जिंदगी में और सारे अवसर मिलेंगे जो आप एक दिन इस दुनिया के नक्शे को बदल सकते हो।

 

मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर समस्या 

मानसिक विकार का ग्राफ पूरी दुनिया में बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है, इसका प्रमुख कारण है कि लोगों में समयाभाव व संतुष्टि की बेहद कमी का होना। मानसिक विकार का सीधा संबंध व्यक्ति की निजी भावना व सामाजिक परिदृश्य से है, इसमें विषम परिस्थिति का समावेश, जो व्यक्ति के सोचने, समझने, महसूस करने व कार्य शैली को प्रभावित करने लगती है। ज्यादातर मानसिक विकार के कारण व्यक्ति में अनेक प्रकार की बुराइयों का जन्म भी हो जाता है, जिससे व्यक्ति कुढ़न व नशे का आदी बनने लगता है। मानसिक रोगों के अंतर्गत डिमेंशिया, डिस्लेक्सिया, डिप्रेशन, भूलने की बीमारी, चिंता, आटिज्म, अल्जाइमर आदि आते हैं, जो व्यक्ति की भावनाओं, विचारों व सामाजिक व्यवहारों को बहुत ही तीव्र गति से प्रभावित व परिवर्तित कर देते हैं। मानसिक विकार को जन्म देने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका समाज व परिवार ही अदा करता है, बाकी लगभग नगण्य भूमिका में प्राकृतिक बीमारी व दुर्घटना आदि आते हैं। मानसिक विकार को लेकर वैज्ञानिकों का दावा है कि जिस तीव्र गति से यह बढ़ता जा रहा है, जल्दी ही यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी का स्थान ले लेगी। 

हालांकि मानसिक विकार के तीव्र गति से बढ़ने के बावजूद भी दुनिया इस बीमारी को महज काल्पनिक कथानक के रूप में लेकर, इसकी उपेक्षा कर रही है, जबकि भावी परिस्थिति में इस बीमारी के प्रति गंभीर चिंतन-मनन की आवश्यकता है। शारीरिक विकार जिस प्रकार व्यक्ति को प्रभावित करते हैं, वैसे ही मानसिक विकार भी व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, बस यह मानसिक विकार आँखों के समक्ष परिलक्षित नहीं होते, यही कारण है कि इसकी उपेक्षा पूर्णतः की जाती रही है। मानसिक विकार का सबसे बड़ा सच आत्महत्या के रूप में पूरी दुनिया के समक्ष मौजूद है, फिर भी इस पर गहन चिंतन-मनन की कमी साफ दिखाई देती है। आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के प्रति चार व्यक्तियों में से एक व्यक्ति किसी ना किसी रूप में मानसिक विकार से प्रभावित है। हालांकि यह बीमारी व्यक्ति के मानसिक रासायनिक असंतुलन से भी उत्पन्न होती है, मगर इस असंतुलन का मुख्य कारण भी कहीं न कहीं हमारे परिवेश, परिवार व समाज से ही जुड़ा हुआ होता है। अतः मानसिक विकार से बचने के लिए सबसे पहला उपाय यह है कि हमें अपने परिवेश, परिवार व समाज में संतुलन स्थापित करना होगा। मानसिक तौर पर सकारात्मक विचारों को बढ़ावा देने से यह बीमारी काफी हद तक कम की जा सकती है। एक सुदृढ़ व स्वस्थ्य मानसिक समाज के विकास के लिए, हमारा सामाजिक ढांचा स्वस्थ्य होना बेहद जरूरी है, तभी इस विकट समस्या से निजात पाना संभव है। 

 

मिथलेश सिंह मिलिंद 

मरहट पवई आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) 

क्या कोरोना के अंत की शुरुआत हो चुकी है 

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि कोरोनावायरस महामारी 1918 के स्पेनिश फ्लू की तुलना में कम समय तक रहेगी। संगठन के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने गत 21 अगस्त को कहा कि यह महामारी दो साल से कम समय में  खत्म हो सकती है। इसके लिए दुनियाभर के देशों के एकजुट होने और एक सर्वमान्य वैक्सीन बनाने में सफल होने की जरूरत है। जो संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार जो पाँच छह उल्लेखनीय वैक्सीन परीक्षणों के अंतिम दौर से गुजर रही हैं, उनमें से दो-तीन जरूर सफल साबित होंगी। कहना मुश्किल है कि सारी दुनिया को स्वीकार्य वैक्सीन कौन सी होगी,पर डब्लूएचओ के प्रमुख का बयान हौसला बढ़ाने वाला है।


इतिहास लिखने वाले कहते हैं कि महामारियों के अंत दो तरह के होते हैं। एक, चिकित्सकीय अंत। जब चिकित्सक मान लेते हैं कि बीमारी गई। और दूसरा सामाजिक अंत। जब समाज के मन से बीमारी का डर खत्म हो जाता है। कोविड-19 का इन दोनों में से कोई अंत अभी नहीं हुआ है, पर समाज के मन से उसका भय कम जरूर होता जा रहा है। यानी कि ऐसी उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं कि इसका अंत अब जल्द होगा। डब्लूएचओ का यह बयान इस लिहाज से उत्साहवर्धक है।


चार महीने पहले अनुमान था कि बीमारी दो से पाँच साल तक दुनिया पर डेरा डाले रहेगी। दो साल से कम समय का मतलब है कि 2021 के दिसम्बर से पहले इसे विदा किया जा सकता है। साल के शुरू में अंदेशा इस बात को लेकर था कि वैक्सीन बनने में न जाने कितना समय लगेगा। पर वैक्सीनों की प्रगति और वैश्विक संकल्प को देखते हुए अब लगता है कि इसपर समय से काबू पाया जा सकेगा। टेड्रॉस ने जिनीवा में एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि 1918 के स्पेनिश फ्लू को खत्म होने में दो साल लगे थे। आज की वैश्विक कनेक्टिविटी के कारण वायरस को फैलने का भरपूर मौका है। पर हमारे पास इसे रोकने की बेहतर तकनीक है और ज्ञान भी। सबसे बड़ी बात मानवजाति की इच्छा शक्ति इसे पराजित करने की ठान चुकी है। 


महामारी से दुनियाभर में अबतक करीब 8 लाख लोगों की मौत हुई है और करीब 2.3 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं। इसकी तुलना में स्पेनिश फ्लू से, जो आधुनिक इतिहास में सबसे घातक महामारी मानी गई है, पाँच करोड़ लोगों की जान गई थी। उसमें करीब 50 करोड़ लोग संक्रमित हुए थे। पहले विश्व युद्ध के मृतकों की तुलना में स्पेनिश फ्लू से पाँच गुना ज्यादा लोग मारे गए थे। पहला पीड़ित अमेरिका में मिला था, बाद में यह यूरोप में फैला और फिर पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ गई। वह महामारी तीन चरणों में आई थी। उसका दूसरा दौर सबसे ज्यादा घातक था।


चार महीने पहले भी विशेषज्ञों का अनुमान था कि इस बीमारी को 2022 तक नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा और यह तभी काबू में आएगी जब दुनिया की दो तिहाई आबादी में इस वायरस के लिए इम्यूनिटी पैदा न हो जाए। गत 1 मई को अमेरिका के सेंटर फॉर इंफैक्शस डिजीज के डायरेक्टर क्रिस्टन मूर, ट्यूलेन यूनिवर्सिटी के सार्वजनिक स्वास्थ्य इतिहासविद जॉन बैरी और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के महामारी विज्ञानी मार्क लिप्सिच की एक रिपोर्ट ब्लूमबर्ग ने प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि इस महामारी पर काबू पाने में कम के कम दो साल तो लग ही जाएंगे।


उस रपट में कहा गया था कि नए कोरोनावायरस को काबू करना मुश्किल है, क्योंकि हमारे बीच ऐसे लोग हैं जिनमें इस बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे, लेकिन वे दूसरों तक इसे फैला सकते हैं। इस बात का डर बढ़ रहा है कि लोगों में लक्षण तब सामने आ रहे हैं जब उनमें संक्रमण बहुत ज्यादा फैल चुका होता है। मार्च-अप्रैल के महीनों में दुनियाभर में अरबों लोग लॉकडाउन के कारण अपने घरों में बंद थे। इस वजह से संक्रमण में ठहराव आया, लेकिन फिर बिजनेस और सार्वजनिक स्थानों के खुलने के कारण प्रसार बढ़ता गया। महामारी पर तभी काबू पाया जा सकेगा, जब 70 प्रतिशत लोगों तक वैक्सीन पहुंचे या उनमें इम्यूनिटी पैदा हो चुकी है। 


इस साल के अंत तक वैक्सीन बाजार में आ भी जाएंगी, पर वे कितने लोगों तक पहुँचेंगी, यह ज्यादा बड़ा सवाल है। सन 2009-2010 में अमेरिका में फैली फ्लू महामारी से इम्यूनिटी के लिए बड़े पैमाने पर वैक्सीन तब मिले, जब महामारी पीक पर थी। वैक्सीन के कारण वहाँ 15 लाख मामलों पर काबू पाया गया। अप्रैल-मई में ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में कहा गया कि बिना असरदार इलाज के कोरोना सीज़नल फ्लू बन सकता है और 2025 तक हर साल इसका संक्रमण फैलने का अंदेशा है। विवि के डिपार्टमेंट ऑफ इम्यूनोलॉजी एंड इंफैक्शस डिजीज के रिसर्चर और इस स्टडी के मुख्य अध्येता स्टीफन किसलर  का मानना था कि कोविड-19 से बचने के लिए हमें कम से कम 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग रखनी होगी। 


प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"


शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार


Tuesday, September 15, 2020

दिव्यांगों एवं वृद्धों की सामाजिक सुरक्षा योजना 

देश के कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए भारत सरकार ने नागरिकों के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया है| इस पैकेज के माध्यम से सरकार ने समाज के अलग-अलग वर्गों की सहायता का प्रयास किया है। उद्यमियों, कारोबारियों, श्रमिकों और विभिन्न सामाजिक वर्गों की सहायता करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन का सभी वर्गों पर प्रभाव पड़ा था। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के जिस आर्थिक पैकेज की घोषणा की, उसमें गरीबों, मजदूरी करने वाली महिलाओं, शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना कर रहे व्यक्तियों और वृद्धों के लिए अलग से व्यवस्थाएं की गई हैं। ये योजनाएं विभिन्न कार्यक्रमों का हिस्सा हैं। इनमें केंद्र और राज्यों की योजनाएं भी शामिल हैं।

कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के तहत असहाय व्यक्तियों का सहारा भी राज्य है। बेशक उन्हें सामाजिक संस्थाएं और निजी तौर पर अपेक्षाकृत सबल व्यक्ति कमजोरों, वंचितों और हाशिए पर जा चुके लोगों की सहायता के लिए आगे आते हैं, पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी राज्य की होती है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 41 कहता है, ‘राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।’ इसके साथ अनुच्छेद 42 और 43 भी सामाजिक वर्गों की सहायता के लिए राज्य की भूमिका की ओर इशारा करते हैं।

सहायता पाने वालों में गरीब और वृद्ध विधवाएं भी शामिल हैं, जिनका कोई सहारा नहीं है। यह लाभ प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से दिया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत लाभ उठाने वाले करीब तीन करोड़ लाभार्थी हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत लाभ पाने वाले करीब 30 करोड़ लाभार्थियों की तुलना में यह संख्या छोटी है, पर बहुत महत्वपूर्ण है। समाज के इस वर्ग को सबसे असहाय मानना चाहिए। इनके लिए ही भारत सरकार का राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) बनाया गया है। यह कार्यक्रम अभावों से जूझ रहे व्यक्तियों और उनके परिवारों तक नकद हस्तांतरण की सुविधा, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य बीमा समेत समग्र सामाजिक सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण भाग है।

वृद्धों से संबंधित कार्यों का संचालन करने वाले स्वैच्छिक संगठनों को सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के एक कार्यक्रम के तहत सहायता दी जाती है। इसमें वृद्धों के लिए डे-केयर चलाने और उनके रखरखाव के लिए परियोजना लागत के 90 प्रतिशत तक की सहायता दी जाती है। 

मध्य वर्ग के वरिष्ठ नागरिकों के कार्यक्रमों से ज्यादा महत्वपूर्ण गरीब बुजुर्गों के कार्यक्रम हैं, पर उसके पहले राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) का जिक्र करना बेहतर होगा। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रशासित राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) की शुरुआत 15 अगस्त 1995 को हुई थी। इसका क्रियान्वयन शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में किया जा रहा है। वर्ष 2016 में एनएसएपी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण योजना (कोर ऑफ़ कोर) के तहत लाने का जबसे रणनीतिक फैसला किया गया है, तब से केन्द्र सरकार योजना की शत-प्रतिशत जरूरतें पूरी करने के लिए वित्तीय प्रतिबद्धता को लगातार बढ़ा रही है। 

पेंशन योजना के आवेदक को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार से संबंधित होना चाहिए। इस योजना के अलावा अन्नपूर्णा योजना भी है, जिसमें वरिष्ठ नागरिकों को 10 किलो अनाज प्रतिमाह दिया जाता है। वस्तुतः यह योजना उन नागरिकों के लिए है, जो आईजीएनओएपीएस के पात्र तो हैं, पर जिन्हें वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिल रही है। इसके अलावा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (आईजीएनडब्लूएनपीएस) है। इसके अंतर्गत गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली 40-79 वर्ष आयु की विधवा स्त्रियों को प्रति माह 300 रुपये की सहायता दी जाती है। जब वे 80 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेती हैं, तो उन्हें आईजीएनओएपीएस में शामिल कर लिया जाता है, ताकि वे 500 रुपये प्रतिमाह की सहायता प्राप्त कर सकें। 

उच्च शिक्षा, सरकारी नौकरियों में आरक्षण, भूमि के आवंटन में आरक्षण, गरीबी उन्मूलन योजना आदि जैसे अतिरिक्त लाभ दिव्यांग व्यक्तियों और असहाय व्यक्तियों के लिए प्रदान किए गए हैं। बेंचमार्क विकलांगता वाले कुछ व्यक्तियों या वर्ग के लोगों के लिए सरकारी प्रतिष्ठानों में रिक्तियों में आरक्षण 3 से बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है। इन्हीं कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री सुगम्य भारत अभियान भी शामिल है, जो दिव्यांग व्यक्तियों की सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के विकलांगजन सशक्तीकरण विभाग द्वारा शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों को जीवन के सभी क्षेत्रों में भागीदारी के समान अवसर एवं आत्मनिर्भर जीवन प्रदान करना है।

दिव्यांगता पर आधारित केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्ड को केंद्र और राज्य स्तर पर शीर्ष नीति बनाने वाली संस्थाओं के रूप में कार्य करने के लिए स्थापित किया जाना है। दिव्यांग व्यक्तियों के मुख्य आयुक्त के कार्यालय को सुदृढ़ किया गया है, जिन्हें अब दो आयुक्तों और एक सलाहकार समिति द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। इसमें दिव्यांगता से जुड़े विभिन्न विशेषज्ञ होंगे।

विकलांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य कोष का निर्माण किया जाएगा। विकलांगों के लिए मौजूदा राष्ट्रीय कोष और विकलांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण के लिए ट्रस्ट फंड को राष्ट्रीय कोष के साथ सदस्यता दी जाएगी। इस कानून में ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ अपराध के लिए दंड का प्रावधान है जो दिव्यांगजन के खिलाफ अपराध करते हैं या कानून के प्रावधानों का भी उल्लंघन करते हैं। विकलांगों के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को निपटाने के लिए प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालयों का गठन किया जाएगा।

दिव्यांगजन के अधिकारों की रक्षा के प्रावधान तो हुए हैं, पर उनके लिए संसाधन अभी पर्याप्त नहीं हैं। समिति की सिफारिशों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि दिव्यांगजन को सार्वजनिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए संसाधनों की व्यवस्था भी करनी होगी। दूसरी तरफ हम बजट आबंटन पर नजर डालें, तो स्पष्ट होता है कि अभी इस दिशा में काफी सुधार की जरूरत है। एनएसएपी योजना के महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के लिए बजट का आकार यथेष्ट नहीं है।

दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार की ओर से ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पेंशन कार्यक्रम (आईजीएनडीपीएस) चलाया जाता है। इस योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले 18-79 वर्ष की आयु के विविध प्रकार की निशक्तताओं से प्रभावित व्यक्तियों को प्रतिमाह 300 रुपये की सहायता दी जाती है। 80 वर्ष की आयु हो जाने पर उन्हें आईजीएनओएपीएस के तहत 500 रुपये प्रतिमाह की सहायता मिलने लगती है। अन्य ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में भी दिव्यांग लोगों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। मनरेगा के तहत कार्यस्थलों पर पेयजल उपलब्ध कराने, पालना घर की व्यवस्था इत्यादि में दिव्यांग लोगों को काम दिलाने को प्राथमिकता दी गई है। दिव्यांग मज़दूरों को अन्य मज़दूरों के बराबर ही मजदूरी दी जाती है। दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के तहत लोगों के कौशल को बढ़ाने के लक्ष्य का कम-से-कम तीन प्रतिशत कौशल विकास लक्ष्य दिव्यांगों के लिए सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है। प्रधानमंत्री आवास योजना में भी राज्यों के लिए प्रावधान है कि वह कम-से-कम तीन प्रतिशत दिव्यांग लाभार्थी सुनिश्चित करें।

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

सबकी मधुर जुबान है हिन्दी

भारत मां के भव्य भाल की

अरुणिम ललित ललाम है बिन्दी।

भारत के गौरव गरिमा का, 

एक मधुरतम गान है हिन्दी।

 

भारत अपना दिव्य कलेवर,

उस तन का शुचि प्रान है हिन्दी।

भिन्न भिन्न हैं जाति धर्म पर, 

सबकी मधुर जबान है हिन्दी।

 

अलग-अलग पहनावे बोली,

लेकिन सबका मान है हिन्दी।

हर भारत वासी की समझो,

आन वान औ' शान है हिन्दी।

 

इसमें है अभिव्यक्ति कुशलता,

भारत की पहचान है हिन्दी।

भारत की पहचान अस्मिता,

और सदा सम्मान है हिन्दी।

 

प्रगति हमारी समझो इससे,

भारत का उत्थान है हिन्दी।

हिन्दी का समृद्ध व्याकरण, 

अक्षर,स्वर विज्ञान है हिन्दी।

 

     👉श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

हमारे भारत रत्न अभियंताओं  के लिए प्रेरणा है

पहिये  के आविष्कार से लेकर आधुनिक समय के ड्रोन तक, इंजीनियरों ने प्रौद्योगिकी की प्रगति और विकास के लिए महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी प्रदान किए हैं और कर रहे हैं। जैसा कि हम सभी 15 सितंबर को भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया सर के जन्मदिन के अवसर पर हम  15 सितंबर को अभियंता दिवस मतलब कि इंजीनियर्स डे मनाते हैं।

दोस्तों विश्वेश्वरैया सर भारत के सबसे विपुल सिविल इंजीनियर अर्थशास्त्री और राजनेता थे। इनकी गिनती पिछली सदी के अग्रणी राष्ट्र बिल्डरों में की जा सकती है। एम विश्वेश्वरैया सर भारत के इंजीनियरिंग आइकन थे और अभी भी है।

इन्होंने दोस्तों कड़ी मेहनत के साथ कई प्रणालियों को वास्तविकता में इंजीनियर किया। हम आज याद कर रहे हैं जोकि हमारे राष्ट्र के निर्माण में उनके योगदान को हम कभी नहीं भूल सकते हैं।

दोस्तों इनको 1912 से 1918 तक मैसूर के दीवान के रूप में भी जाना जाता था क्योंकि वह मुख्य अभियंता थे जो मैसूर में कृष्णा राजा सागर डैम के निर्माण के लिए जिम्मेदार थे। वही हैदराबाद शहर के लिए बाढ़ सुरक्षा प्रणाली के प्रमुख डिजाइनर के रूप में उनकी भागीदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भारत सरकार ने दोस्तों वर्ष 1955 में 'भारत रत्न' का सम्मान करते हुए समाज में उनके उत्कृष्ट योगदान को बहुत ही सराहा था।

हमारे देश के सभी इंजीनियरों को इस इंजीनियर्स डे की हार्दिक बधाई। आज का दिन सभी इंजीनियरों को समर्पित है जिन्होंने अपने महान विचारों और नवाचारो  के साथ पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया है और बदल रहे हैं। दोस्त जैसा कि आप भी जानते हैं कि हमारे भारत में प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को इंजीनियर दिवस बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष कोविड 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कहर के कारण सार्वजनिक कार्यक्रम तो नहीं आयोजित किए जाएंगे , जैसा कि प्रत्येक वर्ष देश के संस्थान और संगठन कार्यक्रम आयोजित करते थे जो समर्पित था राष्ट्र को विकसित करने में इंजीनियरों के महत्व योगदान और उपलब्धियों को उजागर करने के लिए, अपने देश के विभिन्न हिस्सों से हर साल दोस्तों लाखो इंजीनियरिंग स्टूडेंट निकलते हैं। कॉलेजों  में हम सभी देखते हैं कि वर्तमान परिदृश्य के बारे में सेमिनार के साथ मनाया जाता है। दोस्त अभियंता दिवस को एक ऐसा दिन के रूप में मनाया जाना चाहिए जिसमें इंजीनियरिंग क्षेत्र के सभी अधिकारियों द्वारा उत्साह के साथ  व्यवहार करते हुए मनाना चाहिए कि आने वाले भविष्य के अभियंताओं को प्रेरित करें।।

हाइकु 

हिंदी में बिन्दी 

श्रृंगार में मेहंदी    

भाषा की स्कंदी |१|

 

                                है आर्यभाषा 

                                आत्मा की परिभाषा 

                                मिटे निराशा |२|

 

धर्म आधार 

उपदेश प्रचार  

मिले संस्कार |३|

 

                              छदं से अलंकृत 

                              रिश्ता संस्कृत 

                              है ज्ञान कृत |४|

 

ढोलक वजी  

संगीत से है सजी 

आदर में जी |५|

 

                             भाषा लहर  

                             राष्ट्र की धरोहर 

                             है मनोहर |६|

देश की शक्ति 

सहज अभिव्यक्ति 

मातृत्व भक्ति |७|

 

 

                             है अभिमान 

                             हिन्दुस्तान की शान  

                             बढाती मान |८|

 

पूर्व सैनिक 

प्रमोद कुमार चौहान 

Monday, September 7, 2020

थाना ठाकुरगंज पुलिस ने शातिर किस्म के लुटेरे को किया गिरफ्तार

लखनऊ :- पुलिस उप आयुक्त पश्चिमी सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी द्वारा अपराध नियंत्रण करने तथा अपराधियों पर अंकुश लगाने हेतु अपर पुलिस उप आयुक्त पश्चिमी श्याम नारायण सिंह के निर्देशन पर काम कर रही पश्चिमी जोन पुलिस के हाथ लगी बड़ी सफलता ।


सहायक पुलिस आयुक्त चौक आई.पी.सिहं के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम थाना प्रभारी ठाकुरगंज राजकुमार सिहं, उ0नि0 जगदीश प्रसाद पाण्डेय, उ0नि0विनय कुमार, का0 संजीव कुमार सिंह, का0 सियाराम को एक बडी सफलता हाथ लगी । पुलिस टीम के प्रयासों के फलस्वरूप शातिर किस्म का लूटेरा सूफियान पुत्र स्व0 फुरकान निवासी वजीरबाग बडी मस्जिद थाना सआदतगंज लखनऊ को भूहर पुल के आगे से एक अदद अवैध 12 बोर तमचां मय दो अदद अवैध 12 बोर जिन्दा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया गया । जिसका पूर्व आपराधिक इतिहास भी है। इसी क्रम में आज पुलिस टीम द्वारा अभियुक्त उपरोक्त के विरुद्ध अभियोग पंजीकृत कर माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया ।


Wednesday, September 2, 2020

भारत ने फिर किया चीन पर डिजिटल स्ट्राइक, PUBG समेत 118 चीनी ऐप्स बैन

भारत ने 118 चीनी ऐप को बैन कर दिया है। भारत ने चीन को एक और बड़ा झटका दिया है। तीसरी बार है ये जब चीनी ऐप पर पाबंदी लगाई गई है। एलएसी पर चीनी कारस्पतानियों के बाद भारत ने पबजी समेत 118 चीनी ऐप पर पाबंदी लगाई गई। बैन किए गए चीनी ऐप को सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया है। अभी तक सरकार 224 चीनी ऐप को बैन कर चुकी है। 


भारत ने 29 जून को टिकटॉक समेत 58 ऐप को बैन कर दिया था। ऐप को बैन करने की वजह देश की सुरक्षा के लिए जरूरी बताया गया था। बैन किए गए ऐप्स में शेयर इट, UC ब्राउजर, वीचैट और कैम स्कैनर जैसे कई और ऐप भी शामिल थे। इसके बाद एक बार फिर से भारत सरकार ने पिछले महीने 47 अन्य ऐप्स को भी बैन किया। इन ऐप्स के बारे में कहा गया कि ये पहले बैन किए गए 59 ऐप्स के क्लोन के तौर पर काम कर रहे हैं और इनसे यूजर्स के डेटा की सेफ्टी पर बड़ा खतरा है। 


 


Tuesday, September 1, 2020

समलैंगिक विवाह करके फतेहपुर की पूनम बनी पति व कानपुर की कोमल पत्नी

दैनिक अयोध्या टाइम्स फतेहपुर


---समलैंगिक जोडे ने सदर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक को दी विवाह की जानकारी


फतेहपुर 31 अगस्त


 
फतेहपुर जनपद में पहली बार एक समलैंगिक जोड़े द्वारा दांपत्य सूत्र में बंधने की खबर ने सबको हैरान कर दिया है ।यह समलैंगिक दोनों लड़कियां कानपुर के एक मॉल में काम करती थी ।जहां से दोनों में प्रेम संबंध हो गए और उन्होंने आपस में समलैंगिक विवाह करने के बाद फतेहपुर पहुंची । अब वह हो पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं ।सामाजिक मान्यताओं के अनुसार समलैंगिक विवाह उचित नही है।यद्यपि इसे मान्यता नहीं दी जाती है किंतु सरकार द्वारा धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को मान्यता जब दे दी गई है। तो सामाजिक मान्यताओं का कोई मूल्य नहीं रह जाता है। इसी का परिणाम है कि आज फतेहपुर की लड़की ने कानपुर की एक लड़की के साथ समलैंगिक विवाह कर लिया।
 प्राप्त जानकारी के अनुसार आज यह समलैंगिक जोड़ा फतेहपुर सदर कोतवाली में पहुंचा और मौजूद कोतवाली प्रभारी निरीक्षक रवीन्द्र श्रीवास्तव को बताया कि उन्होंने एक दूसरे के साथ विवाह कर लिया है और अब पति पत्नी के रूप में साथ रह रहे हैं ।इस मौके पर दोनों लड़कियों के परिजन भी थाने पहुंचे ।
जानकारी के अनुसार फतेहपुर शांति नगर की रहने वाली पूनम 22 वर्ष व कानपुर की रहने वाली कोमल 19 वर्ष कानपुर बड़े चौराहे पर स्थित जेड स्क्वायर में एक साथ काम करती थी ।वहीं पर दोनों में प्रेम हो गया और यह प्रेम शादी के बंधन में बांधने को मजबूर कर दिया । दोनों ने विवाह रचाकर पति पत्नी के रूप में एक दूसरे को स्वीकार कर लिया। फतेहपुर शांति नगर निवासिनी पूनम की मां से जब पूछा गया कि उसकी बेटी ने जो समलैंगिक विवाह किया है उससे आप कितना खुश हैं तो उन्होंने कहा कि अब जब कर लिया है तो हम लोग कर भी क्या सकते हैं। उन्होंने दोनों लड़कियों को अपने घर में रहने की इजाजत दे दी है। थाना प्रभारी रविंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि दोनों लड़कियां उनके पास आई थी जिसके लिए कानूनी प्रक्रिया को उन्होंने अपनाया है। इस समलैंगिक विवाह को लेकर समाज सेविका लक्ष्मी साहू का कहना है कि सामाजिक व सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यह शादी ठीक नहीं है किंतु जब सरकार में इसे वैधता दे दी है तो समाज के सामने भी अब एक समस्या खड़ी हो गई है। वही इस शादी को लेकर फतेहपुर के अधिवक्ता सफीकुल गफ्फार से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि धारा 377 के तहत यह समलैंगिक विवाह पूरी तरह से वैध है। किंतु जब उनसे कहा गया कि क्या सामाजिक दृष्टिकोण से यह समलैंगिक विवाह उचित है तो उन्होंने कहा कि सामाजिक तौर पर तो इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता ।किंतु कानून की दृष्टि में यह विवाह अपनी पूरी मान्यता रखता है।