Saturday, October 24, 2020

अम्बे माँ का जगराता

          हमेशा की तरह हाथ में कपड़ो से भरा हुआ पुराना बैग लिए राजू के पड़ोस की सरोज अम्मा उसके पास से जा रही थी।सरोज रोज के मुकाबले आज बहुत ही खुश नजर आ रही थी।आमतौर पर सरोज के चेहरे पर हमेशा एक मंद मुस्कान दिखाई देती थी।लेकिन आज उनके चेहरे पर मुस्कान देखकर राजू ने उनसे पूछ ही लिया - अम्मा आज तो बहुत खुश नजर आ रही हो।क्या बात है?

         सरोज हापुड़ के एक सरकारी मकान में काफी समय से अकेले रहती थी।सरोज के पति का जब स्वर्गवास हुआ तब वो एक सरकारी जॉब पर थे।उनका बेटा भी मुजफ्फरनगर में एक बहुत ही अच्छे सरकारी पद पर कार्यरत है और काफी संपन्न है।लेकिन राजू ने देखा की उनका बेटा काफी समय से उनसे मिलने आया नहीं है और ना ही उसने सरोज को कभी अपने बेटे के पास जाते हुए देखा।

           लेकिन सरोज को देखकर कभी भी नहीं लगता कि सरोज किसी भी वजह से परेशान है।चाहे वह आज इतनी खुश हो या ना हो लेकिन उनके चेहरे पर एक मीठी मुस्कान हमेशा रहती है।अक्सर पड़ोस में चर्चाएं रहती हैं कि इतनी अच्छी सैलरी पर इनका बेटा कार्यरत है।लेकिन सरोज कुछ ना कुछ काम करते हुए अपने आपको हमेशा व्यस्त रखती है।कभी आसपास के दर्जियों के कमीशन बेस पर सूट सलवार या लेडीज कपड़े सिल देना या छोटे बच्चों को ट्यूशन दे देना।

           हमेशा सरोज को यही कहते पाया है।बेटा पैसे तो बहुत भेजता रहता है।लेकिन मेरा समय ही नहीं कटता है।इसलिए कुछ ना कुछ करती रहती हूँ।जिससे समय कटता रहे।पति के देहांत के बाद लगभग 4 वर्ष से सरोज की यही दिनचर्या है।बेटा अपने सरकारी कामों में इतना व्यस्त रहता है कि कभी आ ही नहीं पाता।लेकिन सरोज के माथे पर कभी भी इस बात की शिकन नहीं आती कि उसका बेटा उससे मिलने नहीं आ पाता।

          बस उसे तो इसी बात की खुशी है कि वह रोज अपने बेटे और बहु से फोन पर बात कर लेती है। लेकिन आज सरोज के चेहरे पर एक अलग ही खुशी दिख रही है।राजू का सवाल सुनकर सरोज ने राजू को अपने पास बैठा लिया और बड़े ही प्यार से उसे बताया।कल रात पोती जया का फोन आया था।उसने बताया पापा आखरी नवरात्रि वाले दिन जगराता करा रहे हैं।

          उसने कहाँ अम्मा अब हम आपसे काफी दिनों बाद मिल पाएंगे। जब हम लोग आपको छोड़कर मुजफ्फरनगर आए थे।तब मैं 6 साल की थी।आज पूरे 10 साल की हो गई हूँ।अक्सर आपके उसी लाड प्यार की याद आती है।आप नवरात्रि के बाद जगराते वाले दिन आओगी तो मैं आपको अपने पास से जाने नहीं दूंगी। यह बताते हुए सरोज की आंखों में आंसू आ गए।राजू बेटा, मैं बहुत भाग्यवान हूं जो मुझे ऐसे बेटा-बहू और पोता-पोती मिले हैं।जो मुझसे रोज बात करते हैं।

          खैर धीरे-धीरे नवरात्रि का समय बीता और आखरी नवरात्रा आ ही गया।नवरात्रि खत्म होने के बाद भी अम्मा को घर पर ही देख कर राजू ने पूछ लिया।अम्मा क्या हुआ आप तो बेटे के पास जाने वाली थी।4 साल से अपने अंदर सारे दुखों को समेटे हुए चेहरे पर हमेशा मुस्कान लिए हुए सरोज से अब रहा नहीं गया और उसकी आंखें छलक आई और सरोज जोर-जोर से रोने लगी।

          राजू समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या हुआ है।हमेशा चेहरे पर मुस्कान लिए रहने वाली सरोज अचानक क्यों रोने लगी।उसने अम्मा को रसोई से पानी लाकर दिया और पानी पिलाने के बाद पूछा , अम्मा क्या बात हो गई? बेटा - बहू सब ठीक है ना,कुछ अपशकुन तो नहीं हुआ है। 4 साल अपने अंदर दुख समेटे सरोज ने आखिर राजू को बताना शुरू किया।

           बेटा जब से मेरे बेटा-बहू और पोता-पोती मुजफ्फरनगर गए हैं।मुझे कोई भी फोन नहीं करता और मैं अपने घर का मान-सम्मान पड़ोस में बनाये रखने के लिए हमेशा झूठ बोलती रहती हूँ।कि मुझे रोज सबका फोन आता है।तब राजू ने अम्मा से पूछा अम्मा फिर आपको कहाँ से पता चला कि आपका बेटा जगराता करवाने वाला है।

          सरोज ने कहाँ-बेटा मुजफ्फरनगर जहाँ मेरे बेटा रहता हैं वहीं पड़ोस में मेरे जानने वाले रहते हैं। बस वही लोग मुझे उनके बारे में बताते रहते हैं।बेटे ने जगराता करा लिया और अपनी माँ को बुलाया भी नही।लेकिन मुझे इस बात की तसल्ली है कि मेरे बेटा -बहु सब कुशलता से है।माँ जगदंबे से यही अरदास करती हूँ वो उन्हें हमेशा खुश रखे।

          सरोज ने राजू को सब बता तो दिया लेकिन उन्होंने राजू को कसम दी।कि वह आज की सारी बातों को किसी को नहीं बतायेगा।राजू पूरा घटनाक्रम सुनकर अपने घर की तरफ चल पड़ा।इस घटना के काफी दिनों बाद सरोज पहले की तरह ही हमेशा मुस्कुराते हुए दिखती है।लेकिन अब सरोज की मुस्कुराहट के पीछे छुपे दर्द को वह साफ पहचान लेता है।

आज समाज के भीतर पनप रहे रावण को जलाने की जरूरत 

आज हर तरफ फैले भ्रष्टाचार और अन्याय रूपी अंधकार को देखकर मन में हमेशा उस उजाले को पाने की चाह रहती है, जो इस अंधकार को मिटाए। कहीं से भी कोई आस न मिलने के बाद हम अपनी संस्कृति के ही पन्नों को पलट आगे बढ़ने की उम्मीद करते हैं।

 

रावण को हर वर्ष जलाना असल में यह बताता है कि हिंदू समाज आज भी गलत का प्रतिरोधी है। वह आज भी और प्रति दिन अन्याय के विरुद्ध है। रावण को हर वर्ष जलाना अन्याय पर न्यायवादी जीत का प्रतीक है, कि जब जब पृथ्वी पर अन्याय होगा हिन्दू संस्कृति  उसके विरुद्ध रहेगी।

 

आतंकवाद, गंदगी, भ्रष्टाचार और महंगाई आदि बहुमुखी रावण है। आज के समय में ये सब रावण के प्रतीक हैं। सबने रामायण को किसी न किसी रुप में सुना, देखा और पढ़ा ही होगा। रामायण यह सीख देती है कि चाहे असत्य और बुरी ताकतें कितनी भी प्रबल हो जाएं, पर अच्छाई के सामने उनका वजूद उनका अस्तित्व नहीं टिकेगा। अन्याय की इस मार से मानव ही नहीं भगवान भी पीड़ित हो चुके हैं लेकिन सच और अच्छाई ने हमेशा सही व्यक्ति का साथ दिया है ।

 

दशहरा का पर्व दस प्रकार के पाप : काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी को हरता है। दशहरे का पर्व इन्हीं पापों के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। राम और रावण की कथा तो हम सब जानते ही हैं, जिसमें राम को भगवान विष्णु का एक अवतार बताया गया है। वे चाहते तो अपनी शक्तियों से सीता को छुड़ा सकते थे, लेकिन मानव जाति को यह पाठ पढ़ाने के लिए कि - "हमेशा बुराई अच्छाई से नीचे रहती है और चाहे अंधेरा कितना भी घना क्यूं न हो एक दिन मिट ही जाता है” उन्होंने ऐसा नहीं किया।

 

यह बुराई केवल स्त्री हरण से जुड़ी नहीं है। आज तो हजारों स्त्रियों का हरण होता है, कुछ लोग एक दलित को जिंदा जला देते हैं, बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं, देश में शराबखोरी और ड्रग्स की लत से युवा घिरे हुए हैं। वे युवा जिन्हें 21 वीं सदी में भारत को सिरमौर बनाने की जिम्मेदारी उठाने वाला कहा जाता है वे ड्रग्स की लत से ग्रस्त हैं। 

   

हमने रावण को मारकर दशहरे के अंधकार में उत्साह का उजाला तो फैला दिया, लेकिन क्या हम इन बुराईयों को दूर कर पाए हैं? दशहरा उत्सव अपने उद्देश्य से भटक गया है। अब दशहरे पर केवल शोर होता है और कुछ घंटों का उत्साह मगर लोग आज भी उन बुराईयों के बीच जीते हैं। इस पर्व पर लोगों से संकल्प करवाने वाले और अपनी कोई भी एक बुराई छोड़ने की अपील करने वाले भी इस पर्व के अंधकार में खो जाते हैं। रावण का पुतला सभी को उत्साहित करता है लेकिन बुराईयों से घिरे मानव को इन बुराईयों से मुक्ति नहीं मिल पाती है। 

 

धन पाने की लालसा में व्यक्ति लगा रहता है और बुराईयों के जाल में उलझ जाता है। इस पर्व में भी रावण के पुतले के दहन के साथ ही समाज उसकी बुराईयों को देखता है मगर उसकी अच्छाईयों को भूल जाता। इस पर्व पर लोगों से संकल्प करवाने वाले और अपनी कोई भी एक बुराई छोड़ने की अपील करने वाले भी इस पर्व के अंधकार में खो जाते हैं। रावण का पुतला सभी को उत्साहित करता है, लेकिन बुराईयों से घिरे मानव को इन बुराईयों से मुक्ति नहीं मिल पाती है।

             

राम ने मानव योनि में जन्म लिया और एक आदर्श प्रस्तुत किया। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों के रूप में लोग बुरी ताकतों को जलाने का प्रण लेते हैं  दशहरा आज भी लोगों के दिलों में भक्तिभाव को ज्वलंत कर रहा है। रावण विजयदशमी को देश के हर हिस्से में जलाया जाता है।

 

   साथियों वोट  देने चलो 

साथियों वोट देकर बनो लोकतंत्र का पहरेदार

वोट से करो बदलाव नेता के बदलो हाव - भाव 

आप साथी सही उम्मीदवार का करना चुनाव

भूलकर भी बेईमानों को मत देना आप भाव 

देखो साथी आपका वोट है आपकी ताकत 

हम सभी का लोकतंत्र  में यही तो ताकत है 

वोटर आईडी संग लेते जाना सुबह में ही आप

ध्यान रहे साथियों उस इंसान को देना वोट

जो हो सच्चा ईमानदार लोकतंत्र की प्रहरी हो

मतदान के दिन घर में ही आप ना रह जाना 

वरना पांच साल पड़ेगा सहना साथियों

कुछ लोग तो लोकतंत्र  का आनंद उठाते हैं

फिर ऐसे लोग वोट क्यों नहीं दे आते ?

याद रखना आप वोट से आएगा बदलाव

समाज सुधरेगा, कम होगा तनाव साथी

लोकतंत्र की लाज बचाने वालों की पहचान करो

घर से निकलें बाहर आए मिलकर मतदान करो

अगर कुछ ना समझ में आए तो नोटा ही दबा देना

 लेकिन लोकतंत्र की मजबूती के लिए वोट जरूर करें

अधिकारों की खातिर हम सभी को लड़ना होगा

चाटुकारिता व लालच से दूर सदा रहना होगा

साथियों हमें चोर-उचक्कों से क्या डरना ?

आओ हम सभी  ऐलान करें घर से निकले

मिलकर मतदान करके लोकतंत्र को मजबूत करें।।

 

Friday, October 9, 2020

रामविलास पासवान का निधन

नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री ने केंद्रीय मंत्री के निधन पर गहरा शोक प्रकट करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि उनके निधन से देश में ऐसा शून्य पैदा हुआ है जो शायद कभी नहीं भरेगा। पासवान का आज 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनके बेटे  ने ट्वीट के जरिए यह जानकारी दी। उनके निधन पर मोदी ने कहा, ‘‘दुख बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास। हमारे देश में ऐसा शून्य पैदा हुआ है जो शायद कभी नहीं भरेगा’’ उन्होंने कहा, ‘‘रामविलास पासवान जी का निधन मेरी निजी क्षति है। मैंने अपना एक दोस्त, बहुमूल्य सहयोगी और एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया है जो हर गरीब इंसान को सम्मान का जीवन सुनिश्चित करने को लेकर बहुत भावुक थे।’’ 




कड़ी मेहनत और दृढ़ता से राजनीति में अपनी एक विशेष पहचान बनाने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के नेता की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि एक युवा नेता के रूप में पासवान ने ‘‘आपातकाल के दौरान लोकतंत्र पर हुए हमले और अत्याचार’’ का पुरजोर विरोध किया था। उन्होंने कहा, ‘‘वह एक उत्कृष्ट सांसद और मंत्री थे जिन्होंने नीतिगत क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।’’ वह पांच दशक से अधिक समय से सक्रिय राजनीति में थे और देश के जाने-माने दलित नेताओं में से एक थे। पासवान उपभोक्ता, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मामलों के मंत्री थे।




उमेश कुशवाहा को पुनः टिकट मिलने से कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर

हनार (संवाददाता)दैनिक अयोध्या टाइम्स।अम्रपाली की भूमि वैशाली के महनार विधानसभा से जदयू ने निवर्तमान विधायक उमेश सिंह कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है। जिससे कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर है। आज सिंबल प्राप्त कर विधायक उमेश सिंह कुशवाहा पटना से महनार पहुंचे। महनार के अंबेडकर चौक पर बाबा साहब की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। जहां नगर अध्यक्ष अंशु राज जायसवाल और शिक्षा प्रकोष्ठ के जिला उपाध्यक्ष चंदन कुमार सिंह के नेतृत्व में स्थानीय लोगों ने भव्य स्वागत किया। वही सूफी संत खाकी बाबा के दरबार में मन्नते मांगी। वहां से निकलकर विधायक जी ने बासुकीनाथ, केदारनाथ,बैजनाथ आदि नाथों के समूह बाबा गणिनाथ के दरबार में पहुंचे और आशीर्वाद लिया। जहां चिकित्सा प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष इंद्रजीत राय,पथल राय,नगर निकाय के अध्यक्ष नागेश्वर चौधरी, अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष कुलदीप साह, रामसेवक सिंह आदि लोगों ने स्वागत किया। वहीं स्टेशन रोड बजाज एजेंसी के पास भाजपा के युवा प्रखंड अध्यक्ष अमिष कुमार के नेतृत्व में दर्जनों युवा कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया। वही पहाड़पुर बिशनपुर में अरविंद रजक, मिथिलेश गुप्ता, राजेश रंजन, गुड्डू जी, हरेंद्र पासवान, चंदन सिंह, पप्पू चौधरी आदि स्थानीय लोगों ने विधायक जी का भव्य स्वागत किया। वही चमराहरा नया टोला में सकलदीप पासवान, हरिंदर पासवान, मनोज कुमार पासवान, छठ्ठू पासवान, गणेश पासवान, महेश पासवान, आदि स्थानीय लोगों ने विधायक जी का भव्य स्वागत किया और जीत की अग्रिम बधाई दी। वहीं जदयू के महनार प्रखंड अध्यक्ष श्याम राय ने संवाददाता को बताया कि कोरोना महामारी को देखते हुए और आदर्श आचार संहिता का पालन करते हुए 12 अक्टूबर को विधायक जी अपना नामांकन पत्र निर्वाची पदाधिकारी सह अनुमंडल पदाधिकारी के कार्यालय में दाखिल करेंगे। विधायक जी महनार से कजरी स्थित अपने आवास पहुंचे।जैसे ही कार्यकर्ताओं को पता चला कि विधायक जी सिंबल प्राप्त कर घर आ गए हैं। वैसे ही बधाई देने वालों का तांता लग गया। वहीं विधायक जी ने कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि आप लोगों के सहयोग प्यार, स्नेह और आशीर्वाद का ही परिणाम है कि पार्टी के नेतृत्व ने मुझ पर भरोसा करके मुझे उम्मीदवार बनाया है। इसके लिए मैं महनार की तमाम जनता सहित एनडीए के शीर्ष नेताओं का आभारी हूं। विशेषकर आप कार्यकर्ताओं का जिन्होंने विषम से विषम परिस्थिति में भी हमारा साथ दिया हमेशा सहयोग किया हैं। मैं हमेशा से महनार की जनता का सेवा किया हूं और आगे भी करता रहूंगा। बस इसी तरह आप लोग अपना आशीर्वाद बनाए रखें। एक बार फिर से बिहार में सुशासन की सरकार बनाने के लिए आप लोग एकजुट होकर एनडीए के पक्ष में मतदान करें। वहीं क्षेत्र के लोगों ने हर्ष व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बधाई दी है। इस मौके पर जदयू जंदाहा के प्रखंड अध्यक्ष गजेंद्र राय, भाजपा के प्रखंड अध्यक्ष मनोज झा, मनोज सिंह, जदयू के जिला महासचिव सह महनार नगर प्रभारी मनोज पटेल, जिला सचिव अशोक चौधरी, विजय सिंह, मोहम्मद आकिब हुसैन, वसीम राजा, राकेश कुमार सिंह,विमल राय,अनूप लाल सिंह सहित दर्जनों लोग मौजूद थे।


"पारंपरिक और पोषक भोजन से समृद्ध होगा हमारा संस्कृति

अच्छा भोजन ही हमारा प्राथमिक भोजन है, जो कि हमारे समृद्ध परंपरा से ही प्राप्त होता है। हमें वही भोजन करना चाहिए जो प्रकृति और पोषण को आजीविकाओं के साथ जोड़ता है। ऐसा भोजन करने से दोस्त  स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा है, जैसा कि आप जानते  ही हैं कि ऐसा भोजन हमें हमारी समृद्ध जैव विविधता से प्राप्त होता है जोकि लोगों को रोजगार भी प्रदान करता है। जैसा कि हम सब देख रहे हैं दोस्त की कोविड 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण जहां आज पूरा विश्व के इंसान अपने स्वास्थ्य को लेकर पहले से ज्यादा जागरूक और सचेत हो चुके हैं। जहां भी देखे हम लोग हर तरफ चर्चा हो रही है कि अपनी इम्यूनिटी हम कैसे बढ़ाए , जिसके लिए लोग गिलोय, तुलसी और अदरक के साथ ही और भी विभिन्न प्रकार के औषधियों से अपने इम्यूनिटी को बढ़ा रहे हैं साथ ही हरी सब्जियों का अधिक से अधिक अब अपने घरों में जहां प्रयोग कर रहे हैं वही हम देख रहे हैं दूसरी तरफ की जैसे ही देश में लॉकडाउन में ढील दी गई फिर से लोग लापरवाही करना शुरू कर दिए हैं, देखने में आता है कि लोग मास्क तो लगाते है, ज्यादातर लोग इसलिए कि कहीं पुलिस  चलाना ना कर दें, वही अब फिर लोग स्वस्थ को लेकर उतना अपने सचेत नहीं दिख रहे हैं फास्ट फूड के तरफ फिर लोगो के जीभ से लार टपकने लगा है। दोस्त हमारे भोजन का ही संबंध हमारे संस्कृति और सबसे अधिक जैव विविधता के साथ ही हम सभी के मन मस्तिष्क पर भी होता है। आज से जंक फूड नहीं, वैसे भी मेरे अनुसार जंक फूड का मतलब होता है कूड़ा भोजन, अब आप सोच लो क्या आप कूड़ा वाला भोजन करना पसंद करोगे? नहीं बल्कि हमें अच्छा भोजन को ही प्राथमिक भोजन, यानी कि हमारा फास्ट फूड होना चाहिए जिससे हमारा आने वाला भविष्य उज्जवल हो जैसा कि आप जानते हैं कि हमारा देश युवाओं का देश है और आज सबसे अधिक हमारा युवा पीढ़ी ही जंक फूड और नशे के गिरफ्त में है। हमें हमेशा वही भोजन करना चाहिए जो प्रकृति और पोषण को हमारे आजीविकाओं के साथ भी जोड़ें जिससे कि हमारा पर्यावरण संतुलन भी बना रहे।

आज आंकड़ों के अनुसार देखा जाए तो हर दूसरा व्यक्ति मोटापे का शिकार है तो वही हर तीसरा व्यक्ति कुपोषण का भी शिकार है कहीं ना कहीं हमारा समाज का संतुलन बिगड़ता जा रहा है , कोई ओवरन्यूट्रिशन से परेशान है तो वही कोई मालनूट्रिशन से परेशान है। इसका मतलब है कि देश में संसाधनों में बहुत ही भेदभाव है, आज देखें तो लगभग 90 प्रतिशत संसाधनों पर 10 प्रतिशत लोगों का वर्चस्व है वहीं दूसरी तरफ 10 प्रतिशत संसाधनों पर देश के लगभग 90 प्रतिशत लोग किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं, जबकि संविधान के अनुच्छेद 14 में सभी की बराबरी की बात कही गई है लेकिन हालात क्या है यह आपके सामने है।

मेरा सवाल है कि हम खराब भोजन की इस संस्कृति में बदलाव कैसे लाएं ? देखे तो दोस्त हमारा प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग बहुत ही ताकतवर है, युवाओं को अपने साथ इसको जोड़ने की क्षमता भी है। देखा जाए तो खानपान के रंग ,गंध और खुशबू के सहारे लोगो को लुभाते  भी हैं, उन्हें सब पता है कि कैसे लोगों को लुभाना है। यह जानते हुए भी कि यह देश के लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही बुरा है, फिर भी यह लोग लुभाते रहते हैं ताकि उनकी जेब भरा  रहे।

सबसे अहम बात तो यह है कि प्रंसकृत खाद्य उद्योग ने आज हमारी अस्त-व्यस्त जीवन शैली का फायदा उठाना भी शुरू कर दिया है। दोस्त जो भी हो यह खानपान की उनकी दुनिया उनका कारोबार है, इसीलिए चलता है क्योंकि लोगों को यह लुभाते है और उनको मुनाफा कमाना होता है। यही वजह है है कि कंपनियां भोजन को हम तक पहुंचाने की आपूर्ति श्रृंखला तैयार करती । ऐसे में सवाल यह है कि अच्छे भोजन की आपूर्ति कैसे सुनिश्चित की जाए? दोस्त हम सभी ने देखा कि जब देश में वैश्विक महामारी का कहर बढ़ने लगा तो देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया तब से लोगों ने अपने घरों में खुद से खाना बनाकर अधिकतर लोग खाने लगे जिसके कारण बहुतों का स्वास्थ्य बहुत अच्छा हुआ, इसमें सबसे पहले अपना नाम इसमें शामिल करना चाहूंगा कि जब से मैं खुद से घर का बना हुआ खाना शुरू किया हूं पहले से कहीं बहुत ही ज्यादा ऊर्जावान और ताकतवार हमेशा महसूस करता हूं इसलिए आप सभी से भी विनम्र निवेदन है कि अपने व्यस्त जीवनशैली ने भी कम से कम दिन में एक बार अपने घर का खाना बना हुआ जरूर खाने का कोशिश करें, साथी हमेशा प्रयास कीजिए कि आप हमेशा जंग फूड जैसे कूड़ा वाले भोजन से बचेंगे।

 

Thursday, October 8, 2020

कोरोना का भय

चारों ओर मचा है देखो कोरोना का रोना ,

नहीं समझ में आता इसका अंत कहां है होना ,

चीन में इसने जन्म लिया और पहुंचा जाके इटली ,

सारे देश बने हैं अब इसके हाथों की तितली ,

मुश्किल किया सभी का इसने अब तो जगना सोना ,

चारों और मचा है देखो कोरोना का रोना ,

नहीं ढूंढ पाया अब तक उपचार कोई भी इसका , 

कैसे काबू करें इसे है अक्स न दिखता जिसका ,

इसके सम्मुख लगता है अब मानव बिल्कुल बौना ,

चारों ओर मचा है देखो कोरोना का रोना ,

इसके भय से छुप कर बैठे आज सभी हैं घर में , 

जान बचानी है अपनी तो रहना इसके डर में ,

पता नहीं कब धावा बोले हमको समझ खिलौना ,

चारों ओर मचा है देखो कोरोना का रोना

 

आधुनिक समाज बनाम शार्टकट की बुनियाद 

जैसे-जैसे हम और हमारा समाज आधुनिकीकरण से रूबरू हो रहा है, वैसे-वैसे उसके जीने की कला और सोच में भी भारी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। आज के दौर का हमारा आधुनिक समाज दौड़ कर जीतने के बजाय, तोड़ कर हराने में ज्यादा विश्वास करने लगा है। आम आदमी हो या विशिष्ट, सबकी निगाहों में सफलता का यह शार्टकट सबसे आसान और कारगर लगता दिख रहा है। जीवन जीने की कला का दौड़ हो या कैरियर बनाने की होड़ सब पर यह शार्टकट लगभग हावी नजर आ रहा है। राजनैतिक क्षेत्रों में तो यह शार्टकट 'तोड़ कर हराना' बहुत ही पुराना व कारगर पैतरा माना जाता रहा है, परंतु पहले के समय में इसके भी कुछ अपने कायदे-कानून हुआ करते थे। आज के आधुनिक दौर में इस शार्टकट का ना तो कोई नियम है और ना ही कोई कानून! मगर अपनाए खूब जा रहे हैं। इस आधुनिक समाज में कोई यह सोचने को तैयार नहीं है कि यह तोड़ कर जीतने का शार्टकट मानवता के लिए कितना बड़ा खतरा हो सकता है। 

आधुनिक युग हो या आदिकाल, जीतने, पाने व छीनने की चाह, सबकी प्रवृत्ति एक जैसी ही रही है, मगर यह प्रवृत्ति दौड़ कर जीतने की ज्यादा रहती थी, ना कि तोड़ कर हराने में! आधुनिकीकरण ने हमें और हमारे समाज को इतना सुख प्रदान कर दिया है कि हम स्वतः ही आलसी हो गए, यही कारण है कि हमारे अंदर आराम पसंद भावना तोड़ कर हराने का भाव ज्यादा तीव्रगति से विकसित होता जा रहा है। आराम पसंद शार्टकट के रहते, दौड़ कर जीतने की जहमत आखिर कौन उठाए? यही भावना आज हमारे आधुनिक समाज में तीव्रता से फल-फूल रही है। आज आधुनिक समाज की यह पहली प्राथमिकता रही है कि फूट डालो राज करो! दौड़ कर जीतने की होड़ में समय का नुकसान आखिर कौन करे? जबकि यह शार्टकट मानवता के लिए कितना खतरनाक है, इस विचार कोई नहीं कर रहा, बस सब अपने धुन में मस्त शार्टकट की आधुनिकता का चोला धारण करने में लगे हैं। धरती पर मानव जीवन की उत्पत्ति एक लम्बी प्रक्रिया के अंतर्गत शुरू हुई और आज तक जारी है, परंतु सोच में इतना परिवर्तन हो गया कि मानव, आद्य प्राक् मानव, आदिमानव व आधुनिक मानव में बदल गया। इसने स्वयं अपनी सोच को आधुनिकीकरण से लैस कर, शार्टकट को अपनाना शुरू किया और आज हालत यह है कि सुख-सुविधाओं का वशीभूत यह आधुनिक समाज, हर क्षेत्र में शार्टकट चाहता है तथा वह प्राथमिक रूप से शार्टकट को ही वरीयता देता है। जबकि वह यह भूल जाता है कि यही शार्टकट सामने से भी तो अपनाया जा सकता है, क्योंकि वह भी तो इसी आधुनिक समाज का ही हिस्सा है! अक्सर यही भूल बड़ी हार का कारण भी बनता है, अतः तोड़ कर हराने से ज्यादा दौड़ कर जीतने को तवज्जो देना ही बेहतर होता है, हर जगह शार्टकट आपको सफल बना दे यह जरूरी नहीं, मगर दौड़ में आपको सफलता निश्चित ही प्राप्त होती है। 

 

अन्नदाता राजनैतिक दलों का मोहरा बना हुआ है

कृषि बिल  को लेकर हम सभी देख रहे है कि आज  पूरे देश में माहौल गरमाया हुआ है. विपक्ष जहां एक तरफ जोरदार ढंग से प्रदर्शन कर रहा है. तो वहीं पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के किसान भी इन बिलों को  लेकर खासे आक्रामक हैं। ध्यान से देखिए आप आज कहीं ना कहीं खेती -किसानी के लिए सोच- विचार कुछ ज्यादा ही अचानक बढ़ गया है । आज सिर्फ किसान और सरकारे ही नहीं बल्कि शहरों में रह रहे नौकरीपेशा, उद्योग धंधों में लगे और सामाजिक चिंताशील लोग भी कृषि पर विमर्श करते दिख रहे हैं। इससे देश में कृषि पर संकट की तीव्रता दिखे या ना दिखे लेकिन राजनीतिक दलों के संकट कितना है यह जरूर दिख रहे,दोस्त आज आजादी के इतने वर्षों के बाद भी हमारे अन्नदाता के जीवन में कोई बदलाव तो नहीं आए हैं लेकिन राजनीतिक दल अपना हित साधने में जरूर सफल हो जाते हैं।

कृषि और किसानों के लिए क्या और कितना किया जाए, इस विषय पर पिछले दो दशकों में सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर खूब विचार विमर्श हुआ तथा दोनों ही स्तर पर विशेषज्ञ समितियों की ढेरों सिफारिशे हमारे सामने है। लेकिन दोस्त कृषि सुधार की हर योजना और उपाय की बात देश के सीमित संसाधनों पर आकर अटक जाती है। यह निष्कर्ष आज निकालना कतई गलत नहीं होगा कि देश के अंदर से कृषि के लिए संसाधन जुटाने की तमाम कोशिश  हो चुकी है या हो रही है और शायद इसीलिए कुछ समय से कृषि निर्यात बढ़ा कर बदहाल होती जा रही कृषि को राहत देने की कोशिशें दिख भी रही है। लेकिन वैश्विक बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों की स्थिति बेहतर अभी तक नहीं हो पाई है शायद सरकार ने यह जो नया 3 दिन बिल हम किसानों के लिए लाया है ,इससे शायद हमारे अन्नदाता के जीवन में बदलाव आ सकें।

भारत शुरू से ही कृषि प्रधान देश है, लेकिन आजाद होते ही भारत के सामने सबसे बड़ा संकट पर्याप्त भोजन की व्यवस्था का ही था । उस समय खाद्य उत्पादन हमारी मांग के हिसाब से बहुत कम था। पहली पंचवर्षीय योजना की शुरुआत में हम 47 लाख टन हम अनाज विदेशों से मंगा रहे थे। उसके 5 वर्ष बाद दोस्त हमने अपना उत्पादन बढ़ाकर हम अपना कृषि आयात घटाकर 10 लाख टन तक ले आए, लेकिन तीसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान दो युद्ध और गंभीर सूखे ने कृषि की कमर तोड़ दी और सन 1966 में भारत को अपनी आबादी की खाद्य जरूरत पूरी करने के लिए एक करोड़ टन अनाज आयात करना पड़ा। इस संकट से उबरने के लिए दोस्त उसी वक्त उन्नत बीजों के इस्तेमाल की योजना से हरित क्रांति की नींव रखी गई थी। आखिर खाद्य आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल हुआ और फिर कुछ भारतीय कृषि उत्पादों का निर्यात भी शुरू हुआ, जिसमें दोस्त गेहूं प्रमुख था। उस समय से लेकर आज तक भारत में कृषि उत्पादन औसतन बढ़ता ही जा रहा है लेकिन किसानों के जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं हुआ। देखा जाए तो आजादी के बाद पहली पंचवर्षीय योजना की शुरुआत में जो खाद्य उत्पादन करीब 5 करोड़ टन था , वह आज 28 करोड़ टन तक पहुंच चुका है, लेकिन कृषि निर्यात उस हिसाब से नहीं बढ़ पाई है। आंकड़े देखे तो कृषि निर्यात के मामले में हम आज भी वैश्विक सूची में पहले 10 देशों में भी नहीं आते हैं। अगर हम देखें तो वैश्वीकरण के इस दौर में बाजार तलाशना भी इतना आसान नहीं है। हर देश प्रतिस्पर्धा में है, ऐसे में भारत प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अभी तक निर्यात पर अलग-अलग सब्सिडी देकर अपना माल बाहर बेच रहा था। लेकिन पिछले कुछ समय से भारत पर अंतरराष्ट्रीय मंचों से यह दबाव बन रहा है कि हम अपने जिन उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए सब्सिडी दे रहे हैं, उसे बंद कर दें। विश्व व्यापार संगठन में हमारी तो शिकायत भी दर्ज कराई गई है, लेकिन  अगर हम सब्सिडी बंद करते हैं तो विदेशों में भारतीय माल के दाम बढ़ जाते हैं। सब्सिडी हटाने के लिए दूसरे देशों का तर्क है कि वैश्विक बाजार में सभी उत्पादकों के लिए समान मौके होने चाहिए, सरकार के निर्यात पर सब्सिडी दे देने से दूसरे देशों के उत्पाद की बिक्री के मौके घट जाते हैं। आज वैश्विक व्यवस्था का यही दवा हमारे ऊपर है लेकिन हाल ही में लाए गए सरकार के यह तीनों बिल आखिर हमारे अन्नदाता के जीवन में किस प्रकार से सकारात्मक बदलाव लाते हैं यह तो वक्त बताएगा।

 

Tuesday, October 6, 2020

अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर ज्ञान के प्रकाश का दीप जलायें 

5 अक्तूबर को विश्व शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। जीवन में सफलता का श्रेय शिक्षक को ही जाता है। कबीरदास जी कहते है कि बड़े-बड़े विद्वान शास्त्रों को पढ़कर ज्ञानी होने का दम भरते हैं, परंतु गुरु के बिना उन्हें ज्ञान नहीं मिलता और ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती है।

इस बात में कोई संदेह नहीं गुरु द्वारा दिखाया गया मार्ग ही सफलती की कुंजी है। आज से ठीक एक महीने पहले यानी 5 सितंबर को शिक्षक दिवस था, जिसे पूरे देश ने मनाया गया। हर साल ऐसा ही होता है। यहां हम आपको बता रहे हैं कि विशेषता एक होने के बावजूद दिन अलग-अलग क्यों हैं।

अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1966 में यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की हुई संयुक्त बैठक के कारण मनाया जाता है। उस बैठक में अध्यापकों की स्थिति को लेकर चर्चा की गई थी और सुझाव भी प्रस्तुत किए गए थे। इस दिन मुख्य रूप से कार्यरत अध्यापकों एवं सेवानिवृत्त शिक्षकों को उनके विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है।

 

इस विशेष दिन भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन का जन्म हुआ था। उनके जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। राधा कृष्णन पूरी दुनिया को स्कूल मानते थे। राधा कृष्णन का कहना था कि जब कभी भी कहीं से भी कुछ सीखने को मिले, तो उसे तभी अपने जीवन में उतार लेना चाहिए। वह अपने छात्रों को पढ़ाते वक्त उनकी पढ़ाई से ज्यादा उनके बौद्धिक विकास पर ध्यान देते थे।  

 

एक बार राधा कृष्णन के कुछ शिष्यों ने मिलकर उनका जन्मदिन मनाने का सोचा। इसे लेकर जब वे उनसे अनुमति लेने पहुंचे तो राधा कृष्णन ने उन्हें कहा कि मेरा जन्मदिन अलग से सेलिब्रेट करने के बजाय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे गर्व होगा। इसके बाद से ही 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आपको बता दें, पहली बार शिक्षक दिवस 1962 में मनाया गया था।

 

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

'नोटा ' आज के लोकतंत्र में नेताविहीन राजनीतिक आंदोलन की संज्ञा है

अगर हम 2017 में हुए पांच विधानसभाओं के चुनावों में नोटा के इस्तेमाल की बात करें तो सभी राज्यों में कई उम्मीदवारों की हार जीत में हमने देखा कि नोटा एक बहुत बड़ा कारण बनकर सामने आया था। इन विधानसभा चुनावों में नोटा को कुल नौ लाख छत्तीस हजार पांच सौ तीन  वोट मिले थे , दोस्त वोटों कि इस संख्या को किसी भी  सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि देश की आजादी के समय भारत में लोकतंत्र की स्थापना करते हुए जिस आम आदमी को इस लोकतंत्र की महत्वपूर्ण नीवं माना गया था , वह दोस्त हर 5 साल बाद इस भरोसे के साथ मतदान करता है कि चुनी जाने वाली सरकार उसके दुख दर्द को समझेगी और उसकी तरक्की के लिए हर संभव जरूरी कदम उठाएगी। किंतु दोस्त इस आम आदमी का भरोसा हर बार टूटता रहा और यह सिलसिला यथावत चला ही आ रहा है । बिहार में चुनावी बिगुल बज चुका है, सभी दल और प्रत्याशी जनता को अपने अपने तरीके से लुभाने का प्रयास कर रहे हैं ।

लेकिन हम आम आदमी का भरोसा हर बार टूटता जा रहा है इसके चलते ही हम मतदाताओं के मन में रोष पनपता जा रहा है , क्योंकि चुनावों के दौरान हमारे समझ कोई विकल्प मौजूद नहीं पहले था, लेकिन कुछ वर्ष पहले हम सभी को नोटा के रूप में एक ऐसा विकल्प मिला, जिसके जरिए दोस्त हम चुनाव में अपनी नापसंद वाले उम्मीदवारों को नकार सकते हैं। पिछले वर्ष भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव जिस प्रकार करीब 12 लाख मतदाताओ ने सभी उम्मीदवारों को खारिज करते हुए नोटा के विकल्प को चुना , बिहार में चुनावी बिगुल बज जाने के कारण दोस्त नोटा एक बार फिर चर्चा में है और ऐसे में लोकतंत्र में नोटा की सार्थकता पर चर्चा करना भी जरूरी ही है। आप अनुमान लगा सकते हैं कि चुनाव में जहां एक-एक वोट कीमती होता है, वहां इन 12 लाख नोटा वोटों का कितना महत्व रहा होगा। नोटा का मतलब होता है कि नॉन ऑफ द अबॉब यानी कि दोस्त इनमें से कोई भी नहीं। अब आप सोच सकते हो कि लोकतंत्र में सरकार बनाने के लिए जहां एक-एक वोट इतने कीमती होते हैं वहां नोटा जैसा विकल्प क्यों लाया गया? आपको बता दें कि वर्ष 2009 में चुनाव आयोग ने मतदाताओं के लिए नोटा विकल्प उपलब्ध कराने की मनसा जाहिर की थी और एक संस्था है जिसका नाम है पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने भी  इसके समर्थन में अदालत में एक जनहित याचिका दायर की थी। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर 2013 को ऐतिहासिक निर्णय में चुनाव आयोग को ईवीएम में नोटा बटन उपलब्ध कराने का आदेश देते हुए कहा कि नोटा का बटन देने से राजनीतिक दलों पर भी अच्छे चुनाव प्रत्याशी खड़े कराने का दबाव रहेगा। दोस्त यह सच है कि इससे कहीं ना कहीं राजनैतिक दल पहले से ज्यादा जनता के हितों के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले प्रत्याशी को ही चुनाव में प्रत्याशी बनाने का प्रयास करेंगे। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग ने सबसे पहले दिसंबर 2013 में छत्तीसगढ़ ,मिजोरम ,राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में ईवीएम में नोटा बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए , ताकि चुनाव में अपनी पसंद का कोई भी प्रत्याशी ना होने पर मतदाता इस बटन का प्रयोग कर सकें। उसके बाद हमने देखा 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भी नोटा का इस्तेमाल किया गया और यह तब करीब 60 लाख लोगों ने नोटा के विकल्प को चुना , जोकि 21 पार्टियों को मिले कुल वोटों से भी ज्यादा था। अदालत के समक्ष भी यह गंभीर सवाल उठाया गया था कि यदि मतदाताओं को चुनाव के दौरान कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आता है तो वे अपना मत आखिर किसे दें? वैसे इसमें यह भी ऐतिहासिक निर्णय लिया  गया है कि अगर किसी भी सीट पर नोटा विजयी हो जाता है तो ऐसी स्थिति में वहां सभी प्रत्याशी अयोग्य घोषित हो जाएंगे और फिर वह चुनाव दोबारा कराया जाएगा। दोस्त चुनाव आयोग के इस क्रांतिकारी कदम से आमजन की मतदान प्रक्रिया में आज ज्यादा से ज्यादा भागीदारी बढ़ने की उम्मीदें जगी है। हालांकि दोस्त यह विडंबना ही है कि चुनावों  में मतदान का फीसद बढ़ाने के लिए जहां मतदाताओं को जागरूक करने के प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ देखे तो पिछले 5 वर्षों से ईवीएम में नोटा का उपयोग होने के बावजूद मतदाताओं को नोटा की पर्याप्त जानकारी देने और कोई भी उम्मीदवार पसंद ना आने की स्थिति में नोटा का बटन दबाने के लिए प्रोत्साहित करने के कोई प्रयास जिस प्रकार से होना चाहिए वैसा  नहीं हो रहा है। फिर भी दोस्त आज नोटा जिस प्रकार से लोकप्रिय होता जा रहा है, उससे देखा जाए तो लोकतंत्र मे नोटा की सार्थकता निरंतर बढ़ रही है। अब सवाल यह है कि आखिर हमारे देश में चुनाव प्रक्रिया में नोटा की जरूरत ही क्यों पड़ी? दोस्त किसी भी राजनीतिक दल का एकमात्र उद्देश्य यही रहता है कि वह ऐसे व्यक्ति को ही अपना प्रत्याशी बनाए जो किसी भी प्रकार चुनाव में जीत हासिल कर सके, भले ही उसका चाल, चरित्र, योग्यता कैसी भी क्यों ना हो। 

आज हम सब देख रहे हैं कि अधिकांश प्रत्याशी धनबल बाहुबल और भाई भतीजावाद के प्रभाव से किसी भी पार्टी का टिकट हासिल करने में सफल हो जा रहे हैं ,और ऐसे उम्मीदवारों में भ्रष्ट, बेईमान, दागी एवं बागी किस्म के टिकट धारियों  की बड़ी संख्या होती जा रही है ।

ऐसे में दोस्त मतदाता के समक्ष दो ही विकल्प होते हैं, पहला तो यही कि उन तमाम प्रत्याशियों में से उस प्रत्याशी को अपना मत दें, जो उसकी नजर में सबसे कम खराब छवि का हो और दूसरा विकल्प यह है कि हम अच्छा प्रत्याशी नहीं होने के कारण वोट डालने ही नहीं जाए। दोस्त लोकतांत्रिक व्यवस्था में आमजन की अधिक से अधिक भागीदारी के लिए ही एक अन्य विकल्प पर विचार किया गया है जिसका यहां मैं चर्चा कर रहा हूं नोटा का जिससे किसी मतदाता को ही प्रत्याशी पसंद ना आने पर सभी को नकार सके ,लेकिन मतदान करने जरूर जाएं।

अगर हम कहे की नोटा एक नेता विहीन राजनीतिक आंदोलन है, जिसकी राजनीति में स्वच्छता एवं शुचिता बनाने के लिए आज के कटुतापूर्ण  और घृणित राजनीतिक माहौल में सख्त जरूरत है , तो कहीं से भी गलत नहीं होगा ।आप सभी से विनम्र निवेदन है कि वोट डालने जरूर जाएं लेकिन वोट उन्हीं को दें जिनको वोट करने का आपका आत्मा और दिल कहे ना तो विकल्प के रूप में हमारे पास नोटा है।।

 

Monday, October 5, 2020

डाकघर में कल लगेगा  आधार के लिए विशेष शिविर

राहत भरी खबर उरई प्रधान डाकघर से
दैनिक अयोध्या टाइम्स ब्यूरो रिपोर्ट
उरई- स्कूल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले छात्र छात्राओं से लेकर अन्य कार्य के लिए आधार कार्ड बनवाने वाले लोगों के लिए राहत भरी खबर है ।



आधार कार्ड में संशोधन कराने व नया आधार बनवाने के लिए मंगलवार 6 अक्टूबर को डाकघर की तरफ से आधार के लिए विशेष शिविर का आयोजन किया जाएगा। डाकघर की ओर से महा लॉगिन डे के रूप में मनाते हुए सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक प्रधान डाकघर उरई में आधार कार्ड संशोधन व नया आधार बनाने का कार्य किया जाएगा ।
जिले में इन दिनों आधार कार्ड बनवाने और संशोधन को लेकर मारामारी मची हुई है । कई डाकघर व बैंक की शाखाओं में आधार का कार्य या तो कम हो रहा है या हो ही नहीं रहा है इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रधान डाकघर में विशेष शिविर का आयोजन किया जा रहा है जिससे लोगों की परेशानियों को कुछ कम किया जा सके सहायक  डाक अधीक्षक उरई राजीव तिवारी ने बताया कि इसके लिए विशेष काउंटरों की व्यवस्था प्रधान डाकघर उरई में की गई है उन्होंने कहा कि 6 अक्टूबर को सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक आधार बनाने व संशोधन का करने का कार्य शुरू किया जाएगा ।


Saturday, October 3, 2020

भारतीय सेना को अपनी सेकुलर पहचान पर गर्व है

पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तान द्वारा भारतीय सेना के खिलाफ और विशेष रूप से सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) में तैनात वरिष्ठ अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल तरनजीत सिंह के खिलाफ राज्य प्रायोजित दुर्भावनापूर्ण सोशल मीडिया अभियान चलाया गया। देश के भीतर धर्म आधारित असहमति को भड़काने में लगातार असफल होने के बाद पाकिस्तान हताश है। उसने अब भारतीय सेना के भीतर विभाजन की कोशिश कर रहा है।


भारतीय सेना संस्थान को बदनाम करने के ऐसे कुत्सित प्रयासों को स्पष्ट रूप से खारिज करती है।


भारतीय सेना एक धर्मनिरपेक्ष संगठन है, और इसके सभी अधिकारी, सैनिक अपने धर्म, जाति, पंथ या लिंग का ख्याल किए बिना राष्ट्र की सेवा करते हैं।



पीड़ा

क्या कहूं बहुत ही पीड़ा है

ये हृदय भयानक जलता है

इस जग में ऐसा घोर भयानक

अधम कर्म क्यों पलता है

क्यों बार-बार नारी का पावन

आंचल मैला होता है

सुन घोर भयानक कृत्यों को

पत्थर का मन भी रोता है

घनघोर अधम इन पापों का

क्या कोई भी उपचार नहीं

इन दुष्टों, नीचों, अधमों का

होता अब क्यों संहार नहीं

यूं भीड़ जुटाकर, शोक मनाकर

चुप हो जाएंगे बस हम

कुछ दिन ऐसे ही रो लेंगे

पर पाप कभी न होंगे कम

 

रंजना मिश्रा ©️®️

कानपुर, उत्तर प्रदेश

 

 

हमारी बीमारी को आदर्श नहीं चाहिए, हम झेल लेंगे! 

आदर्श गाँव के बारे में तो सबने सुना ही होगा कि किसी रियायतदार के हाथ एक गाँव को गोद लिया जाता है, मगर हमारा गाँव अपंग, अनाथ तो नहीं! कि उसे गोद लेना पड़े। हम अपनी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सभी बीमारियों से निपटने में स्वयं सक्षम हैं। देखा नहीं है क्या? कि जब हमारे बीच अनबन होती है, तो हम गाली-गलौच से अनबन का निपटारा कर ही लेते हैं। इससे भी अगर बात नहीं बनती तो लाठी-डंडों से समझौता हो ही जाता है, ऐसे में जब हम अपने मामलों को स्वयं येन-केन-प्रकारेण निपटा ही लेते हैं, तो हमारे गाँव को पुलिस स्टेशन जैसे आदर्श संरक्षण की क्या आवश्यकता? हमारा गाँव तो स्वयं में ही एक आदर्श है कि अपने मामलों को स्वयं निपटा लेता है। बाहरी हस्तक्षेप हमें बर्दाश्त नहीं! क्योंकि हमारा गाँव परिवार सरीखा है, अपंग, अनाथ नहीं कि कोई आए और उसे गोद लेकर आदर्श बनाए। चलो एक बार यह मान भी लेते हैं कि हमारे गाँव को आदर्श गाँव बनाने की जरूरत है, पर क्या यह बताएंगे? कि यह आदर्श गाँव बनाने की जरूरत क्यों केवल चुनावी दंगलों में ही महसूस होती है? क्या चुनावी दौर से पहले व बाद हमारा गाँव अपंग व अनाथ नहीं हो सकता? 

यह एक गाँव है, साहेब! यह अपना अच्छा-बुरा सब समझता भी है, निपटता भी है, यह कोई दूध पीता बच्चा नहीं कि खिलौना दिखाकर बहका लोगे और यह गोद में कूद पड़ेगा। आदर्श के नाम की लॉलीपॉप अब बहुत चूस ली हमनें, अब हकीकत का विकास चाहिए हमें, न कि महज आदर्श गाँव का तमगा! हमारे गाँव को ऐसे आदर्शवादी अस्पताल की जरूरत नहीं, जो लाश के भी पैसे बनाते हों! हमारे गाँव में तमाम नीम-हकीम, झोलाछाप डॉक्टर व दाई हैं। और तो और हमारे गाँव की दाई तो होशियार व बुद्धिमान भी खूब है, अगर रात में मृत्यु हो तो सुबह ही प्रमाणित करती हैं, क्योंकि उसे गाँव वालों की चिंता है, वह गाँव वालों की रात की नींद खराब करना नहीं चाहती। हमारे गाँव में स्कूल की भी कोई कमी नहीं है, मास्टर जी दिल खोलकर शिक्षा प्रदान करवा रहे हैं, फिर रिजल्ट खराब आए तो यह शिक्षार्थी की गलती, ना कि शिक्षक की! अब आज गाँव आदर्श हुआ नहीं कि मास्टर जी की पेशी, नेता जी टांग पर टांग चढ़ाए कुर्सी पर और मास्टर जी खड़े हो टुकुर-टुकुर निहारे जा रहे बेचारे। यह दशा अगर आदर्श गाँव को परिभाषित करे तो नहीं चाहिए, हमें आदर्श गाँव! हमारी बीमारी को हम येन-केन-प्रकारेण आज तक ठीक करते आए हैं और आगे भी कर ही लेंगे! 

 

जैविक और प्राकृतिक कृषि में सुनहरा भविष्य 

देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, वहीं यह सेक्टर 50 फीसद से ज्यादा आबादी को रोजगार भी उपलब्ध कराता है। इसके अलावा हाल के वर्षों में जिस तरह से कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण हुआ है, इसमें नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ा है। पारंपरिक खेती के साथ-साथ आर्गेनिक और इनोवेटिव फार्मिंग हो रही है, उसने एग्रीकल्चर के प्रति समाज और खासकर युवाओं का नजरिया काफी हद तक बदला है। यही कारण है कि बीते कुछ समय में आईआईटी और आईआईएम से पास आउट कई युवाओं ने मल्टीनेशनल कंपनियों का जॉब छोड़कर एग्रीकल्चर और एग्रीबिज़नस की ओर रुख किया है।

 

जैविक खेती का जिक्र तो आजकल बहुत हो रहा है, लेकिन सवाल यह है कि किसी को इसमें करियर बनाना है, तो वह क्या करे। गौरतलब है कि यह ऐसी खेती है, जिसमें सिंथेटिक खाद, कीटनाशक आदि जैसी चीजों के बजाय तमाम आर्गेनिक चीजें जैसे गोबर, वर्मी कम्पोस्ट, बायो फर्टिलाइजरस, क्रॉप रोटेशन तकनीक आदि का इस्तेमाल किया जाता है। कम जमीन में कम लागत में इस तरीके से पारंपरिक खेती के मुकाबले कहीं ज्यादा उत्पादन होता है। यह तरीका फसलों में जरुरी पोषक तत्वों को संरक्षित रखता है और नुकसानदेह केमिकल्स से दूर रखता है। साथ ही यह पानी भी बचाता है और जमीन को लम्बे समय तक उपजाऊ बनाये रखता है। यह पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में मददगार है।

 

कृषि वैज्ञानिक आपकी जमीन की जांच करेंगे और यह तय करेंगे कि इसकी मिट्टी किस तरह की फसल के लिए अच्छी है। इसके बाद आपका प्रोजेक्ट कृषि विभाग में पास होने के लिए भेज दिया जायेगा। आर्गेनिक फार्मिंग के लिए तकरीबन हर राज्य में सरकार 80 से 90 फीसद तक सब्सिडी देती है। आज के समय में जो भी कंपनी किसानों के साथ बिज़नस ट्रांजेक्शन कर रही हैं, फिर चाहे वह खाद्यान्न, फल, फूल से जुड़ा हो या किसी सर्विस से, उसे एग्रीबिजनेस सेक्टर में शामिल किया जाता है। इसी तरह बीज, कीटनाशक, एग्रीकल्चर इक्विपमेंट की सप्लाई, एग्री-कंसल्टेंसी, एग्रो-प्रोडक्ट की स्टॉकिंग, फसल का बीमा कराने या खेती के लिए लोन देने का काम भी एग्रीबिजनेस के अंतर्गत आता है। एग्री-प्रोडक्शन में इन्वेस्टमेंट से लेकर उसकी मार्केटिंग तक का काम एग्री-बिज़नस कहलाता है।

 

भारत का एग्रीकल्चर सेक्टर आज सिर्फ अनाजों के उत्पादन तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसमें बिज़नस के अवसर भी काफी बढ़ चुके हैं। फसलों की हार्वेस्टिंग से लेकर प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन में काम करने के लिए कई सारे मौके पैदा हुए हैं। इसके अलावा एडवांस टेक्नोलॉजी के आने से फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री और फ़ूड रिटेल सेक्टर में अनेक प्रकार के रोजगार सृजित हुए हैं, उन्हें मल्टीनेशनल कंपनियों में अच्छे पे-पैकेज पर रखा जा रहा है। इसके अलावा, एग्रीकल्चर और इससे जुड़े फील्ड के क्वालिफाइड यूथ के लिए वेयरहाउस, फ़र्टिलाइज़र, पेस्टिसाइड्स, सीड और रिटेल कंपनी में तमाम तरह के विकल्प सामने आ चुके हैं।

 

कृषि अब पूरी तरह से मानसून पर निर्भर नहीं है। वैज्ञानिक तरीके से अगर खेती की जाये, तो फसल भी अच्छी होती है और पानी भी कम लगता है। पहले जैसे सूखे के हालात अब नहीं पैदा होते। अब बारिश के पानी का स्टोरेज भी बेहतर तरीके से किया जाता है। इससे बारिश कम होने पर भी फसलों को पर्याप्त पानी मिल जाता है।

 

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

 गूंगे बहरे और अंधो अब उठो 

ये कैसी राम राज गला घोट दिया लोकतंत्र का 

देखो वो एक नही जो बे-आबरू हुई आज रे

क्या हम सबकी रूह बेज़ार नहीं हुई देखकर ?

वो बहन जो लुटी सर-ए-बाज़ार आज साथियों

क्या वो बहन  इज्ज़त की हक़दार नहीं  यारों

कितने ही आज दुर्शाशन खड़े  इस बाजार में 

पर कोई रखवाला गोपाल नहीं नजर आता 

कहां  छुपे हो तुम आज कृष्ण,चौकीदार 

क्यों किया द्रौपदी पे आज उपकार नहीं रे

लुटते मरते सब देख रहे कर रहे सियासत

गांधी के देश में अब कैसा हो गया देश मेरा

देखो ना यहाँ कोई भी शर्म सार नही साथियों

 सिर्फ आबरू नहीं लुटी बल्कि रूह को चिरा है

उसकी आँखों में दहशत है आहो में पीड़ा है

वो शर्मनाक हरक़त वाले उन्हें पाप का अंजाम दो

उसे मौत दो,उसे मौत दो दरिंदे ओ जानवर 

किसी माफ़ी के हक़दार नही साथियों

मिटा सके जो दर्द तेरा वो शब्द कहां से लाऊं

चूका सकूं एहसान तेरा वो प्राण कहां से लाए

खेद हुआ है आज मुझे लेख से क्या होने वाला

लिख सकूं मैं भाग्य तेरा वो हाथ कहां से लाऊं

देखा जो हालत ये तेरा छलनी हुआ कलेजा 

रोक सके जो अश्क मेरे वो नैन कहां से लाए

कैंडल मार्च, आंदोलन करके थक गए हम 

लेकिन वजीर के कानों में जूं तक ना रेगा

ख़ामोशी इतनी  क्यों क्या गूंगे बहरे हो गए सारे

सुना सकूं जो हालत तेरी वो जुबां कहां से लाए

चिल्लाहट पहुँचा सकूं बहरे इन नेताओं को रे

झकझोर सकूं इन गूंगे बहरे और अंधे मूर्दो को

अब  ईश्वर वो मेरे को शक्ति  दे दो  ।।।

 

Thursday, October 1, 2020

 रीढ़ आज बेटी का ही नहीं टूटा है बल्कि देश के सभी मानव का रीढ़ टूटा है 

हम सभी ने 3 दिन पहले ही डॉटर्स डे बड़ा ही धूमधाम से मनाया, देश की बेटियों के लिए बड़ी-बड़ी बातें कही गई, तस्वीर साझा की गई बेटियों के सुनहरे भविष्य की कामना की गई, लेकिन क्या दोस्त हम एक समाज के तौर पर देश की बेटियों को आज हम यह आश्वासन दे सकते हैं कि बस अब बहुत हो गया अब ऐसा हमारे समाज में नहीं होगा, क्या हमारा शासन प्रशासन व कानून व्यवस्था यह आश्वासन भी दे सकता है कि अब ऐसा अन्याय हमारी बेटियों पर नहीं होगा? दोस्तों याद रखना संस्कार ही ऐसे घिनौनी मानसिकता से हमारे समाज मे होने वाले अपराधों से बचा सकता है।

उत्तर प्रदेश के हाथरस में दो हफ्ते पहले गैंगरेप का शिकार हुई बेटी की  29 सितंबर को मौत हो गई ये 19 साल की बेटी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती थी  परिवार के मुताबिक पुलिस ने मदद नहीं किया बल्कि जब जरूरत थी इस बेटी को इलाज की तब पुलिस ने थाने में रखा हुआ था । जानकारी के मुताबिक 14 सितंबर को जब पीड़िता की हालत बिगड़ने लगी तब रिश्तेदार उसे पास के एक अस्पताल में लेकर गए. पुलिस ने शुरुआत में सिर्फ गला दबाने और एससी/एसटी एक्ट के तहत ही मामला दर्ज किया था. आपको बता दें कि गैंगरेप की धारा लगाने में ही पुलिस को पूरे 8 दिन लग गए। 22 सितंबर को लड़की का बयान दर्ज होने के बाद ही पुलिस ने गैंगरेप की धारा लगाई। 27 सितंबर को तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगा तब लड़की को अलीगढ़ से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया जहां उसकी मौत हो गई।

दोस्त प्रशासन या सरकार में बैठे बुद्धिमान लोग चाहे जो भी दलील दे लेकिन आज यह सच है कि 2 हफ्ते से अस्पताल दर अस्पताल अपनी जिंदगी की जंग लड़ रही इस बहन की जान नहीं बचाई जा सकी, निर्भया गैंग रेप के वक्त हम सभी ने सड़कों पर उतरे पटना से दिल्ली आए संसद भवन का घेराव किया हम सभी ने आज   यह सब किए हुए आज 8 वर्ष से भी ज्यादा हो गया ध्यान से देखें तो इन 8 वर्षों में भी कुछ नहीं बदला, जो दर्द निर्भया के पिता का था वही दर्द आज हाथरस की इस बहन के पिता का है।

आपको भी याद होगा निर्भया घटना दिसंबर 2012 में जब हुआ था उस वक्त पूरा देश एक साथ सड़क पर उतर आया था ऐसा लग रहा था कि हमारा भारत जाग गया है और अब भारत में एक भी नारी रेप या हिंसा की शिकार नहीं होगी।

दोस्त दिसंबर 2012  हमें याद है उस वक्त मैं खुद स्कूल का छात्र था पटना से आवाज उठाते उठाते हम सभी ने दिल्ली तक आए थे उस समय यह भी देखा मैं की बॉलीवुड के लोगों ने भी इन विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा बने थे। आज फिर हमें उसी तरह से मजबूती के साथ आवाज उठाने की जरूरत है, ताकि बहन को न्याय मिले और ऐसी घटनाएं हमारे सभ्य समाज में आगे से नहीं हो।

अगर दोस्त हम नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े देखें तो 2012 में प्रतिदिन रेप की 68 घटनाएं हुई, जिसकी संख्या दोस्त 2013 में बढ़कर 92 हो गई, 2014 में 100 रेप के मामले प्रतिदिन दर्ज हुए, वहीं वर्ष 2016 के आंकड़े देखें तो 106 रेप केस दर्ज हुए हैं। यह मैंने यहां एनसीआरबी के वो आंकड़े बताएं जिसको रिकॉर्ड किया गया है लेकिन आपको बता दें कि अधिकतर मामले तो नजदीकी थाने तक भी नहीं पहुंच पाते हैं अगर पहुंच भी जाए तो रिपोर्ट लिखी ही नहीं जाती है जैसा कि इस हाथरस के बेटी के रिपोर्ट लिखने में ही उत्तर प्रदेश के पुलिस को पूरे 8 दिन लग गया , अब आप समझ सकते हैं कि आखिर हमारे समाज में न्याय के लिए लोगों को कितना संघर्ष करना पड़ता है। दोस्तों एक नारी ही हमें अपने कोख में 9 माह रखकर इस धरती पर लाती है, कोई भी नारी हो किसी न किसी का वह मां होती है चाहे उनसे हमारा कोई भी रिश्ता हो यह हम सभी जानते हैं कि एक नारी ही कभी मां, कभी दोस्त, पत्नी, दादी मां, नानी ना जाने कितनी रिश्तो में हमें अपनाकर हम सभी को प्यार देती है जीवन में आगे बढ़ने के लिए सिचती है, आप ही सोचो दोस्त फिर आज ऐसी घटनाएं एक मां के साथ क्यों हो रही है? जबकि हर एक नारी किसी ना किसी की मां है आप सभी से विनम्र निवेदन है कि चाहे आपका एक नारी से कोई भी रिश्ता हो लेकिन आप उनको जननी मां ही समझना, आज बहुत जरूरत है हमें अपने बच्चों में यह संस्कार डालना कि हर एक नारी मां का ही रूप है , वही हम सभी को 9 माह अपनी कोख में रखकर इस धरती पर लाती है, याद रखना नारी का सम्मान जहां है संस्कृति का वहां उत्थान है। हर एक नारी में मां का ही स्वरूप है।

 

कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया-चिंतक /पत्रकार/ आईएएस मेंटर/दिल्ली विश्वविद्यालय 9069821319

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो ?

बिन पेंदे के लौटे सा लुढ़क रहे हो

तुम थाली के बैगन से दिख रहे हो

हर चुनाव मे दल क्यो बदल रहे हो?

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो?

गिरगिट सा रंग रोज बदल रहे हो

चुनाव मे किये सारे वादे भुलाकर

तुम क्यो अपनी ढ़पली बजा रहे हो?

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो?

जनता को मूर्ख क्यो समझ रहे हो?

जाति,धर्म और मानवता की बलिवेदी पर 

तुम तो राजनीति की रोटी सेक रहे हो।

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो?

वोट के लिए धर्म भी बदल रहे हो

एक दूजे पर तंज भी कस रहे हो

वोट पाने का ताना बाना बुन रहे हो।

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो?

रोजगार,शिक्षा,स्वास्थ्य और विकास भूलकर

तुम कैसी ये राजनीति अब कर रहे हो?

बोलो सपनो का भारत तुम कैसा रच रहे हो?

 

रचनाकार:-

अभिषेक कुमार शुक्ला

सीतापुर, उत्तर प्रदेश

 गाँधी जी की राय

       राजू एक नवी कक्षा का छात्र है और अपने घर के पास ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ता है।राजू बचपन से ही पढ़ने बहुत होशियार विद्यार्थी है।लेकिन उसके दिमाग की सारी अच्छाइयां उसके गणित के अध्यापक के सामने खत्म हो जाती हैं। वह लगातार अपने गणित के अध्यापक के हाथों डांट खाता रहता है और कक्षा से बाहर किया जाता रहता है।राजू इस बात से बहुत ही दुखी था।क्योंकि अपनी तरफ से तो वह सभी सवालों का सही जवाब देता है।लेकिन ना जाने क्यों गुरुजी लगातार उसे डांटते रहते है और कक्षा से बाहर निकालते रहते हैं।

          गाजियाबाद के सरकारी स्कूल मैं पढ़ रहा राजू बड़ी ही मेहनत से अपनी पढ़ाई कर रहा था।क्योंकि उसे पता था कि वह अपने गरीब मां-बाप का भविष्य पढ़कर ही सुधार सकता है।2 अक्टूबर आने वाली थी यानी कि हमारे *प्यारे बापू ( महात्मा गाँधी )*जी का जन्म जिस दिन हुआ था।आज रात राजू कुछ ज्यादा ही परेशान था।रात को परेशान होते-होते राजू ने महात्मा गांधी जी की तस्वीर, जो कि उसके घर की दीवार पर टंगी हुई थी।उसने बापू के हाथ जोड़े और प्रार्थना की,बापू मुझे अपने गणित के अध्यापक की डाट खाने से बचा लो।उसके बाद वो सो गया।

          राजू को अभी नींद नही आयी थी कि उसने देखा,अचानक तस्वीर से निकलकर बापू,राजू के सामने खड़े हो गए।उन्होंने राजू की समस्या का बड़े ही ध्यान से सुना और राजू से पूछा कि आखिर क्या वजह है,वह अध्यापक उसी को इतना डांटते है।राजू ने बताया कि वह सारे सवालों का सही जवाब देता है।किंतु उसके गणित के अध्यापक सबके सामने उसका मजाक उड़ाकर कक्षा से निकाल देते है और सभी छात्र भी उसका मजाक उड़ाते है।

         सब बातों को सुनकर गांधी जी ने उसे एक उपाय बताया।बेटा राजू,तुम रोज अपने अध्यापक के पास जाओ और उन्हें हाथ जोड़कर नमस्ते करके,बिना उनसे डांट खाए,अपनी गणित की कॉपी उन्हें देकर खुद ही मुस्कुराते हुए कक्षा के बाहर आकर खड़े हो जाओ और उन्हें ये जरूर बता देना कि आप तो मुझे कुछ देर बाद निकाल ही दोगे।देखना इस बात से उनके ऊपर बहुत असर पड़ेगा और वह तुम्हें कक्षा के अंदर लेकर सही तरीके से पढ़ाने लगेंगे और तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाएगा।

          राजू को उनका ये उपाय बहुत अच्छा लगा।अगले ही दिन वह कक्षा में पहुँचा और जैसे ही गणित के अध्यापक आए।उसने उनसे हाथ जोड़कर नमस्ते की और कहा सर थोड़ी देर में तो आप मुझे डांट कर कक्षा से निकालने वाले हैं।मैं खुद ही कक्षा से बाहर जाकर खड़ा हो जाता हूँ और वह कक्षा से बाहर जाकर खड़ा हो गया।यह घटनाक्रम लगातार पांच दिन चलता रहे लेकिन गणित के अध्यापक पर कोई भी असर नहीं पड़ा।बल्कि वह हंसते हुए उसके सामने से रोज निकल जाते हैं।राजू बहुत ही परेशान था।

          कल 2 अक्टूबर है।उसने एक बार फिर बापू से पूछा,बापू-अध्यापक के ऊपर तो कोई भी असर नहीं हो रहा है। मैं क्या करूं,तब बाबू ने कहा बेटा कल तुम मेरी फोटो को लेकर जाना और यह घटना दोबारा से दोहराना।उन्हें गणित की कॉपी के साथ मेरी तस्वीर भी जरूर दे देना।अगले दिन राजू ने फिर उसी घटना को दोहरा दिया।इस बार गणित के अध्यापक को हाथ जोड़कर नमस्ते कर,उसने बापू की तस्वीर भी उनको दे दी और कक्षा से बाहर आकर खड़ा हो गया।

          लेकिन आज गणित की कक्षा समाप्त होने के बाद गणित के अध्यापक ने राजू को निराश नहीं होने दिया।उन्होंने राजू को दो 500 रुपये के नोट दिखाये।जिस पर महात्मा गांधी जी का फोटो छपा हुआ था। उन्होंने राजू को बताया बेटा कक्षा के लगभग सभी विद्यार्थी मुझसे ट्यूशन लेते हैं जिससे कि वह पास होकर अगली कक्षा में पहुंच जाएंगे।एक तुम ही हो,जो मुझसे  ट्यूशन नहीं पढ़ते। बेटा मेरी बात समझने की कोशिश करना,बापू की बात तो आज भी सारी  सही है।लेकिन जो तस्वीर तुम्हारे हाथ में है और जो तस्वीर मेरे हाथ में इस नोट पर है।उस तस्वीर वाले रुपयों से मुझसे ट्यूशन लो और देखना तुम्हे मैं फिर कभी कक्षा से नही निकलूंगा।

          राजू खुशी-खुशी अपने घर पहुँचा।शाम को फिर बापू की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर बापू से बोला, आखिर आपकी तस्वीर ने मुझे आज बचा ही लिया।अब मैं समझ गया हूँ कि मुझे आगे क्या करना है।बापू ने कहाँ,देखा मैंने तो कहाँ ही था सब कुछ ठीक हो जाएगा।फिर महात्मा गांधी जी ने भी अचंभित होकर सारी घटना को सुना।

          *बापू ने सारी घटना सुनकर यही निष्कर्ष निकाला,कि शायद आज उनकी बातों को और उन्हें लोगो ने इसीलिए नही भुलाया,क्योंकि उनकी तस्वीर एक ऐसे कागज पर मौजूद है।जिसकी जरूरत जीवन की दिनचर्या चलाने के लिए बार-बार पड़ती है।वरना लोग शायद उन्हें कब का भूल जाते।बापू निराश होकर भारी मन के साथ वापस तस्वीर में चले गए।*

नीरज त्यागी `राज`

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).