Sunday, November 29, 2020
हिन्दू युवा वाहिनी के प्रदेश उपाध्यक्ष ने किया यज्ञशाला का लोकार्पण
देश का प्रधानमंत्री अन्नदाता ही होना चाहिए
भारतीय संस्कृति : आधुनिकता एवं प्राचीनता दोनों संग लेकर चलें
Saturday, November 28, 2020
गरीबी कभी भी शिक्षा में बाधक नहीं
दिल की आवाज सुनो राही
भारतीय संविधान की गौरव गाथा
डॉ. भीम राव आंबेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता माना जाता है. निःसंदेह उन्होंने समानुभूति के साथ संविधान को रूप, आकार, स्वरूप, चरित्र प्रदान किया. लेकिन वास्तविकता यह है कि संविधान के निर्माण में केवल डॉ. भीम राव आंबेडकर की ही भूमिका नहीं थी. भारत का संविधान एक साझा पहल का नतीजा है। ]
भरतीय परिप्रेक्ष्य से अक्सर हमारे सामने यह तथ्य आता है कि भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीम राव आंबेडकर हैं, लेकिन यह एक अधूरा तथ्य है. डॉ. आंबेडकर ने भारत के संविधान में न्याय, बंधुत्व और सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र के भाव को स्थापित करने में केन्द्रीय भूमिका जरूर निभाई थी, किन्तु वे संविधान के अकेले निर्माता या लेखक नहीं थे।
जहां तक संविधान निर्माण की पूरी प्रक्रिया का सवाल है, इसमें व्यापक रूप से संविधान सभा के कई सदस्यों ने ऐसी भूमिका निभाई थी, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. मसलन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पेश किया था, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मूलभूत अधिकारों और अल्पसंख्यक समुदायों के हितों की सुरक्षा के लिए बनाई गई समिति का समन्वय किया था. आदिवासी समाज के हकों पर जयपाल सिंह ने बहुत अहम भूमिका निभाई, तो वहीं इसे भारतीय दर्शन से जोड़ने में डॉ. एस. राधाकृष्णन की भूमिका बहुत अहम रही।
29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने मसौदा (प्रारूप) समिति के गठन का निर्णय लिया. इस समिति की भूमिका के दायरे को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि "परिषद् (संविधान सभा) में किए गए निर्णयों को प्रभाव देने के लिए वैधानिक परामर्शदाता (बी एन राव) द्वारा तैयार किए गए भारत के विधान (संविधान) के मूल विषय की जांच करना, उन सभी विषयों के जो उसके लिए सहायक हैं या जिनकी ऐसे विधान में व्यवस्था करनी है और कमेटी द्वारा पुनरावलोकन किए हुए विधान के मसौदे के मूल रूप को परिषद् के समक्ष विचारार्थ उपस्थित करना।
यह भी एक सच है कि डॉ. आंबेडकर ने 25 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में संविधान का अंतिम मसौदा प्रस्तुत करते हुए जो कहा, उसे भारत ने भुला दिया है. उन्होंने कहा था कि “जो श्रेय मुझे दिया जाता है, उसका वास्तव में मैं अधिकारी नहीं हूं. उसके अधिकारी बी एन राव हैं, जो इस संविधान के संवैधानिक परामर्शदाता है. और जिन्होंने मसौदा समिति के विचारार्थ संविधान का एक मोटे रूप में मसौदा बनाया. कुछ श्रेय मसौदा समिति के सदस्यों को भी मिलना चाहिए, जिन्होंने 141 दिन तक बैठकें कीं और उनके नए सूत्र खोजने के कौशल के बिना तथा विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति सहनशील तथा विचारपूर्ण सामर्थ्य के बिना इस संविधान को बनाने का कार्य इतनी सफलता के साथ समाप्त न हो पाता।
सबसे अधिक श्रेय इस संविधान के मुख्य मसौदा लेखक एस.एन. मुखर्जी को है, बहुत ही जटिल प्रस्थापनाओं को सरल से सरल तथा स्पष्ट से स्पष्ट वैध भाषा में रखने की उनकी योग्यता की बराबरी कठिनाई से की जा सकती है. इस सभा के लिए वे एक देन स्वरूप थे. उनकी सहायता न मिलती तो इस संविधान को अंतिम स्वरूप देने में इस सभा को कई और वर्ष लगते।
यदि यह संविधान सभा विभिन्न विचार वाले व्यक्तियों का एक समुदाय मात्र होती, एक उखड़े हुए फर्श के समान होती, जिसमें हर व्यक्ति या हर समुदाय अपने को विधिवेत्ता समझता तो मसौदा समिति का कार्य बहुत कठिन हो जाता. तब यहां सिवाए उपद्रव के कुछ नहीं होता. सभा में कांग्रेस पक्ष की उपस्थिति ने इस उपद्रव की संभावना को पूरी तरह से मिटा दिया. इसके कारण कार्यवाहियों में व्यवस्था और अनुशासन दोनों बने रहे. कांग्रेस पक्ष के अनुशासन के कारण ही मसौदा समिति यह निश्चित रूप में जानकर कि प्रत्येक अनुच्छेद और प्रत्येक संशोधन का क्या भाग्य होगा, इस संविधान का संचालन कर सकी. अतः इस सभा में संविधान के मसौदे के शांत संचालन के लिए कांग्रेस पक्ष ही श्रेय की अधिकारी है।
यदि इस पक्ष के अनुशासन को सब लोग मान लेते तो संविधान सभा की कार्यवाही बड़ी नीरस हो जाती. यदि पक्ष के अनुशासन का कठोरता से पालन किया जाता तो यह सभा "जी हुज़ूरों" की सभा बन जाती. सौभाग्यवश कुछ द्रोही थे. श्री कामत, डॉ. पी.एस. देशमुख, श्री सिधावा, प्रो. सक्सेना और पंडित ठाकुर दास भार्गव थे. इनके साथ-साथ मुझे प्रो. के.टी. शाह और पंडित हृदयनाथ कुंजरू का भी उल्लेख करना चाहिए. जो प्रश्न उन्होंने उठाए, वे बड़े सिद्धान्तपूर्ण थे. मैं उनका कृतज्ञ हूं. यदि वे न होते तो मुझे वह अवसर नहीं मिलता, जो मुझे इस संविधान में निहित सिद्धांतों की व्याख्या करने के लिए मिला और जो इस संविधान के पारित करने के यंत्रवत कार्य की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण था।
चूंकि भारतीय संविधान के बारे में यह कहा जाता है कि यह ब्रिटिश उपनिवेशवादी व्यवस्था के तहत बनाए गए भारत शासन अधिनियम (1935) की प्रतिलिपि है. इसके लिए डॉ. भीम राव आंबेडकर की सभा में खूब आलोचना भी हुई. इस विषय में पंडित बाल कृष्ण शर्मा ने कहा कि इस विषय पर जो कुछ मैं कह सकता हूं, वह यह कि मसौदा समिति, डॉ. आंबेडकर और उन सबके लिए जिन्होंने डॉ. आंबेडकर का साथ दिया, यह गौरव की बात है कि वे संकीर्णता की किसी भी भावना से प्रेरित नहीं हुए. आखिर हम एक संविधान बना रहे हैं. हमारे सामने आधुनिक प्रवृत्तियां, आधुनिक कठिनाइयां और आधुनिक समस्याएं हैं. अपने संविधान में हमें इन सबके लिए उपबंध करना हैं और इस कार्य के लिए यदि हमने भारत शासन अधिनियम का सहारा लिया, तो हमने कोई पाप नहीं किया है।
संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 26 नवम्बर 1949 को, यानी उस दिन, जब संविधान आत्मार्पित किया गया, सभा की कार्यवाही का समापन करते हुए कहा कि "संविधान के संबंध में जिस रीति को अपनाया, वह यह थी कि सबसे पहले "विचारणीय बातें" निर्धारित की, जो लक्ष्य मूलक संकल्प के रूप में थी, जिसके ओजस्वी भाषण द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पेश किया था और जो अब हमारे संविधान की प्रस्तावना है. इसके बाद संविधानिक समस्याओं के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए कई समितियां नियुक्त की गईं।
भारत का संविधान एक साझा, प्रतिबद्ध और मूल्य आधारित प्रक्रिया से निर्मित विधान है. इसमें विचारों, समुदायों और संस्कृतियों के साथ-साथ विविध राजनीतिक धाराओं की सक्रिय भागीदारी रही है. यह संविधान केवल राज्य व्यवस्था के नियम ही निर्धारित नहीं करता है, बल्कि व्यक्तियों की सामजिक, राजनीतिक, आर्थिक आज़ादी की व्याख्या भी करता है. ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि यह एक सहभागी और सहिष्णु प्रक्रिया के साथ बनाया गया संविधान था।
Wednesday, November 18, 2020
भारतीय संस्कृति में पर्व एवं त्योहार एकता के प्रतीक हैं
जीवन को हंसी खुशी व रिश्तों को मजबूत बनाने में त्योहारों का अहम् योगदान है। भारत त्योहारों का देश है। साल के हर दिन कोई न कोई त्योहार यहां मनाया जाता है। त्योहार खुशियां बांटने और पूरे समाज को जोड़ने का काम करते हैं। ईद , तीज ,गणेश चतुर्थी ,कृष्ण जन्माष्टमी ,दशहरा ,होली, दीवाली ,क्रिसमस ,छठपूजा ,ओणम ,महाशिवरात्रि, नवरात्री ,मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी, कुम्भ मेला आदि।
अनगिनत त्योहर और मेले हमें एकता और भाईचारे का सन्देश देते है। त्योहारों पर लगने वाले मेले कौमी एकता और सांप्रदायिक सोहाद्र के अनूठे उदहारण है। इन पर्वों और मेलों में समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हो कर दुनियां को भारत की बहुरंगी संस्कृति झलक दिखाते है।
मेले एवं त्योहार हमारी समृद्ध संस्कृति, परम्परा एवं रीति-रिवाजों के परिचायक हैं। विविधता में एकता के प्रतीक मेले और उत्सवों के आयोजन से हमारी संस्कृति को संजोने और सहेजने को बल मिलता है, साथ ही साथ नई पीढ़ी को हमारी स्मृद्ध संस्कृति एवं परम्पराओं का भी ज्ञान होता है। मेलों के आयोजन से भाईचारा, सद्भाव कायम रहता है। मेले ग्रामीण समाज को जीवंत बनाते है । मेलों के माध्यम से अनेक प्रकार की वस्तुये एक स्थान पर बिकने आती हैं और साथ ही दर्शकों मनोरंजन होता है।
जब किसी एक स्थान पर बहुत से लोग किसी सामाजिक ,धार्मिक एवं व्यापारिक या अन्य कारणों से एकत्र होते हैं तो उसे मेला कहते हैं। मेले और त्योहार भारत का एक बड़ा आकर्षण है। यह इस देश की जीवंत संस्कृति को तो दिखाते ही हैं साथ ही यह भारत के पर्यटन उद्योग में भी बहुत खास जगह रखते हैं। भारत की समृद्ध संस्कृति के असली रंग दिखाने के अलावा ये मेले और त्योहार देश में सैलानियों के आने के लिए आकर्षण पैदा करने में बहुत महत्व रखते हैं। ये त्योहार देश के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। वास्तव में एक दूसरे के निकट आने और आपसी सहयोग और सौहार्द की भावना ने मेलों को जन्म दिया जिसकी झलक वर्तमान भारत में भी देखी जा सकती है।
भारत मेलो और तीज त्योहारों का देश है। यहाँ दुनियाँ के सबसे ज्यादा त्योहार मनाये जाते है। यही पर दुनियाँ में सबसे ज्यादा मेलो का आयोजन होता है । इनमे से कुछ मेले तो दुनिया के सबसे बड़े व विशाल मेलो में शुमार है जिन्हें देखने पूरी दुनिया से हर साल लाखों लोग भारत आते है । भारतीय सभ्यता और संस्कृति में मेलों का विशेष महत्व है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तक न जाने कितने प्रकार के मेले भारत में लगते हैं। इन सभी मेलों का अपना अपना महत्व है। मेलों को संस्कृति और रंगीन जीवन शैली का पैनोरमा कहा जा सकता है। इन मेलों में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप का अद्वितीय और दुर्लभ सामजस्य दिखाई देता है, जो कहीं और नहीं दिख पाता। मेले न केवल मनोरंजन के साधन हैं, अपितु ज्ञानवर्द्धन के साधन भी कहे जाते हैं। प्रत्येक मेले का इस देश की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं से जुड़ा होना इस बात का प्रमाण हैं कि ये मेले किस प्रकार जन मानस में एक अपूर्व उल्लास, उमंग तथा मनोरंजन करते हैं।
मेला स्थानीय लोक संस्कृति, परंपरा और लोक संस्कारों के विविध रूपों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है। भारत में मेले, लोकसंस्कृति और परंपरा के माध्यम से आस्था, उमंग और उत्सव की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। मेलों का आयोजन प्राय किसी पर्व या त्योहार के अवसर पर किया जाता है। मेला हमारे समाज को जोड़ने तथा हमारी संस्कृति और परंपरा को सुरक्षित रखने में अहम् भूमिका निभाता है। यह उत्पादकों और खरीददारों के लिए बाजार भी उपलब्ध कराता है। खाने-पीने से लेकर मौज-मस्ती की सभी चीजें मेले को आकर्षक बनाती हैं। मेलों में कहीं लोकगीतों की लहरियां हमारे दिल के तार को झंकृत करती हैं तो कहीं लोकनृत्य के माध्यम से हमारे तन-बदन में थिरकन पैदा होने लगती है।
Monday, November 16, 2020
भाई दूज मनाने की रोचक कथा
गाय माता के पूजा का पर्व गोवर्धन पूजा
भाई- बहन के प्यार व स्नेह का प्रतीक : भैया दूज
अपने ढँग से जीने दो
दीपोत्सव, गोवर्धन का पर्व बड़े हर्षोउल्लास से मनाया
Thursday, November 12, 2020
मिस्टर एन्ड मिस आगरा के सेमीफाइनल में हुआ जमकर मुकाबला
रैंप पर मॉडल अपने अलग अलग अंदाज में नजर आये
टलेंगे राउंड में सपना चैधरी के गानों पर प्रतिभागियों ने दी प्रस्तुतियां
आगरा । आरोही इवेंट्स के मिस्टर एन्ड मिस आगरा , सीजन-9, 2020 का सेमीफाइनल होटल मार्क रॉयल के प्रांगड़ में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगल सिंह धाकड़ एवं ग्लैमर लाइव फिल्म के निर्देशक सूरज तिवारी ने किया।आज के कार्यक्रम वशिष्ठ अतिथि के रूप में अनमोल जो कक फेम है आंटी जी जिसको सबाना आजमी के निर्देशन में थी।
निदेशक अमित तिवारी ने बताया कि आज मिस्टर एन्ड मिस आगरा के सेमीफाइनल में मिस आगरा व मिस्टर आगरा के शीर्षक के लिए 20ध्20 प्रतिभागियों ने इंट्रोडक्शन व सवाल जवाब के साथ अपने टैलेंट राउंड से हुनर दिखाया। फाइनल में 7ध्7 प्रतिभागियों के चयन किया गया है, सेमीफाइनल में निर्णायक की भूमिका में सारा मून (मिस यु.पी 2009),पी.एस गीत( मिस इंडिया क्वीन ऑफ ब्रिलिएन्सी इंटरनेशनल), मोनिका यादव(मिस नार्थ इंडिया फोटोजनिक) रही। सारा मून ने बताया कि सेमीफाइनल में चुने गए प्रतिभागियों को 5 दिन की ग्रूमिंग दी जाएगी व इस बार की शो की थीम बहुत ही आकर्षित होगी। कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित मंगल सिंह धाकड़ ,डॉ राशिद चैधरी, अरविंद राणा , ऐ. पी साउंड से आंनद आदि उपस्थित रहे।
विशेषरू मिस्टर एन्ड मिस आगरा के विजयी प्रतिभागियों को ताज पहनाने आएंगी सपना चैधरी।
Wednesday, November 11, 2020
सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब को जमानत दी, पुलिस कमिश्नर से कहा- आदेश पर तत्काल अमल किया जाए
इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार अर्नब गोस्वामी को 7 दिन बाद बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी। कोर्ट ने मुंबई पुलिस कमिश्नर से कहा कि इस आदेश पर तत्काल अमल किया जाए।
अर्नब के साथ ही इस मामले में दो अन्य आरोपियों नीतीश सारदा और फिरोज मोहम्मद शेख को भी जमानत दी गई है। अर्नब की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उद्धव सरकार को भी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकारें किसी को निशाना बनाएं तो उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि हम उसकी हिफाजत करेंगे।
अर्नब अपनी जमानत के लिए हाईकोर्ट भी गए थे, लेकिन हाईकोर्ट ने उनसे कहा था कि अंतरिम जमानत के लिए उनके पास लोअर कोर्ट का भी विकल्प है, लेकिन 4 नवंबर को गिरफ्तारी के बाद ही अलीबाग सेशन कोर्ट ने उनकी जमानत नामंजूर कर दी थी। हालांकि, अलीबाग कोर्ट ने पुलिस को रिमांड न देते हुए अर्नब को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
डेमोक्रेसी पर: हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से लचीला है। महाराष्ट्र सरकार को यह सब नजरअंदाज करना चाहिए।
आजादी पर: अगर किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाता है, तो यह न्याय का दमन होगा। क्या महाराष्ट्र सरकार को इस मामले में कस्टडी में लेकर पूछताछ की जरूरत है। हम व्यक्तिगत आजादी के मुद्दे से जूझ रहे हैं।
SC के दखल पर: आज अगर अदालत दखल नहीं देती है तो हम विनाश के रास्ते पर जा रहे हैं। इस आदमी (अर्नब) को भूल जाओ। आप उसकी विचारधारा नहीं पसंद कर सकते। हम पर छोड़ दें, हम उसका चैनल नहीं देखेंगे। सबकुछ अलग रखें।
राज्य सरकार पर: अगर हमारी राज्य सरकारें ऐसे लोगों के लिए यही कर रही हैं, इन्हें जेल में जाना है तो फिर सुुप्रीम कोर्ट को दखल देना होगा।
हाईकोर्ट पर: HC को एक संदेश देना होगा। कृपया, व्यक्तिगत आजादी को बनाए रखने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करें। हम बार-बार देख रहे हैं। अदालत अपने अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल में विफल हो रही हैं। लोग ट्वीट के लिए जेल में हैं।
इस शर्त पर मिली जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अर्नब गोस्वामी और दो अन्य आरोपी सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे। इसके अलावा आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले की जांच के दौरान वो पूरा सहयोग करेंगे।
2018 में इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां ने खुदकुशी कर ली थी। अन्वय की पत्नी ने सुसाइड लेटर में अर्नब का नाम होने के बावजूद कार्रवाई न होने पर सवाल उठाया था। इसके बाद रायगढ़ पुलिस ने अर्नब और दो अन्य लोगों को 4 नवंबर को गिरफ्तार किया था। बाद में अदालत ने इन्हें 18 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। अर्नब फिलहाल तलोजा जेल में बंद हैं।