Tuesday, February 28, 2023

आजादी

मैं तुम्हारी माँ के बंधन मे और नहीं रह सकती, मुझे अलग घर चाहिए जहाँ मैं खुल के साँस ले सकूँ। पलक रवि को देखते ही ज़ोर से चिल्ला उठी।

बात बस इतनी थी कि सुलभा जी ने रवि और पलक को पार्टी मे जाता देख कर इतना भर कहा था कि वो रात दस बजे तक घर वापस आ जाए। बस पलक ने इसी बात को तूल दे दिया और दो दिन बाद ही उसने किरण के घर किटी मे उसे मकान ढूंढने की बात भी कह दी।
मुझे मम्मी जी की गुलामी मे रहना पसंद नहीं है ।
पलक, तुम्हारी तरह एक दिन मैं भी यही सोच कर अपनी सास से अलग हो गई थी। किटी ख़तम होते ही किरण पलक से मुख़ातिब थी।
तभी तो आप आज़ाद हो। पलक ने चहक कर कहा तो किरण का स्वर उदासी से भर गया, किरण पलक से दस वर्ष बड़ी थी।
नहीं,बल्कि तभी से मैं गुलाम हो गई, जिसको मैं गुलामी समझ रही थी वास्तव मे आज़ादी तो वही थी।
वो कैसे,
पलक.. जब मैं ससुराल मे थी दरवाज़े पर कौन आया, मुझे मतलब नहीं था क्योंकि मैं वहाँ की बहू थी। घर मे क्या चीज़ है क्या नहीं इससे भी मैं आज़ाद थी, दोनों बच्चे दादा-दादी से हिले थे। मुझे कहीं आने-जाने पर पाबंदी नहीं थी, पर कुछ नियमों के साथ, जो सही भी थे, पर जवानी के जोश मे मैं अपने आगे कोई सीमा रेखा नहीं चाहती थी। मुझे ये भी नहीं पसंद था कि मेरा पति आफिस से आकर सीधा पहले माँ के पास जाए।
तो!! फिर पलक की उत्सुकता बढ़ गई।
मैंने दिनेश को हर तरह से मना कर अलग घर ले लिया और फिर मैं दरवाज़े की घंटीं, महरी, बच्चों, धोबी, दिनेश सबके वक्त की गुलाम हो गई।
अपनी मरज़ी से मेरे आने-जाने पर भी रोक लग गई क्योंकि कभी बच्चों का होमवर्क कराना है, तो कभी उनकी तबीयत खराब है। हर जगह बच्चों को ले नहीं जा सकते। अकेले भी नहीं छोड़ सकते। तो मजबूरन पार्टियां भी छोड़नी पड़ती जबकि ससुराल मे रहने पर ये सब बंदिश नहीं थीं।
ऊपर से मकान का किराया और फालतू के खर्चे अलग, फिर दिनेश भी अब उतने खुश नहीं रहते।किरण की आँखें नम हो उठीं।
फिर आप वापस क्यों नहीं चली गयीं,
किस मुँह से वापस लौटती,
इन्होंने एक बार मम्मी से कहा भी था, पर पापा ने ये कह कर साफ़ मना कर दिया कि, एक बार हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला है अब दूसरा झटका खाने की हिम्मत नहीं है, बेहतर है अब तुम वहीं रहो।
ओह!
पलक घर से बाहर क़दम रखना बहुत आसान है पर जब तक आप माँ-बाप के आश्रय मे रहते हैं आपको बाहर के थपेड़ों का तनिक भी अहसास नहीं होता, माँ-बाप के साथ बंदिश से ज़्यादा आज़ादी होती है पर हमें वो पसंद नहीं होती। एक बार बाहर निकलने के बाद आपको पता चलता है कि आज़ादी के नाम पर ख़ुद अपने पाँव मे जंज़ीरें डाल लीं। बड़ी होने के नाते तुमसे यही कहूंगी सोच-समझ कर ही ये क़दम उठाना।
मन ही मन ये गणित दोहराते हुए पलक एक क्षण मे निर्णय ले चुकी थी-उसे किरण जैसी गुलामी नहीं चाहिए। घर की ओर चलते बढ़ते कदमों के साथ साथ ही वो मन ही मन बुदबुदा रही थी, की घर पहुंचते ही सासू मां के पैर छूकर क्षमा मांग लूंगी और सदा उनके साथ ही रहूँगी।
मां बाप को साथ नही रखा जाता, मां बाप के साथ रहना होता है...

Monday, February 27, 2023

मृत्युभोज_के_विरोध पर बहुत लिखा जा रहा है आजकल..

पर मेरा मत जरा अलग है.. मृत्युभोज कुरीति नहीं है. समाज और रिश्तों को सँगठित करने के अवसर की पवित्र परम्परा है, हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा ज्ञानी थे ! आज मृत्युभोज का विरोध है, कल विवाह भोज का भी विरोध होगा.. हर उस सनातन परंपरा का विरोध होगा जिससे रिश्ते और समाज मजबूत होता है.. इसका विरोध करने वाले ज्ञानियों हमारे बाप दादाओ ने रिश्तों को जिंदा रखने के लिए ये परम्पराएं बनाई हैं!..., ये सब बंद हो गए तो रिश्तेदारों, सगे समबंधियों, शुभचिंतकों को एक जगह एकत्रित कर मेल जोल का दूसरा माध्यम क्या है,.. दुख की घड़ी मे भी रिश्तों को कैसे प्रगाढ़ किया जाय ये हमारे पूर्वज अच्छे से जानते थे.. हमारे बाप दादा बहुत समझदार थे, वो ऐसे आयोजन रिश्तों को सहेजने और जिंदा रखने के किए करते थे. हाँ ये सही है की कुछ लोगों ने मृत्युभोज को हेकड़ी और शान शौकत दिखाने का माध्यम बना लिया, आप पूड़ी सब्जी ही खिलाओ. कौन कहता है की 56 भोग परोसो.. कौन कहता है कि 4000-5000 लोगों को ही भोजन कराओ और दम्भ दिखाओ, मैं खुद दिखावे का विरोधी हूँ लेकिन अपनी उन परंपराओं की कट्टर समर्थक भी हूँ, जिनसे आपसी प्रेम, मेलजोल और भाईचारा बढ़ता हो. कुछ कुतर्कों की वजह से हमारे बाप दादाओं ने जो रिश्ते सहजने की परंपरा दी उसे मत छोड़ो, यही वो परम्पराएँ हैं जो दूर दूर के रिश्ते नाते को एक जगह लाकर फिर से समय समय पर जान डालते हैं . सुधारना हो तो लोगों को सुधारो जो आयोजन रिश्तों की बजाय हेकड़ी दिखाने के लिए करते हैं, किसी परंपरा की कुछ विधियां यदि समय सम्मत नही है तो उसका सुधार किया जाये ना की उस परंपरा को ही बंद कर दिया जाये. हमारे बाप दादा जो परम्पराएं देकर गए हैं रिश्ते सहेजने के लिए उसको बन्द करने का ज्ञान मत बाँटिये मित्रों, वरना तरस जाओगे मेल जोल को,,,,, बंद बिल्कुल मत करो, समय समय पर शुभचिंतकों ओर रिश्तेदारों को एक जगह एकत्रित होने की परम्परा जारी रखो. ये संजीवनी है रिश्ते नातों को जिन्दा करने की..

Friday, February 24, 2023

भालू भी सुनते हैं संत के भजन

 मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में घने जंगलों के बीच, कुटिया बनाकर रहने वाले एक साधु के पास उनके भजन की मधुर ध्वनि से आकर्षित होकर भालू आते हैं !! आसपास की जगह में चुपचाप बैठकर भजन सुनते हैं। ये सभी भालू भजन के दौरान खामोशी से साधु के आस-पास बैठ जाते हैं और भजन पूरा होने पर प्रसाद लेने के बाद वापस चले जाते हैं।



मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा में जैतपुर वन परिक्षेत्र के अंतर्गत खड़ाखोह के जंगल में सोन नदी के समीप राजमाड़ा में सीताराम साधु 2003 से कुटिया बनाकर रह रहे हैं। साधु ने बताया कि जंगल में कुटिया बनाने के बाद उन्होंने वहां प्रतिदिन रामधुन के साथ ही पूजा पाठ शुरू की।
एक दिन जब वह भजन में लीन थे तभी उन्होंने देखा कि दो भालू उनके समीप आकर बैठे हुए हैं और खामोशी से भजन सुन रहे हैं। साधु ने बताया कि यह देखकर वह सहम गये लेकिन उन्होंने जब देखा कि भालू खामोशी से बैठे हैं और किसी तरह की हरकत नहीं कर रहे हैं तो उन्होंने उक्त भालूओं को भजन के बाद प्रसाद दिया। प्रसाद लेने के कुछ देर बाद भालू वापस जंगल में चले गये।
सीताराम ने बताया कि बस उस दिन से भजन के दौरान भालुओं के आने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो वह आज तक जारी है। उन्होंने बताया कि भालुओं ने आज तक उन्हें किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। इतना ही नहीं जब भी भालू आते हैं तो कुटिया के बाहर परिसर में ही बैठे रहते हैं और कभी भालुओं ने कुटिया के अंदर प्रवेश नहीं किया।
उन्होंने बताया कि फिलहाल इस वक्त एक नर और मादा भालू के साथ उनके दो शावक भी आ रहे हैं। सीताराम ने बताया कि भालुओं से उनका अपनापन इस तरह का हो गया है कि उन्होंने उनका नामकरण भी कर दिया है। उन्होंने बताया कि नर भालू को ‘लाला’ और मादा को ‘लल्ली’ के साथ ही शावकों को ‘चुन्नू’ और ‘मुन्नू’ का नाम दिया है।
वनविभाग के रेंजर ने भालुओं के वहां आने की पुष्टि करते हुए कहा कि सीताराम जी के भजन गाने के दौरान कुछ भालू उनके आस पास जमा हो जाते हैं और अब तक भालुओं ने किसी को नुकसान भी नहीं पहुंचाया है।

Thursday, February 23, 2023

विरासत

हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल-मूत्र त्यागने तक खड़ा रहता था ताकि बैल आराम से यह नित्यकर्म कर सके, यह आम चलन था।
जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं, यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा ।
उस जमाने का देशी घी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि 2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है।


और उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था ।
टटीरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है।
हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टटीरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था । उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी ।
सब आस्तिक थे। दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था । यह एक सामान्य नियम था ।
बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे कसाइयों को बेचना शर्मनाक सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता था।
बूढा बैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था, मरने तक उसकी सेवा होती थी।
उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है,अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें,कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए ??
जब बैल मर जाता तो किसान फफक-फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था।
माता-पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे।
पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था कि वह क्या कहना चाह रहा है ।
वह पुराना भारत इतना शिक्षित और धनाढ्य था कि अपने जीवन व्यवहार में ही जीवन रस खोज लेता था,वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था..!
वह सचमुच अतुल्य भारत था।।

Tuesday, February 21, 2023

प्यार बनाए रखना है जरूरी

अच्छी, हेल्दी और लंबे समय तक चलने वाली शादी हरेक कपल्स का सपना होता है। आपने सुना होगा अधिकांश लोग शादी के मध्यांत में तलाक ले लेते है। चूंकि इसके बहुत से कारण होते है, जिसमें से एक होता है समय की कमी और दुसरा कपल्स के बीच में घरवालों का हस्तक्षेप। इसी कमी के कारण संबंधों में संवाद कम होने लगते है और झंगड़े तलाक तक पंहुच जाता है, इसलिए अपने रिश्तें को बचाने के लिए और दोबारा बनाना चाहते है तो अपनाए यह टिप्सः-

उनकी पंसद को अपनी पंसद बनाए

हमेशा अपने रिश्ते को मजबूत बनाने की कोशिश करें। खाली समय में दोनों एक ही चीज करने की कोशिश करें, अगर पंसद नहीं भी मिलती है, तो पंसद बनाने की कोशिश करें। इसके अलावा सेलफोन से प्यार भरे मैसेज भेजें। मेसेजेज का आदान-प्रदान आपके रिश्ते को मजबूत करने के साथ-साथ आपके दिन को ऊर्जावान बनाता है।

एहसास कराए उनकी अहमियत

आप दोनों वर्किंग हैं और वीकेंड को ही आपके पास एक-दूसरे के लिए समय होता है। कोई बात नहीं, आप अपने रिलेशन को क्वॉलिटी टाइम देकर स्ट्रॉन्ग बना सकते हैं। लेकिन उस समय में केवल आप दोनों की हो और कोई नहीं। खासतौर से पति जोकि वीकेंड में भी परिवार के साथ चिपके रहते है, उन्हें जरूरत है कि पत्नी को एहसास कराए कि उनकी जिंदगी में उनकी कितनी अहमियत है।

संपर्कं बनाए रखना है जरूरी

अधिकांश पति-पत्नी के बीच कोई भी तीसरा व्यक्ति आकर गलतफहमी पैदा करके चला जाता है, जिससे दोनों झगड़ने लगते है चूंकि व्यस्त रहने के कारण उन्हें ऍक दूसरे को जानने की फुर्सत भी नहीं होती है। जिसके कारण दांपत्य जीवन में कड़वाहट आने की पूरी संभावना रहती है। इसलिए हमेशा हर बात एक-दूसरे से शेयर करें और संपर्क में रहें कि कोई भी आपके बीच में आने की कोशिश भी ना करें।

एक दिन जीवनसाथी के नाम

जब रोमांस खत् हो जाता है तो आप दोनों कहीं भी जाएं, जस् डिनर का फील आता है। लेकिन अब ऐसा  करें। एक रोमेंटिक कैंडल लाइट डिनर का अरेंजमेंट करें और अपने पार्टनर को वहां ले जाकर फिल्मी तरीके से सरप्राइज कर दें। इससे उन्हें अच्छा लगेगा और आप दोनों के बीच वो लम्हे बेहद खास हो जाएंगें।

आभार व्यक्त करना भी है जरूरी

अपने लाइफ पार्टनर से हमेशा लड़ने के वजह, कभी कभार उसका आभार भी व्यक्त करना जरूरी हो जाता है। यदि आप सोरीधन्यवाद, आई लव यूमिस यू आदि जैसे शब्दों का प्रयोग समय समय पर करते रहेगें तो आपका पार्टनर भी आपके फिलिंग का ध्यान रखेगा।

तारीफ करते रहना भी है जरूरी

किसी की तारीफ हमेशा खुशामद के लिए ही नहीं की जाती। कॉम्प्लीमेंट एक ऐसी चीज हैजो बिना एक पैसा खर्च कराए, किसी को आपका गुलाम बना सकती है। पार्टनर को यह उम्मीद होती है कि उनका सोलमेट उसके अच्छे काम, अच्छी ड्रेसिंग या अच्छे लुक्स की तारीफ करे। इसका भी खास ध्यान रखें।

घर की राजनीति से बचें

घर के सदस्यों की राजनीति से बचें। कई बार घर के सदस्यों के कारण भी आपके बीच काफी मनमुटाव हो जाता है। चूंकि हो सकता है आपकी खुशहाली किसी के मन को चुभ रही हो। इसलिए वे आपके सामने नमक-मिर्च लगाकर बातों को पेश करें। इसलिए पारिवारिक जीवन की इन समस्याओं को अपने बीच में ना आने देंें। उससे हार मानने के बजाय उसका मुकाबला करें। साथ ही शांति का माहौल बनाने का प्रयास