Monday, February 27, 2023

मृत्युभोज_के_विरोध पर बहुत लिखा जा रहा है आजकल..

पर मेरा मत जरा अलग है.. मृत्युभोज कुरीति नहीं है. समाज और रिश्तों को सँगठित करने के अवसर की पवित्र परम्परा है, हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा ज्ञानी थे ! आज मृत्युभोज का विरोध है, कल विवाह भोज का भी विरोध होगा.. हर उस सनातन परंपरा का विरोध होगा जिससे रिश्ते और समाज मजबूत होता है.. इसका विरोध करने वाले ज्ञानियों हमारे बाप दादाओ ने रिश्तों को जिंदा रखने के लिए ये परम्पराएं बनाई हैं!..., ये सब बंद हो गए तो रिश्तेदारों, सगे समबंधियों, शुभचिंतकों को एक जगह एकत्रित कर मेल जोल का दूसरा माध्यम क्या है,.. दुख की घड़ी मे भी रिश्तों को कैसे प्रगाढ़ किया जाय ये हमारे पूर्वज अच्छे से जानते थे.. हमारे बाप दादा बहुत समझदार थे, वो ऐसे आयोजन रिश्तों को सहेजने और जिंदा रखने के किए करते थे. हाँ ये सही है की कुछ लोगों ने मृत्युभोज को हेकड़ी और शान शौकत दिखाने का माध्यम बना लिया, आप पूड़ी सब्जी ही खिलाओ. कौन कहता है की 56 भोग परोसो.. कौन कहता है कि 4000-5000 लोगों को ही भोजन कराओ और दम्भ दिखाओ, मैं खुद दिखावे का विरोधी हूँ लेकिन अपनी उन परंपराओं की कट्टर समर्थक भी हूँ, जिनसे आपसी प्रेम, मेलजोल और भाईचारा बढ़ता हो. कुछ कुतर्कों की वजह से हमारे बाप दादाओं ने जो रिश्ते सहजने की परंपरा दी उसे मत छोड़ो, यही वो परम्पराएँ हैं जो दूर दूर के रिश्ते नाते को एक जगह लाकर फिर से समय समय पर जान डालते हैं . सुधारना हो तो लोगों को सुधारो जो आयोजन रिश्तों की बजाय हेकड़ी दिखाने के लिए करते हैं, किसी परंपरा की कुछ विधियां यदि समय सम्मत नही है तो उसका सुधार किया जाये ना की उस परंपरा को ही बंद कर दिया जाये. हमारे बाप दादा जो परम्पराएं देकर गए हैं रिश्ते सहेजने के लिए उसको बन्द करने का ज्ञान मत बाँटिये मित्रों, वरना तरस जाओगे मेल जोल को,,,,, बंद बिल्कुल मत करो, समय समय पर शुभचिंतकों ओर रिश्तेदारों को एक जगह एकत्रित होने की परम्परा जारी रखो. ये संजीवनी है रिश्ते नातों को जिन्दा करने की..

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