इस मायिक संसार में धन्य कौन है? श्रीराम जी को स्मरण कर अल्प बुद्धि से अवलोकन करने की कोशिश...
1. जिन्हें भगवान भोले नाथ प्रिय हैं वे मनुष्य धन्य हैं-याग्यवल्क्य जी- अहो धन्य तव धन्य मुनीसा। तुम्हहिं प्रान सम प्रिय गौरीसा।।याग्यवल्क्य जी कहते हैं कि हे भारद्वाज जी आप धन्य हैं,क्योंकि आपको पार्वती पति शंकर जी प्राणों के समान प्रिय हैं।
2. जो सप्रेम श्रीराम चरित श्रवण करना चाहते हैं वे धन्य हैं-धन्य धन्य गिरिराज कुमारी।तुम समान नहिं कोउ उपकारी।।शंकर जी के दृष्टि में माता पार्वती जी अज्ञानी नहीं परोपकारी लगती हैं। क्योंकि राजा भगीरथ के प्रयास से गंगा जी पृथ्वी पर आईं और माता पार्वती जी के अनुरोध पर राम चरित मानस- पूँछेहू रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनी गंगा।।
3. जिनके गृह,आश्रम पर संत का आगमन हो,वह संत अतिथि को आदर करने वाले का गृहादि धन्य है- विश्वामित्र जी के आगमन पर दशरथ जी- चरन पखारि कीन्हि अति पूजा।मो सम आजु धन्य नहीं दूजा।।
4. जिनके कार्य से माता पिता आनंदित होते हैं वे संतान धन्य हैं-धन्य जनम जगतीतल तासू।पितहिं प्रमोदु चरित सुनि जासु।। भक्त दशरथ कौशल्या को आनंदित करने हेतु बाल रूप राम जी कई लीला किए...।
5 जो प्रभु दर्शन करा दे वह धन्य हैं-अयोध्या वासी भरत प्रति कहते हैं-धन्य भरतु जीवनु जग माहीं।...देवता- भरत धन्य कहि धन्य सुर हरषित बरसहिं फूल।...भरत धन्य तुम्ह जसु जगु जयऊ...।
6.जिन्हें प्रभु श्रीराम जी अपना लें वह धन्य..भरत जी द्वारा निषाद गुह को गले लगाने पर- धन्य धन्य धुनि मंगल मूला।सुर सराहि तेहि बरिसहिं फूला।।
7.श्रीराम प्रेमी भरत जी के दर्शन करने वाले धन्य हैं- हम सब सानुज भरतहिं देखे।भइन्ह धन्य जुबति जग लेखे।।ग्राम्य नारी अपने को धन्य समझ रही हैं।
8.जो मायिक संसार से आशा त्याग कर श्रीराम रंग में रंग गए वह धन्य हैं- ते धन्य तुलसीदास आस बिहाई जे हरि रंग रँए...।
9. सीताराम जी के नाम का कानों से सतत् पान करने वाला धन्य हैं- धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम् ..।
10.प्रभु कार्य,परोपकार में प्राण न्योछावर करने वाले धन्य हैं- धन्य जटायु सम कोउ नाहीं।
11. जिस वंश में श्रीराम भक्त संतान हों,वह कूल धन्य है- धन्य धन्य तैं धन्य विभीषण।भयहु तात!निसिचर कूल भूषण।।बंधु बंस तैं कीन्ह उजागर।भजेहु राम सोभा सुख सागर।।....
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