Friday, April 25, 2025

दो शब्द

बहुत समय पहले की बात है, एक प्रसिद्द गुरु अपने मठ में शिक्षा दिया करते थे। पर यहाँ शिक्षा देना का तरीका कुछ अलग था, गुरु का मानना था कि सच्चा ज्ञान मौन रह कर ही आ सकता है; और इसलिए मठ में मौन रहने का नियम था। लेकिन इस नियम का भी एक अपवाद था, दस साल पूरा होने पर कोई शिष्य गुरु से दो शब्द बोल सकता था।

पहला दस साल बिताने के बाद एक शिष्य गुरु के पास पहुंचा, गुरु जानते थे की आज उसके दस साल पूरे हो गए हैं ; उन्होंने शिष्य को दो उँगलियाँ दिखाकर अपने दो शब्द बोलने का इशारा किया। शिष्य बोला, ”खाना गन्दा“ गुरु ने ‘हाँ’ में सर हिला दिया। इसी तरह दस साल और बीत गए और एक बार फिर वो शिष्य गुरु के समक्ष अपने दो शब्द कहने पहुंचा। ”बिस्तर कठोर”, शिष्य बोला।

गुरु ने एक बार फिर ‘हाँ’ में सर हिला दिया। करते-करते दस और साल बीत गए और इस बार वो शिष्य गुरु से मठ छोड़ कर जाने की आज्ञा लेने के लिए उपस्थित हुआ और बोला, “नहीं होगा” . “जानता था”, गुरु बोले, और उसे जाने की आज्ञा दे दी और मन ही मन सोचा जो थोड़ा सा मौका मिलने पर भी शिकायत करता है वो ज्ञान कहाँ से प्राप्त कर सकता है।


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