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Sunday, March 10, 2024

शिवरात्रि

🚩तीनों लोकों के मालिक भगवान शिव का सबसे बड़ा त्यौहार महाशिवरात्रि है। महाशिवरात्रि भारत के साथ कई अन्य देशों में भी धूम-धाम से मनाई जाती है।


🚩‘स्कंद पुराण के ब्रह्मोत्तर खंड में महाशिवरात्रि के उपवास ,पूजा ,जप तथा जागरण की महिमा का वर्णन है : ‘शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है । उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और भी दुर्लभ है । लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वशिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है।


🚩शिवलिंग का प्रागट्य


🚩पुराणों में आता है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं। ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा ‘संसार का स्वामी कौन ?’ इस बात पर दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई तो देवताओं ने इसकी जानकारी देवाधिदेव भगवान शंकर को दी।


🚩भगवान शिव युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच प्रकाशमान शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गए। दोनों ने उस शिवलिंग की पूजा की। यह विराट शिवलिंग ब्रह्मा जी की विनती पर बारह ज्योतिर्लिंगों में विभक्त हुआ। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का पृथ्वी पर प्राकट्य दिवस महाशिवरात्रि कहलाया।


🚩दूसरी पुराणों में ये कथा आती है कि सागर मंथन के समय कालकेतु विष निकला था उस समय भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिये स्वयं ही सारा विषपान कर लिया था। विष पीने से भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से पुकारे जाने लगे। पुराणों के अनुसार विषपान के दिन को ही महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।


🚩पुराणों अनुसार ये भी माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।


🚩शिवरात्रि व्रत की महिमा!!


🚩इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो भक्त करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है ।


🚩महाशिवरात्रि व्रत की विधि!!


🚩इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है. प्रत्येक पहर की पूजा में “ॐ नम: शिवाय” का जप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जप किया जा सकता है । चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जपों से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपवास की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।इस दिन रात्रि-जागरण कर ईश्वर की आराधना-उपासना की जाती है । ‘शिव से तात्पर्य है ‘कल्याणङ्क अर्थात् यह रात्रि बडी कल्याणकारी रात्रि है।


🚩‘ईशान संहिता में भगवान शिव पार्वतीजी से कहते हैं : फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथिः स्याच्चतुर्दशी । तस्या या तामसी रात्रि सोच्यते शिवरात्रिका ।।तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां ध्रुवम् । न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया । तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः ।।


🚩‘फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रय करके जिस अंधकारमयी रात्रि का उदय होता है, उसीको ‘शिवरात्रि’ कहते हैं । उस दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है । उस दिन उपवास करने पर मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ, वैसा स्नान कराने से तथा वस्त्र, धूप और पुष्प के अर्पण से भी नहीं होता ।


🚩शिवरात्रि व्रत सभी पापों का नाश करनेवाला है और यह योग एवं मोक्ष की प्रधानतावाला व्रत है ।


🚩महाशिवरात्रि बड़ी कल्याणकारी रात्रि है । इस रात्रि में किये जानेवाले जप, तप और व्रत लाखों गुणा पुण्य प्रदान करते हैं ।


🚩रुद्राक्ष के फायदे…..


🚩रुद्राक्ष की माला पहनने से शारीरिक-मानसिक मजबूती, घर-परिवार में सुख-शांति रहती है। मान्यता के अनुसार रुद्राक्ष धारण करने से स्वास्थ्य से लेकर करियर तक में सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव, स्वास्थ्य की समस्या, रोजगार की समस्या, घर की समस्या आदि चीजों से फायदा मिलता है।


🚩रुद्राक्ष धारण करने के बहुत फायदे है लेकिन आजकल बाजार में नकली रुद्राक्ष मिल रहे है उसके कारण उसका लाभ आपको नही मिल पाता है। हमारी टीम ने जहांतक देखा है की संत श्री आशारामजी आश्रम में रुद्राक्ष असली मिलता है और उनके देशभर में लगभग हर शहर में आश्रम अथवा सेंटर है वहा से आप असली रुद्राक्ष प्राप्त कर सकते हैं।


🚩स्कंद पुराण में आता है : ‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढकर श्रेष्ठ कुछ नहीं है । जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है ।


🚩यदि महाशिवरात्रि के दिन ‘बं’ बीजमंत्र का सवा लाख जप किया जाय तो जोड़ों के दर्द एवं वायु-सम्बंधी रोगों में विशेष लाभ होता है ।


🚩व्रत में श्रद्धा,पूजा,उपवास एवं प्रार्थना की प्रधानता होती है । व्रत नास्तिक को आस्तिक, भोगी को योगी, स्वार्थी को परमार्थी, कृपण को उदार, अधीर को धीर, असहिष्णु को सहिष्णु बनाता है । जिनके जीवन में व्रत और नियमनिष्ठा है, उनके जीवन में निखार आ जाता है ।

आखिरी सन्देश

ऋषिकेश के एक प्रसिद्द महात्मा बहुत वृद्ध हो चले थे और उनका अंत निकट था . एक दिन उन्होंने सभी शिष्यों को बुलाया और कहा , ” प्रिय शिष्यों मेरा शरीर जीर्ण हो चुका है और अब मेरी आत्मा बार -बार मुझे इसे त्यागने को कह रही है , और मैंने निश्चय किया है कि आज के दिन जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा तब मैं इहलोक त्याग दूंगा .” गुरु की वाणी सुनते ही शिष्य घबड़ा गए , शोक -विलाप करने लगे , पर गुरु जी ने सबको शांत रहने और इस अटल सत्य को स्वीकारने के लिए कहा . कुछ देर बाद जब सब चुप हो गए तो एक शिष्य ने पुछा , ” गुरु जी , क्या आप आज हमें कोई शिक्षा नहीं देंगे ?” “अवश्य दूंगा “, गुरु जी बोले ” मेरे निकट आओ और मेरे मुख में देखो .” एक शिष्य निकट गया और देखने लगा। “बताओ , मेरे मुख में क्या दिखता है , जीभ या दांत ?” “उसमे तो बस जीभ दिखाई दे रही है .”, शिष्य बोला फिर गुरु जी ने पुछा , “अब बताओ दोनों में पहले कौन आया था ?” “पहले तो जीभ ही आई थी .”, एक शिष्य बोला “अच्छा दोनों में कठोर कौन था ?”, गुरु जी ने पुनः एक प्रश्न किया . ” जी , कठोर तो दांत ही था . ” , एक शिष्य बोला . ” दांत जीभ से कम आयु का और कठोर होते हुए भी उससे पहले ही चला गया,पर विनम्र व संवेदनशील जीभ अभी भी जीवित है..शिष्यों,इस जग का यही नियम है,जो क्रूर है , कठोर है और जिसे अपने ताकत या ज्ञान का घमंड है उसका जल्द ही विनाश हो जाता है अतः तुम सब जीभ की भांति सरल,विनम्र व प्रेमपूर्ण बनो और इस धरा को अपने सत्कर्मों से सींचो , यही मेरा आखिरी सन्देश है .”, और इन्ही शब्दों के साथ गुरु जी परलोक सिधार गए..!!


Wednesday, March 6, 2024

गरुड़ पुराण

 ⭕गरुड़ पुराण में क्या है: 18 पुराणों में से इसे एक गरुड़ पुराण में एक ओर जहां मौत का रहस्य है तो दूसरी ओर जीवन का रहस्य छिपा हुआ है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। गरुड़ पुराण से हमे कई तरह की शिक्षाएं मिलती है।

 

🚩1. भगवान गरूढ़ और श्रीहरि विष्णु का संवाद:- एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से, प्राणियों की मृत्यु, यमलोक यात्रा, नरक-योनियों तथा सद्गति के बारे में अनेक गूढ़ और रहस्ययुक्त प्रश्न पूछे। उन्हीं प्रश्नों का भगवान विष्णु ने सविस्तार उत्तर दिया। इन प्रश्न और उत्तर की माला से ही गरुढ़ पुराण निर्मित हुआ। गरूड़ पुराण में उन्नीस हजार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हजार श्लोक ही उपलब्ध हैं। गरूड़ पुराण में ज्ञान, धर्म, नीति, रहस्य, व्यावहारिक जीवन, आत्म, स्वर्ग, नर्क और अन्य लोकों का वर्णन मिलता है।

 

🚩2. गरुड़ पुराण में क्या है:- गरुड़ पुराण में व्यक्ति के कर्मों के आधार पर दंड स्वरुप मिलने वाले विभिन्न नरकों के बारे में बताया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार कौनसी चीजें व्यक्ति को सद्गति की ओर ले जाती हैं इस बात का उत्तर भगवान विष्णु ने दिया है। गरुड़ पुराण में हमारें जीवन को लेकर कई गूढ बातें बताई गई है। जिनके बारें में व्यक्ति को जरूर जनना चाहिए। आत्मज्ञान का विवेचन ही गरुड़ पुराण का मुख्य विषय है। इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म की महिमा के साथ यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभ कर्मों में सर्व साधारणको प्रवृत्त करने के लिए अनेक लौकिक और पारलौकिक फलों का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें आयुर्वेद, नीतिसार आदि विषयों के वर्णनके साथ मृत जीव के अन्तिम समय में किए जाने वाले कृत्यों का विस्तार से निरूपण किया गया है। 


🚩3. जब कोई दिवंगत होता है तभी सुनते हैं गुरुड़ पुराण:- गुरुड़ पुराण तभी सुना जाता है जबकि किसी के घर में किसी की मृत्यु हो गई हो, श्राद्धपक्ष में श्राद्ध कर्म करना हो या गया आदि में पितृ विसर्जन करना हो। घर में 13 दिनों तक गरूड़ पुराण का पाठ या गीता का पाठ किया जाना जरूरी माना जाता है। जब मृत्यु के उपरांत घर में गरुड़ पुराण का पाठ होता है तो इस बहाने मृतक के परिजन यह जान लेते हैं कि बुराई क्या है और सद्गति किस तरह के कर्मों से मिलती है ताकि मृतक और उसके परिजन दोनों ही यह भलिभांति जान लें कि उच्च लोक की यात्रा करने के लिए कौन से कर्म करना चाहिए। गरुड़ पुराण हमें सत्कर्मों के लिए प्रेरित करता है। सत्कर्म से ही सद्गति और मुक्ति मिलती है।

 

🚩4. क्यों सुनते हैं गरूड़ पुराण का पाठ:- हिन्दू धर्मानुसार जब किसी के घर में किसी की मौत हो जाती है तो 13 दिन तक गरूड़ पुराण का पाठ रखा जाता है। शास्त्रों अनुसार कोई आत्मा तत्काल ही दूसरा जन्म धारण कर लेती है। किसी को 3 दिन लगते हैं, किसी को 10 से 13 दिन लगते हैं और किसी को सवा माह लगते हैं। लेकिन जिसकी स्मृति पक्की, मोह गहरा या अकाल मृत्यु मरा है तो उसे दूसरा जन्म लेने के लिए कम से कम एक वर्ष लगता है। तीसरे वर्ष गया में उसका अंतिम तर्पण किया जाता है। 13 दिनों तक मृतक अपनों के बीच ही रहता है। इस दौरान गरुढ़ पुराण का पाठ रखने से यह स्वर्ग-नरक, गति, सद्गति, अधोगति, दुर्गति आदि तरह की गतियों के बारे में जान लेता है। आगे की यात्रा में उसे किन-किन बातों का सामना करना पड़ेगा, कौन से लोक में उसका गमन हो सकता है यह सभी वह गरुड़ पुराण सुनकर जान लेता है। 

 

🚩5. क्यों नहीं करते हैं रात में दाह संस्कार:- गरूड़ पुराण के अनुसार सूर्यास्त के बाद हुई है मृत्यु तो हिन्दू धर्म के अनुसार शव को जलाया नहीं जाता है। इस दौरान शव को रातभर घर में ही रखा जाता और किसी न किसी को उसके पास रहना होता है। उसका दाह संसाकार अगले दिन किया जाता है। यदि रात में ही शव को जला दिया जाता है तो इससे व्यक्ति को अधोगति प्राप्त होती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसी आत्मा असुर, दानव अथवा पिशाच की योनी में जन्म लेते हैं।


🚩6. गाय का महत्व:- हिन्दू धर्म में गाय को सबसे पवित्र प्राणी माना गया है। गरुड़ पुराण अनुसार मरने के बाद वैतरणी नदी को पार कराने वाली गाय ही होती है। गरुड़ पुराण के मुताबिक गाय के दूध को देखने मात्र से ही कई पूजा-पाठ, यज्ञ-अनुष्ठान करने के सामान पुण्य प्राप्त होता है। गुरुड़ पुराण अनुसार गौशाला देखने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है।


🚩7. नैतिक बातें:- गरूड़ पुराण के अनुसार घर में गंदनी रखना या गंदे कपड़े पहनना एक ही बात है। इससे माता लक्ष्‍मी नाराज हो जाती है। घर में साफ सफाई का नहीं होना गंदे आदमी की निशानी है। इसी तरह अहंकार से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। लोग साथ छोड़ देते हैं और आदमी खुद को अकेला पाता है। दौलत, बंगला, महंगी गाड़ी, भूमि आदि सभी कोई काम नहीं आने वाली है। सूर्योदय के बाद देर तक सोते रहना गलत है। क्योंकि इससे माता लक्ष्मी ही नाराज नहीं होती है बल्कि शनिदेव भी नाराज हो जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति मेहनत करने से बचना है, कामचोर है। सौंपे गए कामों को ठीक से पूर्ण नहीं करता है तो माता लक्ष्‍मी रूष्ठ हो जाती है। इसके साथ ही दूसरों के कार्यों में कमियां निकालना भी जीवन को खराब कर देता है। किसी गरीब, असहाय, मजबूत, अबला, विधवा आदि का शोषण करके उसका हक छीनने वाला जल्द ही कंगाल होकर बर्बाद हो जाता है। ऐसे लालची व्यक्ति का कोई साथी नहीं होता है। लक्ष्मी मां ऐसे लोगों को घर ज्यादा दिन नहीं रहती हैं।

 

🚩8. इन लोगों के हाथों का न करें भोजन:- गरुड़ पुराण के अनुसार हमें कुछ लोगों के हाथों का बना भोजन नहीं करना चाहिए और ना ही उनसे किसी भी प्रकार का संबंध रखना चाहिए। क्योंकि उनके हाथ का बना भोजन करने से हमें उसके पापों का दोष लगता है जिसका परिणाम अच्छा नहीं होता है। जैसे- हिजड़े, चरित्रहीन महिला, नशे का व्यापारी, अपराधी, नर्दयी, ब्याजखोर, अस्वस्थ व्यक्ति, रजस्वला महिला, अधर्मी आदि। 


🚩9. ज्ञान का संवरक्षण अभ्यास से:- गरुड़ पुराण के अनुसार कितना ही कठिन से कठिन सवाल हो, ज्ञान हो, विद्या हो या याद रखने की कोई बात हो वह अभ्यास से ही संवरक्षित रखी जा सकती है। अभ्यास करते रहने से व्यक्ति उक्त ज्ञान में पारंगत तो होता ही है साथ ही वह उसे कभी नहीं भूलता है। अभ्यास के बगैर विद्या नष्ट हो जाती है। यदि ज्ञान या विद्या का समय समय पर अभ्यास नहीं करेंगे तो वह भूल जाएंगे। गरुड़ पुराण के अनुसार माना जाता है कि जो भी हम पढ़े उसका हमें हमेशा एक बार अभ्यास करना चाहिए। जिससे की वह ज्ञान हमारे मस्तिष्क में अच्छे से जम जाए।

 

🚩10. निरोगी काया:- गरुड़ पुराण के अनुसार संतुलित भोजन करने से ही निरोगी काया प्राप्त होती है। भोजन से ही व्यक्ति सेहत प्राप्त करता है और भोजन से ही वह रोगी हो जाता है। भोजन ही हमारे शरीर का मुख्‍य स्रोत है। हमें हमेशा आधी से ज्यादा बीमारी इस वजह से होती है कि हम असंतुलित खान-पान लेते हैं। जिसके कारण हमारा पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं करता है। इसलिए हमें सदैव सुपाच्य भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। ऐसे भोजन से पाचन तंत्र ठीक से काम करता है और भोजन से पूर्ण ऊर्जा शरीर को प्राप्त होती है। पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है और इस वजह से हम रोगों से बचे रहते हैं। इसके लिए एकादशी और प्रदोष का व्रत करना चाहिए।


Sunday, February 25, 2024

शरण

नयासर गांव में सेठ नंदाराम रहते थे। 

उनके यहां एक नौकर काम करता था.. जिसके कुटुंब में बीमारी की वजह से कोई आदमी नहीं बचा। 

केवल नौकर का लड़का रह गया। वह सेठ नंदाराम के घर काम करने लग गया.. 

रोजाना सुबह वह बछड़े चराने जाता था.. और लौटकर आता तो रोटी खा लेता था। ऐसे समय बीतता गया।


एक दिन दोपहर के समय वह बछड़े चरा कर आया तो सेठ नंदाराम की नौकरानी ने उसे ठंडी रोटी खाने के लिए दे दी। 

उसने कहा कि थोड़ी सी छाछ या रबड़ी मिल जाए तो ठीक है।

नौकरानी ने कहा कि, जा जा तेरे लिए बनाई है रबड़ी, जा ऐसे ही खा ले नहीं तो तेरी मर्जी।

उस लड़के के मन में गुस्सा आया कि, मैं धूप में बछड़े चरा कर आया हूं, भूखा हुँ..पर मेरे को बाजरे की सूखी रोटी दे दी.. रबड़ी मांगी तो तिरस्कार कर दिया..।।

वह भूखा ही वहां से चला गया। 

गांव के पास में एक शहर था.. उस शहर में संतों कि एक मंडली आई हुई थी.. वह लड़का वहां चला गया।

संतों ने उसको भोजन कराया और पूछा कि तेरे परिवार में कौन हैं। 

उसने कहा कि कोई नहीं है..

संतों ने कहा तू भी साधु बन जा.. लड़का साधु बन गया।

संतों ने ही उसके पढ़ने की व्यवस्था काशी में कर दी.. वह पढ़ने के लिए काशी चला गया वहां पढ़कर वह विद्वान हो गया। 

फिर कुछ समय बाद उसे महामंडलेश्वर महंत बना दिया गया।

महामंडलेश्वर बनने के बाद एक दिन उसको उसी शहर में आने का आमंत्रण मिला..।

वह अपनी मंडली लेकर वहां आये.. 

जिनके यहाँ वह बचपन में काम करते थे, सेठ नंदाराम बूढ़े हो गए थे।

सेठ नंदाराम भी शहर में उनका सत्संग सुनने आए.. 

उनका सत्संग सुना और प्रार्थना की कि महाराज.. एक बार हमारी कुटिया में पधारो जिससे हमारी कुटिया पवित्र हो जाए ! 

महामंडलेश्वर जी ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया.. 

महामंडलेश्वर जी अपनी मंडली के साथ सेठ नंदाराम के घर पधारे।

भोजन के लिए पंक्ति बैठी, भोजन मंत्र का पाठ हुआ.. फिर सबने भोजन करना आरंभ किया।

महाराज के सामने तख़्त लगाया गया, और उस पर तरह-तरह के भोजन के पदार्थ रखे हुए थे।

अब सेठ नंदाराम महाराज के पास आए साथ में नौकर था जिसके हाथ में हलवे का पात्र था।

सेठ नंदाराम प्रार्थना करने लगा कि महाराज कृपा करके थोड़ा सा हलवा मेरे हाथ से ले लो। 

महाराज को हंसी आ गई..

सेठ नंदाराम ने पूछा कि आप हँसे कैसे ?

महाराज बोले कि, मेरे को पुरानी बातें याद आ गई इसलिए हंसा।

सेठ नंदाराम बोले महाराज यदि हमारे सुनने लायक बात हो तो हमें भी बताइए।

महाराज ने सब संतो से कहा कि, भाई थोड़ा ठहर जाओ बैठे रहो, सेठ नंदाराम बात पूछता है, तो बताता हूं..


महाराज ने सेठ नंदाराम से पूछा कि, आपके कुटुंब में एक नौकर का परिवार रहा करता था उस परिवार में अब कोई है क्या ?


सेठ नंदाराम बोले कि, केवल एक लड़का था.. और हमारे यहाँ उसने कई दिन बछड़े चराए.. फिर ना जाने कहाँ चला गया।


बहुत दिन हो गए फिर कभी उसको देखा नहीं।


महाराज बोले, कि मैं वही लड़का हूं। पास के शहर में संत-मंडली ठहरी हुई थी। मैं वहां चला गया।


पीछे काशी चला गया वहां पढ़ाई की और फिर महामंडलेश्वर बन गया।


यह वही आंगन है जहां आपकी नौकरानी ने मेरे को थोड़ी सी रबड़ी देने के लिए भी मना कर दिया था।


अब मैं भी वही हुँ, आंगन भी वही है.. आप भी वही हैं..।


पर अब आप अपने हाथों से मोहनभोग दे रहे हैं.. कि महाराज कृपा करके थोड़ा सा मेरे हाथ से ले लो !


मांगे मिले ना रबड़ी, करूं कहां लगी वरण। 

मोहनभोग गले में अटक्या, आ संतों की शरण।।


सन्तो की शरण लेने मात्र से इतना हो गया कि जहां रबड़ी नहीं मिलती थी वहां मोहनभोग भी गले में अटक रहे हैं..।


अगर कोई भगवान् की शरण ले ले, तो वह संतों का भी आदरणीय हो जाए..।


लखपति करोड़पति बनने में सब स्वतंत्र नहीं हैं..पर भगवान् की शरण होने में भगवान् का भक्त बनने में सब के सब स्वतंत्र हैं..!!


और ऐसा मौका इस मनुष्य जन्म में ही है..!!

दो अंगुल बंधन का रहस्य?

ब्रह्मलोक लगि गयउँ मैं चितयउँ पाछ उड़ात।

जुग अंगुल कर बीच सब राम भुजहि मोहि तात॥

भावार्थ:-मैं ब्रह्मलोक तक गया और जब उड़ते हुए मैंने पीछे की ओर देखा, तो हे तात! श्री रामजी की भुजा में और मुझमें केवल दो ही अंगुल का बीच था।

रामचरितमानस में जब प्रभु की भुजा कागभुसुड जी को पकड़ने दोड़ी तो वह भुजा सदा मात्र दो अंगुल के अन्तर से पीछे रही और वृन्दावन में जब यशोदा मैया नटखट भगवान् श्यामसुंदर को बाँधने की कोशिश करती हैं तो सारे वृन्दावन की रस्सी भी मात्र दो अंगुल के फर्क से छोटी रह जाती है।

जब भगवान् जी से पूछा गया की यह दो अंगुल का क्या रहस्य है तो वह मुस्कुराकर बोले एक अंगुल तो मेरी कृपा का है और दूसरी अंगुल जीव की इच्छा का है।जब तक जीव मुझे पकड़ने का प्रयास नहीं करेगा और फिर मै उस जीव पर कृपा नहीं करूँगा तो हमारा मिलन संभव नहीं होगा।अगर ईश्वर और भक्त एक दुसरे को पकड़ने का प्रयास नहीं करते तो जीव और ईश्वर का मिलन नहीं होगा।

ईश्वर को श्रीराम विवाह के समय माँ सीता की पंचरंगी चुनरी के छोर द्वारा बाँधा गया और फिर श्यामसुंदर भगवान् जब राधारानी के बरसाने से रस्सी मंगवाई गयी तो भी भगवान् बन्ध गए।

जिस माँ की गोद में जाकर व्यापक ब्रह्म इतना छोटा हो गया उसके हाथ मे अगर रस्सी भी आकर छोटी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।माँ यशोदा के हाथ में रस्सी छोटी होने का कारण भगवान् श्यामसुंदर नहीं थे,क्योंकि भगवान् ने रस्सी से न बंधने के लिए अपने शरीर को तो बड़ा नहीं किया था फिर माँ यशोदा क्यों नहीं बाँध पायी।इसका कारण एक तो क्रोध के कारण बांधना चाहती थी और दूसरी ओर प्रेम के कारण उन्हें बाँधने में संकोच हो रहा था इसी कारण रस्सी छोटी रह जाती थी।माँ के क्रोध और संकोच के कारण दो अंगुल का फर्क रहा।मन में अगर किसी प्रकार का संशय है तो ईश्वर को नहीं बाँधा जा सकता।

तात्पर्य यह है कि भगवान् भक्ति के बंधन से बन्ध सकते हैं।माता सीता और राधारानी भक्ति का स्वरुप है।एक बार भक्ति के बंधन में जकड़े जाने के पश्चात ईश्वर भक्ति देवी का ही अनुसरण करते दिखाई देते है।श्रीराम विवाह में माँ सीता की चुनरी से बंधे श्री राम श्री सीता के पीछे पीछे चलकर विवाह पूर्ण करते हैं।

जो ईश्वर का पीताम्बर असीम है और जिसका कोइ छोर नहीं है जिसकी सीमा नहीं है वह ईश्वर भी जब भक्ति की चुनरी के साथ बंधता है तो असीम हो जाता है और फिर वह पकड़ा जा सकता है..!!


Friday, February 23, 2024

संयम और साहस

बहुत दिन पहले किसी गांव में एक नाई रहता था। वह बहुत आलसी था। सारा दिन वह आईने के सामने बैठा टूटे कंघे से बाल संवारते हुए गंवा देता। उसकी बूढ़ी मां उसके आलसीपन के लिए दिन-रात फटकारती थी, लेकिन उसके कानों पर जूं भी नहीं रेंगती थी। आखिरकार एक दिन मां ने गुस्से में उसकी पिटाई कर दी। जवान बेटे ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया और घर छोड़ कर चला गया। उसने कसम खाई कि जब तक कुछ धन जमा नहीं कर लेगा, वह घर नहीं लौटेगा। चलते-चलते वह जंगल पहुंचा। उसे कोई काम तो आता नहीं था इसलिए अब वो भगवान को मनाने बैठ गया। अभी वह प्रार्थना के लिए बैठता, उससे पहले ही उसका एक ब्रम्हराक्षस से सामना हो गया। ब्रम्हराक्षस नाई को देखकर खुश हुआ और खुशी मनाने के लिए लिए नाचने लगा। यह देख नाई के होश उड़ गए, पर अपने डर को जाहिर नहीं होने दिया। उसने साहस बटोरा और राक्षस के साथ नाचने लगा।


कुछ देर बाद उसने राक्षस से पूछा- तुम क्यों नाच रहे हो? तुम्हें किस बात की खुशी है? राक्षस हंसते हुए बोला, मैं तुम्हारे सवाल का इंताज़ार कर रहा था। तुम तो निरे उल्लू हो। तुम समझ नहीं पाओगे। मैं इसलिए नाच रहा हूं कि मुझे तुम्हारा नरम-नरम मांस खाने को मिलेगा। वैसे, तुम क्यों नाच रहे हो? नाई ने ठहाका लगाते हुए कहा, मेरे पास इससे भी बढ़िया कारण है। हमारा राजकुमार सख्त बीमार है। चिकित्सकों ने उसे एक सौ एक ब्रम्हराक्षसों के हृदय का रक्त पीने का उपचार बताया है। महाराज ने मुनादी करवाई है जो कोई यह दवा लाकर देगा, उसे वे अपना आधा राज्य देंगे और राजकुमारी का विवाह भी उससे कर देंगे। मैंने सौ ब्रम्हराक्षस तो पकड़ लिए हैं। अब तुम भी मेरी गिरफ्त में हो।यह कहते हुए उसने जेब से छोटा आईना उसकी आंखों के सामने किया। आतंकित राक्षस ने आईने में अपनी शक्ल देखी। चांदनी रात में उसे अपना प्रतिबिम्ब साफ नज़र आया। उसे लगा कि वह वाकई उसकी मुट्ठी में है। थर-थर कांपते हुए उसने नाई से विनती की कि उसे छोड़ दे, पर नाई राज़ी नहीं हुआ। तब राक्षस ने उसे सात रियासतों के खज़ाने के बराबर धन देने का लालच दिया। पर इस भेंट में नाई ने दिलचस्पी न लेने का नाटक करते हुए कहा- पर जिस धन का तुम वादा कर रहे हो, वह है कहां और इतनी रात में उस धन को और मुझे घर कौन पहुंचाएगा?


राक्षस ने कहा, खज़ाना तुम्हारे पीछे वाले पेड़ के नीचे गड़ा है। पहले तुम इसे अपनी आंखों से देख लो, फिर मैं तुम्हें और इस खज़ाने को पलक झपकाते ही तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा। राक्षसों की शक्तियां तुमसे क्या छुपी है, कहने के साथ ही उसने पेड़ को जड़ समेत उखाड़ दिया और हीरे-मोतियों से भरे सोने के सात कलश बाहर निकाले। खज़ाने की चमक से नाई की आंखें चौंधिया गईं, पर अपनी भावनाओं को छुपाते हुए उसने रौब से उसे आदेश कि वह उसे और खज़ाने को उसके घर पहुंचा दे। राक्षस ने आदेश का पालन किया। राक्षस ने अपनी मुक्ति की याचना की, पर नाई उसकी सेवाओं से हाथ नहीं धोना चाहता था। इसलिए अगला काम फसल काटने का दे दिया। बेचारे राक्षस को यकीन था कि वह नाई के शिकंजे में है। सो उसे फसल तो काटनी ही पड़ेगी। 


वह फसल काट ही रहा था कि वहां से दूसरा ब्रम्हराक्षस गुजरा। अपने दोस्त को इस हालत में देख वह पूछ बैठा। ब्रम्हराक्षस ने उसे आपबीती बताई और कहा कि, इसके अलावा कोई चारा नहीं है। दूसरे ने हंसते हुए कहा, पागल हो गए हो? राक्षस आदमी से कहीं शक्तिशाली और श्रेष्ठ होते हैं। तुम उस आदमी का घर मुझे दिखा सकते हो? हाँ, दिखा दूंगा, पर दूर से। धान की कटाई पूरी किए बिना उसके पास जाने की मेरी हिम्मत नहीं है।यह कहकर उसने उसे नाई का घर दूर से दिखा दिया।


वहीं अपनी कामयाबी के लिए नाई ने भोज का आयोजन किया। और एक बड़ी मछली भी लेकर आया। लेकिन एक बिल्ली टूटी खिड़की से रसोई में आकर ज्यादा मछली खा गई।गुस्से में नाई की बीवी बिल्ली को मारने के लिए झपटी, पर बिल्ली भाग गई। उसने सोचा, बिल्ली इसी रास्ते से वापस आएगी। सो वह मछली काटने की छुरी थामे खिड़की के पास खड़ी हो गई। उधर दूसरा राक्षस दबे पांव नाई के घर की ओर बढ़ा। उसी टूटी हुई खिड़की से वह घुसा। बिल्ली की ताक में खड़ी नाइन ने तेज़ी से चाकू का वार किया। निशाना सही नहीं बैठा, पर राक्षस की लम्बी नाक आगे से कट गई। दर्द से कराहते हुए वह भाग खड़ा हुआ। और शर्म के मारे अपने दोस्त के पास वो गया भी नहीं।


पहले राक्षस ने धीरज के साथ पूरी फसल काटी और अपनी मुक्ति के लिए नाई के पास गया।धूर्त नाई ने इस बार उल्टा शीशा दिखाया।राक्षस ने बड़े गौर से देखा।उसमें अपनी छवि न पाकर उसने राहत की सांस ली और नाचता-गुनगुनाता चला गया।


शिक्षा:-

धैर्य और संयम से बड़ी मुसीबतें भी टल जाती हैं।साहस से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है..!!


Sunday, February 18, 2024

जलकुंभी

 पहले एक पौधा दिखाई देता है... फिर धीरे धीरे कुछ हफ्तों में तालाब के सब कोनों में एक-दो पौधे तैरते दिखाई देने लगते हैं....

कुछ महीने या सालों में पानी दिखाई देना बंद हो जाता है... सारे तालाब के ऊपर सिर्फ हरा हरा ही दिखाई देता है.... पानी की आक्सीजन खत्म होने लगती है.... अंदर का जीवन, मछलियां मरने लगती हैं...

धीरे धीरे पानी की सड़ांध किलोमीटर दूर से महसूस होनी शुरू हो जाती है.... जिस जिस तालाब में ये जलकुंभी पहुंचती है, उसे उसे खत्म कर देती है....

इलाज...

अगर तो शुरू में ही एक दो पौधों को बाहर निकाल कर फेंक दिया जाए तो वो धूप से सूख जाएंगे....

अगर पूरा तालाब भर गया हो तो सारी जलकुंभी को बाहर निकाल कर सुखाया जाता है.... और सूखने के बाद आग लगा कर बीज तक नाश कर दिया जाता है...

ताकि दुबारा ना पनप सके.... 

हो सकता है आपके घर के पास के तालाब में एक दो पौधे दिखाई दें... शुरू में आपको ये सुंदर दिखाई देंगे... लेकिन अगर आप अभी इलाज नहीं करेंगे तो धीरे धीरे ये पूरे तालाब पर कब्जा कर लेंगे...

फिर या तो आप सड़ांध सहना या घर बेच कर दूर चले जाना.... दो ही रास्ते होंगे... तीसरा रास्ता समूल नाश का है...

मर्जी है आपकी... 

क्यूंकि तालाब है आपका...

घर है आपका...

Friday, February 9, 2024

अपने लिए जीए तो क्या जीए

मोहन निराश होकर भरी दोपहरी में इंटरव्यू देकर वह एक आफिस से बाहर निकला ....इंटरव्यू तो इस बार भी अच्छा हुआ था पर...इससे पहले भी उसके कई इंटरव्यू अच्छे हुए थे पर वह नौकरी अभी तक हासिल नहीं कर पाया था कारण उसके पास किसी बड़ी कम्पनी का कोई अनुभव नहीं था और होता भी कैसे वह अबतक अपने पापा की बात मानकर खुश था कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता बस सोच छोटी या बड़ी होती है मगर अब लगता था कि पापा भी .... नहीं मेरे पापा गलत नहीं हो सकते वो तो अक्सर कहते हैं अपने लिए जीए तो क्या जीए तू जी ओ दिल जमाने के लिए....

बेटा जीवन वहीं सफलता भरा हुआ होता है जो दूसरों के काम आए करके देखो दिल को सुकून मिलता है ..... मगर पापा यहां तो अपने काम का ही ठिकाना नहीं तो कैसे किसी के काम आए.. ... धूप में मायूसी से वह बस–स्टैंड की ओर बढ़ा उसे भूख भी बड़े जोरों की लगी थी सुबह इंटरव्यू के लिए जल्दी के चलते बस दो रस और चाय पीकर निकल आया था की कहीं इंटरव्यू के लिए लेट ना हो जाऊं मगर इंटरव्यू लेने वाले दो घंटे बाद आए और उसका इंटरव्यू दोपहर को ...
उसने सोचा घर जल्दी पहुँचकर वह भोजन कर लेगा उसकी मां भी इंतजार कर रही होगी लोगों के कपड़े सी–सीकर थक जाती है
उसकी जेब में मात्र बीस रुपए थे दस रुपए बस का वापसी का किराया और दस रुपए उसने पहले के एकबार पैदल घर वापसी में बचाए हुए थे लेकिन आज पैदल चला तो बहुत देर से पहुंचेगा और उधर मां इंतजार करके भूखे पेट ही फिर से काम में जुट जाएगी वैसे पेट तो भूख से उसका भी बिलबिला रहा था उसने एक दो केले ही खा लूं तो थोड़ा सा आसरा हो जाएगा यही सोचकर वह एक केले वाले की ओर बढ़ा
तभी एक छोटा–सा लड़का ..साहब पॉलिश करा लो... कहता हुआ उसके सामने आ खड़ा हुआ
पल भर के लिए उसे लगा कि वह सचमुच साहब हो गया है एक नौकरी करनेवाला साहब
उसने एक नजर अपने पुराने पड़ गए जूतों पर डाली और सिर हिलाते हुए कहा...नहीं भाई ... नहीं करानी है
करा लो न बाबू जी बस दस रुपए लेता हूं सुबह से बोनी भी नहीं हुई भूखा हूं कुछ खा लूंगा.... वह लड़का गिड़गिड़ाते हुए बोला
उसे महसूस हुआ जैसे उसके अन्दर से कोई कह रहा हो
हमारे घर की दशा अच्छी नहीं है साहब मुझे नौकरी पर रख लीजिए
उसकी आँखें नम हो आयी उसने एक नजर जेब में पड़े दो दस दस के नोटों पर डाली और पॉलिश के लिए अपने जूते उस लड़के की ओर बढा दिए
आखिर उसे पापा की कहीं बात का स्मरण जो हो रहा था
अपने लिए जीए तो क्या जीए तू जी ओ दिल जमाने के लिए ...!!

Monday, February 5, 2024

पुराने दिन

 पुराने दिनों से इस आधुनिक युग तक का सफर

हमारे बुजर्ग हमसे वैज्ञानिक रूप से बहुत आगे थे।
थक हार कर बापिश उनकी ही राह पर
बापिश आना पड़ रहा है।
1. मिट्टी के बर्तनों से स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों तक और फिर कैंसर के खौफ से दोबारा मिट्टी के बर्तनों तक आ जाना।
2. अंगूठाछाप से दस्तखतों (Signatures) पर और फिर अंगूठाछाप (Thumb Scanning) पर आ जाना।
3. फटे हुए सादा कपड़ों से साफ सुथरे और प्रेस किए कपड़ों पर और फिर फैशन के नाम पर अपनी पैंटें फाड़ लेना।
4. सूती से टैरीलीन, टैरीकॉट और फिर वापस सूती पर आ जाना ।


5. जयादा मशक़्क़त वाली ज़िंदगी से घबरा कर पढ़ना लिखना और फिर IIM MBA करके आर्गेनिक खेती पर पसीने बहाना।
6. क़ुदरती से प्रोसेसफ़ूड (Canned Food & packed juices) पर और फिर बीमारियों से बचने के लिए दोबारा क़ुदरती खानों पर आ जाना।
7. पुरानी और सादा चीज़ें इस्तेमाल ना करके ब्रांडेड (Branded) पर और फिर आखिरकार जी भर जाने पर पुरानी (Antiques) पर उतरना।
8. बच्चों को इंफेक्शन से डराकर मिट्टी में खेलने से रोकना और फिर घर में बंद करके फिसड्डी बनाना और होश आने पर दोबारा Immunity बढ़ाने के नाम पर मिट्टी से खिलाना....
9. गाँव, जंगल, से डिस्को पब और चकाचौंध की और भागती हुई दुनियाँ की और से फिर मन की शाँति एवं स्वास्थ के लिये शहर से जँगल गाँव की ओर आना।
इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि टेक्नॉलॉजी ने जो दिया उससे बेहतर तो प्रकृति ने पहले से दे रखा था

पिता की दौलत

गांव में अकेले रहते बूढ़े पिता की मृत्यु हुई, तो विभिन्न शहरों में बसे दोनों भाई पिता के अंतिम संस्कार के लिए गांव पहुंचे.
सब कार्य सम्पन्न हुए. कुछ लोग चले गए थे और कुछ अभी बैठे थे कि बड़े भाई की पत्नी बाहर आई और उसने अपने पति के कान में कुछ कहा.
बड़े भाई ने अपने छोटे भाई को भीतर आने का इशारा किया और खड़े होकर वहां बैठे लोगों से हाथ जोड़ कर कहा, ”अभी पांच मिनट में आते है.”
दोनों की स्त्रियां ससुरजी के कमरे में थी. भीतर आते ही बड़े भाई ने उनसे फुसफुसाकर कर पूछा, “बक्सा छुपा दिया था ना.”


“हां, बक्सा हमारे पास है. चलिए जल्दी से देख लेते हैं नहीं तो कोई आसपास का हक़ जताने आ जाएगा और कहेगा कि तुम्हारे पीछे हमने तुम्हारे बाबूजी पर इतना ख़र्च किया वगैरह वगैरह. क्यों देवरजी…” बड़े की पत्नी ने हंसते हुए कहा.
“हां सही कहा भाभी.” कहकर छोटे ने भी सहमति जताई.
बड़ी बहू ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और छोटी ने तेज़ी से बाबूजी की चारपाई के नीचे से एक बहुत पुराना बक्सा निकाला.
दोनों भाई तुरंत तेज़ी से नीचे झुके और बक्से को खोलने लगे.
“अरे, पहले चाबी तो पकड़ो, ऐसे थोड़े ना खुलेगा. मैंने आते ही ताला लगाकर चाबी छुपा ली थी.”
बड़ी बहू ने अपने पल्लू के एक छोर पर बंधी हुई चाबी निकाली और अपने पति को पकड़ा दी.
बक्सा खुलते ही वहां मौजूद चारों बक्से पर झुक गए.
उन्हें विश्वास था कि इसमें मां के गहने, अन्य बहुमूल्य वस्तुएं होंगी.
परंतु बक्से में तो बड़े और छोटे की पुरानी तस्वीरें, छोटे-छोटे कुछ बर्तन, उन्हीं दोनों के छोटे-छोटे कपड़े सहेजकर रखे हुए थे.
उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई ये सब भी भला सहेजकर रखता है.
चारों के चेहरे निराशा से भर गए. तभी छोटे भाई की नज़र बक्से के कोने में कपड़ों के बीच रखी एक कपड़े की थैली पर गई. उसने तुरंत आगे बढ़कर उस थैली को बाहर निकाला. ये देखकर सबकी नज़रों में अचानक चमक आ गई. सभी ने लालची नज़रों से उस थैली को टटोला.
छोटे भाई ने उस थैली को वहीं ज़मीन पर पलट दिया.
उसमें कुछ रुपए थे और साथ में एक काग़ज़ जिस पर कुछ लिखा हुआ था. छोटे भाई ने रुपए गिने, तो लगभग बीस हज़ार रुपए थे.
"बस… और… कुछ नहीं है."
“अरे, इस काग़ज़ को पढ़ो, ज़रुर किसी बैंक अकाउंट या लॉकर का विवरण होगा.” बड़ी बहू ने कहा, तो बड़े बेटे ने तुरंत छोटे के हाथों से उस काग़ज़ को छीनकर पढ़ा.
उस पर लिखा हुआ था- 'क्या ढूंढ़ रहे हो?.. संपत्ति…?
हां… ये ही है मेरी और तुम्हारी मां की संपत्ति. तुम दोनों के बचपन की वो यादें, जिसमें तुम शामिल थे. वो‌ ख़ुशबू, वो प्यार, वो अनमोल पल, आज भी इन कपड़ों में, इन तस्वीरों में इन छोटे-छोटे बर्तनों में मौजूद हैं. यही है हमारी अनमोल दौलत… तुम तो हमें यहां अकेले छोड़ कर चले गए थे अपना भविष्य संवारने.

मगर हम यहां तुम्हारी यादों के सहारे ही जिए… तुम्हारी मां तुम्हें देखने को तरस गई और शायद मैं भी… अब तक तुमसे कोई पैसा नहीं लिया. अपनी पेंशन से ही सारा घर चलाया, पर तुम लोगों को हमेशा ‘इस बक्से में अनमोल दौलत है’ जान-बूझकर सुनाता रहा. मगर बच्चों ध्यान देना अपने बच्चों को कभी अपने से दूर मत करना, वरना जैसे तुमने अपने भविष्य का हवाला देकर हमें अपने से दूर किया वैसे ही… दुनिया का सबसे बड़ा दुख जानते हो क्या होता है?… अपनों के होते हुए भी किसी अपने का पास नहीं होना. जीवन में उस समय कोई दौलत-गहने, संपति काम नहीं आते. 

Thursday, February 1, 2024

दुआलिया चूल्हा!

ये हमारी गैस चूल्हा जैसा ही होता था। एक जगह लकड़ी जलाओ और एक साथ दो चीजें बनाओ।

सुबह सबसे पहला काम होता है झाड़ू लगाकर राख उठाओ फिर एक बरतन में चिकनी मिट्टी भिगोकर एक कपड़े से चूल्हा और आस-पास की मिट्टी की दीवारों को पोता जाता था जिसे हमारी तरफ सैतना कहते हैं और जिस बरतन में मिट्टी भिगोकर रखी जाती है उसे सैतनहर कहते हैं। सैतने वाले कपड़े को पोतना या सैतनी कहते हैं।


चूल्हा अच्छी तरह से सैत कर फिर दीवार सैती जाती थी। मैं जब पुताई करती थी तब दीवार पर उंगलियों को घुमाकर डिजाइन बना दिया करती थी।
पुताई करने के बाद चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी, उपले, धान की भूसी रखी जाती है। चूल्हे से निकली राख से दाल, चावल की बटुली -बटुले ,कड़ाही,चाय की पतीली सब पर एक साथ ही लेप लगा दिया जाता था जिसे लेईयाना कहते थे। राख की लेप लगाने से चूल्हे पर भोजन बनाने से बरतन जलते नहीं थे और उन्हें साफ करने में आसानी रहती थी।
इस चूल्हे पर एक तरफ चाय बनती है तो दूसरी तरफ सब्जी बन जाती है। सब्जी बनने के बाद रोटी बनती जाती है और घर के लोग गर्मागर्म रोटी सब्जी और चाय का नाश्ता करने लगते हैं।
बाद में एक तरफ चावल और दूसरी तरफ दाल बन जाती है।
जब मैं भोजन बनाती थी तब तो एक तरफ दूध गर्म करती थी दूसरी तरफ चाय बनाती थी। चाय के साथ भूजा या चूरा नाश्ता होता था और फिर दाल चावल बनाती थी चावल जल्दी बन जाता था तो चावल उतार कर उसी चूल्हे पर सब्जी छौंक देती थी। सब्जी भी बन जाती थी तब कहीं जाकर दाल बनकर तैयार होती थी। सब्जी की कड़ाही उतारकर उस चूल्हे पर तवा चढ़ा कर रोटी बनने लगती थी।
यू एक साथ भोजन बन जाता था और फिर जिसे भोजन करना हो वो भोजन कर लिया करते थे।
ये चूल्हा जमीन में थोड़ा सा गाड़ दिया जाता है ताकि इधर उधर न तो खिसके न हिले।
कई बार बरतन छोटा और चूल्हे का मुहँ बड़ा हो जाता था तब बरतन को अच्छी तरह से चूल्हे के मुँह पर बैठाने के लिए एक ईंट का टुकड़ा लगाया जाता था जिसे उचकुन कहते थे।
हमारी तरफ चूल्हे की सारी राख उठाकर अच्छी तरह से प्रतिदिन चूल्हा पोतकर साफ किया जाता था। रात में बिन पोते भोजन बनता था बस दिन के बने भोजन की राख चूल्हे से निकालकर बगल में कर दी जाती थी जिसे सुबह चूल्हे की सफाई करते समय उठा लिया जाता था। बिन चूल्हे को पोते भोजन नहीं बनता था क्योंकि रसोई जूठा समझा जाता था।
दोनों समय की चूल्हे से निकली राख को गृह वाटिका में लगी सब्जियों पर छिड़क दिया जाता था ये राख कीट नाशक और खाद दोनों का काम करती थी।

Saturday, January 27, 2024

रिक्शावाला

महज पांच सात वर्ष पहले तक रिक्शा पटना की लाइफ लाइन हुआ करती थी पटना के किसी गली मोहल्ले से स्टेशन बस स्टैंड या किसी भी बाजार में जाने के लिए लोग रिक्शे का इस्तेमाल करते थे पर अब शहर से रिक्शा पुल पुलिया फ्लाईओवर और नए नवनिर्माण के कारणों से दूर हो गया है और पटना के कुछ इलाकों में ही आपको रिक्शा देखने को मिल जाएगा याद कीजिए कि पिछली बार आपने रिक्शे की सवारी कब की थी।मेरे लिए रिक्शे में बैठना एक कठिन निर्णय होता रहा है, रिक्शे की सवारी के समय मेरा ध्यान हमेशा उसकी पैरों की पिंडलियों पर रहता था, कि कितनी मेहनत से खींचता है रिक्शा , सड़क पर कोई भी मोटरसाइकिल वाला या कार वाला उसको ऐसे हिकारत की निगाह से देखता है जैसे कोई जुर्म कर दिया हो, मैनें नोटिस किया अक्सर कारों वालों के अहम के सामने रिक्शेवाले भाई को अपने रिक्शे में ब्रेक लगाने पड़ते थे , गलती किसी की हो थप्पड़ हमेशा रिक्शेवाले के गाल पर ही पड़ता था। पुलिसवाले के गुस्से का सबसे पहला शिकार ये बेचारा रिक्शेवाला ही होता है। बेचारा 2 आंसू टपकाता, अपने गमछे से आँसू पोंछता फिर से पैडल पर जोर मार के चल पड़ता। यार ये दौलत कमाने नहीं निकले, सिर्फ 2 वक़्त की रोटी मिल जाये, बच्चे को भूखा न सोना पड़े बस इसीलिए पूरी जान लगा देते हैं। कभी इनसे मोल भाव मत करना, बस1 दे देना कुछ एक्स्ट्रा , ईश्वर भी फिर प्लान करेगा आपको कुछ एक्स्ट्रा देने का, कभी कभी यूं ही सवारी कर लेना.. रिक्शे की मदद हो जाएगी। भीख देकर उनका अपमान मत करना , वो गरीब हैं भिखारी नहीं I बस कभी कभी यूँ ही सवारी कर लेना I





Wednesday, January 24, 2024

सगपहिता

 घर से कल ये बथुआ और उड़द आया था तो सगपहिता न बने भला कैसे हो सकता था।

ध्यान से इस उड़द का रंग देखिए! न काला रंग है न ही हरा है बल्कि भूरा है।
वर्षों से घर से दूर रहने के कारण घर की दाल के स्वाद और सुगंध को तरस जाया करते थे तो रंग भला कहाँ याद रहता।
हालांकि मैं भोजन बनाते समय पूरी मेहनत और कोशिश करती थी कि मेरे बनाये भोजन में सुगंध और स्वाद गांव का आ सके परन्तु नजदीक मात्र पहुंचती थी पूरी कामयाब नहीं हो पाती थी।


यही कारण है कि गांव जाने पर मानों भूख दस गुना बढ़ जाती थी क्योंकि भोजन बनते समय ही आती हुई मनपसंद, चिरपरिचित सुगंध उदर क्षुधा को मानों भड़का देती थी। भोजन सामने आते ही टूट पड़ते हैं और पेट से अधिक खा लिया करते थे परन्तु ये ओवरईटिंग हमे कभी नुकसान नहीं पहुँचाता था क्योंकि भोजन करने के बाद हमारी सक्रियता इतनी होती थी कि खाया हुआ भोजन किधर गया कब पच गया पता ही नहीं चलता था।
हाँ जी! तो हम गांव से वापस आते हैं और उड़द के रंग की बात करते हैं । हमने पंजाब में एकदम काले रंग के उड़द या उड़द दाल खरीदा था जिसे धोने पर इतना काला रंग निकलता था कि समझ में नहीं आता था कि भला खेत में उगे उड़द की फलियों के अंदर रंग कैसे डाल आता है क्योंकि प्रकृति के रंग तो इतने कच्चे नहीं होते कि पानी पड़ते ही उतर जाए।
खैर ! लखनऊ आयी तब पता चला कि हरी मतलब मूंग ही नहीं होती बल्कि उड़द भी हरी होती है जो खाने में काली उड़द से ज्यादा स्वादिष्ट होती है तबसे मेरे घर पर हरी रंग वाली उड़द ही आने लगी है।
कल घर से ये जो भूरे रंग की उड़द आयी देखने में तो ये भी हरी लग रही है परन्तु हम जो बाजार से हरे रंग की उड़द लाते हैं वो एकदम हरे रंग की होती है और गांव से आयी इस उड़द का रंग मुझे भूरा लग रहा है इसलिए हम तो भूरा ही नाम दे दिया है।
तो फिर कल घर से आया बथुआ और भूरे रंग वालीं उड़द की सगपहिता दाल बनवाई पता नहीं भूरे रंग के उड़द और घर के बथुआ का कमाल था या माँ के प्रेम का कमाल था परन्तु दाल बहुत स्वादिष्ट बनी थी उपर से घर का बढ़िया खुशबुदार जम्भीरी प्रजाति का संतरे के आकार वाला नींबू भी था अहा!भोजन करने का तो आनंद ही आ गया था।
पोस्ट अच्छी लगे तो घर पर सगपहिता बनाइये खाइए और मेरी पोस्ट को लाइक करके कमेंट में अनुभव लिखकर जाइए और शेयर भी कर दीजियेगा ताकि आप सबसे जुड़े लोग भी पोस्ट का लाभ ले सके।

Monday, January 15, 2024

गूलर के फल में है सैकड़ों बीमारियों का इलाज

 दुनिया भर की ताकत का भंडार आपके बगल में है, और एक आप हैं कि दुनिया भर में तलाश कर रहे हैं...

ये कमाल का पौधा आपके आसपास, बगल में लगा हुआ है लेकिन लोग ड्राई फ्रूट, दवाओं और छायादार वृक्षो के पीछे भाग रहे हैं। ये अकेला वृक्ष कॉम्बो पैक है साहब जो अपने आपमे एक इकोसिस्टम है।
बाकी की माथा पच्ची भी होगी, तब तक आप अपना अनुभव शेयर करें, जरा गैसिंग लगाइये कि मैं क्या कहने वाला हूँ। वैसे उमर के विषय मे हमारे क्षेत्र में एक कहावत है...
आंखि देख के माखी न निगलि जाए!
सहगी ऊमर फोड़ खे न खाय!!
इस देशी कहावत के अनुसार अगर ऊमर/गूलर को फोड़ कर खाया जाये तो हवा लगते ही इसमे कीड़े पड़ जाते हैं। इसीलिये इसे बिना फोड़े ही खाया जाता है। लेकिन सच तो यह है, कि इसमें छोटे छोटे कीड़े (wasp) मौजूद रहते ही हैं। वनस्पति विज्ञान की भाषा मे गूलर का फल हायपेन्थोडीयम कहलाता है, जिसमे फूल/ पुष्पक्रम के आधारीय भाग मिलकर एक बड़े कटोरे या बॉल जैसी संरचना बना लेते हैं। और इस गोलाकार फल जैसी संरचना के भीतर कई नर और मादा पुष्प/ जननांग रहते है, जिनमें परागण और संयुग्मन के बाद बीज बन जाते हैं।
फल के परिपक्व होने के पहले उस पर विशेष प्रकार की मक्खी सहित कई कीट प्रवेश कर जाते हैं। कई बार वे अपना जीवन चक्र भी यहीं पूर्ण करते हैं। जैसे ही फल टूटकर जमीन से टकराता है, यह फट जाता है, और कीड़े मुक्त हो जाते हैं। ऐसा न भी हो तो कीट एक छिद्र करके बाहर निकल जाते हैं।




चलिये इन सबसे हटकर अब चर्चा करते हैं, इसके औषधीय महत्व की, हमारे गाँव के बुजुर्गों के अनुसार इसके फलो को खाने से गजब की ताकत मिलती है, और बुढापा थम से जाता है। मतलब अंजीर की तरह ही इसे भी प्रयोग किया जाता है।
मेरी दादी कहती थी कि ऊमर के पेड़ के नीचे से बिना इसे खाये नही गुजर सकते हैं। इसकी छाल को जलाकर राख को कंजी के तेल के साथ पाइल्स के उपचार में प्रयोग करते हैं। दूध का प्रयोग चर्म रोगों में रामवाण माना जाता है। दाद होने पर उस स्थान पर इसका ताजा दूध लगाने से आराम मिलता है। कच्चे फल मधुमेह को समाप्त करने की ताकत रखते हैं। पेट खराब हो जाने पर इसके 4 पके फल खा लेना इलाज की गारंटी माना जाता है।
वहीं एक ओर इसके पेड़ को घर पर या गाँव मे लगाना वर्जित है, शायद भूतों से इसे जोड़ते हैं, लेकिन वास्तव में यह दैत्य गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधि है। वास्तु के अनुसार दूध और कांटे वाले पौधे घर पर लगाना उचित नही होता।
बुद्धिजीवियो का मानना है कि वास्तव में इसे पक्षियों और जनवरो के पोषण के लिये छोड़ने के लिए ऐसी मान्यताएँ बना दी गई होंगी, जिससे लोग इसके फलों और पेड़ का अत्यधिक दोहन न कर सकें। पक्षीयों के लिए तो यह वरदान है। और पक्षी ही इसे फैलाते भी हैं। व्यवहारिक रूप से यह पक्षियों का पसंदीदा है तो पक्षियों की स्वतंत्रता के उद्देश्य से भी इसे घर से दूर लगाना सही प्रतीत होता है।
यह शूक्र ग्रह का प्रतिनिधि पौधा है तो इस नाते अनेको तांत्रिक शक्तिओ का स्वामी भी है। कहते है, इसकी नित्य पूजन करने से सम्मोहन की शक्ति प्राप्त की जा सकती है। प्रेम और युवा शक्ति तो जैसे इस पेड़ के इर्द गिर्द ही घूमती रहती है। नव ग्रह वाटिका के पेड़ों में यह भी एक है। वृषभ राशि वालो का तो यह मित्र पौधा है। किंतु दुख की बात है, इन पेड़ों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही है।
इसकी कोमल फलियों को सब्जियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जो चिकित्सा का एक अनुप्रयोग है।
ऐसा कहा जाता है, कि दुनिया मे किसी ने गूलर का फूल नही देखा है, इसका कारण और जबाब मैं पहले ही बता चुका हूं।

Saturday, December 16, 2023

गुड़

 गुड़ बनेगा!

बैल से चलने वाला कोल्हू भले नही है लेकिन इस तरह का कोल्हू अब भी मेरे घर पर है।
दूसरे गांव से एक परिवार गन्ना लेकर घर आया है गुड़ बनाने उनकी तैयारी देखी तो एक तस्वीर ले ली सोचा आप सब लोग से साझा करें।।


जब घर पर कोल्हू रहता है तो जब मन करे ताजा ताजा गन्ने का रस पियो।
सर्दियों में घर के छोटे आलुओं के दो टुकड़े करके, हरी धनिया, लहसुन पत्ती, हरी मिर्च से बने हरे मसाले के साथ बनी मटर की घुघनी और ताजा गन्ने का रस अहा!
किसी भी स्ट्रीट फूड नाश्ते को मात देता है।
कोल्हू से गन्ने के रस को निकालकर इस बड़े कड़ाह में पकाकर गुड़ बनता है जब गुड़ पकता है तो बहुत दूर तक मीठी मीठी खुश्बू फैल जाती है। दूसरे गांव तक के लोगो को पता चल जाता है कि आज कोई गुड़ बना रहा है।
जब गुड़ लगभग पक कर तैयार होने वाला होता है तब एक धागे में आलू, सेम और जो भी आपका दिल करे गूथ कर लड़ी बनाकर कड़ाह में लटका देते हैं। पक जाने पर थोड़े से गुड़ की चाशनी के साथ निकालकर फिर खावो अहा!
गुड़ की चाशनी को कड़ाह से एक लकड़ी के चाक(तश्तरी नुमा बर्तन) में निकाल लेते हैं और कड़ाह में ठंडा पानी डाल देते हैं कड़ाह में जो चाशनी लगी होती है फिर उसे इक्ट्ठा करके निकाला जाता है ये सब बच्चों का फेवरेट होता है इसे हमारे यहाँ चिमचा कहते हैं इस चिमचे के आगे हर तरह की चॉकलेट, च्युंगम फेल हैं।
जब कड़ाह उतर जाता है तब उसकी आग(जिस पर कड़ाह रखा जाता है उसे गुलवर कहते हैं) में तार में गूथ कर आलू डाल दिया जाता है और आग में पकने के बाद बढ़िया तीखे चटपटे नमक के साथ खाइए या भरता बनाकर खाये।
हमारे यहाँ तीन तरह के गुड़ बनते हैं एक सामान्य गुड़ होता है जिसके एक गुड़ का वजन लगभग एक पाव होता है मेरी नानी एक किलो गुड़ के लिए चार गुड़ देती थी।
दूसरा चाशनी कड़ी होने से पहले निकालकर रख लेते हैं इसे राब या ककई कहते हैं। इसका संरक्षण बहुत ध्यान से करना पड़ता वरना तरल होने की वजह से जल्दी खराब हो जाती है।
इसे मिट्टी के बड़े बड़े मटके या मिट्टी की छोटी टँकी( धुनकी ) में रखकर अच्छी तरह बन्द कर दिया जाता है। खाने के लिए किसी बर्तन में निकालकर फिर अच्छी तरह से बन्द कर देते हैं हवा या पानी के सम्पर्क में आने से ये खराब होती है। जब गन्ना खत्म हो जाता है तब इसी राब से शर्बत बनता है व सब मीठे पकवान इसी को घोलकर बनते हैं।
तीसरा है सूखे मेवे और सोंठ डालकर बनाई गई चौकोर आकर में काटी गई गुड़ की पट्टी जिसे"पितुड़ा" कहते हैं ये मेहमानों को पानी के साथ दिया जाता है।
पहले के समय में लोग बिस्किट इत्यादि नही देते थे मेहमानों के लिए इस प्रकार की व्यवस्था की जाती थी।।
कभी गर्म गुड़ खाये हो ? नॉर्मल गुड़ से सौ गुना ज्यादा स्वादिष्ट होता है।।
अब भी समय है सफेद जहर चीनी का प्रयोग बन्द करो गुड़ का प्रयोग करो अनेकों बीमारी से बचे रहोगे।।

पुराने दिनों की याद ताजा करता है ये मिर्जापुर का रेस्टोरेंट

ये प्रांगण कोई हवेली नही है
ये उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले मिर्जापुर में बना रेस्टुरेंट हैं
इस रेस्टुरेंट में कुछ ऐसी बातें है जो इसे भारत के सभी रेस्टुरेंट से अलग बनाती है


पहली बात ये की इस रेस्टुरेंट में आप को शुद्ध वातावरण मिलता है क्यों के सिटी के बाहर है
उसके बाद इसके अंदर का वातावरण बिलकुल देहाती है और सात्विक है गोबर से लीपे फर्श हैं कुवें से निकलता हुआ पानी भी
आप चाहें तो आप को बिसलेरी की बोतल को जगह कुवेँ का पानी दिया जाएगा
इसके बाद सबसे जरूरी चीज वो ये है की ये रेस्टोरेंट बेटियों को समर्पित है खाना बनाने वाले से लेके खाना परोसने तक हर काम महिलाएं करती है
सबसे खास बात जो इसे बाकी रेस्टोरेंट से अलग बनाती है वो ये है की आप को इस रेस्टोरेंट में कभी एंट्री नही मिलेगी
अगर आप इसमें खाना चाहते हैं तो आप के साथ में कम से कम एक महिला जरूर होनी चाहिए
बिना महिला के इस रेस्टुरेंट के द्वार से ही आप को विदा कर दिया जाएगा

क्यों की ये एक बेटियों को समर्पित रेस्टुरेंट हैं, इनके इस प्रयास से इसमें काम करने वाले महिलाएं सम्मानित और सुरक्षित महसूस करती हैं 

Tuesday, December 12, 2023

मखाना


ठंड के मौसम में सूखे मेवे की मांग स्वतः ही बढ़ जाती है, पर मखाना की मांग दिन प्रतिदिन कम पड़ती जा रही है....
जिसका मुख्य कारण मखाना के गुणकारी पक्ष को न जानना लगता है....
मखाना की प्रजाति हुबहु कमल से मिलती जुलती है,अंतर इतना की मखाना के पौधे बहुत #कांटेदार होते हैं ,
इतने कंटीले कि उस जलाशय में कोई जानवर भी पानी पीने के लिए नहीं जाता है ....
यह तालाब,नदी,और खेतो में पानी भरकर भी पैदा किया जा सकता है ....... ।
इसकी खेती मुख्य रूप से मिथिलांचल में होती है...


बिहार मिथिलांचल की पहचान के बारे में कहा जाता है- 'पग-पग पोखरि माछ मखान' यानी इस क्षेत्र की पहचान पोखर (तालाब), मछली और मखाना से जुड़ी हुई है।
बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया सहित 10 जिलों में मखाना की खेती होती है.....
देश में बिहार के अलावा असम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर में भी मखाने का उत्पादन होता है,
मगर देशभर में मखाने के कुल उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है......
मखाना को देवताओं का भोजन कहा गया है ....जन्म हो या मृत्यु,शादी हो या गोदभराई.....व्रत उपवास हो या यज्ञ हवन मखाने का हर जगह विशेष महत्व रहता है .....
इसे आर्गेनिक #हर्बल भी कहते हैं .....क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है।
अधिकांशतः ताकत की दवाइयाँ मखाने के योग से बनायी जाती हैं,
मखाने से #अरारोट भी बनता है. ....मखाना बनाने के लिए इसके बीजों को फल से अलग कर धूप में सुखाते हैं. ....
बीजों को बड़े-बड़े लोहे के कढ़ावों में सेंका जाता है. ...कढ़ाव में सिंक रहे बीजों को 5-7 की संख्या में हाथ से उठा कर ठोस जगह पर रख कर लकड़ी के हथोड़ो से पीटा जाता है. ....
इस तरह गर्म बीजों का कड़क खोल तेजी से फटता है और बीज फटकर लाई (मखाना) बन जाता है.
जितने बीजों को सेका जाता है.....उनमें से केवल एक तिहाई ही मखाना बनते हैं....।
औषधीय उपयोग

#किडनी को मजबूत बनाये ..... मखाने का सेवन किडनी और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है...
डाइबिटीज रोगी इसका सेवन कर लाभ पा सकते है...
मखाना कैल्शियम से भरपूर होता है इसलिए जोड़ों के दर्द, विशेषकर #अर्थराइटिस के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद होता है....
मखाने के सेवन से तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। रात में सोते समय दूध के साथ मखाने का सेवन करने से #नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है.....
मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है.....
मखाना शरीर के अंग सुन्न होने से बचाता है तथा घुटनों और कमर में दर्द पैदा होने से रोकता है.....
#गर्भवती महिलाओं और प्रसूति के बाद कमजोरी महसूस करने वाली महिलाओं को मखाना खाना चाहिये.....
मखाना को दूध में मिलाकर खाने से दाह (जलन) में आराम मिलता है।
#नपुंसकता ...मखाने में जो प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेड, फैट, मिनरल और फॉस्फोरस आदि पौष्टिक तत्व होते हैं वे कामोत्तेजना को बढ़ाने का काम करते हैं।
साथ ही शुक्राणुओं के क्वालिटी को बेहतर बनाने के साथ-साथ उसकी संख्या को भी बढ़ाने में सहायता करते हैं...।
कई लोग आज भी शक्तिवर्धक के रूप में विदेशी प्रोडक्ट को चुनते है
वही अमेरिकन हर्बल फ्रुड प्रोडक्ट एशोसिएशन ने मखाना को क्लास वन का फूड प्रोडक्ट घोषित किया हुआ हैं...।
मखाना की आप ढ़ेरो रेसिपी भी तैयार कर सकते हैं.

Sunday, December 10, 2023

तरकारी के हाट



 शंकर अपन कनियाँ के संग तरकारी कीनय एकटा दोकान पर जाइत छैथि आ आधा किलो बथुआ साग आ एक किलो भांटा कीनैत छैथि। बथुआ साग शंकर के कनियाँ अपन झोरा में राखि लैत छैथि आ भांटा बला झोरा शंकर के हाथ में। बेसी भीड़ रहवाक कारणे तरकारी कीनबा में दुनू गोटे के समय लागि जाइत छैन्ह। शंकर दोकानदार सँ पूछैत छथिन्ह जे कतेक पाई भेल। दोकानदार एक किलो भांटा के दाम बीस रूपैया मंगैत अछि। शंकर के कनियाँ चुप आ प्रसन्न। शंकर बीस रूपैया दोकानदार के दऽ कऽ आगू बढैत अछि। किछुए दूर गेला पर शंकर के कनियाँ शंकर सँ कहैत छैथि जे आइ आधा किलो बथुआ साग के दाम के फायदा भेल आ सभटा घटना शंकर के बता देलखिन्ह। शंकर तुरंत पाछू घुमलाह आ ओहि दोकानदार के पाइ देवाक लेल बिदा भेलाह, कनियाँ कतबो रोकवाक प्रयास कयलखिन शंकर ओहि दोकानदार के बथुआ साग के पाई दऽ कऽ आबि गेलाह आ कनियाँ के बुझेलखिन जे ककरो संगे एना नहिं करवाक चाही। किछु आगू बढलाक पश्चात् एकटा कन्या आगू सँ आबि शंकर सँ कहैत छैथि जे घर के आगि सँ बचएबाक अछि तऽ बचा लिअ। शंकर दुनू प्राणी सुनि कऽ दंग रहि जाइत छैथि। शंकर अपन माँ के डेरा पर फोन करैत छथिन्ह जे गैस के गंध नहिं ने आबि रहल अछि। शंकर के माँ कहैत छथिन्ह हँ। शंकर माँ सँ कहैत छथिन्ह जे किचेन में जा कऽ गैस चुल्हा के स्विच आफ करू आ खिड़की केवाड़ खोलि दियौ........ शंकर दुनू प्राणी सोचि रहल छलीह जे ओ कन्या आओर कियो नहिं स्वयं माता रानी आयल छलीह आ कहि कए चलि गेलीह जे नीक कर्म कयनिहार के संग सदैव नीक होइत छैक, तें हमरा सभके सतत् साकांच रहवाक चाही, इमानदार रहवाक चाही.

छोटे लोग

ऑफिस जाने के लिए मैं घर से निकला, तो देखा, कार पंचर थी. मुझे बेहद झुंझलाहट हुई. ठंड की वजह से आज मैं पहले ही लेट हो गया था. 11 बजे ऑफिस में एक आवश्यक मीटिंग थी, उस पर यह कार में पंचर… मैं सोसायटी के गेट पर आ खड़ा हुआ, सोचा टैक्सी बुला लूं. तभी सामने से ऑटो आता दिखाई दिया. उसे हाथ से रुकने का संकेत देते हुए मन में हिचकिचाहट-सी महसूस हुई.

इतनी बड़ी कंपनी का जनरल मैनेजर और ऑटो से ऑफिस जाए, किंतु इस समय विवशता थी. मीटिंग में डायरेक्टर भी सम्मलित होनेवाले थे. देर से पहुंचा, तो इम्प्रैशन ख़राब होने का डर था. ऑटो रुका. कंपनी का नाम बताकर मैं फुरती से उसमें बैठ गया. थोड़ी दूर पहुंचकर यकायक ऑटोवाले ने ब्रेक लगा दिए.
‘‘अरे क्या हुआ? रुक क्यों गए?" मैंने पूछा.
‘‘एक मिनट साहब, वह सोसायटी के गेट पर जो सज्जन खड़े हैं, उन्हें थोड़ी दूर पर छोड़ना है.’’ ऑटो चालक ने विनम्रता से कहा.
‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते.’’ मैं क्रोध में चिल्लाया.
‘‘एक तो मुझे देर हो रही है, दूसरे मैं पूरे ऑटो के पैसे दे रहा हूं, फिर क्यों किसी के साथ सीट शेयर करुंगा?"
‘‘साहब, मुझे इन्हें सिटी लाइब्रेरी पर उतारना है, जो आपके ऑफिस के रास्ते में ही पड़ेगी. अगर आपको फिर भी ऐतराज़ है, तो आप दूसरा ऑटो पकड़ने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं आपसे यहां तक के पैसे नहीं लूंगा.’’ ऑटो चालक के स्वर की दृढ़ता महसूस कर मैं ख़ामोश हो गया. यूं भी ऐसे छोटे लोगों के मुंह लगना मैं पसंद नहीं करता था.
उसने सड़क के किनारे खड़े सज्जन को बहुत आदर के साथ अपने बगलवाली सीट पर बैठाया और आगे बढ़ गया. उन सम्भ्रांत से दिखनेवाले सज्जन के लिए मेरे मन में एक पल को विचार कौंधा कि मैं उन्हें अपने पास बैठा लूं फिर यह सोचकर कि पता नहीं कौन हैं… मैंने तुरंत यह विचार मन से झटक दिया. कुछ किलोमीटर दूर जाकर सिटी लाइब्रेरी आ गई. ऑटोवाले ने उन्हें वहां उतारा और आगे बढ़ गया.
‘‘कौन हैं यह सज्जन?" उसका आदरभाव देख मेरे मन में जिज्ञासा जागी.
उसने बताया, ‘‘साहब, ये यहां के डिग्री कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल डॉक्टर खन्ना हैं. सर के मेरे ऊपर बहुत उपकार हैं. मैं कॉमर्स में बहुत कमज़ोर था. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण ट्यूशन फीस देने में असमर्थ था. दो साल तक सर ने मुझे बिना फीस लिए कॉमर्स पढ़ाया, जिसकी बदौलत मैंने बी काॅम 80 प्रतिशत मार्क्स से पास किया. अब सर की ही प्रेरणा से मैं बैंक की परीक्षाएं दे रहा हूं.’’ ‘‘वैरी गुड,’’ मैं उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सका.
‘‘तुम्हारा नाम क्या है?" मैंने पूछा.
‘‘संदीप नाम है मेरा. तीन साल पूर्व सर रिटायर हो गए थे. पिछले साल इनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया. हालांकि बेटे बहू साथ रहते हैं, फिर भी अकेलापन तो लगता ही होगा इसीलिए रोज सुबह दस बजे लाइब्रेरी चले जाते हैं. साहब, मैं शहर में कहीं भी होऊं, सुबह दस बजे सर को लाइब्रेरी छोड़ना और दोपहर दो बजे वापिस घर पहुंचाना नहीं भूलता. सर तो कहते भी हैं कि वह स्वयं चले जाएंगे, किंतु मेरा मन नहीं मानता. जब भी वह साथ जाने से इंकार करते हैं, मैं उनसे कहता हूं कि यह मेरी उनके प्रति गुरुदक्षिणा है और सर की आंखें भीग जाती हैं. न जाने कितने बहानों से वह मेरी मदद करते ही रहते हैं. साहब, मेरा मानना है, हम अपने मां-बाप और गुरु के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते.’
मैं निःशब्द मौन संदीप के कहे शब्दों का प्रहार अपनी आत्मा पर झेलता रहा. ज़ेहन में कौंध गए वे दिन जब मैं भी इसी डिग्री कॉलेज का छात्र था. साथ ही डॉ. खन्ना का फेवरेट स्टूडेंट भी. एम एस सी मैथ्स में एडमीशन लेना चाहता था. उन्हीं दिनों पापा को सीवियर हार्टअटैक पड़ा. मैं और मम्मी बदहवास से हॉस्पिटल के चक्कर लगाते रहे.
डॉक्टरों के अथक प्रयास के पश्चात् पापा की जान बची. इस परेशानी में कई दिन बीत गए और फार्म भरने की अंतिम तिथि निकल गई. उस समय मैंने डा. खन्ना को अपनी परेशानी बताई और उनसे अनुरोध किया कि वह मेरी मदद करें. डॉ. खन्ना ने मैनेजमैन्ट से बात करके स्पेशल केस के अन्तर्गत मेरा एडमीशन करवाया और मेरा साल ख़राब होने से बच गया था. कॉलेज छोड़ने के पश्चात् मैं इस बात को बिल्कुल ही भूला दिया. यहां तक कि आज जब डॉ. खन्ना मेरे सम्मुख आए, तो अपने पद के अभिमान में चूर मैंने उनकी तरफ़ ध्यान भी नहीं दिया.
आज मेरी अंतरात्मा मुझसे प्रश्न कर रही थी कि हम दोनों में से छोटा कौन था, वह इंसान जो अपनी आमदनी की परवाह न करके गुरुदक्षिणा चुका रहा था या फिर एक कंपनी का जनरल मैनेजर, जो अपने गुरु को पहचान तक न सका था.....!

बथुवा

 

बथुवा को अंग्रेजी में Lamb's Quarters कहते है, इसका वैज्ञानिक नाम Chenopodium album है।


साग और रायता बना कर बथुवा अनादि काल से खाया जाता  रहा है लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए प्लस्तर में बथुवा मिलाते थे और हमारी बुढ़ियां सिर से ढेरे व फांस (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुवै के पानी से बाल धोया करती। बथुवा गुणों की खान है और भारत में ऐसी ऐसी जड़ी बूटियां हैं तभी तो मेरा भारत महान है।


बथुवै में क्या क्या है?? मतलब कौन कौन से विटामिन और मिनरल्स??


तो सुने, बथुवे में क्या नहीं है?? बथुवा विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B9 और विटामिन C से भरपूर है तथा बथुवे में कैल्शियम,  लोहा, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि मिनरल्स हैं। 100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं। कुल मिलाकर 43  Kcal होती है।


जब बथुवा शीत (मट्ठा, लस्सी) या दही में मिला दिया जाता है तो यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है और साथ में बाजरे या मक्का की रोटी, मक्खन व गुड़ की डळी हो तो इस खाने के लिए देवता भी तरसते हैं।


जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डॉक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली ही खाने की सलाह देते हैं ना??? गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व लोहे की गोली बताई जाती है और बथुवे में वो सबकुछ है ही, कहने का मतलब है कि बथुवा पहलवानो से लेकर गर्भवती महिलाओं तक, बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है।


यह साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है।  बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी  गाय   के घी से छौंक लगाएँ। बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें। बथुवै में  जिंक होता है जो कि शुक्राणुवर्धक है मतलब किसी भाई को जिस्मानी कमजोरी हो तो उसकॅ भी दूर कर दे बथुवा।


बथुवा कब्ज दूर करता है और अगर पेट साफ रहेगा तो कोइ भी बीमारी शरीर में लगेगी ही नहीं, ताकत और स्फूर्ति बनी रहेगी।


कहने का मतलब है कि जब तक इस मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खाएँ। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएँ और तो और यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है।


पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शकर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी।


मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें । आधा रहने पर छानकर पी जाएँ। मासिक धर्म खुलकर साफ आएगा। आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ।


पेशाब के रोगी बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें । बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नींबू जीरा, जरा सी काली मिर्च और काला नमक लें और पी जाएँ।


आप ने अपने दादा दादी से ये कहते जरूर सुना होगा कि हमने तो सारी उम्र अंग्रेजी दवा की एक गोली भी नहीं ली। उनके स्वास्थ्य व ताकत का राज यही बथुवा ही है।


मकान को रंगने से लेकर खाने व दवाई तक बथुवा काम आता है और हाँ सिर के बाल ...... क्या करेंगे शम्पू इसके आगे।

हम आज बथुवै को भी कोंधरा, चौळाई, सांठी, भाँखड़ी आदि सैकड़ों आयुर्वेदिक औषधियों की बजाय खरपतवार समझते हैं