Wednesday, May 31, 2023

नाभी कुदरत की एक अद्भुत देन

एक 62 वर्ष के बुजुर्ग को अचानक बांई आँख से कम दिखना शुरू हो गया। खासकर रात को नजर न के बराबर होने लगी।जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनकी आँखे ठीक है परंतु बांई आँख की रक्त नलीयाँ सूख रही है। रिपोर्ट में यह सामने आया कि अब वो जीवन भर देख नहीं पायेंगे।.... मित्रो यह सम्भव नहीं है..
मित्रों हमारा शरीर परमात्मा की अद्भुत देन है...गर्भ की उत्पत्ति नाभी के पीछे होती है और उसको माता के साथ जुडी हुई नाडी से पोषण मिलता है और इसलिए मृत्यु के तीन घंटे तक नाभी गर्म रहती है।
गर्भधारण के नौ महीनों अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नाभी के द्वारा सभी नसों का जुडाव गर्भ के साथ होता है। इसलिए नाभी एक अद्भुत भाग है।
नाभी के पीछे की ओर पेचूटी या navel button होता है।जिसमें 72000 से भी अधिक रक्त धमनियां स्थित होती है
नाभी में देशी गाय का शुध्द घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलता का उपाय हो सकता है।
1. आँखों का शुष्क हो जाना, नजर कमजोर हो जाना, चमकदार त्वचा और बालों के लिये उपाय...
सोने से पहले 3 से 7 बूँदें शुध्द देशी गाय का घी और नारियल के तेल नाभी में डालें और नाभी के आसपास डेढ ईंच गोलाई में फैला देवें।


2. घुटने के दर्द में उपाय
सोने से पहले तीन से सात बूंद अरंडी का तेल नाभी में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।
3. शरीर में कमपन्न तथा जोड़ोँ में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए उपाय :-
रात को सोने से पहले तीन से सात बूंद राई या सरसों कि तेल नाभी में डालें और उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।
4. मुँह और गाल पर होने वाले पिम्पल के लिए उपाय:-
नीम का तेल तीन से सात बूंद नाभी में उपरोक्त तरीके से डालें।
नाभी में तेल डालने का कारण
हमारी नाभी को मालूम रहता है कि हमारी कौनसी रक्तवाहिनी सूख रही है,इसलिए वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है।
जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हम हिंग और पानी या तैल का मिश्रण उसके पेट और नाभी के आसपास लगाते थे और उसका दर्द तुरंत गायब हो जाता था।बस यही काम है तेल का।
अपने स्नेहीजनों, मित्रों और परिजनों में इस नाभी में तेल और घी डालने के उपयोग और फायदों को शेयर करिये।
करने से होता है , केवल पढ़ने से नहीं

बीता हुआ कल

 यदि आपने : 

बखरी की कोठरी के ताखा में जलती ढेबरी देखी है।
दलान को समझा है।
ओसारा जानते हैं।
दुवारे पर कचहरी (पंचायत) देखी है।
राम राम के बेरा दूसरे के दुवारे पहुंच के चाय पानी किये हैं।
दतुअन किये हैं।
दिन में दाल-भात-तरकारी 


खाये हैं।
संझा माई की किरिया का मतलब समझते हैं।
रात में दिया और लालटेम जलाये हैं।
बरहम बाबा का स्थान आपको मालूम है।
डीह बाबा के स्थान पर गोड़ धरे हैं।
तलाव (ताल) के किनारे और बगइचा के बगल वाले पीपर और स्कूल के रस्ता वाले बरगद के भूत का किस्सा (कहानी) सुने हैं।
बसुला समझते हैं।
फरूहा जानते हैं।
कुदार देखे हैं।
दुपहरिया मे घूम-घूम कर आम, जामुन, अमरूद खाये हैं।
बारी बगइचा की जिंदगी जिये हैं।
चिलचिलाती धूप के साथ लूक के थपेड़ों में बारी बगइचा में खेले हैं।
पोखरा-गड़ही किनारे बैठकर लंठई किये हैं।
पोखरा-गड़ही किनारे खेत में बैठकर 5-10 यारों की टोली के साथ कुल्ला मैदान हुए हैं।
गोहूं, अरहर, मटरिया  का मजा लिये हैं
अगर आपने जेठ के महीने की तीजहरिया में तीसौरी भात खाये हैं,
अगर आपने सतुआ का घोरुआ पिआ है,
अगर आपने बचपन में बकइयां घींचा है।
अगर आपने गाय को पगुराते हुए देखा है।
अगर आपने बचपने में आइस-पाइस खेला है।
अगर आपने जानवर को लेहना और सानी खिलाते किसी को देखा  है।
अगर आपने ओक्का बोक्का तीन तलोक्का नामक खेल खेला है।
अगर आपने घर लिपते हुए देखा है।
अगर आपने गुर सतुआ, मटर और गन्ना का रस के अलावा कुदारी से खेत का कोन गोड़ने का मजा लिया  है।
अगर आपने पोतनहर से चूल्हा पोतते हुए देखा है।
अगर आपने कउड़ा/कुंडा/ सिगड़ी/ कंडा  तापा है।
अगर आप ने दीवाली के बाद दलिद्दर खेदते देखा है।

तो समझिये की आपने एक अद्भुत ज़िंदगी जी है, और इस युग में ये अलौकिक ज़िंदगी ना अब आपको मिलेगी ना आने वाली  पीढ़ी को  क्योंकि आज उपरोक्त चीजें विलुप्त प्राय होती जा रही हैं या हो चुकी हैं।

भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था

 #भोजन के प्रकार .....


#भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था ...!

 1 ;- पहला भोजन ....
जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है ...!

2 :-दूसरा भोजन ....
जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ....!

3 :- तीसरे प्रकार का भोजन ....
जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है ....!



4 :-चौथे नंबर का भोजन ....
अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है .....

और सुनो अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है ...!
चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है ....!

और सुनो अर्जुन .....

बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ....
क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन करें ! क्योंकि वह अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं ...!

☝🏼 #स्मरण रखियेगा !👇🏽

 "संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है ...!"

"सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोए ... 
पर संस्कार नहीं दिए तो वे जीवन भर रोएंगे ....!"


'फूटी कौड़ी'

 'फूटी कौड़ी' मुगल दौर ए हुकूमत की एक 'करन्सी' थी जिसकी क़ीमत सबसे कम थी

3 फूटी कौड़ियों से 1 'कौड़ी' बनती थी और 10 कौड़ियों से 1 'दमड़ी'।कहा जाता है कि दुनिया का सबसे पुराना सिक्का शायद यही 'फूटी कौड़ी' है।
यह 'फूटी कौड़ी' फटा हुआ घोंटा है जिसे 'कौड़ी' नाम से जाना गया। इसका प्रयोग सिन्ध घाटी में करेन्सी के रूप में किया गया। कुदरती तौर पर घोंघों की पैदावार सीमित मात्रा में थी। इसके सीमित मात्रा में उपलब्ध होने का यह अर्थ लगाया गया कि यह मूल्यवान है। इसे बाद में रूपया कहा जाने लगा।


1 रूपया 128 धुले, 192 पाई, या 256 दमड़ियों के बराबर था।
इनके साथ 10 भिन्न-भिन्न सिक्के थे जिन्में : -  कौड़ी, > दमड़ी > दमफ > पाई > धेला > पैसा > टिक्का > आना > दुअन्नी > चवन्नी > अठन्नी और फिर कहीं जाकर रुपया बनता था।
करेन्सी की क़ीमत निम्नलिखित थी : -
3 फूटी कौड़ी = 1 कौड़ी
10 कौड़ी = 1 दमड़ी
2 दमड़ी = 1.50 पाई
1.50 पाई = 1 धेला
2 धेला = 1 पैसा
3 पैसा = 1 टकः
2 टके = 1 आना
4 आने = 1 चवन्नी
8 आने = 1 अठन्नी
16 आने = 1 रुपया
क्योंकि सबसे बड़ा और संपूर्ण हैसियत रुपया की थी जिसमें 16 आने होते थे इसलिए बात का सोलह आने सच होने का मतलब शत प्रतिशत सच होने के समान होता है।llll

आर्यभट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सिर की गणना कैसे की गयी...?

कुछ लोग हिंदू धर्म व "रामायण" "महाभारत" "गीता" को काल्पनिक दिखाने के लिए यह प्रश्न करते है कि जब आर्यभट ने लगभग 6 वीं शताब्दी मे (शून्य/जीरो) की खोज की तो आर्यभट की खोज से लगभग 5000 हजार वर्ष पहले रामायण मे रावण के 10 सिर की गिनती कैसे की गई। और महाभारत मे कौरवो की 100 की संख्या की गिनीती कैसे की गई। जबकि उस समय लोग (जीरो) को जानते ही नही थे, तो लोगो ने गिनती को कैसे गिना!



"अब मै इस प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ"
कृपया इसे पूरा ध्यान से पढे। आर्यभट से पहले संसार 0(शुन्य) को नही जानता था। आर्यभट ने ही (शुन्य / जीरो) की खोज की, यह एक सत्य है। लेकिन आर्यभट ने "0(जीरो) की खोज 'अंको मे' की थी, 'शब्दों' में खोज नहीं की थी, उससे पहले 0 (अंक को) शब्दो मे शुन्य कहा जाता था। उस समय मे भी हिन्दू धर्म ग्रंथो मे जैसे शिव पुराण, स्कन्द पुराण आदि मे आकाश को "शुन्य" कहा गया है। यहाँ पे "शुन्य" का मतलब अनंत से होता है। लेकिन रामायण व महाभारत काल मे गिनती अंको मे न होकर शब्दो मे होता था,और वह भी "संस्कृत" मे।
उस समय "1,2,3,4,5,6,7,8, 9,10" अंक के स्थान पे 'शब्दो' का प्रयोग होता था वह भी 'संस्कृत' के शव्दो का प्रयोग होता था। जैसे:1 = प्रथम 2 = द्वितीय 3 = तृतीय" 4 = चतुर्थ 5 = पंचम"" 6 = षष्टं" 7 = सप्तम"" 8 = अष्टम, 9 = नवंम"" 10 = दशम। "दशम = दस" यानी दशम मे "दस" तो आ गया, लेकिन अंक का 0 (जीरो/शुन्य) नही आया,‍‍ रावण को दशानन कहा जाता है। 'दशानन मतलब दश+आनन =दश सिर वाला' अब देखो रावण के दस सिर की गिनती तो हो गई। लेकिन अंको का 0 (जीरो) नही आया।
इसी प्रकार महाभारत काल मे "संस्कृत" शब्द मे "कौरवो" की सौ की संख्या को "शत-शतम" बताया गया। 'शत्' एक संस्कृत का "शब्द है, जिसका हिन्दी मे अर्थ सौ (100) होता है। सौ(100) को संस्कृत मे शत् कहते है। शत = सौ इस प्रकार महाभारत काल मे कौरवो की संख्या गिनने मे सौ हो गई। लेकिन इस गिनती मे भी "अंक का 00(डबल जीरो)" नही आया,और गिनती भी पूरी हो गई। महाभारत धर्मग्रंथ में कौरव की संख्या शत बताया गया है।
रोमन में भी 1-2-3-4-5-6-7-8-9-10 की जगह पे (¡), (¡¡), (¡¡¡) पाँच को V कहा जाता है। दस को x कहा जाता है। X= दस इस रोमन x मे अंक का (जीरो/0) नही आया। और हम" दश पढ़ "भी लिए और" गिनती पूरी हो गई! इस प्रकार रोमन word मे "कही 0 (जीरो) "नही आता है। और आप भी" रोमन मे" एक से लेकर "सौ की गिनती "पढ लिख सकते है। आपको 0 या 00 लिखने की जरूरत भी नही पड़ती है। पहले के जमाने मे गिनती को शब्दो मे लिखा जाता था। उस समय अंको का ज्ञान नही था। जैसे गीता, रामायण मे 1"2"3"4"5"6 या बाकी पाठो को इस प्रकार पढा जाता है। जैसे (प्रथम अध्याय, द्वितीय अध्याय, पंचम अध्याय,दशम अध्याय... आदि!) इनके दशम अध्याय ' मतलब दशवा पाठ (10 lesson) होता है। दशम अध्याय= दसवा पाठ इसमे 'दश' शब्द तो आ गया। लेकिन इस दश मे 'अंको का 0' (जीरो)" का प्रयोग नही हुआ। बिना 0 आए पाठो (lesson) की गिनती दश हो गई।
हिंदु विरोधी और नास्तिक लोग सिर्फ अपने गलत कुतर्क द्वारा हिंदू धर्म व हिन्दू धर्मग्रंथो को काल्पनिक साबित करना चाहते है। जिससे हिंदुओं के मन मे हिंदू धर्म के प्रति नफरत भरकर और हिन्दू धर्म को काल्पनिक साबित करके, हिंदू समाज को अन्य धर्मों में परिवर्तित किया जाए। लेकिन आज का हिंदू समाज अपने धार्मिक शिक्षा को ग्रहण ना करने के कारण इन लोगो के झुठ को सही मान बैठता है। यह हमारे धर्म व संस्कृत के लिए हानि कारक है। अपनी सभ्यता पहचानें, गर्व करें की "हम सनातनी हैं", "हम हिंदू है।

Friday, May 5, 2023

धोवन पानी पीने का वैज्ञानिक तथ्य

 आयुर्वेद ग्रंथों में हमारे ऋषि मुनियों ने पहले ही बता दिया गया था कि

धोवन पानी पीने का वैज्ञानिक तथ्य और आज की आवश्यकता
वायुमण्डल में प्राणवायु ऑक्सीजन की अधिकतम मात्रा 21% है, लेकिन यह मात्रा भारत के किसी गाँव में 18 या 19% से ज्यादा नही है और शहरों में तो 11 या 12°/. तक ही है।
भारतीय गाय के ताज़ा गोबर में #प्राणवायु ऑक्सीजन की मात्रा 23% है। जब इस गोबर को सुखा कर कण्डा बनाया जाता है तो इसमें ऑक्सीजन की मात्रा बढ़कर 27% हो जाती है।जब इस कण्डे को जलाकर जो राख बनतीं हैं तो इसमें
ऑक्सीजन की मात्रा बढ़कर 30% हो जाती है।
इसी को भस्म बना देने पर प्राणवायु 46.6% हो जाती है।
जब भस्म को दोबारा जलाकर विशुद्ध भस्म बनाते हैं तो इसमें 60% तक प्राणवायु आ जाता है।
जब कि मॉडर्न विज्ञान कहता है कि किसी भी वस्तु को प्रोसेस करने से उसमें हानि होती है।
10 लीटर जल में अगर 25 ग्राम भस्म मिला दे तो जल शुद्ध होने के साथ उसमें सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है।
🏘️अपने घरमें गोबर कंडेका धुंआ कीजिये और राख को पीनेके पानीमें
अग्निहोत्र भस्म
अग्निहोत्र गौ भस्म_को ध्यान से पढ़ेगें तो पायेंगे कि यह गौ-भस्म ( राख ) आपके लिए कितनी उपयोगी है।
साधू -संत लोग संभवतः इन्ही गुणों के कारण इसे प्रसाद रूप में भी देते थे।
जब गोबर से बनायीं गयी भस्म इतनी उपयोगी है तो गाय कितनी उपयोगी होगी यह आप सोच सकते है।
आपको एक लीटर पानी में 10-15 ग्राम यानि 3-4 चम्मच भस्म मिलाना है , उसके बाद भस्म जब पानी के तले में बैठ जाये फिर इसे पी लेना है।
इससे सारे पानी की अशुद्धि दूर हो जाएगी और आपको मिलेगा इतने पोषक तत्व।
यह लैबोटरी द्वारा प्रमाणित है।
१. ऑक्सीजन O = 46.6 %
२. सिलिकॉन SI = 30.12 %
३. कैल्शियम Ca = 7.71 %
४. मैग्नीशियम Mg = 2.63 %
५. पोटैशियम K = 2.61 %
६. क्लोरीन CL = 2.43 %
७. एल्युमीनियम Al = 2.11 %
८. फ़ास्फ़रोस P = 1.71 %
९. लोहा Fe = 1.46 %
१०. सल्फर S =1.46 %
११. सोडियम Na = 1 %
१२. टाइटेनियम Ti = 0.19 %
१३. मैग्नीज Mn =0.13 %
१४. बेरियम Ba = 0.06 %
१५. जस्ता Zn = 0.03 %
१६. स्ट्रोंटियम Sr = 0.02 %
१७. लेड Pb = 0.02 %
१८. तांबा Cu = 80 PPM
१९. वेनेडियम V=72 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१. ज़िरकोनियम Zr 38 PPM
१. सिलिकाँन डाइऑक्साइड -
SIO2 = 64.44%
२. कैल्शियम ऑक्साइड
CaO =10.79 %
३. मैग्नीशियम ऑक्साइड
MgO = 4-37 %
४. एल्युमीनियम ऑक्साइड
AI2O3 = 3.99%
५. फास्फोरस पेंटाक्साइड
P2O5 = 3.93%
६. पोटेशियम ऑक्साइड
K2O = 3.14 %
७. सल्फर ऑक्साइड
SO3 = 2.79%
८. क्लोरीन CL=2.43 %
९. आयरन ऑक्साइड
Fe2O3=2.09%
१०. सोडियम ऑक्साइड
Na2O = 1.35 %
११. टाइटेनियम ऑक्साइड
TiO2 = 0.32%
१२. मैंगनीज ऑक्साइड
MnO = 0.17 %
१३. बेरियम ऑक्साइड
BaO = 0.07 %
१४. जिंक ऑक्साइड
ZnO = 0.03%
१५. स्ट्रोंटियम ऑक्साइड
SrO = 0.03%
१६. लेड ऑक्साइड
PbO = 0.02%
१७. वेनेडियम ऑक्साइड
V2O5 = 0.01 %
१८. कॉपर ऑक्साइड
CuO = 0.01%
१९. जिरकोनियम ऑक्साइड
ZrO2 =52 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१. रुबिडियम ऑक्साइड
Rb2O = 32 PPM
शरीर में आक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने के लिए यह गोबर की भस्म बहुत उपयोगी है।
स्वस्थ रहे, प्रसन्न रहे
आयुर्वेद अपनाये, सुरक्षित रहे।
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