Tuesday, November 29, 2022

क्या श्री ए.के. शर्मा का गुजरात मॉडल उत्तर प्रदेश में भी होगा प्रभावी ?

                                   क्या श्री ए.के. शर्मा का गुजरात मॉडल उत्तर प्रदेश में भी होगा प्रभावी ?

डॉ. अजय कुमार मिश्रा

श्री अखिलेश मिश्रा

 

उत्तर प्रदेश की कई बड़ी समस्यायों में से एक बड़ी समस्या बिजली की रही है | योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने पहले कार्यकाल में इस विषय पर सकारात्मक कार्य किया परन्तु खामियां भी विद्यमान रही | योगी सरकार के पुनः सत्ता में आने के पश्चात् बिजली विभाग की जिम्मेदारी तत्कालीन आई.ए.एस. और वर्तमान राजनैतिक नेता श्री ए. क. शर्मा को प्रदान की गयी है | इसके अतिरिक्त उन्हें नगर विकास की जिम्मेदारी भी प्रदान की गयी है | यदि दोनों विभागों की कार्य और आवश्यकता को देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति और घर से इसका सीधा सम्बन्ध है, जहाँ हर कोई स्वतंत्र है कार्यो की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए | आम जनता का मूल्यांकन सिर्फ बातों से ही नहीं बल्कि ईवीएम का बटन दबा करके भी दर्शाया जाता है | आधुनिकीकरण, तकनीकी का उपयोग और वैश्वीकरण ने परम्परागत तकनीकी को समाप्त करके मशीनरी और कंप्यूटरीकृत प्रणालियों का न केवल प्रचार प्रसार किया है बल्कि इनकी पहुँच घर-घर कर दिया है | आज प्रदेश के कोनें कोनें में इनका उपयोग किया जा रहा है | इन सभी के सफल उपयोग के लिए उर्जा अब आवश्यकता ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन अनिवार्यता भी बन गया है | उदहारण के तौर पर मोबाइल के जरिये आज पलक झपकते ही लोग ऐसी जानकारियां प्राप्त कर लेते है जिसे आज के कई दशक पहले जानना लगभग असंभव था | ऐसे में उर्जा विभाग की गहरी भूमिका न केवल बड़े स्तर पर बल्कि तकनीकी के नवीनतम उपयोग की प्रतिबद्धता को भी अनिवार्य बना रहा है |

 यदि हम दूसरे पहलूँ की बात करें तो आज जिस आसानी से बिजली का कनेक्शन लोगों को मिल पा रहा है, या शिकायतों का त्वरित निवारण हो पा रहा है उसका सीधा श्रेय विभाग के मुखिया श्री ए.के. शर्मा को ही जाता है | जनता के बीच नियमित क्षेत्र में रहकर न केवल संवाद कर उनकी समस्या का समाधान करते है बल्कि स्वयं विभाग की शिकायत निवारण प्रणाली के अतिरिक्त सीधे प्लेटफार्म आम जन के लिए दे रखा है जहाँ आप किसी भी तरह की शिकायत को उन तक पहुंचा सकतें है | ये बातें यह भी दर्शाती है की गुजरात मॉडल में इनके द्वारा अदा की गयी भूमिका कोई तुक्का नहीं थी | हाल ही में चलायें गए एक मुश्त ब्याज माफ़ी योजना की स्वीकार्यता बड़े पैमाने पर प्रदेश के सभी कोने में रही और रिकॉर्ड लोगों ने इसका लाभ लेकर अपने बकाये बिजली के बिल का न केवल भुगतान किया बल्कि कनेक्शन को भी नियमित कराया है | बिजली के लिए गर्मियों में आम जन के बीच बढ़ी मांग की पूर्ति न होने पर गावों के अतिरिक्त शहरों में भी हाहाकार मचता दिखाई पड़ने पर स्वयं श्री ए.के. शर्मा ने मोर्चा सम्भाल करके स्थिति में बड़ा बदलाव करके निर्धारित मानकों से अधिक बिजली आपूर्ति सुनिश्चित किया है | आज निर्बाध रूप से बिजली सभी को प्राप्त हो रही है साथ है बड़ी बात यह भी है की बिजली की दरों में बढोत्तरी के बजाय इनके नेतृत्व में कमी की गयी है जिससे जनता में खुशियाँ विद्यमान है |

 किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए सबसे जरुरी होती है आपकी योग्यता, अनुभव और समझ जिसके आधार पर आम लोगों के जीवन में प्रकाश लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखातें है | पूर्व आई.ए.एस. होने और जनता की मूल समस्यायों को गहराई से समझने, आम लोगों से जुड़े रहने और समस्याओं को निस्तारित करने की मजबूत इच्छा शक्ति के साथ हमेशा जनता के बीच पाए जाने वाले नेता के रूप में उत्तर प्रदेश में श्री ए.के. शर्मा एक अमिट छाप छोड़ रहें है | दो दशक से अधिक समय तक गुजरात में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करके उपलब्धि से सभी को न केवल चौकाया बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में लगातार कार्य करके जनता का दिल भी जीता है | इन्ही उपलब्धियों की वजह से आज उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहें है | यदि आपको बिजली विभाग में जमीनी बदलाव देखना हो तो आप वर्तमान में प्राप्त और पहले प्राप्त सेवाओं का स्वयं मूल्यांकन कर सकतें है | इन परिवर्तनों में गुजरात मॉडल की झलक आपको देखने को जरुर मिलेगी |

 लखनऊ समेत जब पुरे प्रदेश में डेंगू का प्रकोप बढ़ा और हर तरफ परेशानियाँ उत्पन्न हो गयी तब स्वयं मोर्चा सम्भालातें हुए मैदान में उतर कर दिन और रात लगातार व्यवस्थाओं में बड़ा सुधार करके जनता की जमीनी आवश्यकता की न केवल पूर्ति की बल्कि साफ-सफाई पहले से कही अधिक बेहतर सुनिश्चित किया है | आज हर गली मोहल्ले में न केवल स्वच्छता दिख रही है बल्कि आम आदमी का जीवन बेहतर हो रहा है | प्रधानमंत्री जी के विज़न की पूर्ति के लिए प्रतिबद्ध और दो महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी लेकर श्री ए.के. शर्मा चल रहें है | विगत अपने 8 माह के कार्यकाल में उन्होंने हर क्षेत्र में जाकर अधूरी योजना परियोजना का न केवल जानकारी प्राप्त की बल्कि उनमे से कई पर कार्य करके परिणाम भी दिया है और अन्य पर लगातार कार्य चल रहा है | जिन बातों के लिए बिजली विभाग बदनाम था आज उन बातों से लगभग मुक्त हो चुका है ईमानदारी पूर्वक कार्य सभी पदों पर देखने को मिल रहा है तथा नियंत्रण के साथ-साथ सफल उत्पादकता भी अब प्रदर्शित हो रही है | श्री ए.के. शर्मा के नेतृत्व में प्रदेश की इन दो विभागों पर किये जा रहें कार्यो से आप अवश्य ही रूबरू विभिन्न माध्यमों से होतें रहें है | फिर चाहें न्यूज़ पेपर, टीवी चैनल, वेब न्यूज़ या सोशल मीडिया या फिर आम जन का स्वयं का संवाद ही क्यों न हो | प्रदेश के कोने-कोने से इनके कार्यो की सराहना देखने और सुननें को मिल रही है |     

 पर जैसा की एक आम अवधारणा है अधिकांश आम जन के द्वारा पूर्ण हुए कार्यों की अपेक्षा अधुरें कार्यों की पूर्ति की चर्चा ज्यादा की जाती है ऐसे में श्री ए.के. शर्मा को और अधिक सतर्कता के साथ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा की उनके साथ-साथ विभाग के लोग आम जन के लिए ईमानदारी से कार्य कर रहें है और जन समस्यायों का निस्तारण उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है | उर्जा विभाग और नगर विकास विभाग दोनों एक महत्वपूर्ण कड़ी है सरकार की ईमानदारी और कार्यो को व्यापक पैमाने पर प्रदर्शित करने के लिए क्योंकि दिन प्रतिदिन इन विभागों के कार्यो से लोगों का दो चार होना पड़ता है | वर्तमान समय में श्री ए.के. शर्मा की दिख रही गुजरात मॉडल की कार्य प्रणाली और प्रतिबद्धता के आधार पर यह कहा जा सकता है की इन दोनों विभाग के द्वारा आगामी समय में बड़ी उपलब्धियां प्राप्त होगी क्योंकि 8 माह के कार्यकाल में आम जन की संतुष्टि दिखाई पड़ रही है | यह भी शाश्वत सत्य है की बड़े बदलाव और उपलब्धि प्राप्त करने में समय लगता है और दोनों विभागों के माध्यम से उपलब्धि प्राप्त करने का समय अभी 4 वर्ष से अधिक का है और यह तब और पुख्ता हो जाता है जब प्रदेश में शासन करने वाला शासक सब पर निगाह जमाये हुए हो और हर हाल में आम जनता की सहूलियत चाहता हो | यानि की वर्तमान परिदृश्य को देखकर यह कहा जा सकता है की श्री ए.के. शर्मा का गुजरात मॉडल उत्तर प्रदेश में भी प्रभावी होगा |

चौतीस पुरातन प्रतिमाएँ मिली तपोभूम उज्जैन में


-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

भगवान महावीर तपोभूमि सिद्ध क्षेत्र उज्जैन (मध्यप्रदेश) में व उसके आस पास के स्थानों से 34 पुरातन जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुईं हैं। इनमें अधिकतर प्रतिमाएँ खण्डित हैं। कुछ के केवल परिकरों के अंश ही हैं किन्तु ये बहुत महत्वपूर्ण प्रहितमाएँ हैं। अधिकतर प्रतिमाएँ तीर्थंकर और तीर्थंकरों से संबद्ध शासन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।
दिनांक 26 नवम्बर 2022 तपोभूमि प्रणेता जैन आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी मुनिराज ने इन प्रतिमओं के सर्वेक्षण व पहचान व समय ज्ञात करने हेतु पुरातत्त्वविदों को आमंत्रित किया था। जिनमें डॉ. नरेश पाठक-पूर्व पुरातत्त्व सर्वेक्षक मध्य प्रदेश, डॉ. रमेश यादव- पुरातत्त्व सर्वेक्षण अधिकारी- भोपाल, डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, जैन संस्कृति शोध संस्थान- इन्दौर, डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह जोधा-शोधाधिकारी, वाकणकर पुरातत्त्व शोध संस्थान- भोपाल और डॉ. नवीन जी- पुरातत्त्व विभाग, भोपाल प्रमुख हैं।





यहां प्राप्त प्रतिमाओं में दो मूर्तियों के पादपीठ पर प्राचीन देवनागरी लिपि में प्रशस्ति है। एक में संवत् है 12... सौ स्पष्ट है। दूसरी प्रतिमा की प्रशस्ति के साथ शंख लांछन भी स्पष्ट है।
आचार्य पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्य प्रज्ञासागर ने डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ को बताया कि इन प्रतिमाओं का पुरातत्त्व विभाग द्वारा सर्वेक्षण और पंजीयन का कार्य प्रारंभ हो गया है। सर्वेक्षण के उपरान्त इन्हें भगवान महावीर तपोभूमि सिद्ध क्षेत्र उज्जैन के संग्रहालय की आर्ट गैलरी में स्थाई रूप से प्रदर्शित किया जायगा। आचार्यश्री ने बताया कि भगवान महावीर का प्रभाव क्षेत्र होने से यहाँ निकटवर्ती क्षेत्रों में और भी पुरातन जैन प्रतिमाओं व उनके अवशेष प्राप्त होने की संभावना है। यहां शीघ्र ही एक शोध केन्द्र की स्थापना हो रही है, जिसके लिए विशाल पुस्तकालय स्थापित कर लिया गया है।

जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ

एक बार तुलसीदास जी महाराज को किसी ने बताया कि जगन्नाथ जी में तो साक्षात भगवान ही दर्शन देते हैं, बस फिर क्या था सुनकर तुलसीदास जी महाराज तो बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी को चल दिए।

महीनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरांत जब वह जगन्नाथ पुरी पहुंचे तो मंदिर में भक्तों की भीड़ देख कर प्रसन्न मन से अंदर प्रविष्ट हुए। जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही उन्हें बड़ा धक्का सा लगा, वह निराश हो गये। और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव हमारे जगत में सबसे सुंदर नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्री राम नहीं हो सकते।
इस प्रकार दुखी मन से बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये। सोचा कि इतनी दूर आना व्यर्थ हुआ। क्या गोलाकार नेत्रों वाला हस्तपादविहीन दारुदेव मेरा राम हो सकता है? कदापि नहीं।
रात्रि हो गयी, थके-माँदे, भूखे-प्यासे तुलसी का अंग टूट रहा था। अचानक एक आहट हुई। वे ध्यान से सुनने लगे। अरे बाबा! तुलसीदास कौन है?
एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था। तुलसीदास ने सोचा साथ आए लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों को बता दिया होगा कि तुलसीदास जी भी दर्शन करने को आए हैं इसलिये उन्होने प्रसाद भेज दिया होगा। तुलसीदास उठते हुए बोले, 'हाँ भाई! मैं ही हूँ तुलसीदास।'
बालक ने कहा, 'अरे! आप यहाँ हैं। मैं बड़ी देर से आपको खोज रहा हूँ।'
बालक ने कहा, 'लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है।'
तुलसीदास बोले, 'भैया कृपा करके इसे वापस ले जायँ।'
बालक ने कहा, आश्चर्य की बात है, 'जगन्नाथ का भात-जगत पसारे हाथ' और वह भी स्वयं महाप्रभु ने भेजा और आप अस्वीकार कर रहे हैं, कारण?


तुलसीदास बोले, 'अरे भाई ! मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाये कुछ ग्रहण नहीं करता। फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूँ, यह मेरे किस काम का?'
बालक ने मुस्कराते हुए कहा 'अरे, बाबा! आपके इष्ट ने ही तो भेजा है।'
तुलसीदास बोले, 'यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता।'
बालक ने कहा कि फिर आपने अपने श्रीरामचरितमानस में यह किस रूप का वर्णन किया है...
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना ।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
अब तुलसीदास की भाव-भंगिमा देखने लायक थी। नेत्रों में अश्रु-बिन्दु, मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे। थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि 'मैं ही तुम्हारा राम हूँ। मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है। विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है। कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना।'
तुलसीदास जी की स्थिति ऐसी की रोमावली रोमांचित थी, नेत्रों से अस्त्र अविरल बह रहे थे और शरीर की कोई सुध ही नहीं। उन्होंने बड़े ही प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया।
प्रातः मंदिर में जब तुलसीदास जी महाराज दर्शन करने के लिए गए तब उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण एवं जानकी के भव्य दर्शन हुए। भगवान ने भक्त की इच्छा पूरी की।
जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान 'तुलसी चौरा' नाम से विख्यात हुआ। वहाँ पर तुलसीदास जी की पीठ 'बड़छतामठ' के रूप में प्रतिष्ठित है।
जय जगन्नाथ जी

विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में बना था बनाने वाले भी भारतीय ही थे

 विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में बना था.

…और इसे बनाने वाले भी भारतीय ही थे.
आज से करीब 2 हजार वर्ष पूर्व भारत में कावेरी नदी पर कल्लनई बांध का निमार्ण कराया गया था, जो आज भी न केवल सही सलामत है बल्कि सिंचाई का एक बहुत बड़ा साधन भी है.
भारत के इस गौरवशाली इतिहास को पहले अंग्रेज और बाद में वामपंथी इतिहासकारों ने जानबूझकर लोगों से इस तथ्य को छुपाया.
दक्षिण भारत में कावेरी नदी पर बना यह कल्लनई बांध वर्तमान में तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में है. इसका निमार्ण चोल राजवंश के शासन काल में हुआ था.राज्य में पड़ने वाले सूखे और बाढ़ से निपटने के लिए कावेरी नदी को डायवर्ट कर बनाया गया यह बांध प्राचीन भारतीयों की इंजीनियरिंग का उत्तम उदाहरण है.
कल्लनई बांध को चोल शासक करिकाल ने बनवाया था.यह बांध करीब एक हजार फीट लंबा और 60 फीट चौड़ा है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बांध में जिस तकनीक का उपयोग किया गया है वह वर्तमान विश्व की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसकी भारतीयों को आज से करीब 2 हजार वर्ष पहले ही जानकारी थी.
कावेरी नदी की जलधारा बहुत तीव्र गति से बहती है, जिससे बरसात के मौसम में यह डेल्टाई क्षेत्र में भयंकर बाढ़ से तबाही मचाती है.


पानी की तेज धार के कारण इस नदी पर किसी निर्माण या बांध का टिक पाना बहुत ही मुश्किल काम था. उस समय के भारतीय वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और और नदी की तेज धारा पर बांध बना दिया जो 2 हजार वर्ष बीत जाने के बाद आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है.
इस बांध को आप कभी देखेंगे तो पाएंगे यह जिग जैग आकार का है. यह जिग जैग आकार का इस लिए बनाया गया था ताकि पानी के तेज बहाव से बांध की दीवारों पर पड़ने वाली फोर्स को डायवर्ट कर उस पर दवाब को कम कर सके. देश ही नहीं दुनिया में बनने वाले सभी आधुनिक बांधों के लिए यह बांध आज प्रेरणा का स्रोत है.
यह कल्लनई बांध तमिलनाडू में सिंचाई का महत्वपूर्ण स्रोत है.
आज भी इससे करीब 10 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई होती है.
यदि आप भारत की इस अमूल्य तकनीकी विरासत कल्लनई बांध के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में आना होगा. मुख्यालय तिरूचिरापल्ली से इसकी दूरी महज 19 किलोमीटर है !

Hemant Tripathi, Shiv chitrkar and 33K others
9.5K shares
Like
Comment
Share

Saturday, November 26, 2022

कचरियाँ

 इन्हें कचरियाँ कहते हैं। अगस्त के।महीने में स्कूल से आते थे घर के बगल में ही मेरा खेत है उंसमे चौमासी मक्का होती थी।

अब तो मक्का का सीजन बदल गया है। अब मक्का मार्च में बोई जाती है जून जुलाई में कट जाती है
लेकिन तब चौमासी मक्का होती थी मध्यम आषाढ़(जुलाई )के महीने में बोई जाती थी और मध्यम भाद्रपद व शुरुआत कुंवार (सितम्बर अक्टूबर) के महीने में काटी जाती थी।
उस मक्का की पैदावार नाम मात्र की होती थी यूं समझिए किसान दान दरिया व खुद खाने के किये मक्का बोता था।
मेरे यहाँ सर्दियों भर मक्का की रोटी बनना अनिवार्य है इसमें सत्तू मुरकी भी हो जाती थी ....
अग्रस्त माह में स्कूल से आते थे पूरे गांव में सबके नीम के पेड़ पर झूला पड़ा होता था। मवेशी खेतों में चरने निकल जाती थी। हम लोग आये बस्ता टंगा खूंटी पर सबसे पहले गिलास लेकर दूध पिया स्कूल वाला होमवर्क किया फिर झूला झूलने लगते थे अचानक झूला छोड़ मक्का में जाकर यही #कचरियाँ तोड़ कर लाते थे वैसे मेरे खेत में सबसे ज्यादा फुट और कचरियाँ लगती थी क्योकि मेरी मम्मी बहुत शौकीन हैं सब्जी कचरियाँ आदि की ....मक्का में तोरई और कचरियाँ भरपूर होती थीं अपुन को तो ब्लेड मारकर कचरियाँ पकाने में यकीन था...
कई बार अपने खेत मे कचरियाँ न होने पर पड़ोसी के खेत मे डकैती भी डाली है मैने...
यह कचरियाँ अब विलुप्त हो चुकी हैं फसल क्रम बदल चुका है इस कारण साथ ही अब किसान पैदावार पर ध्यान देता है उसके खेत मे हाइब्रिड मक्का होती है जिसमे न घास उगने दी जाती है न कचरियाँ क्योकी ये चीजें पैदावार पर फर्क डालती हैं
पहले तो उसी मक्का में सन के पेड़ भी होते थे जिन्हें काटकर पानी मे डाला जाता फिर 1 महीने बाद निकाल कर उसकी चमड़ी उतारते उसने सफेद जूट सन निकलता था जिसकी रस्सियां बनती थी बकरी गाय बैल के गले मे लगाने चारपाई में लगाने काम आती थी
Uploading: 603539 of 603539 bytes uploaded.


उस रस्सी को रंगों में भिगोकर भैंस गाय सजाई जाती थी दीवाली पर ....
यह सब काफी उत्साहित करने वाले नजारे थे जो अब किस्ससो में बचे हैं।
किसान की आम जिंदगी पर हजार कहानियां लिखी जा सकती हैं जो रोमांचक भी हैं और प्रेरणादायक भी....
जो एहसास कराती है कि हम कितने ज्यादा बदल चुके हैं।

खाना है बचा कर रखें वेस्ट न होने दें

मैं उस दिन भी एक शादी में बाउंसर के रूप में मौजूद था। आजकल का चलन हो गया है कि शादियों में हम बाउंसरों को काम दिया जाने लगा है, हम शादी में अव्यवस्था होने से रोकते हैं, मेरे साथ मेरे तीन साथी और थे उसी शादी में। मैं टीम लीडर हूँ।
मैं काफी देर से अपनी वैन में बैठा ड्रोन के ज़रिए , शादी की गहमा गहमी देख रहा था। मैं लड़की वालों की तरफ से इंगेज किया गया था। मुझे एक अधेड़ से दिखने वाले आदमी की कुछ अजीब बातें दिखाईं दीं।
पहली बात तो उसने जो खाना खाया, वो अपनी प्लेट में एक एक चीज ले जा रहा था, उन्हें खाकर ही फिर से आ रहा था। उसने खाना खत्म किया।
वो काफ़ी देर तक खाने की कैटरिंग की कतार को देखता रहा। फिर वो कैटरिंग के लोगों को जा जाकर निर्देष देने लगा। फिर उसने खुद एक स्टाल पर खड़े होकर कमान संभाल ली। मुझे कुछ अजीब लग रहा था, मुझे लग रहा था ये कुछ ज्यादा ही केयरिंग हो रहा है कहीं कोई खाने का खोमचा गायब न कर दे। मैंने अपने एक साथी को वैन में बुलाया और मैं उसकी जगह शादी के टेंट में आ गया। मैं घूमते हुए उस आदमी के पास पहुँचा, उसका अभिवादन किया और फिर उसे इशारे से बुलाया।
वो मेरे पास आ गया, मैंने उससे कहा आपसे बात करनी है जरा मेरे साथ आइए। वो मेरे साथ हो लिया। मैं उसे अपनी वैन के पास ले आया, वहाँ ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। "मैं काफी देर से आपको वॉच कर रहा हूँ, आप कैटरिंग स्टाल पर क्या कर रहे थे, आप शादी में आये हुए मेहमान लग रहे हैं घराती तो हैं नहीं, आखिर इरादा क्या है आपका ?"मैंने कहा, पर कहने में सख्ती थी । मेरी बात सुनकर वो हँसने लगा, फिर संजीदा हुआ, मुझे अजीब लगा उसका व्यवहार।
"चार महीने पहले मेरी बेटी की भी शादी थी।" उसने ठंडी आह भरी।"मेरे यहाँ दो हज़ार लोगों का खाना बना था । हम सही से मैनेज नहीं कर पाए, लोग भी ज्यादा आ गए । बहुत सा खाना वेस्ट कर दिया गया, लोगों ने खाया कम थालियों में छोड़ा ज्यादा । बारात नाचने गाने में लेट हो गई और बारात जब तक खाने पर आती बहुत से खाने के आईटम कम पड़ गए । मेरे समधी नाराज हो गए , बारात के खाने को लेकर बेटी को जब तब ताने मिलते हैं।"
ये कहते हुए उसकी आँखें भीग गईं और गला भर्रा गया , " मैं सोचता हूँ कि मेरे यहाँ खाने के मामले में सही कंट्रोल और निगरानी रख ली जाती तो मेरी जो इज्जत गई वो बच जाती । अब मेरी कोशिश रहती है कि जिस किसी भी शादी में जाता हूँ , वहाँ खाने को बेमतलब वेस्ट न करके बचाया जाए । इससे न केवल खाना बचेगा बल्कि किसी की इज्जत बची रहेगी , तो सोचता हूँ भाई 'खाना है बचा लो..' अब जाऊँ मैं ? आपकी इजाजत हो तो थोड़ा खाने की स्टाल पर निगरानी रख लूँ।" कहकर वो वहाँ से चला गया ।
मुझे लग रहा था हम चार के अलावा एक पाँचवां बाउंसर और भी है, काश उस जैसे पचास आदमी और हों तो सौ जनों का खाना बचाया जा सकता है। मैंने उसके पीठ पीछे उसके लिए ताली बजाई और फिर से वैन में बैठकर ड्रोन उड़ाने लगा।


Friday, November 25, 2022

इतिहास के निषाद

भूगर्भ के गोंद में खेलता श्रृंगवेरपुर सामाज्य/संस्कृति का निषादों का इतिहास इतना बड़ा व मजबूत है कि उसके आगे कई विशाल सभ्यताए व संस्कृति न्यून हो जाती है।
#सिंधु घाटी सभ्यता, #मेसोपोटामिया की सभ्यता, सुमेरियन की सभ्यता तथा अन्य भारतीय ताम्र व कांस्य युगीन संस्कृतियो को जितनी दावेदारी के साथ हमारे बीच परोसा जाता है समझाया जाता है व किताबो में जगह दी जाती है ....उसका 20% भी कार्य #श्रृंगवेरपुर की प्राचीन संस्कृति तथा धरोहर पर खर्च किया जाता है तो परिणाम औरो से कही ज्यादा आता है।
आज जलांचल प्रगतिपथ का कारवां अपने महान पूर्वज के महान वैज्ञानिक साम्राज्य तक पहुँचा ....जहाँ महाराजा #गुहराज निषाद जी की प्रेरणा व आधारशिला देंखने को मिला! जो हजारो वर्षो से माँ गंगा के आंचल में कई सौ एकड़ में फैला मिला, जिसकी प्राचीर दीवारें, प्राचीन कुंड, प्राचीन अभेद किला ना जाने कितने शताब्दियों की गवाही दे रही है।

प्राचीन विश्व इतिहास मे कही भी ऐसी को तकनीक नही देंखने को नही मिलती है जो जल (पानी) को उसके तल से ऊपर उठा के अन्यत्र किसी और तल पर पहुचा सकें।
जो तकनीकी आज के वैज्ञानिक युग मे ही सम्भव हो पाता है पानी मोटर (टुल्लू) से ही।


Wednesday, November 23, 2022

नारी शोषण,अत्याचार के विरुद्ध शिक्षा,साक्षरता के गंभीर प्रयास की आवश्यकता

(स्त्री पढेगी इतिहास रचेगी)

भारत एक विशाल लोकतांत्रिक देश है। भारत की जनसंख्या में पुरुषों के साथ-साथ की स्त्रियों तथा बच्चों की भी जनसंख्या भी बहुत ज्यादा है। देश में स्त्री शोषण की विविधता और धार्मिक कट्टरता को देखते हुए नारियों को शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है, विशेष तौर पर स्त्री तथा बच्चों को बुनियादी शिक्षा तथा साक्षरता की महती आवश्यकता देश में महसूस की जा रही है। स्त्रियां अपने परिवार ,घर और समाज की देखरेख करती हैं अतः उनका शिक्षित होना बहुत ज्यादा आवश्यक भी है, बच्चे देश का भविष्य है अतः उनका शिक्षित होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना किसी भी देश के एक सफल नागरिक को होना चाहिए। स्त्री और शिक्षित होंगी तो स्वयं और अपने परिवार को अच्छे बुरे और असामाजिक घटनाओं से सचेत रहने की शिक्षा भी दे सकती हैं जिससे एक सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक आंदोलन की महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि को तैयार किया जा सकता है।

परिवार की शिक्षा के बाद विद्यालयों की शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इसमें अनुशासन, सहभागिता, समानता एवं नेतृत्व जैसे गुणों का समावेश होता हैl पुस्तकों का ज्ञान व्यक्ति एवं व्यक्ति के जीवन में संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देता हैl पर शिक्षक की भूमिका जिंदगी में बड़ी ही प्रेरणादाई होती है। यह कहा जाता कि बिना गुरु ज्ञान नहीं हो सकता है, लोकोक्ति सही भी है, शिक्षकों का मार्गदर्शन खेल खेलने से विकसित होने वाले मूल्य जैसे समूह की भावना, निष्पक्षता, ईमानदारी,साहस की भावना को परिष्कृत करती हैl ऐसे कई उदाहरण हैं की बिना साक्षरता के व्यक्ति पूर्ण रूप से शिक्षित एवं सुसंस्कृत हो सकता हैl अपने समय के महान चिंतक फिलासफर सुकरात ने कहा था कि मैं शिक्षित अथवा ज्ञानी इस अर्थ में हूं,कि मैं कुछ नहीं जानता। शिक्षा व्यक्ति के जीवन में अहंकार,लालच, हिंसा, कटुता आदि को नियंत्रित करने में मदद देती है। पुराण काल में रावण प्रकांड पंडित एवं साक्षर व्यक्ति माना जाता था पर स्त्री के अपहरण में उसका कृत्य अहंकार लालच लिप्सा उसकी साक्षरता को …

Tuesday, November 15, 2022

पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी रसोई की राख

 रसोई की राख की रॉयल इमेज....

भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी ...?
उस समय Hand Sanitizer नहीं हुआ करते थे, तथा साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी आता था। उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी, वह थी चूल्हे की राख। जो बनती थी लकड़ी तथा गोबर के कण्डों के जलाये जाने से। चूल्हे की राख का रासायनिक संगठन है ही कुछ ऐसा ।
आइये चूल्हे की राख का वैज्ञानिक विश्लेषण करें। इस राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, वे पौधों में भी उपलब्ध होते हैं। इसके सभी Major तथा Minor Elements पौधे या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से। इसमें सबसे अधिक मात्रा में होता है Calcium.
इसके अलावा होता है Potassium, Aluminium, Magnesium, Iron, Phosphorus, Manganese, Sodium तथा Nitrogen. कुछ मात्रा में Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury तथा Selenium भी होता है ।
राख में मौजूद Calcium तथा Potassium के कारण इसकी ph क्षमता ९.० से १३.५ तक होती है। इसी ph के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर तथा उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है।
जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का विनाश । आइये, अब मनन करें सनातन धर्म के उस तथ्य पर जिसे अब सारा संसार अपनाने पर विवश है। सनातन में मृत देह को जलाने और फिर राख को बहते पानी में अर्पित करने का प्रावधान है। मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है ।
मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है । जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटैण्ट का काम करती है ।
इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म (MPN) में कमी आ जाती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन (DO) की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फैक्शन के लिए एक एकोफ़्रेंडली विकल्प है...
जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमैंट (STP) के लिए भी किया जा सकता है। सनातन का हर क्रिया कलाप विशुद्ध वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है। इसलिए सनातन अपनाइए स्वस्थ रहिये ।
आपने देखा होगा कि नागा साधु अपने शरीर पर धूनी की राख मलते हैं जो कि उन्हें शुद्ध रखती है साथ ही साथ भीषण ठंडक से भी बचाये रखती है ।
May be an image of 1 person, sitting and outdoors
Balveer Sharma and 2.7K others
55 comments
484 shares