वे जो दूसरे की मर्यादा ढकते हैं जन्म से मृत्यु तक कपड़ा चाहिए। मनुष्य की प्रथम व अंतिम आवश्यकता को पूरा करने वाले बुंदेलखंड के 2 लाख बुनकरों का जीवन संकट में है। जिस हथियार से गांधी जी ने अंग्रेजों से लोहा लिया तथा देश को एक सूत्र में बांधा देश की स्वदेशी तरीके से अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, जिस हथियार से जाति, धर्म का भेद मिटाया। आज उस स्वावलंबी हथियार हथकरघा चरखा के चलाने वाले का जीवन संकट में है उसके चलाने वाले बुनकर आज अपनी मूलभूत जरूरते, जैसे रोटी, मकान, स्वास्थ्य, और शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं गांधी, विनोवा के अंतिम जन आजादी के 7 दशक के बाद भी अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे हैं यदि हमें हैंडलूम को बचाना है। तो गांव गांव में रहने वाले बुनकरों को सुरक्षित रखना होगा। निपुण बुनकरों से बुनकारी सीखने के लिए युवा पीढ़ी को आगे आना होगा कृषि के बाद हथकरघा ही सबसे बड़ा क्षेत्र है जो सब को रोजगार दे सकता है पढ़ा, अनपढ़ बच्चे, वृद्ध, महिला, पुरुष एवं परिवार के सभी सदस्य एक ही घर में एक ही हथकरघा में कृषि के साथ काम कर सकते हैं और करते भी रहे हैं। इस उद्योग में अपार संभावना है आजादी के पहले हैंडलूम का कार्य सभी जाति के लोग करते थे पावर लूम युग आने के बाद इस परंपरागत हथकरघा के रोजगार को बंदी के कगार पर खड़ा कर दिया।
वर्तमान में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 43 लाख बुनकर पूरे देश में बचे हैं 2011 की हथकरघा जनगणना के अनुसार 7ः बुनकरों की संख्या प्रति वर्ष घट रही है अगर बुनकर कारीगरों ने अपना हुनर छोड़ दिया तो यह कला पूरी तरीके से खत्म हो जाएगी। दुनिया का 85ः हथकरघा वस्त्र उद्योग केवल भारत में होता है वर्ष 2013 में योजना आयोग ने बुनकर को नई तरीके से परिभाषित करने को कहा आज कपड़ा मिल खड़ा हो जाने से 50 बुनकरों का काम एक आदमी एक पावर लूम में करता है जिससे 49 आदमी बेकार हो गए बुनकर हमारे समाज के इंजीनियर हैं जो बिना किसी डिग्री के अपने काम में निपुण है आज कोई भी युवा इसमें दिलचस्पी नहीं ले रहा क्योंकि इसमें कैरियर नहीं है ऐसा प्रचार प्रसार किया जा रहा है यह हुनर लोगों की इज्जत है मनुष्य जन्म से के समय नंगा होता है कपड़े से उसे ढाका जाता है बुनाई हमारे देश की संस्कृति का हिस्सा थी, कला थी, साधना थी, स्वतंत्रता संग्राम की वर्दी बनने वाली कला को जीवित रखना मुश्किल हो रहा है। हथकरघा राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है यह हथकरघा सम्मानजनक रोजगार देने का प्रतीक है हथकरघा चरखा कृषि से ही केवल भारत के गांव को समृद्ध किया जा सकता है।इंसान के हाथ इंसान द्वारा बनाई गई छोटी सी मशीन जो बिना बिजली के चलती है सुंदर कपड़ों का सर्जन करती बुनकर कला को जिंदा रखना होगा अभी एक आम आदमी हैंडलूम और पावर लूम के कपड़ों में फर्क नहीं जानता अभी कुछ ही वर्षों पूर्व बुंदेलखंड के झांसी मऊरानीपुर के हैंडलूम का कपड़ा पूरे भारत में दिखता था जिसमें मऊरानीपुर में करीब 2 लाख लोगों को रोजगार मिलता था। किसी जमाने में महोबा, बांदा, छतरपुर, हरपालपुर बुनाई तथा कपास के उत्पादन के केंद्र थे आज के दौर में बंद है जिन्हें पुनः शुरू करने की आवश्यकता है। बुंदेलखंड के 80ः बुनकर अपना परंपरागत हुनर त्याग कर दूसरे धंधे में लग गए हैं यदि बुंदेलखंड का पलायन रोकना है, बेरोजगारी दूर करनी है, तो पुनः हैंडलूम शुरू करना होगा।बुंदेलखंड के निवाड़ी, टीकमगढ़ बांदा के अतर्रा, खुरहंड, में किसी जमाने में बुनाई, कढ़ाई, गोला बनाना, कंघी भरना, रंगाई,धुलाई, सूत खोलना, ताना बनाना कपड़े में गांठ लगाना, धोना, प्रेस करना जैसे अनेक कार्य जो कपड़ा बनाने से एवम् बेचने से संबंधित है। गांव के करीब 300000 परिवार किसी न किसी रूप में हथकरघा रोजगार से जुड़े थे सरकार की उदासीनता और जनप्रतिनिधियों की नासमझी के कारण पावर लूम युग आया और साथ ही बुंदेलखंड में प्राकृतिक आपदा ने प्रवेश किया। एक ओर जहां बाजार मंदी के दौर से गुजरा वहीं बुंदेलखंड में पानी संकट होने के कारण बुंदेलखंड सूखे की चपेट में आ गया और यहीं से बुनकरों का जीवन संकट में पड़ने लगा। बुंदेलखंड का भू-भाग केवल प्राकृतिक जल वर्षा पर निर्भर है पिछले 20 वर्षों से लगातार बुंदेलखंड सूखे की मार झेल रहा है यहां के निवासियों का जीवन यापन का सबसे बड़ा सहारा केवल कृषि है। सरकार की उदासीनता के कारण ना तो किसानों को समय पर सहयोग मिला और ना ही बुनकरों को अपने जीवन यापन के लिए कोई समाधान हुआ। गरीब किसान और बुनकर अपने परिवार को पलायन के लिए देश के महानगर दिल्ली, मुंबई, गुजरात, पंजाब आदि दूसरे शहरों में मजबूरी मे मजदूरी करने के लिए पलायन कर रहा है। गांव के गांव खाली हो रहे हैं केवल वृद्धजन और बच्चे ही गांव में देखने को मिल रहे हैं प्रतिदिन 5000 लोग रेल बस या विभिन्न साधनों से बुंदेलखंड से पलायन कर रहे हैं यदि सरकार बुनकरों को नई तकनीक पर हैंडलूम क्रियाशील पूंजी प्रशिक्षण पुनः दे तो यह परंपरागत रोजगार बुंदेलखंड में खड़ा हो सकता है। किसान की भांति बुनकरों के लिए बुनकर क्रेडिट कार्ड बनाने की जरूरत है बुनकरों द्वारा बुने गए कपड़े का मूल्य बुनकर स्वयं तय करें बुनकर द्वारा बुने गए कपड़े को रोज मिलिट्री हॉस्पिटल, सरकारी स्कूलों, दफ्तरों, मल्टीनेशनल कंपनियों, आंगनबाड़ी जैसे स्थानों पर सरकार बेचने की की व्यवस्था करें सभी 1 दिन सप्ताह में हैंडलूम के कपड़े पहने नई नई तकनीक के हैंडलूम स्टैंड लूम का आविष्कार होना चाहिए जो सौर ऊर्जा से चल सके। पंजाब में बेटी को दहेज में चरखा दिया जाता है वेदों महाभारत रामायण में भी बुनाई का जिक्र है असम में जिस लड़की को बुलाई नहीं आती उसकी शादी होना मुश्किल होता है। कुरान में भी बुनाई का जिक्र है गांधी,विनोबा को यदि हमें जिंदा रखना है तो हथकरघा चरखा को जिंदा रखना होगा सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते मैंने कई गांव का और कई जिलों का भ्रमण किया जहां हजारों लोग बुनाई करते थे और आज भी बुनाई के लिए तैयार है। यह सूचना बहुत ही महत्वपूर्ण है सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए और मीडिया के लिए बुंदेलखंड के किस जिले के किस गांव में कहां पर हथकरघा संचालित था और कहा बंद हो गया है।इसकी पूरी जानकारी हम दे सकते हैं सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते यह सूचना देना मै अपना कर्तव्य मानता हूं।