Friday, April 18, 2025

कामनाओं को नियंत्रित रखे सदैव

बंधुओ, शिथिल एवं अधूरी कामनाएँ भी अशांति का एक कारण होती हैं। शिथिल कामना वाला व्यक्ति थोड़ा सा प्रयत्न करके बड़ी उपलब्धि चाहने लगता है और जब उसको नहीं पा सकता तो समाज अथवा परिस्थितियों को दोष देकर जीवनभर असफलता के साथ बँधा रहता है।

अपनी स्थिति से परे की कामनाएँ करना, अपने को एक बड़ा दण्ड देने के बराबर है। मोटा सा सिद्धांत है कि अपनी शक्ति के बाहर की गई कामनाएँ कभी पूर्ण नहीं हो सकती और अपूर्ण कामनाएँ हृदय में काँटे की तरह चुभा करती हैं।

मनुष्य को अपने अनुरूप, अपने साधनों और शक्तियों के अनुसार ही कामना करते हुए अपने पूरे पुरुषार्थ को उस पर लगा देना चाहिए।

इस प्रकार एक सिद्धि के बाद दूसरी सिद्धि के लिए पूर्व सिद्धि और उपलब्धियों का समावेश कर आगे प्रयत्न करते रहना चाहिए। इस प्रकार एक दिन वह कोई बड़ी कामना की पूर्ति भी कर लेगा। 

"निःसन्देह कामनाएँ मनुष्य का स्वभाव ही नहीं, आवश्यकता भी है, किंतु इनका औचित्य, नियंत्रण, दृढ़ और प्रयत्नपूर्ण होना भी वांछनीय है। तभी ये जीवन में अपनी पूर्ति के साथ सुख-शान्ति का अनुभव दे सकती हैं "अन्यथा "अनियंत्रित" एवं "अनुपयुक्त" कामनाओं से बड़ा शत्रु मानव-जीवन की सुख-शान्ति के लिए दूसरा कोई नहीं है।"


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