Tuesday, September 24, 2019

पान के किसानों का प्राकृतिक आपदा, प्रशासनिक व जनप्रतिनिधियों द्वारा उपेक्षा


बांदा के इस गांव में पान की आढत लगती थी इस गांव का पान देश के कई महानगरों के साथ नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान सहित कई देशों में बेचा जाता था। इस गांव में सरकार भी पान पैदा कर बेचती थी। महाभारत काल से पुराना है।यह गांव केवल पान के किसानों का था जो प्राकृतिक आपदा, प्रशासनिक व तत्कालीन जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के कारण पूरी तरह पान व्यवसाय समाप्त हो गया है। पान के किसान बकरी, भैंस चरा, सड़क पर पूजा सामग्री बेचकर अपना जीवन काट रहे हैं किसी समय 5000 की आबादी से अधिक के गांव में वर्तमान में 600 व्यक्ति बचे हैं। बाकी पान के किसान महानगरों में अपने बच्चो वा बड़ों के उधर पोषण के लिए पलायन कर गए। यह गांव बराई मानपुर जो ब्लाक महुआ तहसील नरैनी  जिला बांदा के अंतर्गत आता है और इस गांव में केवल चैरसिया जिन्हें पूर्व में बरई कहा जाता था। उनका एक मात्र गांव इतिहास कालीन यह है। यहां के चैरसिया उत्तर प्रदेश मे मध्य प्रदेश मे वा भारत के कई राज्यों में बस गए हैं स्वरोजगार के कारण यह गांव इतिहास में राजा नल की पत्नी दमयंती के मौसा चेदि राज्य के राजा थे उनकी राजधानी सूक्तिमती नगरी थी।राजा नल राम के पूर्वज ऋतु पर्ण के समकालीन थे।उनके बाद राम यहाँ आए।महाभारतकालीन राजा शिशुपाल यहाँ के राजा थे।जो महाभारत काल से पुराना है सुक्त मती नगरी थी। मुगलकालीन सल्तनत का राज्य यही से संचालित होता था। कालिंजर और महोबा से शायद यह नगर पुराना है। ऐसा पुरातत्व खोजकर्ता माननीय श्री विजय कुमार जी अपर पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश बताते हैं केन के किनारे जल मार्ग से बड़ा व्यापारिक केंद्र भी सेवडा रहा है। आज मात्र खंडहर बचे जिन्हें देखा जा सकता है राम सोनू चैरसिया बताते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पान पौधशाला नर्सरी खोली गई थी। जिसमें इसमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों कर्मचारी पान के साथ काम करते थे और इस पान की नर्सरी से प्रतिदिन पान बिकने के लिए बाहर जाता था। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण पिछले 15 वर्ष से यह पान की नर्सरी पूरी तरह से बंद है उजड़ गई है जो कई एकड़ में थी केवल लोहे के खंभे और बोर्ड लगा है। महावीर चैरसिया बताते हैं कि इस गांव में 100 से अधिक कुआं है 500 परिवार केवल पान की खेती करता था। पान की मंडी थी हमारे गांव में लखनऊ, कानपुर, बरेली, बेंगलुरु, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई के व्यापारी आढ़तियों के माध्यम से गांव से पान खरीदते थे हमारे गांव में उच्च क्वालिटी का देसी पान पैदा होता था। जो हमारी कई सौ वर्ष पुरानी पीढ़ी ने हमें पान की बेल व जड़ें हमें दी थी। मुनीलाल चैरसिया बताते हैं कि मैं 200 देसी पान 2 में बेचता था 20 वर्ष पहले तक प्रतिवर्ष 20000 का पान बेच लेता था पूरा धंधा चैपट हो गया युवा किसान सोनू चैरसिया बताते हैं कि 100 बरेजा मेरे सामने लगे थे जिसमें लाखों पान रोज तोड़ा जाता।
कुछ पान किसान अपने बरेजे में सब्जी पैदा कर रहे हैं इन किसानों के भाई भतीजे चाचा प्रत्येक परिवार से अपने जीवन यापन के लिए पान व्यवसाय बंद हो जाने से पलायन कर गया है। इस गांव से किसानों द्वारा पैदा किया गया पान ट्रक व रेल के माध्यम से गलले की भांति बाहर बिक्री के लिए जाता था करोड़ों रुपए का व्यापार यहां के पान के किसान करते थे। हजारों लोगों को रोजगार मिलता था जिस गांव में स्वयं सरकार पान पैदा कर व्यापार करने लगे खुद समझिए कितना संपन्न गांव था। यहां के बुजुर्ग 5 किसान कहते हैं कि यदि सरकार हमें सहयोग करें तो पुनः एक बार हम पान की खेती करके दिखाना चाहते हैं जो हमें सपना लग रही है। जिसे खाकर सैकड़ों लड़ाई लड़ी गई उस पान के बीड़ा को जो वीरों को थाल में दिया जाता था। उसे बचाने के लिए संकट है पान एक औषधि है देसी पान वह पान है जो जमीन में गिर जाए और टुकड़े टुकड़े हो जाए पान का पत्ता पान की जड़ दोनों औषधि है। इस गांव के 3000 परिवार ने पान की खेती छोड़ दी है सरकार आम जनप्रतिनिधियों से अनुरोध है कि हमारी हजारों बरस पुरानी पान की खेती फिर शुरू कराने की योजना बनाएं।  सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते मौके पर जाकर जो देखा किसानों ने चर्चा की बताया वह सब आपकी सेवा में। 
 इस व्यवसाय को खत्म करने के लिए मौसम की मार के साथ सरकारी नीतियां जिम्मेदार है।बीमा का लाभ पान के किसानों को नहीं मिलता इसे उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग में सम्मिलित किया जाना चाहिए पान के किसानों को बॉस,बल्ली तार, पॉलीथिन, पानी पाइपलाइन किसान क्रेडिट कार्ड की भांति, पान किसान क्रेडिट कार्ड बनना चाहिए। एकमुश्त अनुदान पानी के लिए ट्यूबवेल, पान अनुसंधान केंद्र के अधिकारियों कर्मचारियों को लगातार इन पान किसानों के संपर्क में रहना चाहिए तभी हम शाम के किसानों को खड़ा कर सकते हैं। 


गोबर के कंडे का इतिहास


धरोहर, गोबर कंडे का होली से क्या रिश्ता है, गोबर की राख में सोना, चांदी, बिजली, धुआं से  देवता पुरखे के प्रसन्न क्यों होते हैं। गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस के मल को कहते हैं। घास भूसा खली जो कुछ चैपाया जानवर खाते हैं उनके पाचन से निकले रासायनिक प्रक्रिया को गोबर कहते हैं, ठोस या पतला होता है, रंग पीला काला होता है इसमें घास के टुकड़े अन्न के कुछ  कर्ण होते हैं सूख जाने के बाद भी है कंडे के रूप में जाना जाता है। गाय का गोबर कंडे के लिए ज्यादा अच्छा होता है, गोबर में खनिजों की मात्रा अधिक होती है इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैग्नीज, लोहा, सिल्कन, एलमुनियम, गंधक कुछ आंशिक मात्रा में विद्यमान रहते हैं। आयोडीन की मात्रा भी होती है इसीलिए गोबर को खेत में डाला जाता है जिन कारणों से मिट्टी को उपजाऊ बनाने में खेत के लिए मदद मिलती है गोवर में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो मिट्टी को जोड़ते हैं अंदर हवा देते हैं जैसे कंपोस्ट खाद केंचुआ खाद, जैविक खाद, गोबर की खाद से धूप अगरबती तैयार होती है। गोबर के कंडों को ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं जिससे खाना बनता है गोबर का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि सृष्टि के देवता भगवान गणेश, माता गौरी की पूजा की मूर्ति गोबर की होती है। हर शुभ कार में जमीन को गोबर से लीपा जाता है  जीवन का समय हो, मृत्यु का समय हो, शमशान जाने का समय हो, सुख का समय हो, दुख का समय हो हरित क्रांति के दौरान अधिक फसल लेने के उद्देश्य खेतों में आता अधिक फर्टिलाइजर डाला गया है।मिट्टी  में जैविक तत्व की कमी हो गई है खेत बीमार हो गए हैं उसकी बीमारी दूर करने के लिए केवल गोबर ही इलाज है गोबर की खेती से उपजे गेहूं, धान, दाल, दलहन का स्वाद व प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। यह अनाज के साथ दवा है गोबर के कंडे का धुआं शरीर के लिए फायदेमंद है कंडे के धुए से देवता प्रसन्न होते हैं ग्रह कलेश शांत होता है, कंडे का धुआं लकड़ी के अपेक्षा अधिक फायदेमंद है गाय के गोबर के कंडे ई-कॉमर्स मार्केटिंग के माध्यम से बेचे जा रहे हैं 12 कंडे 120 से अधिक में बिकते हैं। एक अध्ययन से सिद्ध हो गया है कि जिस घर में प्रतिदिन गाय के गोबर से नियमित धुआं किया जाता है उस घर में देवताओं का वास हो जाता है बीमारियां उस घर के पास तक नहीं आती उस घर का वातावरण शुद्ध होता है। परिवार के सभी सदस्य प्रसन्न रहते हैं, कंडे की आग दूध, घी, रोटी, दाल, सब्जी सबके के लिए फायदेमंद है कंडे की आग में में बनाया गया भजन सबसे अधिक पाचक होता है। एक अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशाला की रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्तरीय प्रयोगशाला ने 19 सितंबर 2016 को रिपोर्ट के दौरान यह पाया है, कि गोबर में तथा उसकी राख में सोना चांदी लोहा के साथ अन्य मिनरल पाए जाते हैं और यह शरीर के लिए फायदेमंद है इसलिए गोबर के कंडे की राख की रोटी आयुर्वेदिक विधि के अनुसार फायदेमंद है। गोबर से लीपा गया भवन वैदिक महत्त्व से मूल्यवान है। बालू, प्लास्टिक, सीमेंट की अपेक्षा 100 गुना अच्छा है यह वैदिक प्लास्टर है, गोबर में बिजली होती है जिसे सौर ऊर्जा प्लांट कहते हैं। लगभग कई गांव में चल रहे हैं कंडे की आंच से उठने वाले धुए से पुरखे प्रसन्न होते हैं, अतृप्त आत्मा तृप्त हो जाती हैं, मनुष्य का गोबर से तब तक रिश्ता रहता है जब तक वह जीवित रहता है अंतिम समय जिस तरह गोबर का कंडा राख जाता है उसी तरह मनुष्य भी राख हो जाता है। बचपन में हमारी अम्मा भोजन करने के बाद राख खाने के लिए दिया करती थी और कहती थी कि इससे खाया गया भोजन पच जाएगा। पीतल के बर्तन राख सेस साफ किए जाते थे, गोबर की होली शरीर के लिए इसलिए फायदेमंद है क्योंकि गोबर में वह सारे विटामिन पाए जाते हैं जिनके शरीर में पढ़ते ही रोग ठीक हो जाते हैं। होली का पूरा त्यौहार गोबर के विज्ञान पर आधारित है चाहे होलिका दहन हो, हर घर में गोबर के चंद्रमा, सूर्य बल्ले बनाए जाते हैं गोबर की होली खेली जाती है यह हमारी परंपरा रही है हमारे गांव जहां पर प्रकृति ने भोजन बनाने के लिए पूरे गांव में कंडे के बड़े-बड़े भट्टे बनाए रखें यह प्रकृति की देन है। आज पशुधन खत्म हो जा रहा है।भविष्य में शायद एक कंडे की भट्टी देखने को ना मिले सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते मैंने जो अपने गांव में देखा आपके साथ साझा कर रहा हूं। शायद युवा पीढ़ी कुछ समझे होली सबकी शुभ हो। गोबर की होली की शुरुआत वृंदावन में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन उठाकर ग्वाल बालों के साथ शुरू किए क्योंकि सबसे अधिक गाय माता वहीं पर थी। हमारे बुंदेलखंड में दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा होती है, गाय के गोबर से लोक देवता बनाए जाते हैं जिन्हें बासी भोजन कराया जाता है कई दिनों तक उस गोबर को पूजा के बाद खेतों में डाला जाता इससे धन, धान की वृद्धि होती है। गोबर के महत्व पर चित्रकूट कामदगिरि के प्रमुख महंत मदन गोपाल दास जी महाराज कहते हैं की हर व्यक्ति को एक गाय पाली चाहिए, गाय के गोबर से बने कंडे से रोटी बनानी चाहिए प्राकृतिक पर्यावरण दृष्टि से, गाय के गोबर की बनी रोटी से लकड़ी बचेगी पेड़ हम नहीं बना सकते पेड़ जल के लिए आवश्यक है, पर्यावरण के लिए आवश्यक है। होली पर संकल्प लें कि अगले वर्ष हम अपने गाय के गोबर से बने कंडो से दहन कर होली खेलेंगे। महोबा के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री मनोज तिवारी जी कहते हैं कि गांव की खेती किसानी मे गोबर का बहुत महत्व है गोबर में प्राकृतिक घास फूस के गुण हैं औषधियां है किसान का मित्र है।
आयुर्वेद के जानकार प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ सचिन उपाध्याय कहते हैं कि गाय के गोबर में वे तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के लिए उपयोगी है। गोबर में, कंडे में, धुए मे, आग में, राख में, अलग अलग औषधि गुण है। गोबर से स्नान करने पर निरोगी जीवन के लिए बड़ा महत्व है, गोबर एक रहस्य है जिसकी अनुसंधान की बड़ी आवश्यकता है खेती के लिए , शारीरिक बीमारी के लिए, भोजन बनाने के लिए, हमारे पूर्वज  हजारों वर्षों से  गोबर के कंडे की आग पर रोटी बना रहे हैं,  वे हम से अधिक जानकार थे।


Sunday, September 22, 2019

जिसके पास लाइसेंस उसके नाम वाहन 

केंद्र सरकार ने मोटर वाहन अधिनियम लागू क्या किया देश में गजब की हलचल मच गई। इसमें यातायात सुरक्षा के साथ-साथ यातायात स्वच्छता और स्वस्थता दिखाई पड़ी। कानून के मुताबिक नियम, कायदों को तोड़ने पर सक्त कार्रवाई और भारी जुर्माने का कड़ा प्रावधान है।  यह पहले भी कम सीमा में थे, किंतु ना जाने क्यों अमलीजामा पहनाने में ना-नूकर की जा रही थी। इसके लिए सरकारों को दोष दे या हुक्मरानों को या अफसरों को किवां अपने आप को?


खैर! दोषारोपण के चक्कर में अब अपना आज ना गंवाए। जो बीत गया सो बीत गया अब आगे की सुध ले। लापरवाही से नियमों को तोड़कर हमने आज तक जितनी जाने गवाई है वह वापस तो नहीं आ सकती लेकिन सीख में आगे सुरक्षा, सतर्कता, सजगता, नियमब्धता, कर्तव्यता और दृढ़ता से नियमों का पालन करते हुए बे मौतों से बचा जा सकता है।  दुर्भाग्य जनक स्थिति ये है कि जितने लोग बीमारियों से जान नहीं गवाते उससे कहीं अधिक वाहनों की दुर्घटना से असमयक काल के गाल में समा जाते हैं। हादसों में सड़कों का भी बड़ा योगदान है, जिसके के लिए व्यवस्थाएं दोषी नहीं अपितु जुर्मी है। बावजूद सबक लेने के बेखौफ आज भी बैगर या फर्जी लाइसेंस, पंजीयन, परमिट, इंश्योरेंस और नाबालिक वाहनों की सवारी केरोसिन से गढ्डों की सड़कों पर बेधड़क कर रहे हैं। इनमें बाईकर्स की तेजी तो ऐसी है जैसे लाखों रूपए घंटे कमाते हो वैसे जान हथेली पर रखकर और लेकर कर्कश ध्वनि से कोहराम मचाते रहते हैं। 


ऊपर से नौसिखिया, नियमों से बेखबर ऑटो, टैक्सी और ट्रैक्टर चालक राह चलतों की इस कदर आफत खड़ी कर देते हैं कि वाहनों से चलना तो छोड़िए कदमताल भी अवरूद्ध कर देते हैं। बरबस फिलवक्त सड़को पर सरपट दौड़ रहे वाहनों के मुकाबले लाइसेंस, बीमा, परमिट और पंजीयन कमतर ही है। यहां यह भी समझ से परे है कि लाइसेंस ना हो तब भी बड़ी आसानी से वाहन खरीदा जा सकता है। इस पर रोक हर हाल में लगना चाहिए। जिसके पास लाइसेंस उसके नाम वाहन का प्रचलन हो। उसके लिए जिले में मौजूद एकमात्र परिवहन कार्यालय के भरोसे सबकी लाइसेंस बनने और वाहनों के पंजीयन में काफी समय बीत जाएगा। लिहाजा कमशकम ब्लाक स्तर पर शिविर आदि लगाकर इसकी पुक्ता व्यवस्था बनाई जाए। 


दरअसल, इस नये मोटर वाहन अधिनियम को  अपने राज्यों में वोट बैंकों के खातिर जमीन पर लाने सरकारें कतरा रही है, इनमें भाजपानित प्रांत भी शामिल हैं। हां! यह कानून कड़ा जरूर है। इसे भारत जैसे देश में मनवाना दांतों तले चने चबाने के समान है, पर जीवन बचाने के वास्ते इसे चबाना भी पड़ेगा और हजम भी करना होगा। तभी हमारी सेहत सलामत रहेगी। अगर हम कानून के फंडे और पुलिस के डंडे के बिना नियमों का पालन कर लिए होते तो आज इस कानून की जरूरत ही ना पड़ती। कुछ सोच भी ऐसी अख्तियार हो चुकी है कि पुलिस को दिखाने मात्र के लिए वाहनों के कागजात और सुरक्षा पात्र होते हैं। यहां यह ना भूले की पुलिस तो जैसे तैसे छोड़ देगी अलबत्ता यमराज कैसे छोड़ेंगे? क्योंकि नजर हटी, दुर्घटना घटी जगजाहिर है। इसलिए चाकचौबंद रहने में सब की भलाई है।


अंतोगत्वा, मोटर वाहन अधिनियम का प्रभाव यह पड़ा  कि देश में लाइसेंस, बीमा, प्रदूषण प्रमाण पत्र, परमिट, पंजीयन और हेलमेट की बिक्री में  वृद्धि तथा दुर्घटनाएं भी कम हुई। असरकारक डिजिटल दस्तावेजों को मान्य करते हुए आवश्यक कागजात, सुरक्षात्मक सामग्री समेत जो भी कमी हो उसे मौके पर ही पूरी करवाने की पहल हो। पुनश्चय, प्रावधानों के नाम पर माकुल सुविधाएं, मजबूत सड़क देकर जितने की गाड़ी नहीं उससे अधिक का जुर्माना वसूला मुनासिब नहीं। हालातों के हिसाब से कार्यवाही हो तो बने बात। यथा देश में जबरदस्ती के जगह जबरदस्त तरीके से नियमों का पालन होने में अभी और समय लगेगा।


हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व विचारक


पर्यावरण संरक्षण में बाधक प्लास्टिक पर प्रतिबंध सराहनीय कदम

प्रकृति एवं मानव ईश्वर की अनमोल एवं अनुपम कृति हैं। प्रकृति अनादि काल से मानव की सहचरी रही है। लेकिन मानव ने अपने भौतिक सुखों एवं इच्छाओं की पूर्ति के लिये इसके साथ निरंतर खिलवाड़ किया और वर्तमान समय में यह अपनी सारी सीमाओं की हद को पार कर चुका हैं। स्वार्थी एवं उपभोक्तावादी मानव ने प्रकृति यानि पर्यावरण को पॉलीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से जिस तरह प्रदूषित किया और करता जा रहा हैं उससे सम्पूर्ण वातावरण पूरी तरह आहत हो चुका हैं। आज के भौतिक युग में पॉलीथीन के दूरगामी दुष्परिणाम एवं विषैलेपन से बेखबर हमारा समाज इसके उपयोग में इस कदर आगे बढ़ गया हैं मानो इसके बिना उनकी जिंदगी अधूरी हैं। वर्तमान समय को यदि पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक युग के नाम से जाना जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में यह पॉली अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका हैं और दुनिया के सभी देश इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं। सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं। पॉलीथीन एक प्रकार का जहर है जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएँगे और तब तक सम्पूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा। हालाँकि प्लास्टिक निर्मित वस्तुएँ गरीब एवं मध्यवर्गीय लोगों का जीवनस्तर सुधारने में सहायक हैं, लेकिन वहीं इसके लगातार उपयोग से वे अपनी मौत के बुलावे से भी अनभिज्ञ हैं। यह एक ऐसी वस्तु बन चुकी है जो घर में पूजा स्थल से रसोईघर, स्नानघर, बैठकगृह तथा पठन-पाठन वाले कमरों तक के उपयोग में आने लग गई है। यही नहीं यदि हमें बाजार से कोई भी वस्तु जैसे राशन, फल, सब्जी, कपड़े, जूते यहाँ तक तरल पदार्थ जैसे दूध, दही, तेल, घी, फलों का रस इत्यादि भी लाना हो तो उसको लाने में पॉलीथीन का ही प्रयोग हो रहा है। आज के समय में फास्ट फूड का काफी प्रचलन है जिसको भी पॉली में ही दिया जाता है। आज मनुष्य पॉली का इतना आदी हो चुका है कि वह कपड़े या जूट के बने थैलों का प्रयोग करना ही भूल गया है। अर्थात दुकानदार भी हर प्रकार के पॉलीथीन बैग रखने लग गए है और मजबूर भी हैं रखने के लिये, क्योंकि ग्राहक ने उसे पॉली रखने को बाध्य सा कर दिया है यह प्रचलन चार पाँच दशक पहले इतनी बड़ी मात्रा में नहीं था तब कपड़े, जूट या कागज से बने थैलों का प्रयोग हुआ करता था जोकि पर्यावरण के लिये लाभदायक था। लेकिन जब से पॉलीथीन प्रचलन में आया, पुरानी सभी पद्धतियाँ धरी रह गईं और कपड़े, जूट व कागज की जगह पॉलीथीन ने ले ली। पॉलीथीन या प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का एक बार प्रयोग करने के बाद दुबारा प्रयोग में नहीं लिया जा सकता है लिहाजा इसे फेंकना ही पड़ता है। और आज तो यत्र-तत्र सर्वत्र पॉली ही पॉली दिखाइ देती है जो सम्पूर्ण पर्यावरण को दूषित कर रही है यह पॉली निर्मित वस्तुएँ प्रकृति में विलय नहीं हो पाती हैं यानि यह बायोडिग्रेडेबल पदार्थ नहीं है। खेत खलिहान जहाँ भी यह होगा वहाँ की उर्वरा शक्ति कम हो जाएगी और इसके नीचे दबे बीज भी अंकुरित नहीं हो पाएँगे। अत: भूमि बंजर हो जाती हैं। इससे बड़ी समस्या नालियाँ अवरुद्ध होने को आती हैं। जहाँ-तहाँ कूड़े से भरे पॉलीथीन वातावरण को प्रदूषित करते हैं। खाने योग्य वस्तुओं के छिलके पॉली में बंदकर फेंके जाने से, पशु इनका सेवन पॉलीथीन सहित कर लेते हैं, जो नुकसानदेय है और यहाँ तक की पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है। पशुओं की अकाल मौत में प्लास्टिक का महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। जहाँ-जहाँ भी मानव ने अपने पाँव रखे वहाँ-वहाँ पॉलीथीन प्रदूषण फैलता चला गया। यहाँ तक यह हिमालय की वादियों को भी दूषित कर चुका हैं। यह इतनी मात्रा में बढ़ चुका है कि सरकार भी इसके निवारण के अभियान पर अभियान चला रही हैं बहुत ही सराहनीय कदम हैं भारत देश में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा पर्यावरण संरक्षण के प्रति सराहनीय व कारगर कदम साबित होगा। प्लास्टिक से पर्यटक व दर्शनीय स्थल व सैर सपाटे वाले सभी स्थान इससे ग्रस्त हैं। संपूर्ण भारत में आज लगभग दस से पंद्रह हजार इकाइयाँ पॉलीथीन का निर्माण कर रही हैं। सन 1990 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इसकी खपत 20 हजार टन थी जो अब बढ़कर तीन से चार लाख टन तक पहुँचने की सूचना हैंं जोकि भविष्य के लिये खतरे का सूचक हैं। भारत सरकार की ओर से माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र जी मोदी की सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन या प्रतिबंध लगाना बहुत ही सराहनीय व महत्वपूर्ण कारगर कदम साबित होगा। मुझे आशा व विश्वास है कि सब भारतीय नागरिक  अपना कर्तव्य समझकर प्लास्टिक मुक्त भारत बनाने में अपना सहयोग कर  देश को इससे मुक्ति दिलाकर पर्यावरण संरक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर अपने को देश के प्रति कर्तव्यपालक जिम्मेदार जागरूक  नागरिक के रूप में परिभाषित करेंगे। 

 

-✍🏻 सूबेदार रावत गर्ग उण्डू 

(सहायक उपानिरीक्षक -रक्षा सेवाऐं और 

स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी, आकाशवाणी श्रोता )

Wednesday, September 18, 2019

‘एक राष्ट्र एक संविधान’ और ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’ के समान ही ‘एक राष्ट्र एक मानक’ भी होना चाहिएः राम विलास पासवान

केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री श्री राम विलास पासवान ने आज 14 मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की मानक निर्माण प्रक्रिया और उसको लागू करने के लिए एक बैठक की अध्यक्षता की। इस बारे में विस्तृत चर्चा हुई कि मानक कैसे निर्धारित किए जाते हैं और उनका कार्यान्वयन कैसे किया जाता है। श्री पासवान ने कहा कि 'एक राष्ट्र एक संविधान' और 'एक राष्ट्र एक राशन कार्ड' के समान ही 'एक राष्ट्र एक मानक' भी होना चाहिए।



बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए श्री पासवान ने कहा कि इस बैठक में सभी हितधारकों, नियामकों और अधिकारियों के साथ 'मानक निर्माण की प्रक्रिया' की समीक्षा की गई  और निर्धारित मानकों के कार्यान्वयन/निष्पादन में सुधार लाने के बारे में भी विचार-विमर्श किया गया। श्री पासवान ने सभी हितधारकों से 17 सितम्बर 2019 तक इस संबंध में अपने सुझाव देने का आग्रह किया। श्री पासवान ने यह भी कहा कि मानकों को तय करने और उनके लागू करने का उद्देश्य 'इंस्पेक्टर राज' को वापस लाना नहीं है बल्कि देश के सभी उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध कराना है।


 श्री पासवान ने कहा कि भारतीय मानक वैश्विक मानदंड के अनुसार निर्धारित होने चाहिए और अन्य देशों की तरह ही आयातित उत्पादों पर अपने मानकों को लागू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा अंतर्राष्ट्रीय वस्तुओं के लिए पारस्परिक आधार पर किया जाना चाहिए और प्रभावी निगरानी तथा जांच के लिए एक प्रणाली बनानी चाहिए।


उपभोक्ता मामलों के विभाग में सचिव श्री अविनाश के. श्रीवास्तव ने इस बात पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि मानक निर्माण की प्रक्रिया को पूरा करने में लगने वाले समय को अब 24 महीने से घटाकर 18 महीने कर दिया है।


नीति आयोग के सदस्य डॉ. डीके पॉल ने मीडिया को बताया कि नीति आयोग वर्तमान में चिकित्सा उपकरण विधेयक के मसौदे पर काम कर रहा है जो बाजार में आने वाले गैर-मानक चिकित्सा उपकरणों की समस्या से निपटने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि 23 श्रेणियों के उपकरणों को दवाओं के तहत विनियमित या अधिसूचित किया गया है और यह प्रयास व्यापक पैमाने पर किया जाना है।


इस सभा में यह भी बताया गया कि भारत में बुलेट प्रूफ जैकेट के लिए मानक वैश्विक मानदंडों से बेहतर है और भारत दुनिया में चौथा देश है जिसके पास अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन के बाद ऐसा मानक उपलब्ध है।




*हिन्दी है जन - जन की भाषा*

- राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित" कवि,साहित्यकार

14 सितम्बर ,हिन्दी दिवस

 

महात्मा गांधी ने कहा था "ह्रदय की कोई भाषा नहीं है। ह्रदय ह्रदय से बातचीत करता है। और हिंदी ह्रदय की भाषा है। "हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय को 14 सितम्बर 1949 को लिया गया था। हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित एवम प्रचारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा द्वारा अनुरोध किया गया जिसे स्वीकार किया गया। वर्ष 1953 से सम्पूर्ण भारत मे 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष इसीलिए हिन्दी दिवस मनाया जाता है।1918 में महात्मा गांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने की कहा था। इसे गाँधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था।

  भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय 343(1) में इस प्रकार लिखा है कि " संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ कर राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तराष्ट्रीय रूप होगा।" ये निर्णय 14 सितंबर को हुआ था इसी कारण इस दिन को हिन्दी दिवस के रूप में हम सभी मनाते हैं।

  हिन्दी दिवस के दिन शिक्षालयों में छात्र छात्राओं को हिन्दी भाषा मे बोलने व लिखने की शिक्षा दी जाती है। साहित्यिक संस्थाएं भी हिन्दी के प्रसार हेतु हिन्दी लाओ देश बचाओ जैसे कार्यक्रम आयोजित करती है। विद्यालयों में वाद विवाद प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता, काव्य पाठ आदि होते हैं। साहित्यिक कार्यक्रमों में हिन्दी सेवियों को सम्मानित किया जाता है। हिन्दी की ओर प्रेरित करने हेतु भाषा सम्मान भी दिए जाते हैं। जिसमे एक लाख एक हजार रुपये उस रचनाकार को दिए जाते है जिसने हिन्दी के लिए प्रचार प्रसार कार्य किया हो।साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा राजस्थान द्वारा प्रतिवर्ष दो दिवसीय कार्यक्रम हिन्दी दिवस पर होता है।

   राजभाषा सप्ताह का आयोजन भी होता है।जिसमे सात दिन तक हिन्दी भाषा के कार्यक्रम होते है । आजकल लोग हिन्दी दिवस के दिन भी अंग्रेजी में ट्वीट करते हैं। कई लोग आम बोलचाल की भाषा मे अंग्रेजी शब्द बोलकर दिखावा करते हैं ऐसे लोग हिन्दी का अपमान कर रहे हैं। हिन्दी भाषा के विकास हेतु अधिक से अधिक हिन्दी मे बोलने का प्रचार करने की आवशयकता है।

   हिन्दी को आज तक भी संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बनाया जा सका। हिन्दी का सम्मान अपने ही देश ने कम किया है। आओ मिलकर हिन्दी के विकास की बात करें।

  आज हम नोनिहालों को अंग्रेजी माध्यमों के विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। समाज के आयोजनों में ये अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले बच्चे रटी हुई कविताएं बोल देते हैं। समाज तालियाँ बजा देता है। माँ बापू बड़े खुश होते हैं। इसीलिये अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ा है।

   हमारी भाषा हमारी संस्कृति व संस्कारो की पहचान है। हमारे गीता रामायण वेद पुराण जितने भी हिन्दू शास्त्र है सभी हिन्दी मे लिखे गए। प्राचीन कवियों लेखकों  ने हिन्दी मे लिखा। यदि हम उन्हें भूल कर अंग्रेजी के पीछे चले तो ये हमारी मूर्खता ही है। आज विश्व  के कई देशों के विद्यार्थी इन शास्त्रों को हिन्दी भाषा मे पढ़ने हेतु भारत आकर ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं और हम विपरीत दिशा में भाग रहे हैं। हिन्दी ही ऐसी भाषा है जो भारतवासी को एक सूत्र में बांध सकती है। 

  आज कॉन्वेंट स्कूल व ईसाई मिशनरी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाया जा रहा है। शहरों व गांवों में अंग्रेजी माध्यमों के विद्यालयों में विद्यार्थी हर वर्ष बढ़ते जा रहे हैं। जो निजी विद्यालय चला रहे है वे बताते है कि कोई प्रवेश नहीं आते अब हिन्दी माध्यम में पढ़ने वालों के इसीलिए अंग्रेजी माध्यम खोल दिया।

   जहाँ तक मानसिकता नहीं बदलेगी हिन्दी के प्रति हमारा सम्मान नहीं जागेगा तब तक हिन्दी का हाल नहीं सुधरेगा। हिन्दी देश की सबसे बड़ी भाषा है।  लोगों को सहसा ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है हिन्दी।

हिन्दी सहज रूप में समझ में आ जाती है। यह राष्ट्रीय चेतना की संवाहक है। दुनिया मे हिन्दी का प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से 1975 में नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ था।  इस सम्मेलन में विश्व के  30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। विदेशों में हिन्दी दिवस के दिन दूतावासों में हिन्दी भाषा के विशेष कार्यक्रम होते हैं। हिन्दी विश्व की दस ताकतवर भाषाओं में से एक है।

   आज भी पाकिस्तान नेपाल बांग्लादेश अमेरिका ब्रिटेन जर्मनी न्यूजीलैंड संयुक्त अरब अमीरात युगांडा गुयाना अमीरात सूरीनाम त्रिनिदाद मॉरीशस साउथ अफ्रीका सहित कई देशों में हिंदी बोली जाती है। विश्व आर्थिक मंच ने हिन्दी को संसार की दस ताकतवर भाषा मे शामिल किया है। विश्व के सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में आज भी हिन्दी पढ़ाई जा रही है। पूरी दुनिया मे करोड़ो लोग हिन्दी बोलते हैं। चीनी भाषा के बाद हिन्दी विश्व मे सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हैं।वेब सिनेमा संगीत विज्ञापन आदि क्षेत्रों में हिन्दी की माँग बढ़ती जा रही है। विदेशों में कई पत्र पत्रिकाएं हिंदी में प्रकाशित हो रही है।

   आज की हिन्दी मैथिली मगही अवधी ब्रज खड़ी बोली छतीसगढ़ी आदि 17 बोलियों का सामूहिक नाम है। आज कनाडा जर्मनी इंडोनेशिया में भी हिन्दी भाषी बढ़ रहे हैं।

 

-राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित"

98 पुरोहित कुटी

श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी

जिला झालावाड राजस्थान

Saturday, September 7, 2019

|।चौपाई।।

 

गुरु की मार सहैं जो काया । उसने निर्मल रूप को पाया ।।

सहता  नहीं  जो  घट थापा । कैसे कुटिलता गांवावत आपा ।।

सुन्दर वस्त्र होय जब गन्दा । मसलैं रजक पीटे स्वछन्दा ।।

निर्मल होय जब वस्त्र शरीरा । मानव धारण करत अधीरा ।।

कटैं  वस्त्र जो  दर्जी  हाथे । मानव उसे चढ़ावत माथे ।।

ईंट   सहैं   मार  रजगीरू । सुन्दर बुर्ज बनावत भीरू ।।

बढ़ई   मार  सहैं जो  काठा । मार अखाड़ा सह बनैं पाठा ।।

सुंदर  स्वर्ण  सुनार   तपावत । पीट-पीट बहु भांति बनावत ।।

सहते मार न स्वर्ण सुनारू । बनता कैसे कुण्डल हारू ।।

लौह  गर्म कर  हनैं  लुहारा । विविध भांति बनैं औजारा ।। 

 

ऋषिकान्त राव शिखरे

अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश।