Sunday, September 29, 2019

भारतीय दण्ड संहिता की महत्वपूर्ण धाराओं के नाम, अपराध और मिलने वाली सजा

भारतीय दण्ड संहिता की महत्वपूर्ण धाराओं के नाम, अपराध और मिलने वाली सजा- भारतीय समाज को कानूनी रूप से व्यवस्थित रखने के लिए सन 1860 में लार्ड मेकाले की अध्यक्षता में भारतीय दंड संहिता बनाई गई थी। इस संहिता में भारतीय संविधान की विभिन्न आपराधिक धाराओं और उनकी सजा का उल्लेख किया गया है।
भारतीय दण्ड संहिता भारत के अन्दर ;जम्मू एवं कश्मीर को छोडकरद्ध भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा व दण्ड का प्रावधान करती है। किन्तु यह संहिता भारत की सेना पर लागू नहीं होती। जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर रणबीर दण्ड संहिता लागू होती है।इस में कुल मिला कर 511 धाराएं हैं। यहाँ कानून की विभिन्न धाराएं और उनकी सजा का वर्णन किया है-
अपराध की विभिन्न धाराओं के नाम और उनकी सजा की सूची-
धाराओं के नामअपराध सजा 13 जुआ खेलना/सट्टा लगाना 1 वर्ष की सजा और 1000 रूपये जुर्माना। 34सामान आशयदृ99 से 106 व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के लिए बल प्रयोग का अधिकारदृ110 दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है -तीन वर्ष120 षडयंत्र रचना दृ141विधिविद्ध जमाव दृ147बलवा करना 2 वर्ष की सजा/जुर्माना या दोनों। 161 रिश्वत लेना/देना3 वर्ष की सजा/जुर्माना या दोनों171चुनाव में घूस लेना/देना। 1 वर्ष की सजा 500 रुपये जुर्माना। 177 सरकारी कर्मचारी/पुलिस को गलत सूचना देना 6 माह की सजा 1000 रूपये जुर्माना।186सरकारी काम में बाधा पहुँचाना 3 माह की सजा 500 रूपये जुर्माना। 191 झूठी गवाही देनादृ193 न्यायालयीन प्रकरणों में झूठी गवाही 3/7 वर्ष की सजा और जुर्माना। 201सबूत मिटानादृ216लुटेरे/डाकुओं को आश्रय देने के लिए दंडदृ224/25विधिपूर्वक अभिरक्षा से छुड़ाना-2 वर्ष की सजा/जुर्माना/दोनों। 231/32जाली सिक्के बनाना-7 वर्ष की सजा और जुर्माना 255सरकारी स्टाम्प का कूटकरण-10 वर्ष या आजीवन कारावास की सजा। 264गलत तौल के बांटों का प्रयोग-1 वर्ष की सजा/जुर्माना या दोनों 267औषधि में मिलावट करना।दृ272 खाने/पीने की चीजों में मिलावट-6 महीने की सजा/1000 रूपये जुर्माना274 /75मिलावट की हुई औषधियां बेचनादृ279सड़क पर उतावलेपन/उपेक्षा से वाहन चलाना 6 माह की सजा या 1000 रूपये का जुर्माना। 292अश्लील पुस्तकों का बेचना 2 वर्ष की सजा और 2000 रूपये जुर्माना। 294 किसी धर्म/धार्मिक स्थान का अपमान 2 वर्ष की सजा। 302हत्या/कत्लआजीवन कारावास/मौत की सजा 306आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण10 वर्ष की सजा और जुर्माना। 309 आत्महत्या करने की चेष्टा करना 1 वर्ष की सजा/जुर्माना/दोनों। 310 ठगी करना आजीवन कारावास और जुर्माना। 312गर्भपात करनादृ। 323जानबूझ कर चोट पहुँचाना। 351हमला करना। 354किसी स्त्री का शील भंग करना 2 वर्ष का कारावास/जुर्माना दोनों 362अपहरण दृ363 किसी स्त्री को ले भागना 7 वर्ष का कारावास और जुर्माना। 366नाबालिग लड़की को ले भागनादृ376 बलात्कार करना 10 वर्ष/आजीवन कारावास। 377अप्राकृतिक अपराध वर्ष की सजा और जुर्माना। 379 चोरी ;सम्पत्तिद्ध करना 3 वर्ष का कारावास /जुर्माना/दोनों। 392 लूट 10 वर्ष की सजा 395 डकैती 10 वर्ष या आजीवन कारावास। 396 डकैती के दौरान हत्या दृ415 छल करना।दृ417 छल/दंगा करना 1 वर्ष की सजा/जुर्माना/दोनों। 420 छल/बेईमानी से सम्पत्ति अर्जित करना 7 वर्ष की सजा और जुर्माना। 445 गृहभेदंनदृ446 रात में नकबजनी करनादृ426किसी से शरारत करना 3 माह की सजा/ जुर्माना/दोनों। 463कूट-रचना/जालसाजीदृ477;कद्ध झूठा हिसाब करना।दृ489 जाली नोट  बनाना /चलाना10 वर्ष की सजा/आजीवन कारावास। 493 पर स्त्री से व्यभिचार करना10 वर्षों की सजा। 494पति/पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करना। 7 वर्ष की सजा और जुर्माना। 498;अद्ध अपनी स्त्री पर अत्याचार 3 वर्ष तक की कठोर सजा। 497 जार कर्म करना  5 वर्ष की सजा और जुर्माना। 499 मानहानिदृ500 मान हानि 2 वर्ष की सजा और जुर्माना। 509 स्त्री को अपशब्द कहना। अंगविक्षेप करना, सादा कारावास या जुर्माना। 511 आजीवन कारावास से दंडनीय अपराधों को करने के प्रयत्न के लिए दंड।


 


 


देश के कानून के अंतर्गत आने वाले 5 महत्वपूर्ण तथ्य

ये वो महत्वपूर्ण तथ्य है, जो हमारे देश के कानून के अंतर्गत आते तो है पर हम इनसे अंजान है। हमारी कोशिश होगी कि हम आगे भी ऐसी बहोत सी रोचक बाते आपके समक्ष रखे, जो आपके जीवन में उपयोगी हो।
1. शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती- कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो। अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत ;मामलाद्ध दर्ज की जा सकती है। इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है।
2. सिलेंडर फटने से जान-माल के नुकसान पर 40 लाख रूपये तक का बीमा कवर क्लेम कर सकते है- पब्लिक लायबिलिटी पालिसी के तहत अगर किसी कारण आपके घर में सिलेंडर फट जाता है और आपको जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है तो आप तुरंत गैस कंपनी से बीमा कवर क्लेम कर सकते है। आपको बता दे कि गैस कंपनी से 40 लाख रूपये तक का बीमा क्लेम कराया जा सकता है। अगर कंपनी आपका क्लेम देने से मना करती है या टालती है तो इसकी शिकायत की जा सकती है। दोषी पाये जाने पर गैस कंपनी का लायसेंस रद्द हो सकता है।
3. आप किसी भी होटल में फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते है- इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तमाल कर सकते है। होटल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते। अगर होटल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई कर सकते है। आपकी शिकायत से उस होटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है।
4. गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता-मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा। अगर वो ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ सरकारी रोजगार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है। इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है।
5. पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता- आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता। अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम 6 महीने से लेकर 1 साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ सकती है।


अदालत का अधिकार 

यदि अभियोग पक्ष बार-बार अवसर मिलने पर भी अपने गवाहों को भी पेश नहीं कर पाता है तो मजिस्ट्रेट क्रिमिनल प्रोसीजर के तहत अभियोग को समाप्त कर सकता है ।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अगर दो वर्षों और साथ में तीन और महीनों के बाद भी यदि पुलिस चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाती तो यह माना जा सकता है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं है, सरकार ऐसे केसों को वापस ले सकती है ।
क्रिमिनल प्रोसीजर 1973 की धारा 468 की उपधारा 2 के मुताबिक वे कैदी जिनके खिलाफ पुलिस चार्जशीट दाखिल नहीं करती उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता और उन्हें तुरंत छोड़ दिया जाना चाहिए,  क्योंकि उन्हें जेल में रखना गैरकानूनी होगा और साथ ही अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए उनके मूलभूत अधिकारों का खंडन भी होगा ।
क्रिमिनल प्रोसीजर 1973 की धारा 167 (5) में कहा गया है कि यदि किसी मुकदमे के बारे में मजिस्ट्रेट सोचता है कि यह सम्मन मुकदमा है और जिस तारीख से अभियुक्त गिरफ्तार हुआ है उससे 6 महीने के अंदर तहकीकात समाप्त नही होती, मजिस्ट्रेट अपराध के बारे में और तहकीकात को रुकवा सकता है , लेकिन अगर जो अधिकारी तहकीकात कर रहा है वह मजिस्ट्रेट को इस बात के लिए संतुष्ट कर दे कि विशेष कारणों से और न्याय के हित में तहकीकात 6 महीनों के बाद चालू रहे तो तहकीकात चालू रह सकती है । 
क्रिमिनल प्रोसीजर 1973 (2) में दी गयी शर्त के मुताबिक मजिस्ट्रेट अभियुक्त को 15 दिन से ज्यादा जेल में रखने का आदेश दे सकता है अगर वह इस बात से संतुष्ट है कि ऐसा करने के पर्याप्त कारण हैं । कैदियों को समय-समय पर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करते रहना चाहिए।हाईकोर्ट को यह अधिकार है कि वो विचाराधीन कैदियों के मुकदमों का निरीक्षण करे यह देखने के लिए कि किसी राज्य में मजिस्ट्रेट संहिता के प्रावधानों का पालन कर रहे हैं या नहीं। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक यदि किसी बच्चे के अपराध की सजा सात साल से अधिन न हो , शिकायत दर्ज होने की तारीख या एफआईआर दर्ज होने की तारीख से तीन महीने का समय तहकीकात के लिए अधिकतम समय माना जायेगा और चार्जशीट दाखिल करने के बाद 6 महीने का समय है जिसमें बच्चे का मुकदमा हर हाल में पूरा हो जाना चाहिए । यदि ऐसा नही किया जाता है तो बच्चे के खिलाफ अभियोग रद्द किया जा सकता है ।अनुच्छेद 21 के अनुसार यदि मृत्युदण्ड को पूरा करने में देरी हो जाती है , जिससे मृत्युदण्ड पाने वाले को मानसिक कष्ट व यंत्रणा मिलती है तो यह अनुच्छेद 21 का खंडन है । इसलिए मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है ।
सरकार का कर्तव्य
अनुच्छेद 39-। के मुताबिक सरकार समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा दे तथा उचित कानून व योजना बनाकर निरूशुल्क कानूनी सहायता दे और यह भी देखे कि आर्थिक विपन्नता या दूसरी कमियों के कारण किसी भी नागरिक को न्याय मिलने के अवसर से वंचित नहीं रहना पड़े ।
गरीबों को निःशुल्क कानूनी सेवा न केवल संविधान का समान न्याय का आदेश है जो अनुच्छेद 14 में दिया गया है और जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार जो अनुच्छेद 21 में दिया गया है बल्कि संवैधानिक निर्देश है जो अनुच्छेद 39-। में दिया गया है ।


Thursday, September 26, 2019

ट्रैक्टर खा गया गांव की  बेलगाड़ी

सोचो, ट्रैक्टर खा गया गांव की  बेलगाड़ी को उसके पहिया बनाने वाले कारीगरों के हाथों को बुंदेलखंड के 13 जिलों के 11000 गांव में 9 लाख 50 हजार बैलगाड़ी थी। हर गांव में 95 बैलगाड़ी थी इसको बनाने वाले कारीगर या तो बूढ़े हो गए अथवा काम न मिलने के कारण पलायन कर गए गांव से |



यह गाड़ी बैलों से खींची जाती है।इसका नाम बैलगाड़ी हुआ यह विश्व का सबसे पुराना यातायात का साधन है, सामान ढोने का साधन है, पहिया मात्र बैलगाड़ी नहीं है जीवन है, जीवन जीने की युक्ति है। इन पहियों से जीवन की नई शुरुआत होती है पहिया हमें संदेश देता है निरंतर चलते रहो यह लकड़ी के पहिया आपको मंजिल तक पहुंचाते हैं यह गांव गरीब की रेलगाड़ी है जो बिना पेट्रोल के बिना इंजन की चलती है बगैर बिजली के यहां तक कि बिना ड्राइवर के, यह पहिया घर से बीज खेत को देते हैं। खेत से खलियान को देते हैं, खलिहान से घर को देते हैं, घर से बाजार को देते हैं, बाजार से फिर घर लाते हैं आपकी इच्छा पूरी कर के।बुंदेलखंड में लकड़ी के पहिया लकड़ी की गाड़ी स्थानीय बढ़ाई कारीगरों द्वारा बनाई जाती थी यह कारीगर 12 महीने बबूल की लकड़ी से बैल गाड़ी के पहिए बनाते थे जब ट्रैक्टर नहीं था। लंबी दूरी की यात्रा बैलगाड़ी से होती थी। इमरजेंसी के लिए एक पहिया अलग से गाड़ी में रखा जाता था इस बैलगाड़ी की त्योहारों में नजर उतारी जाती थी। साफ-सुथरा कर रंग रोशन कर पूजा की जाती थी बैलों को रंगो से रंगा जाता था गले में घंटी बांधी जाती थीगाड़ी को चमकाया जाता था पहियों को तेल पिलाय जाता था। मनुष्य ने खेती कब शुरू की इसका उत्तर सहज नहीं है शायद आदिमानव जब मानव बना तबसे सभी समस्याओं का हल उसने लकड़ी के हल से ढूंढा, सहायता के लिए लकड़ी की गाड़ी बनाई, गाड़ी में पहिया लगाए ना तो हल में लोहा लगाया, ना पहिया में लोहा लगाया न, गाड़ी में लोहा लगाया कितनी बड़ी तकलीफ थी उस जमाने के महापुरुषों में इस गाड़ी को बनाने वाले को विश्वकर्मा की उपाधि थी। तब जातियां नहीं थी जिनके हाथों से विशव का निर्माण हुआ  विश्व के मानव जाति को कर्म करने की प्रेरणा दी विश्वकर्मा आज अपने जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस ट्रैक्टर युग ने गांव के उन इंजीनियरों को भागने पर मजबूर कर दिया जो बैल गाड़ी का पहिया, हल, चारपाई, वखर, हसिया, खुरपी, कुदाली, फावणा,  आटा पीसने का जतवा, अनाज कूटने का मुंसर, कृषि से  संबंधित वे सभी औजार गांव में ही बनाते थे। जो आज अच्छे से अच्छे इंजीनियर शहर में नहीं बना सकता, मेरे गांव के बढाई चाचा, लोहार चाचा को मैं बचपन से देखते चला रहा हूं। वह गांव के किसानों का काम ईमानदारी से करते थे किसान भी इनका बहुत सम्मान करते थे किसानी के औजार के सबसे बड़े डॉक्टर थे। हर गांव में पूरे बुंदेलखंड में इनकी संख्या 96612 थी। प्रत्येक गांव में कम से कम पांच पांच परिवार इन कारीगरों के हुआ करते थी। सबसे अधिक बैलगाड़ी बांदा जिले के गांव में थी ऐसा उल्लेख गजट ईयर में किया गया है आज किसी भी गांव में, वा शहर में ना तो नई बैल गाड़ी के पहिया बनाने वाले हैं, ना ही बैलगाड़ी मै कई गांव मे सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते  घुमा कई दिनों के बाद मुझे बबेरू में जो अतर्रा रोड पर 78 वर्ष उम्र के शिव गुलाम बढ़ाई विश्वकर्मा जो झोपड़ी में रह कर कार्य करते हैं मिले जो आज भी बैल गाड़ी का पहिया बनाते हैं। बड़े दुख के साथ कहते हैं कि यह हमारा पैतृक धंधा है, कई पीढ़ियों से कर रहे हैं उस जमाने में बैल गाड़ी के पहिया की 20 अंगुल, ₹20 जोड़ी मे बिकती थी, 2005 में 28 अंगुल परिया की कीमत ₹3000 थी, साल भर में 50 जोड़ी पहिया बिक जाते थे वर्तमान में 4 माह से एक जोड़ी पहिया नहीं बिका। ट्रैक्टर हमारी रोजी रोटी खा गया, भविष्य की पीढ़ी का हुनर खा गया, हमको भी कलाकारों की भांति जीवन यापन के लिए पेंशन चाहिए ना जमीन है, ना कोई दूसरा धंधा जानते हैं। यही एक उदाहरण है लगभग बुंदेलखंड के हर गांव के कारीगरों की यही दशा है जो बुजुर्ग हैं, इनके हुनर से देशभर का पेट भरा गया आज यह खुद भूखे हैं, इनकी कौन सुनेगा और क्यों सुनेगा मशीन के युग में बहुत बुद्धिमान समाज को अब क्या जरूरत है। यही एक बड़ा प्रश्न है? हमारा देश गांव की कुटीर उद्योग से चलता था। कुटिर उद्योग में इनका बड़ा भारी योगदान है खेत खलियान गांव के विकास में यह पूरे सहभागी थे। भारत के गांव के लकड़ी की सबसे पुराने जहाज को बनाने वाले कारीगर की बदौलत हर गरीब से गरीब किसान के पास अपना बगैर बैंक कर्ज का निजी हल था, बैल था, बैलगाड़ी थी।इनको बनवाने व खरीदने के लिए बैंक से लोन नहीं लेना पड़ता था आज हर किसान के पास ट्रैक्टर नहीं है, लेकिन जिसके पास है लाखों रुपए बैंक का कर्ज है, जमीन बिक रही है किसान आत्महत्या कर रहे हैं। क्योंकि शायद इसलिए कि हल बैल गाड़ी बनाने वाले की कीमत तुम्हारे समझ में नहीं आई। क्योंकि वह सस्ता था सुलभ था आज भी बचाया जा सकता है, भविष्य में इनकी जरूरत पड़ेगी। मैं बचपन में अपनी बाबा के साथ बैल गाड़ी में बैठ कर दीपावली के समय पास के गांव में मेला देखने जाता था। हजारों बैलगाड़ियां हुआ करती थी, बाबा दाई  किस्से कहानी सुना करते थे। अपनी बैलगाड़ी को साफ सुथरा करते थे मेरे गांव में कई प्रकार के लकड़ी के हाल बना करते थे पहले छोटे, बड़े, मझोले बना करते थे। बैलगाड़ी भी कई प्रकार की बनती थी लकड़ी की, आज सब खत्म हो गया। यह सूचना में आप सबसे इस अनुरोध के साथ साझा कर रहा हूं कि इस दिशा में प्रयास किया। जाए यदि एक सूचना ठीक लगे तो आगे तक ले जाएं गलत हो तो क्षमा कर दे। जय जगत उमाशंकर पांडे सर्वोदय कार्यकर्ता बांदा बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश।
    मुझे एक कहानी याद आती है जो 1991 में एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में छपी थी अमेरिका के कुछ लोग खजुराहो के पास एक गांव में घूमने के लिए गए उन्होंने गांव के कारीगर को लकड़ी की बैलगाड़ी का पहिया बनाते देखा।उनके मन में प्रश्न उठा कि भारत के कारीगर कितने योग्य कि पूरे पहिए में कहीं भी एक कील लोहा नहीं लगा कील भी लकडी की, उसे बैलगाड़ी में लगाया और उसके ऊपर 1 टन वजन रखा 10 कुंटल रखा और खुद गाड़ी के ऊपर 10 किलोमीटर बैठकर यात्रा की। उनके समझ में आ गया कि भारत के गांव के यही असली इंजिनियर है। जिन्होंने एक भी लोहे की कील नहीं लगाई पहिए में, यह अमेरिका के इंजीनियरों से ज्यादा बुद्धिमान है। क्योंकि अमेरिका में तांगा, इक्का, खेती के औजार में लकड़ी कम, लोहा ज्यादा लगता है। भारत के कृषि औजारों में लकड़ी ही लगती है, लोहा नाममात्र का है  वे इस तकनीक को अमेरिका ले जाने के लिए 2 जोड़ी लकड़ी के पहिया अमेरिका ले जाने के लिए 15 दिन खजुराहो में पड़े रहे। एयरपोर्ट अथॉरिटी भारत सरकार ने जब अनुमति दी तब वह अपने साथ भारत से बैलगाड़ी के पहिया ले गए यह एक उदाहरण है। आचार्य विनोबा जी, गांधीजी सर्वोदय विचारधारा ने गांव के किसान की गाड़ी  को सबसे उत्तम आवागमन का साधन माना। हम सब मिलकर इस दिशा में काम करने के लिए आगे आए गांव के पहिए के इंजीनियरों को बजाएं। सोचे वंदे मातरम