Thursday, September 17, 2020

दिल्ली की चालिस प्रतिशत आबादी का हिस्सा बेघर क्यों?


घर हम सभी की जरूरत या जिंदगी का सबसे बड़ा सहारा। घर का सपना हम सभी देखते हैं ओर उसे पूरा करने के लिए हर कोशिश करते हैं। हमारे जीवन में जितना बड़ा सहारा घर का है उतना अधिक सहारा तो अपने कहें जाने वाले भी नहीं दे पाते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब सत्ता में पहली बार आए तब उनका यही कहना था कि सभी के पास अपना मकान होना चाहिए। जिसके लिए उन्होंने सस्ते घरों की योजना भी निकाली थीं, ताकि सभी को घर मिल सकें।



किंतु आज जब कोविड 19 जैसी बिमारी से परेशान हैं और आर्थिक आपदा झेल रहे हैं। तब वह गरीब लोग जो अपने जीवन चलाने के लिए हर रोज कार्य करते हैं। उनको एक ओर जहां बेरोजगारी के चलते खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके सर से छत छिने के आदेश ने जीना मुश्किल कर दिया है।  31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि


"यदि कोई अतिक्रमण के संबंध में कोई अंतरिम आदेश दिया जाता है, जो रेलवे पटरियों के पास किया गया है, तो यह प्रभावी नहीं होगा।" 



जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के भीतर दिल्ली में 140 किलोमीटर लंबी रेल पटरियों के आसपास की लगभग 48 हजार झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण हटाने के काम में किसी भी तरह के राजनीतिक दबाव और दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण के संबंध में यदि कोई अदालत अंतरिम आदेश जारी करती है तो यह प्रभावी नहीं होगा।



रेलवे और हम सब की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का विरोध करना सही नहीं है। किंतु इस तरह से उनको नोटिस दे कर हटाने तीन महीने में हटाने का फैसला कहा तक उचित है यह भी विचार करना जरूरी है। राजनीति हमारे देश में आज बहुत ताकतवर हो चुकी है और यही राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते हैं, जो चुनाव जीतने के लिए इनके पास जाते हैं और वोट मांगते हैं। सवाल यह नहीं ‌है कि उनको वहां से क्यों हटाया जा रहा है। सवाल यह है कि जब यह लोग ‌वह बस रहें थें तब सरकार और रेलवे ने उनको रोका क्यों नहीं।  यदि वह वहां ग़ैर क़ानूनी तरीके से रह रहे थें तो उनके घर में बिजली पानी क्यों सरकार द्वारा पहुंचाया जा रहा है। जिस स्थान पर रहना गलत है उस स्थान के पत्ते पर वोटर कार्ड और आधार कार्ड क्यों बनाए गए। सरकारें चुनाव के समय वोट मांगने के लिए की वादें करतीं हैं। ऐसा ही एक वादा मोदी सरकार ने भी चुनाव के समय करते हुए कहा, जहां झुग्गी वहां मकान। किंतु आज जब 48 हजार लोग बेघर हो रहें हैं, तब सभी राजनीतिक पार्टियां राजनीति कर रही है।


आम जनता कोई आम नहीं है जिसे चुनाव के समय इस्तेमाल किया जाए और फिर बाद में उसे कचड़ा समझ कर फैंक दिया जाएं। सरकारें सालों से वादा कर रहीं हैं, लोगों को‌ सपना दिखा रहीं हैं घर मिलने का। आज तक घर नहीं मिलें लेकिन लोग बेघर जरूर हो रहें हैं। रेलवे की सुरक्षा जरूरी है। किंतु उन सभी लोगों को बेघर होने से बचाना भी जरूरी है जिन्होने सालों लगा कर अपने लिए एक छत बनाई है। राजनीति पार्टी का फ़र्ज़ केवल वादे कर वोट लेना नहीं होता है। उनको अपनी जिम्मेदारी समझ कर आज अपने फर्ज पूरे करने चाहिए ना कि राजनीति करतें हुए एक दूसरे पर छींटाकशी।


हम सभी को आज इंसानियत दिखा कर, उन 48 हजार लोगों का दर्द और तक़लिफों को समझना चाहिए। वह गरीब है, किन्तु इंसान है उनको भी हक है। हम तर्क दे सकते हैं कि गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीन पर कब्जा कर के रह रहे थें तो हटाया जाना गलत कहां है। किंतु यह तर्क देते हुए हम यह नहीं भूल सकते हैं कि वह भी नागरिक हैं उस देश और राज्य के जिसके हम है। दिल्ली की चालिस प्रतिशत आबादी उन झुग्गियों में रहतीं हैं जिन्हें ग़ैर क़ानूनी कह कर हम सभी गिरवाने की सोच शहर को साफ-सुथरा और सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जिस प्रकार हम सरकारों के बनाएं कानूनों का विरोध करते है, क्या हम उसी तरह आज सरकार को अपने दिए वादों को याद दिलाने के लिए क्यों नहीं कहते हैं। सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है ताकि बेघर हो‌ रहें लोगों को सरकार घर दें। उनको चुनाव में समय याद‌ करने वाली हमारी सरकार आज  अपनी जिम्मेदारी निभाएं।



           राखी सरोज


 


 



फेसबुक का विवाद एवं सच






भारत में अपनी भूमिका को लेकर फेसबुक ने औपचारिक रूप से यह स्पष्ट किया है कि सामग्री को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है, उसका निर्वाह सही तरीके से किया जा रहा है और वह एक खुला, पारदर्शी और पक्षपात- रहित मंच है। फेसबुक के भारत-प्रमुख अजित मोहन ने जो नोट लिखा है, उसके नीचे पाठकों की प्रतिक्रियाएं पढ़ें, तो लगेगा कि फेसबुक पर कम्युनिस्टों और इस्लामिक विचारों के प्रसार का आरोप लगाने वालों की संख्या भी कम नहीं है। फेसबुक ही नहीं ट्विटर, वॉट्सएप और सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर इन दिनों उन्मादी टिप्पणियों की बहुतायत है। क्यों हैं ये टिप्पणियाँ? क्या ये वे दबी बातें हैं, जिन्हें खुलकर बाहर आने का मौका सोशल मीडिया के कारण मिला है?  

ऐसे में सवाल दो हैं। क्या फेसबुक ने अपने आर्थिक हितों के लिए भारत में सत्ताधारी राजनीतिक दल से कोई गठजोड़ किया है या जो कुछ सामाजिक विमर्श में चलता है, वही सामने आ रहा है? सोशल मीडिया के सामने मॉडरेशन एक बड़ी समस्या है। एक तरफ सामाजिक ताकतें हैं, दूसरी तरफ राजनीतिक शक्तियाँ। कोई भी कारोबारी सरकार से रिश्ते बिगाड़ भी नहीं सकता। आज बीजेपी की सरकार है। जब कांग्रेस की सरकार थी, तब भी फेसबुक ने सरकार के साथ मिलकर काम किया ही था।

 

भारत से लेकर अमेरिका तक सोशल मीडिया को लेकर राजनीतिक रस्सा-कशी चल रही है। जैसे सवाल सोशल मीडिया की भूमिका को लेकर हैं, वैसे ही सवाल मुख्यधारा के मीडिया को लेकर भी हैं। वॉलस्ट्रीट जर्नल में भी इन दिनों समाचार और विचार के दो धड़ों के बीच टकराव चल रहा है, जिसकी तरफ हमारे पाठकों का ध्यान अभी गया नहीं है। अखबारों के संपादकीय विभागों के भीतर वैचारिक टकराव है। सूचना के स्वरूप, सामग्री और उसके माध्यमों में भारी बदलाव आ रहा है। इसके कारण भारत में ही नहीं संसार भर में लोगों का कार्य-व्यवहार बदल रहा है।

 

वैचारिक टकरावों के पीछे वह सामाजिक पृष्ठभूमि है, जिसके अंतर्विरोध मुख्यधारा के मीडिया ने सायास दबाकर रखे थे, पर सोशल मीडिया के खुलेपन ने उन अंतर्विरोधों को जमकर उभारा है। बहरहाल फेसबुक के वर्तमान प्रकरण पर वापस आएं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में फेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी डायरेक्टर आंखी दास और दो अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है, जिसमें पत्रकार को धमकाने तथा धार्मिक उन्माद फैलाने और सांप्रदायिक द्वेष फैलाने के आरोप हैं। उससे पहले 16 अगस्त को ही आंखी दास ने दिल्ली साइबर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि वॉलस्ट्रीट जर्नल की खबर प्रकाशित होने के बाद उनको जान से मारने की धमकी दी जा रही है।

 

यह मामला दो व्यक्तियों के बीच विवाद का नहीं है, बल्कि सवाल एक संस्था और सोशल मीडिया की भूमिका और भारत में उसके राजनीतिक निहितार्थ का है। गत 14 अगस्त को अमेरिकी अखबार ‘वॉलस्ट्रीट जर्नल’ में प्रकाशित रिपोर्ट में फेसबुक के अनाम सूत्रों के साथ साक्षात्कारों का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि भारतीय नीतियों से जुड़े फेसबुक के वरिष्ठ अधिकारी ने सांप्रदायिक आरोपों वाली पोस्ट के मामले में तेलंगाना के एक भाजपा विधायक पर स्थायी पाबंदी को रोकने से जुड़े मामले में दखलंदाजी की थी। मोटा आरोप है कि सत्तापक्ष के प्रति नरमी बरती जाती है और विवादित सामग्री को हटाने की नीति पर ठीक से अमल में नहीं होता।

 

ये विदेशी संस्थाएं हैं और सोशल मीडिया को लेकर कोई वैश्विक व्यवस्था नहीं है। वे हमारे नियमों को मानने पर बाध्य नहीं हैं, पर उन्हें कारोबार चलाना होगा, तो हमारी बात माननी भी होगी। चीन ने पश्चिमी सोशल मीडिया को अपने यहाँ आने से रोक रखा है। ऐसे में भारत सबसे बड़ा बाजार है। इस बाजार में बने रहने के लिए इन कंपनियों को सरकार के साथ बेहतर रिश्ते बनाने ही होंगे। सोशल मीडिया से जुड़ी समस्याएं कई हैं। इनमें एक है हेट स्पीच। हेट स्पीच यानी किसी सम्प्रदाय, जाति, वर्ग, भाषा वगैरह के प्रति दुर्भावना। खासतौर से राजनीतिक रुझान से उपजी दुर्भावना। इसके साथ जुड़े हैं फेक न्यूज के सवाल।

 

ये सवाल केवल भारत में ही नहीं उठे हैं। सभी देशों में ये अलग-अलग संदर्भों में उठे हैं या उठाए जा रहे हैं। भारत में संसदीय समिति के सामने मामला इन शिकायतों के आधार पर गया था कि ट्विटर इंडिया कुछ खास हैंडलों के प्रति कड़ा रुख अख्तियार करता है और कुछ के प्रति नरमी। ऐसा ही आरोप अब फेसबुक पर है। जब अदालतों के फैसलों तक पर विवाद हैं, तब सोशल मीडिया के हैंडलों की टिप्पणियों और उनपर की गई कार्रवाइयों को लेकर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। इन टिप्पणियों से राजनीतिक माहौल बनता है और बनता जा रहा है।  

 


 

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश




 

 




कोरोना वैक्सीन 2024 के अंत तक सभी को मिलेगी


                          वीरेन्द्र बहादुर सिंह


देश में इस समय कोरोना का कहर शिखर पर है। कोरोना वायरस के बारे में लापरवाही बरतने वाले चाहे वे अमीर हों या गरीब, राजनेता हों या सामान्य आदमी, मंत्री हों या संत्री, किसी को भी नहीं छोड़ रहा हैै। यह निश्चित हो गया है कि आप ने जरा भी लापरवाही की नहीं कि आप कोरोना का शिकार हो गए। सोमवार से देश में लोकसभा का मानसून सत्र शुरू हो गया है। लोकसभा और राज्यसभा का सत्र शुरू होने के पहले कोरोना टेस्ट जरूरी होने के कारण मानसून सत्र के पहले ही दिन कोरोना की जांच में दोनोें सदनों में 26 सांसद कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इसमें से 18 सांसद लोकसभा और 8 सांसद राज्यसभा के थे। लोकसभा के पॉजिटिव सांसदों में 12 सांसद भाजपा, शिवसेना और वाईआरएस के 2-2 सांसद और आरएलपी का एक सांसद है। एक साथ इतने सारे सांसदों के कोरोना पॉजिटिव होने से संसद में भी भय का माहौल बन गया है। संसद में  सोशल डिस्टेसिंग का खास ख्याल रखा गया है। दो सांसदों के बीच 5 से 6 फुट की दूर रखी गई है यानी दो सांसद कम से कम इतनी दूरी पर बैठेंगे। कोरोना पॉजिटिव पाए जाने वाले सांसादों में मीनाक्षी लेखी, अनंत ठेगडे और दिल्ली के प्रवेश वर्मा भी शमिल हैं। 


देशमेंइससमयरोजाना 90 हजारसेअधिककोरोनापॉजिटिवमामलेआरहेहैं।मंगलवारको 90027 मामलेसामनेआएथे।इससेदेशमेंकुलकोरोनापॉजिटिवकीसंख्या 50 लाखके पार होगईहै।मंगलवार कोकोरोनासेमरनेवालोंकीसंख्या 81989 होगईहै।देशमेेंइससमयकोरोनापॉजिटिवरोगियोंकीसंख्या 9,90,061 है।जिसमेंसे 60 प्रतिशतरोगीदेशकेपांचराज्यों- महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेशऔरतमिलनाडुकेहैं।इन 60 प्रतिशतरोगियोंमें 21-9 प्रतिशतरोगीमहाराष्ट्रके, 11-7 प्रतिशतरोगीआंध्रप्रदेशके, 10-4 प्रतिशतरोगीतमिलनाडुके, 9-5 प्रतिशतरोगीकर्नाटकके



कृषि में कौशल विकास की चुनौतियां 

हम सभी जानते हैं कि दोस्त किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कौशल और ज्ञान दो प्रेरक बल होते हैं। हमारा भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ ही वैश्विक स्तर पर भी सबसे अधिक युवाओं वाला देश भी है। कृषि क्षेत्र में हमने आजादी के बाद एक लंबा  संघर्ष भरा सफर तय किया है। आज दोस्त हरित क्रांति तथा कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान तथा प्रसार ने भारत को न सिर्फ खाद्यान्न में  बल्कि दुग्ध उत्पादन में भी विश्व के शिखर में खड़ा कर दिया है और आज भारत फल एवं सब्जियों में दूध , मसाले एवं जुट में वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा उत्पादक देश है। अगर हम धान एवं गेहूं में देखें तो हमारा भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं वैश्विक स्तर पर भारत 80% से अधिक फसलों के सबसे बड़ी उत्पादकों में से आज एक है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हरित क्रांति रणनीति द्वारा भारत में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाने और देश की खाद्य सुरक्षा में सुधार लाने पर जोर दिया गया था, जो आज अनाजों से हमारा भंडारण भरा हुआ है। परंतु दोस्तों आज समय की यह मांग है की खाद्य सुरक्षा में सुधार के साथ-साथ अधिक आय अर्जित कराना भी होगा किसानों को क्योंकि आप यह देख रहे हैं कि आए दिन हमारे अन्नदाता आत्महत्या कर रहे हैं। इसके साथ ही पर्याप्त भंडारण क्षमता को भी और अधिक सुदृढ़ करना होगा क्योंकि हम यह भी देख रहे हैं कि पर्याप्त भंडारण नहीं होने के कारण भी अनाज बर्बाद हो जाते हैं कभी-कभी तो राजनीतिक उदासीनता के कारण भी अनाज गोदामों में सड़ते रहते हैं लेकिन हमारा देश भुखमरी में सबसे ऊपर बना रहता है इन सब में सुधार करने की अत्यंत आवश्यकता है।

आप ही देखो ना दोस्तों जहां एक तरफ हमारा भारत ने विश्व में अपने आप को कृषि उत्पादन में साबित किया है वही हम देख रहे हैं दूसरी तरफ हमारे देश में अधिकतर किसान कृषि त्यागना चाहते हैं तथा युवा वर्ग तो गांव में कृषि को त्याग कर शहरो में नौकरी करने हेतु बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। आज दोस्त बढ़ती आबादी, घटती उपजाऊ कृषि भूमि , कम होते रोजगार तथा निवेश एवं बाजार के जोखिमो  ने कृषि क्षेत्र में कार्यरत युवाओं के समक्ष कृषि को लाभकारी बनाने में कहीं ना कहीं बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। अगर सरकार अपनी उदासीनता वाली भावना को त्याग कर युवाओं को प्रेरित करें तो कृषि  में कौशल विकास इन चुनौतियों का उचित समाधान बन सकता है किंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कृषि क्षेत्र में युवाओं का कौशल विकास अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।

130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में दोस्त 70.7 प्रतिशत लोग आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं तथा 57.8 प्रतिशत लोग आजीविका हेतु कृषि से ही जुड़े हुए हैं। लेकिन देख रहे हैं धीरे-धीरे की कृषि में कार्यरत लोगों की संख्या गिरती जा रही है। अगर आंकड़े देखें तो 1999 से लगातार प्रतिदिन 2000 किसान कृषि का त्याग कर रहे हैं तथा हमारे देश के आधे से ज्यादा किसान कृषि को त्याग कर मजदूर बन गए हैं। आप ही देखो ना आज देश के कुल कार्यबल में निरंतर वृद्धि हुई लेकिन ध्यान से देखें तो कृषि का कुल कार्यबल में योगदान लगातार घटता चला जा रहा है। ऐसे में आप सोचो जब हमारे अन्नदाता ही  नहीं होंगे तब हम सब खाएंगे क्या?

याद रखना किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कौशल और ज्ञान दो प्रबल होते हैं। वर्तमान परिदृश्य माहौल में देखे तो उभरती अर्थव्यवस्था की मुख्य चुनौती से निपटने में वे देश आगे हैं जिन्होंने आज कौशल का उच्च स्तर प्राप्त कर लिया है । आज देखे तो भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा उत्पादक आयु समूह में है क्योंकि भारत के पास 60.5 करोड़ लोग 25 वर्ष से कम आयु के हैं। दोस्तों यही भारत के लिए सुनहरा अवसर प्रदान करेगा अगर देश के नीति निर्माताओं ने युवाओं को कौशल विकास में आगे बढ़ने के लिए मदद करें तो, परंतु हम देख रहे हैं यह आज एक बड़ी चुनौती है। हमारी अर्थव्यवस्था को दोस्त इस युवा वर्ग का लाभ तभी मिलेगा जब हमारा जनसंख्या विशेषकर युवा स्वास्थ्य ,शिक्षित और कुशल होंगे। आंकड़ों के मुताबिक तो हम देख रहे हैं कि कृषि क्षेत्र में कार्यरत कार्यबल वर्ष 2022 में 33 प्रतिशत  तक घटकर मात्र 19 को रह जाएगा वही आंकड़ों के मुताबिक दूसरी तरफ कुल कार्यबल का मात्र 18.5 प्रतिशत ही कृषि में औपचारिक रूप से कुशलता प्राप्त करेगा।

दोस्तों आज किसानों को बदहाली से खुशहाली की स्थिति में लाने की दिशा में हमें सभी संभव प्रयास किए जाने की जरूरत है नहीं तो फिर भूखे मरना होगा। इसीलिए भारत सरकार की 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की पहल एक महत्वपूर्ण एवं उपयुक्त कदम है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु हमें विकास कार्यक्रम , तकनीकी तथा नीतियों का कुशल समन्वय कृषि क्षेत्र में कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। पिछले वर्ष ही राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के सर्वेक्षण के अनुसार किसानों की औसत आय 6426 रुपए प्रतिमाह है और इस आय में भी किसान 3078 रुपए कृषि से, 2069 रुपए मजदूरी /पेंशन 765 रुपए पशुधन व 514 रुपए गैर कृषि कार्यों से अर्जित करता है । आज भी सीमांत और छोटे किसान फसल उत्पादन में तेजी से तकनीकी विकास के साथ तालमेल रखने में असमर्थ हैं। अब आप ही सोच सकते हो कि 6426 रुपए  प्रति माह कमाने वाला किसान आखिर कैसे अपना और अपने परिवार का पालन करेगा। हमें किसानों के आय को दुगनी करने के साथ ही कौशल में भी उनको निपुण करना होगा, जिस प्रकार से हम देखते हैं कि किसानों के फलों सब्जियों और अनाजों का उचित मूल्य नहीं मिलता उस पर भी हमें विशेष तौर पर ध्यान देना होगा।

सबसे जरूरी चीज है इन सभी योजनाओं का क्रियान्वयन इमानदारी पूर्वक किया जाए।