Tuesday, November 10, 2020

मौन साधक, मित्र मेरा- सुरेशचंद्र रोहरा 




*डॉ टी महादेव राव*

चारों तरफ से हरे भरे और घने जंगलों से आच्छादित छत्तीसगढ़ अ हसदेव नदी के पावन तट पर बसी देश की ऊर्जाधानी कोरबा यूँ तो  अपनी अनेकों कोयला खादानों एवं बिजली के कल - कारखानों के नाम से मशहूर है। लेकिन इस रत्नागर्भा वसुन्धरा को अपनी मेहनत  , लगन और निष्ठा से आज के इस मुकाम तक पहुँचाया है यहाँ के आम मेहनत कश्मीर लोगों ने  । जहाँ एक तरफ यहाँ के श्रमिकों , किसानों , अधिकारियों , कर्मचारियों एवं शासन प्रशासन , व्यापार , व्यवसाय के लोगों ने इसके विकास पथ में अपनी भूमिका निभाई है वहीं इसकी सांस्कृतिक परंपरा और विरासत को समृद्ध करने का कार्य यहाँ के विविध कला क्षेत्रों में साधनारत कलासाधकों ने किया है । ये अलग बात है कि क्षेत्र के कलात्मक विकास में सक्रिय रहे कलासाधकों में कुछ चुने हुए और मुट्ठी भर लोगों के ही नाम कोरबा के जनमानस के सामने आ पाएँ  हैं। आज भी ऐसे कई कलमसाधक हैं जो प्रचार प्रसार को किनारे रख एक के बाद एक अनगिनत सृजन किए जा रहे हैं। और वह भी किसी लालसा या विशेष ईच्छा के बिना सिर्फ समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी और सर्जनात्मकता के प्रति अपने अनुराग के कारण । वैसे तो  कोरबा साहित्यजगत एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में  अनेकानेक बुद्धिजीवी साधनारत हैं लेकिन उनमें से एक कलम  के साधक ऐसे हैं जिनकी जुबान नहीं सिर्फ और सिर्फ कलम बोलती है! अख़बारों में बेहतरीन संपादकीय लेखों , काँलम लेखों  , देश की नामी गिरामी पत्र  पत्रिकाओं में विशेष लेखों , कई प्रकाशित पुस्तकों - संकलनों के रूप में  .... और कोरबा साहित्य एवं पत्रकारिता जगत को 

नई दिशा और दशा प्रदान करने वाले वह मौन कलम साधक हैं प्रख्यात  गाँधीवादी , निष्पक्ष एवं बेबाक पत्रकार, साहित्यकार , हमारे दैनिक  लोकसदन के संपादक  सुरेशचंद्र रोहरा  ... ।

     कुछ लोग कुछ न करते हुए भी अपनी पीठ थपथपाने और प्रचार-प्रसार में इतने माहिर होते हैं कि उनकी साहित्यिक प्रतिभा से अधिक हमें उनके स्वयं को प्रचारित करने की प्रतिभा का कायल होना पड़ेगा।  लेकिन एक और तरह के व्यक्ति होते हैं दुर्लभ किस्म के। ये शख्स  केवल अपने काम से मतलब रखते हैं। साहित्य सृजन हो या पत्रकारिता या स्तंभ लेखन या लेखन संबंधी कोई अन्य कार्य भी क्यों न हो, बस लगे रहते हैं - कृष्ण के द्वारा भगवदगीता में कहे गए कर्म के सिद्धांत को अपनाते हुए, फल की आशा न करते हुए, पूरी सहनशीलता, शांति और प्रतिबद्धता के साथ अपना काम करते हुए।

 

      आज मैं अपने ऐसे ही  मित्र के विषय में आपको बताने जा रहा हूँ।  इस तरह उनके बारे में लिखना भी उन्हें  भाता नहीं, क्योंकि वह कर्मयोगी है, कलम का श्रमिक है और कारीगर है कागजों  का। यह मेरी ही जिद है कि उस दोस्त रूपी, छोटे भाई के बारे में लिखूँ। आज जबकि ठीक से ककहरा भी न लिख पाने वाले लोग स्वयं को साहित्यकार, रचनाकार, कलमकार  और पता नहीं क्या-क्या कार कहने में जरा भी संकोच नहीं करते, ऐसे में भाई का जिक्र ज़रूरी लगता है मुझे।

 

      बात शुरू करता हूं सन 1986 से।  मुझसे बालको में मिलने कोरबा से एक नवजवान आया। बी. ए . हिंदी का छात्र, साथ ही स्वतंत्र  पत्रकारिता करता हुआ। साहित्य के प्रति समर्पण की भावना लिए कहानियां, कविताएं, लेख लिखा करता था।  जो छपती भी थीं। मैं एक लेखक के रूप में मिला उस अति शालीन, सुसंस्कृत  और युवा साथी से। पहली ही मुलाक़ात में उसका “भैया” संबोधन से इस तरह बांध लिया कि आज भी मेरे लिए उसके मुंह से वही संबोधन निकलता है, जिसे  सुनकर बहुत खुशी होती है।  उसका अपनापन इतने सालों बाद भी कम नहीं हुआ।  हम मिलते रहे, लिखते रहे बिना किसी गुटबाजी के।  उस समय काफी चलती थी गुटबाजी कवियों और लेखकों में। हम लोग  अपने काम से काम रखते ।  हफ्ता दस दिन में मिलना, कुछ सार्थक चर्चा।  उसने अपने युवा मित्रों की एक मंडली बनाई, जो साहित्य के छात्र थे उसी की तरह लेखन का काम भी करते थे।  यह अलग बात है कि जितना सफल मेरा मित्र हुआ, वे उतने न हो सके।  बाद में सभी अपने अपने काम धंधे में लग गए।  मेरे मित्र छोटे भाई ने जो कलम का हाथ थामा आज उसकी उम्र 53 वर्ष की हो गई है। कलम  का हाथ थामे हुये ही नई मंज़िलें पा रहा है, नए शिखर छू रहा है। ईश्वर उसे दीर्घायु दे,  और भी अनेक सफलताएं उसकी झोली में डाले यही कामना है।

 

      यह जो 1987 का नव लेखक था, आज पत्रकारिता का पर्याय बन चुका है।  दैनिक, मासिक, पाक्षिक पत्रों, वेब पोर्टल , दूरदर्शन,दिल्ली  प्रेस की पत्रिकाओ  आदि में अपनी पत्रकारिता के जौहर पर दिखाता ही है, साथ ही व्यंग्य स्तम्भ लेखन,  धारावाहिक उपन्यास लेखन,  सामयिक विषयों पर गहन चिंतन के साथ संपादकीय  और साथ साथ  कविताएं, कहानियां भी उसी प्रभावोत्पादकता के साथ लिखता है. जिस प्रभावी ढंग से पत्रकारिता करता है।  इस व्यक्ति में जो सहनशीलता है,  सामंजस्य का भाव है, क्षमा गुण है - वह श्लाघनीय है।  उन सब के पीछे मित्र का "गांधी दर्शन" पर अटूट  विश्वास का होना है। गांधीश्वर  पत्रिका का संपादक है ही, साथ ही पिछले दस वर्षों से अधिक समय से कोरबा से प्रकाशित लोकप्रिय  दैनिक लोकसदन का  सफल, सक्षम  और योग्य संपादक भी है। जी हाँ... मेरे छोटा भाई समान इस मित्र का नाम है सुरेशचंद्र रोहरा। अब तक इनकी पंद्रह से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हुआ, जिनमें उपन्यास, कविता, व्यंग्य, गांधी दर्शन आदि शामिल हैं। कोई विधा ऐसी नहीं जिनमें इन्होंने कलम न चलाई हो।  यही नहीं युवावस्था में (वैसे भी आज भी युवा हैं मेरी तुलना में) साहित्य साधना समिति का गठन कर सामयिक साहित्य चर्चाएं, संगोष्ठियाँ,  संध्या पर नुक्कड़ नाटक (दूसरी संस्थाओं से मंगाकर)  आयोजन करते रहे।  साहित्यिक माहौल का निर्माण उस समय भाई के कारण ही कहूंगा कोरबा,छत्तीसगढ़  में हुआ था।  उस समय के वरिष्ठ रचनाकार केवल खेमों में बटे हुए थे।  केवल कविताएं, गजलें, मुक्तक, रुबाइयां लिखकर गोष्ठियों  में सुनाते अलग अलग संस्था समितियों की बैठकों में।   इन रचनाकारों में भाई  सुरेश शामिल न थे, क्योंकि मेरा भी अनुभव रहा इन वरिष्ठों के साथ कि कविता के अलावा अन्य किसी भी विधा में लिखने वाले इनके लिए वर्जित हैं, अछूत हैं पता नहीं क्यों। मैं भी भाई सुरेश रोहरा की तरह इन समितियों से दूर था।  

 

  मैं 1990 में बालको से आ गया, लेकिन हमेशा संपर्क में रहने वाले भाई सुरेश रोहरा अपनी गतिविधियों से लगातार अवगत कराता। अपनी प्रकाशित पुस्तकें, रचनाएँ भेजता, जिस पर हम चर्चा करते। बीच में एक बार वह विशाखापटनम भी आया, प्रत्यक्ष मुलाकात में लंबी चर्चा चली। मतलब उनकी हर खबर से मैं हमेशा वाकिफ रहा।  

 

      इस बीच  एक बात दिल में बुरी तरह चुभी  कि  34 वर्षों से लेखन से जुड़े भाई सुरेश चंद्र रोहरा जी का कोरबा के तथाकथित साहित्यकारों की सूची में नाम लेने से कुछ बुजुर्ग साहित्यकार मे घबराहट हैं या उनके कृतित्व को नकार रहे हैं।   यह सब लिखने के पीछे भी एक कारण है  मैं कुछ ऐसे कवियों को जानता हूं  जिनको शब्दों के सही अर्थ और वर्तनी तक का पता नहीं, वे इन बुजुर्ग साहित्यकारों की नजर में महान कवि हैं। तू मुझे सराह , मैं तेरी तारीफ करूंगा  वाली बात हो गई।

 

  मेरा कथन है कि जिस कोरबा के साहित्य के इतिहास की चर्चा  जोरों पर है,  काम भी किया जा रहा है, उसमें चंद रचनाएं  करने वालों का जिक्र है।  कई ऐसे हैं जिनकी कोई भी पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई।  कई ऐसे थे जिन्होंने आदर्शवाद केवल कविताओं तक सीमित रखे हुए थे  वास्तविक जीवन में ऐसे आदर्श उनके लिए नहीं रहे।   जिस व्यक्ति ने इतनी सारी पुस्तकें, इतनी सारी सभी विधाओं की सामग्री लिखी,  बहुत सारा साहित्य वह भी स्तरीय  लिखा ऐसे व्यक्ति का जिक्र न हो पाना हमारी सोच की संकीर्ण मानसिकता को उजागर करती है।  मेरा तो मानना है  यदि कोरबा का साहित्य के इतिहास लिखा जाएगा  तो भाई सुरेश रोहरा का नाम एक महत्वपूर्ण नाम के रूप में लिखा जाना ना केवल अनिवार्य है बल्कि समय की मांग है।

( डाक्टर टी. महादेव राव  हिंदी और तेलुगु के ख्यात लेखक है)


 

 




ऐतिहासिक कथा की मौलिकता

ऐतिहासिक कथा काल्पनिक शैलियों का सबसे आम है तकनीकी तौर पर, ऐतिहासिक कथाएं अतीत में किसी भी कहानी को सेट करती हैं, जिसमें समय की सच्ची विशेषताएं शामिल होती हैं, जिसमें काल्पनिक पात्रों या घटनाएं भी शामिल हैं। सदियों और संस्कृतियों में इस तरह के कार्यों के अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं। इलियाड और ओडिसी के रूप में, जहां तक ​​प्राचीन यूनानियों (हालांकि वे भी विलक्षण तत्व होते हैं) का इतिहास एकाकी करने का प्रयास करता है।

 

सच्ची ऐतिहासिक कथा अपने संपूर्ण साजिश तत्वों में यथार्थवाद पर निर्भर करती है। ऐतिहासिक कथा के लेखक एक विश्वसनीय ऐतिहासिक दुनिया का निर्माण करने के लिए सावधान रहना चाहिए जिसमें सेटिंग, पात्रों, और वस्तुएं उनके युग में अपेक्षित होगा। अक्षरों को विश्वसनीय अवधि वार्ता के साथ बोलना चाहिए और परिवहन के उपयुक्त साधनों के साथ यात्रा करना चाहिए। आपको 1600 के दशक में एक चरित्र नहीं मिलना चाहिए, उदाहरण के लिए, "यह बहुत अच्छा था!" या सड़क पर साइकिल चलाने के लिए ऐतिहासिक कथा में, सभी संघर्षों, साजिश की घटनाओं, और विषयों को ऐतिहासिक रूप से संभवतः दुनिया के भीतर होना चाहिए जो लेखक ने चयनित किया है।

 

समकालीन समाज और राजनीति को प्रभावित करने के लिए ऐतिहासिक कथा का उपयोग कभी-कभी किया जा सकता है राइटर्स एक विशेष ऐतिहासिक घटना पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं क्योंकि उनके बीच और उनके अपने समय के बीच के संबंधों को देखते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बीच में देशभक्ति को प्रेरित करने के लिए घटनाओं को लेकर क्रांतिकारी युद्ध का नेतृत्व किया। नाटक या साहस के लिए सामग्री प्रदान करने के लिए अन्य लेखक एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि चुन सकते हैं फिर भी दूसरों को एक पिछली त्रासदी में प्रासंगिक विषय या सबक देख सकते हैं।

 

युद्धकालीन, विशेष रूप से ऐतिहासिक कथा के लेखकों के लिए एक लोकप्रिय विषय है पाठकों को किसी भी युद्ध में कल्पना सेट करने के लिए दूर देखने की ज़रूरत नहीं है। हालांकि काल्पनिक, ऐतिहासिक कथा किताबें जानकारी का उत्कृष्ट स्रोत हो सकती हैं। प्रत्येक ऐतिहासिक उपन्यास पुस्तक के साथ, पाठकों ने अतीत के बारे में कुछ और सीखते हैं और इतिहास, राजनीति, संस्कृति और मानव अनुभव की उनकी समझ को व्यापक करते हैं।

 

आप के लिए दुनियां में सब  कुछ संभव है !

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन में एक समानता थी साथियों ये दोनों ही अपने आप को निरंतर सार्थक विचारो से ऊर्जावान बनाए रखते थे ।याद रखना आप दृढ़ निश्चय वाले व्यक्ति कभी भी हार नहीं मानते हैं ,जब तक दोस्त हम प्रयत्न करना बंद नहीं कर देते ,तब तक कोई भी हार अंतिम हार नहीं होती है।हमें भी अपने  मार्ग पर निरंतर चलते रहना चाहिए,आप भी आज ही उमंग और कल्पना की उड़ान की सहायता से जीवन में ऊंचे लक्ष्यों को अपने मस्तिष्क में संजोइए।

देखो साथियों दुनिया में सब कुछ सम्भव है, और आख़िर तक हार न मानने वाले एक दिन जीत ही जाते हैं।

आप ही देखो साथियों जो बाइडेन 7 नवंबर 1972 को पहली बार अमेरिकी सीनेट के लिए चुने गए थे।आज 48 साल बाद नवंबर 2020 में  पहली बार राष्ट्रपति बने। अब जब बाइडेन राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए हैं तब उनकी उम्र 78 वर्ष है, वो अमेरिकी इतिहास के सबसे जवान सीनेटर बने थे और सबसे बूढ़े राष्ट्रपति बने हैं। वैसे दोस्त आम भारतीयों को इससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता कि अमेरिका का राष्ट्रपति कोई डेमोक्रेट बनता है या रिपब्लिकन लेकिन इस बात से ज़रूर फ़र्क़ पड़ता है कि दुनिया में कुछ भी संभव है या कहा जाए कि सब कुछ संभव है। ट्रम्प पिछली बार राष्ट्रपति बनने के सिर्फ़ एक साल पहले राजनीति में आए थे और बाइडेन पिछले 48 साल से राजनीति में हैं लेकिन राष्ट्रपति बने वो अब जाकर।इस बीच एक और बात जो जानने योग्य है वो ये कि बाइडेन का बेटा राष्ट्रपति पद का तगड़ा उम्मीदवार माना जाने लगा था, लेकिन बदकिस्मती से 46 वर्ष की उम्र में उसकी मौत हो गयी और अपने बेटे का अधूरा सपना पूरा करने के लिए जो बाइडेन अब जाकर देश के 46 वें राष्ट्रपति बन रहे हैं।तो कुल मिलाकर ऐसा है कि दुनिया में सब कुछ संभव है, और आख़िर तक हार न मानने वाले एक दिन जीत ही जाते हैं।याद रखना आप दोस्त आप के ही भीतर सभी शक्तियां निहित है,महान से महानतम बनने के बीज आपके अंत:करण में मौजूद हैं, लेकिन जब तक आप इन शक्तियों को विकसित नहीं करेंगे,आपको जीवन में सफलता हासिल कैसे होगी?याद रखना आप बीज से अंकुर तभी फूटता है ,जब वह फटता है और बाद में यहीं अंकुर एक महा वृक्ष बन जाता है।याद रखना आप जो भी व्यक्ति अपने शक्तियों को पहचान लेता है, वही सफलता के शिखर पर पहुंचता है,बाकी लोग तो केवल समय पुरा करने के लिए इस धरती पर आते हैं और गुमनामी की मौत मरकर भुला दिए जाते हैं।आप प्रभु  के संतान ,अमर आंनद के हिस्सेदार ,पवित्र और पूर्ण हो,इसीलिए खुद के अंदर के शक्तियों का महा वृक्ष को विकसित करने के लिए निरंतर सार्थक प्रयास करते रहिए ,देखना आप भी एक दिन जरूर सफल होंगे।।

Sunday, November 8, 2020

दिवाली मनाते है









'हम शिक्षक नित ही अज्ञानता का अंधकार मिटाते है,

ज्ञान दीप के प्रकाश से हम तो रोज दिवाली मनाते है।

कब,कहाँ,क्यो,कैसे ? यह सब बच्चों को समझाते है।

क्या भला,क्या बुरा ? यह सब भी हम सिखलाते है।

सरस्वती के पावन मन्दिर मे नया सबक सिखाते है,

नवाचार का कर प्रयोग छात्रों को निपुण बनाते है।

कबड्डी,खो-खो और दौड़ प्रतियोगिता हम करवाते है,

पाठ्यसहगामी क्रियाओं का भी हम महत्व बताते है।

बच्चो का कर चहुँमुखी विकास हम फूले नही समाते है।

हम शिक्षक शिक्षा की लौ से रोज दिवाली मनाते है।'

 

रचनाकार:-

अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'




 

 








बाइडेन के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने पर भारत पर क्या असर होगा?

 साथियों  बाइडेन ने अमेरिका का राष्‍ट्रपति चुनाव जीत लिए है ,ये  उम्रदराज अमेरिकी राष्ट्रपति बनने तक का शानदार सफर तय करके शनिवार को इतिहास रच दिए हैं।  जैसा कि हम सभी जानते हैं कि  ट्रंप को हराकर बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बन गए हैं। आपको बता दें कि  77 साल 11 महीने के  बाइडेन लंबे समय से ही राजनीति कर रहे हैं जो कि ओबामा  सरकार के दौरान बाइडेन ही उपराष्ट्रपति थे. मतलब  दोस्त बाइडेन राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं।

अमेरिका राजनीति में करीब पांच दशकों से सक्रिय जो बाइडेन ने सबसे युवा सीनेटर से लेकर सबसे उम्रदराज अमेरिकी राष्ट्रपति बनने तक का शानदार सफर तय करके इतिहास रच दिए हैं। आपको बता दें कि 77 वर्षीय बाइडेन छह बार सीनेटर रहे और अब अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को हराकर देश के राष्ट्रपति बन रहे हैं. ऐसा नहीं है कि यह कामयाबी उन्होंने अपने पहले प्रयास में पा लिया  है. बाइडेन को वर्ष 1988 और 2008 में राष्ट्रपति पद की दौड में नाकामी  भी मिली थी ।

साथियों बाइडेन  को  अमेरिका के राष्ट्रपति बनने से  पूरी दुनिया का नजर कहीं ना कहीं भारत की तरफ भी है , मुझे लगता है कि भारत अमेरिका रक्षा संबंध की बात किया जाए तो बड़े बदलाव की संभावना नजर अभी तो नहीं आ रहा है, जैसे पहले संयुक्त युद्धअभ्यास और सैन्य समझौते होते रहे हैं उसी तरह आगे भी होंगे। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव भारत और अमेरिका के आर्थिक संबंध और बेहतर होने की उम्मीदें हैं जिससे कि दोनों देशों के बीच और अधिक कारोबार बढ़ सकता है ।इन सभी में सबसे अच्छी बात मुझे यह लग रही है कि अब हम भारतीयों को अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन के निर्वाचित हो जाने से ज्यादा ग्रीन कार्ड मिल पाएगा यानी ज्यादा भारतीय अमेरिका में बस सकते हैं। इसके साथ ही साथियों आईटी सेक्टर की कंपनियों को बाइडेन के आने का फायदा जरूर होगा।

साथियों जैसा कि हम जानते हैं कि राष्ट्रपति बनने का सपना संजोये डेलावेयर से आने वाले दिग्गज नेता बाइडेन को सबसे बडी सफलता उस समय मिली जब वह दक्षिण कैरोलीना की डेमोक्रेटिक पार्टी प्राइमरी में 29 फरवरी को अपने सभी प्रतिद्वंद्वी को पछाडकर राष्ट्रपति पद की दौड में जगह बनाने में कामयाब रहे. वाशिंगटन में पांच दशक गुजारने वाले बाइडेन अमेरिकी जनता के लिए एक जाना-पहचाना चेहरा थे क्योंकि वह दो बार तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उप राष्ट्रपति रहे है।

 74 वर्षीय ट्रंप को हराकर व्हाइट हाउस में जगह पाने वाले बाइडेन अमेरिकी इतिहास में अब तक के सबसे अधिक उम्र के राष्ट्रपति बन गए हैं. डेलावेयर राज्य में लगभग तीन दशकों तक सीनेटर रहने और ओबामा शासन के दौरान आठ वर्षों के अपने कार्यकाल में वह हमेशा ही भारत-अमेरिकी संबंधों को मजबूत करने के हिमायती रहे. बाइडेन ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के पारित होने में भी अहम भूमिका निभायी थी.भारतीय राजनेताओं से मजबूत संबंध रखने वाले बाइडेन के दायरे में काफी संख्या में भारतीय-अमेरिकी भी हैं. चुनाव के लिए कोष जुटाने के एक अभियान के दौरान जुलाई में बाइडेन ने कहा था कि भारत-अमेरिका 'प्राकृतिक साझेदार' हैं। 

 उन्होंने बतौर उप राष्ट्रपति अपने आठ साल के कार्यकाल को याद करते हुए भारत से संबंधों को और मजबूत किए जाने का जिक्र भी किए थे और यह भी कहे थे कि अगर वह राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो भारत-अमेरिका के बीच रिश्ते उनकी प्राथमिकता रहेगी. पेनसिल्वेनिया में वर्ष 1942 में जन्मे जो रॉबिनेट बाइडेन जूनियर ने डेलावेयर विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की और बाद में वर्ष 1968 में कानून की डिग्री हासिल की. बाइडेन डेलावेयर में सबसे पहले 1972 में सीनेटर चुने गए और उन्होंने छह बार इस पद पर कब्जा जमाया. 29 वर्ष की आयु में सीनेटर बनने वाले बाइडेन अब तक सबसे कम उम्र में सीनेटर बनने वाले नेता हैं।

आपको बता दें की मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब तक हार नहीं मानी है। बाइडेन की जीत की घोषणा पर करीब 5 घंटे चुप्पी साधे रहने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किए और खुद के जीतने का दावा किए है। उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। ट्रंप ने ट्वीट किया कि पर्यवेक्षकों को काउंटिंग रूम में घुसने की इजाजत नहीं दी गई। यह चुनाव मैं ही जीता हूं और मुझे 7 करोड़ 10 लाख वैध वोट मिले हैं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कई गलत चीजें हुई हैं, जिन्हें पर्यवेक्षकों को नहीं देखने दिया गया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।

वैसे दोस्त डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद भी 128 साल पुराना रेकॉर्ड तोड़कर विदाई ले रहे हैं। वे अमेरिका के ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्हें जनता ने लगातार दूसरी बार पॉपुलर वोट में हरा दिया है। ट्रंप से पहले बैंजामिन हैरिसन के साथ भी ऐसा वाकया हो चुका है। रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बेंजामिन 1888 में हुए चुनाव के दौरान पॉपुलर वोट में हारने के बावजूद अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे। उन्होंने 1892 का राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ा, लेकिन पॉपुलर वोट में ग्रोवर क्लेवलेंड के हाथों हार का सामना करना पड़ा।   अब आगे  देखते हैं कि अमेरिका में बाइडेन के राष्ट्रपति बन जाने से भारत के रिश्ते में कितना मजबूती और परिवर्तन आती है।

 

Saturday, November 7, 2020

मानव स्वास्थ्य के लिए काल है वायु प्रदूषण 

 

एक सूचकांक से पता चला है कि वायु प्रदूषण पृथ्वी पर हर पुरुष, महिला और बच्चे की आयु संभाविता यानी लाइफ एक्सपेक्टेंसी को लगभग दो साल घटा देता है. सूचकांक का दावा है कि वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। 

 

यह दावा एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) द्वारा जारी किए ताजा आंकड़ों में किया गया है. एक्यूएलआई एक ऐसा सूचकांक है जो जीवाश्म ईंधन के जलाए जाने से निकलने वाले पार्टिकुलेट वायु प्रदूषण को मानव स्वास्थ्य पर उसके असर में बदल देता है. सूचकांक का कहना है कि एक तरफ तो दुनिया कोविड-19 महामारी पर काबू पाने के लिए टीके की खोज में लगी हुई है लेकिन वहीं दूसरी तरफ वायु प्रदूषण की वजह से पूरी दुनिया में करोड़ों लोग का जीवन और छोटा और बीमार होता चला जा रहा है। 

 

एक्यूएलआई ने पाया कि चीन में पार्टिकुलेट मैटर में काफी कमी आने के बावजूद, पिछले दो दशकों से वायु प्रदूषण कुल मिला कर एक ही स्तर पर स्थिर है. भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में वायु प्रदूषण की स्थिति इतना गंभीर है कि कुछ इलाकों में इसकी वजह से लोगों की औसत जीवन अवधि एक दशक तक घटती जा रही है. शोधकर्ताओं ने कहा है कि कई जगहों पर लोग जिस हवा में सांस लेते हैं उसकी गुणवत्ता से मानव स्वास्थ्य को कोविड-19 से कहीं ज्यादा बड़ा खतरा है। 

 

एक्यूएलआई की रचना करने वाले माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा, "कोरोना वायरस से गंभीर खतरा है और इस पर जो ध्यान दिया जा रहा है वो दिया ही जाना चाहिए, लेकिन अगर थोड़ा ध्यान वायु प्रदूषण की गंभीरता पर भी दे दिया जाए तो करोड़ों लोगों और लंबा और स्वस्थ जीवन जी पाएंगे। 

 

दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी सिर्फ उन चार दक्षिण एशियाई देशों में रहती है जो सबसे ज्यादा प्रदूषित देशों में से हैं - बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान. एक्यूएलआई ने पाया कि इन देशों में रहने वालों की जीवन अवधि औसतन पांच साल तक घट जाएगी, क्योंकि ये ऐसे हालात में रह रहे हैं जिनमें 20 साल पहले के मुकाबले प्रदूषण का स्तर अब 44 प्रतिशत ज्यादा है। 

 

एक्यूएलआई ने कहा कि पूरे दक्षिण-पूर्वी एशिया में पार्टिकुलेट प्रदूषण भी एक "गंभीर चिंता" है, क्योंकि इन इलाकों में जंगलों और खेतों में लगी आग ट्रैफिक और ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाले धुंए के साथ मिल कर हवा को जहरीला बना देती है. इस इलाके के 65 करोड़ लोगों में करीब 89 प्रतिशत लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां वायु प्रदूषण स्वास्थ्य संगठन के बताए हुए दिशा-निर्देशों से ज्यादा है। 

 

एक्यूएलआई  ने कहा कि अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देश वायु की गुणवत्ता को सुधारने में सफल रहे हैं लेकिन फिर भी प्रदूषण दुनिया भर में आयु संभाविता से औसत दो साल घटा ही रहा है. वायु गुणवत्ता का सबसे खराब स्तर बांग्लादेश में मिला और अगर प्रदूषण पर काबू नहीं पाया गया तो भारत के उत्तरी राज्यों में रहने वाले लगभग 25 करोड़ लोग अपने जीवन के औसत आठ साल गंवा देंगे। 

 

कई अध्ययनों ने यह दिखाया गया है कि वायु प्रदूषण का सामना करना कोविड-19 के जोखिम के कारणों में से भी है और ग्रीनस्टोन ने सरकारों से अपील की है कि वे महामारी के बाद वायु गुणवत्ता को प्राथमिकता दें. शिकागो विश्विद्यालय के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट में काम करने वाले ग्रीनस्टोन ने कहा, "हाथों में एक इंजेक्शन ले लेने से वायु प्रदूषण कम नहीं होगा. इसका समाधान मजबूत जन नीतियों में है।

 

Saturday, October 24, 2020

अम्बे माँ का जगराता

          हमेशा की तरह हाथ में कपड़ो से भरा हुआ पुराना बैग लिए राजू के पड़ोस की सरोज अम्मा उसके पास से जा रही थी।सरोज रोज के मुकाबले आज बहुत ही खुश नजर आ रही थी।आमतौर पर सरोज के चेहरे पर हमेशा एक मंद मुस्कान दिखाई देती थी।लेकिन आज उनके चेहरे पर मुस्कान देखकर राजू ने उनसे पूछ ही लिया - अम्मा आज तो बहुत खुश नजर आ रही हो।क्या बात है?

         सरोज हापुड़ के एक सरकारी मकान में काफी समय से अकेले रहती थी।सरोज के पति का जब स्वर्गवास हुआ तब वो एक सरकारी जॉब पर थे।उनका बेटा भी मुजफ्फरनगर में एक बहुत ही अच्छे सरकारी पद पर कार्यरत है और काफी संपन्न है।लेकिन राजू ने देखा की उनका बेटा काफी समय से उनसे मिलने आया नहीं है और ना ही उसने सरोज को कभी अपने बेटे के पास जाते हुए देखा।

           लेकिन सरोज को देखकर कभी भी नहीं लगता कि सरोज किसी भी वजह से परेशान है।चाहे वह आज इतनी खुश हो या ना हो लेकिन उनके चेहरे पर एक मीठी मुस्कान हमेशा रहती है।अक्सर पड़ोस में चर्चाएं रहती हैं कि इतनी अच्छी सैलरी पर इनका बेटा कार्यरत है।लेकिन सरोज कुछ ना कुछ काम करते हुए अपने आपको हमेशा व्यस्त रखती है।कभी आसपास के दर्जियों के कमीशन बेस पर सूट सलवार या लेडीज कपड़े सिल देना या छोटे बच्चों को ट्यूशन दे देना।

           हमेशा सरोज को यही कहते पाया है।बेटा पैसे तो बहुत भेजता रहता है।लेकिन मेरा समय ही नहीं कटता है।इसलिए कुछ ना कुछ करती रहती हूँ।जिससे समय कटता रहे।पति के देहांत के बाद लगभग 4 वर्ष से सरोज की यही दिनचर्या है।बेटा अपने सरकारी कामों में इतना व्यस्त रहता है कि कभी आ ही नहीं पाता।लेकिन सरोज के माथे पर कभी भी इस बात की शिकन नहीं आती कि उसका बेटा उससे मिलने नहीं आ पाता।

          बस उसे तो इसी बात की खुशी है कि वह रोज अपने बेटे और बहु से फोन पर बात कर लेती है। लेकिन आज सरोज के चेहरे पर एक अलग ही खुशी दिख रही है।राजू का सवाल सुनकर सरोज ने राजू को अपने पास बैठा लिया और बड़े ही प्यार से उसे बताया।कल रात पोती जया का फोन आया था।उसने बताया पापा आखरी नवरात्रि वाले दिन जगराता करा रहे हैं।

          उसने कहाँ अम्मा अब हम आपसे काफी दिनों बाद मिल पाएंगे। जब हम लोग आपको छोड़कर मुजफ्फरनगर आए थे।तब मैं 6 साल की थी।आज पूरे 10 साल की हो गई हूँ।अक्सर आपके उसी लाड प्यार की याद आती है।आप नवरात्रि के बाद जगराते वाले दिन आओगी तो मैं आपको अपने पास से जाने नहीं दूंगी। यह बताते हुए सरोज की आंखों में आंसू आ गए।राजू बेटा, मैं बहुत भाग्यवान हूं जो मुझे ऐसे बेटा-बहू और पोता-पोती मिले हैं।जो मुझसे रोज बात करते हैं।

          खैर धीरे-धीरे नवरात्रि का समय बीता और आखरी नवरात्रा आ ही गया।नवरात्रि खत्म होने के बाद भी अम्मा को घर पर ही देख कर राजू ने पूछ लिया।अम्मा क्या हुआ आप तो बेटे के पास जाने वाली थी।4 साल से अपने अंदर सारे दुखों को समेटे हुए चेहरे पर हमेशा मुस्कान लिए हुए सरोज से अब रहा नहीं गया और उसकी आंखें छलक आई और सरोज जोर-जोर से रोने लगी।

          राजू समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या हुआ है।हमेशा चेहरे पर मुस्कान लिए रहने वाली सरोज अचानक क्यों रोने लगी।उसने अम्मा को रसोई से पानी लाकर दिया और पानी पिलाने के बाद पूछा , अम्मा क्या बात हो गई? बेटा - बहू सब ठीक है ना,कुछ अपशकुन तो नहीं हुआ है। 4 साल अपने अंदर दुख समेटे सरोज ने आखिर राजू को बताना शुरू किया।

           बेटा जब से मेरे बेटा-बहू और पोता-पोती मुजफ्फरनगर गए हैं।मुझे कोई भी फोन नहीं करता और मैं अपने घर का मान-सम्मान पड़ोस में बनाये रखने के लिए हमेशा झूठ बोलती रहती हूँ।कि मुझे रोज सबका फोन आता है।तब राजू ने अम्मा से पूछा अम्मा फिर आपको कहाँ से पता चला कि आपका बेटा जगराता करवाने वाला है।

          सरोज ने कहाँ-बेटा मुजफ्फरनगर जहाँ मेरे बेटा रहता हैं वहीं पड़ोस में मेरे जानने वाले रहते हैं। बस वही लोग मुझे उनके बारे में बताते रहते हैं।बेटे ने जगराता करा लिया और अपनी माँ को बुलाया भी नही।लेकिन मुझे इस बात की तसल्ली है कि मेरे बेटा -बहु सब कुशलता से है।माँ जगदंबे से यही अरदास करती हूँ वो उन्हें हमेशा खुश रखे।

          सरोज ने राजू को सब बता तो दिया लेकिन उन्होंने राजू को कसम दी।कि वह आज की सारी बातों को किसी को नहीं बतायेगा।राजू पूरा घटनाक्रम सुनकर अपने घर की तरफ चल पड़ा।इस घटना के काफी दिनों बाद सरोज पहले की तरह ही हमेशा मुस्कुराते हुए दिखती है।लेकिन अब सरोज की मुस्कुराहट के पीछे छुपे दर्द को वह साफ पहचान लेता है।

आज समाज के भीतर पनप रहे रावण को जलाने की जरूरत 

आज हर तरफ फैले भ्रष्टाचार और अन्याय रूपी अंधकार को देखकर मन में हमेशा उस उजाले को पाने की चाह रहती है, जो इस अंधकार को मिटाए। कहीं से भी कोई आस न मिलने के बाद हम अपनी संस्कृति के ही पन्नों को पलट आगे बढ़ने की उम्मीद करते हैं।

 

रावण को हर वर्ष जलाना असल में यह बताता है कि हिंदू समाज आज भी गलत का प्रतिरोधी है। वह आज भी और प्रति दिन अन्याय के विरुद्ध है। रावण को हर वर्ष जलाना अन्याय पर न्यायवादी जीत का प्रतीक है, कि जब जब पृथ्वी पर अन्याय होगा हिन्दू संस्कृति  उसके विरुद्ध रहेगी।

 

आतंकवाद, गंदगी, भ्रष्टाचार और महंगाई आदि बहुमुखी रावण है। आज के समय में ये सब रावण के प्रतीक हैं। सबने रामायण को किसी न किसी रुप में सुना, देखा और पढ़ा ही होगा। रामायण यह सीख देती है कि चाहे असत्य और बुरी ताकतें कितनी भी प्रबल हो जाएं, पर अच्छाई के सामने उनका वजूद उनका अस्तित्व नहीं टिकेगा। अन्याय की इस मार से मानव ही नहीं भगवान भी पीड़ित हो चुके हैं लेकिन सच और अच्छाई ने हमेशा सही व्यक्ति का साथ दिया है ।

 

दशहरा का पर्व दस प्रकार के पाप : काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी को हरता है। दशहरे का पर्व इन्हीं पापों के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। राम और रावण की कथा तो हम सब जानते ही हैं, जिसमें राम को भगवान विष्णु का एक अवतार बताया गया है। वे चाहते तो अपनी शक्तियों से सीता को छुड़ा सकते थे, लेकिन मानव जाति को यह पाठ पढ़ाने के लिए कि - "हमेशा बुराई अच्छाई से नीचे रहती है और चाहे अंधेरा कितना भी घना क्यूं न हो एक दिन मिट ही जाता है” उन्होंने ऐसा नहीं किया।

 

यह बुराई केवल स्त्री हरण से जुड़ी नहीं है। आज तो हजारों स्त्रियों का हरण होता है, कुछ लोग एक दलित को जिंदा जला देते हैं, बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं, देश में शराबखोरी और ड्रग्स की लत से युवा घिरे हुए हैं। वे युवा जिन्हें 21 वीं सदी में भारत को सिरमौर बनाने की जिम्मेदारी उठाने वाला कहा जाता है वे ड्रग्स की लत से ग्रस्त हैं। 

   

हमने रावण को मारकर दशहरे के अंधकार में उत्साह का उजाला तो फैला दिया, लेकिन क्या हम इन बुराईयों को दूर कर पाए हैं? दशहरा उत्सव अपने उद्देश्य से भटक गया है। अब दशहरे पर केवल शोर होता है और कुछ घंटों का उत्साह मगर लोग आज भी उन बुराईयों के बीच जीते हैं। इस पर्व पर लोगों से संकल्प करवाने वाले और अपनी कोई भी एक बुराई छोड़ने की अपील करने वाले भी इस पर्व के अंधकार में खो जाते हैं। रावण का पुतला सभी को उत्साहित करता है लेकिन बुराईयों से घिरे मानव को इन बुराईयों से मुक्ति नहीं मिल पाती है। 

 

धन पाने की लालसा में व्यक्ति लगा रहता है और बुराईयों के जाल में उलझ जाता है। इस पर्व में भी रावण के पुतले के दहन के साथ ही समाज उसकी बुराईयों को देखता है मगर उसकी अच्छाईयों को भूल जाता। इस पर्व पर लोगों से संकल्प करवाने वाले और अपनी कोई भी एक बुराई छोड़ने की अपील करने वाले भी इस पर्व के अंधकार में खो जाते हैं। रावण का पुतला सभी को उत्साहित करता है, लेकिन बुराईयों से घिरे मानव को इन बुराईयों से मुक्ति नहीं मिल पाती है।

             

राम ने मानव योनि में जन्म लिया और एक आदर्श प्रस्तुत किया। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों के रूप में लोग बुरी ताकतों को जलाने का प्रण लेते हैं  दशहरा आज भी लोगों के दिलों में भक्तिभाव को ज्वलंत कर रहा है। रावण विजयदशमी को देश के हर हिस्से में जलाया जाता है।

 

   साथियों वोट  देने चलो 

साथियों वोट देकर बनो लोकतंत्र का पहरेदार

वोट से करो बदलाव नेता के बदलो हाव - भाव 

आप साथी सही उम्मीदवार का करना चुनाव

भूलकर भी बेईमानों को मत देना आप भाव 

देखो साथी आपका वोट है आपकी ताकत 

हम सभी का लोकतंत्र  में यही तो ताकत है 

वोटर आईडी संग लेते जाना सुबह में ही आप

ध्यान रहे साथियों उस इंसान को देना वोट

जो हो सच्चा ईमानदार लोकतंत्र की प्रहरी हो

मतदान के दिन घर में ही आप ना रह जाना 

वरना पांच साल पड़ेगा सहना साथियों

कुछ लोग तो लोकतंत्र  का आनंद उठाते हैं

फिर ऐसे लोग वोट क्यों नहीं दे आते ?

याद रखना आप वोट से आएगा बदलाव

समाज सुधरेगा, कम होगा तनाव साथी

लोकतंत्र की लाज बचाने वालों की पहचान करो

घर से निकलें बाहर आए मिलकर मतदान करो

अगर कुछ ना समझ में आए तो नोटा ही दबा देना

 लेकिन लोकतंत्र की मजबूती के लिए वोट जरूर करें

अधिकारों की खातिर हम सभी को लड़ना होगा

चाटुकारिता व लालच से दूर सदा रहना होगा

साथियों हमें चोर-उचक्कों से क्या डरना ?

आओ हम सभी  ऐलान करें घर से निकले

मिलकर मतदान करके लोकतंत्र को मजबूत करें।।

 

Friday, October 9, 2020

रामविलास पासवान का निधन

नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री ने केंद्रीय मंत्री के निधन पर गहरा शोक प्रकट करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि उनके निधन से देश में ऐसा शून्य पैदा हुआ है जो शायद कभी नहीं भरेगा। पासवान का आज 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनके बेटे  ने ट्वीट के जरिए यह जानकारी दी। उनके निधन पर मोदी ने कहा, ‘‘दुख बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास। हमारे देश में ऐसा शून्य पैदा हुआ है जो शायद कभी नहीं भरेगा’’ उन्होंने कहा, ‘‘रामविलास पासवान जी का निधन मेरी निजी क्षति है। मैंने अपना एक दोस्त, बहुमूल्य सहयोगी और एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया है जो हर गरीब इंसान को सम्मान का जीवन सुनिश्चित करने को लेकर बहुत भावुक थे।’’ 




कड़ी मेहनत और दृढ़ता से राजनीति में अपनी एक विशेष पहचान बनाने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के नेता की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि एक युवा नेता के रूप में पासवान ने ‘‘आपातकाल के दौरान लोकतंत्र पर हुए हमले और अत्याचार’’ का पुरजोर विरोध किया था। उन्होंने कहा, ‘‘वह एक उत्कृष्ट सांसद और मंत्री थे जिन्होंने नीतिगत क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।’’ वह पांच दशक से अधिक समय से सक्रिय राजनीति में थे और देश के जाने-माने दलित नेताओं में से एक थे। पासवान उपभोक्ता, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मामलों के मंत्री थे।




उमेश कुशवाहा को पुनः टिकट मिलने से कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर

हनार (संवाददाता)दैनिक अयोध्या टाइम्स।अम्रपाली की भूमि वैशाली के महनार विधानसभा से जदयू ने निवर्तमान विधायक उमेश सिंह कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है। जिससे कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर है। आज सिंबल प्राप्त कर विधायक उमेश सिंह कुशवाहा पटना से महनार पहुंचे। महनार के अंबेडकर चौक पर बाबा साहब की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। जहां नगर अध्यक्ष अंशु राज जायसवाल और शिक्षा प्रकोष्ठ के जिला उपाध्यक्ष चंदन कुमार सिंह के नेतृत्व में स्थानीय लोगों ने भव्य स्वागत किया। वही सूफी संत खाकी बाबा के दरबार में मन्नते मांगी। वहां से निकलकर विधायक जी ने बासुकीनाथ, केदारनाथ,बैजनाथ आदि नाथों के समूह बाबा गणिनाथ के दरबार में पहुंचे और आशीर्वाद लिया। जहां चिकित्सा प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष इंद्रजीत राय,पथल राय,नगर निकाय के अध्यक्ष नागेश्वर चौधरी, अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष कुलदीप साह, रामसेवक सिंह आदि लोगों ने स्वागत किया। वहीं स्टेशन रोड बजाज एजेंसी के पास भाजपा के युवा प्रखंड अध्यक्ष अमिष कुमार के नेतृत्व में दर्जनों युवा कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया। वही पहाड़पुर बिशनपुर में अरविंद रजक, मिथिलेश गुप्ता, राजेश रंजन, गुड्डू जी, हरेंद्र पासवान, चंदन सिंह, पप्पू चौधरी आदि स्थानीय लोगों ने विधायक जी का भव्य स्वागत किया। वही चमराहरा नया टोला में सकलदीप पासवान, हरिंदर पासवान, मनोज कुमार पासवान, छठ्ठू पासवान, गणेश पासवान, महेश पासवान, आदि स्थानीय लोगों ने विधायक जी का भव्य स्वागत किया और जीत की अग्रिम बधाई दी। वहीं जदयू के महनार प्रखंड अध्यक्ष श्याम राय ने संवाददाता को बताया कि कोरोना महामारी को देखते हुए और आदर्श आचार संहिता का पालन करते हुए 12 अक्टूबर को विधायक जी अपना नामांकन पत्र निर्वाची पदाधिकारी सह अनुमंडल पदाधिकारी के कार्यालय में दाखिल करेंगे। विधायक जी महनार से कजरी स्थित अपने आवास पहुंचे।जैसे ही कार्यकर्ताओं को पता चला कि विधायक जी सिंबल प्राप्त कर घर आ गए हैं। वैसे ही बधाई देने वालों का तांता लग गया। वहीं विधायक जी ने कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि आप लोगों के सहयोग प्यार, स्नेह और आशीर्वाद का ही परिणाम है कि पार्टी के नेतृत्व ने मुझ पर भरोसा करके मुझे उम्मीदवार बनाया है। इसके लिए मैं महनार की तमाम जनता सहित एनडीए के शीर्ष नेताओं का आभारी हूं। विशेषकर आप कार्यकर्ताओं का जिन्होंने विषम से विषम परिस्थिति में भी हमारा साथ दिया हमेशा सहयोग किया हैं। मैं हमेशा से महनार की जनता का सेवा किया हूं और आगे भी करता रहूंगा। बस इसी तरह आप लोग अपना आशीर्वाद बनाए रखें। एक बार फिर से बिहार में सुशासन की सरकार बनाने के लिए आप लोग एकजुट होकर एनडीए के पक्ष में मतदान करें। वहीं क्षेत्र के लोगों ने हर्ष व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बधाई दी है। इस मौके पर जदयू जंदाहा के प्रखंड अध्यक्ष गजेंद्र राय, भाजपा के प्रखंड अध्यक्ष मनोज झा, मनोज सिंह, जदयू के जिला महासचिव सह महनार नगर प्रभारी मनोज पटेल, जिला सचिव अशोक चौधरी, विजय सिंह, मोहम्मद आकिब हुसैन, वसीम राजा, राकेश कुमार सिंह,विमल राय,अनूप लाल सिंह सहित दर्जनों लोग मौजूद थे।


"पारंपरिक और पोषक भोजन से समृद्ध होगा हमारा संस्कृति

अच्छा भोजन ही हमारा प्राथमिक भोजन है, जो कि हमारे समृद्ध परंपरा से ही प्राप्त होता है। हमें वही भोजन करना चाहिए जो प्रकृति और पोषण को आजीविकाओं के साथ जोड़ता है। ऐसा भोजन करने से दोस्त  स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा है, जैसा कि आप जानते  ही हैं कि ऐसा भोजन हमें हमारी समृद्ध जैव विविधता से प्राप्त होता है जोकि लोगों को रोजगार भी प्रदान करता है। जैसा कि हम सब देख रहे हैं दोस्त की कोविड 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण जहां आज पूरा विश्व के इंसान अपने स्वास्थ्य को लेकर पहले से ज्यादा जागरूक और सचेत हो चुके हैं। जहां भी देखे हम लोग हर तरफ चर्चा हो रही है कि अपनी इम्यूनिटी हम कैसे बढ़ाए , जिसके लिए लोग गिलोय, तुलसी और अदरक के साथ ही और भी विभिन्न प्रकार के औषधियों से अपने इम्यूनिटी को बढ़ा रहे हैं साथ ही हरी सब्जियों का अधिक से अधिक अब अपने घरों में जहां प्रयोग कर रहे हैं वही हम देख रहे हैं दूसरी तरफ की जैसे ही देश में लॉकडाउन में ढील दी गई फिर से लोग लापरवाही करना शुरू कर दिए हैं, देखने में आता है कि लोग मास्क तो लगाते है, ज्यादातर लोग इसलिए कि कहीं पुलिस  चलाना ना कर दें, वही अब फिर लोग स्वस्थ को लेकर उतना अपने सचेत नहीं दिख रहे हैं फास्ट फूड के तरफ फिर लोगो के जीभ से लार टपकने लगा है। दोस्त हमारे भोजन का ही संबंध हमारे संस्कृति और सबसे अधिक जैव विविधता के साथ ही हम सभी के मन मस्तिष्क पर भी होता है। आज से जंक फूड नहीं, वैसे भी मेरे अनुसार जंक फूड का मतलब होता है कूड़ा भोजन, अब आप सोच लो क्या आप कूड़ा वाला भोजन करना पसंद करोगे? नहीं बल्कि हमें अच्छा भोजन को ही प्राथमिक भोजन, यानी कि हमारा फास्ट फूड होना चाहिए जिससे हमारा आने वाला भविष्य उज्जवल हो जैसा कि आप जानते हैं कि हमारा देश युवाओं का देश है और आज सबसे अधिक हमारा युवा पीढ़ी ही जंक फूड और नशे के गिरफ्त में है। हमें हमेशा वही भोजन करना चाहिए जो प्रकृति और पोषण को हमारे आजीविकाओं के साथ भी जोड़ें जिससे कि हमारा पर्यावरण संतुलन भी बना रहे।

आज आंकड़ों के अनुसार देखा जाए तो हर दूसरा व्यक्ति मोटापे का शिकार है तो वही हर तीसरा व्यक्ति कुपोषण का भी शिकार है कहीं ना कहीं हमारा समाज का संतुलन बिगड़ता जा रहा है , कोई ओवरन्यूट्रिशन से परेशान है तो वही कोई मालनूट्रिशन से परेशान है। इसका मतलब है कि देश में संसाधनों में बहुत ही भेदभाव है, आज देखें तो लगभग 90 प्रतिशत संसाधनों पर 10 प्रतिशत लोगों का वर्चस्व है वहीं दूसरी तरफ 10 प्रतिशत संसाधनों पर देश के लगभग 90 प्रतिशत लोग किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं, जबकि संविधान के अनुच्छेद 14 में सभी की बराबरी की बात कही गई है लेकिन हालात क्या है यह आपके सामने है।

मेरा सवाल है कि हम खराब भोजन की इस संस्कृति में बदलाव कैसे लाएं ? देखे तो दोस्त हमारा प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग बहुत ही ताकतवर है, युवाओं को अपने साथ इसको जोड़ने की क्षमता भी है। देखा जाए तो खानपान के रंग ,गंध और खुशबू के सहारे लोगो को लुभाते  भी हैं, उन्हें सब पता है कि कैसे लोगों को लुभाना है। यह जानते हुए भी कि यह देश के लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही बुरा है, फिर भी यह लोग लुभाते रहते हैं ताकि उनकी जेब भरा  रहे।

सबसे अहम बात तो यह है कि प्रंसकृत खाद्य उद्योग ने आज हमारी अस्त-व्यस्त जीवन शैली का फायदा उठाना भी शुरू कर दिया है। दोस्त जो भी हो यह खानपान की उनकी दुनिया उनका कारोबार है, इसीलिए चलता है क्योंकि लोगों को यह लुभाते है और उनको मुनाफा कमाना होता है। यही वजह है है कि कंपनियां भोजन को हम तक पहुंचाने की आपूर्ति श्रृंखला तैयार करती । ऐसे में सवाल यह है कि अच्छे भोजन की आपूर्ति कैसे सुनिश्चित की जाए? दोस्त हम सभी ने देखा कि जब देश में वैश्विक महामारी का कहर बढ़ने लगा तो देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया तब से लोगों ने अपने घरों में खुद से खाना बनाकर अधिकतर लोग खाने लगे जिसके कारण बहुतों का स्वास्थ्य बहुत अच्छा हुआ, इसमें सबसे पहले अपना नाम इसमें शामिल करना चाहूंगा कि जब से मैं खुद से घर का बना हुआ खाना शुरू किया हूं पहले से कहीं बहुत ही ज्यादा ऊर्जावान और ताकतवार हमेशा महसूस करता हूं इसलिए आप सभी से भी विनम्र निवेदन है कि अपने व्यस्त जीवनशैली ने भी कम से कम दिन में एक बार अपने घर का खाना बना हुआ जरूर खाने का कोशिश करें, साथी हमेशा प्रयास कीजिए कि आप हमेशा जंग फूड जैसे कूड़ा वाले भोजन से बचेंगे।

 

Thursday, October 8, 2020

कोरोना का भय

चारों ओर मचा है देखो कोरोना का रोना ,

नहीं समझ में आता इसका अंत कहां है होना ,

चीन में इसने जन्म लिया और पहुंचा जाके इटली ,

सारे देश बने हैं अब इसके हाथों की तितली ,

मुश्किल किया सभी का इसने अब तो जगना सोना ,

चारों और मचा है देखो कोरोना का रोना ,

नहीं ढूंढ पाया अब तक उपचार कोई भी इसका , 

कैसे काबू करें इसे है अक्स न दिखता जिसका ,

इसके सम्मुख लगता है अब मानव बिल्कुल बौना ,

चारों ओर मचा है देखो कोरोना का रोना ,

इसके भय से छुप कर बैठे आज सभी हैं घर में , 

जान बचानी है अपनी तो रहना इसके डर में ,

पता नहीं कब धावा बोले हमको समझ खिलौना ,

चारों ओर मचा है देखो कोरोना का रोना