Thursday, November 12, 2020

मिस्टर एन्ड मिस आगरा के सेमीफाइनल में हुआ जमकर मुकाबला

रैंप पर मॉडल अपने अलग अलग अंदाज में नजर आये


टलेंगे राउंड में सपना चैधरी के गानों पर प्रतिभागियों ने दी प्रस्तुतियां


आगरा । आरोही इवेंट्स के मिस्टर एन्ड मिस आगरा , सीजन-9, 2020 का सेमीफाइनल होटल मार्क रॉयल के प्रांगड़ में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगल सिंह धाकड़ एवं ग्लैमर लाइव फिल्म के निर्देशक सूरज तिवारी ने किया।आज के कार्यक्रम वशिष्ठ अतिथि के रूप में अनमोल जो कक फेम है आंटी जी जिसको सबाना आजमी के निर्देशन में थी।


निदेशक अमित तिवारी ने बताया कि आज मिस्टर एन्ड मिस आगरा के सेमीफाइनल में मिस आगरा व मिस्टर आगरा के शीर्षक के लिए 20ध्20 प्रतिभागियों ने इंट्रोडक्शन व सवाल जवाब के साथ अपने टैलेंट राउंड से हुनर दिखाया। फाइनल में 7ध्7 प्रतिभागियों के चयन किया गया है, सेमीफाइनल में निर्णायक की भूमिका में  सारा मून (मिस यु.पी 2009),पी.एस गीत( मिस इंडिया क्वीन ऑफ ब्रिलिएन्सी इंटरनेशनल), मोनिका यादव(मिस नार्थ इंडिया फोटोजनिक) रही।  सारा मून ने बताया कि सेमीफाइनल में चुने गए प्रतिभागियों को 5 दिन की ग्रूमिंग दी जाएगी व इस बार की शो की थीम बहुत ही आकर्षित होगी। कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित  मंगल सिंह धाकड़ ,डॉ राशिद चैधरी, अरविंद राणा , ऐ. पी साउंड से आंनद आदि उपस्थित रहे।
विशेषरू मिस्टर एन्ड मिस आगरा के विजयी प्रतिभागियों को ताज पहनाने आएंगी सपना चैधरी।


Wednesday, November 11, 2020

सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब को जमानत दी, पुलिस कमिश्नर से कहा- आदेश पर तत्काल अमल किया जाए

इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार अर्नब गोस्वामी को 7 दिन बाद बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी। कोर्ट ने मुंबई पुलिस कमिश्नर से कहा कि इस आदेश पर तत्काल अमल किया जाए।


अर्नब के साथ ही इस मामले में दो अन्य आरोपियों नीतीश सारदा और फिरोज मोहम्मद शेख को भी जमानत दी गई है। अर्नब की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उद्धव सरकार को भी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकारें किसी को निशाना बनाएं तो उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि हम उसकी हिफाजत करेंगे।


अर्नब अपनी जमानत के लिए हाईकोर्ट भी गए थे, लेकिन हाईकोर्ट ने उनसे कहा था कि अंतरिम जमानत के लिए उनके पास लोअर कोर्ट का भी विकल्प है, लेकिन 4 नवंबर को गिरफ्तारी के बाद ही अलीबाग सेशन कोर्ट ने उनकी जमानत नामंजूर कर दी थी। हालांकि, अलीबाग कोर्ट ने पुलिस को रिमांड न देते हुए अर्नब को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।


बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
डेमोक्रेसी पर: हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से लचीला है। महाराष्ट्र सरकार को यह सब नजरअंदाज करना चाहिए।


आजादी पर: अगर किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाता है, तो यह न्याय का दमन होगा। क्या महाराष्ट्र सरकार को इस मामले में कस्टडी में लेकर पूछताछ की जरूरत है। हम व्यक्तिगत आजादी के मुद्दे से जूझ रहे हैं।


SC के दखल पर: आज अगर अदालत दखल नहीं देती है तो हम विनाश के रास्ते पर जा रहे हैं। इस आदमी (अर्नब) को भूल जाओ। आप उसकी विचारधारा नहीं पसंद कर सकते। हम पर छोड़ दें, हम उसका चैनल नहीं देखेंगे। सबकुछ अलग रखें।


राज्य सरकार पर: अगर हमारी राज्य सरकारें ऐसे लोगों के लिए यही कर रही हैं, इन्हें जेल में जाना है तो फिर सुुप्रीम कोर्ट को दखल देना होगा।


हाईकोर्ट पर: HC को एक संदेश देना होगा। कृपया, व्यक्तिगत आजादी को बनाए रखने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करें। हम बार-बार देख रहे हैं। अदालत अपने अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल में विफल हो रही हैं। लोग ट्वीट के लिए जेल में हैं।



इस शर्त पर मिली जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अर्नब गोस्वामी और दो अन्य आरोपी सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे। इसके अलावा आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले की जांच के दौरान वो पूरा सहयोग करेंगे।


2018 में इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां ने खुदकुशी कर ली थी। अन्वय की पत्नी ने सुसाइड लेटर में अर्नब का नाम होने के बावजूद कार्रवाई न होने पर सवाल उठाया था। इसके बाद रायगढ़ पुलिस ने अर्नब और दो अन्य लोगों को 4 नवंबर को गिरफ्तार किया था। बाद में अदालत ने इन्हें 18 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। अर्नब फिलहाल तलोजा जेल में बंद हैं।


 

 


Tuesday, November 10, 2020

मौन साधक, मित्र मेरा- सुरेशचंद्र रोहरा 




*डॉ टी महादेव राव*

चारों तरफ से हरे भरे और घने जंगलों से आच्छादित छत्तीसगढ़ अ हसदेव नदी के पावन तट पर बसी देश की ऊर्जाधानी कोरबा यूँ तो  अपनी अनेकों कोयला खादानों एवं बिजली के कल - कारखानों के नाम से मशहूर है। लेकिन इस रत्नागर्भा वसुन्धरा को अपनी मेहनत  , लगन और निष्ठा से आज के इस मुकाम तक पहुँचाया है यहाँ के आम मेहनत कश्मीर लोगों ने  । जहाँ एक तरफ यहाँ के श्रमिकों , किसानों , अधिकारियों , कर्मचारियों एवं शासन प्रशासन , व्यापार , व्यवसाय के लोगों ने इसके विकास पथ में अपनी भूमिका निभाई है वहीं इसकी सांस्कृतिक परंपरा और विरासत को समृद्ध करने का कार्य यहाँ के विविध कला क्षेत्रों में साधनारत कलासाधकों ने किया है । ये अलग बात है कि क्षेत्र के कलात्मक विकास में सक्रिय रहे कलासाधकों में कुछ चुने हुए और मुट्ठी भर लोगों के ही नाम कोरबा के जनमानस के सामने आ पाएँ  हैं। आज भी ऐसे कई कलमसाधक हैं जो प्रचार प्रसार को किनारे रख एक के बाद एक अनगिनत सृजन किए जा रहे हैं। और वह भी किसी लालसा या विशेष ईच्छा के बिना सिर्फ समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी और सर्जनात्मकता के प्रति अपने अनुराग के कारण । वैसे तो  कोरबा साहित्यजगत एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में  अनेकानेक बुद्धिजीवी साधनारत हैं लेकिन उनमें से एक कलम  के साधक ऐसे हैं जिनकी जुबान नहीं सिर्फ और सिर्फ कलम बोलती है! अख़बारों में बेहतरीन संपादकीय लेखों , काँलम लेखों  , देश की नामी गिरामी पत्र  पत्रिकाओं में विशेष लेखों , कई प्रकाशित पुस्तकों - संकलनों के रूप में  .... और कोरबा साहित्य एवं पत्रकारिता जगत को 

नई दिशा और दशा प्रदान करने वाले वह मौन कलम साधक हैं प्रख्यात  गाँधीवादी , निष्पक्ष एवं बेबाक पत्रकार, साहित्यकार , हमारे दैनिक  लोकसदन के संपादक  सुरेशचंद्र रोहरा  ... ।

     कुछ लोग कुछ न करते हुए भी अपनी पीठ थपथपाने और प्रचार-प्रसार में इतने माहिर होते हैं कि उनकी साहित्यिक प्रतिभा से अधिक हमें उनके स्वयं को प्रचारित करने की प्रतिभा का कायल होना पड़ेगा।  लेकिन एक और तरह के व्यक्ति होते हैं दुर्लभ किस्म के। ये शख्स  केवल अपने काम से मतलब रखते हैं। साहित्य सृजन हो या पत्रकारिता या स्तंभ लेखन या लेखन संबंधी कोई अन्य कार्य भी क्यों न हो, बस लगे रहते हैं - कृष्ण के द्वारा भगवदगीता में कहे गए कर्म के सिद्धांत को अपनाते हुए, फल की आशा न करते हुए, पूरी सहनशीलता, शांति और प्रतिबद्धता के साथ अपना काम करते हुए।

 

      आज मैं अपने ऐसे ही  मित्र के विषय में आपको बताने जा रहा हूँ।  इस तरह उनके बारे में लिखना भी उन्हें  भाता नहीं, क्योंकि वह कर्मयोगी है, कलम का श्रमिक है और कारीगर है कागजों  का। यह मेरी ही जिद है कि उस दोस्त रूपी, छोटे भाई के बारे में लिखूँ। आज जबकि ठीक से ककहरा भी न लिख पाने वाले लोग स्वयं को साहित्यकार, रचनाकार, कलमकार  और पता नहीं क्या-क्या कार कहने में जरा भी संकोच नहीं करते, ऐसे में भाई का जिक्र ज़रूरी लगता है मुझे।

 

      बात शुरू करता हूं सन 1986 से।  मुझसे बालको में मिलने कोरबा से एक नवजवान आया। बी. ए . हिंदी का छात्र, साथ ही स्वतंत्र  पत्रकारिता करता हुआ। साहित्य के प्रति समर्पण की भावना लिए कहानियां, कविताएं, लेख लिखा करता था।  जो छपती भी थीं। मैं एक लेखक के रूप में मिला उस अति शालीन, सुसंस्कृत  और युवा साथी से। पहली ही मुलाक़ात में उसका “भैया” संबोधन से इस तरह बांध लिया कि आज भी मेरे लिए उसके मुंह से वही संबोधन निकलता है, जिसे  सुनकर बहुत खुशी होती है।  उसका अपनापन इतने सालों बाद भी कम नहीं हुआ।  हम मिलते रहे, लिखते रहे बिना किसी गुटबाजी के।  उस समय काफी चलती थी गुटबाजी कवियों और लेखकों में। हम लोग  अपने काम से काम रखते ।  हफ्ता दस दिन में मिलना, कुछ सार्थक चर्चा।  उसने अपने युवा मित्रों की एक मंडली बनाई, जो साहित्य के छात्र थे उसी की तरह लेखन का काम भी करते थे।  यह अलग बात है कि जितना सफल मेरा मित्र हुआ, वे उतने न हो सके।  बाद में सभी अपने अपने काम धंधे में लग गए।  मेरे मित्र छोटे भाई ने जो कलम का हाथ थामा आज उसकी उम्र 53 वर्ष की हो गई है। कलम  का हाथ थामे हुये ही नई मंज़िलें पा रहा है, नए शिखर छू रहा है। ईश्वर उसे दीर्घायु दे,  और भी अनेक सफलताएं उसकी झोली में डाले यही कामना है।

 

      यह जो 1987 का नव लेखक था, आज पत्रकारिता का पर्याय बन चुका है।  दैनिक, मासिक, पाक्षिक पत्रों, वेब पोर्टल , दूरदर्शन,दिल्ली  प्रेस की पत्रिकाओ  आदि में अपनी पत्रकारिता के जौहर पर दिखाता ही है, साथ ही व्यंग्य स्तम्भ लेखन,  धारावाहिक उपन्यास लेखन,  सामयिक विषयों पर गहन चिंतन के साथ संपादकीय  और साथ साथ  कविताएं, कहानियां भी उसी प्रभावोत्पादकता के साथ लिखता है. जिस प्रभावी ढंग से पत्रकारिता करता है।  इस व्यक्ति में जो सहनशीलता है,  सामंजस्य का भाव है, क्षमा गुण है - वह श्लाघनीय है।  उन सब के पीछे मित्र का "गांधी दर्शन" पर अटूट  विश्वास का होना है। गांधीश्वर  पत्रिका का संपादक है ही, साथ ही पिछले दस वर्षों से अधिक समय से कोरबा से प्रकाशित लोकप्रिय  दैनिक लोकसदन का  सफल, सक्षम  और योग्य संपादक भी है। जी हाँ... मेरे छोटा भाई समान इस मित्र का नाम है सुरेशचंद्र रोहरा। अब तक इनकी पंद्रह से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हुआ, जिनमें उपन्यास, कविता, व्यंग्य, गांधी दर्शन आदि शामिल हैं। कोई विधा ऐसी नहीं जिनमें इन्होंने कलम न चलाई हो।  यही नहीं युवावस्था में (वैसे भी आज भी युवा हैं मेरी तुलना में) साहित्य साधना समिति का गठन कर सामयिक साहित्य चर्चाएं, संगोष्ठियाँ,  संध्या पर नुक्कड़ नाटक (दूसरी संस्थाओं से मंगाकर)  आयोजन करते रहे।  साहित्यिक माहौल का निर्माण उस समय भाई के कारण ही कहूंगा कोरबा,छत्तीसगढ़  में हुआ था।  उस समय के वरिष्ठ रचनाकार केवल खेमों में बटे हुए थे।  केवल कविताएं, गजलें, मुक्तक, रुबाइयां लिखकर गोष्ठियों  में सुनाते अलग अलग संस्था समितियों की बैठकों में।   इन रचनाकारों में भाई  सुरेश शामिल न थे, क्योंकि मेरा भी अनुभव रहा इन वरिष्ठों के साथ कि कविता के अलावा अन्य किसी भी विधा में लिखने वाले इनके लिए वर्जित हैं, अछूत हैं पता नहीं क्यों। मैं भी भाई सुरेश रोहरा की तरह इन समितियों से दूर था।  

 

  मैं 1990 में बालको से आ गया, लेकिन हमेशा संपर्क में रहने वाले भाई सुरेश रोहरा अपनी गतिविधियों से लगातार अवगत कराता। अपनी प्रकाशित पुस्तकें, रचनाएँ भेजता, जिस पर हम चर्चा करते। बीच में एक बार वह विशाखापटनम भी आया, प्रत्यक्ष मुलाकात में लंबी चर्चा चली। मतलब उनकी हर खबर से मैं हमेशा वाकिफ रहा।  

 

      इस बीच  एक बात दिल में बुरी तरह चुभी  कि  34 वर्षों से लेखन से जुड़े भाई सुरेश चंद्र रोहरा जी का कोरबा के तथाकथित साहित्यकारों की सूची में नाम लेने से कुछ बुजुर्ग साहित्यकार मे घबराहट हैं या उनके कृतित्व को नकार रहे हैं।   यह सब लिखने के पीछे भी एक कारण है  मैं कुछ ऐसे कवियों को जानता हूं  जिनको शब्दों के सही अर्थ और वर्तनी तक का पता नहीं, वे इन बुजुर्ग साहित्यकारों की नजर में महान कवि हैं। तू मुझे सराह , मैं तेरी तारीफ करूंगा  वाली बात हो गई।

 

  मेरा कथन है कि जिस कोरबा के साहित्य के इतिहास की चर्चा  जोरों पर है,  काम भी किया जा रहा है, उसमें चंद रचनाएं  करने वालों का जिक्र है।  कई ऐसे हैं जिनकी कोई भी पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई।  कई ऐसे थे जिन्होंने आदर्शवाद केवल कविताओं तक सीमित रखे हुए थे  वास्तविक जीवन में ऐसे आदर्श उनके लिए नहीं रहे।   जिस व्यक्ति ने इतनी सारी पुस्तकें, इतनी सारी सभी विधाओं की सामग्री लिखी,  बहुत सारा साहित्य वह भी स्तरीय  लिखा ऐसे व्यक्ति का जिक्र न हो पाना हमारी सोच की संकीर्ण मानसिकता को उजागर करती है।  मेरा तो मानना है  यदि कोरबा का साहित्य के इतिहास लिखा जाएगा  तो भाई सुरेश रोहरा का नाम एक महत्वपूर्ण नाम के रूप में लिखा जाना ना केवल अनिवार्य है बल्कि समय की मांग है।

( डाक्टर टी. महादेव राव  हिंदी और तेलुगु के ख्यात लेखक है)


 

 




ऐतिहासिक कथा की मौलिकता

ऐतिहासिक कथा काल्पनिक शैलियों का सबसे आम है तकनीकी तौर पर, ऐतिहासिक कथाएं अतीत में किसी भी कहानी को सेट करती हैं, जिसमें समय की सच्ची विशेषताएं शामिल होती हैं, जिसमें काल्पनिक पात्रों या घटनाएं भी शामिल हैं। सदियों और संस्कृतियों में इस तरह के कार्यों के अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं। इलियाड और ओडिसी के रूप में, जहां तक ​​प्राचीन यूनानियों (हालांकि वे भी विलक्षण तत्व होते हैं) का इतिहास एकाकी करने का प्रयास करता है।

 

सच्ची ऐतिहासिक कथा अपने संपूर्ण साजिश तत्वों में यथार्थवाद पर निर्भर करती है। ऐतिहासिक कथा के लेखक एक विश्वसनीय ऐतिहासिक दुनिया का निर्माण करने के लिए सावधान रहना चाहिए जिसमें सेटिंग, पात्रों, और वस्तुएं उनके युग में अपेक्षित होगा। अक्षरों को विश्वसनीय अवधि वार्ता के साथ बोलना चाहिए और परिवहन के उपयुक्त साधनों के साथ यात्रा करना चाहिए। आपको 1600 के दशक में एक चरित्र नहीं मिलना चाहिए, उदाहरण के लिए, "यह बहुत अच्छा था!" या सड़क पर साइकिल चलाने के लिए ऐतिहासिक कथा में, सभी संघर्षों, साजिश की घटनाओं, और विषयों को ऐतिहासिक रूप से संभवतः दुनिया के भीतर होना चाहिए जो लेखक ने चयनित किया है।

 

समकालीन समाज और राजनीति को प्रभावित करने के लिए ऐतिहासिक कथा का उपयोग कभी-कभी किया जा सकता है राइटर्स एक विशेष ऐतिहासिक घटना पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं क्योंकि उनके बीच और उनके अपने समय के बीच के संबंधों को देखते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बीच में देशभक्ति को प्रेरित करने के लिए घटनाओं को लेकर क्रांतिकारी युद्ध का नेतृत्व किया। नाटक या साहस के लिए सामग्री प्रदान करने के लिए अन्य लेखक एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि चुन सकते हैं फिर भी दूसरों को एक पिछली त्रासदी में प्रासंगिक विषय या सबक देख सकते हैं।

 

युद्धकालीन, विशेष रूप से ऐतिहासिक कथा के लेखकों के लिए एक लोकप्रिय विषय है पाठकों को किसी भी युद्ध में कल्पना सेट करने के लिए दूर देखने की ज़रूरत नहीं है। हालांकि काल्पनिक, ऐतिहासिक कथा किताबें जानकारी का उत्कृष्ट स्रोत हो सकती हैं। प्रत्येक ऐतिहासिक उपन्यास पुस्तक के साथ, पाठकों ने अतीत के बारे में कुछ और सीखते हैं और इतिहास, राजनीति, संस्कृति और मानव अनुभव की उनकी समझ को व्यापक करते हैं।