Friday, June 24, 2022

मंदी क्यों है व्यापार में ?

 मंदी क्यों है व्यापार में ???

बर्तन का व्यापारी परिवार के लिये जूते ऑनलाइन खरीद रहा है...
जूते का व्यापारी परिवार के लिये मोबाइल ऑनलाइन खरीद रहा है...
मोबाइल का व्यापारी परिवार के लिए कपडे ऑनलाइन खरीद रहा है...
कपड़े का व्यापारी परिवार के लिये घड़ी ऑनलाइन ख़रीद रहा है...
घडी का व्यापारी बच्चों के लिए खिलोने ऑनलाइन ख़रीद रहा है...
खिलोने का व्यापारी घर के लिये बर्तन ऑनलाइन खरीद रहा है ...
और ये सब रोज सुबह अपनी-अपनी दुकान खोल कर अगरबत्ती लगा कर भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि आज धंधा अच्छा हो जाये...
कहाँ से होगी बिक्री ???
खरीददार आसमान से नहीं आते हम ही एक दूसरे का सामान खरीद कर बाजार को चलाते हैं क्योंकि हर व्यक्ति कुछ न कुछ बेच रहा है और हर व्यक्ति खरीददार भी है...
ऑनलाइन खरीदी करके आप भले 50-100 रु की एक बार बचत कर लें लेकिन इसके नुक्सान बहुत हैं क्योंकि ऑनलाइन खरीदी से सारा मुनाफा बड़ी बड़ी कंपनियों को जाता है जिनमें काफी विदेशी कंपनियां भी हैं...
ये कम्पनियाँ मुठ्ठीभर कर्मचारियों के बल पर बाजार के एक बहुत बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं, ये कम्पनियां बेरोजगारी पैदा कर रही हैं और इनके द्वारा कमाये गये मुनाफे का बहुत छोटा हिस्सा ही पुनः बाजार में आता है...
यदि आप सोचते हैं कि मैं तो कोई दुकानदार नहीं हूं और ना ही व्यापारी , मैं तो नौकरी करता हूँ ऑनलाइन खरीदी से मुझे सिर्फ फायदा है नुक्सान कोई नहीं तो आप सरासर गलत हैं क्योंकि जब समाज में आर्थिक असमानता बढ़ती है या देश का पैसा देश के बाहर जाता है तो, देश के हर व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसका नुक्सान उठाना पड़ता है चाहे वह अमीर हो या गरीब, व्यापारी हो या नौकरी करने वाला,बीमा ऐजेंट, दुकानदार हो या किसान हर कोई प्रभावित होता है...

Wednesday, June 15, 2022

पूजा अर्चना में वर्जित काम

१) गणेश जी को तुलसी

२) देवी पर दुर्वा
३) शिव लिंग पर केतकी फूल
४) विष्णु को तिलक में अक्षत
५) दो शंख एक समान
६) तीन गणेश
७) तुलसी चबाना
८) द्वार पर जूते चप्पल उल्टे
९) दर्शन करके बापस लौटते समय घंटा
१०) एक हाथ से आरती लेना
११) ब्राह्मण को बिना आसन बिठाना
१२) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम
१३) बिना दक्षिणा ज्योतिषी से पूछना
१४) घर में अंगूठे से बड़ा शिवलिंग
१५) तुलसी पेड़ में शिवलिंग
१६) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श
१७) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल फोडना
१८) रजस्वला स्त्री का मंदिर प्रवेश
१९) परिवार में सूतक हो तो पूजा प्रतिमा स्पर्श
२०) शिव जी की पूरी परिक्रमा
२१) शिव लिंग से बहते जल को लांघना
२२) एक हाथ से प्रणाम
२३) दूसरे के दीपक में अपना दीपक जलाना
२४) अगरबत्ती जलाना बांस की सींक वाली
२५) देवता को लोभान या लोभान की अगरबत्ती
२६) स्त्री द्वारा हनुमानजी शनिदेव को स्पर्श
२७) कन्या ओ से पैर पडवाना
२८) मंदिर में परस्त्री को ग़लत निगाह से देखना
२९) मंदिर में भीड़ में परस्त्री से धक्का मुक्की
३०) साईं की अन्य प्रतिमाओं के साथ स्थापना
३१) शराबी का भैरव के अलावा अन्य मंदिर प्रवेश
३२) किसी तांत्रिक का दिया प्रसाद।


Sunday, June 12, 2022

चलो साथ दे दो जीत हम जाएंगे

वक्त की आंधियां आओ सह लें चलो

लड़खड़ाते कदम फिर संभल जाएंगे

आओ हम ही चलो आज झुक जाएंगे

टूटते रिश्ते फिर से संभल जाएंगे..।।


रिश्तों के खेत में हो उपज प्रेम की

खुशियों के उर्वरक से ही हरियाली हो

काट लें आओ मिलकर फसल प्रेम की

मन के खलिहान फिर से संवर जाएंगे..।।


जो कभी थे हमारे वो अब क्यों नहीं

प्रीति सच्ची थी पहले तो अब क्यों नहीं

आओ छोड़ो शिकायत ख़तम करते हैं

आज फिर पहले जैसे निखर जाएंगे..।।


अपनों से खेद ज्यादा उचित भी नहीं

रख लो मत भेद मन भेद फिर भी नहीं

अपनों से जीत जाना भी इक हार है

हार मानो चलो एक हो जाएंगे..।।


सच्ची निष्ठा प्रतिष्ठा सदा प्रेम से

जीवन में बस प्रगति अपनों के साथ से

एक जुटता से ही मिलता संबल सदा

साथ दे दो चलो जीत हम जाएंगे..।।

साथ दे दो चलो जीत हम जाएंगे..।।


् विजय कनौजिया


Tuesday, June 7, 2022

बंटवारा दो भाइयों के बीच का

 दो भाइयों के बीच "बंटवारे" के बाद की बनी हुई तस्वीर है।

बाप-दादा के घर की देहलीज को जिस तरह बांटा गया है यह हर गांव घर की असलियत को भी दर्शाता है।
दरअसल हम "गांव" के लोग जितने खुशहाल दिखते हैं उतने हैं नहीं।
जमीनों के केस, पानी के केस, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस,बंजर तालाब के झगड़े, ब्याह शादी के झगड़े , दीवार के केस,आपसी मनमुटाव, चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है।


अब "गांव" वो नहीं रहे कि "बस" या अन्य 'वाहनो' में गांव की लडकी को देखते ही सीट खाली कर देते थे बच्चे।
दो चार "थप्पड" गलती पर किसी बड़े बुजुर्ग या ताऊ ने ठोंक दिए तो इश्यू नहीं बनता था तब। लेकिन अब..आप सब जानते ही है
अब हम पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं। "गांव" में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवतः अब मिलने मुश्किल हैं।वह लगभग गायब से हो गये हैं ...
हालात इस कदर "खराब" है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे। इतनी नफरत कहां से आई है लोगों में ये सोचने और चिंतन का विषय है।
गांवों में कितने "मर्डर" होते हैं, कितने "झगड़े" होते हैं और कितने केस अदालतों व संवैधानिक संस्थाओं में लंबित है इसकी कल्पना भी भयावह है।
संयुक्त परिवार अब "गांवों" में शायद एक आध ही हैं, "लस्सी-दूध" की जगह यहां भी अब ड्यू, कोकाकोला, पेप्सी पिलाई जाने लगी है। बंटवारा केवल भारत का नहीं हुआ था, आजादी के बाद हमारा समाज भी बंटा है और शायद अब हम भरपाई की सीमाओं से भी अब बहुत दूर आ गए हैं। अब तो वक्त ही तय करेगा कि हम और कितना बंटेंगे।..
यूँ लगने लगा है जैसे हर आदमी के मन मे ईर्ष्या भरा हुआ है
कन फुसफुसाहट ..जहां लोग झप्पर छान उठाने को हंसी हंसी में सैकड़ो जुट जाया करते थे वहां अब इकठ्ठे होने का नाम तक नही लेते..
एक दिन यूं ही बातचीत में एक मित्र ने कहा कि जितना हम "पढे" हैं दरअसल हम उतने ही बेईमान व संकीर्ण बने हैं। "गहराई" से सोचें तो ये बात सही लगती है कि "पढे लिखे" लोग हर चीज को मुनाफे से तोलते हैं और यही बात "समाज" को तोड रही है।