Wednesday, December 14, 2022

भिक्षा का मर्म


सुबह मेघनाथ से लक्ष्मण का अंतिम युद्ध होने वाला था। वह मेघनाथ जो अब तक अविजित था, जिसकी भुजाओं के बल पर रावण युद्ध कर रहा था, अप्रितम योद्धा ! जिसके पास सभी दिव्यास्त्र थे।
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सुबह लक्ष्मण जी,भगवान राम से आशीर्वाद लेने गए, उस समय भगवान राम पूजा कर रहे थे।



पूजा समाप्ति के पश्चात प्रभु श्री राम ने हनुमान जी से पूछा अभी कितना समय है युद्ध होने में।
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हनुमान जी ने कहा... प्रभु, अभी कुछ समय है। यह तो प्रातःकाल है।
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भगवान राम ने लक्ष्मण जी से कहा.....यह पात्र लो और भिक्षा मांगकर लाओ, जो पहला व्यक्ति मिले उसी से कुछ अन्न माँग लेना।
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सभी बड़े आश्चर्य में पड़ गए, आशीर्वाद की जगह भिक्षा। लेकिन लक्ष्मण जी को जाना ही था।
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लक्ष्मण जी जब भिक्षा मांगने के लिए निकले तो उन्हें सबसे पहले रावण का एक सैनिक मिल गया। आज्ञा अनुसार मांगना ही था। यदि भगवान की आज्ञा न होती तो उस सैनिक को लक्ष्मण जी वहीं मार देते, परंतु वे उससे भिक्षा मांगते हैं।
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सैनिक ने अपनी रसद से लक्ष्मण जी को कुछ अन्न दे दिए।
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लक्ष्मण जी ने वह अन्न लेकर भगवान राम को अर्पित कर दिए।
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तत्पश्चात भगवान राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया...विजयी भवः।
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भिक्षा का मर्म किसी की समझ नहीं आया। कोई पूछ भी नहीं सकता था, फिर भी यह प्रश्न तो रह ही गया।
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फ़िर भीषण युद्ध हुआ।
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अंत मे मेघनाथ ने त्रिलोक की अंतिम शक्तियों को लक्ष्मण जी पर चलाया, ब्रह्मास्त्र, पशुपात्र, सुदर्शन चक्र। इन अस्त्रों कि कोई काट न थी।
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लक्ष्मण जी ने सिर झुकाकर इन अस्त्रों को प्रणाम किया, सभी अस्त्र उनको आशीर्वाद देकर वापस चले गए।
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उसके बाद राम का ध्यान करके लक्ष्मण जी ने मेघनाथ पर बाण चलाया। वह हंसने लगा और उसका सिर कटकर जमीन पर गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई।
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उसी दिन सन्ध्याकालीन समय भगवान राम शिव की आराधना कर रहे थे, वह प्रश्न तो अब तक रह ही गया था। हनुमान जी ने पूछ लिया। प्रभु वह भिक्षा का मर्म क्या है।
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भगवान मुस्कराने लगे,बोले.... मैं लक्ष्मण को जानता हूँ। वह अत्यंत क्रोधी है।लेकिन युद्ध में बहुत ही विन्रमता कि आवश्यकता पड़ती है। विजयी तो वही होता है जो विन्रम हो। मैं जानता था मेघनाथ, ब्रह्मांड की चिंता नहीं करेगा। वह युद्ध जीतने के लिये दिव्यास्त्रों का प्रयोग करेगा।
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इन अमोघ शक्तियों के सामने विन्रमता ही काम कर सकती थी। इसलिए मैंने लक्ष्मण को सुबह झुकना बताया! एक वीर शक्तिशाली व्यक्ति जब भिक्षा मांगेगा तो विन्रमता स्वयं प्रवाहित होगी। लक्ष्मण ने मेरे नाम से बाण छोड़ा था। यदि मेघनाथ उस बाण के सामने विन्रमता दिखाता तो मैं भी उसे क्षमा कर देता।
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भगवान श्रीरामचन्द्र जी एक महान राजा के साथ अद्वितीय सेनापति भी थे। युद्धकाल में विन्रमता शक्ति संचय का भी मार्ग है ! वीर पुरुष को शोभा भी देता है।इसलिए किसी भी बड़े धर्म युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए विनम्रता औऱ धैर्य का होना अत्यंत आवश्यक है। फेसबुक वरुन साभार

Tuesday, December 13, 2022

अगस्त्य संहिता

 *अगस्त्य संहिता*

*बिजली का आविष्कार बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने किया लेकिन बेंजामिन फ्रेंक्लिन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।*
महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे। महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। ऋषि अगस्त्य ने ‘अगस्त्य संहिता’ नामक ग्रंथ की रचना की। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥
*अगस्त्य संहिता*


अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा।
अगस्त्य मुनि एक प्रसिद्ध संत थे। ये वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे। रामायण और महाभारत में संत अगस्त्य मुनि (maharishi agastya) का उल्लेख मिलता है। वे प्रसिद्ध सप्त ऋषियों में से एक और प्रसिद्ध 18 सिद्धों में से भी एक हैं। ऐसा माना जाता है कि वह 5000 से अधिक वर्षों तक जीवित रहे थे। कहा जाता है कि वह कई वर्षों तक पोथिगई पहाड़ियों में रहे थे।
महर्षि अगस्त्य को मंत्रदृष्टा ऋषि कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने तपस्या काल में उन मंत्रों की शक्ति को देखा था। ऋग्वेद के अनेक मंत्र इनके द्वारा दृष्ट हैं। महर्षि अगस्त्य ने ही ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तों को बताया था। साथ ही इनके पुत्र दृढ़च्युत तथा दृढ़च्युत के बेटा इध्मवाह भी नवम मंडल के 25वें तथा 26वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि हैं।
महर्षि अगस्त्य को पुलस्त्य ऋषि का बेटा माना जाता है। उनके भाई का नाम विश्रवा था जो रावण के पिता थे। पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे। महर्षि अगस्त्य ने विदर्भ-नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह किया, जो विद्वान और वेदज्ञ थीं। दक्षिण भारत में इसे मलयध्वज नाम के पांड्य राजा की पुत्री बताया जाता है 1
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6 लोगों के श्राप के कारण हुआ था रावण का सर्वनाश?

 

6 लोगों के श्राप के कारण हुआ था रावण का सर्वनाश?
हम सब जानते हैं कि रावण बहुत ही पराक्रमी योद्धा था। उसने अपने जीवन में अनेक युद्ध किए। धर्म ग्रंथों के अनुसार उसने अपने जीवन में लड़े कई युद्ध तो अकेले ही जीत लिए थे। इतना पराक्रमी होने के बाद भी उसका सर्वनाश कैसे हो गया? रावण के अंत के कारण श्रीराम की शक्ति तो थी ही। साथ ही, उन लोगों का श्राप भी था, जिनका रावण ने कभी अहित किया था।
धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण को अपने जीवन काल में मुख्यतः 6 लोगों से श्राप मिला था। यही श्राप उसके सर्वनाश का कारण बने और उसके वंश का समूल नाश हो गया। जानिए किन-किन लोगों ने रावण को क्या-क्या श्राप दिए थे...
1. रघुवंश (भगवान राम के वंश में) में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।
2. एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने का कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।


3. रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई।
जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतीत्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई। अतः तुम भी स्त्री की वासना के कारण मारे जाओगे।
4. एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी।
5. विश्वविजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया। तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरफ से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं इसीलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं।
लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श करेगा तो रावण का मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएंगे।
6. रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

शिमला का सबसे फालतु इंसान

इनका नाम है सरबजीत सिंह, लेकिन लोग प्यार से बॉबी के नाम से बुलाते हैं।
न तो इसको घर पे कोई काम है और न दूकान पर। कभी एंबुलेंस लेकर मरीजों को आई जी एम सी छोड़ने जा रहा होता है तो कभी मृत लावारिस लाशो को शमशान ले जाता है। शाम को लोग /पर्यटक जब माल रोड पर घूमते हुए मौसम का आनंद ले रहे होते है ये फालतू सरदार कैंसर हस्पताल में मरीजों को खिचड़ी का लंगर लगा के खिला रहा होता है।
सवेरे सवेरे उठकर लोग सैर पे निकलते है और ये सरदार मरीजों को बिस्कुट खिला रहा होता है। रविवार को भी इसको चैन नही होता माल रोड पर ब्लड कैंप लगा कर लोगो का खून निकाल रहा होता है। ऐसा है ये फालतू इंसान। वाहगुरु ऐसे फालतू हर शहर में भी पैदा करो जी। इंसानियत को खत्म होने से बचाते है ऐसे फालतू लोग। गरीबो के आंसू नही टपकने देते ऐसे फालतू लोग। वैसे भी आजकल कोई फालतू नही जो दुसरो के लिए थोड़ा वक़्त निकाल सके। और दुसरो के बारे में सोच सके उनकी तकलीफों को अपना सके।
ओ फालतू बॉबी !!!हर शहर में क्यों नही पैदा हुआ ?
हर शहर में भी मरीज है , उन्हें कोई हाथ भी नही लगाता। वहां भी लावारिस लाशें लावारिस ही पड़ी रहती है भाई जी।

वहां पर भी मरीजों को चाय बिस्कुट खिलाने वाला कोई तेरे जैसा फालतू बंदा चाहिए।

सरबजीत सिंह 'बॉबी' को सलाम!