Friday, December 30, 2022

अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों के कारण वर्ष-भर चर्चित रहा नारनौल का मनुमुक्त 'मानव'

अपने आईपीएस बेटे मनुमुक्त 'मानव' की असमय मृत्यु उपरांत दुनिया-भर के युवाओं में मनु के अक्स को देखते हुए, उन्हें ट्रस्ट के माध्यम से पुरस्कार प्रदान कर, आगे बढ़ने के हेतु प्रेरित करते हैं ट्रस्टी कांता भारती और चीफ ट्रस्टी डॉ रामनिवास 'मानव'।यह संभवतः  दुनिया का एकमात्र ट्रस्ट है, जिसे बेटे की स्मृति में माता-पिता द्वारा संचालित किया जाता है और जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है। ट्रस्ट की समाज हितैषी गतिविधियों के कारण नारनौल का मनुमुक्त भवन 2022 में पूरा वर्ष सांस्कृतिक केंद्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र बना रहा।


-प्रियंका सौरभ

इकलौते जवान आईपीएस बेटे मनुमुक्त की मृत्यु पिता और देश के प्रमुख साहित्यकार तथा शिक्षाविद् डॉ रामनिवास 'मानव' और माँ अर्थशास्त्र की पूर्व प्राध्यापिका डॉ कांता भारती के लिए किसी भयंकर वज्रपात से कम नहीं थी। ऐसी स्थिति में कोई भी दम्पत्ति टूटकर बिखर जाता, किंतु 'मानव' दम्पत्ति ने, अद्भुत धैर्य का परिचय देते हुए, न केवल असहनीय पीड़ा को झेला, बल्कि अपने बेटे मनुमुक्त की स्मृतियों को सहेजने, सजाने और सजीव बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास भी शुरू कर दिए। उन्होंने अपने जीवन की संपूर्ण जमापूंजी लगाकर मनुमुक्त 'मानव' मेमोरियल ट्रस्ट का गठन किया और नारनौल (हरियाणा) में मनुमुक्त भवन का निर्माण कर उसमे लघु सभागार, संग्रहालय और पुस्तकालय की स्थापना की।



विगत पांच वर्षों की भांति, वर्ष-2022 में भी, अपनी महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक गतिविधियों के कारण मनुमुक्त 'मानव' मेमोरियल ट्रस्ट पूरे वर्ष चर्चित रहा। वर्ष-2022 में ट्रस्ट द्वारा छोटे-बड़े कुल इक्कीस कार्यक्रम आयोजित किये गये, जिनमें 'विश्व हिंदी-दिवस समारोह', 'अंतरराष्ट्रीय नागरी लिपि-सम्मेलन', 'अंतरराष्ट्रीय नव-संवत्सर समारोह', 'अंतर्राष्ट्रीय सेदोका-सम्मेलन', 'वैश्विक साहित्य-महोत्सव', 'अंतरराष्ट्रीय मातादीन-मूर्तिदेवी स्मृति-समारोह', 'अंतरराष्ट्रीय मनुमुक्त 'मानव' स्मृति कवि-सम्मेलन', 'सर्वोत्तम एनसीसी कैडेट सम्मान-समारोह' और 'अंतरराष्ट्रीर युवा सम्मान-समारोह' के अतिरिक्त 'वैश्विट परिदृश्य में जैन धर्म की प्रासंगिकता', 'सनातन धर्म-संस्कृति का पुनरुत्थान' तथा 'वैश्विक परिदृश्य में हिंदी की स्थिति' जैसे विषयों पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय विचार-गोष्ठियां शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि मनुमुक्त 'मानव' 2012 बैच और हिमाचल कैडर के परम मेधावी और ऊर्जावान युवा पुलिस अधिकारी थे। 23 नवम्बर, 1983 को हिसार में जन्मे तथा पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से उच्च शिक्षा प्राप्त मनुमुक्त एनसीसी के सी सर्टिफिकेट सहित तमाम उपलब्धियां प्राप्त सिंघम अधिकारी थे। वह बहुत अच्छे चिंतक होने के साथ-साथ बहुमुखी कलाकार और सधे हुए फोटग्राफर थे, सेल्फी के तो वह मास्टर थे, तभी तो उनके सभी मित्र उनके मुरीद थे। समाज-सेवा के लिए वह बड़ी सोच रखते थे। वह छोटी-सी उम्र में अपने दादा-दादी कि स्मृति में अपने पैतृक गाँव तिगरा (मंडी अटेली) में एक स्वास्थ्य केंद्र और नारनौल में सिविल सर्विस अकादमी स्थापित करना चाहते थे। समाज के लिए उनके और भी बहुत सारे सुनहरे सपने थे, जिनको वह पूरा करने के बेहद करीब थे, किंतु उनकी असामयिक मृत्यु ने उन सब सपनों को ध्वस्त कर दिया।


 इस वर्ष भारत सहित दस देशों की विभिन्न क्षेत्रों की शताधिक प्रतिष्ठित विभूतियों ने ट्रस्ट के कार्यक्रमों में सहभागिता की, जिनमें नेपाल के त्रिलोचन ढकाल और डॉ पुष्करराज भट्ट (काठमांडू), डॉ कपिल लामिछाने (भैरहवा) तथा हरीशप्रसाद जोशी (महेंद्र नगर), जापान की डाॅ रमा पूर्णिमा शर्मा (टोक्यो), न्यूजीलैंड के रोहितकुमार 'हैप्पी' (आॅकलैंड), माॅरीशस की कल्पना लालजी (वाक्वा) और अंजू घरभरन (मोका), रूस की श्वेतासिंह 'उमा' (मास्को), जर्मनी की डाॅ योजना शाह जैन (बर्लिन) तथा अमेरिका की डाॅ कमला सिंह (सैंडियागो) के नाम उल्लेखनीय हैं।

भारत से पधारी प्रमुख हस्तियों में ओमप्रकाश यादव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री, हरियाणा सरकार, चंडीगढ़, अजय कुमार उपायुक्त, आईएएस, उपायुक्त, नूंह, डॉ लवलीन कौर, आईआरएस, आयकर उपायुक्त, रोहतक मंडल, रोहतक, डॉ जयकृष्ण आभीर, आईएएस, उपायुक्त जिला महेंद्रगढ़, नारनौल, डॉ उमाशंकर यादव, कुलपति, सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान), डॉ खेमसिंह डहेरिया, कुलपति, अटलबिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्य प्रदेश), डॉ जवाहर कर्णावट, निदेशक, हिंदी-भवन, भोपाल (मध्य प्रदेश), नारायण कुमार, मानद निदेशक, अंतरराष्ट्रीय संबंध परिषद्, नई दिल्ली प्रमुख रहे।

 डॉ नूतन पांडेय, नामित निदेशक, विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र, भारतीय दूतावास, रंगून (म्यांमार), डॉ दीपक पांडेय, सहायक निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, डॉ प्रेमचंद पतंजलि, अध्यक्ष, नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली, डॉ शहाबुद्दीन शेख, कार्यकारी अध्यक्ष, नागरी लिपि परिषद्, अहमदनगर (महाराष्ट्र), डॉ हरिसिंह पाल, सदस्य, हिन्दी सलाहकार समिति, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, डीपीएस चौहान, आईपीएस, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक, ओडिशा, हामिद अख्तर, आईपीएस, उपमहानिरीक्षक, राज्य अपराध शाखा, पंचकूला, कर्नल आदित्य नेगी, कमांडिंग ऑफिसर,16वीं एनसीसी बटालियन, हरियाणा, रोहतक, विपिन शर्मा, राज्य नोडल अधिकारी, हरियाणा बाल-कल्याण समिति, चंडीगढ़, महिला सशक्तीकरण की पहचान युवा लेखिका प्रियंका सौरभ, सिवानी मंडी की उपस्थिति अहम रही।

 डॉ पुष्पा देवी, अध्यक्ष, हिंदी-विभाग, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक, डॉ भीमसिंह सुथार, प्राचार्य, श्रीश्याम स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय, भादरा (राजस्थान), कृतीश कुमार, मुख्यमंत्री के सुशासन सहयोगी, नारनौल, भारती सैनी और कमलेश सैनी, चेयरपर्सन, नगर परिषद्, नारनौल, अमित शर्मा, जिला समाज-कल्याण अधिकारी, नारनौल आदि के नाम भी इस सूची में शामिल हैं। डॉ पशुपतिनाथ उपाध्याय (अलीगढ़), डॉ कृष्णगोपाल मिश्र (होशंगाबाद), अविनाश शर्मा (जयपुर), विकेश निझावन (अंबाला) आदि साहित्यकारों के अतिरिक्त शिक्षाविद्, स्वतंत्र पत्रकार और कवि डाॅ सत्यवान सौरभ (सिवानी मंडी), पर्वतारोही डाॅ आशा झांझड़िया (रेवाड़ी), नेशनल यूथ अवार्डी अभिषेक (हिसार) और निहारिका (सोनीपत) ने भी इस वर्ष ट्रस्ट के कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाई।

डॉ एस अनुकृति, वरिष्ठ अर्थशास्त्री, विश्वबैंक, वाशिंगटन डीसी (अमेरिका), प्रो सिद्धार्थ रामलिंगम, कंसल्टेंट, बीसीजी, वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) और त्रिलोचन ढकाल, पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री, नेपाल सरकार, काठमांडू के नारनौल आगमन की भी खूब चर्चा हुई। ट्रस्ट द्वारा इस वर्ष देश-विदेश की लगभग डेढ़ सौ विख्यात विभूतियों को, विभिन्न क्षेत्रों में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के दृष्टिगत, विशिष्ट विश्व हिंदी-सेवी सम्मान, मातादीन-मूर्तिदेवी स्मृति-सम्मान, डॉ मनुमुक्त 'मानव' स्मृति-सम्मान, विशिष्ट लघुकथा-पुरस्कार, विशिष्ट युवा-पुरस्कार, विशिष्ट युवा-सम्मान, सर्वोत्तम एनसीसी कैडेट पुरस्कार आदि पुरस्कारों और सम्मानों से भी नवाजा गया। उल्लेखनीय है कि ट्रस्ट की इन गतिविधियों के कारण नारनौल का मनुमुक्त भवन भी पूरा वर्ष सांस्कृतिक केंद्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र बना रहा।

ट्रस्ट द्वारा मनुमक्त 'मानव' की स्मृति में प्रति वर्ष अढ़ाई लाख का एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, एक लाख का एक राष्ट्रीय पुरस्कार, इक्कीस-इक्कीस हज़ार के दो और ग्यारह-ग्यारह हज़ार के तीन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किये जा रहें हैं। मनुमुक्त भवन में साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम भी नियमित रूप से चलते रहते हैं। मात्र पांच वर्ष की अल्पावधि में ही अपनी उपलब्धियों के साथ नारनौल का मनुमुक्त भवन अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। आईपीएस मनुमुक्त 'मानव' युवा शक्ति के प्रतीक ही नहीं, प्रेरणा-स्रोत भी थे। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी स्मृतियां वैसी-की-वैसी हैं, हर वर्ष उनको बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है। उनके परिवार ने मनुमुक्त भवन की गतिविधयों को मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी प्रेरक स्मृतियों को जीवंत रखा हुआ है। इस कार्य में उनकी बड़ी बहन और विश्व बैंक वाशिंगटन की वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति भी भरसक प्रयास करती रहती हैं।
-प्रियंका सौरभ, रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार-127045 (हरियाणा) मोबाइल : 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप)

बिना सर के योद्धा नें मुगलों को मार गिराया

 7 मार्च 1679 ई0 की बात है, ठाकुर सुजान सिंह अपनी शादी की बारात लेकर जा रहे थे, 22 वर्ष के सुजान सिंह किसी देवता की तरह लग रहे थे,

ऐसा लग रहा था मानो देवता अपनी बारात लेकर जा रहे हों
उन्होंने अपने दुल्हन का मुख भी नहीं देखा था, शाम हो चुकी थी इसलिए रात्रि विश्राम के लिए "छापोली" में पड़ाव डाल दिये । कुछ ही क्षणों में उन्हें गायों में लगे घुंघरुओं की आवाजें सुनाई देने लगी, आवाजें स्पष्ट नहीं थीं, फिर भी वे सुनने का प्रयास कर रहे थे, मानो वो आवाजें उनसे कुछ कह रही थी ।
सुजान सिंह ने अपने लोगों से कहा, शायद ये चरवाहों की आवाज है जरा सुनो वे क्या कहना चाहते हैं ।
गुप्तचरों ने सूचना दी कि युवराज ये लोग कह रहे है कि कोई फौज "देवड़े" पर आई है। वे चौंक पड़े । कैसी फौज, किसकी फौज, किस मंदिर पे आयी है ?
जवाब आया "युवराज ये औरंगजेब की बहुत ही विशाल सेना है, जिसका सेनापति दराबखान है, जो खंडेला के बाहर पड़ाव डाल रखी है ।
कल खंडेला स्थित श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़ दिया जाएगा । निर्णय हो चुका था,
एक ही पल में सब कुछ बदल गया । शादी के खुशनुमा चहरे अचानक सख्त हो चुके थे, कोमल शरीर वज्र के समान कठोर हो चुका था ।
जो बाराती थे, वे सेना में तब्दील हो चुके थे, वे अपने सेना के लोगों से विचार विमर्श करने लगे । तब उनको पता चला कि उनके साथ मात्र 70 लोगों की छोटी सी एक सेना थी ।
तब वे रात्रि के समय में बिना एक पल गंवाए उन्होंने पास के गांव से कुछ आदमी इकठ्ठे कर लिए ।
करीब 500 घुड़सवार अब उनके पास हो चुके थे,
अचानक उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी, जिसका मुख भी वे नहीं देख पाए थे, जो डोली में बैठी हुई थी । क्या बीतेगी उसपे, जिसने अपनी लाल जोड़े भी ठीक से नहीं देखी हो ।
वे तरह तरह के विचारों में खोए हुए थे, तभी उनके कानों में अपनी माँ को दिए वचन याद आये, जिसमें उन्होंने राजपूती धर्म को ना छोड़ने का वचन दिया था, उनकी पत्नी भी सारी बातों को समझ चुकी थी, डोली के तरफ उनकी नजर गयी, उनकी पत्नी महँदी वाली हाथों को निकालकर इशारा कर रही थी । मुख पे प्रसन्नता के भाव थे, वो एक सच्ची क्षत्राणी के कर्तब्य निभा रही थी, मानो वो खुद तलवार लेकर दुश्मन पे टूट पड़ना चाहती थी, परंतु ऐसा नहीं हो सकता था ।
सुजान सिंह ने डोली के पास जाकर डोली को और अपनी पत्नी को प्रणाम किये और कहारों और नाई को डोली सुरक्षित अपने राज्य भेज देने का आदेश दे दिया और खुद खंडेला को घेरकर उसकी चौकसी करने लगे ।
लोग कहते हैं कि मानो खुद कृष्ण उस मंदिर की चौकसी कर रहे थे, उनका मुखड़ा भी श्रीकृष्ण की ही तरह चमक रहा था।


8 मार्च 1679 को दराबखान की सेना आमने सामने आ चुकी थी, महाकाल भक्त सुजान सिंह ने अपने इष्टदेव को याद किये और हर हर महादेव के जयघोष के साथ 10 हजार की मुगल सेना के साथ सुजान सिंह के 500 लोगो के बीच घनघोर युद्ध आरम्भ हो गया ।
सुजान सिंह ने दराबखान को मारने के लिए उसकी ओर लपके और 40 मुगल सेना को मौत के घाट उतार दिए । ऐसे पराक्रम को देखकर दराबखान पीछे हटने में ही भलाई समझी, लेकिन ठाकुर सुजान सिंह रुकनेवाले नहीं थे ।
जो भी उनके सामने आ रहा था वो मारा जा रहा था । सुजान सिंह साक्षात मृत्यु का रूप धारण करके युद्ध कर रहे थे । ऐसा लग रहा था मानो खुद महाकाल ही युद्ध कर रहे हों ।
इस बीच कुछ लोगों की नजर सुजान सिंह पे पड़ी,
लेकिन ये क्या सुजान सिंह के शरीर में सिर तो है ही नहीं...
😭😭😭😭😭😭
लोगों को घोर आश्चर्य हुआ, लेकिन उनके अपने लोगों को ये समझते देर नहीं लगी कि सुजान सिंह तो कब के मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं ।
ये जो युद्ध कर रहे हैं, वे सुजान सिंह के इष्टदेव हैं । सबों ने मन ही मन अपना शीश झुककर इष्टदेव को प्रणाम किये ।
अब दराबखान मारा जा चुका था, मुगल सेना भाग रही थी, लेकिन ये क्या, सुजान सिंह घोड़े पे सवार बिना सिर के ही मुगलों का संहार कर रहे थे ।
उस युद्धभूमि में मृत्यु का ऐसा तांडव हुआ, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगलों की 7 हजार सेना अकेले सुजान सिंह के हाथों मारी जा चुकी थी । जब मुगल की बची खुची सेना पूर्ण रूप से भाग गई, तब सुजान सिंह जो सिर्फ शरीर मात्र थे, मंदिर का रुख किये ।
इतिहासकार कहते हैं कि देखनेवालों को सुजान के शरीर से दिव्य प्रकाश का तेज निकल रहा था, एक अजीब विश्मित करनेवाला प्रकाश निकल रहा था, जिसमें सूर्य की रोशनी भी मन्द पड़ रही थी ।
ये देखकर उनके अपने लोग भी घबरा गए थे और सबों ने एक साथ श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे, घोड़े से नीचे उतरने के बाद सुजान सिंह का शरीर मंदिर के प्रतिमा के सामने जाकर लुढ़क गया और एक शूरवीर योद्धा का अंत हो गया ।

थर्मामीटर बुढ़ापा नापने का

😄😂🤣
1. दोस्त बुलाये पर, जानें का दिल न करे,
समझ लो बूढ़े हो गए।
2. पड़ोसन की जगह,पत्नी पर ज़्यादा प्यार आनें लगे,
समझ लो बूढ़े हो चले।
3. नए कपड़े खरीदनें की,इच्छा कम हो रही हो,
तो समझना बूढ़े हो चले।
4. रेस्टोरेंट में खाना खाते वक़्त,घर के खाने की याद आने लगे,
समझना बूढ़े हो चले।
5. बारिश हो रही हो और,पकौड़े की जगह छाता याद आये,
समझो बूढ़े हो चले।
6. हर बात पर युवाओं के,फैशन पर टिप्पणी करनें लगे हो,
समझना बूढ़े हो चले।
7. मौज-मस्ती वाली फिल्मों की,आलोचना करनें लगे हो तो,
समझना बूढ़े हो चले।
8. मस्त-महफ़िल सजी हो और,उस दौरान मशवरा देने लग जाओ,
तो समझना बूढ़े हो चले।
9. फूल पर गुनगुनाते भंवरे को देख,रोमांटिक गाना न याद आये,
समझना बूढ़े हो चले।
10. बेफिक्री छोड़ सर पर चिंता, की टोकरी उठा ली हो,
समझना बूढ़े हो चले।
12. घर से बाहर नहीं निकलने के बहाने बढ़ गए,
तो समझो बूढ़े हो गए।
13. इस पोस्ट को पढ़ने के बाद वाह वाह करने की इच्छा नहीं है,
तो समझो बूढ़े हो गए।

Monday, December 26, 2022

44 दरवाजों के महल में रहेंगे भगवान राम

 2024 में एक चमत्कार होगा...

पूरी दुनिया का भारत को नमस्कार होगा...
अयोध्या में 2024 में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर का प्रथम तल बनकर तैयार हो जाएगा। इस मंदिर के बारे में अब तक जो जानकारियां सामने आई हैं वह निम्नलिखित हैं...
भगवान राम का मंदिर अष्टकोणीय होगा।
मंदिर में 44 दरवाजे होंगे। सभी दरवाजे सागौन की लकड़ी से बनेंगे। सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र सरकार प्रदान करेगी...
44 दरवाजों के लिए 2000 घन फुट सागवान की लकड़ी मंगवाई गई है। दरवाजे तराशने के लिए कुशल कारीगरों की तलाश शुरू हो चुकी है...


इस मंदिर से चौरासी कोस की पूरी परिक्रमा तक जितनी भी इमारतें होंगी सारे भवन भगवा रंग के होंगे। इस पूरे चौरासी कोस के इलाके में एक कॉमन बिल्डिंग कोड लागू किया जाएगा। सभी मंदिरों के भवनों के रंग उसी रंग के होंगे जिस रंग का भगवान राम का मंदिर होगा...
सीता रसोई को एक बहुत बड़ी पाकशाला के रूप में विकसित किया जाएगा। यहां पर हजारों लोगों को निःशुल्क प्रसाद का वितरण किया जाएगा। इसके लिए अनाज और सब्जी के भंडारण हेतु भवन बनाया जाएगा। खाना बनाने के लिए भी विशेष व्यवस्थाएं की जाएंगी...
108 की संख्या हिंदू धर्म में विशेष रूप से पवित्र संख्या मानी जाती है इसीलिए पूरा मंदिर परिसर 108 एकड़ का होगा...
श्री राम मंदिर के गर्भगृह का निर्माण विशेष संगमरमर के पत्थरों से किया जाएगा। यह संगमरमर के पत्थर मकराना से लाए जाएंगे। मकराना के संगमरमर के पत्थरों से ही तेजो महालय का भी निर्माण हुआ है...
रामनवमी के विशेष मौके पर सिर्फ एक दिन भगवान श्रीराम का सूर्य तिलक होगा। सूर्य तिलक का अर्थ यह है कि रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें गर्भगृह में आकर रिफलेक्टर द्वारा सीधे भगवान राम के ललाट पर आज्ञा चक्र पर जाकर स्पर्श करेंगी। इसे ही सूर्य तिलक कहा जाएगा। इसके लिए आईआईटी और विशेष वैज्ञानिकों की मदद ली जा रही है...
तीर्थ ट्रस्ट का अनुमान है कि मंदिर बन जाने के बाद दर्शन के लिए हर दिन 50,000 से अधिक भक्त दर्शन करने आएंगे। इस तरह हर महीने करीब 15 लाख और साल में करीब दो करोड़ भक्तों के दर्शन हेतु आने की संभावना है। ऐसी स्थिति में भक्तों को आवागमन में कोई दिक्कत ना हो, इसके लिए विशेष प्रबंध किए जाएंगे...
सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि 2024 में जब दुनिया का इतना बड़ा तीर्थ भक्तों के लिए खुलेगा, तब दुनिया भर के 200 से ज्यादा देशों के तमाम सारे लोग भारत की इस महान विरासत को, इस महान चमत्कार को देख कर न सिर्फ चमत्कृत रह जाएंगे बल्कि भारत की महान संस्कृति के पूज्य मर्यादा पुरुषोत्तम का बंदन कर सकेंगेI
जय जय श्री राम