Sunday, January 8, 2023

कदम्ब का वह वृक्ष जहां मां यशोदा को भगवान कृष्ण नें ब्रह्मांड के दर्शन कराये

 मान्यता है कि मथुरा के गोकुल में आज भी यमुना के तट पर कदम्ब का वह वृक्ष उपस्थित है जिसके नीचे माँ #यशोदा ने भगवान श्री #कृष्ण के मुख में पूरे ब्रह्माण्ड के दर्शन किए थे।

यह पवित्र स्थान आज भी #कृष्ण भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। ग्रंथों में, कदम्ब के इस पेड़ को बाल #कृष्ण की अठखेलियों से भी जोड़ा गया है। अध्यात्म की दृष्टि से यह पेड़ अत्यधिक पूजनीय है जहां भक्त, यमुना में डुबकी लगाने के बाद दर्शन करते हैं।



Saturday, January 7, 2023

शास्त्रानुसार पूजा अर्चना में वर्जित क्रियाएं

१) गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं।

२) देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं।
३) शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं।
४) विष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं।
५) दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें।
६) मंदिर में तीन गणेश मूर्ति न रखें।
७) तुलसी पत्र चबाकर न खाएं।
८) द्वार पर जूते चप्पल उल्टे न रखें।
९) दर्शन करके बापस लौटते समय घंटा न बजाएं।
१०) एक हाथ से आरती नहीं लेना चाहिए।
११) ब्राह्मण को बिना आसन बिठाना नहीं चाहिए।
१२) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम वर्जित है।
१३) बिना दक्षिणा ज्योतिषी से प्रश्न नहीं पूछना चाहिए।
१४) घर में पूजा करने अंगूठे से बड़ा शिवलिंग न रखें।
१५) तुलसी पेड़ में शिवलिंग किसी भी स्थान पर न हो।
१६) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श नहीं करना है।
१७) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल नहीं फोडना है।
१८) रजस्वला स्त्री का पांच दिनों तक मंदिर में प्रवेश वर्जित है।
१९) परिवार में सूतक हो तो पूजा प्रतिमा स्पर्श न करें।
२०) शिवजी की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है।
२१) शिवलिंग से बहते जल को लांघना नहीं चाहिए।
२२) एक हाथ से प्रणाम न करें।
२३) दूसरे के दीपक में अपना दीपक जलाना नहीं चाहिए।
२४.१)चरणामृत लेते समय दायें हाथ के नीचे एक नैपकीन रखें ताकि एक बूंद भी नीचे न गिरे। 
२४.२) चरणामृत पीकर हाथों को सिर या शिखा पर न पोछें बल्कि आंखों पर लगायें शिखा पर गायत्री का निवास होता है उसे अपवित्र न करें।
२५) देवताओं को लोभान या लोभान की अगरबत्ती का धूप न करें।
२६) स्त्री द्वारा हनुमानजी शनिदेव को स्पर्श वर्जित है।
२७) कंवारी कन्याओं से पैर पडवाना पाप है।
२८) मंदिर परिसर में स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग दें।
२९) मंदिर में भीड़ होने पर  लाईन पर लगे हुए भगवन्नामोच्चारण करते रहें एवं अपने क्रम से ही अग्रसर होते रहें।
३0) शराबी का भैरव के अलावा अन्य मंदिर प्रवेश वर्जित है।
३१) मंदिर में प्रवेश के समय पहले दाहिना पैर और निकास के समय बाया पांव रखना चाहिए।
३२)घंटी को इतनी जोर से न बजायें कि उससे कर्कश ध्वनि उत्पन्न हो।
३४)हो सके तो मंदिर जाने के लिए एक जोड़ी वस्त्र अलग ही रखें।
३५) मंदिर अगर ज्यादा दूर नहीं है तो बिना जूते चप्पल के ही पैदल जाना चाहिए।
३६) मंदिर में भगवान के दर्शन खुले नेत्रों से करें और मंदिर से खड़े खड़े वापिस नहीं हों,दो मिनट बैठकर भगवान के रूप माधुर्य का दर्शन लाभ लें।
३७) आरती लेने अथवा दीपक का स्पर्श करने के बाद हस्तप्रक्षालन अवश्य करें ।।  

सर्दी के मौसम में खाएं ये 9 चीजे, जो आपको अंदर से गर्म रखेगी

ठंड के मौसम में सर्दी के असर से बचने के लिए लोग गर्म कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन शरीर को चाहे कितने ही गर्म कपड़ों से ढक लिया जाए ठंड से लड़ने के लिए बॉडी में अंदरूनी गर्मी होनी चाहिए। शरीर में यदि अंदर से खुद को मौसम के हिसाब से ढालने की क्षमता हो तो ठंड कम लगेगी और कई बीमारियां भी नहीं होंगी। यही कारण है कि ठंड में खानपान पर विशेष रूप से ध्यान देने को आयुर्वेद में बहुत महत्व दिया गया है। सर्दियों में यदि खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाए तो शरीर संतुलित रहता है और सर्दी कम लगती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी ही चीजों के बारे में जानिए कुछ ऐसे ही खाने की चीजों के बारे में


*1- बाजरा* – कुछ अनाज शरीर को सबसे ज्यादा गर्मी देते है। बाजरा एक ऐसा ही अनाज है। सर्दी के दिनों में बाजरे की रोटी बनाकर खाएं। छोटे बच्चों को बाजरा की रोटी जरूर खाना चाहिए। इसमें कई स्वास्थ्यवर्धक गुण भी होते है। दूसरे अनाजों की अपेक्षा बाजरा में सबसे ज्यादा प्रोटीन की मात्रा होती है। इसमें वह सभी गुण होते हैं, जिससे स्वास्थ्य ठीक रहता है। ग्रामीण इलाकों में बाजरा से बनी रोटी व टिक्की को सबसे ज्यादा जाड़ो में पसंद किया जाता है। बाजरा में शरीर के लिए आवश्यक तत्व जैसे *मैग्नीशियम,कैल्शियम,मैग्नीज, ट्रिप्टोफेन, फाइबर, विटामिन- बी, एंटीऑक्सीडेंट आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।*

*2. बादाम* – बादाम कई गुणों से भरपूर होते हैं। इसका नियमित सेवन अनेक बीमारियों से बचाव में मददगार है।अक्सर माना जाता है कि बादाम खाने से याददाश्त बढ़ती है, लेकिन यह ड्राय फ्रूट अन्य कई रोगों से हमारी रक्षा भी करता है। इसके सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है, जो सर्दियों में सबसे बड़ी दिक्कत होती है। बादाम में डायबिटीज को निंयत्रित करने का गुण होता है। *इसमें विटामिन – ई भरपूर मात्रा में होता है।*

*3. अदरक* – क्या आप जानते हैं कि रोजाना के खाने में अदरक शामिल कर बहुत सी छोटी-बड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है। सर्दियों में इसका किसी भी तरह से सेवन करने पर बहुत लाभ मिलता हैै। इससे शरीर को गर्मी मिलती है और डाइजेशन भी सही रहता है।

*4. शहद* – शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाए रखने के लिए शहद को आयुर्वेद में अमृत भी कहा गया है। यूं तो सभी मौसमों में शहद का सेवन लाभकारी है, लेकिन सर्दियों में तो शहद का उपयोग विशेष लाभकारी होता है। इन दिनों में अपने भोजन में शहद को जरूर शामिल करें। इससे पाचन क्रिया में सुधार होगा और इम्यून सिस्टम पर भी असर पड़ेगा।

*5. ओमेगा 3 फैटी एसिड –* सर्दियों में ओमेगा3 फैटी एसिड सबसे अच्छा फूड होता है। अखरोट का सेवन करें, इससे शरीर को गर्मी मिलती है। इसमें जिंक भरपूर मात्रा में होता है है। इसलिए यह शरीर का इम्युनिटी पॉवर बढ़ाता है व बीमारियों को दूर रखता है।

*6. रसीले फल न खाएं –* सर्दियों के दिनों में रसीले फलों का सेवन न करें। संतरा, रसभरी या मौसमी आपके शरीर को ठंडक देते है। जिससे आपको सर्दी या जुकाम जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

*7. मूंगफली* – 100 ग्राम मूंगफली के भीतर ये तत्व मौजूद होते हैं: प्रोटीन- 25.3 ग्राम, नमी- 3 ग्राम, फैट्स- 40.1 ग्राम, मिनरल्स- 2.4 ग्राम, फाइबर- 3.1 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट- 26.1 ग्राम, ऊर्जा- 567 कैलोरी, कैल्शियम – 90 मिलीग्राम, फॉस्फोरस 350 मिलीग्राम, आयरन-2.5 मिलीग्राम, कैरोटीन- 37 मिलीग्राम, थाइमिन- 0.90 मिलीग्राम, फोलिक एसिड- 20मिलीग्राम। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन, मिनिरल्स आदि तत्व इसे बेहद फायदेमंद बनाते हैं। यकीनन इसके गुणों को जानने के बाद आप कम से कम इस सर्दियों में मूंगफली से टाइमपास करने का टाइम तो निकाल ही लेंगे।

*8. सब्जियां* – अपनी खुराक में हरी सब्जियों का सेवन करें। सब्जियां, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और गर्मी प्रदान करती है। सर्दियों के दिनों में मेथी, गाजर, चुकंदर, पालक, लहसुन बथुआ आदि का सेवन करें। इनसे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।

*9. तिल* – सर्दियों के मौसम में तिल खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है। तिल के तेल की मालिश करने से ठंड से बचाव होता है। तिल और मिश्री का काढ़ा बनाकर खांसी में पीने से जमा हुआ कफ निकल जाता है। तिल में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे, प्रोटीन, कैल्शियम, बी कॉम्प्लेक्स और कार्बोहाइट्रेड आदि। प्राचीन समय से खूबसूरती बनाए रखने के लिए तिल का उपयोग किया जाता रहा ह !

लाल इमली

 एक जमाना था .. कानपुर की "कपड़ा मिल" विश्व प्रसिद्ध थीं कानपुर को "ईस्ट का मैन्चेस्टर" बोला जाता था।

लाल इमली जैसी फ़ैक्टरी के कपड़े प्रेस्टीज सिम्बल होते थे. वह सब कुछ था जो एक औद्योगिक शहर में होना चाहिए।
मिल का साइरन बजते ही हजारों मज़दूर साइकिल पर सवार टिफ़िन लेकर फ़ैक्टरी की ड्रेस में मिल जाते थे। बच्चे स्कूल जाते थे। पत्नियाँ घरेलू कार्य करतीं । और इन लाखों मज़दूरों के साथ ही लाखों सेल्समैन, मैनेजर, क्लर्क सबकी रोज़ी रोटी चल रही थी।
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फ़िर "कम्युनिस्टो" की निगाहें कानपुर पर पड़ीं.. तभी से....बेड़ा गर्क हो गया।
"आठ घंटे मेहनत मज़दूर करे और गाड़ी से चले मालिक।"
ढेरों हिंसक घटनाएँ हुईं,
मिल मालिक तक को मारा पीटा भी गया।
नारा दिया गया
"काम के घंटे चार करो, बेकारी को दूर करो"
अलाली किसे नहीं अच्छी लगती है. ढेरों मिडल क्लास भी कॉम्युनिस्ट समर्थक हो गया। "मज़दूरों को आराम मिलना चाहिए, ये उद्योग खून चूसते हैं।"
कानपुर में "कम्युनिस्ट सांसद" बनी सुभाषिनी अली । बस यही टारगेट था, कम्युनिस्ट को अपना सांसद बनाने के लिए यह सब पॉलिटिक्स कर ली थी ।
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अंततः वह दिन आ ही गया जब कानपुर के मिल मज़दूरों को मेहनत करने से छुट्टी मिल गई। मिलों पर ताला डाल दिया गया।
मिल मालिक आज पहले से शानदार गाड़ियों में घूमते हैं (उन्होंने अहमदाबाद में कारख़ाने खोल दिए।) कानपुर की मिल बंद होकर भी ज़मीन के रूप में उन्हें (मिल मालिकों को) अरबों देगी। उनको फर्क नहीं पड़ा ..( क्योंकि मिल मालिकों कभी कम्युनिस्ट के झांसे में नही आए !)
कानपुर के वो 8 घंटे यूनिफॉर्म में काम करने वाला मज़दूर 12 घंटे रिक्शा चलाने पर विवश हुआ .. !! (जब खुद को समझ नही थी तो कम्युनिस्ट के झांसे में क्यों आ जाते हो ??)
स्कूल जाने वाले बच्चे कबाड़ बीनने लगे...
और वो मध्यम वर्ग जिसकी आँखों में मज़दूर को काम करता देख खून उतरता था, अधिसंख्य को जीवन में दुबारा कोई नौकरी ना मिली। एक बड़ी जनसंख्या ने अपना जीवन "बेरोज़गार" रहते हुए "डिप्रेशन" में काटा।


 
"कॉम्युनिस्ट अफ़ीम" बहुत "घातक" होती है, उन्हें ही सबसे पहले मारती है, जो इसके चक्कर में पड़ते हैं..!
कॉम्युनिज़म का बेसिक प्रिन्सिपल यह है :
"दो क्लास के बीच पहले अंतर दिखाना, फ़िर इस अंतर की वजह से झगड़ा करवाना और फ़िर दोनों ही क्लास को ख़त्म कर देना"

Friday, January 6, 2023

माँ का सम्मान

*एक मध्यम वर्गीय परिवार के एक लड़के ने 10वीं की परीक्षा में 90% अंक प्राप्त किए ।*

  
*पिता ने मार्कशीट देखकर खुशी-खुशी अपनी बीवी को कहा कि बना लीजिए मीठा दलिया, स्कूल की परीक्षा में आपके लाड़ले को 90% अंक मिले हैं ..!*

*माँ किचन से दौड़ती हुई आई और बोली, "..मुझे भी बताइये, देखती हूँ...!*

*इसी बीच लड़का फटाक से बोला..."बाबा उसे रिजल्ट कहाँ दिखा रहे हैं ?... क्या वह पढ़-लिख सकती है ? वह अनपढ़ है ...!"*

*अश्रुपुर्ण आँखों को पल्लु से पोंछती हुई माँ दलिया बनाने चली गई ।*

*ये बात  पिता ने तुरंत सुनी ...!  फिर उन्होंने लड़के के कहे हुए वाक्यों में जोड़ा, और कहा... "हां रे ! वो भी सच है...!*

*जब तू गर्भ में था, तो उसे दूध बिल्कुल पसंद नहीं था,  उसने तुझे स्वस्थ बनाने के लिए हर दिन नौ महीने तक दूध पिया ....क्योंकि वो अनपढ़ थी ना ...!*

*तुझे सुबह सात बजे स्कूल जाना होता था, इसलिए वह सुबह पांच बजे उठकर तुम्हारा मनपसंद नाश्ता और डिब्बा बनाती थी.....क्योंकि वो अनपढ़ थी ना ...!*

*जब तुम रात को पढ़ते-पढ़ते सो जाते थे, तो वह आकर तुम्हारी कॉपी व किताब बस्ते में भरकर, फिर तुम्हारे शरीर पर ओढ़नी से ढँक देती थी और उसके बाद ही सोती थी.....क्योकि अनपढ़ थी ना ...!*

*बचपन में तुम ज्यादातर समय बीमार रहते थे... तब वो रात- रात भर जागकर सुबह जल्दी उठती थी और काम पर लग जाती थी......क्योंकि वो अनपढ़ थी ना...!*
 
*तुम्हें, ब्रांडेड कपड़े लाने के लिये मेरे पीछे पड़ती थी, और खुद सालों तक एक ही साड़ी में रहती थी । क्योंकि वो अनपढ़ थी ना....!*

*बेटा .... पढ़े-लिखे लोग पहले अपना स्वार्थ और मतलब देखते हैं.. लेकिन तेरी माँ ने आज तक कभी नहीं देखा।*
*क्योंकि अनपढ़ है  ना वो...!*

*वो खाना बनाकर और हमें परोसकर, कभी-कभी खुद खाना भूल जाती थी...इसलिए मैं गर्व से कहता हूं कि तुम्हारी माँ अनपढ़ है...'*

*यह सब सुनकर लड़का रोते रोते, और लिपटकर अपनी माँ से बोलता है.."माँ, मुझे तो कागज पर 90% अंक ही मिले हैं। लेकिन आप मेरे जीवन को 100% बनाने वाली पहली शिक्षक हैं।*

 *माँ, मुझे आज 90% अंक मिले हैं, फिर भी मैं अशिक्षित हूँ और आपके पास पीएचडी के ऊपर की उच्च डिग्री है।  क्योंकि आज मैंने अपनी माँ के अंदर छुपे रूप में, डॉक्टर, शिक्षक, वकील, ड्रेस डिजाइनर, बेस्ट कुक, इन सभी के दर्शन कर लिये !*

*प्रत्येक लड़का-लड़की जो अपने माता-पिता का अपमान करते हैं, उन्हें अपमानित करते हैं, छोटे- मोटे कारणों के लिए क्रोधित होते हैं। उन्हें सोचना चाहिए, उनके लिए क्या-क्या कष्ट सहा है, उनके माता पिता ने ...*

Wednesday, January 4, 2023

गांधी बनना आसान नहीं

जो लोग रोज बखेड़ा करते,

    उल्टा सीधा कहते फिरते।
मैं उनको आज बताना चाहूं
   गांधी बनना आसान नहीं ।

जो लोगों को हैं समझाते ,
     गांधी को समकक्ष बताते। 
उनको मैं आज बताना चाहूं,
      गांधी शक्ति का उनको भान नहीं।

जो नींवों की अनदेखी करते,
    दीवारों की बम बम करते।
उनको मैं आज बताना चाहूं
   ‌नींव बनना आसान नहीं ।

पर तंत्र में विरुद्ध खड़ा होना,
   ग़लत नीतियों पर उसको धोना ।
 उनको मैं आज बताना चाहूं, 
   इतना छोटा भी काम नहीं।

आधी धोती पहनकर चलना,
    पद पैसे की चाह न रखना।
उनको मैं आज बताना चाहूं,
    यह और किसी के नाम नहीं।

निज हित से हो सराबोर,
     जो गांधी निंदा करते मुंहजोर ।
उनको मैं आज बताना चाहूं,
    गांधी जैसा किसी का काम नहीं।

     - हरी राम यादव
       स्वतंत्र लेखक एवं कवि

नए साल के सपने जो भारत को सोने न दें

हमने कई मौकों पर अपने सपने को टूटते हुए देखा है लेकिन फिर भी हम हर मुसीबत की स्थिति से मजबूत और आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। स्वराज के महत्व को समझना चाहिए और इन सपनों को आगे बढ़ाने के लिए आक्रामक रूप से शुरुआत करनी चाहिए ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को भी बेहतर भविष्य प्रदान कर सकें। धर्म के नाम पर कही गई बातों पर आंख मूंदकर विश्वास न करने, विवेक का पालन करने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए। हम इस सपने तक पहुँचने से बहुत दूर हैं लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए।  मैं डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के बेहतरीन उद्धरणों पर समाप्त करना चाहता हूं "सपने वह नहीं हैं जो आप नींद में देखते हैं, बल्कि वह हैं जो आपको सोने नहीं देते"।


-डॉ सत्यवान सौरभ

"आधी रात को, जब दुनिया सोती है,  भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जागेगा"। जवाहरलाल नेहरू का यह "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" भाषण उस सपने का प्रतीक था जिसे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने पूरा किया था। इसने हमें, भारत के लोगों द्वारा पालन किए जाने वाले अगले सपने का विजन भी दिया।
भारत के बारे में गांधी का दृष्टिकोण हमारे देश के आत्मनिर्भर विकास के लिए घरेलू औद्योगीकरण को बढ़ावा देना था। उनका विचार था कि ग्रामीण भारत भारत के विकास की रीढ़ है। यदि भारत को विकास करना है, तो ग्रामीण क्षेत्र का भी समान विकास होना चाहिए। वह यह भी चाहते थे कि भारत गरीबी, बेरोजगारी, जाति, रंग पंथ, धर्म के आधार पर भेदभाव जैसी सभी सामाजिक बुराइयों से मुक्त हो, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से निचली जातियों (दलितों) के खिलाफ अस्पृश्यता को समाप्त करे जिन्हें वह 'हरिजन' कहते हैं।

ये दर्शन भारत के तत्कालीन समाज के सामाजिक स्तर को दर्शाते हैं। स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद भी हम अभी भी इन सामाजिक मुद्दों को भारत में कायम पाते हैं। हमारे संविधान की प्रस्तावना भारत को संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र देश के रूप में निर्दिष्ट करती है। आइए देखें कि इस परिभाषा को सच करने के लिए हमने भारत के नागरिक के रूप में अपने सपने को कैसे पूरा किया है। 100 वर्षों के स्वतंत्रता संग्राम के बाद हम इस सपने को साकार करने में सक्षम हुए हैं। शीत युद्ध के दौर में भी जब दो महाशक्तियां अमेरिका और सोवियत संघ एक-दूसरे का मुकाबला करने के लिए गठबंधन बना रहे थे, हमने अपनी संप्रभुता को बनाए रखने के लिए किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होने के लिए गुटनिरपेक्षता का विकल्प चुना। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र द्वारा उपनिवेशवाद पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन नव-उपनिवेशीकरण के समान अंतरराष्ट्रीय दुनिया में अपनी जड़ें जमा रहा है।

नव उपनिवेशीकरण को अन्य राज्यों द्वारा राज्यों की नीतियों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण के रूप में परिभाषित किया गया है। हाल ही में हमने भारत और अन्य अविकसित देशों जैसे अमेरिका द्वारा संयुक्त राष्ट्र में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीजों को पेश करने और विकसित देशों से कृषि आयात के लिए बाजार को उदार बनाने के लिए दबाव देखा है। जीएम बीज कृषि का निजीकरण करते हैं और इस प्रकार मिट्टी की गुणवत्ता के साथ-साथ भारत के किसानों की सामाजिक स्थिति के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा करते हैं। भारतीय मिट्टी के अनुकूल बीजों के विकास में अनुसंधान पर अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को लगातार निशाना बनाया गया है।

भारत की संप्रभुता के लिए खतरे का अन्य उदाहरण वैश्विक आतंकवाद के माध्यम से है। भारत 26/11 और पठानकोट में उग्रवादियों द्वारा किए गए हमले का गवाह रहा है। बोडोलैंड की मांग के लिए असम अलगाववादी आंदोलन से भारत नक्सलियों और पूर्वोत्तर में उग्रवादियों से उग्रवादी गतिविधियों का भी सामना करता है। इन गतिविधियों से निर्दोष जीवन की हानि होती है और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचता है जिससे देश के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। इस सपने को जिंदा रखने के लिए हमें इन गतिविधियों के खिलाफ एकता दिखानी होगी। इंटरनेट पर एकाधिकार करने के लिए फेसबुक के खिलाफ भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के फैसले का उदाहरण भारत के लोगों द्वारा मजबूत सर्वसम्मत अस्वीकृति के कारण था।

हमारे पहले प्रधान मंत्री देश की योजना और विकास में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका के विचार के थे। उद्योगों का उदारीकरण 1991 के बाद ही हुआ, लाइसेंस राज खत्म हुआ। हाल ही में हमने भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के माध्यम से धन का प्रवाह देखा। अगर हम करीब से देखें तो हमने भारत के अधिकतम क्षेत्रों में 100% एफडीआई नहीं खोला है। बाजार का निजीकरण निस्संदेह गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के साथ समाज में सर्वश्रेष्ठ प्रतिस्पर्धा प्रदान करता है। लेकिन अगर हम इसे अपनाते हैं, तो बाजार में केवल उन्हीं उत्पादों की आपूर्ति होगी जिनकी मांग है और जिससे वे अन्य आवश्यक आपूर्तियों की उपेक्षा करते हुए लाभ कमा सकते हैं।

साथ ही समाजवादी समाज का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक के लिए समान परिणाम प्राप्त करना, नौकरियों में समान अवसर प्रदान करना, न्यूनतम मजदूरी प्रदान करना और भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को प्रदान करना है। वर्तमान में भारत गरीबी, अस्वस्थता, बेरोजगारी, भेदभाव के कारण दुर्व्यवहार, खराब शिक्षा आदि के कारण जागरूकता की कमी आदि से पीड़ित वंचितों की सबसे बड़ी संख्या वाला देश है। इन सामाजिक मुद्दों पर अंकुश लगाने के लिए सक्रिय रूप से संगठनों का गठन करते हुए हमें भारत के नागरिक के रूप में सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों को ईमानदारी से लागू करने में सक्रिय होना चाहिए।

भारत अनेकता में अपनी एकता पाता है। आजादी के बाद हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद भारत को यह बात समझ में आ गई कि किसी भी धर्म का पक्ष लेने से भारत को लंबे समय तक नुकसान उठाना पड़ता है। लेकिन आज भी हम समाज में धार्मिक घृणा पाते हैं। इतने सालों में हमने 1984 के सिख दंगों, 2002 के गोधरा कांड, 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों, बाबरी मस्जिद के विध्वंस और कई अन्य के रूप में सांप्रदायिक दंगे देखे हैं। धार्मिक राजनीति ने भारतीय राजनीति में अपनी जड़ें जमा ली हैं। बीफ खाने पर हालिया प्रतिबंध और 'घर वापसी', 'लव जेहाद' आदि जैसे आंदोलन धर्मनिरपेक्षता के मूल मूल्यों के खिलाफ हैं।

धर्म के नाम पर कही गई बातों पर आंख मूंदकर विश्वास न करने, विवेक का पालन करने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए। हम इस सपने तक पहुँचने से बहुत दूर हैं लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए। समाज को इन धार्मिक संस्थाओं द्वारा लगाए गए अतार्किक कटौती का विरोध करना चाहिए।
इस संबंध में हम देख सकते हैं कि लोकतंत्र ने भारतीय समाज में अपनी जड़ें जमा ली हैं। संघों का सक्रिय गठन, चुनाव प्रक्रियाओं में भागीदारी में वृद्धि, विवादित परिदृश्यों का शांतिपूर्ण समाधान देश के दूर-दराज के हिस्सों में भी सक्रिय रूप से देखा जाता है।

असहिष्णुता को लेकर हाल के परिदृश्य ने एक बार फिर हमारे लोकतांत्रिक विश्वास की अटकलों को हवा दे दी है। हम लगातार ऐसी स्थिति देखते रहे हैं जहां हम पाते हैं कि लेखक के विचारों के लेखन के खिलाफ धर्म द्वारा फतवा जारी किया जाता है। फेसबुक पर पोस्ट के कारण लोगों को जेल में डाला जा रहा है। साथ ही हम अपने देश में जाति आधारित राजनीति, धर्म आधारित राजनीति देखते हैं। राष्ट्रीय दल लोकतंत्र का कुरूप चेहरा दिखाते हुए लगातार गंदी राजनीति कर रहे हैं।

लोकतंत्र वह शक्ति है जो लंबे ऐतिहासिक संघर्ष के बाद मिली है। हमें समाज की अज्ञानता को स्वतंत्रता के रूप में हमें मिले सर्वोत्तम उपहार को छीनने नहीं देना चाहिए। गणतंत्र भारत के नागरिक के रूप में हम अपने संविधान में सर्वोच्चता मानते हैं। 1976 के आपातकाल के समय हमारे संविधान को चुनौती का सामना करना पड़ा। प्राधिकरण द्वारा उनके व्यक्तिगत भविष्य के हित के लिए इसमें बड़े पैमाने पर संशोधन किया गया है। लेकिन जल्द ही सरकार ने देश के नागरिकों के कड़े विरोध को देखा और संविधान में निहित शक्ति को महसूस किया।

इतने सालों के बाद हमने 105  बार संविधान में संशोधन किया है। प्राधिकारियों में निहित कई शक्तियों की फिर से जाँच की गई है और शासन के कई नए प्रावधान जोड़े गए हैं, उदाहरण के लिए पंचायती राज आदि। न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और स्वतंत्र निकायों में निहित संतुलित शक्ति ने नागरिकों को प्रभावी ढंग से शासन में योगदान करने में मदद की है। संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय की इस भावना को कभी नहीं भूलना चाहिए। इस मशीनरी के प्रभावी ढंग से प्रसंस्करण में विश्वास रखना चाहिए।

हमने कई मौकों पर अपने सपने को टूटते हुए देखा है लेकिन फिर भी हम हर मुसीबत की स्थिति से मजबूत और आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। स्वराज के महत्व को समझना चाहिए और इन सपनों को आगे बढ़ाने के लिए आक्रामक रूप से शुरुआत करनी चाहिए ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को भी बेहतर भविष्य प्रदान कर सकें। मैं डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के बेहतरीन उद्धरणों पर समाप्त करना चाहता हूं "सपने वह नहीं हैं जो आप नींद में देखते हैं, बल्कि वह हैं जो आपको सोने नहीं देते"।

मंगल हो नववर्ष

मिटे सभी की दूरियाँ, रहे न अब तकरार।
नया साल जोड़े रहे, सभी दिलों के तार।।

बाँट रहे शुभकामना, मंगल हो नववर्ष।
आनंद उत्कर्ष बढ़े, हर चेहरे हो हर्ष।।

माफ करो गलती सभी, रहे न मन पर धूल।
महक उठे सारी दिशा, खिले प्रेम के फूल।।

छोटी सी है जिंदगी, बैर भुलाये मीत।
नई भोर का स्वागतम, प्रेम बढ़ाये प्रीत।।

माहौल हो सुख चैन का, खुश रहे परिवार।
सुभग बधाई मान्यवर, मेरी हो स्वीकार।।

खोल दीजिये राज सब, करिये नव उत्कर्ष।
चेतन अवचेतन खिले, सौरभ इस नववर्ष।।

आते जाते साल है, करना नहीं मलाल।
सौरभ एक दुआ करे, रहे सभी खुशहाल।।

-डॉ सत्यवान सौरभ

 

प्रतिभा पलायन

शिक्षा का बड़ा केंद्र बने भारतl

विगत दो दशकों में प्रतिभा पलायन भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है शिक्षा के क्षेत्र में बड़े शिक्षा संस्थानों में भारी-भरकम खर्च के बाद शिक्षित युवक विदेशों में अपनी सेवाएं प्रदान करने को सदैव तत्पर रहते हैं इसका बड़ा कारण विदेशी मुद्रा की कमाई और विदेशी चकाचौंध के तरफ आकर्षण ही होता हैl इससे भारत के आर्थिक तंत्र पर बड़ा भार प्रत्यारोपित होता हैl इतना खर्च कर के पढ़ाई करने के बाद भारतीय युवा मस्तिष्क भारत के विकास में योगदान न दें तो देश के लिए विडंबना की भांति हैl भारत के इतिहास पर नजर डालें, तो नालंदा,तक्षशिला, शांति निकेतन,और पाटलिपुत्र जैसे बड़े शिक्षा के केंद्र रहे हैं। सदैव अलग-अलग देशों से शिष्य शिक्षा प्राप्त करने भारत आते रहे हैं। अब ऐसा क्या हो गया है कि भारत से तकनीकी, चिकित्सकीय और संचार माध्यमों, मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए भारत से लगभग दो से ढाई लाख छात्र विदेश में पढ़ने के लिए जाने लगे हैं। वही भारत सरकार का सदैव प्रयास रहा है की विदेशी छात्र हिंदुस्तान में पढ़ाई के लिए देश में आए और और हिंदुस्तानी डिग्री लेकर अपने देश में लौटे। इस तरह भारत सरकार द्वारा भारत को एक बड़ा शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहता है। और किसके लिए एक अभियान फेलोशिप कार्यक्रम चलाया गया है। इसके अलावा सरकार द्वारा एक प्रोजेक्ट डेस्टिनेशन इंडिया भी शुरू किया गया है। जिसके अंतर्गत विदेशी छात्रों की प्रवेश की प्रक्रिया को अत्यंत सरल सुगम बनाना है जिससे ज्यादा से ज्यादा छात्र भारत में पढ़ कर डिग्री हासिल करें अभी वर्तमान में भारत में आसियान देशों के निवासी छात्रों की संख्या लगभग सवा दो लाख के करीब है मानव संसाधन विभाग द्वारा इसे आगामी वर्षों में चार गुना करना चाहती है। आसियान देशों के छात्र भारत में पढ़ने से थोड़ा हिचकिचाते भी हैं,जिसके अनेक कारणों में से अपराधिक गतिविधियां, प्रदूषण, गर्मी, प्रवेश की लंबी लंबी प्रक्रिया, और भारतीय डिग्री की मान्यता नहीं होना भी शामिल है भारत में बारह से चौदह ऐसे शिक्षा संस्थान हैं, जो विश्व के 200 मान्यता प्राप्त संस्थानों में शामिल हैं। भारत में शिक्षा प्राप्त करना कम ख़र्च में संभव है, पर भारत के छात्र अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया, कनाडा,सिंगापुर में पढ़ना चाहते हैं जहां पढ़ने का खर्च डॉलर में यहां से चार गुना पड़ता है। जबकि भारत में आए छात्रों का पढ़ाई तथा खाने-पीने रहने का खर्च लगभग एक चौथाई होता है, फिर भी भारत के अभिभावक अपने बच्चों को विदेश भेजने में वरीयता देते हैं।भारत द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है कि भारत के विश्वविद्यालयों की शिक्षा की गुणवत्ता विदेशी स्तर पर हो,पर इसमें काफी समय लगने की गुंजाइश भी है।यह भी संभव होगा कि विदेशी विश्वविद्यालयों की शाखाएं भारत में खोल दी जाए, और भारत के छात्र भारत में ही रह कर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें। असल चिंता की बात यह है कि विदेश में जाने वाले छात्र वहां पढ़कर वही के संस्थानों में अपनी नौकरी खोज कर वहीं रहने लगते है। दूसरा यह है कि यहां की तकनीकी टॉप संस्थानों के होनहार युवक विदेशों में मोटी मोटी तनख्वाह में नौकरी देख कर विदेश चले जाते हैं, इस तरह भारत सरकार का उन पर किए जाने वाला खर्च का फायदा भारतीय संस्थानों को ना होकर विदेशी संस्थाएं उठा ले जाती है ।इस तरह प्रतिभा पलायन भारत के लिए और भारतीय शिक्षा पद्धति तथा भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए नुकसानदेह भी है। भारत ने आसियान देशों के एक हजार छात्रों के लिए फैलोशिप कि 2018 में योजना बनाकर राशि आवंटित की थी। हर साल 200 से 300 छात्रों को बड़े तकनीकी संस्थानों में डॉक्टरेट की उपाधि देने की योजना बनाई थी। पर बीते वर्ष केवल आसियान देशों के 45 छात्रों ने पंजीयन करवाया था,इस तरह विकासशील देशों के छात्र भी भारत में पढ़ाई के लिए आकर्षित नहीं हो रहे हैं। मानव संसाधन विभाग को उच्च शिक्षा उपयोगी और व्यवसायिक शिक्षा के रूप में दी जानी चाहिए, जिस की उपयोगिता रोजमर्रा के कामों में हो सके और शिक्षा के माध्यम से युवकों को शत-शत रोजगार प्राप्त हो सके। तभी प्रतिभा पलायन में अंकुश लग हमारी शिक्षा पद्धति की उपयोगिता बढ़ेगी।
संजीव ठाकुर, स्तंभकार ,चिंतक लेखक 

महिलाएं क्यों पहनती हैं चूड़ियां?

क्या है इसका धार्मिक महत्व

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हिंदू धर्म में महिलाएं अपने हाथों में चूड़ियां क्यों पहनती हैं। चूड़ियां पहनना सिर्फ परंपरा है या इसका कोई धार्मिक महत्व भी है। ऐसे कई सवाल आपके दिमाग में कौंधते होंगे। पेश है इसकी विस्तृत जानकारी-

ऐसी मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं चूड़ियां पहनती हैं, उस घर में किसी चीज की कमी नहीं होती। घर के लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

चूड़ियां पहनने की यह परंपरा काफी लंबे समय से चली आ रही है। हिंदू धर्म में सामान्य तौर पर चूड़ियों को सुहागिन महिला की निशानी माना जाता है। धार्मिक आधार पर ऐसा कहा जाता है कि चूड़ियां पहनने से सुहागिन के पति की उम्र लंबी होती है। सुहागिन के पति की रक्षा होती है। मान्यता है कि इससे पति-पत्नी का आपसी प्यार बढ़ता है और वैवाहिक जीवन में खुशियां बनी रहती हैं।

वैदिक युग से ही चूड़ियों के प्रमाण:-
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महिलाओं के हाथों में चूड़ियां उनके सुहागिन होने का प्रमाण होता है। वैदिक युग से ही महिलाएं अपने हाथों में चूड़ियां पहनती आ रही हैं। इसलिए हिन्दू देवियों की तस्वीरों और मूर्तियों में उन्हें चूड़ी पहनते हुए दिखाया जाता है। चूड़ियां पहनने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी छिपा हुआ है।

चूड़ियां पहनने के धार्मिक कारण:-
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आपको बता दें कि देवी पूजन में दुर्गा माँ को 16 शृंगार चढ़ाया जाता है। इन सोलह शृंगार में चूड़ियां भी होती हैं। इसके साथ ही चूड़ियों को दान करने से भी पुण्य की प्राप्ति भी होती हैं। बुध देव का आशीर्वाद पाने के लिए महिलाओं को हरी चूड़ियां दान में दी जाती हैं। तथा चूड़ियां पहनना महिलाओं की लिए शुभ माना जाता है क्योंकि महिलाएं देवी की प्रतीक होती है इसीलिए चूड़ियों का दान देवी को दिया जाता है।

चूड़ियां पहनने के वैज्ञानिक कारण:-
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आपको जानकार हैरानी होगी कि चूड़ियां पहनने से कुछ लाभ भी होते हैं । वैज्ञानिक दृष्टि से चूड़ियां जिस धातु से बनी होती हैं उसका उसे पहनने वाली महिला के स्वास्थ्य पर अनूकूल प्रभाव पड़ता है। यानी चूड़ियां पहनने के धार्मिक महत्व के साथ उनके वैज्ञानिक फायदे भी हैं। ये फायदे इस प्रकार हैं-

-हाथों में चूड़ी पहनना सांस के रोग और दिल की बीमारी की आशंकाओं को घटाता है।

-चूड़ी पहनने से मानसिक संतुलन बना रहता है, तभी महिलाएं अपने काम को बड़े ही निष्ठा भाव से करती हैं।

-विज्ञान के अनुसार चूड़ियों का घर्षण ऊर्जा बनाए रखता है और थकान को मिटाने सहायक होता है या थकान को दूर रखता है।

-विज्ञान का मानना है कि कांच की चूड़ियों के टकराने से निकलने वाली ध्वनि से वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।

राजेन्द्र गुप्ता,

खुश कौन है?

 जंगल में एक कौआ रहता था और जीवन में पूर्णतया संतुष्ट था। एक दिन उसने एक हंस देखा और सोचा, "यह हंस कितना सफेद है और मैं कितना काला हूँ। यह हंस दुनिया का सबसे सुखी पक्षी होना चाहिए।"


उसने हंस के सामने अपने यह विचार रखे।

हंस ने उत्तर दिया, "दरअसल पहले मैं महसूस करता था कि मैं सबसे सुखी हूँ पर जबसे मैंने तोता देखा है, जिसके दो रंग होते हैं, तबसे मुझे लगता है कि तोता सृष्टि में सबसे सुखी पक्षी है।"

कौआ अब तोते के पास पहुँचा। तोते ने समझाया,“जब तक मैंने एक मोर को नहीं देखा था, तब तक मैं बहुत सुखी था। मेरे पास तो केवल दो रंग हैं, लेकिन मोर के पास तो कई रंग हैं।"

कौआ फिर चिड़ियाघर में एक मोर के पास गया और देखा कि मोर को देखने के लिए सैकड़ों लोग जमा थे। लोगों के जाने के बाद कौआ मोर के पास पहुँचा और बोला "प्रिय मोर, तुम बहुत सुंदर हो। हर दिन हजारों लोग तुमको देखने आते हैं। जब लोग मुझे देखते हैं तो तुरंत मुझे भगा देते हैं। मुझे लगता है कि तुम इस ग्रह पर सबसे सुखी पक्षी हो।"

मोर ने उत्तर दिया, "मैंने हमेशा सोचा था कि मैं ग्रह पर सबसे सुंदर और सुखी पक्षी हूँ। लेकिन मैं अपनी खूबसूरती की वजह से इस चिड़ियाघर में फंस गया हूँ। मैंने बहुत गहराई से सोचा और महसूस किया है कि कौवा ही एकमात्र ऐसा पक्षी है जिसे पिंजरे में नहीं रखा जाता है। इसलिए पिछले कुछ दिनों से मैं सोच रहा हूँ कि अगर मैं कौवा होता तो खुशी-खुशी हर जगह घूम सकता था।

हमारी भी यही समस्या है। हम दूसरों के साथ अपनी अनावश्यक तुलना करते हैं और दुखी होते हैं। भगवान ने हमें जो दिया है, हम उसकी कद्र नहीं करते।

यह सब हमें दुख के दुष्चक्र की ओर ले जाता है।
                         

*"ख़ुशी आत्मा का गुण है। यह एक ऐसा शुद्ध स्पंदन है जो हमारे अस्तित्व के केंद्र से उत्पन्न होकर बाहर की ओर प्रसारित होता है। हमें शाश्वत आनंद तब मिलता है जब हम ख़ुशी के माध्यमों के पीछे भागने के बजाय स्वयं स्रोत को, मूल को पाने की कोशिश करते हैं। सभी खुशियों का रहस्य मन की गतिविधियों को स्थिर व संतुलित करने में निहित है। संतोष से मन स्थिर होता है। संतोष ही आंतरिक शांति का मूल आधार है।"* सुप्रभात , आपका दिन शुभ हो। 🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

Tuesday, January 3, 2023

भक्त और भगवान

 ।। जय श्रीहरि ।।

*एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो हमारे घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें।बेटी ने यह भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते । संत ने बेटी के आग्रह को स्वीकार किया ।*
*कुछ समय बाद जब संत घर आए,तो उसके पिताजी पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे और एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी ।*
*संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से यह कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई हो ।*
*संत ने पूछा - मुझे लगता है कि आप मेरे ही आने की उम्मीद कर रहे थे,पिता - नहीं,आप कौन हैं ?*
*संत ने अपना परिचय दिया और फिर कहा- मुझे यह खाली कुर्सी देखकर लगा कि आपको मेरे आने का आभास था ।*
*पिता- ओह यह बात नहीं है,आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाजा बंद करेंगे क्या ? संत को यह सुनकर थोड़ी हैरत हुई, फिर भी दरवाजा बंद कर दिया ।*
*पिता- दरअसल इस खाली कुर्सी का राज मैंने आज तक किसी को भी नहीं बताया, अपनी बेटी को भी नहीं।पूरी जिंदगी,मैं यह जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है ।*


*मंदिर जाता था,पुजारी के श्लोक सुनता था,वो तो सिर के ऊपर से गुज़र जाते थे, कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता था ।*
*मैंने फिर प्रार्थना की कोशिश करना छोड़ दिया ।*
*लेकिन चार साल पहले मेरा एक दोस्त मिला उसने मुझे बताया कि प्रार्थना कुछ नहीं,भगवान से सीधे संवाद का माध्यम होती है,उसी ने सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो,फिर विश्वास करो कि वहाँ भगवान खुद ही विराजमान हैं अब भगवान से ठीक वैसे ही बात करना शुरू करो,जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे हो ।*
*मैंने ऐसा ही करके देखा,मुझे बहुत अच्छा लगा, फिर तो मैं रोज दो-दो घंटे ऐसा करके देखने लगा,लेकिन यह ध्यान रखता था कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले ।*
*अगर वह देख लेती,तो परेशान हो जाती या वह फिर मुझे मनोचिकित्सक के पास ले जाती।*
*यह सब सुनकर संत ने बुजुर्ग के लिए प्रार्थना की,सिर पर हाथ रखा और भगवान से बात करने के क्रम को जारी रखने के लिए कहा।संत को उसी दिन दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था,इसलिए विदा लेकर चले गए ।*
*दो दिन बाद बेटी का फोन संत के पास आया कि उसके पिता की उसी दिन कुछ घंटे बाद ही मृत्यु हो गई थी, जिस दिन पिताजी आपसे मिले थे।संत ने पूछा कि उन्हें प्राण छोड़ते वक्त कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?*
*बेटी ने जवाब दिया- नहीं,मैं जब घर से काम पर जा रही थी,तो उन्होंने मुझे बुलाया,मेरा माथा प्यार से चूमा,यह सब करते हुए उनके चेहरे पर ऐसी शांति थी,जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी ।*
*जब मैं वापस आई,तो वो हमेशा के लिए आंखें मूंद चुके थे,लेकिन मैंने एक अजीब सी चीज भी देखी । पिताजी ऐसी मुद्रा में थे जैसे कि खाली कुर्सी पर किसी की गोद में अपना सिर झुकाए हों । संतजी,वो क्या था ?*
*यह सुनकर संत की आंखों से आंसू बह निकले, बड़ी मुश्किल से बोल पाए - काश,मैं भी जब दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊँ ।*
*बेटी ! तुम्हारे पिताजी की मृत्यु भगवान की गोद में हुई है।उनका सीधा सम्बन्ध सीधे भगवान से था।उनके पास जो खाली कुर्सी थी, उसमें भगवान बैठते थे और वे सीधे उनसे बात करते थे ।*
*उनकी प्रार्थना में इतनी ताकत थी कि भगवान को उनके पास आना पड़ता था ।*
*आकर्षण शायद अनेको के लिए हो सकता है,समर्पण किसी एक के लिए होता है..!!*

Monday, January 2, 2023

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?
किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना?
और जाने इसकी शक्ति
मित्रों शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था.मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए.


मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं.
महादेव प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा.
भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है.
ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है.
मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी.
मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे.
मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.
समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए. यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था.
यमदूतों का मार्कण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए.
इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए.
बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया.
यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं.
शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?
यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है.
भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते.
यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा.

महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता हैI

हिन्दू नववर्ष vs अंग्रेजी ईसाई New Year

 

31 दिसम्बर के नजदीक आते ही जगह-जगह जश्न मनाने की तैयारियां प्रारम्भ हो जाती हैं 'हैप्पी न्यू ईयर' के बैनर, होर्डिंग, पोस्टर व कार्डों के साथ शराब, शबाब और कबाब की दुकानो में रौनक हो जाती है और जाम से जाम इतने टकराते हैं कि घटनाऐं दुर्घटनाओं में बदल जाती है.
रात भर जागकर नया साल मनाने से ऐसा प्रतीत होता है मानो सारी खुशियां एक साथ आज ही मिल जायेंगी। हम भारतीय भी पश्चिमी अंधानुकरण में इतने सराबोर हो जाते हैं कि उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सभी सांस्क्रतिक मर्यादाओं को तिलांजलि दे बैठते हैं। पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है और कौन पराया।
एक जनवरी से प्रारम्भ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका सम्बन्ध ईसाई जगत् व ईसा मसीह से है इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया।
भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्रचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गयी है।
जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है किन्तु विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिध्दांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है।
नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमश: 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।
के इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करने की बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं और तो और, देश के बड़े से बड़े राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है।
भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं राष्ट्र के स्वाभिमान व देश प्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे हुए हैं। यह वह दिन है जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ होता है।
आइये इस दिन की महानता के प्रसंगों को देखते हैं:-
ऐतिहासिक महत्व * वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। * प्रभु श्री राम, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य व धर्म राज युधिष्ठिर का राज्यभिषेक राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। * शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। * प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन का श्री राम महोत्सव मनाने का प्रथम दिन आर्य समाज स्थापना दिवस, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव जी, संत झूलेलाल व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा0 केशव राव बलीराम हेडगेवार का जन्मदिवस ।
प्राकृतिक महत्व
* वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। * फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। * ज्योतिष शास्त्र के अनुसर इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये शुभ मुहूर्त होता है।
क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके ?
आइये! विदेशी को फेंक स्वदेशी अपनाऐं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनायें तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।
भारत देश में समस्त त्योहार विशेष महत्व रखते हैं, हर त्योहार के पीछे गहरा संदेश रहता है, हम जानते हैं कि हमारे सभी अच्छे कार्य भारतीय दर्शन पर आधारित होते हैं जिसका प्राकृतिक सामंजस्य भी होता है, हमारे देश में शुभ घड़ी देखने की परम्परा है हम यह भी जानते हैं वो शुभ घड़ी भारतीय पंचांग से ही निकाली जाती है। आज तक के इतिहास में ऐसा कभी भी सुनने को नहीं मिला है कि शुभ घड़ी देखने के लिए अग्रेजी कैलेंडर का प्रयोग किया गया हों, वास्तविकता यह है कि अंग्रेजी महीना घड़ी मुहूर्त के मिलान के अनुसार नहीं 'चलते! वह कैसे चलते है इस बात पर गजब का विरोधाभास है!
भारत में हर दिन त्योहार का दिन होता है लेकिन यह सारे त्योहार भारतीय पंचांग पर आधारित होते हैं! यह सारा खेल गृह नक्षत्रों पर मिलान के आधार पर होता है। भारत के सारे त्योहार का प्रकृति साथ देती है जो त्योहार प्राकृतिक तालमेल के साथ मनाये जाते हैं उनके साथ परिणाम बेहतर होते है !
एक जनवरी वाले नव वर्ष में ऐसा कोई भी प्राकृतिक संदेश नहीं होता जिससे समाज को खुशी का अहसास होता हों, वातावरण में कड़ाके की ठंड रंगीन मौसम का परिचायक नहीं है इसके विपरीत हमारे भारत के नव वर्ष पर बसंत का सुहावना मौसम होता है !
किसानों के चेहरे पर उल्लास होता है गृह नक्षत्र अनुकूल हों जाते हैं! सबसे बड़ी बात तो यह है कि जनवरी वाले नव वर्ष पर समाज किस प्रकार की कार्यशैली अपनाता है कहीं शराब के दौर चलते हैं तो कहीं युवा वर्ग पूरी मस्ती के साथ झूमते हैं, क्या यही भारत है क्या यह भारत की संस्कृति है ! हम नव वर्ष मनाते समय अपने देश की परिपाटी का भी ध्यान रखें तो अच्छा है!
हम भारतवासी आज भी अंग्रेजों द्वारा प्रवाहित की गयी धारा में जीवन यापन कर रहे हैं. क्या हमारे देश में सांस्कृतिक धारा का अभाव है वास्तव में हमारी सांस्कृतिक विरासत विश्व की महान विरासत है पूरे विश्व में हमारी संस्कृति का कोई मुकाबला नहीं ......
लेकिन हम अन्धानुकरण की आंधी में ऐसे दौड़ रहे हैं कि हम अपना वजूद ही भूल रहे हैं।
हम भारतवासी आज भी अंग्रेजों द्वारा प्रवाहित की गयी धारा में जीवन यापन कर रहे हैं. क्या हमारे देश में सांस्कृतिक धारा का अभाव है वास्तव में हमारी सांस्कृतिक विरासत विश्व की महान विरासत है पूरे विश्व में हमारी संस्कृति का
कोई मुकाबला नहीं...... लेकिन हम अन्धानुकरण की आंधी में ऐसे दौड़ रहे हैं कि हम अपना वजूद ही भूल रहे हैं .......
मेरा कहना यह है कि जनवरी में १ तारीख को मनाया जाने वाला नव वर्ष भारत
का नव वर्ष नहीं है........
यह अंग्रेजों द्वारा थोपा गया नया साल है, आज भी हम मानसिक रूप से उसी विचार के साथ जी रहे हैं जो विचार गुलामी में दिया गया था ... हालाँकि यह बात सही है कि लम्बे समय तक एक धारा में जीने का मतलब है उसी को अंगीकार करना, लेकिन आज हमारे ऊपर ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम आज भी उसी नव वर्ष को मनाने को बाध्य हो रहे हैं जो गुलामी का प्रतीक है.......... हमारे देश के सारे त्यौहार हम भारतीय काल पद्धति से मनाते आ रहे हैं आज भी
मनाते हैं भारत का कोई भी पर्व अंग्रेजी महीने से नहीं होता.... क्योंकि प्रकृति इसका साथ
नहीं देती.........
हम प्रकृति का साथ देंगे तो प्रकृति भी हमारा साथ देगी. हमारे सारे त्योहार धार्मिक मान्यतायों पर आधारित हैं. यानी एक धार्मिक त्यौहार है लेकिन क्या हम बता सकते हैं कि एक जनवरी को किस आधार पर हम नव वर्ष मनाएं जबकि भारतीय नव वर्ष जो चैत्र में शुरू होता है उस पर गृह नक्षत्र साथ देते हैं .... इसलिए मेरा आग्रह है कि हम अपना भारतीय नव वर्ष मनाएं
|| जय श्री राम ||
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