Friday, December 8, 2023

तर्पण

पिताजी का "विधि विधान से पण्डित जी की मदद से तर्पण करके, अतुल ऑफिस जाने के लिये अपनी कार स्टार्ट कर ही रहा था कि माँ ने उसे रोककर एक पैकेट देकर बोला..
बेटा, तू ही ऑफिस जा रहा तो यह केले और बिस्कुट के पैकेट लेते जा, रास्ते में जो भीख मांगने वाले गरीब और अनाथ बच्चे मिलेंगे न उनको देते जाना, यह परोपकार होता है।
अरे माँ तुम भी न, अभी सुबह ही तो पण्डित जी को बुलाकर 2100 रुपये के पैकेज में पिताजी का तर्पण किया है, अब यह सब क्या? अतुल ने झुंझलाते हुये माँ से कहा, पर माँ का उदास चेहरा देखकर अतुल माँ को मना नहीं कर सका,उसने माँ के द्वारा दिये पैकेट को बगल की सीट पर रखकर तेजी से अपने ऑफिस की तरफ़ कार दौड़ा दी।


पुणे की एक प्रसिद्ध सॉफ्टवेयर कम्पनी में अतुल सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, पिछले 11 वर्षों से उसने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर जो मुक़ाम हासिल किया था, उस वजह से अतुल की उस कम्पनी में बहुत इज्जत थी। अतुल के पिताजी का चार वर्ष पूर्व बीमारी की वजह से निधन हुआ था, उनकी आज पितृपक्ष की तिथि थी लेकिन सप्ताह के मध्य पूरा अवकाश लेने की बजाय अतुल ने ऑफिस टाइम से पहले पण्डित जी को बुलाकर विधिवत तर्पण करना बेहतर समझा।
अतुल की पत्नी दूसरे बच्चे की डिलीवरी के लिये मायके गई हुई थी, इसलिए उसने एक कुशल मैनेजर की तरह, सुबह 4 बजे अलार्म लगाकर, अपनी माँ को उठाकर उसके साथ, पूजा विधि के लिये सारी तैयारियां करवाकर पंडित जी के साथ तर्पण पूजन में लग गया, वहीं माँ पिताजी की पसंद का भोजन बनाने में पूरे मनोयोग से जुट गई।
आजकल पुणे जैसे शहरों में पंडित भी पैकेज के हिसाब से काम करने लगें हैं, सुबह 8 बजे से पहले विधिवत पूजन करनें के लिए 2100 रुपये का स्पेशल पैकेज लिया था , जिसमें उसके साथ आये 4 जूनियर पण्डित एक प्रोफेशनल की तरह यन्त्रवत पूजन सम्पन्न कर रहे थे।
माँ के द्वारा बनाए भोजन को पंडित जी द्वारा ग्रहण करने एवं दक्षिणा लेने के बाद रवाना होते ही अतुल भी झटपट धोती कुर्ता उतारकर अपने ऑफिस लिए पेन्ट शर्ट पहनकर तैयार होकर निकल आता है।
★★
मुम्बई-पुणे जैसे शहरों में 5 मिनट का विलंब भी कई बार रास्ते मे 30%-40% तक का ट्रैफिक बढा देता है। नतीजतन 5 मिनट देरी से पहुंच सकने वाला शक़्स आधे से एक घन्टा तक विलम्ब से पहुंच पाता है।
हमेशा का वही रूट, तेज़ गति से गाड़ियों को क्रॉस करते हुऐ यलो लाइट होने से पहले सिग्नल क्रॉस करके टाईम मैनेज करने की धुन में अतुल माँ द्वारा दिये केले और बिस्कुट ग़रीब और अनाथ बच्चों को देना वह भूल चुका था, तभी एक रेड सिग्नल पर उसे एक दो माँगने वालों को देखकर उसे याद आता है कि उसने माँ का दिया पैकेट तो बांटा ही नहीं था। अगले एक दो सिग्नल में अतुल ने कार रोककर इन अनाथ बच्चों को वह केले और बिस्किट देना चाहा भी लेकिन पता नहीं, शायद वह बच्चे भी इतने वर्षों से अब तक उसे और उसकी कार को एक "कंजूस" के तौर पर पहचान चुके थे, इसलिए वह बच्चे उसके पास आने की बजाय पीछे वालो की गाड़ियों पर पहुंच रहें थे।
अतुल के लिये यह आत्ममंथन का वक्त था, आज उसके पिताजी का तर्पण करने के बाद दान लेने लिये उसे ग़रीब और अनाथ बच्चे तक तवज्जों नहीं दें रहें हैं, और एक वह वक़्त था कि उसके पिताजी के पास आस पास के गाँवों से भी बड़े बड़े लोग मदद मांगने आते और क़भी खाली हाथ नहीं जाते थे। गाँव के स्कूल में साधारण शासकीय अध्यापक थे उसके पिताजी, कम आय में भी खुद के परिवार के साथ साथ, न जाने कितने ग़रीबों एवम असहायों की बिना कहे ही मदद करतें थे, और एक मैं हूँ कि 'डेढ़ लाख रुपये महीने" की तन्ख्वाह होने के बाद भी, किसी के मदद माँगने पर भी यह सोचकर उसकी मदद नहीं करता कि यह मेरा पैसा लौटाएगा या नहीं।
पिताजी की इसी उदारता की वजह से अक़्सर उसकी पिताजी से बहस होती थी, और माँ कहती, बेटा जब तुम कमाओ तब अपने हिसाब से पैसे खर्च करना मग़र पिताजी को ऐसे रोकने का तुमको कोई अधिकार नहीं है, इस तरह पिताजी के इन कर्मो के पीछे माँ का भी मौन समर्थन था, माँ बहुत खुश होती थी जब कोई कहता, हमने भगवान को नहीं देखा, पर बाबूजी तो स्वयं ही भगवान का रूप है। इन्हीं वैचारिक मतभेद के कारण अतुल अपना जॉब लगने के बाद यदाकदा ही अपने गाँव जाया करता था।
पिताजी भी किसी त्यौहार या समारोह के समय ही उसके पास आते थे, वरना सप्ताह में एक दो बार एक दूसरे के हालचाल पूछकर ही वह सम्बन्धों को बनाये हुये थे।
★★★
हाँ, विधि विधान से तो अतुल ने पिताजी का तर्पण कर दिया था, पर क्या वह सचमुच पिताजी की इच्छाओं को तृप्त कर सका?
पिताजी के जीते-जी न सही, क्या उनकी अनुपस्थिति में उसने अपनी माँ को अहसास कराया कि पिताजी नहीं है तो क्या, वह तो है न उनका ख़्याल रखनें के लिए, ख़्याल तो दूर मैं अपनी माँ के लिये वक़्त भी नहीं निकाल पाता, घर पहुँचते ही माँ से बनी चाय पीकर वह जो मोबाइल में व्यस्त हो जाता है, तो सुबह उठकर सीधा नहाधोकर ऑफिस के लिये निकलने तक उसे माँ की याद ही न रहती, माँ जरूर उसके डिनर, नाश्ता, टिफिन, कपड़े प्रेस करने जैसी सारी जरूरत बिना कहे ही पूरा कर रही थी। शनिवार रविवार को भी वह या तो दोस्तों के साथ निकल जाता या लैपटॉप पर कम्पनी का काम करके अपना दिन गुज़ार देता।
आज माँ की डबडबायी आँखों के पीछे का दुःख समझकर भी मैं ऑफिस निकल आया, अपनी माँ के जीवित रहते उसका ख्याल नहीं रख रहा हूँ तो क्या उसके जाने के बाद यही तर्पण करके उसे खुश रख पाउँगा। अतुल को आत्मग्लानि होने लगी, उसने अगले ही सिग्नल पर अपनी कार वापस घर की तरफ़ मोड़ ली और बॉस को फोन पर यह कहकर कि आज उसे अपनी माँ को डॉक्टर को दिखाने जाना है, वह छुट्टी ले लेता है।
विचार बदलते ही संयोग भी बदलने लगता है, जो अनाथ और ग़रीब बच्चे उसके बुलाये जाने पर भी पास नहीं आ रहे थे, वही बच्चे अगले सिग्नल पर ही खुद उससे माँगने आये, अतुल ने उन सबको बिस्कुट और केले देकर सन्तुष्ट कर दिया। उन बच्चों की संतुष्टि देखकर अतुल को भी अजीब सी सन्तुष्टि महसूस होने लगी थी।
घर पहुँचते ही वह कार बाहर ही रखकर चुपके से घर पर पंहुचता है तो खिड़की से उसे दिखता है कि माँ पिताजी का अलबम खोलकर उनसे ही खामोश आँखों से बातें कर रही है। अतुल ने दरवाजा खटखटाया, अचानक अतुल को सामने देखकर माँ ने फ़ोटो एलबन टेबल के ऊपर रखे न्यूज़ पेपर के नीचे छुपाते हुये, अपने आँसू पोछकर मुस्कुराते हुये पूछा, क्या हुआ तो वापिस कैसे आ गया, कुछ भूल गया था क्या?
हाँ माँ कुछ भूल गया था मैं, आज तो ऑफिस में कुछ ज़्यादा काम नहीं था, इसलिए छुट्टी लेकर आपके साथ एक फ़िल्म देखने का मन हो रहा है..
नहीं मेरा मन नहीं है आज कोई फ़िल्म देखने का, तू ही बाहर जाकर देख आ..माँ ने मना करते हुऐ कहा।
नहीं मैं तो अपने स्मार्ट टीवी पर ही लगाऊंगा और आपके साथ ही देखूंगा, कपड़े बदलकर अतुल एक पेनड्राइव स्मार्ट टीवी में लगाते हुये बच्चों सी जिद करके बोला।
अच्छा ठीक है तू लगा फ़िल्म, मैं बर्तन धोकर आती हूँ, किचन में बहुत काम है, कहकर माँ उसे टालने के प्रयास करने लगी। अतुल ने किचन में जाकर देखा तो सिंक पर सुबह के खाने की प्लेट्स रखी हुई थी, इसका मतलब माँ ने खाना भी नहीं खाया है अब तक, उफ़्फ़ कितना घुट घुट कर जी रही है मेरी माँ, घर पर सबकुछ होकर भी उसका आनंद नहीं लेती और मुझे यह पता भी नहीं।
माँ, मुझे जोर से भूख लगी है, चलो साथ में खाना खातें हैं, अतुल खाना गर्म करके एक थाली में परोसकर माँ के साथ बैठ गया, एक कौर खुद खाकर चुपके से ज्यादा कौर उसे खिलाने की माँ की स्टाइल आज वह माँ पर ही आजमा रहा था।
खाना होते ही वह माँ से बोला, माँ बर्तन में धो लेता हूँ, तब तक तुम किचन साफ कर लो, फ़िल्म तो हम साथ ही देखेंगे।
माँ अचरज़ से अतुल के बदले व्यवहार परिवर्तन को देखकर सुखद अनुभव कर रही थी।
★★★★
किचिन का काम निपटाने के बाद माँ बेटे मिलकर टीवी पर अतुल की शादी की फ़िल्म लगाते है , 6 साल पहले हुई अतुल के विवाह की फ़िल्म अतुल ने पेनड्राईव में सेव कर रखी थी।
पिताजी को उस विवाह में पूरे जोश से विवाह कार्यक्रम में सहभागी होते देखकर, सबके साथ मस्ती में डाँस करते देखकर, विवाह की चुहलबाजी देखकर माँ भूल ही गई थी कि आज पिताजी हमारे बीच नहीं हैं।
अतुल माँ का सिर अपनी गोद में रखकर धीरे धीरे नारियल तेल लगाकर सहलाने लगा, माँ के आँखों से आँसुओं की धार बह चली थी।
आज अतुल ने एक साथ दो तर्पण किये थे, पहला अपने दिवंगत पिताजी का पूरे विधि विधान के साथ और दूसरा अपनी दुःखी माँ के साथ वक़्त गुजारकर उसके दुःखों का सहभागी बनकर।

सभी तर्पण पानी से हों जरूरी नहीं कुछ तर्पण आँसुओं से आजीवन होते रहते हैं।
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कहानी लिखने का उद्देश्य यही है कि अपने पितरों के दिवंगत होने पर तर्पण करना तो हमारे लिए विधि का विधान है , लेकिन जीवित अवस्था में उनके साथ हँसी खुशी वक़्त गुजारकर उन्हें अकेलेपन का अहसास न होने देना उससे भी महान कार्य है।

Friday, November 24, 2023

बर्बरीक के बाण का असर आज भी

 हरियाणा के हिसार ( वीर बरबरान ) मे एक पीपल का पेड़ है जिसको वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण भगवान के कहने पर अपने वाणों से छेदन किया था ! आज भी इन पत्तो में छेद है ! सबसे बड़ी बात ये है की जब इस पेड़ में नए पत्ते निकलते है तो उनमे भी छेद होता है ! सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि, इसके बीज से उत्पन्न नए पेड़ के भी पत्तों में छेद होता है ! यह पीपल का पेड़ महाभारत काल की घटना का प्रत्यक्ष प्रमाण है और जो लोग रामायण और महाभारत जैसी घटनाओं को काल्पनिक करार देते है एवं यह कहते है कि इन घटनाओं को मानने वाले लोग काल्पनिक दुनिया में जीते हैं, उन लोगों के लिए यह किसी जोरदार तमाचे से कम नहीं होगा...जिन्होंने थोड़ी भी महाभारत पढ़ी होगी उन्हें वीर बर्बरीक वाला प्रसंग जरूर याद होगा ! उस प्रसंग में हुआ कुछ यूँ था कि महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था और भगवान श्री कृष्ण युद्ध में पाण्डवों के साथ थे ! जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है, लेकिन जीत पाण्डवों की ही होगी..ऐसे समय में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया कि युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा ! इसके लिए, बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किये थे ! परन्तु, भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वे ब्राह्मण का वेष धारण करके बर्बरीक के मार्ग में आ गये...श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उत्तेजित करने हेतु उसका मजाक उड़ाया कि वह तीन बाणों से भला क्या युद्घ लड़ेगा ? कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण है और, वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है तथा, सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा ! इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं अगर, अपने बाण से उसके सभी पत्तों को छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि तुम एक बाण से युद्ध का परिणाम बदल सकते हो इस पर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके भगवान का स्मरण किया और बाण चला दिया ! जिससे, पेड़ पर लगे पत्तों के अलावा नीचे गिरे पत्तों में भी छेद हो गया ! इसके बाद वो दिव्य बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा क्योंकि, एक पत्ता भगवान ने अपने पैरों के नीचे दबाकर रखा था...भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि धर्मरक्षा के लिए इस युद्ध में विजय पाण्डवों की होनी चाहिए और, माता को दिये वचन के अनुसार अगर बर्बरीक कौरवों की ओर से लड़ेगा तो अधर्म की जीत हो जाएगी ! इसलिए, इस अनिष्ट को रोकने के लिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की..जब बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया ! तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया ! जिससे बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है और, बर्बरीक ने ब्राह्मण से वास्तविक परिचय माँगा तब श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वह कृष्ण हैं...सच जानने के बाद भी बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह उनके विराट रूप को देखना चाहता है तथा, महाभारत युद्ध को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है ! भगवान ने बर्बरीक की इच्छा पूरी करते हुए, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया जहाँ से बर्बरीक के सिर ने पूरा युद्घ देखा..ये सारी घटना आधुनिक वीर बरबरान नामक जगह पर हुई थी जो हरियाणा के हिसार जिले में हैं ! अब ये जाहिर सी बात है कि इस जगह का नाम वीर बरबरान वीर बर्बरीक के नाम पर ही पड़ा है... खाटू श्याम जी जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं,हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा

Thursday, November 23, 2023

प्रबोधिनी एकादशी

 कार्तिक शुक्ल एकादशी,आज प्रबोधिनी एकादशी है। भगवान श्रीहरि आज अपनी योगनिद्रा से जाएंगे...सभी सनातन प्रेमियों को अनंत शुभकामनाएं।



🌷 *देवउठी-प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा* 🌷
*भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे अर्जुन ! मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा : ‘हे पिता ! ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, आप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें ।’
ब्रह्माजी बोले : हे पुत्र ! जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत से मिल जाती है । इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक बुरे कर्म क्षणभर में नष्ट हो जाते है । हे पुत्र ! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन थोड़ा भी पुण्य करते हैं, उनका वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृ विष्णुलोक में जाते हैं । ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं ।
हे नारद ! मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता है, वह धनवान, योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, क्योंकि एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है ।
इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ । यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।’ - श्रीमद्भगवदगीता ) आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य मिलता है ।
इसलिए हे नारद ! तुमको भी विधिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । इस एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए । रात्रि को भगवान के समीप गीत, नृत्य, कथा-कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए ।
‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन पुष्प, अगर, धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अर्ध्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है ।*
जो गुलाब के पुष्प से, बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं । इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।
जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए । जो मनुष्य ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।

Tuesday, November 21, 2023

कालगणना

आज मैं आपको मनुष्यों के समयसीमा और देवताओं के समयसीमा में अंतर बताने का प्रयास करूंगा। हालांकि इसका मेरे पास कोई शास्त्र प्रमाण नहीं है परन्तु शास्त्रों में वर्णित समय व हमारे द्वारा बोले गए संकल्प का आधार लेकर ही प्रयास किया है।


घंटा मिनट वैज्ञानिक समय है, इसलिए मैं इसी से शुरुआत करूँगा। जैसा कि आप जानते हैं, 60 सेकेंड का 1 मिनिट, 60 मिनिट का 1 घंटा होता है दिन और रात्रि को 24 घंटे में बांटा गया है। 3 घंटे का 1 प्रहर होता है इसलिए 4 प्रहर रात्रि के और 4 प्रहर दिन के होते हैं। 7 दिन को सप्ताह और 15 दिन को पक्ष बताया गया है। दो पक्ष का 1 माह और 12 माह का 1 वर्ष होता है। 360 वर्ष का 1 दिव्यवर्ष यानी देवताओं का एक वर्ष होता है।
जिस प्रकार 30 दिन को महीना कहते हैं 12 महीने को वर्ष कहते हैं उसी प्रकार 432000 वर्ष को कलियुग कहा गया। दो कलियुग मिलकर 1 द्वापरयुग होता है अर्थात द्वापर 864000 वर्ष का होता है। इसी प्रकार से 17280000 वर्ष का त्रेता युग और 3456000 वर्ष का सतयुग होता है।