Tuesday, May 6, 2025

बद्रीनाथ धाम

 एक बार श्री हरि (विष्णु) के मन में एक घोर तपस्या

करने की इच्छा जाग्रत हुई। वे उचित जगह की तलाश

में इधर उधर भटकने लगे।

खोजते खोजते उन्हें एक जगह तप के लिए सबसे अच्छी

लगी जो केदार भूमि के समीप नीलकंठ पर्वत के

करीब थी। यह जगह उन्हें शांत, अनुकूल और अति

प्रिय लगी।

वे जानते थे की यह जगह शिव स्थली है अत: उनकी

आज्ञा ली जाये और यह आज्ञा एक रोता हुआ

बालक ले तो भोले बाबा तनिक भी माना नहीं कर

सकते है।

उन्होंने बालक के रूप में इस धरा पर अवतरण लिए और

रोने लगे। उनकी यह दशा माँ पार्वती से देखी नही

गयी और वे शिवजी के साथ उस बालक के समक्ष

उपस्थित होकर उनके रोने का कारण पूछने लगे।

बालक विष्णु ने बताया की उन्हें तप करना है और

इसलिए उन्हें यह जगह चाहिए।

भगवान शिव और

पार्वती ने उन्हें वो जगह दे दी और बालक घोर

तपस्या में लीन हो गया।

तपस्या करते करते कई साल बीतने लगे और भारी

हिमपात होने से बालक विष्णु बर्फ से पूरी तरह ढक

चुके थे, पर उन्हें इस बात का कुछ भी पता नहीं था।

बैकुंठ धाम से माँ लक्ष्मी से अपने पति की यह हालत

देखी नही जा रही थी। उनका मन पीड़ा से दर्वित

हो गया था।

अपने पति की मुश्किलो को कम करने के लिए वे स्वयं

उनके करीब आकर एक बेर (बद्री) का पेड़ बनकर उनकी

हिमपात से सहायता करने लगी। फिर कई वर्ष गुजर

गये अब तो बद्री का वो पेड़ भी हिमपात से पूरा

सफ़ेद हो चुका था।

कई वर्षों बाद जब भगवान् विष्णु ने अपना तप पूर्ण

किया तब खुद के साथ उस पेड़ को भी बर्फ से ढका

पाया। क्षण भर में वो समझ गये की माँ लक्ष्मी ने

उनकी सहायता हेतू यह तप उनके साथ किया है।

भगवान विष्णु ने लक्ष्मी से कहा की हे देवी, मेरे

साथ तुमने भी यह घोर तप इस जगह किया है अत इस

जगह मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी। तुमने

बद्री का पेड़ बनकर मेरी रक्षा की है अत: यह धाम

बद्रीनाथ कहलायेगा।

भगवान विष्णु की इस मंदिर में मूर्ति

शालग्रामशिला से बनी हुई है जिसके चार भुजाये है।

कहते है की देवताओ ने इसे नारदकुंड से निकाल कर

स्थापित किया था।

यहाँ अखंड ज्योति दीपक जलता रहता है और नर

नारायण की भी पूजा होती है | साथ ही गंगा की

12 धाराओ में से एक धार अलकनन्दा के दर्शन का

भी फल मिलता है।

विश्वास की शक्ति

किसी गांव में राम नाम का एक नवयुवक रहता था। वह बहुत मेहनती था, पर हमेशा अपने मन में एक शंका लिए रहता कि वो अपने कार्यक्षेत्र में सफल होगा या नहीं!

कभी-कभी वो इसी चिंता के कारण आवेश में आ जाता और दूसरों पर क्रोधित भी हो उठता।

एक दिन उसके गांव में एक प्रसिद्ध महात्मा जी का आगमन हुआ।

खबर मिलते ही राम, महात्मा जी से मिलने पहुंचा और बोला,

“महात्मा जी मैं कड़ी मेहनत करता हूँ, सफलता पाने के लिए हर-एक प्रयत्न करता हूँ; पर फिर भी मुझे सफलता नहीं मिलती। कृपया आप ही कुछ उपाय बताएँ।”

महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा- बेटा, तुम्हारी समस्या का समाधान इस चमत्कारी ताबीज में है, मैंने इसके अन्दर कुछ मन्त्र लिखकर डालें हैं जो तुम्हारी हर बाधा दूर कर देंगे। लेकिन इसे सिद्ध करने के लिए तुम्हे एक रात शमशान में अकेले गुजारनी होगी।”

शमशान का नाम सुनते ही राम का चेहरा पीला पड़ गया,

“लल्ल..ल…लेकिन मैं रात भर अकेले कैसे रहूँगा…”, राम कांपते हुए बोला।

“घबराओ मत यह कोई मामूली ताबीज नहीं है, यह हर संकट से तुम्हे बचाएगा।”, महात्मा जी ने समझाया।

राम ने पूरी रात शमशान में बिताई और सुबह होती ही महात्मा जी के पास जा पहुंचा,

“हे महात्मन! आप महान हैं, सचमुच ये ताबीज दिव्य है, वर्ना मेरे जैसा डरपोक व्यक्ति रात बिताना तो दूर, शमशान के करीब भी नहीं जा सकता था। निश्चय ही अब मैं सफलता प्राप्त कर सकता हूँ।”

इस घटना के बाद राम बिलकुल बदल गया, अब वह जो भी करता उसे विश्वास होता कि ताबीज की शक्ति के कारण वह उसमें सफल होगा, और धीरे-धीरे यही हुआ भी…वह गाँव के सबसे सफल लोगों में गिना जाने लगा।

इस वाकये के करीब १ साल बाद फिर वही महात्मा गाँव में पधारे।

राम तुरंत उनके दर्शन को गया और उनके दिए चमत्कारी ताबीज का गुणगान करने लगा।

तब महात्मा जी बोले,- बेटे! जरा अपनी ताबीज निकालकर देना। उन्होंने ताबीज हाथ में लिया, और उसे खोला।

उसे खोलते ही राम के होश उड़ गए जब उसने देखा कि ताबीज के अंदर कोई मन्त्र-वंत्र नहीं लिखा हुआ था…वह तो धातु का एक टुकड़ा मात्र था!

राम बोला, “ये क्या महात्मा जी, ये तो एक मामूली ताबीज है, फिर इसने मुझे सफलता कैसे दिलाई?”

महात्मा जी ने समझाते हुए कहा-

"सही कहा तुमने, तुम्हें सफलता इस ताबीज ने नहीं बल्कि तुम्हारे विश्वास की शक्ति ने दिलाई है। पुत्र, हम इंसानों को भगवान ने एक विशेष शक्ति देकर यहाँ भेजा है। वो है, विश्वास की शक्ति। तुम अपने कार्यक्षेत्र में इसलिए सफल नहीं हो पा रहे थे क्योंकि तुम्हें खुद पर यकीन नहीं था…खुद पर विश्वास नहीं था। लेकिन जब इस ताबीज की वजह से तुम्हारे अन्दर वो विश्वास पैदा हो गया तो तुम सफल होते चले गए ! इसलिए जाओ किसी ताबीज पर यकीन करने की बजाय अपने कर्म पर, अपनी सोच पर और अपने लिए निर्णय पर विश्वास करना सीखो, इस बात को समझो कि जो हो रहा है वो अच्छे के लिए हो रहा है और निश्चय ही तुम सफलता के शीर्ष पर पहुँच जाओगे।


परम मित्र


   एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।

   एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।

    दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।

    और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में कभी कभी मिलता था।

    एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था और किसी कार्यवश साथ में किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।

   अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला:-

     "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?

      वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।

    उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।

    अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।

    फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

   दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि मैं सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं।

    वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।

    फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

     तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।

     अब आप सोच रहे होंगे कि... वो तीन मित्र कौन है...?

तो चलिये हम आपको बताते है इस कथा का सार ।जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते हैं।

    सब से पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर' हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।

     दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी' जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।

      और  तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म' जो सदा ही साथ जाते है।

     अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता। जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।

     दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक "राम नाम सत्य है" कहते हुए जाते हैं तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।

     और  तीसरा मित्र आपके कर्म हैं। कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।

     अब अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी.!

सुंदर हाथ

_🔹बहुत समय पहले की बात है कुछ महिलाएं एक नदी के तट पर बैठी थी वे सभी धनवान होने के साथ-साथ अत्यंत सुंदर भी थी।  वे नदी के शीतल एवं स्वच्छ जल में अपने हाथ - पैर धो रही थी तथा पानी में अपनी परछाई देख- देखकर अपने सौंदर्य पर स्वयं ही मुग्ध हो रही थी...तभी उनमें से एक ने अपने हाथों की प्रशंसा करते हुए कहा, देखो, मेरे हाथ कितने सुंदर है.. लेकिन दूसरी महिला ने दावा किया कि उसके हाथ ज्यादा खूबसूरत हैं तीसरी महिला ने भी यही दावा दोहराया... उनमें इस पर बहस छिड़ गई तभी एक बुजुर्ग लाठी टेकती हुई वहाँ से निकली उसके कपड़े मैले- कुचैले थे वह देखने से ही अत्यंत निर्धन लग रही थी उन महिलाओं ने उसे देखते ही कहा, “व्यर्थ की तकरार छोड़ो, इस बुढ़िया से पूछते हैं कि हममें से किसके हाथ सबसे अधिक सुँदर है.. उन्होंने बुजुर्ग महिला को पुकारा, “ए बुढ़िया, जरा इधर आकर ये तो बता कि हममें से किसके हाथ सबसे अधिक सुँदर है..बुजुर्ग किसी तरह लाठी टेकती हुई उनके पास पहुंची और बोली -मैं बहुत भूखी-प्यासी हूँ, पहले मुझे कुछ खाने को दो ,चैन पड़ने पर ही कुछ बता पाऊँगी... वे सब महिलाँए हँस पड़ी और एक स्वर में बोलीं -जा भाग, हमारे पास कोई खाना- वाना नहीं है ये भला हमारी सुँदरता को क्या पहचानेगी...

🔹वही थोड़ी ही दूरी पर एक मजदूर महिला बैठी थी वह देखने में सामान्य लेकिन मेहनती और विनम्र थी उसने बुजुर्ग को अपने पास बुलाकर प्रेम से बैठाया और अपनी पोटली खोलकर अपने खाने में से आधा खाना उसे दे दिया फिर नदी से लाकर ठंडा पानी पिलाया, फिर उस मजदूर महिला ने उसके हाथ-पैर धोए और अपनी फटी धोती से पौंछकर साफ कर दिए इससे बुजुर्ग महिला को बड़ा आराम मिला  जाते समय वह बुजुर्ग उन सुँदर महिलाओं के पास जाकर बोली -सुँदर हाथ उन्हीं के होते हैं जो अच्छे कर्म करें तथा जरूरतमंदों की सेवा करें.. अच्छे कार्यों से हाथों का सौंदर्य बढ़ता है, आभूषणों से नही..।।