Monday, February 3, 2020

वर्ष 2011-12 और 2017-18 के दौरान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नियमित पारिश्रमिक/वेतन भोगी कर्मचारियों के बीच लगभग 2.62 करोड़ नए रोजगार सृजित हुए

रोजगार की योग्यता में सुधार के साथ रोजगार सृजन सरकार की प्राथमिकता रही है। इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति आर्थिक समीक्षा 2019-20 का प्रमुख हिस्सा है जिसे आज केंद्रीय वित्त एवं कॉर्पोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने संसद में पेश किया। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सामान्य शिक्षा लोगों के ज्ञान को बढ़ाता है जबकि कौशल प्रशिक्षण रोजगार के जरूरी योग्यता में वृद्धि करता है और लोगों को श्रम बाजार की जरूरतों को पूरा करने लायक बनाता है।



कौशल विकास


सरकार के स्कील इंडिया मिशन की एक प्रमुख पहल प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना युवाओं को छोटी अवधि का प्रशिक्षण (एसटीटी) मुहैया कराता है और पूर्व शिक्षण मान्यता (आरपीएल) के जरिए उनके कौशल को प्रमाणित कराता है। समीक्षा में पूरे विस्तार से बताया गया है कि पीएमकेवीवाई (2016-20) के तहत 11 नवंबर, 2019 तक पूरे देश में  


69.03 लाख उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया गया। इस बजट पूर्व दस्तावेज में अप्रेंटिस नीति के विस्तार के लिए अप्रेंटिस नियम, 1992 में सुधारों पर भी ध्यान दिया गया है।  


      आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि महिला कामगारों में रोजगार लायक योग्यता बढ़ाने के लिए सरकार महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों के जरिए महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाती है। 


रोजगार


आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि अतिरिक्त रोजगार के सृजन की कोशिशों के साथ नौकरी की गुणवत्ता में सुधार और अर्थव्यवस्था को औपचारिक रुप देने पर विशेष ध्यान दिया गया। नियमित पारिश्रमिक/वेतन भोगी कर्मचारियों का शेयर 5 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2011-12 में 18 प्रतिशत से वर्ष 2017-18 में बढ़कर 23 प्रतिशत हो गया। संपूर्ण रुप से लगभग 2.62 करोड़ नए रोजगार का सृजन हुआ जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 1.21 करोड़ और शहरी क्षेत्रों में 1.39 करोड़ रोजगार मिले। समीक्षा में बताया गया है कि नियमित पारिश्रमिक वर्ग में महिला कामगारों के अनुपात में 0.71 करोड़ नए रोजगार के साथ 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी (2011-12 में 13 प्रतिशत से 2017-18 में 21 प्रतिशत) दर्ज की गई। स्वरोजगार वर्ग में कामगारों की संख्या बरकरार रही जबकि कैजुवल श्रमिक वर्ग में 5 प्रतिशत की गिरावट के साथ वर्ष 2011-12 के 30 प्रतिशत से 2017-18 में 25 प्रतिशत रह गई।


आर्थिक समीक्षा में देश की अर्थव्यवस्था में महिला भागीदारी को प्रोत्साहित करने वाले विभिन्न कार्यक्रमों और विधायी उपायों को भी रेखांकित किया गया। इसमें अन्य उपायों के अलावा महिलाओं का मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करना और 50 या इससे अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में क्रेच सुविधा को अनिवार्य करने का प्रावधान शामिल है। समीक्षा में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए महिला शक्ति केंद्र योजना, महिला हेल्पलाइन योजना, वन स्टॉप केंद्रों की स्थापना जैसे पूरे देश में लागू सरकार की पहलों के साथ ही कार्यस्थलों पर महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने और महिला उद्यमिता को समर्थन देने वाली योजनाओं का भी जिक्र किया गया है।




सरकार राजकोषीय सुदृढ़ीकरण तथा राजकोषीय अनुशासन के मार्ग पर : आर्थिक समीक्षा

केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि कमजोर वैश्विक विकास के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के मार्ग पर कायम है। विकास को पुनर्जीवित करने तथा निवेश बढ़ाने के लिए की प्रमुख संरचनात्मक सुधार किये गये हैं।


आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि बजट 2019-20 में पेश की गई मध्यावधि राजकोषीय नीति (एमटीएफपी) के तहत 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 प्रतिशत किया गया, जिससे बाद में भी अपेक्षा की गई कि 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत का लक्षित स्तर कायम रहेगा। समीक्षा में यह भी बताया गया कि एमटीएफपी परियोजनाओं के बल पर 2019-20 में केंद्र सरकार की देनदारियां सकल घरेलू उत्पाद के 48 प्रतिशत तक कम हो जायेंगी। केंद्र सरकार के ऋण के घटते लक्षण से 2020-21 में इसके जीडीपी के 46.2 प्रतिशत तथा 2021-22 में 44.4 प्रतिशत तक पहुंचने की आशा है।


केंद्र सरकार का वित्त


आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर में वृद्धि तथा सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में प्राथमिक घाटे में कमी होने से, पिछले कई वर्षों के दौरान, केंद्र सरकार के वित्तीय प्रबंधन में सुधार हुआ है। 2019-20 के प्रथम 8 महीने के दौरान, अप्रैल-नवम्बर, 2019 में, पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में, राजस्व प्राप्तियों में 13 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई, जो गैर-कर राजस्व में महत्वपूर्ण वृद्धि से प्रेरित था।


इसके अलावा, आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि 2019-20 के दौरान (दिसंबर, 2019 तक), जीएसटी की कुल मासिक वसूली 5 गुणा बढ़कर 1,00,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई। अप्रैल से नवम्बर, 2019 के दौरान, केंद्र एवं राज्यों के लिए कुल जीएसटी की वसूली 8.05 लाख करोड़ थी, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 3.7 प्रतिशत वृद्धि दर्शाता है।


प्रत्यक्ष करों में, व्यक्तिगत आयकर में 7 प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि निवेश आकर्षित करने तथा रोजगार सृजन के लक्ष्य से कंपनियों की आयकर दरों में महत्वपूर्ण कटौती की गई है। नवम्बर, 2019 तक, केंद्र सरकार ने 7.51 लाख करोड़ रुपये का कुल कर राजस्व वसूल किया है, जो बजटीय अनुमान का 45.5 प्रतिशत है। बजट-पूर्व समीक्षा में बताया गया है कि केंद्र की वास्तविक गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियां 0.29 लाख करोड़ रुपये हुई, जो कई प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप तेजी से बढ़ने वाली हैं।


पूंजीगत व्यय तिगुना हुआ   


समीक्षा में व्यय के संघटन एवं गुणवत्ता में सुधार के महत्व पर जोर दिया गया है, जबकि राजकोषीय मापदंडों की सीमाओं का पालन किया गया है। इसमें बताया गया है कि सब्सिडियों पर बजटीय व्यय में सुधार के लक्ष्यों द्वारा महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है। सब्सिडियों, विशेषकर खाद्य सब्सिडी को और भी अधिक सुसंगत बनाने की गुंजाइस है।


समीक्षा के अनुसार 2019-20 के बजटीय अनुमान में पूंजीगत व्यय में 2018-19 की तुलना में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि द्वारा 3.39 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। व्यय के बारे में यदि ध्यान दें तो, अप्रैल से नवम्बर, 2019-20 के दौरान कुल व्यय में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि के दौरान मोटे तौर पर तीन गुना वृद्धि के साथ पूंजीगत व्यय बढ़ने से संभव हुआ।


जीडीपी एवं ऋण के अनुपात में सुधार


आर्थिक समीक्षा के अनुसार, जीडीपी के अनुपात के रूप में, केंद्र सरकार की कुल देनदारियां निरंतर घट रही हैं, जो विशेषकर एफआरबीएम अधिनियम, 2003 को लागू करने के बाद संभव हुआ है। मार्च, 2019 के अंत में केंद्र सरकार की कुल देनदारियां 84.7 लाख करोड़ रुपये थी, जिसका 90 प्रतिशत हिस्सा सार्वजनिक ऋण है और जिसे निम्न मुद्रा तथा ब्याज दर जोखिमों द्वारा श्रेणीबद्ध किया जाता है। केंद्र सरकार के ऋण के परिपक्वता संबंधी विवरण में सुधार होना इसकी अन्य विशेषताओं में शामिल है।


राज्यों के लिए अधिक धन


इसके अलावा, इस दस्तावेज में बताया गया है कि 14वें वित्त आयोग के सुझावों के बाद राज्यों को अधिक धन अंतरित किये गए हैं और उन्हें अधिक स्वायतता दी गई है कि वे अपनी जरूरतों के अनुसार धन का इस्तेमाल कर पाएंगे। राज्यों के लिए कुल अंतरित धन में 2014-15 और 2018-19 (संशोधित अनुमान) के बीच सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में 1.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। बजटीय अनुमान 2019-20 के अनुसार, राज्यों के कर तथा गैर-कर राजस्व में 2018-19 के बजटीय अनुमान की तुलना में कम वृद्धि होने का अनुमान है। हालांकि राज्य वित्तीय सुदृढीकरण के मार्ग पर अग्रसर हैं और एफआरबीएम अधिनियम में निर्धारित लक्ष्यों के भीतर राजकोषीय घाटे को नियंत्रित किया है। हालांकि, उद्य बॉन्डों, कृषि ऋण माफी तथा वेतन आयोग लागू होने के कारण, वित्तीय बाधाओं की पृष्ठभूमि में  राज्यों द्वारा ऋण को कायम रखना एक चुनौती बना हुआ है।


अंत में, आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि मांग को बढ़ाने तथा उपभोक्ताओं की भावनाओं का ख्याल रखने के क्रम में उपभोक्ताओं के अनुकूल राजकोषीय नीति पर जोर देने की जरूरत है। जीएसटी के राजस्व में उछाल आने, सब्सिडियों को सुसंगत बनाने तथा निवेश बढ़ाने के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को आसान बनाने के साथ-साथ जीएसटी के कार्यान्वयन में आसानी तथा कंपनी कर में कमी होने जैसे संरचनात्मक सुधारों के बल पर आर्थिक वृद्धि पुनर्जीवित होगी।  



पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था का लक्ष्‍य हासिल करने में औद्योगिक क्षेत्र के प्रदर्शन की प्रमुख भूमिका

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा में उन तरीकों का विस्‍तृत विश्‍लेषण पेश किया गया, जिसके तहत भारत पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था का लक्ष्‍य हासिल करेगा।


सकल मूल्‍यवर्धन में योगदान के रूप में औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2018-19 में सुधरा है। हालांकि, राष्‍ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) द्वारा अनुमानित सकल घरेलू उत्‍पाद के अनुसार वर्ष 2018-19 की पहली छमाही में 8.2 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2019-20 की पहली छमाही (एच1) (अप्रैल-सितम्‍बर) में औद्योगिक क्षेत्र का सकल मूल्‍यवर्धन 1.6 प्रतिशत अधिक दर्ज किया गया। औद्योगिक क्षेत्र में कम वृद्धि की मुख्‍य वजह विनिर्माण क्षेत्र है, जिसमें वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में 0.2 प्रतिशत की नकारात्‍मक वृद्धि दर्ज की गई।


औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक (आईआईपी)


      औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक में वर्ष 2017-18 में 4.4 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2018-19 में 3.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। मौजूदा वर्ष 2019-20 (अप्रैल-नवम्‍बर) के दौरान पिछले वर्ष की इसी अवधि में 5 फीसदी की तुलना में आईआईपी में महज 0.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आईआईपी में वृद्धि में यह कमी मध्‍यम एवं छोटे उद्योगों को ऋण के सुस्‍त प्रवाह की वजह से विनिर्माण गतिविधियों में आई कमी, धन की कमी की वजह से एनबीएफसी द्वारा ऋण देने में कटौती, ऑटोमोटिव क्षेत्र, फार्मास्‍युटिकल्‍स और मशीनरी एवं इक्‍युपमेंट जैसे प्रमुख क्षेत्रों में घरेलू मांग की कमी, अंतर्राष्‍ट्रीय कच्‍चे तेल की कीमतों में अनिश्चितता और मौजूदा व्‍यापार संबंधी अनिश्चितताओं की वजह से हुई। मौजूदा वित्‍त वर्ष के दौरान रत्‍न एवं आभूषण, मूल धातु, चर्म उत्‍पाद और कपड़े जैसे श्रम आधारित क्षेत्रों के निर्यात में कमी आई है। मौजूदा वित्‍त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-नवम्‍बर) के दौरान पूंजीगत सामान और टिकाऊ उपभोक्‍ता सामान की वृद्धि में क्रमश: 11.6 और 6.5 प्रतिशत की गिरावट आई है। टिकाऊ उपभोक्‍ता सामान के क्षेत्र में गिरावट घरेलू क्षेत्र खासकर ऑटोमोबाइल उद्योग की ओर से मांग में कमी की वजह से दर्ज की गई।


      मौजूदा वित्‍त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-नवम्‍बर) में अवसंरचना/निर्माण सामग्री की वृद्धि में 2.7 प्रतिशत की कमी आई। नवम्‍बर, 2019 में मध्‍यवर्ती सामग्री और गैर-टिकाऊ उपभोक्‍ता सामग्री में सकारात्‍मक वृद्धि दर्ज की गई, जबकि प्राथमिक सामग्री, पूंजीगत सामग्री, अवसंरचना/निर्माण सामग्री और टिकाऊ उपभोक्‍ता सामग्री में नकारात्‍म्‍क वृद्धि दर्ज की गई।  


औद्योगिक क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण


      उद्योग में सकल पूंजी निर्माण ने निवेश में तेजी को दर्शाते हुए वर्ष 2016-17 के (-) 0.7 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2017-18 में 7.6 प्रतिशत वृद्धि की उछाल दर्ज की। खनन एवं उत्‍खनन, विनिर्माण, बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्‍य इस्‍तेमाल की सेवाएं एवं निर्माण क्षेत्र में वर्ष 2017-18 में क्रमश: 7.1 प्रतिशत, 8 प्रतिशत, 6.1 प्रतिशत और 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।


औद्योगिक क्षेत्र को ऋण प्रवाह


      औद्योगिक क्षेत्र को वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर सकल बैंक ऋण प्रवाह में सितम्‍बर 2018 में 2.3 प्रतिशत की तुलना में सितम्‍बर 2019 में 2.7 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई। काष्‍ठ एवं  काष्‍ठ उत्‍पाद, सभी अभियांत्रिकी, सीमेंट एवं सीमेंट उत्‍पाद, निर्माण एवं अवसंरचना जैसे उद्योगों को सितम्‍बर, 2018 की तुलना में सितम्‍बर 2019 में ऋण प्रवाह में बढ़ोतरी हुई। खाद्य प्रसंस्‍करण, रसायन एवं रसायन उत्‍पाद, वाहन, वाहनों के कलपुर्जे और परिवहन उपकरण जैसे उद्योगों को सितम्‍बर 2018 की तुलना में सितम्‍बर 2019 में ऋण प्रवाह में कमी दर्ज की गई।


कॉरपोरेट क्षेत्र का प्रदर्शन


      विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2019-20 के प्रथम तिमाही में उत्‍पादन कम होने की वजह से गिरावट रही। इस गिरावट में प्रमुख रूप से पेट्रोलियम उत्‍पाद, लौह एवं इस्‍पात, मोटर वाहन और अन्‍य परिवहन उपकरण कंपनियां जिम्‍मेदार हैं।


      कॉरपोरेट क्षेत्र में वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही में तेजी आई और 17.4 प्रतिशत का शुद्ध हुआ। वर्ष 2016-17 की दूसरी छमाही से विस्‍तार क्षेत्र में रहीं 1700 से अधिक सूचीबद्ध निजी विनिर्माण कंपनियों की ब्रिकी में वृद्धि वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही में घटकर 7.7 प्रतिशत रह गई। भारत के विनिर्माण क्षेत्र की उपयोग क्षमता वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में 73.8 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में 73.6 प्रतिशत पर स्‍थायी बनी रही।


सीपीएसई का प्रदर्शन


      31.03.2019 को 348 केन्‍द्रीय सार्वजनिक उद्यम क्षेत्र में से 249 उद्यम चालू है, 86 उद्यम में वाणिज्यिक संचालन शुरू होना बाकी है और 13 उद्यम बंद होने के कगार पर है। 249 चल रही सीपीएसई में से 178 सीपीएसई ने 2018-19 के दौरान लाभ दर्ज किया, 70 सीपीएसई ने पूरे साल के दौरान नुकसान दर्ज किया और एक सीपीएसई को न घाटा न लाभ हुआ। वर्ष2018-19 में लाभ में रही 178 सीपीएसई का कुल लाभ 1.75 लाख करोड़ रुपए हुआ और पूरे साल घाटे में चली 70 सीपीएसई को 31,635 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।


      सीपीएसई का केन्‍द्रीय खजाने में योगदान पिछले साल के 3.52 लाख करोड़ रुपये की तुलना में वर्ष 2018-19 में 4.67 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 3.69 लाख करोड़ रुपये रहा।                               



वर्ष 2014 से ही महंगाई निरंतर घटती जा रही है; 2014-19 के दौरान अधिकतर आवश्‍यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव में उल्‍लेखनीय कमी

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत में वर्ष 2014 से ही महंगाई निरंतर घटती जा रही है। हालांकि, हाल के महीनों में महंगाई में वृद्धि का रुख देखा गया है। उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुख्‍य महंगाई दर वर्ष 2018-19 (अप्रैल- दिसम्‍बर 2018) के 3.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 4.1 प्रतिशत हो गई है। थोक मूल्‍य सूचकांक (डब्‍ल्‍यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर में वर्ष 2015-16 और वर्ष 2018-19 के बीच की अवधि के दौरान वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि, डब्‍ल्‍यूपीआई पर आधारित महंगाई दर वर्ष 2018-19 की अप्रैल-दिसम्‍बर 2018 अवधि के 4.7 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 1.5 प्रतिशत रह गई।



आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि वर्ष 2018-19 के दौरान सीपीआई-संयुक्‍त महंगाई मुख्‍यत: विविध समूह के कारण बढ़ी थी। हालांकि, वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसम्‍बर) के दौरान सीपीआई-संयुक्‍त महंगाई में मुख्‍य योगदान खाद्य एवं पेय पदार्थों का रहा। खाद्य एवं पेय पदार्थों में अत्‍यधिक महंगाई विशेषकर सब्जियों एवं दालों में दर्ज की गई। इसका मुख्‍य कारण बेस इफेक्‍ट का कम रहना और असमय वर्षा के कारण उत्‍पादन का बाधित होना था। आर्थिक समीक्षा में यह सिफारिश की गई है कि किसानों के हितों की रक्षा से जुड़े उपायों जैसे कि मूल्‍य स्थिरीकरण कोष के तहत खरीद एवं न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) को और भी अधिक कारगर बनाने की आवश्‍यकता है।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2019 तक की अवधि के दौरान देश के चारों महानगरों में विभिन्‍न आवश्‍यक कृषि जिंसों के खुदरा एवं थोक मूल्‍यों में व्‍यापक अंतर रहा है। यह अंतर विशेषकर प्‍याज एवं टमाटर जैसी सब्जियों के कारण देखा गया। संभवत: बिचौलियों की मौजूदगी और सौदों की लागत के काफी अधिक रहने के कारण ही यह स्थिति देखने को मिली।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि समय के साथ आवश्‍यक जिंसों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव में बदलाव देखा गया है। वर्ष 2009 से वर्ष 2014 तक की अवधि की तुलना में वर्ष 2014-2019 की अवधि के दौरान कुछ दालों को छोड़ अधिकतर आवश्‍यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव में उल्‍लेखनीय कमी दर्ज की गई। यह संभवत: विपणन की बेहतर व्‍यवस्‍थाओं, भंडारण सुविधाओं और ज्‍यादातर आवश्‍यक कृषि जिंसों के लिए कारगर एमएसपी प्रणाली से ही संभव हो पाई।


आर्थिक समीक्षा के अनुसार, सीपीआई-संयुक्‍त महंगाई सभी राज्‍यों में अत्‍यंत भिन्‍न रही है। वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल- दिसम्‍बर) के दौरान समस्‍त राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों में महंगाई दर (-) 0.04 प्रतिशत से लेकर 8.1 प्रतिशत दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल- दिसम्‍बर) के दौरान 15 राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों में महंगाई दर 4 प्रतिशत से भी कम रही। सभी राज्‍यों में ग्रामीण एवं शहरी महंगाई में काफी अंतर देखने को मिला। सीपीआई-संयुक्‍त महंगाई अधिकतर राज्‍यों के शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कम है और ग्रामीण-शहरी महंगाई में यह अंतर सभी घटकों खाद्य एवं पेय पदार्थों, वस्‍त्र एवं फुटवियर, विविध पदार्थों इत्‍यादि में देखने को मिला।


ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में महंगाई में अंतर का विश्लेषण करते हुए आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि सभी राज्‍यों में शहरी महंगाई की तुलना में ग्रामीण महंगाई में अपेक्षाकृत अधिक अंतर रहा है। आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि हेडलाइन महंगाई दर और कोर महंगाई में अभिसरण के कारण महंगाई के आयाम में बदलाव देखा जाता रहा है। समीक्षा में यह बताया गया है कि खाद्य एवं ईंधन के मूल्यों में भारी वृद्धि को देखते हुए मौद्रिक नीति में इससे निपटने के लिए उठाये जाने वाले कदमों में इसके निहितार्थ हो सकते हैं। गैर-प्रमुख घटकों में तेज अल्‍पकालिक मूल्‍यवृद्धि को ध्‍यान में रखते हुए मौद्रिक नीति को कठोर बनाने की जरूरत नहीं है। हालांकि, भारत में उपभोक्‍ताओं के उपभोग स्‍टॉक में खाद्य पदार्थों एव ईंधन की भारिता (वेटेज) काफी अधिक रहने और खाद्य पदार्थों एवं ईंधन की महंगाई में न केवल आपूर्ति से जुड़े कारकों, बल्कि मांग पक्ष से जुड़े दबाव का भी काफी योगदान होने के कारण मौद्रिक नीति संबंधी निर्णयों में मुख्‍य महंगाई दर पर फोकस करना आवश्‍यक हो सकता है।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आवश्‍यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकार को समय-समय पर विभिन्‍न ठोस कदम उठाने चाहिए जिनमें व्‍यापार एवं राजकोषीय नीति से जुड़े उपायों का इस्‍तेमाल करना, न्‍यूनतम निर्यात मूल्‍य, निर्यात संबंधी पाबंदियां और स्‍टॉक लिमिट लागू करना शामिल हैं। आर्थिक समीक्षा में प्‍याज की कीमतों का उल्‍लेख करते हुए कहा गया है कि वर्ष 2019-20 के दौरान अगस्‍त, 2019 से इसकी कीमतों में  वृद्धि दर्ज की गई और इसकी कीमतों में कमी सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए।




भारत ने समानता एवं साझा, लेकिन भिन्न जिम्‍मेदारियों के सिद्धांतों के अनुसार पेरिस समझौते के तहत अपने राष्‍ट्रीय निर्धारित अंशदान (एनडीसी) के अनुरूप सतत विकास पथ पर चलने के लिए अथक प्रयास किए हैं : आर्थिक समीक्षा 

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा में विकास से जुड़ी अनिवार्यताओं पर फोकस करते हुए जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने के लिए भारत के समग्र दृष्टिकोण पर विशेष बल दिया गया है।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत ने समानता एवं साझा, लेकिन भिन्न जिम्‍मेदारियों के सिद्धांतों के अनुसार पेरिस समझौते के तहत अपने राष्‍ट्रीय निर्धारित अंशदान (एनडीसी) के अनुरूप एक ऐसे विकास पथ पर चलने के लिए अथक प्रयास किए हैं जो सतत विकास का मार्ग प्रशस्‍त करता है और विभिन्‍न योजनाओं में निवेश कर पर्यावरण का संरक्षण करता है।


आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में कमी से जुड़ी भारत की रणनीतियों में स्‍वच्‍छ एवं बेहतर ऊर्जा प्रणाली, ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करने, सुदृढ़ शहरी अवसंरचना, सुरक्षित व स्‍मार्ट तथा टिकाऊ हरित परिवहन नेटवर्क और नियोजित वनीकरण के साथ-साथ सभी सेक्‍टरों में समग्र भागीदारी पर बल दिया गया है।


सतत विकास एवं जलवायु परिवर्तन के लिए भारत की नीतियों की दिशा में प्रगति


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत अपने एनडीसी को प्राप्‍त करने के पथ पर अग्रसर है। आर्थिक समीक्षा ने भारत के नवीकरणीय ऊर्जा सेक्‍टर में उल्‍लेखनीय छलांग पर भी प्रकाश डाला है जिसके तहत विश्‍व के एक सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा विस्‍तार कार्यक्रम के तहत 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्‍य में से 83 गीगावाट लक्ष्‍य की प्राप्ति की जा रही है।


इसके अलावा, शत-प्रतिशत ठोस अपशिष्‍ट का वैज्ञानिक प्रबंधन सुनिश्चित करने और पर्यावरण में समग्र सुधार के लिए शहरी भारत को खुले में शौच मुक्‍त (ओडीएफ) करने के दो उद्देश्‍यों के साथ स्‍वच्‍छ भारत मिशन (शहरी) को वर्ष 2014 में लॉन्‍च किया गया था। 35 राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों के सभी शहरी क्षेत्र ओडीएफ हो गए हैं और अपशिष्‍ट की प्रोसेसिंग का स्‍तर लगभग 18 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत के स्‍तर पर पहुंच गया है।


आर्थिक समीक्षा में एनडीसी के अनुरूप ‘जलवायु परिवर्तन पर राष्‍ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी)’ में संशोधन करने से संबंधि‍त भारत के निर्णय पर प्रकाश डाला गया है, ताकि इसे और भी अधिक व्‍यापक बनाया जा सके। आर्थिक समीक्षा में विभिन्‍न योजनाओं जैसे कि एलईडी बल्‍ब के वितरण से जुड़ी उजाला स्‍कीम की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है जो 360 मिलियन का आंकड़ा पार कर गया है। इसी तरह आर्थिक समीक्षा में स्‍ट्रीट लाइटिंग कार्यक्रम को मिली उल्‍लेखनीय सफलता की भी सराहना की गई है जिसके तहत 10 मिलियन पारंपरिक स्‍ट्रीटलाइट के स्‍थान पर एलईडी स्‍ट्रीटलाइटें लगाई गई हैं और जिससे 43 मिलियन टन कार्बन-डाई-ऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन की बचत करने में मदद मिली है।


अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भारत की पहल


सौर क्षेत्र में, अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) सदस्‍य देशों की 30 फेलोशिप को संस्‍थागत रूप देकर ‘समर्थवान’, भारत के एक्जिम बैंक से 2 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण एवं फ्रांस की एजेंसे फ्रांकेइस डे डेवलपमेंट (एएफडी) से 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर की राशि पाकर ‘सुविधाप्रदाता’, सौर जोखिम अपशमन पहल जैसे कदमों को बढ़ावा देकर ‘इन्‍क्‍यूबेटर’ और 1000 मेगावाट की कुल मांग तथा 2,70,000 सोलर पंपों के लिए विभिन्‍न साधनों को विकसित कर ‘त्‍वरक’ की भूमिका निभा रहा है।


भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के महासचिव के जलवायु कार्रवाई शिखर सम्‍मेलन के दौरान अलग से आपदा सक्षम अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई) को सितम्‍बर, 2019 में लॉन्‍च किया। सीडीआरआई का उद्देश्‍य जलवायु एवं आपदा जोखिमों से निपटने के लिए नई एवं मौजूदा अवसंरचना प्रणालियों की सुदृढ़ता को बढ़ावा देना है, ताकि आपदाओं से अवसंरचना या बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को होने वाले नुकसान में कमी की जा सके।


भारत ने 2-13 सितम्‍बर, 2019 के दौरान ‍मरुस्‍थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र सम्‍मेलन (यूएनसीसीडी) की कॉन्‍फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी 14) के 14वें सत्र की मेजबानी की। सीओपी 14 के दौरान ‘नई दिल्‍ली घोषणा पत्र : भूमि में निवेश करना और अवसरों को उन्‍मुक्‍त करना’ को अपनाया गया। भारत ने संवर्धि‍त दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए भी सहायता देने की घोषणा की। भूजल के प्रबंधन के लिए वैश्विक जल कार्रवाई एजेंडे का भी शुभारंभ किया गया।


वित्तीय प्रणाली को निरंतरता के साथ जोड़ने के लिए भारत के प्रयास


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चीन के बाद भारत में ही दूसरा सबसे बड़ा उभरता ग्रीन बॉन्‍ड बाजार है। भारतीय स्‍टेट बैंक ने 650 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सर्टिफाइड क्‍लाइमेट बॉन्‍ड के साथ बाजार में प्रवेश किया था। भारत वर्ष 2019 में सतत वित्त पर अंतर्राष्‍ट्रीय प्‍लेटफॉर्म (आईपीएसएफ) से भी जुड़ गया, ताकि पर्यावरणीय दृष्टि से सतत निवेश का स्‍तर बढ़ाया जा सके।


आर्थिक समीक्षा में जलवायु वित्त में कमी से जुड़े मुद्दे पर भी चिंता जताई गई है। हरित जलवायु कोष की प्रथम प्रतिपूर्ति (2020-2023) के तहत अब तक 28 देशों ने इस कोष की प्रतिपूर्ति के लिए 9.7 अरब अमेरिकी डॉलर की राशि देने का वादा किया है, जो आरंभिक संसाधन प्राप्ति (आईआरएम) से मात्रा की दृष्टि से कम है। आर्थिक समीक्षा में उम्‍मीद जताई गई है कि भारत विकसित देशों से इस कार्य में अगुवाई करने का दृढ़तापूर्वक आह्वान करते हुए आगे भी अपने समुचित दात्यिवों का निर्वहन करेगा।



प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत वर्ष 2014-15 में 11.95 लाख घरों की तुलना में वर्ष 2018-19 में 47.33 लाख घरों का निर्माण कार्य पूरा : आर्थिक समीक्षा

सभी के लिए आवास, पेयजल और स्‍वच्‍छता के साधनों सहित सामाजिक संपत्तियों के निर्माण का प्रावधान सरकार की सामाजिक अवसंरचना के निर्माण की कोशिशों के तहत एक प्रमुख स्‍तंभ रहा है। यह आर्थिक समीक्षा 2019-20 के प्रमुख घटकों में से एक है, जिसे आज संसद में केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने पेश किया।


सभी के लिए आवास


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2018 में भारत में पेयजल, साफ-सफाई और आवास स्थिति पर एनएसओ के हाल के सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 76.7 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 96 प्रतिशत लोगों के पास पक्‍का घर है।


दो योजनाओं प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) और प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पीएमएवाई-यू) के तहत 2022 तक सभी के लिए आवास के लक्ष्‍य को हासिल करना है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि पीएमएवाई-जी के तहत एक साल में बनने वाले घरों की संख्‍या पहले से चार गुना बढ़ गई है, जो 2014-15 में 11.95 लाख से बढ़कर 2018-19 में 47.33 लाख हो गई है।


पेयजल एवं स्‍वच्‍छता


      आ‍र्थिक समीक्षा के अनुसार 2014 में शुरू हुए स्‍वच्‍छ भारत मिशन–ग्रामीण (एसबीएम-जी) के तहत अब तक ग्रामीण इलाकों में 10 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए हैं। इस दौरान 5.9 लाख गांवों, 699 जिलों और 35 राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों ने अपने आपको खुले में शौच से मुक्‍त घोषित किया है। भारत के सबसे बड़े ग्रामीण स्‍वच्‍छता सर्वेक्षण स्‍वच्‍छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2019 में देश भर के 698 जिलों के 17,450 गांवों को शामिल किया गया, जिनमें 87,250 सार्वजनिक स्‍थल शामिल हैं।


      बजट पूर्व समीक्षा में बताया गया है कि सफाई को लेकर व्‍यवहार को बनाए रखने और ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन को बढ़ावा देने पर केन्द्रित 10 वर्षीय ग्रामीण स्‍वच्‍छता रणनीति (2019-2029) की शुरुआत की गई है। जल संकट से जुझ रहे प्रखंडों और जिलों में जल संरक्षण की गतिविधियों में तेजी लाने के उद्देश्‍य से पूरे भारत में जल शक्ति अभियान (जेएसए) शुरू किया गया है। आर्थिक समीक्षा में जोर देते हुए बताया गया है कि जेएसए के तहत अब तक 256 जिलों में 3.5 लाख से अधिक जल संरक्षण उपाए किए गए हैं। लगभग 2.64 लोगों ने भाग लेकर इसे जन आंदोलन बना दिया है।



2018 में विश्व के वाणिज्यिक सेवा निर्यात में भारत का हिस्सा बढ़कर 3.5 प्रतिशत हुआः आर्थिक समीक्षा 2019-20

अपने महत्व को बढ़ाते हुए सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था तथा सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) वृद्धि में लगभग 55 प्रतिशत हो गया है। भारत में कुल दो-तिहाई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आवक हुई है और यह क्षेत्र कुल निर्यात का 38 प्रतिशत हो गया है। यह जानकारी आज केन्द्रीय वित्त तथा कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा 2019-20 में दी गई है। 33 राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में से 15 में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी सकल राज्य मूल्यवर्धन के 50 प्रतिशत को पार कर गई है।


आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि अप्रैल-सितंबर 2019 के दौरान सेवा क्षेत्र ने कुल एफडीआई इक्विटी आवक में 33 प्रतिशत की छलांग लगाई है और यह आवक 17.58 बिलियन डॉलर पहुंच गई है। ऐसा सूचना तथा प्रसारण, विमान परिवहन, दूर-संचार, परामर्श सेवाओं तथा होटल और पर्यटन जैसे उप-क्षेत्रों में मजबूत एफडीआई आवक के कारण हुआ है।


आर्थिक समीक्षा में रेखांकित किया गया है कि हाल के वर्षों में वस्तुओं के निर्यात से अधिक सेवाओं का निर्यात हुआ है। इस कारण विश्व की वाणिज्यिक सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी पिछले दशकों में बढ़ी है और यह 2018 में 3.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह विश्व के 1.7 प्रतिशत वाणिज्यिक निर्यात से दोगुना है।


बजट पूर्व समीक्षा में कहा गया है कि उच्च फ्रीक्वेंशी वाले विभिन्न संकेतक तथा विमान यात्री यातायात, रेल माल ढुलाई यातायात, बंदरगाह और जहाजरानी माल ढुलाई यातायात, बैंक ऋण, आईटी-बीपीएम (बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट) क्षेत्र राजस्व, विदेशी पर्यटक आगमन तथा पर्यटन विदेशी मुद्रा आय जैसे क्षेत्रवार डाटा बताते हैं कि 2019-20 के दौरान सेवा क्षेत्र में नरमी आई है। लेकिन अच्छी बात यह है कि 2019-20 के प्रारंभ में सेवा क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) में सुधार हुआ है और अप्रैल-सितंबर 2019 के दौरान सेवा निर्यात की गति तेज बनी रही है। समीक्षा में दीर्घकालिक दृष्टि से सुझाव दिया गया है कि द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं के दौरान सेवा निर्यात पर फोकस करना भारत के लिए व्यापार साझेदारों के साथ द्विपक्षीय व्यापार घाटे को दूर करने के लिए शुभ है।


आर्थिक समीक्षा में सेवा क्षेत्र के अंदर उप-क्षेत्रों के महत्वपूर्ण विकासों को दिखाया गया हैः



  • पर्यटन सेवाः  यह क्षेत्र विकास को बढ़ाने वाला, जीडीपी में योगदान करने वाला, विदेशी मुद्रा कमाने वाला और रोजगार सृजन का प्रमुख ईंजन है, लेकिन वैश्विक रूझानों के अऩुरूप 2018 और 2019 में विदेशी मुद्रा आय वृद्धि में नरमी आई। ई-वीजा योजना को 169 देशों के साथ उदार बनाए जाने से ई-वीजा पर पर्यटकों का आगमन 2015 के 4.45 लाख विदेशी पर्यटकों की तुलना में 2018 में बढ़कर 23.69 लाख हो गया और यह जनवरी-अक्टूबर 2019 में 21.75 लाख रहा। इस तरह इसमें प्रति वर्ष 21 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

  • आईटी-बीपीएम सेवाः भारत का आईटी-बीपीएम उद्योग पिछले दो दशकों से भारत के निर्यात का ध्वजवाहक रहा है। आईटीबीपीएम उद्योग मार्च 2019 में 177 बिलियन डॉलर हो गया। रोजगार वृद्धि और मूल्यवर्धन के माध्यम से यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करता है। आईटी-बीपीएम क्षेत्र में नवाचार को प्रेरित करने तथा प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। इन कदमों में स्टार्टअप इंडिया, राष्ट्रीय सॉफ्टवेयर, उत्पाद नीति और एंजिल टैक्स से संबंधित विषयों की समाप्ति शामिल है। भारत की स्टार्टअप व्यवस्था प्रगति कर रही है और 24 यूनिकॉर्न के साथ यह विश्व में तीसरी सबसे बड़ी व्यवस्था बन गई है।

  • बंदरगाह तथा जहाजरानी सेवाः जहाजों से माल उतारने और चढ़ाने में लगने वाला समय दक्षता का प्रमुख सूचक है। यह 2010-11 तथा 2018-19 के बीच आधा घटकर 4.67 दिवस से 2.48 दिवस हो गया है।

  • अंतरिक्ष क्षेत्रः पांच वर्ष पूर्व प्रारम्भिक शुरूआत के बाद से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में काफी प्रगति हुई है। अब साधारण मैपिंग सेवाओं से आगे अधिक सेवाएं मिल रही हैं। यद्पि अन्य देशों की तुलना में अंतरिक्ष कार्यक्रम पर भारत का खर्च कम है, लेकिन इसरो ने हाल के वर्षों में प्रति वर्ष लगभग 5-7 सेटेलाइटों को बिना किसी दोष के लान्च किया है।



कृषि के मशीनीकरण से भारतीय कृषि वाणिज्यिक कृषि के रूप में बदल जाएगीः आर्थिक समीक्षा

केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। श्रीमती निर्मला सीतारमण ने किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने के सरकार के संकल्प को दोहराया। उन्होंने कृषि के मशीनीकरण, पशुधन तथा मछलीपालन क्षेत्र, खाद्य प्रसंस्करण, वित्तीय समावेश, कृषि ऋण, फसल बीमा, सूक्ष्म सिंचाई तथा सुरक्षित भंडार प्रबंधन पर बल दिया।



कृषि का मशीनरीकरण


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि जमीन, जल संसाधन और श्रम शक्ति में कमी आने के साथ उत्पादन का मशीनरीकरण तथा फसल कटाई के बाद के प्रचालनों पर जिम्मेदारी आ जाती है। कृषि के मशीनरीकरण से भारतीय कृषि वाणिज्यिक कृषि के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। कृषि में मशीनरीकरण को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चीन (59.5 प्रतिशत) तथा ब्राजील (75 प्रतिशत) की तुलना में भारत में कृषि का मशीनरीकरण 40 प्रतिशत हुआ है।


मशुधन तथा मछलीपालन क्षेत्र


लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए पशुधन आय दूसरा महत्वपूर्ण आय का साधन है और यह क्षेत्र किसानों की आय को दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि पिछले पांच वर्षों में पशुधन क्षेत्र 7.9 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ रहा है।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि मछलीपालन खाद्य, पोषाहार, रोजगार और आय का महत्वपूर्ण साधन रहा है। मछलीपालन क्षेत्र से देश में लगभग 16 मिलियन मछुआरों और मछलीपालक किसानों की आजीविका चलती है। मछलीपालन के क्षेत्र में हाल के वर्षों में वार्षिक औसत वृद्धि दर 7 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई है। इस क्षेत्र के महत्व को समझते हुए 2019 में स्वतंत्र मछलीपालन विभाग बनाया गया है। 


खाद्य प्रसंस्करण


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने के लिए खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। प्रसंस्करण के उच्च स्तर से बर्बादी कम होती है, मूल्यवर्धन में सुधार होता है, फसल की विविधता को प्रोत्साहन मिलता है, किसानों को बेहतर लाभ मिलता है तथा रोजगार प्रोत्साहन के साथ-साथ निर्यात आय में भी वृद्धि होती है। 2017-18 में समाप्त होने वाले पिछले छह वर्षों के दौरान खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र लगभग 5.6 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर (एएजीआर) से बढ़ रहा है। वर्ष 2017-18 में 2011-12 के मूल्यों पर विनिर्माण तथा कृषि क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) क्रमशः 8.83 प्रतिशत और 10.66 प्रतिशत रहा।


 वित्‍तीय समावेशन,  कृषि ऋण और फसल बीमा


      आर्थिक समीक्षा में पूर्वोत्‍तर में ऋण के तेज वितरण में सुधार के लिए पूर्वोत्‍तर के क्षेत्रों में वित्‍तीय समावेशन को बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया गया है। फसल बीमा की जरूरत पर बल देते हुए आर्थिक समीक्षा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के लाभों के बारे में बताया गया है, जिसकी शुरुआत 2016 में फसल बुवाई से पहले से लेकर, फसल कटाई के बाद तक के प्राकृतिक जोखिमों को कवर करने के लिए की गई थी। पीएमएफबीवाई की वजह से सकल फसल क्षेत्र (जीसीए) मौजूदा 23 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया है। सरकार ने एक राष्‍ट्रीय फसल बीमा पोर्टल का भी गठन किया, जिसमें सभी हितधारकों के लिए इंटरफेस उपलब्‍ध है।


कृषि में सकल मूल्‍यवर्धन


      विकास प्रक्रिया की स्‍वाभाविक राह और अर्थव्‍यवस्‍था में हो रहे संरचनात्‍मक बदलाव की वजह से कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान मौजूदा मूल्‍य पर देश के सकल मूल्‍य वर्धन में वर्ष 2014-15 के 18.2 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2019-20 में 16.5 प्रतिशत हो गया।


बफर स्‍टॉक प्रबंधन


      आर्थिक समीक्षा में बढ़ते खाद्य सब्सिडी बिल को कम करने के लिए राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत दरों की समीक्षा का प्रस्‍ताव किया गया है। आर्थिक समीक्षा में भारतीय खाद्य निगम के बफर स्‍टॉक के विवेकपूर्ण प्रबंधन की भी सलाह दी गई है।


सूक्ष्‍म सिंचाई


      खेतों के स्‍तर पर जल इस्‍तेमाल की क्षमता बढ़ाने के लिए आर्थिक समीक्षा में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) जैसी योजनाओं के जरिए सूक्ष्‍म सिंचाई (ड्रिप एवं स्प्रिंकल सिंचाई) के इस्‍तेमाल की सलाह दी गई है। आर्थिक समीक्षा में नाबार्ड के साथ 5,000 करोड़ रुपये के आरंभिक फंड के गठन के साथ समर्पित सूक्ष्‍म सिंचाई फंड की भी चर्चा की गई।                   




विद्यालय शिक्षा को प्री-स्कूल से उच्च माध्यमिक स्तर तक परिकल्पित करने के लिए समग्र शिक्षा 2018-19 का आरंभ किया गयाः आर्थिक  समीक्षा

भारत की आबादी की एक बड़ा हिस्सा नौजवानों का है इसलिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, जलापूर्ति और स्वच्छता जैसे सामाजिक क्षेत्रों में भारत को जनसांख्यिकीय लाभ प्राप्त है। इसका लोगों के जीवन के गुणवत्ता के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की उत्पादकता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस दिशा में हुआ विकास केन्द्रीय वित्त एवं कम्पनी कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा आज संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा 2019-20 का प्रमुख भाग हैं। यह समीक्षा 2014-15 से 2019-20 के अवधि के दौरान सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में सामाजिक सेवाओं पर कुल खर्च में 1.5 प्रतिशत की वृद्धि को रेखांकित करती है।


शिक्षाः


आर्थिक समीक्षा में सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)-4 के तहत वर्ष 2030 तक सभी लोगों को समावेशी एवं समान गुणवत्तपूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के सरकार के हस्ताक्षेपों का उल्लेख किया गया है। इस उद्देश्य के साथ विद्यालय शिक्षा प्री-स्कूल से उच्च माध्यमिक (सीनियर सेकेंडरी) स्तर तक परिकल्पित करने के लिए समग्र शिक्षा 2018-19 का आरंभ किया गया है। सरकार की ओर से की गई अन्य पहलों में नवोदय् विद्यालय योजना, प्रधानमंत्री अभिनव शिक्षण कार्यक्रम (ध्रुव), ज्ञान साझा करने के लिए डिजिटल अवसंरचना (दीक्षा) मंच और ई-पाठशाला जैसी ई-कंटेंट साइट्स शामिल हैं।


बजट पूर्व समीक्षा उच्च और तकनीकी शिक्षा में शिक्षण और अध्यापन की गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में की गई पहलों को भी रेखांकित करती है। इनमें अन्य के अलावा उच्चतर शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (एचईएफए), राष्ट्रीय शैक्षिक गठबंधन प्रौद्योगिकी (एनईएटी), शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन और समावेश कार्यक्रम (इक्विप) परामर्श जैसी योजनाएं और स्वयं 2.0 जैसे विशाल ऑनलाइन डिग्री कार्यक्रम शामिल हैं।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यू-डीआईएसई) के अनुसार 2017-18 (अनन्तिम) 98.38 प्रतिशत सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में लड़कियों के लिए शौचालयों की व्यवस्था है, जबकि 96.23 प्रतिशत सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में लड़कों के लिए शौचालयों की व्यवस्था है। 97.13 प्रतिशत सरकारी प्रारंभिक विद्यालयों में पेय जल की सुविधा है। ये आंकड़े शिक्षा का अधिकार, 2009 को बरकरार रखने के प्रति सरकार की संकल्पबद्धता पर प्रकाश डालते है।


सरकार ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नवाचार और अनुसंधान पर ध्यान केन्द्रित करने सहित नई शिक्षा नीति का निरुपण करने की प्रक्रिया आरंभ की है। आर्थिक समीक्षा में स्कूलों के विभिन्न स्तरों पर पढ़ाई अधूरी छोड़ने वाले बच्चों की अधिक संख्या और उच्च शिक्षा में व्यवहार्यता की कमी की चिंता के क्षेत्रों के रूप में पहचान की गई है।


स्वास्थ्यः


स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार लाने और बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की दिशा में दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवा योजना आयुष्मान भारत के तहत 14 जनवरी, 2020 तक 28,005 स्वास्थ्य एवं वेलनेस केन्द्र खोले गए है। समीक्षा में कहा गया है, ‘निवारक स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए 2022 तक डेढ़ लाख आयुष्मान भारत- स्वास्थ्य एवं वेलनेस केन्द्र खोले जाने का प्रस्ताव है।’ मिशन इंद्रधनुष के तहत अब तक देशभर में 680 जिलों के 3.39 करोड़ बच्चों और 87.18 लाख गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण किया गया है। इनके अलावा स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों के तहत सरकार ने ‘ईट राइट एंड ईट सेफ’, फिट इंडिया, अनीमिया मुक्त भारत, पोषण अभियान और स्वच्छ भारत अभियान जैसी मिशन मोड पहले की हैं। इसके अलावा ई-सिगरेट से संबंधित समस्त वाणिज्यिक कार्रवाईयों पर हाल ही में प्रतिबंध लगा दिया गया है।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि नवीनतम राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा 2016-17 के अनुसार, कुल स्वास्थ्य खर्च के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर अपनी जेब से किए जाने वाले खर्च (ओओपीई) में गिरावट आई है। वर्ष 2013-14 में यह 64.2 प्रतिशत था, जो 2016-17 में 58.7 प्रतिशत रहा। विभिन्न योजनाओं ने स्वास्थ्य सेवाओं तक व्यापक पहुंच को संभव बनाया है। आर्थिक समीक्षा के अनुसार इनमें फ्री-ड्रग्स सर्विस इनिशिएटिव, निःशुल्क निदान सेवा पहल, प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना (पीएमवीजेपी) और प्रधानमंत्री नेशनल डायलिसिज प्रोग्राम (पीएमएनडीपी) शामिल हैं।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चिकित्सा के बुनियादी ढांचे में सुधार लाने के लिए सरकार ने पिछले पांच वर्षों में 141 मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी दी है। सरकार ने 2.51 लाख अतिरिक्त स्वास्थ्य संबंधी मानव संसाधनों को शामिल करने के लिए राज्यों को सहायता प्रदान की है। 



विनिवेश ने सरकार के ठोस प्रदर्शन और संपूर्ण उत्पादकता में सुधार किया और उनकी धन सृजन की संभावनाएं खोली

वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। सर्वेक्षण में जोर देकर कहा गया है कि विनिवेश से सरकार के कुल प्रदर्शन और संपूर्ण उत्पादकता में सुधार हुआ है और उसकी धन सृजन की संभावनाएं खुली हैं। इसका अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। समग्र विनिवेश, मुख्य रूप से रणनीतिक बिक्री के मार्ग के जरिए इस्तेमाल अधिक लाभ के लिए, दक्षता को बढ़ाने, प्रतिस्पर्धा बढ़ाने और सीपीएसई में प्रबंधन में व्यवसायिकता को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।



समीक्षा में कहा गया है कि महत्वपूर्ण निवेश का मुख्य केन्द्र बिन्दु कम महत्वपूर्ण व्यवसायों से निकालकर उसे इन सीपीएसई की आर्थिक संभावना को अधिकतम बनाने की दिशा में निर्देशित किया जाना चाहिए। इस कदम की बदौलत पूंजी खासतौर से सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसे – सड़कों, बिजली, ट्रांसमिशन लाइनों, सीवेज प्रणालियों, सिंचाई प्रणालियों, रेलवे और शहरी बुनियादी ढांचे पर इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराई जा सकेगी। यह उत्साहवर्धक है कि निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग द्वारा (डीआईपीएएम) प्रावधानों को सरल और कारगर बना दिया गया है।


समीक्षा के अनुसार मंत्रिमंडल ने विभिन्न सीपीएसई में विनिवेश को सिद्धांत रूप से मंजूरी दे दी है। इसे प्रबल तरीके से किए जाने की आवश्यकता है ताकि वित्तीय उपलब्धता और सार्वजनिक संसाधनों के दक्ष आवंटन में सुधार किया जा सके।


समीक्षा में कहा गया है कि 38 विभिन्न मंत्रालयों / विभागों के अंतर्गत करीब 264 सीपीएसई हैं। इनमें से 13 मंत्रालयों / विभागों में 10 सीपीएसई है जिनमें से प्रत्येक उनके अधिकार क्षेत्र में है। यह स्पष्ट है कि इनमें से अनेक सीपीएसई लाभकारी हैं, हालांकि आमतौर पर सीपीएसई का बाजार में अपेक्षाकृत कम प्रदर्शन रहता है। जैसा कि वर्ष 2014-2019 की अवधि के दौरान बीएसई सेंसेक्स के 38 प्रतिशत रिटर्न की तुलना में बीएसई सीपीएसई सूचकांक का औसत रिटर्न केवल 4 प्रतिशत रहा है।


समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि सरकार सीपीएसई में सूचीबद्ध अपने हित को पृथक कॉरपोरेट इकाई में हस्तांतरित कर सकती है। इस इकाई का प्रबंधन एक स्वतंत्र बोर्ड द्वारा किया जाएगा और इसे एक निर्धारित समय में इन सीपीएसई में सरकार के हितों का विनिवेश करने के लिए अधिदेशित किया जाएगा। इस कदम से विनिवेश कार्यक्रम में व्यवसायिकता और स्वायत्ता आएगी, जिसकी बदौलत इन सीपीएसई के आर्थिक प्रदर्शन में सुधार होगा।


समीक्षा में कहा गया है कि नवंबर, 2019 में भारत ने दशकभर से ज्यादा अरसे का अपना सबसे बड़ा निजीकरण अभियान प्रारंभ किया। चुनिंदा केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (सीपीएसई) में भारत सरकार की चुकता पूंजी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से नीचे लाने को “सैद्धांतिक” मंजूरी प्रदान की गई। निजीकरण से प्राप्त होने वाले दक्षता संबंधी लाभ की जांच करने तथा क्या निजीकरण के लाभ भारतीय संदर्भ में भी परिलक्षित हुए हैं या नहीं, इस बात का पता लगाने के लिए समीक्षा में उन सीपीएसई का विश्लेषण किया गया, जिनमें वर्ष 1999-2000 से 2003-04 तक की अवधि में महत्वपूर्ण विनिवेश किया गया था।


समीक्षा में प्रत्येक सीपीएसई के प्रदर्शन में हुए परिवर्तनों की भी पड़ताल की गई है। इसमें प्रत्येक कम्पनी में महत्वपूर्ण विनिवेश/निजीकरण से दस वर्ष पहले और दस वर्ष बाद की अवधि के प्रमुख वित्तीय संकेतकों में हुए सुधारों का भी अध्ययन किया गया है। पृथक रूप से अध्ययन करते हुए ऐसे प्रत्येक निजीकृत या प्राइवेटाइज्ड सीपीएसई, की शुद्ध संपत्ति, शुद्ध लाभ, सकल राजस्व, शुद्ध लाभ अंतर, निजीकरण के बाद की अवधि में हुई बिक्री में हुए सुधार की तुलना पूर्व निजीकरण की अवधि से की गई।




विश्व बैंक कारोबारी सुगमता श्रेणी में भारत ने 79 पायदानों की छलांग लगाई; 2014 के 142 वें स्थान से 2019 में 63 वें स्थान पर पहुंचा

केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। वित्त मंत्री ने कहा कि भारत ने विश्व बैंक के कारोबारी सुगमता श्रेणी में 79 स्थानों की छलांग लगाई है। भारत 2014 के 142 वें स्थान से 2019 में 63 वें स्थान पर पहुंच गया है।



देश ने 10 मानकों में से 7 मानकों में प्रगति दर्ज की है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) तथा दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) कानून उन सुधारों की सूची में सबसे उपर हैं जिनके कारण श्रेणी में भारत की स्थिति बेहतर हुई है। हालांकि भारत कुछ अन्य मानकों यथा कारोबार शुरू करने में सुगमता (श्रेणी 136), सम्पत्ति का पंजीयन (श्रेणी 154), कर भुगतान (श्रेणी 115), संविदाओं को लागू करना (श्रेणी 163) आदि में अभी भी पीछे है।


पिछले 10 वर्षों के दौरान भारत में कारोबार शुरू करने के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं की संख्या 13 से घटकर 10 रह गई है। आज भारत में कारोबार शुरू करने के लिए औसतन 18 दिनों का समय लगता है जबकि 2009 में औसतन 30 दिनों का समय लगता था। हालांकि भारत ने कारोबार शुरू करने में लगने वाले समय और लागत में महत्वपूर्ण कमी की है लेकिन इसमें और सुधार की आवश्यकता है।


सेवा क्षेत्र को भी अपने दैनिक कारोबार के लिए विभिन्न नियामक अवरोधों का सामना करना पड़ता है। पूरी दुनिया में रोजगार और विकास के लिए बार एवं रेस्तरां को महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। यह एक ऐसा व्यापार है जिसमें कारोबार शुरू करने और बंद होने की आवृत्ति बहुत अधिक होती है। एक सर्वेक्षण दिखलाता है कि भारत में एक रेस्तरां खोलने के लिए आवश्यक लाइसेंसों की संख्या अन्य देशों की तुलना में अधिक है।


निर्माण अनुमति


पिछले 5 वर्षों के दौरान भारत ने निर्माण अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाया है। 2014 में निर्माण अनुमति प्राप्त करने में लगभग 186 दिनों का समय लगता था और भण्डारण लागत का 28.2 प्रतिशत व्यय होता था। 2014 की तुलना में 2019 में 98-113.5 दिनों का समय लगता है और भण्डारण लागत का 2.8-5.4 प्रतिशत खर्च होता है।


सीमा-पार व्यापार


जबकि सरकार ने प्रक्रियात्मक तथा कागजात संबंधी जरूरतों में पहले ही काफी कटौती की है, डिजिटलीकरण बढ़ाने तथा बहुविध एजेंसियों को एक डिजिटल प्लेटफार्म से जोड़ने से इन प्रक्रियात्मक खामियों में और भी अधिक कमी हो सकती है तथा उपभोक्ताओं के अनुभव में काफी बेहतरी हो सकती है।


भारत में समुद्री जहाजों की आवाजाही में लगने वाले समय में निरंतर कमी हो रही है, जो 2010-11 के 4.67 दिनों से लगभग आधा होकर 2018-19 में 2.48 दिन हो गया है। यह दर्शाता है कि समुद्री पोतों के मामले में महत्वपूर्ण लक्ष्यों तक पहुंचना संभव है। हालांकि, पर्यटन अथवा विनिर्माण जैसे खास क्षेत्रों की कारोबारी सुगमता को सरल बनाने में, और अधिक लक्षित पहुंच की जरूरत है, जिससे प्रत्येक क्षेत्र की नियामक तथा प्रक्रियात्मक बाधाएं दूर हों। एक बार जब प्रक्रिया तय की गई है, सरकार के समुचित स्तर – केंद्र, राज्य अथवा निगम द्वारा इसमें  सुधार किया जा सकता है।


भारत में सेवाओं अथवा विनिर्माण कारोबार स्थापित करने तथा संचालित करने में कानूनी, नियम तथा विनियमन से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से कई स्थानीय जरूरतें हैं, जैसे एक रेस्टोरेंट खोलने में पुलिस की स्वीकृति के लिए कागजात का बोझ। इसे ठीक किया जाना चाहिए तथा एक समय में एक क्षेत्र को सुसंगत बनाया जाना चाहिए। भारत में एक अनुबंध को लागू करने में औसतन 1445 दिनों का समय लगता है, जबकि न्यूजीलैंड में 216 दिन, चीन में 496 दिन लगते हैं। भारत में करों के भुगतान में 250 घंटे से अधिक समय लगता है, जबकि न्यूजीलैंड में 140 घंटे, चीन में 138 घंटे और इंडोनेशिया में 191 घंटे लगते हैं। इन मापदंडों में सुधार लाने की संभावना है।


बैंगलुरू हवाई अड्डे से इलेक्ट्रानिक्स सामग्रियों के निर्यात एवं आयात के मामलों के अध्ययन से पता चलता है कि किस प्रकार भारतीय उपस्कर प्रक्रियाओं को विश्व स्तरीय बनाया जा सकता है। वस्तु निर्यात संबंधी मामलों के अध्ययन से पता चला है कि भारतीय समुद्री पोतों में उपस्करों की काफी कमी है। निर्यात की तुलना में आयात की प्रक्रिया अधिक कारगर है। हालांकि, खास मामले से जुड़े अध्ययनों को सामान्य रूप में लेने के प्रति सावधानी बरतने की जरूरत है, यह स्पष्ट है कि समुद्री पोतों में सीमा शुल्क निपटारे, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने तथा लदान में कई दिनों का समय लगता है, जिसे कुछ घंटों में पूरा किया जा सकता है।




लोगों को पोषण और बिजली की उपलब्‍धता से जीडीपी में तेज वृद्धि : आर्थिक समीक्षा 2019-20

आर्थिक समीक्षा 2019-20 में कहा गया है कि पोषण और बिजली तक लोगों की पहुंच से भारत के सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) में तेज वृद्धि दर्ज की गई और विनिर्माण, अवसंरचना तथा कृषि क्षेत्र से कही ज्‍यादा सेवा क्षेत्र में नए प्रतिष्‍ठानों का गठन हुआ। केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की।



जीडीपी वृद्धि को निवेशकों और नीति निर्माताओं द्वारा फैसला लेने में महत्‍वपूर्ण पहलु बताते हुए आर्थिक समीक्षा में हाल की उस चर्चा को रेखांकित किया गया  है कि 2011 में अनुमान की प्रविधि की समीक्षा के बाद भारत के जीडीपी का सही अनुमान लगाया गया है या नहीं। समीक्षा में मौजूदा प्रासंगिक सामग्री और अर्थशात्रीय विधियों का लाभ उठाते हुए साक्ष्‍य की सावधानीपूर्वक जांच की गई, ताकि यह अध्‍ययन किया जा सके कि क्‍या भारत की मौजूदा जीडीपी वृद्धि अनुमानित वृद्धि से अधिक है। इसमें बताया गया कि सावधानीपूर्वक किये गए सांख्यिकीय और आ‍र्थिक विश्‍लेषण के आधार पर भारत की जीडीपी वृद्धि के गलत अनुमान का कोई साक्ष्‍य नहीं मिलता है।


समीक्षा में भारत के सांख्यिकीय अवसंरचना में सुधार के लिए निवेश की जरूरत पर बल दिया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि भारत ने कई सामाजिक विकास संकेतकों में महत्‍वपूर्ण सुधार दर्ज किया है।


समीक्षा में विभिन्‍न प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष रूप से अलग देशों की चर्चा की गई है। इसमें कहा गया है कि अन्‍य कारकों के असर को अलग करने और जीडीपी वृद्धि अनुमान पर प्रविधि समीक्षा के असर को दरकिनार करते हुए संबंधित देशों की तुलना बड़ी सावधानी के साथ करनी होगी।


समीक्षा में बताया गया है कि भारत ने निवेश बढ़ाने के लिए एफडीआई नियमों में राहत, कॉरपोरेट दरों में कटौती, महंगाई पर अंकुश, अवसंरचना के निर्माण में तेजी, व्‍यवसाय शुरू करने को आसान बनाने या कर सुधार जैसे कई कदम उठाए हैं। इसमें कहा गया है कि निवेशक यहां कई अवसर देख रहे हैं, क्‍योंकि भारत दुनिया की सबसे तेजी बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक है। इसमें यह भी कहा गया है कि देश के जीडीपी के स्‍तर और वृद्धि दर से कई महत्‍वपूर्ण नीतिगत पहलों की जानकारी मिलती है।


समीक्षा में सूक्ष्‍म स्‍तरीय साक्ष्‍य की विस्‍तार से चर्चा की गई है, जिसमें भारत के 504 जिलों में औपचारिक क्षेत्र में नए प्रतिष्‍ठानों के गठन का पता चला। समीक्षा में बताया गया है कि सूक्ष्‍म साक्ष्‍य से पता चलता है कि नए प्रतिष्‍ठानों के गठन में 10 प्रतिशत की वृद्धि से जिला स्‍तर पर 108 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर्ज की गई।           




चालू खाता घाटे में और कमी आने से भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति में सुधारः आर्थिक समीक्षा

आर्थिक समीक्षा 2019-20 में इस बात पर संतोष व्यक्त किया गया है कि भारत का बाहरी क्षेत्र भुगतान संतुलन की स्थिति में सुधार, एफडीआई, एफपीआई तथा ईसीपी के माध्यम से पूंजी प्रवाह, विदेशों से अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी जाने वाली रकम की प्राप्ति तथा सीएडी में कमी आने के कारण 2019-20 की पहली छमाही में और अधिक मजबूत हुआ है।  केन्द्रीय वित्त और कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2019-20 पेश की।


सितंबर 2019 तक भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधर कर 433.7 बिलियन डॉलर हो गई। भुगतान संतुलन की स्थिति मार्च 2019 में 412.9 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार था। ऐसा चालू खाता घाटा (सीएडी) के 2018-19 के 2.1 प्रतिशत से घटकर 2019-20 की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद के 1.5 प्रतिशत कम होने के कारण हुआ। निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह शानदार रही और 2019-20 के पहले आठ महीनों में 24.4 बिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित हुआ। यह निवेश 2018-19 की समान अवधि की तुलना से काफी अधिक है। 2019-20 की पहली छमाही में अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई कुल रकम 2018-19 में कुल प्राप्तियों से 50 प्रतिशत से भी अधिक 38.4 बिलियन डॉलर रही। विश्व बैंक की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 17.5 मिलियन अप्रवासी भारतीयों ने भारत को 2018 में विदेशों से प्राप्त होने वाली रकम के मामले में शीर्ष पर पहुंचा दिया।


भारत का विदेशी मुद्रा भंडार संतोषजनक स्थिति में है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10 जनवरी, 2020 तक 461.2 बिलियन डॉलर रहा। सितंबर 2019 के अंत तक विदेशी ऋण का स्तर जीडीपी के 20.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर रहा। सकल घरेलू उत्पाद में भारत की बाहरी ऋण देनदारियां जून 2019 के अंत में बढ़ी हैं। इन देनदारियों में ऋण तथा इक्विटी घटक शामिल हैं। यह वृद्धि एफडीआई, पोर्टफोलियो प्रवाह तथा बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) में बढ़ोत्तरी से प्रेरित हुई।


व्यापार संरचना


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने के कारण 2009-14 से 2014-19 में भारत का वस्तु व्यापार संतुलन सुधरा है। वस्तुओं के निर्यात और जीडीपी अनुपात में 11.3 प्रतिशत की कमी आई। ऐसा वैश्विक मांग में कमजोरी तथा 2018-19 से 2019-20 की पहली छमाही में अधिक व्यापार तनाव के कारण हुआ। पेट्रोलियम, तेल तथा लुब्रिकेंट (पीओएल), मूल्यवान पत्थर, ड्रग फॉर्मूलेशन तथा बाइलॉजिकल, सोना और अन्य बेशकीमती धातु निर्यात के मामले में शीर्ष पर बने रहे। सबसे अधिक निर्यात अमेरिका को किया गया। इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात, चीन और हांगकांग का स्थान है।


वाणिज्यिक आयात और जीडीपी अनुपात में भी कमी आई और इससे भुगतान संतुलन की स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। ऐसा आयात बास्केट में अधिक मात्रा में कच्चे तेल की उपलब्धता के कारण हुआ। सोने की कीमतों में वृद्धि के बावजूद सोना आयात का हिस्सा स्थिर बना रहा। कच्चा पेट्रोलियम, सोना, पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला, कोक आदि आयात के शीर्ष पर बने रहे। भारत का सबसे अधिक आयात चीन, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात तथा सऊदी अरब से होता है।


आर्थिक समीक्षा 2019-20 में कहा गया है कि गैर-पीओएल-गैर-सोना आयात जीडीपी वृद्धि के साथ सकारात्मक रूप से जोड़कर समझा जाता है, लेकिन गैर-पीओएल-गैर-तेल आयात 2009-14 से 2014-19 में जीडीपी के अनुपात में कम हुए, जब जीडीपी की वृद्धि में तेजी आई। संभवतः ऐसा खपत प्रेरित वृद्धि के कारण हुआ, जबकि निवेश दर में कमी आई। निवेश में निरंतर गिरावट के कारण जीडीपी वृद्धि की दर धीमी हो गई, खपत में कमजोरी आई, निवेश परिदृश्य निराशाजनक हुआ और परिणामस्वरूप इससे जीडीपी वृद्धि कम हो गई और साथ-साथ 2018-19 से 2019-20 की पहली छमाही में जीडीपी के अनुपात में गैर-पीओएल-गैर स्वर्ण आयात में कमी आई।


वैश्विक आर्थिक माहौल


2019 में वैश्विक परिदृश्य में अनुमानित 2.9 प्रतिशत की वृद्धि के अनुरूप वैश्विक व्यापार में 1.0 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। यह वृद्धि शीर्ष पर 2017 में 5.7 प्रतिशत रही। विश्व व्यापार में मंदी अनेक कारणों से दिखी। इन कारणों में निवेश में कमी, पूंजीगत सामानों में खर्च में कटौती तथा कार तथा कार के कलपुर्जों के व्यापार में गिरावट शामिल है। समीक्षा में कहा गया है कि 2020 में वैश्विक व्यापार में 2.9 प्रतिशत का सुधार होगा और वैश्विक आर्थिक गतिविधि सुधार के मार्ग पर आएगी। यद्पि व्यापार तनाव तथा वैश्विक मूल्य श्रृंखला ढांचे में परिवर्तन को लेकर भविष्य की अनिश्चितता बनी हुई है।


 व्यापार सहायता


विश्व बैंक द्वारा निगरानी किए जाने वाले संकेतक ‘ट्रेडिंग एक्रॉस बोडर्स’ के अंतर्गत व्यापार सहायता में भारत की रैंकिंग 2016 के 143वें स्थान से सुधर कर 68 हो गई। यह रैंकिंग कारोबारी सुगमता रिपोर्ट में लगभग 190 देशों की समग्र रैंकिंग निर्धारित करती है। डिजिटल तथा सतत व्यापार सहायता 2019 पर संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक सर्वेक्षण में भारत ने न केवल व्यापार सहायता स्कोर में 69 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत का सुधार किया, बल्कि एशिया प्रशांत तथा दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया क्षेत्र में अन्य देशों को पीछे छोड़ दिया। सर्वेक्षण में आयात के लिए डायरेक्ट पोर्ट डिलिवरी (डीपीडी) और निर्यात के लिए डायरेक्ट पोर्ट इंट्री (डीपीई) को तेजी से मंजूरी को प्रोत्साहित करने वाली योजना बताया गया। समर्थनकारी दस्तावेजों को ऑनलाइन दाखिल करने के लिए ‘ई-संचित’ और भारतीय कस्टम के लिए अगली पीढ़ी का सॉफ्टवेयर ‘तुरंत’ को भी सफल बताया गया।


व्यापार लॉजिस्टिक्स


भारत का लॉजिस्टिक्स उद्योग उभरता हुआ क्षेत्र है और यह अभी 160 बिलियन डॉलर है। लॉजिस्टिक उद्योग शीघ्र ही 215 बिलियन डॉलर का हो जाएगा। विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक के अनुसार 2018 में विश्व में भारत का स्थान सुधर कर 44वां हो गया। भारत का स्थान 2014 में 54वां था। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक मानकों के अनुसार भारत की लॉजिस्टिक्स लागत को जीडीपी की तुलना में वर्तमान 13-14 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत पर लाना है। इसके लिए फास्ट-टैग, भारतमाला, सागरमाला तथा डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर जैसे कदम उत्साहवर्धक होंगे।