Saturday, July 6, 2024

भगवान जगन्नाथ जी का रथ

 भगवान जगन्नाथ के रथो का संक्षिप्त वर्णन 

भगवान जगन्नाथ जी का रथ

〰️〰️ॐसत्य जय माता दी〰️〰️

1. रथ का नाम 👉 नंदीघोष

2. कुल काष्ठ की संख्या 👉 832

3. कुल चक्के 👉 16

4.रथ की ऊंचाई 👉45 फीट 

5. रथ की लम्बाई चौड़ाई 👉 34 फीट 6 इंच

6.सारथि 👉 दारुक

7. रथ का रक्षक 👉 गरुड़

8.रस्से का नाम 👉 शंखचूड नागुनी

9. पताका का रंग 👉 त्रै लोक्य मोहिनी

10. रथ के  घोड़ों का नाम 👉 वराह, गोवर्धन, कृष्णा, गोपीकृष्ण, न्रसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान,रूद्र।


बलदेव जी का रथ

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1.रथ का नाम 👉 ताल ध्वज

2.कुलकाष्ठ संख्या 👉 763

3.कुल चक्के 👉 14

4. रथ की ऊंचाई 👉 44 फीट

5. रथ की लम्बाई चौड़ाई 👉 33 फीट

6. सारथि 👉 मातली

7.रथ के रक्षक 👉 वासुदेव

8. रस्से का नाम 👉  बासुकी नाग

9.पताका का रंग 👉 उन्नानी

10.रथ के घोड़ों के नाम👉  तीव्र ,घोर, दीर्घाश्रम, स्वर्ण नाभ ।।


सुभद्रा जी का रथ

〰️〰️〰️〰️〰️〰️

1. रथ का नाम 👉 देव दलन

2. कुल काष्ठ 👉 593

3. कुल चक्के 👉 16

4.रथ की ऊंचाई 👉 45 फीट

5. रथ की लम्बाई चौड़ाई 👉 31 फीट 6 इंच।

6. सारथि 👉 अर्जुन

7. रथ के रक्षक 👉 जय दुर्गा

8. रस्से का नाम 👉 स्वर्ण चूड नागुनी

9. पताका का रंग 👉 नन्द अम्बिका

10. रथ के घोड़ों के नाम 👉 रुचिका, मोचिक

Tuesday, July 2, 2024

हनुमानजी के पांच सगे भाई

 हनुमानजी के पांच सगे भाई भी थे, जानिए उनके नाम ?

हनुमानजी हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता होने की बात कही जाती है, दरअसल वह 33 करोड़ नहीं वरन् 33 कोटि देवी-देवता हैं। यानि कि उन्हीं देवी-देवताओं के विभिन्न रूप एवं अवतार हैं। अब स्वयं देव हों या उनके कोई मानव रूपी अवतार, सभी से जुड़े तथ्य एवं पौराणिक वर्णन काफी दिलचस्प हैं।


रोचक जानकारी आज हम हनुमान जी के बारे में आपको कुछ रोचक जानकारी देंगे। बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनी पुत्र, राम भक्त, ऐसे ही कई नामों से पुकारा जाता है हनुमान जी को। यह बात शायद सभी जानते हैं लेकिन आगे बताए जा रहे कुछ तथ्य हर कोई नहीं जानता।


भगवान शिव का अवतार सबसे पहली बात, हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार अंजना नाम की एक अप्सरा को एक ऋषि द्वारा यह श्राप दिया गया कि जब भी वह प्रेम बंधन में पड़ेगी, उसका चेहरा एक वानर की भांति हो जाएगा। लेकिन इस श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान ब्रह्मा ने अंजना की मदद की।


अंजनी पुत्र उनकी मदद से अंजना ने धरती पर स्त्री रूप में जन्म लिया, यहां उसे वानरों के राजा केसरी से प्रेम हुआ। विवाह पश्चात श्राप से मुक्ति के लिए अंजना ने भगवान शिव की तपस्या आरंभ कर दी। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। अंजना ने भगवान शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।


शिव आराधना ‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए, इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और इसी दौरान किसी दूसरे कोने में महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे।


अंजना के हाथ में गिरा प्रसाद अग्नि देव ने उन्हें दैवीय ‘पायस’ दिया जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस पायस की कटोरी में थोड़ा सा पायस अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया।


शिव का प्रसाद अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया और कुछ ही समय बाद उन्होंने वानर मुख वाले एक बालक को जन्म दिया। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बालक का नाम मारूति था, जिसे बाद में ‘हनुमान’ के नाम से जाना गया।


अन्य कथा हनुमान जी से जुड़ा एक और तथ्य काफी रोचक है। एक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी ने श्रीराम की याद में अपने पूरे शरीर पर सिंदूर भी लगाया था। यह इसलिए क्योंकि एक बार उन्होंने माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देख लिया। जब उन्होंने सिंदूर लगाने का कारण पूछा तो सीता जी ने बताया कि यह उनका श्रीराम के प्रति प्रेम एवं सम्मान का प्रतीक है।


लाल हनुमान बस यह जानने की देरी ही थी कि हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया, यह दर्शाने के लिए कि वे भी श्रीराम से अति प्रेम करते हैं। इस घटना के बाद हनुमान का ‘लाल हनुमान’ रूप भी काफी प्रचलित हुआ।


हनुमान शब्द का संस्कृत अर्थ हनुमान जी से जुड़े कुछ छोटे-छोटे तथ्य हैं, जो काफी कम लोग जानते हैं। जैसे कि उनका नाम, ‘हनुमान’ शब्द का यदि संस्कृत अर्थ निकाला जाए तो इसका मतलब होता है जिसका मुख या जबड़ा बिगड़ा हुआ हो।


हनुमान और भीम अगली बात जो हम बताने जा रहे हैं उसे जान आप वाकई हैरत में पड़ने वाले हैं। महाभारत काल में पाण्डु पुत्र राजकुमार भीम अपने बल के लिए जाने जाते थे। कहते हैं वे हनुमान जी के ही भाई थे।


ब्रह्मचारी हनुमान इसके अलावा जिन हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा जाता है, उनकी शादी भी हुई थी। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज है। लेकिन इसके अलावा उनके पांच भाई भी थे, क्या आप जानते हैं?


हनुमान जी के पांच सगे भाई जी हां... हनुमान जी के पांच सगे भाई थे और वो पांचों ही विवाहित थे। यह कोई कहानी या मात्र मनोरंजन का साधन बनाने के लिए हवा में बताई गई बात नहीं है, बल्कि सच्चाई है। हनुमान जी के पांच सगे भाई थे, इस बात का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण' में मिलता है।


ब्रह्मांडपुराण के अनुसार इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन शामिल है। बड़ी बात यह है कि पांचों भाइयों में बजरंगबली सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे।


सबसे बड़े थे बजरंगबली बजरंगबली के बाद क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। इन सभी के संतान भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। हनुमानजी के बारे जानकारी वैसे तो रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत और भी कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है। 


लेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है। 'ब्रह्मांडपुराण' उन्हीं में से एक है। पिता केसरी का वंशज इस महान ग्रंथ में हनुमान जी के जीवन एवं उनसे जुड़ी कई बातें हैं। इसी ग्रंथ में उल्लेख है कि बजरंगबली के पिता केसरी ने अंजना से विवाह किया था।

साभार~ पं देवशर्मा

Saturday, June 29, 2024

छोटी कहानी : सीख बड़ी

आज 90 वर्षीय शादीलाल जी वॉयलेट लाइन मेट्रो में अकेले सफर करते मिले। सीनियर सिटीजन की सीट पर उनके बगल में बैठने के बाद मुझे लगा वो कुछ बेचैन हैं। वे बार बार मुझसे पूछते ये कौन सा स्टेशन है? जब मैंने पूछा कि आपको जाना कहाँ है तो वो माथे पर हाथ रख कर बोले -‌‌ " वही तो मैं भूल गया हूँ। "

"फिर आप जाएंगे कहाँ?"- मैंने हैरानी से पूछा।
शादी लाल बोले- "एक बड़ा सा स्टेशन है न ?"
मैंने नई दिल्ली, राजीव चौक, कई नाम लिए, उन्होंने सबको नकार कर कहा-" ये नहीं, एक स्टेशन है न सेंटर में जहाँ गाड़ी बदलते हैं।"
मैंने पूछा-" सेंट्रल सेक्रेटेरिएट ?"
ख़ुशी से चमकते चेहरे से शादीलाल जी बोले-" जी हां, जीहां, थैंक्यू! थैंक्यू !"
मैंने पूछा- "सेन्ट्रल सेक्रेटेरिएट से किधर जाएंगे?"
"वो तो मुझे याद नहीं, आई एम नाइंटी इयर ओल्ड, कुछ आप बताइए।" पहले की सारी खुशी को अलविदा कह एक बार फिर शादी wलाल पुरानी अवस्था में आ गए।
मैंने धैर्य से पूछा-" आप पहले भी कभी वहां गए होंगे न ? वहाॅं जाने में कितनी देर लगती है?"
शादीलाल-" बस तुरंत आ जाता है।"
मैं ने कहा-" पटेल चौक?"
शादीलाल जी का चेहरा हज़ार वाट के बल्ब सा चमका और वे बोल पड़े , " जी हाॉं बिल्कुल बिल्कुल, अब याद आ गया, पटेल चौक ही जाना है मुझे।"
मैंने एक स्लिप पर पटेल चौक लिख कर उनको दे दिया और कहा-" सेंट्रल सेक्रेटेरिएट आने वाला है। मेट्रो से बाहर निकल कर किसी को ये स्लिप दिखाइएगा, वह सही मेट्रो में आपको बैठा देगा।"
शादी लाल जी ने दुआओं की बरसात करते हुए जब मेरा हाथ पकड़ा, तो पता नहीं क्या हुआ, मैं उनके साथ-साथ येलो लाइन मेट्रो तक न केवल चला आया बल्कि उसमें सवार हो उनको पटेल चौक तक छोड़ने भी चला गया।
"सम्हल कर उतरिए, यही पटेल चौक है।" मैंने मेट्रो के दरवाजे पर रुकते हुए कहा।
शादीलाल जी उतरे पर आगे बढ़ने की बजाय वापस मुड़ कर मेट्रो का दरवाज़ा बन्द होने और ट्रेन चलने तक मेरी ओर देखते हुए यूँ हाथ हिलाते रहे मानो वे ही मुझे ट्रेन में बैठाने आए हों।
शादीलाल जी की समस्या समझने, निदान सोचने, एक मेट्रो से दूसरी में जाने और उनका अगला स्टेशन आने की पूरी प्रक्रिया ताबड़तोड़ 5 मिनट में ऐसी गतिमान हुई कि कई जिज्ञासाएं अनुत्तरित रहीं जैसे -
इस उम्र में इन्हें अकेले क्यों निकलना पड़ा ?
वे किससे मिलने की बेताबी में यूँ घर से निकल पड़े ?
अभी भी बच्चों के साथ रहने का सौभाग्य है या नहीं?
ईश्वर ने कभी फिर मुलाक़ात करायी, तो ज़रूर पूछूँगा ।
एक निवेदन - अगर आपके घर के कोई बुज़ुर्ग अकेले यात्रा करते हों तो उनको घर और गन्तव्य का पता, मोबाइल नम्बर लिख कर अवश्य दे दें या गले मे टांग दें जिससे ज़रूरत पड़ने पर कोई उनकी सहायता कर सके। आपका क्या विचार है ?

Thursday, May 30, 2024

हमारा विनाश कव शुरू हुआ था?

1.हमारा विनाश उस समय से शुरू हुआ था जब हरित क्रांति के नाम पर देश में रासायनिक खेती की शुरूआत हुई और हमारा पौष्टिक वर्धक, शुद्ध भोजन विष युक्त कर दिया है!



2. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश में जर्सी गाय लायी गई और भारतीय स्वदेशी गाय का अमृत रूपी दूध छोड़कर जर्सी गाय का विषैला दूध पीना शुरु किया था!
3. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन भारतीयों ने दूध, दही,मक्खन, घी आदि छोड़कर शराब पीना शुरू किया था!
4. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने गन्ने का रस छोड़कर पेप्सी, कोका कोला पीना शुरु किया था जिसमें 12 तरह के कैमिकल होते हैं और जो कैंसर, टीबी, हृदय घात का कारण बनते हैं!
5. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने शुद्ध देशी तेल खाना छोड़ दिया था और रिफाइंड आयल खाना शुरू किया था जो रिफाइंड ऑयल हृदय घात, आदि का कारण बन रहा है!
6. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश के युवाओं ने नशा शुरू किया था बीडी, सिगरेट, गुटखा, गांजा, अफीम, आदि शुरू किया था जिससे से कैंसर बढ रहा है!
7. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ जिस दिन देश में 84 हजार नकली दवाओं का व्यापार शुरु हुआ और नकली दवाओं से लोग मर रहे हैं!
8. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने अपने स्वदेशी भोजन छोड़कर पीजा, बर्गर, जंक फूड खाना शुरू किया था जो अनेक बीमारियों का कारण बन रहा है!
9. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने अनुशासित और स्वस्थ दिनचर्या को छोड़कर मनमानी दिनचर्या शुरू की थी ।
10. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने घरों में एलुमिनियम के बर्तन व घर में फ्रिज लाया था।
11. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन भारतीय जीवन शैली को छोड़कर विदेशी जीवन शैली शुरू की थी।
12 .हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने स्वस्थ रहने का विज्ञान छोड दिया था और अपने शरीर के स्वास्थ्य सिद्धांतों के विपरीत कार्य करना शुरू किया था ।
13. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश का अधिकतर युवा / युवतियां व्यभिचारी बनकर कंडोम का प्रयोग करके व्यभिचार करना ,गर्भ निरोधक गोलियां खाना,लाखों युवतियां हर साल गर्भाशय कैंसर से मरती हैं।
14. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने अपने बच्चों को टीके लगवाना शुरू किया था और यह विचार कभी भी नहीं किया था कि टीकों का बच्चों के शरीर पर भविष्य में क्या प्रभाव पडेगा?
15. इस शरीर की कुछ सीमा है कुछ मर्यादा है कुछ स्वस्थ सिद्धांत हैं लेकिन मनमाने आचरण के कारण शरीर की बर्बादी की है!!
नोट :- हमारे विनाश के अनेक कारण हैं आज लोगों को सिर्फ को.रोना ही दिखाई दे रहा है उन्हें यह भी देखना चाहिए कि लोग कैंसर, टीबी, हृदय घात, शुगर, किडनी फेल, हाई वीपी, लो वीपी, अस्थमा आदि गंभीर बीमारियों से मर रहे हैं!!

Sunday, May 19, 2024

लू लगने से मृत्यु क्यों होती है ?

हम सभी धूप में घूमते हैं फिर कुछ लोगों की ही धूप में जाने के कारण अचानक मृत्यु क्यों हो जाती है ?


👉 हमारे शरीर का तापमान हमेशा 37° डिग्री सेल्सियस होता है, इस तापमान पर ही हमारे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम कर पाते है ।


👉 पसीने के रूप में पानी बाहर निकालकर शरीर 37° सेल्सियस टेम्प्रेचर मेंटेन रखता है, लगातार पसीना निकलते वक्त भी पानी पीते रहना अत्यंत जरुरी और आवश्यक है ।


👉 पानी शरीर में इसके अलावा भी बहुत कार्य करता है, जिससे शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर पसीने के रूप में पानी बाहर निकालना टालता है । (बंद कर देता है )


👉 जब बाहर का टेम्प्रेचर 45° डिग्री के पार हो जाता है और शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो जाती है, तब शरीर का तापमान 37° डिग्री से ऊपर पहुँचने लगता है ।


👉 शरीर का तापमान जब 42° सेल्सियस तक पहुँच जाता है तब रक्त गरम होने लगता है और रक्त में उपस्थित प्रोटीन पकने लगता 

है ।


👉  स्नायु कड़क होने लगते हैं इस दौरान सांस लेने के लिए जरुरी स्नायु भी काम करना बंद कर देते 

हैं ।


👉 शरीर का पानी कम हो जाने से रक्त गाढ़ा होने लगता है, ब्लडप्रेशर low हो जाता है, महत्वपूर्ण अंग (विशेषतः ब्रेन) तक ब्लड सप्लाई रुक जाती है ।


👉 व्यक्ति कोमा में चला जाता है और उसके शरीर के एक-एक अंग कुछ ही क्षणों में काम करना बंद कर देते हैं, और उसकी मृत्यु हो जाती है ।


👉गर्मी के दिनों में ऐसे अनर्थ टालने के लिए लगातार थोड़ा-2 पानी पीते रहना चाहिए और हमारे शरीर का तापमान 37° मेन्टेन किस तरह रह पायेगा इस ओर  ध्यान देना चाहिए ।


Equinox phenomenon: इक्विनॉक्स प्रभाव आने वाले दिनों में भारत को प्रभावित करेगा ।


कृपया 12 से 3 बजे के बीच घर, कमरे या ऑफिस के अंदर रहने का प्रयास करें ।


तापमान 40 डिग्री के आस पास विचलन की अवस्था मे रहेगा ।


यह परिवर्तन शरीर मे निर्जलीकरण और सूर्यातप की स्थिति उत्पन्न कर देगा ।


(ये प्रभाव भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर सूर्य चमकने के कारण पैदा होता है) ।


कृपया स्वयं को और अपने जानने वालों को पानी की कमी से ग्रसित न होने दें ।


किसी भी अवस्था में कम से कम 3 लीटर पानी जरूर पियें । किडनी की बीमारी वाले प्रति दिन कम से कम2.5 से 3.5लीटर पानी जरूर लें ।


जहां तक सम्भव हो ब्लड प्रेशर पर नजर रखें । किसी को भी हीट स्ट्रोक हो सकता है ।


ठंडे पानी से नहाएं । इन दिनों मांस का प्रयोग छोड़ दें या कम से कम 

करें ।


फल और सब्जियों को भोजन मे ज्यादा स्थान दें ।


हीट वेव कोई मजाक नही है ।


एक बिना प्रयोग की हुई मोमबत्ती को कमरे से बाहर या खुले मे रखें, यदि मोमबत्ती पिघल जाती है तो ये गंभीर स्थिति है ।


शयन कक्ष और अन्य कमरों मे 2 आधे पानी से भरे ऊपर से खुले पात्रों को रख कर कमरे की नमी बरकरार रखी जा सकती है ।


अपने होठों और आँखों को नम रखने का प्रयत्न करें ।


Friday, May 17, 2024

सत्यनाशी भट कटेया



आमतौर पर गर्मियों के दिनों में खेतों में मेड पर खुद से उगने वाला यह पौधा बिहार में कई नाम से जाना जाता है। इसके पीले फूल लोगों को खूब आकर्षित करते हैं। गेहूं और सरसों की फसल में यह खुद-ब-खुद उग आता है। भरभार, घमोई सत्यनाशी भट कटेया और न जाने किन-किन नाम से इसे संबोधित किया जाता है।देश के ज्यादातर हिस्से में अगर किसी को सत्यानाशी कहा जाता है तो उसका मतलब काम खराब करने वाले व्यक्ति से होता है. ऐसा व्यक्ति जो किसी काम का ना हो, जो हर काम बिगाड़ता हो यानी जिसका कोई फायदा ना हो, ऐसे व्यक्ति को सत्यानाशी कहा जाता है. लेकिन एक पौधा ऐसा भी है, जो कैसी भी जमीन में, कहीं भी उग जाता है और उसका नाम सत्यानाशी पौधा है. सतयानाशी पौधे को आपने अक्सर सड़क के किनारे, सख्त बंजर जमीन में, पथरीली जगहों पर, कड़ाके की धूप वाली जगहों या सूरज की रोशनी ना पहुंचने वाली यानी हर जगह पर देखा हो सकता है.सत्यानाशी पौधे में कई तरह के औषधीय गुण होते हैं. यह पौधा ज्यादातर हिमालयी क्षेत्रों में उगता है. इस पौधे में बहुत ज्यादा कांटे होते हैं. इसके पत्ते, शाखाओं, तने और फूलों के आसपास हर जगह कांटे होते हैं. इसके फूल पीले रंग के खिलते हैं, जिनके अंदर बैंगनी रंग के बीज पाए जाते हैं. अमूमन किसी पौधे के फूल और फल तोड़ने पर सफेद रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है, लेकिन सत्यानाशी के पौधे से फूल तोड़ने पर पीले रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है. पीले रंग के दूध जैसा पदार्थ निकलने के कारण इसे स्वर्णक्षीर भी कहा जाता है.सत्यानाशी के पौधे को स्वर्णक्षीर के अलावा उजर कांटा, प्रिकली पॉपी, कटुपर्णी, मैक्सिन पॉपी समेत कई नामों से पहचाना जाता है. अमूमन किसान इसे बेकार पौधा मानकर काटकर फेंक देते हैं. वहीं, आयुर्वेद में इसे औषधि की तरह इस्तेमाल कर दवाइयां बनाई जाती हैं, जिनसे कई रोगों का इलाज किया जाता है. सत्यानाशी पौधे का हर हिस्सा यानी पत्ते, फूल, तना, जड़ और छाल आयुर्वेद में बेहद काम के माने जाते हैं.

Friday, April 5, 2024

महुआ

 ये महुआ फूल किसी रसगुल्लों से कम नही है। चलो एक पहेली बूझौ- "बाप बेटी को एकई नाम महतारी को कछु और" क्योंकि

प्यार मोहब्बत धोखा है महुआ खा लो मौका है
यह पहेली प्रयोग की जाती है, महुआ के लिये.., जिसका वृक्ष पिता स्वरुप है, इसका नाम महुआ है। फूल का नाम भी महुआ है, जो पुत्र स्वरूप है और मेहतारी यानी #गुली का नाम अलग है, जो वास्तव मे इसका बीज है, और इसी से नए पेड़ की उत्पत्ति होती है, इसीलिये इसे मॉ स्वरूप माना गया है। वानस्पतिक रूप से यह एक उष्णकटिबंधीय पेड़ है, जो लगभग सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। इसके फूलों से सुबह सुबह बहुत ही मीठी, #मनमोहक सी खुशबू आती है, जो धूप बढ़ने के साथ साथ #अल्कोहोलिक यानि मदहोश कर देने वाली ( सर पकड़ने वाली) नशीली खुशबू का रूप ले लेती है।
सुबह सुबह इसके ताजे फूलों को बीनकर खाया जा सकता है। जो देखने मे सफेद रसगुल्लों की तरह दिखाई देते हैं। एक तरह से मीठी चासनी से भरे हुए भी होते गेन इसीलिये इन्हें जंगक का #रसगुल्ला कहा जाता है। ये पेड़ से लागातार टप टप करके दिन भर टपकते ही रहते हैं। गाँव में इन्हें सुखाकर किशमिश जैसा महुआ बना लिया जाता है, जिसे ड्राय फ्रूट की तरह और भारतीय त्यौहारों में प्रसाद की तरह परोसा जाता है। इन्हें बनाने की विधि भी बताऊँगा, बने रहियेगा। छिंदवाडा जिले के जंगली व आदिवासी क्षेत्रों में देशी शराब निर्माण का भी यह एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। महामारी के समय मे इससे सेनिटाइजर का भी निर्माण किया गया। लेकिन किसानों के लिये तो यह बैलों, गायों और अन्य कृषि उपयोगी पशुओं को तंदुरुस्त बनाने वाली बेशकीमती दवा है।


एक तश्वीर में जो किशमिश की तरह दिख रहा है ना, वह है महुआ किशमिश है। ये बनता है महुआ के फूल से। हमारे #मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे अहम हिस्सा महुआ है। फरवरी से लेकर मार्च-अप्रैल तक महुए के पेड़ पर फूल लद जाते हैं। सुबह सोकर उठते ही ग्रामीण निकल पड़ते हैं महुआ बीनने, जो वास्तव में महुआ फूल हैं। इन फूलों को बटोरने की अलग ही कहानी है, वो कभी फुरसत में बताऊंगा लेकिन आज बात महुआ किशमिश की ही होगी क्योंकि....
महुए के सूखे फूलों को खौलते पानी में 20 सेकंड के लिए डाल दें और तुरंत पानी निथार लें। ऐसा करने से महुए की गंध भी कम हो जाती है और इस पर छोटे मोटे कीड़े लगे हों तो वो भी खत्म हो जाते हैं। निथरे महुआ को एक बार फिर 2-3 तक कड़क धूप में सुखा लें। जब ये निथरे महुए अच्छे से सूख जाएं तो इन्हें गुड़ की गर्म चाशनी में डालकर अच्छे से कढ़ाही चला लें। ध्यान रहे चाशनी इतनी हो कि सिर्फ महुए में मिठास चढ़ जाए, इतनी ज्यादा न हो कि महुआ चिपचिपा लगे। चाशनी चढ़ाने के बाद इसे एक बार फिर 2 दिन तक कड़क धूप दिखा दें। मजेदार महुआ किशमिश तैयार है। इसके प्रयोग से पातालकोट सहित कई आदिवासी अंचलों में महुये के #लड्डू और कई मिष्ठान तैयार किये जाते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रीय व्यंजन जैसे महुये की खीर, पूरण पूरी और महुये वाला चीख ये आदिवासी संस्कृति के खास अंग हैं, जिनका अपना अलग ही स्वाद है। जंगली इलाकों में तो बकरी, हिरन और बन्दर आजकल इस प्रकृति के रसगुल्ले की खूब दावत उड़ा रहे हैं। कई बार अखबारों व न्यूज में महुआ खाकर मदहोश हुये बंदरो, हिरणों और हाथियों के झुंड के अजोबो- गरीब किस्से पढ़ने- सुनने को मिलते हैं। लेकिन महुये की तो छोड़िये, इसके बीज यानि #गुली भी कम नही है। इसके तेल का प्रयोग पहले गांवों मे खूब किया जाता था, जिसे खाने के तेल की तरह भी इस्तेमाल किया जाता था। पातालकोट में गुरूदेव #दीपकआचार्य जी के साथ कई बार इस तेल से बने पकवान चखे हैं। शहरी लोग इसे निम्न स्तर का समझकर खाने में प्रयोग नही करते हैं। खाने के अलावा कई तरह के सौंदर्य प्रसाधन, साबुन और पैंट निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जाता है। #चिमनी या #भपका जलाने के लिए भी इसका खूब इस्तेमाल हुआ है।
अब अगर धार्मिक तीज त्यौहारों के नजरिये से देखूं तो इसकी पत्तियों से बनी दोने और पत्तलें भगवान भोलेनाथ की पूजन सामग्री को रखने में प्रयोग की जाती हैं।

अकर्मण्यता से उपजा पलायनवादी यथार्थ,संघर्ष से होता ऊंचा मनोबल

(जिजीविषा ही सफलता का पर्याय) 

अकर्मण्यता एक बड़ी शारीरिक,मानसिक व्याधि और दशा है, यह जीवन को निर्रथक बनाती है। इस अवस्था को तत्काल त्यागना चाहिए,और अपने जीवन के संघर्ष के लिए तैयार रखना चाहिए। मन ही मन यदि आपने किसी कठिन कार्य को करने का संकल्प ले लिया तो निरंतर जिजीविषा और संयम के साथ संघर्ष हर बड़ी जीत और सफलता के उत्तम मार्ग हैं। वैसे जीवन में दुष्कर, कठिन कार्य को पहले चुनना चाहिए जिससे पूरी शक्ति एवं उर्जा लगाकर हम उसे प्राप्त कर सकेl कठिन कार्य से घबराकर उससे पलायन करना निराशा को जन्म देता हैl निराशा से बढ़कर कोई अवरोध नहीं अतः निराशा, हताशा को त्यागें और ऊर्जा उत्साह के साथ आगे बढ़े, सफलता आपके कदमों पर होगी। हर बड़ा व्यक्ति जो हमें समाज से अलग हटकर खड़ा दिखाई देता हैl जिसे हम विलक्षण मानते और प्रतिभा संपन्न मानते हैं और आज के संदर्भ में हम उसे सेलिब्रिटी कहते हैं तो निसंदेह उसकी इस सफलता के पीछे अनवरत श्रम, अदम्य मानसिक शक्ति और संयम छुपा होता हैl बड़ी सफलता प्राप्त करने का कोई सरल उपाय या शॉर्टकट नहीं होता है। विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य की मानसिक दृढ़ता एवं संकल्पित कठिन श्रम ही सफलता के रास्ते खोलते हैं।यूं तो हर इंसान के जीवन में विशेषताएं, मान्यताएं, प्रतिबद्धताओं और आकांक्षाएं होती हैंl सभी लोग मूलभूत आवश्यकताओं के साथ साथ सामाजिकता , प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा जैसी उच्च स्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहते हैंl मानव की स्वाभाविक और अदम्य इच्छा की पूर्ति के संपूर्ण जीवन और उसके अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है किंतु व्यक्ति की इच्छा,आकांक्षा सफलता उस उसके मूल्यों,सिद्धांतों और आदर्शों की कीमत पर कतई नहीं होनी चाहिए l यदि व्यक्ति की आकांक्षा,सफलता और इच्छा उसकी अदम्य इच्छा, भूख और मूल्यों को समाविष्ट ना करते हुए दूसरी दिशा में जाती हो तो ऐसे में उसकी सफलता पूरे मानव समाज और मानवता के लिए संकट का कारण भी बन सकती हैl जिस तरह एक वैज्ञानिक मेहनत, लगन, प्रयोगशाला में मानवी संविधान मूल्यों से ओतप्रोत मानव कल्याण के उपकरण न बनाकर जैविक व रासायनिक हथियार बनाकर व्यापक नरसंहार जैसे अमानवीय अविष्कार को मूर्त रूप दे, तो यह समाज के लिए खतरनाक हो सकता हैl यही वजह है की सफलता का नक्शा और इच्छा के पीछे माननीय मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक भी हैl

मूल्य, सिद्धांत और नैतिकता जीवन के लक्ष्य और उसके क्रियान्वयन में सर्वाधिक संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंl सफलता की धारणा केवल स्थापित मापदंड न होकर मानवीय मूल्यों से जुड़ा होकर मानव कल्याण के लिए भी होना चाहिएlइसमें कोई संदेह नहीं की विश्व भर की सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों में अहिंसा, सत्य ,करुणा, सेवा, दया और विश्व बंधुत्व की भावना की निर्विवाद उपस्थिति दिखाई देती हैl और वैश्विक विकास की अवधारणा भी इन्हीं बिंदुओं पर रखकर तय की जाती हैl भारत में प्राचीन काल से ही मूल्यों की प्रतिबद्धता की परंपरा चली आ रही हैlऋषि-मुनियों ने तो यहां तक कहा है कि जिसका चरित्र तथा माननीय आदर्श चला गया वह व्यक्ति, मृतक लाश की तरह हो जाता है। भारतीय संस्कृति में आदर्शों तथा मूल्य के पोषक उदाहरणों की अंतहीन सूची है जिनमें कबीर, रैदास, संत,ज्ञानेश्वर तुकाराम,मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया, रहीम,खुसरो, गांधी,नेहरू, टैगोर, सुभाष, विवेकानंद जैसे महान लोग सिद्धांतों की प्रतिबद्धता को अपने जीवन की सफलता मानकर अपने जीवन को समाज को सौंप दिया था।परिणाम स्वरूप व्यक्ति को महज सफलता का पुजारी ना बन कर मूल्यों के प्रति प्रतिबंध होने का प्रयास करना चाहिए। ताकि तनिक सफलता के स्थान पर चिरस्थाई एवं समाज उपयोगी सफलता प्राप्त हो सके। वर्तमान में यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि व्यक्ति स्वाद तथा सफलता के लिए अक्सर अपने मूल्यों को तिलांजलि दे देता है। वर्तमान सुख एवं लालच चिरस्थाई सफलता के सामने महत्वपूर्ण एवं प्राथमिक हो जाता है ।आज मनुष्य तत्काल एवं अस्थाई सफलता के पीछे माननीय मूल्यों प्रतिबद्धताओं को किनारे कर उस मरीचिका की तरफ दौड़ रहा है जो अत्यंत अस्थाई एवं पानी के बुलबुले की तरह है। और इससे न तो कोई इतिहास बनता है और ना ही कोई प्रतिमान ही स्थापित होता है। पानी का पतला रेला नदी का रूप नहीं ले सकता। उसी तरह बिना मूल्यों की सफलता स्थाई नहीं होती है। राजनीति तथा प्रशासन में मूल्यों सिद्धांतों की तो ज्यादा आवश्यकता महसूस की जाती है। क्योंकि राष्ट्र तथा नीति निर्देशक तत्वों को संचालन की दिशा देने के लिए मानवीय संवेदना, मूल्य और सिद्धांतों की अत्यंत आवश्यकता होती है। अन्यथा समाज दिग्भ्रमित होकर बिखरने के कगार पर पहुंच जाता है। राष्ट्र विखंडित होने की स्थिति में आ जाता है। मूल्य विहीन समाज अपने अधिकारों के दुरुपयोग तथा कर्तव्य के प्रति लापरवाही तथा उदासीनता के चलते समाज को सोचनीय स्तर पर लाकर खड़ा कर देता है। सफलता तब ही शाश्वत तथा स्थाई हो सकती है जब इसमें जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों का समावेश होता है। वही देश और राष्ट्र चिरस्थाई तथा लंबे समय तक स्वतंत्र रह सकता है, जिसके शासक एवं प्रजा अपने संपूर्ण कार्य मूल्यों, उसूलों और नैतिक प्रतिबद्धता के मार्ग पर चलकर वैश्विक देशों से अपने संबंध निर्मल तथा सैद्धांतिक बनाकर रखता हैअन्यथा उस राष्ट्र को विखंडित और पराधीन होने से कोई नहीं बचा सकताl

संजीव ठाकुर,(वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक) स्तम्भकार, चिंतक , टिप्पणीकार,रायपुर छत्तीसगढ़, 

शराब की पार्टी

सूरज सुरेश रमन तीनों दोस्तों ने अलग से समीर को पार्टी करने के लिए कहा था देख समीर तेरे जन्मदिन पर शराब की बोतले खुलेंगी जमकर डांस होगा सूरज के दो फ्लैट है एक फ्लैट खाली पड़ा है सूरज वही पार्टी की व्यवस्था कर देगा दोपहर 12:00 बजे पार्टी शुरू करेंगे शाम तक पार्टी चलेगी यह बात समीर को दो दिन पहले ही सुरेश ने बता दी थी

समीर ने घड़ी में देखा तो दोपहर के ग्यारह बज चुके थे समीर मां के नजदीक आकर कहने लगा मैं जानता हूं शाम को पापा मेरे लिए केक लेकर आएंगे हर साल आप मेरा जन्मदिन मनाते आ रहे हो लेकिन अब मैं बड़ा हो चुका हूं मेरे दोस्त भी बड़े हो चुके हैं मां ने समीर को खुश रखने के लिए कहा तुम अपने दोस्तों को पार्टी देना चाहते हो मैं सब जानती हूं मैं तुम्हें एक हजार रुपए दे रही हूं दोस्तों के साथ तुम पार्टी कर सकते हो समीर का चेहरा उतरा देख मां ने एक हजार रुपए और देते हुए कहा ,, अब तो ठीक है पूरे दो हजार रुपए तुम्हें मिल चुके हैं ,,
समीर को याद आया सुरेश ने कहा था पूरे पांच हजार रुपए मांगना अपनी मां से तभी हम खुलकर पार्टी कर सकते हैं
समीर ने जिद्द करते हुए मां को बताया मुझे पूरे पांच हजार रुपए चाहिए हम सब दोस्त खुलकर इंजॉय करेंगे खूब खाना - पीना होगा तब मां ने चिंता भरे स्वर में कहा समीर बेटा शाम को पापा भी तेरे जन्मदिन पर तेरे लिए तोहफा लाएंगे समीर ने गुस्से से कहा इसका मतलब तुम अपने बेटे से प्यार नहीं करती हो तुम मुझे पांच हजार रुपए दे दो यह बात पिताजी को मत बताना
मां ने पांच हजार रुपए देते हुए समीर से कहा इन पैसों का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए मां का चेहरा थोड़ा उतर सा गया था लेकिन समीर का ध्यान कहीं और ही था समीर ने घड़ी में देखा तो 12 बजने वाले हैं समीर ने बाइक निकाली हेलमेट पहना इतने में सुरेश का कॉल आया सुरेश ने कहा हां समीर कहां पर हो घर से पांच हजार रुपए मिले कि नहीं मिले
समीर ने सुरेश को बताया मैं पहले ठेके जाऊंगा वहां से शराब की बोतलें खाने-पीने का सामान लेकर तुम्हारे पास अभी 10 मिनट में पहुंचता हूं
1 घंटे के बाद,,,,
सुरेश ने सूरज से कहा दोपहर का 1:00 बज चुका है समीर अभी तक नहीं आया रमन ने कॉल मिलाया मगर समीर का फोन स्विच ऑफ जा रहा था सुरेश ने घड़ी में देखा तो दोपहर के 2:00 बज गए रमन ने सुरेश को कहा शराब की दुकान तो पास में ही है इतना समय समीर को कैसे लग रहा है फोन भी स्विच ऑफ जा रहा है घड़ी देखते-देखते तीनों दोस्तों की शाम हो गई तीनों आपस में बोले समीर ने हमें धोखा दिया है
शाम के 6:00 बज चुके थे समीर के तीनों दोस्त समीर के घर चल पड़े यह पता लगाने के लिए की समीर घर पर है कि नहीं समीर के घर आस - पड़ोसी जमा हो चुके थे कुछ रिश्तेदार भी आ चुके थे केक की तैयारी हो चुकी थी तभी समीर की मां ने सूरज सुरेश रमन तीनों दोस्तों को आते देखकर कहा समीर शायद तुम तीनों के पास गया था पार्टी के लिए ,, ,,,,, अभी तक समीर घर नहीं आया ,,,
रमन ने बताया आंटी जी 12:00 बजे समीर का कॉल आया था वह कह रहा था रास्ते में हूं फिर उसके बाद कॉल स्विच ऑफ आने लगा यह बात सुनकर घर में एकदम सन्नाटा छा गया फ्लैट में खड़े लोग कुछ और सोचते इससे पहले तभी समीर दरवाजे पर आता नजर आया सब ने समीर को घेर लिया समीर के पिता समीर का हाथ पकड़के केक के पास ले आए सब लोगों के मुरझाए चेहरे पर मुस्कान लौट आई
सुरेश ने पूछ लिया समीर तुम घर से 12:00 बजे निकले थे अब शाम के 6:00 बजे आए हो 6 घंटे से कहां लापता थे मां ने भी गुस्से से पूछ लिया मैंने दोपहर को पांच हजार रुपए दिए थे तुमने उन रूपयों का क्या किया सबको बताओ तब एक पड़ोसन बोली तुम्हारा बेटा समीर अब बड़ा हो गया है गलत जगह पैसा खर्च करके आया है इतनी बड़ी रकम तो हमने भी अपने बच्चों को नहीं दी समीर बिगड़ चुका है हमें तो शक है किसी लड़की बाजी में पैसे उड़ा कर आया होगा
कुछ रिश्तेदार तो मन ही मन आनंदित हुए जा रहे थे आस - पड़ोसी भी यही चाहते थे की समीर से गलती हो
तभी दरवाजे से एक अधेड़ आदमी झांकता दिखा फिर घर के भीतर आ गया समीर के पास खड़ा होकर बोला भगवान सबको ऐसा बेटा दे
दोपहर 12:00 बजे सड़क किनारे मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया मेरा दिमाग एकदम सुन हो गया मेरा एक हाथ जेब में था आते-जाते लोग मुझे देखते फिर चले जाते ना तो मैं बोल पा रहा था ना सुन पा रहा था लेकिन दिखाई दे रहा था तभी एक बाइक मेरे पास आकर रुकी उसने तुरंत पास की दुकान से पानी की बोतल खरीदी और मुझे पानी पिलाते हुए कहा अंकल जी सड़क किनारे क्यों बैठे हो क्या घरबार नहीं है चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूं तब मैंने कहा घर जाकर क्या करूंगा
कबाड़ी का काम करता हूं मेरे पिता जी का आज देहांत हो गया लेकिन घर में एक फूटी कोड़ी भी नहीं थी इसलिए जहां मैं कबाड़ी का सामान बेंचता था वहां से बड़ी मुश्किल से पांच हजार रुपए उधार लिए थे की पिताजी का अंतिम संस्कार कर दूंगा लेकिन बस में चढ़ने से पहले ही किसी ने मेरी जेब काट ली अब वह कबाड़ी वाला भी दोबारा पैसे नहीं देगा बीवी बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे आस - पड़ोसी सब जमा हो चुके हैं मैं खाली हाथ किस मुंह से जाऊं मैं बिलख बिलख कर रोने लगा
,, हम गरीबों के पास दौलत तो नहीं होती,, साहब ,,, लेकिन बस एक सम्मान ही होता है
तब उसने मुझे मोटरसाइकिल पर बिठाया और मुझे मेरे घर ले गया लोगों का जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा था मेरे घर आते ही मेरा छोटा बेटा दीपू बोला पापा तुमने रुपए लाने में इतनी देर क्यों लगा दी पड़ोसी तरह-तरह की बातें बना रहे थे तब उसने पांच हजार रुपए निकाल कर मेरी बीवी कुसुम देवी को देते हुए कहा अंकल जी को बस नहीं मिल रही थी इसलिए अंकल जी को मैंने बाइक पर बिठा लिया और उनके रुपए रास्ते में गिर ना जाए इसलिए मैंने अपनी जेब में रख लिए थे यह लो अंकल जी के पांच हजार रुपए तब मेरी बीवी ने कहा इन रूपयों को तुम अपने पास रखो जहां-जहां खर्च होंगे करते चले जाना
450 रूपए की अर्थी लेकर सजाई गई उसने मेरे बूढ़े पिता को कांधा देते हुए शमशान तक आया वहां ढाई हजार की लकड़ियां खरीदी पंडित जी ने देसी घी मंगवाने के लिए कहा तो 2 किलो देसी घी एक हजार रुपए का मंगवाया पांच हजार रुपए में से जो रूपए बचे वह पंडित जी को दक्षिणा के रूप में दे दिए
शाम को वह शमशान से हमारे घर आया मोटरसाइकिल पर बैठा और कहा कुछ दूरी पर हमारा घर है आज मेरा जन्मदिन है तुम्हें घर आना है उसने अपना पता बता दिया तब मैं इस समीर को जन्मदिन की बधाई देने चला आया ,,
मां की आंखों में आंसू थे वह सोचने लगी मैंने कहा था समीर इन पैसों का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए आज एक बेटे ने मां की लाज रख ली
समीर के तीनों दोस्त आज बहुत खुश थे कि हमें समीर जैसा मित्र मिला रिश्तेदारों के तो गाल फूल चुके थे समीर का यह पुण्य का काम सुनकर
समीर के एक दूर के रिश्तेदार ने कहा --
अपनी खुशियों से बढ़कर किसी जरूरतमंद की मदद करना ही हमारी संस्कृति हमें सिखाती है
फ्लैट में खड़े मौजूद सभी लोगों ने एक साथ कहा ,, समीर जैसा बेटा भगवान सबको दे
केक कटा और सब में बंटा समीर ने एक बड़े से डिब्बे में बहुत सा खाना पैक करके उन अंकल जी के हाथ में थमा दिया।
अंकल जब घर पहुंचे बच्चों से कहा तुम सुबह से भूखे हो , लो मैं तुम लोगों के लिए खाना लाया हूं बच्चों ने जब डिब्बे खोले तो एक डिब्बे में नोट रखे हुए थे साथ में एक लेटर भी । लेटर में लिखा था मैं समीर का पिता आपको पांच हजार रुपए और दे रहा हूं। इस समय तुम्हें पैसों की जरूरत होगी और आपके पिता की तेरहवीं का पूरा खर्चा भी हम उठाएंगे मैं आज आपको धन्यवाद दे रहा हूं इसलिए कि आपकी वजह से आज मेरा बेटा एक गुनाह करने से बच गया वह गुनाह है

Thursday, April 4, 2024

देश में विदेश से ड्रग की तस्करी बनी बड़ी समस्याl युवा वर्ग की बड़ी जनसंख्या नशे की गिरफ्त में बर्बाद

( ड्रग से बृहद शारीरिक,आर्थिक क्षति)


नशीले पदार्थ अपराधिक गतिविधियों के लिए शासन, प्रशासन तथा पुलिस के लिए एक गंभीर चुनौती बन हुआ है|देश में लगातार हो रही ड्रग्स की सप्लाई ने देशभर में अपराधों का इजाफा कर दिया है| नशीले पदार्थों की अंतरराष्ट्रीय, अंतर राज्यीय तस्करी देश तथा विश्व के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनी हुई है| यह चुनौती इसलिए भी है कि पिछले वर्ष में अपराधियों ने सूखे नशे का सेवन कर अपराध की वारदातें की हैं, नशे की लत में आकर अपराधियों में महानगरों मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई में लगातार बलात्कार, लूट, डकैती,और राहगीरों की हत्या को जन्म दिया है| दूसरी तरफ सूखे नशे की लत में स्कूल और कॉलेज के युवा तथा बच्चे अपना भविष्य खराब करने पर आमादा है| पिछले कुछ माह में मुंबई नारकोटिक्स इकाई ने ताबड़तोड़ छापेमारी कर बड़ी मात्रा में चरस, कोकीन, गांजा, स्मैक की बड़ी तादाद में जप्त कर कई नामचीन अभिनेता, अभिनेत्रियों को गिरफ्तार कर प्रकरण न्यायालय के हवाले किया है| दूसरी तरफ दिल्ली,बेंगलुरु, कोलकाता में भी पुलिस प्रशासन द्वारा सीधे कड़ी कार्रवाई की हैं|वर्तमान में 

शराब तो सामाजिक बुराई बना ही हुआ है| साथ-साथ सूखा नशा भी समाज के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है, सुखे नशे के मामले में केंद्र के सर्वोच्च नेतृत्व में यानी प्रधानमंत्री ने भी गंभीरता पूर्वक इसे रोकने के लिए चिंता जताई है देश में न सिर्फ ड्रग्स के नशे का इस्तेमाल किया जा रहा है बल्कि बड़े पैमाने पर इसकी तस्करी कर अवैध कारोबार भी किया जा रहा है ड्रग्स का नशा सामाजिक विडंबना बना हुआ है| तब देश में नए वर्ष के आगमन के पूर्व बड़े-बड़े आलीशान होटलों मैं सूखे नशे की पार्टियां आयोजित करने की तैयारी कर ली है, ऐसे में पुलिस के केंद्र सरकार के तथा राज्य सरकार के आला अधिकारी इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास की रणनीति बनाने में जुट गए है और शासन तथा पुलिस प्रशासन अपना पूरा ध्यान सूखे नसे को प्रतिबंधित करने में लगे हुए हैं, मूलतः मुंबई गोवा और पाकिस्तानी सरहद से लगे क्षेत्र और राज्य से सूखे नशे पदार्थों की आवक सभी राज्यों में होती है| निसंदेह इसे गंभीर षड्यंत्र के रूप में लिया जाना चाहिए| मुंबई सूखे नशे का एक बड़ा केंद्र बन चुका है, सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या प्रकरण को लेकर जब पुलिस के आला अधिकारी को नशीले पदार्थों रेकेट हाथ लगा तब राज्य तथा केंद्र के कान खड़े हो गए और तब से पूरे देश में ताबड़तोड़ नशे के विरोध में कार्रवाई की जाने लगी और इसी तारतम्य में देश को यह बात समझ में आई कि सूखे नशे की लत में बड़े शहरों के तमाम पूंजीपति नशे के आदी हो चुके परिस्थितियां बहुत गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण है, नए वर्ष के आगमन की सेलिब्रेशन तमाम नशीले पदार्थ की सप्लाई करने वाले तस्कर अपनी तैयारी में जुट गए हैं| देश के सभी राज्यों में नशीले पदार्थों के विरोध में केंद्र के निर्देशन पर लगातार कार्रवाई की जा रही है और युवा वर्ग बच्चों को सोशल मीडिया के द्वारा भी इसकी बुराई के संबंध में लगातार अवगत कराया जा रहा है एवं इस बुराई से दूर रहने का आह्वान किया गया है, देश के बड़े-बड़े रिसोर्ट, जंगल के पिकनिक स्पॉट, देश की मुख्य सड़कों के आसपास ढाबों के संचालकों पर भी नजर रखने की योजना को मूर्त रूप दिया जाना है ताकि अपराधों में कमी आ सके ,शराब से तो अपराध होते ही हैं पर सूखे नशे से अपराधिक ज्यादा उम्र हिंसक और मस्तिष्क शुन्य हो जाते ऐसे में अपराध करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती, और इस तरह वे नशे में अपराधिक कृत्य करने से नहीं चूकते |केंद्र तथा राज्य प्रशासन की चिंता इस बात के लिए तो है ही कि इससे अपराध की संख्या में काफी वृद्धि हुई है पर साथ में इसके तस्करों द्वारा की जा रही ड्रग्स की तस्करी पर एक गंभीर चुनौती बनी हुई है|अंतरराष्ट्रीय सीमा से आने वाला ड्रग्स शारीरिक रूप से भी काफी नुकसानदेह होता है अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने का एक राष्ट्रीय स्तर पर योजना बनाकर उसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है, जितने व्यक्ति नशा करके अपराध करने के लिए दोषी हैं |उससे ज्यादा दोषी नशीले पदार्थों के तस्करी करने वाले भी है, तस्कर समूह को चिन्हित कर उस पर बड़ी कार्रवाई करने की देश को गंभीर आवश्यकता है, देश में शराब जहां ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी बुराई है उससे ग्रामीण आमजन को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ शारीरिक नुकसान भी बहुत बड़ा होता है, इसी के साथ शहरी क्षेत्रों में खासकर बड़े शहरों में सुखा नशा एक बडी सामाजिक बीमारी की तरह अत्यंत गंभीर चुनौती बन गई है, इसे रोकने के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए तभी इस सामाजिक गंभीर समस्या पर कुछ राहत और निदान मिल सकता है|

संजीव ठाकुर, (वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक) स्तंभकार,चिंतक, कथाकार, रायपुर छत्तीसगढ़

अच्छी नियत साफ इरादे रखिए जनाब

जिंदगी के हर पल चमकदार नहीं होते,

जिंदगी में हर पल चमत्कार नहीं होते। 


ईमान और पसीने से बनती है जिंदगी, 

बेईमान कभी भी इज्जतदार नहीं होते। 


अच्छी नियत और साफ इरादे रखिए, 

आस्तीन के सांप वफादार नहीं होते ।


गर नमक खाया वतन का तो अदा कर,

नमक हराम कभी अच्छे पहरेदार नहीं होते 


जख्म पर अपने मरहम की उम्मीद मत कर,

हर उठे हुए हाथ मददगार नहीं होते l


जमाने की चकाचौंध से फिसल मत जाना संजीव,

सफेद लिबास में हर कोई ईमानदार नहीं होतेl


संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415।

Wednesday, April 3, 2024

अतीत का दर्द

कभी नेनुँआ टाटी पे चढ़ के रसोई के दो महीने का इंतज़ाम कर देता था। कभी खपरैल की छत पे चढ़ी लौकी महीना भर निकाल देती थी, कभी बैसाख में दाल और भतुआ से बनाई सूखी कोहड़ौरी, सावन भादो की सब्जी का खर्चा निकाल देती थी‌!

वो दिन थे, जब सब्जी पे खर्चा पता तक नहीं चलता था। देशी टमाटर और मूली जाड़े के सीजन में भौकाल के साथ आते थे,लेकिन खिचड़ी आते-आते उनकी इज्जत घर जमाई जैसी हो जाती थी!
तब जीडीपी का अंकगणितीय करिश्मा नहीं था।
ये सब्जियाँ सर्वसुलभ और हर रसोई का हिस्सा थीं। लोहे की कढ़ाई में, किसी के घर रसेदार सब्जी पके तो, गाँव के डीह बाबा तक गमक जाती थी। धुंआ एक घर से निकला की नहीं, तो आग के लिए लोग चिपरि लेके दौड़ पड़ते थे संझा को रेडियो पे चौपाल और आकाशवाणी के सुलझे हुए समाचारों से दिन रुखसत लेता था!
रातें बड़ी होती थीं, दुआर पे कोई पुरनिया आल्हा छेड़ देता था तो मानों कोई सिनेमा चल गया हो।
किसान लोगो में कर्ज का फैशन नहीं था, फिर बच्चे बड़े होने लगे, बच्चियाँ भी बड़ी होने लगीं!
बच्चे सरकारी नौकरी पाते ही,अंग्रेजी इत्र लगाने लगे। बच्चियों के पापा सरकारी दामाद में नारायण का रूप देखने लगे, किसान क्रेडिट कार्ड डिमांड और ईगो का प्रसाद बन गया,इसी बीच मूँछ बेरोजगारी का सबब बनी!
बीच में मूछमुंडे इंजीनियरों का दौर आया। अब दीवाने किसान,अपनी बेटियों के लिए खेत बेचने के लिए तैयार थे, बेटी गाँव से रुखसत हुई,पापा का कान पेरने वाला रेडियो, साजन की टाटा स्काई वाली एलईडी के सामने फीका पड़ चुका था!
अब आँगन में नेनुँआ का बिया छीटकर,मड़ई पे उसकी लताएँ चढ़ाने वाली बिटिया, पिया के ढाई बीएचके की बालकनी के गमले में क्रोटॉन लगाने लगी और सब्जियाँ मंहँगी हो गईं!
बहुत पुरानी यादें ताज़ा हो गई, सच में उस समय सब्जी पर कुछ भी खर्च नहीं हो पाता था, जिसके पास नहीं होता उसका भी काम चल जाता था!
दही मट्ठा का भरमार था, सबका काम चलता था। मटर,गन्ना,गुड़ सबके लिए इफरात रहता था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि, आपसी मनमुटाव रहते हुए भी अगाध प्रेम रहता था!
आज की छुद्र मानसिकता, दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती थी, हाय रे ऊँची शिक्षा, कहाँ तक ले आई। आज हर आदमी, एक दूसरे को शंका की निगाह से देख रहा है!
विचारणीय है कि क्या सचमुच हम विकसित हुए हैं या यह केवल एक छलावा है.....?

Tuesday, April 2, 2024

क्‍यों नहीं काटतीं कोहड़ा महिलाएं

इस बार बाजार से सब्जी के साथ कोहड़ा भी आ गया था। लगभग दो किलो का साबूत। इसमें दो दिन सब्जी बन जाती। शाम को उसे काटने के पहले दिव्या ने कहा-पापा काट देते तो सब्जी बना देती। मैंने चाकू से उसे आधा काट दिया। उसने इसी के साथ ही सवाल भी किया कि महिलाएं कद्दू क्यों नहीं काटती़। ऐसा हमेशा से होता आ रहा था कि जब भी पूरा कद्दू आता कोई पुरुष ही उसे पहला चाकू मारता और बाद में महिलाएं उसे काटतीं। मेरी मां भी ऐसा ही करती थीं और ऐसा ही अभी तक चल रहा है। मैंने भी एक बार मां से पूछा था कि तुम इसे क्यों नहीं काटती तो उसने जवाब दिया कि कद्दू बेटा होता है तो उसे कैसे काटा जाए।मैने पूछा कि तो क्या अन्य सब्जियों बेटी होती हैं जिन्हें कोई भी काट सकता है। वह कोई जवाब नहीं दे सकी। उसका यह जवाब मुझे संतुष्ट नहीं कर सका। कुछ अन्य लोगों से भी पूछा लेकिन कोई भी उसका सही जवाब नहीं दे पाया। आज यही प्रश्न मेरे सामने था और मेरे पास कोई तार्किक जवाब नहीं था।



दरअसल भारतीय शाक्त परंपरा में पहले देवी देवताओं को पशुबलि देने की प्रथा थी। यह परंपरा बहुत ही प्राचीन है। ऐसा नहीं कि ऐसा भारत में ही है। कई अन्य देशों में भी पशु बलि की परंपरा है। आज भी अनेक जगहों पर भेड़, बकरा, मुर्गा, और कहीं कहीं भैंसे की बलि देने जी जाती है।इन बलि पशुओं का मांस प्रसाद के रूप में लोग सेवन करते हैं, लेकिन जब जीवों के प्रति करुणा का भाव मानव में पैदा हुआ तो बलि प्रथा बंद करने पर विचार हुआ और विकल्प की तलाश की जाने लगी। ऐसे में मनुष्य की तरह दिखने वाले पदार्थों की तलाश हुई तो सबसे पहले नारियल सामने आया। नारियल के फल में दो आंखों और नाक जैसी रचना होती है। वास्तव में इन रचनाओं के साथ उसके बीज का जुड़ाव होता है। और यहीं से नारियल उगता है। लेकिन इस तरह की मानवाकृति देख कर उसे बलि फल के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। आज हर मंदिर में खासतौर से शाक्त (देवी) मंदिरों में पूजा के बाद नारियल जरूर तोड़ा जाता है। यह बलि का प्रतीक है। नारियल का पानी और गरी प्रसाद हो जाता है। इसी तरह सफेद कद्दू (पेठा वाला) को भी देखा गया। इसकी रचना तो किसी जीव की तरह नहीं होती लेकिन न जाने कब से इसे बलि के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। देवी मंदिरों में इसकी बलि देने के पहले इसे सजा कर पूजा की जाती है। मैने एक बार महाकुंभ में इलाहाबाद(अब प्रयागराज) के संगम क्षेत्र में बंगाल से आए एक मठ के पंडाल में निशा पूजा के दौरान आधीरात को सफेद कद्दू को कपड़े पहनाकर सिंदूर आदि लगा कर पूजा करने के बाद खड्ग से बलि देने की घटना देखी थी। मेरे साथ बेटा भी था जिसकी उम्र उस समय कम थी और वह यह सब देख कर डर गया।
सब्जी वाले हरे कद्दू को भी सफेद कद्दू का भाई मान लिया गया। इसकी बलि तो नहीं दी जाती लेकिन यह मान लिया गया कि इसे काटना भी बलि देना ही है। चूंकि बलि आदि देने का काम पुरुष ही करते हैं और महिलाओं को इस क्रूर कर्म को करने की अनुमति नहीं होती,इसलिए सब्जी के लिए कोहड़ा काटने का काम भी पुरुष ही करते हैं। मुझे लगता है कि पूरे भारत में यह परंपरा है। दक्षिण को तो नहीं कह सकता लेकिन हिंदी भाषी उत्तर भारत में तो ऐसा ही है। मैंने कई राज्यों में इस परंपरा की बात सुनी है। पहले कोई पुरुष उसे काटेगा फिर महिलाएं उसे छोटे टुकड़े कर सब्जी आदि बनाती हैं। मैं एक बार शनि बाजार में कद्दू खरीद रहा था और वह बड़ा था जिसे काट कर ही लिया जाता। सब्जी बेचने वाली महिला थी। उसने पहले मुझसे उस पर चाकू चलवाया फिर काट कर दिया। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में तो इसे बड़ा बेटा ही माना जाता है और आदिवासी महिलाएं इसे काटने की सोच नहीं सकतीं।