Monday, February 3, 2020

पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था का लक्ष्‍य हासिल करने में औद्योगिक क्षेत्र के प्रदर्शन की प्रमुख भूमिका

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा में उन तरीकों का विस्‍तृत विश्‍लेषण पेश किया गया, जिसके तहत भारत पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था का लक्ष्‍य हासिल करेगा।


सकल मूल्‍यवर्धन में योगदान के रूप में औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2018-19 में सुधरा है। हालांकि, राष्‍ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) द्वारा अनुमानित सकल घरेलू उत्‍पाद के अनुसार वर्ष 2018-19 की पहली छमाही में 8.2 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2019-20 की पहली छमाही (एच1) (अप्रैल-सितम्‍बर) में औद्योगिक क्षेत्र का सकल मूल्‍यवर्धन 1.6 प्रतिशत अधिक दर्ज किया गया। औद्योगिक क्षेत्र में कम वृद्धि की मुख्‍य वजह विनिर्माण क्षेत्र है, जिसमें वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में 0.2 प्रतिशत की नकारात्‍मक वृद्धि दर्ज की गई।


औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक (आईआईपी)


      औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक में वर्ष 2017-18 में 4.4 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2018-19 में 3.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। मौजूदा वर्ष 2019-20 (अप्रैल-नवम्‍बर) के दौरान पिछले वर्ष की इसी अवधि में 5 फीसदी की तुलना में आईआईपी में महज 0.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आईआईपी में वृद्धि में यह कमी मध्‍यम एवं छोटे उद्योगों को ऋण के सुस्‍त प्रवाह की वजह से विनिर्माण गतिविधियों में आई कमी, धन की कमी की वजह से एनबीएफसी द्वारा ऋण देने में कटौती, ऑटोमोटिव क्षेत्र, फार्मास्‍युटिकल्‍स और मशीनरी एवं इक्‍युपमेंट जैसे प्रमुख क्षेत्रों में घरेलू मांग की कमी, अंतर्राष्‍ट्रीय कच्‍चे तेल की कीमतों में अनिश्चितता और मौजूदा व्‍यापार संबंधी अनिश्चितताओं की वजह से हुई। मौजूदा वित्‍त वर्ष के दौरान रत्‍न एवं आभूषण, मूल धातु, चर्म उत्‍पाद और कपड़े जैसे श्रम आधारित क्षेत्रों के निर्यात में कमी आई है। मौजूदा वित्‍त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-नवम्‍बर) के दौरान पूंजीगत सामान और टिकाऊ उपभोक्‍ता सामान की वृद्धि में क्रमश: 11.6 और 6.5 प्रतिशत की गिरावट आई है। टिकाऊ उपभोक्‍ता सामान के क्षेत्र में गिरावट घरेलू क्षेत्र खासकर ऑटोमोबाइल उद्योग की ओर से मांग में कमी की वजह से दर्ज की गई।


      मौजूदा वित्‍त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-नवम्‍बर) में अवसंरचना/निर्माण सामग्री की वृद्धि में 2.7 प्रतिशत की कमी आई। नवम्‍बर, 2019 में मध्‍यवर्ती सामग्री और गैर-टिकाऊ उपभोक्‍ता सामग्री में सकारात्‍मक वृद्धि दर्ज की गई, जबकि प्राथमिक सामग्री, पूंजीगत सामग्री, अवसंरचना/निर्माण सामग्री और टिकाऊ उपभोक्‍ता सामग्री में नकारात्‍म्‍क वृद्धि दर्ज की गई।  


औद्योगिक क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण


      उद्योग में सकल पूंजी निर्माण ने निवेश में तेजी को दर्शाते हुए वर्ष 2016-17 के (-) 0.7 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2017-18 में 7.6 प्रतिशत वृद्धि की उछाल दर्ज की। खनन एवं उत्‍खनन, विनिर्माण, बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्‍य इस्‍तेमाल की सेवाएं एवं निर्माण क्षेत्र में वर्ष 2017-18 में क्रमश: 7.1 प्रतिशत, 8 प्रतिशत, 6.1 प्रतिशत और 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।


औद्योगिक क्षेत्र को ऋण प्रवाह


      औद्योगिक क्षेत्र को वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर सकल बैंक ऋण प्रवाह में सितम्‍बर 2018 में 2.3 प्रतिशत की तुलना में सितम्‍बर 2019 में 2.7 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई। काष्‍ठ एवं  काष्‍ठ उत्‍पाद, सभी अभियांत्रिकी, सीमेंट एवं सीमेंट उत्‍पाद, निर्माण एवं अवसंरचना जैसे उद्योगों को सितम्‍बर, 2018 की तुलना में सितम्‍बर 2019 में ऋण प्रवाह में बढ़ोतरी हुई। खाद्य प्रसंस्‍करण, रसायन एवं रसायन उत्‍पाद, वाहन, वाहनों के कलपुर्जे और परिवहन उपकरण जैसे उद्योगों को सितम्‍बर 2018 की तुलना में सितम्‍बर 2019 में ऋण प्रवाह में कमी दर्ज की गई।


कॉरपोरेट क्षेत्र का प्रदर्शन


      विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2019-20 के प्रथम तिमाही में उत्‍पादन कम होने की वजह से गिरावट रही। इस गिरावट में प्रमुख रूप से पेट्रोलियम उत्‍पाद, लौह एवं इस्‍पात, मोटर वाहन और अन्‍य परिवहन उपकरण कंपनियां जिम्‍मेदार हैं।


      कॉरपोरेट क्षेत्र में वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही में तेजी आई और 17.4 प्रतिशत का शुद्ध हुआ। वर्ष 2016-17 की दूसरी छमाही से विस्‍तार क्षेत्र में रहीं 1700 से अधिक सूचीबद्ध निजी विनिर्माण कंपनियों की ब्रिकी में वृद्धि वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही में घटकर 7.7 प्रतिशत रह गई। भारत के विनिर्माण क्षेत्र की उपयोग क्षमता वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में 73.8 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में 73.6 प्रतिशत पर स्‍थायी बनी रही।


सीपीएसई का प्रदर्शन


      31.03.2019 को 348 केन्‍द्रीय सार्वजनिक उद्यम क्षेत्र में से 249 उद्यम चालू है, 86 उद्यम में वाणिज्यिक संचालन शुरू होना बाकी है और 13 उद्यम बंद होने के कगार पर है। 249 चल रही सीपीएसई में से 178 सीपीएसई ने 2018-19 के दौरान लाभ दर्ज किया, 70 सीपीएसई ने पूरे साल के दौरान नुकसान दर्ज किया और एक सीपीएसई को न घाटा न लाभ हुआ। वर्ष2018-19 में लाभ में रही 178 सीपीएसई का कुल लाभ 1.75 लाख करोड़ रुपए हुआ और पूरे साल घाटे में चली 70 सीपीएसई को 31,635 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।


      सीपीएसई का केन्‍द्रीय खजाने में योगदान पिछले साल के 3.52 लाख करोड़ रुपये की तुलना में वर्ष 2018-19 में 4.67 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 3.69 लाख करोड़ रुपये रहा।                               



वर्ष 2014 से ही महंगाई निरंतर घटती जा रही है; 2014-19 के दौरान अधिकतर आवश्‍यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव में उल्‍लेखनीय कमी

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत में वर्ष 2014 से ही महंगाई निरंतर घटती जा रही है। हालांकि, हाल के महीनों में महंगाई में वृद्धि का रुख देखा गया है। उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुख्‍य महंगाई दर वर्ष 2018-19 (अप्रैल- दिसम्‍बर 2018) के 3.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 4.1 प्रतिशत हो गई है। थोक मूल्‍य सूचकांक (डब्‍ल्‍यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर में वर्ष 2015-16 और वर्ष 2018-19 के बीच की अवधि के दौरान वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि, डब्‍ल्‍यूपीआई पर आधारित महंगाई दर वर्ष 2018-19 की अप्रैल-दिसम्‍बर 2018 अवधि के 4.7 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 1.5 प्रतिशत रह गई।



आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि वर्ष 2018-19 के दौरान सीपीआई-संयुक्‍त महंगाई मुख्‍यत: विविध समूह के कारण बढ़ी थी। हालांकि, वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसम्‍बर) के दौरान सीपीआई-संयुक्‍त महंगाई में मुख्‍य योगदान खाद्य एवं पेय पदार्थों का रहा। खाद्य एवं पेय पदार्थों में अत्‍यधिक महंगाई विशेषकर सब्जियों एवं दालों में दर्ज की गई। इसका मुख्‍य कारण बेस इफेक्‍ट का कम रहना और असमय वर्षा के कारण उत्‍पादन का बाधित होना था। आर्थिक समीक्षा में यह सिफारिश की गई है कि किसानों के हितों की रक्षा से जुड़े उपायों जैसे कि मूल्‍य स्थिरीकरण कोष के तहत खरीद एवं न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) को और भी अधिक कारगर बनाने की आवश्‍यकता है।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2019 तक की अवधि के दौरान देश के चारों महानगरों में विभिन्‍न आवश्‍यक कृषि जिंसों के खुदरा एवं थोक मूल्‍यों में व्‍यापक अंतर रहा है। यह अंतर विशेषकर प्‍याज एवं टमाटर जैसी सब्जियों के कारण देखा गया। संभवत: बिचौलियों की मौजूदगी और सौदों की लागत के काफी अधिक रहने के कारण ही यह स्थिति देखने को मिली।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि समय के साथ आवश्‍यक जिंसों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव में बदलाव देखा गया है। वर्ष 2009 से वर्ष 2014 तक की अवधि की तुलना में वर्ष 2014-2019 की अवधि के दौरान कुछ दालों को छोड़ अधिकतर आवश्‍यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव में उल्‍लेखनीय कमी दर्ज की गई। यह संभवत: विपणन की बेहतर व्‍यवस्‍थाओं, भंडारण सुविधाओं और ज्‍यादातर आवश्‍यक कृषि जिंसों के लिए कारगर एमएसपी प्रणाली से ही संभव हो पाई।


आर्थिक समीक्षा के अनुसार, सीपीआई-संयुक्‍त महंगाई सभी राज्‍यों में अत्‍यंत भिन्‍न रही है। वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल- दिसम्‍बर) के दौरान समस्‍त राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों में महंगाई दर (-) 0.04 प्रतिशत से लेकर 8.1 प्रतिशत दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल- दिसम्‍बर) के दौरान 15 राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों में महंगाई दर 4 प्रतिशत से भी कम रही। सभी राज्‍यों में ग्रामीण एवं शहरी महंगाई में काफी अंतर देखने को मिला। सीपीआई-संयुक्‍त महंगाई अधिकतर राज्‍यों के शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कम है और ग्रामीण-शहरी महंगाई में यह अंतर सभी घटकों खाद्य एवं पेय पदार्थों, वस्‍त्र एवं फुटवियर, विविध पदार्थों इत्‍यादि में देखने को मिला।


ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में महंगाई में अंतर का विश्लेषण करते हुए आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि सभी राज्‍यों में शहरी महंगाई की तुलना में ग्रामीण महंगाई में अपेक्षाकृत अधिक अंतर रहा है। आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि हेडलाइन महंगाई दर और कोर महंगाई में अभिसरण के कारण महंगाई के आयाम में बदलाव देखा जाता रहा है। समीक्षा में यह बताया गया है कि खाद्य एवं ईंधन के मूल्यों में भारी वृद्धि को देखते हुए मौद्रिक नीति में इससे निपटने के लिए उठाये जाने वाले कदमों में इसके निहितार्थ हो सकते हैं। गैर-प्रमुख घटकों में तेज अल्‍पकालिक मूल्‍यवृद्धि को ध्‍यान में रखते हुए मौद्रिक नीति को कठोर बनाने की जरूरत नहीं है। हालांकि, भारत में उपभोक्‍ताओं के उपभोग स्‍टॉक में खाद्य पदार्थों एव ईंधन की भारिता (वेटेज) काफी अधिक रहने और खाद्य पदार्थों एवं ईंधन की महंगाई में न केवल आपूर्ति से जुड़े कारकों, बल्कि मांग पक्ष से जुड़े दबाव का भी काफी योगदान होने के कारण मौद्रिक नीति संबंधी निर्णयों में मुख्‍य महंगाई दर पर फोकस करना आवश्‍यक हो सकता है।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आवश्‍यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकार को समय-समय पर विभिन्‍न ठोस कदम उठाने चाहिए जिनमें व्‍यापार एवं राजकोषीय नीति से जुड़े उपायों का इस्‍तेमाल करना, न्‍यूनतम निर्यात मूल्‍य, निर्यात संबंधी पाबंदियां और स्‍टॉक लिमिट लागू करना शामिल हैं। आर्थिक समीक्षा में प्‍याज की कीमतों का उल्‍लेख करते हुए कहा गया है कि वर्ष 2019-20 के दौरान अगस्‍त, 2019 से इसकी कीमतों में  वृद्धि दर्ज की गई और इसकी कीमतों में कमी सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए।




भारत ने समानता एवं साझा, लेकिन भिन्न जिम्‍मेदारियों के सिद्धांतों के अनुसार पेरिस समझौते के तहत अपने राष्‍ट्रीय निर्धारित अंशदान (एनडीसी) के अनुरूप सतत विकास पथ पर चलने के लिए अथक प्रयास किए हैं : आर्थिक समीक्षा 

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा में विकास से जुड़ी अनिवार्यताओं पर फोकस करते हुए जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने के लिए भारत के समग्र दृष्टिकोण पर विशेष बल दिया गया है।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत ने समानता एवं साझा, लेकिन भिन्न जिम्‍मेदारियों के सिद्धांतों के अनुसार पेरिस समझौते के तहत अपने राष्‍ट्रीय निर्धारित अंशदान (एनडीसी) के अनुरूप एक ऐसे विकास पथ पर चलने के लिए अथक प्रयास किए हैं जो सतत विकास का मार्ग प्रशस्‍त करता है और विभिन्‍न योजनाओं में निवेश कर पर्यावरण का संरक्षण करता है।


आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में कमी से जुड़ी भारत की रणनीतियों में स्‍वच्‍छ एवं बेहतर ऊर्जा प्रणाली, ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करने, सुदृढ़ शहरी अवसंरचना, सुरक्षित व स्‍मार्ट तथा टिकाऊ हरित परिवहन नेटवर्क और नियोजित वनीकरण के साथ-साथ सभी सेक्‍टरों में समग्र भागीदारी पर बल दिया गया है।


सतत विकास एवं जलवायु परिवर्तन के लिए भारत की नीतियों की दिशा में प्रगति


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत अपने एनडीसी को प्राप्‍त करने के पथ पर अग्रसर है। आर्थिक समीक्षा ने भारत के नवीकरणीय ऊर्जा सेक्‍टर में उल्‍लेखनीय छलांग पर भी प्रकाश डाला है जिसके तहत विश्‍व के एक सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा विस्‍तार कार्यक्रम के तहत 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्‍य में से 83 गीगावाट लक्ष्‍य की प्राप्ति की जा रही है।


इसके अलावा, शत-प्रतिशत ठोस अपशिष्‍ट का वैज्ञानिक प्रबंधन सुनिश्चित करने और पर्यावरण में समग्र सुधार के लिए शहरी भारत को खुले में शौच मुक्‍त (ओडीएफ) करने के दो उद्देश्‍यों के साथ स्‍वच्‍छ भारत मिशन (शहरी) को वर्ष 2014 में लॉन्‍च किया गया था। 35 राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों के सभी शहरी क्षेत्र ओडीएफ हो गए हैं और अपशिष्‍ट की प्रोसेसिंग का स्‍तर लगभग 18 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत के स्‍तर पर पहुंच गया है।


आर्थिक समीक्षा में एनडीसी के अनुरूप ‘जलवायु परिवर्तन पर राष्‍ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी)’ में संशोधन करने से संबंधि‍त भारत के निर्णय पर प्रकाश डाला गया है, ताकि इसे और भी अधिक व्‍यापक बनाया जा सके। आर्थिक समीक्षा में विभिन्‍न योजनाओं जैसे कि एलईडी बल्‍ब के वितरण से जुड़ी उजाला स्‍कीम की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है जो 360 मिलियन का आंकड़ा पार कर गया है। इसी तरह आर्थिक समीक्षा में स्‍ट्रीट लाइटिंग कार्यक्रम को मिली उल्‍लेखनीय सफलता की भी सराहना की गई है जिसके तहत 10 मिलियन पारंपरिक स्‍ट्रीटलाइट के स्‍थान पर एलईडी स्‍ट्रीटलाइटें लगाई गई हैं और जिससे 43 मिलियन टन कार्बन-डाई-ऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन की बचत करने में मदद मिली है।


अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भारत की पहल


सौर क्षेत्र में, अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) सदस्‍य देशों की 30 फेलोशिप को संस्‍थागत रूप देकर ‘समर्थवान’, भारत के एक्जिम बैंक से 2 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण एवं फ्रांस की एजेंसे फ्रांकेइस डे डेवलपमेंट (एएफडी) से 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर की राशि पाकर ‘सुविधाप्रदाता’, सौर जोखिम अपशमन पहल जैसे कदमों को बढ़ावा देकर ‘इन्‍क्‍यूबेटर’ और 1000 मेगावाट की कुल मांग तथा 2,70,000 सोलर पंपों के लिए विभिन्‍न साधनों को विकसित कर ‘त्‍वरक’ की भूमिका निभा रहा है।


भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के महासचिव के जलवायु कार्रवाई शिखर सम्‍मेलन के दौरान अलग से आपदा सक्षम अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई) को सितम्‍बर, 2019 में लॉन्‍च किया। सीडीआरआई का उद्देश्‍य जलवायु एवं आपदा जोखिमों से निपटने के लिए नई एवं मौजूदा अवसंरचना प्रणालियों की सुदृढ़ता को बढ़ावा देना है, ताकि आपदाओं से अवसंरचना या बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को होने वाले नुकसान में कमी की जा सके।


भारत ने 2-13 सितम्‍बर, 2019 के दौरान ‍मरुस्‍थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र सम्‍मेलन (यूएनसीसीडी) की कॉन्‍फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी 14) के 14वें सत्र की मेजबानी की। सीओपी 14 के दौरान ‘नई दिल्‍ली घोषणा पत्र : भूमि में निवेश करना और अवसरों को उन्‍मुक्‍त करना’ को अपनाया गया। भारत ने संवर्धि‍त दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए भी सहायता देने की घोषणा की। भूजल के प्रबंधन के लिए वैश्विक जल कार्रवाई एजेंडे का भी शुभारंभ किया गया।


वित्तीय प्रणाली को निरंतरता के साथ जोड़ने के लिए भारत के प्रयास


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चीन के बाद भारत में ही दूसरा सबसे बड़ा उभरता ग्रीन बॉन्‍ड बाजार है। भारतीय स्‍टेट बैंक ने 650 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सर्टिफाइड क्‍लाइमेट बॉन्‍ड के साथ बाजार में प्रवेश किया था। भारत वर्ष 2019 में सतत वित्त पर अंतर्राष्‍ट्रीय प्‍लेटफॉर्म (आईपीएसएफ) से भी जुड़ गया, ताकि पर्यावरणीय दृष्टि से सतत निवेश का स्‍तर बढ़ाया जा सके।


आर्थिक समीक्षा में जलवायु वित्त में कमी से जुड़े मुद्दे पर भी चिंता जताई गई है। हरित जलवायु कोष की प्रथम प्रतिपूर्ति (2020-2023) के तहत अब तक 28 देशों ने इस कोष की प्रतिपूर्ति के लिए 9.7 अरब अमेरिकी डॉलर की राशि देने का वादा किया है, जो आरंभिक संसाधन प्राप्ति (आईआरएम) से मात्रा की दृष्टि से कम है। आर्थिक समीक्षा में उम्‍मीद जताई गई है कि भारत विकसित देशों से इस कार्य में अगुवाई करने का दृढ़तापूर्वक आह्वान करते हुए आगे भी अपने समुचित दात्यिवों का निर्वहन करेगा।



प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत वर्ष 2014-15 में 11.95 लाख घरों की तुलना में वर्ष 2018-19 में 47.33 लाख घरों का निर्माण कार्य पूरा : आर्थिक समीक्षा

सभी के लिए आवास, पेयजल और स्‍वच्‍छता के साधनों सहित सामाजिक संपत्तियों के निर्माण का प्रावधान सरकार की सामाजिक अवसंरचना के निर्माण की कोशिशों के तहत एक प्रमुख स्‍तंभ रहा है। यह आर्थिक समीक्षा 2019-20 के प्रमुख घटकों में से एक है, जिसे आज संसद में केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने पेश किया।


सभी के लिए आवास


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2018 में भारत में पेयजल, साफ-सफाई और आवास स्थिति पर एनएसओ के हाल के सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 76.7 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 96 प्रतिशत लोगों के पास पक्‍का घर है।


दो योजनाओं प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) और प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पीएमएवाई-यू) के तहत 2022 तक सभी के लिए आवास के लक्ष्‍य को हासिल करना है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि पीएमएवाई-जी के तहत एक साल में बनने वाले घरों की संख्‍या पहले से चार गुना बढ़ गई है, जो 2014-15 में 11.95 लाख से बढ़कर 2018-19 में 47.33 लाख हो गई है।


पेयजल एवं स्‍वच्‍छता


      आ‍र्थिक समीक्षा के अनुसार 2014 में शुरू हुए स्‍वच्‍छ भारत मिशन–ग्रामीण (एसबीएम-जी) के तहत अब तक ग्रामीण इलाकों में 10 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए हैं। इस दौरान 5.9 लाख गांवों, 699 जिलों और 35 राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों ने अपने आपको खुले में शौच से मुक्‍त घोषित किया है। भारत के सबसे बड़े ग्रामीण स्‍वच्‍छता सर्वेक्षण स्‍वच्‍छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2019 में देश भर के 698 जिलों के 17,450 गांवों को शामिल किया गया, जिनमें 87,250 सार्वजनिक स्‍थल शामिल हैं।


      बजट पूर्व समीक्षा में बताया गया है कि सफाई को लेकर व्‍यवहार को बनाए रखने और ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन को बढ़ावा देने पर केन्द्रित 10 वर्षीय ग्रामीण स्‍वच्‍छता रणनीति (2019-2029) की शुरुआत की गई है। जल संकट से जुझ रहे प्रखंडों और जिलों में जल संरक्षण की गतिविधियों में तेजी लाने के उद्देश्‍य से पूरे भारत में जल शक्ति अभियान (जेएसए) शुरू किया गया है। आर्थिक समीक्षा में जोर देते हुए बताया गया है कि जेएसए के तहत अब तक 256 जिलों में 3.5 लाख से अधिक जल संरक्षण उपाए किए गए हैं। लगभग 2.64 लोगों ने भाग लेकर इसे जन आंदोलन बना दिया है।