Saturday, February 29, 2020

सूक्ष्मजीवों से जैव ईंधन

इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्‍नोलॉजी (आईसीजीईबी) के शोधकर्तासिनेकोकोकस विशेष नाम पीसीसी 7002 नामक एक समुद्री सूक्ष्मजीव की वृद्धि दर और उसमें शर्करा की मात्रा में सुधार के लिए एक विधि तैयार कर रहे हैं। इससे जैव ईंधन क्षेत्र को बढ़ावा मिल सकता है।


जैव-ईंधन उत्पादन सहित अधिकतर जैव-प्रौद्योगिकीय प्रक्रियाएंकम लागत और शर्करा एवं नाइट्रोजन स्रोत से निर्वाध आपूर्ति की उपलब्धता पर निर्भर हैं। शर्कराआमतौर पर पौधों से आती है। पौधे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के माध्यम से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को शर्करा, प्रोटीन और लिपिड जैसे जैविक घटकों में परिवर्तित करने के लिए प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करते हैं।


हालांकिकुछ बैक्टीरिया, जैसे साइनोबैक्टीरिया (जिसे नीले-हरे शैवाल के रूप में भी जाना जाता है), भी प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को ठीक करके शर्कराका उत्पादन कर सकते हैं। साइनोबैक्टीरिया से शर्करा की उपज संभावित रूप से भूमि आधारित फसलों की तुलना में बहुत अधिक हो सकती है। इसके अलावा, पौधे-आधारित शर्करा के विपरीतसाइनोबैक्टीरियल बायोमास प्रोटीन के रूप में एक नाइट्रोजन स्रोत प्रदान करता है।


साइनोबैक्टीरिया ताजा और समुद्री पानी दोनों में पाए जाते हैं। समुद्री साइनोबैक्टीरिया का उपयोग करना बेहतर हो सकता है क्योंकि ताजे पानी में तेजी से कमी हो रही है। हालांकि, समुद्री साइनोबैक्टीरिया आधारित शर्करा उत्पादन की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार के लिए उनकी विकास दर और शर्करा सामग्री में उल्लेखनीय सुधार करने की आवश्यकता है।


इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी की एक टीम ने इसे हासिल किया है। इस केंद्र के जैव-ईंधन समूह के लिए सिस्टम बायोलॉजी के ग्रुप लीडर और डीबीटी-आईसीजीईबी सेंटर फॉर एडवांस्ड बायोएनर्जी रिसर्च के अण्‍वेषक डॉ. शिरीष श्रीवास्तव और आईसीजीईबी के एक पीएचडी छात्र जय कुमार गुप्ताने इस टीम का नेतृत्व किया।


उन्होंने एक समुद्री साइनोबैक्टीरियम सिनेकोकोकस विशेष नाम पीसीसी 7002 को सफलतापूर्वक तैयार किया। पीसीसी 7002 में उच्च विकास दर और शर्करा (ग्लाइकोजेन) की मात्रा दिखी। इसे जब हवा में उगाया गया तो उसका विकास दोगुना हो गया और कोशिकाओं के ग्लाइकोजेन मात्रा में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई।


इस अध्‍ययन टीम का नेतृत्‍व करने वाले डॉ. श्रीवास्‍तव ने इंडिया साइंस वायर से बातचीत करते हुएकहा कि सिनेकोकोकस विशेष नाम पीसीसी 7002 समुद्री साइनोबैक्टीरियम का एक मॉडल है और वहां अन्य सिनेकोकोकस प्रजातियां अथवा संबंधित जीव थेजिस पर इस काम को सही तरीके सेआगे बढ़ाया जा सकता है।


उन्‍होंने कहा, ‘हम इस कार्य से संबंधित कई अनुवर्ती अध्ययन कर रहे हैंजिसमें बड़े पैमाने पर इसकी खेती,मानव एवं पशु मूत्र वाली यूरिया पर कोशिका वृद्धि,साइनोबैक्टीरियल बायोमास से शर्करा एवं प्रोटीन के निष्कर्षण का अनुकूलनऔर प्रसंस्‍कृत बायोमास से बायोइथेनॉल जैसे जैवप्रौद्योगिकी उत्‍पाद की प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट यानी सटीक अवधारणा शामिल हैं। 


जैवप्रौद्योगिकी विभाग ने इस शोध को प्रायोजित किया है। वैज्ञानिकों नेअपने काम पर एक रिपोर्ट‘बायोटेक्‍नोलॉजी फॉर बायोफ़्यूल्‍स’ पत्रिका में प्रकाशित की है। (विज्ञान समचार)


(प्रमुख शब्‍द : यूरिया, शर्करा, प्रोटीन, बायोमास, प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट, बायो-इथेनॉल, समुद्री जल, ताजा जल)



पिगमेंटरी डिसऑर्डर पर शोध को बढ़ावा देने के लिए 3.6 करोड़ रुपये का अनुदान

पिगमेंटरी डिसऑर्डर यानी वर्णक विकारों की समस्या को समझने के लिए किए जा रहे अध्ययन को वेलकम ट्रस्ट/ डीबीटी इंडिया गठबंधन के जरिये जबरदस्‍त शॉट मिलने की उम्मीद है। यह गठबंधन जैव प्रौद्योगिकी के लिए फरीदाबाद स्थित क्षेत्रीय केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. राजेन्द्र के. मोतीयानी पर एक इंटरमीडिएट फेलोशिप पुरस्कार प्रदान करता है। इस पुरस्कार में पांच वर्षों की अवधि के लिए 3.60 करोड़ रुपये का अनुदान शामिल है।


शारीरिक वर्णकता एक महत्वपूर्ण रक्षा तंत्र है जिसके द्वारा त्वचा को हानिकारक यूवी विकिरणों से बचाया जाता है। अकुशल वर्णकता त्वचा के कैंसर का कारण बनता हैजो दुनिया भर में कैंसर से जुड़ी मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है। इसके अलावा, वर्णक विकार (हाइपो और हाइपर पिगमेंटरी दोनों) एक सामाजिक कलंक माना जाता है और इसलिए वह लंबी अवधि के लिए मनोवैज्ञानिक आघात पहुंचाता है और रोगियों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करता है। वर्तमान चिकित्सीय रणनीतियां वर्णक विकारों को दूर करने में कुशल नहीं हैं।


इस पुरस्कार के तहत शुरू की जाने वाली यह अनुसंधान परियोजना का उद्देश्‍यलक्ष्य करने योग्य उन नोवल मॉलिक्‍यूलर पदार्थों की पहचान करना होगा जो वर्णक प्रक्रिया को संचालित करने के लिए महत्‍वपूर्ण हैं। इसके अलावा, शोधकर्ता वर्णक विकारों के उपचार के लिए वाणिज्यिक तौर पर उपलब्ध दवाओं का नए सिरे से उपयोग करने की कोशिश भी करेंगे। आगे चलकर इस परियोजना से समाज को दोतरफा लाभ- यूवी-प्रेरित त्वचा के कैंसर से सुरक्षा और वर्णक विकारों के लिए संभावित उपचार का विकल्प- होने की उम्मीद है।


वर्णकता जीवविज्ञान क्षेत्र में अब तक मुख्‍य तौर पर मेलेनिन संश्लेषण को विनियमित करने वाले एंजाइमों को समझने और उनके बायोजेनेसिसएवं परिपक्वता में शामिल मेलेनोसोम प्रोटीन पर ध्‍यान केंद्रित किया गया है। हालांकि, मेलेनोसोम बायोजेनेसिस और मेलेनिन संश्लेषण जटिल प्रक्रिया है और संभवत: अन्य कोशिकीय अंगइस प्रक्रिया को संचालित करते हैं।


डॉ. मोतियानी और उनकी टीम द्वारा अलग-अलग वर्णक मीलेनोसाइट पर इससे पहले किए गए अध्ययन से पता चला था कि एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम (ईआर) और माइटोकॉन्ड्रियावर्णकता के महत्वपूर्ण संचालक हैं। इस नई परियोजना का उद्देश्य वर्णकता में एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम और माइटोकॉन्ड्रिया सिग्‍नलिंग पाथवे की भूमिका को चित्रित करना और प्रमुख एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम और माइटोकॉड्रियल प्रोटीन की पहचान करना है जो वर्णकता को नियंत्रित करते हैं। बाद में वे इन सिग्नलिंग कैस्केड को एफडीए द्वारा मंजूर दवाओं से लक्ष्‍य करेंगे ताकि यह पता चल सके कि किसी ज्ञात दवा का इस्‍तेमाल वर्णक विकारों को कम करने के लिए किया जा सकता है। (विज्ञान समाचार)


(प्रमुख शब्‍द : माइटोकॉन्ड्रिया, यूवी विकिरण, त्वचा कैंसर, वर्णक विकार, कलंक, मनोवैज्ञानिक आघात, चिकित्सीय रणनीति)



राष्‍ट्रपति ने कहा कि आइए हम अपने वैज्ञानिक उद्यम की गुणवत्‍ता और प्रासंगिकता बढ़ाने का संकल्‍प लें

राष्‍ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने अपने वैज्ञानिक उद्यम की गुणवत्ता और प्रासंगिकता बढ़ाने पर जोर दिया। उन्‍होंने कहा कि हमारे विज्ञान को देश के लोगों के विकास और भलाई में योगदान देकर जनता के लिए काम करना चाहिए। श्री कोविंद विज्ञान और प्रौ‍द्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा आज नई दिल्‍ली में आयोजित राष्‍ट्रीय विज्ञान दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे।  


राष्‍ट्रप‍ति ने कहा कि हमें अपने विश्‍वविद्यालय और प्रयोगशाला  में सभी उपकरणों, ज्ञान, मानव शक्ति और बुनियादी ढांचे के साथ विज्ञान और वास्‍तव में समाज के सभी हितधारकों तक पहुंचने का लक्ष्‍य निर्धारित करना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि यह जानकर खुशी हुई कि कॉरपोरेट सामाजिक जिम्‍मेदारी की तर्ज पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भी वैज्ञानिक सामाजिक जिम्‍मेदारी की अवधारणा को विकसित कर रहा है और इसे नीति में शामिल कर रहा है। इस नीति में वैज्ञानिक बुनियादी ढांचा साझा करने कॉलेज के संकाय को परामर्श देना, अनुसंधान संस्‍कृति को बढ़ावा देना और शीर्ष प्रयोगशालाओं में युवा छात्रों की यात्राओं का आयोजन करना शामिल हैं।


राष्‍ट्रपति ने कहा कि राष्‍ट्रीय विज्ञान दिवस का मूल उद्देश्‍य विज्ञान के महत्‍व के संदेश का प्रचार करना है। इसके दो पहलू हैं – अपने आप में विज्ञान, शुद्ध ज्ञान की खोज के रूप में और समाज में विज्ञान, जीवन की गुणवत्‍ता बढ़ाने के लिए एक उपकरण के रूप में। वास्‍तव में दोनों ही पहलू आपस में जुड़े हुए हैं, क्‍योंकि इन दोनों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक ही है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्‍यम से ही हम पर्यावरण, स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल, उचित आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा, भोजन एवं जल सुरक्षा तथा संचार आदि की चुनौतियों का प्रभावी रूप से समाधान कर सकते हैं। आज हमारे सामने अनेक प्रकार की जटिल समस्‍याएं हैं। विभिन्‍न संसाधनों की मांग और आपूर्ति के बढ़ते हुए असंतुलन से भविष्‍य में टकराव की संभावना है। हम सभी को इन चुनौतियों के स्‍थायी समाधान की अपनी तलाश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर निर्भर रहना होगा। 



उपराष्ट्रपति ने वास्तुकारों से कहा कि अपनी योजनाओं में संरक्षण और निरंतरता का ध्यान रखें

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज सभी वास्तुकारों और शहरी योजनाकारों से आग्रह किया कि वे अपनी योजनाओं के लिए संरक्षण और निरंतरता पर विशेष ध्यान दे। उन्होंने कहा कि निर्माण वातावरण में सुधार लाने के लिए परम्परा तथा प्रौद्योगिकी का समायोजन करें तथा दीर्घकालीन विकास की दिशा में काम करें।


तमिलनाडु के मामल्लपुरम में वास्तुशिल्प और मूर्तिकला कॉलेज के छात्रों से बातचीत करते हुए श्री नायडू ने उनसे आग्रह किया कि वे देश की मूल्यवान संस्कृति और विरासत को प्रोत्साहन देने और उसकी सुरक्षा करने का प्रयास करे। उन्होंने कहा कि छात्रों को पारम्परिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए।


      मामल्लपुरम के विश्व धरोहर स्थल का उल्लेख करते हुए श्री नायडू ने कहा कि यह स्थान भारत की महान परम्परा का परिचायक है तथा मामल्लपुरम की पल्लव मूर्तिकारी और तटीय मंदिर, रथ मंदिर, गुफा मंदिर तथा अर्जुन का प्रायश्चित या गंगा अवतरण शैल वास्तुकला का शानदार नमूना होने के साथ-साथ दुर्लभ गरिमा को भी प्रदर्शित करते हैं।


      उपराष्ट्रपति ने कहा कि वास्तुशिल्प और मूर्तिकला कॉलेज इससे बेहतर स्थान पर नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि यहां के वास्तुशिल्प से महान विविधता के साथ-साथ इन स्मारकों का कर्मिक विकास भी नजर आता है।


      पर्यावरण अनुकूल हरित भवनों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता पर बल देते हुए श्री नायडू ने कहा कि इन इमारतों में पानी का कम उपयोग होता है और ऊर्जा का आदर्श इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने आग्रह किया कि नई इमारतों का डिजाइन तैयार करते समय डिजिटल प्रौद्योगिकी का पूरा फायदा उठाया जाए, ताकि ‘स्मार्ट बिल्डिंग’ का निर्माण हो सके।


      श्री नायडू ने वास्तुशिल्प के छात्रों से आग्रह किया कि वे तेज शहरीकरण के समाधान के लिए नवाचारों का उपयोग करें तथा शहरी क्षेत्रों के सामान ग्रामीण क्षेत्रों में भी सुविधाएं प्रदान करने के तरीके खोजें। उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि वे अधिक से अधिक साहित्य और कला रूपों का अध्ययन करें तथा अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करें। उन्होंने छात्रों से यह भी कहा कि वे मूर्तिकला सहित सभी भारतीय कला रूपों के प्रति अपनी समक्ष में इजाफा करें।


      उपराष्ट्रपति ने वास्तुशिल्प कॉलेज जैसे संस्थानों से आग्रह किया कि वे शोध और नवाचार को प्रोत्साहन दे, ताकि हमारे शहर सुरक्षित और सुविधाजनक बन सकें तथा हमारी इमारतें सस्ती और पर्यावरण अनुकूल निर्मित हो सकें। उपराष्ट्रपति ने छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए तमिलनाडु सरकार की सराहना की। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु सरकार छात्रों को इस दिशा में बहुत प्रोत्साहन दे रही है।


      इसके पूर्व उपराष्ट्रपति ने परिसर में सुधाई, प्रस्तर, धातु और काष्ठ मूर्तिकला स्टूडियो, वास्तुशिल्प स्टूडियो तथा पारम्परिक चित्रकारी स्टूडियो का दौरा किया। उन्होंने भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति का भी अवलोकन किया।


      श्री नायडू ने कहा कि मूर्तिकला भारतीय संस्कृति को प्रस्तुत करने का बेहतरीन कला रूप है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि युवाओं में निहित कौशल को पहचान कर प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इसके लिए उपराष्ट्रपति ने मशवरा दिया कि शिक्षा प्रणाली में शिक्षण और कौशल निर्माण का समायोजन किया जाना चाहिए।


      उपराष्ट्रपति ने नक्काशी के लिए छेनी और हथोड़ी वाली तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए मामल्लपुरम के मूर्तिकारों की सराहना की। उन्होंने पल्लव युग की जटिल कला की प्रतिकृति तैयार करने के लिए मूर्तिकारों की क्षमता और उनके कौशल की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, ‘मुझे वास्तुशिल्प और मूर्तिकला कॉलेज के छात्रों द्वारा किए गए काम को देखकर अति प्रसन्नता हो रही है। कला और वास्तुशिल्प के इस उत्कृष्ट केन्द्र का दौरा करके मैं ऊर्जावान हो गया हूं।’


      अपने आगमन के दौरान उपराष्ट्रपति ने संस्थान के परिसर में संत कवि और दार्शानिक थिरुवल्लुवर की प्रतिमा का अनावरण भी किया।


      छात्रों के साथ उपराष्ट्रपति की बातचीत के दौरान तमिल आधिकारिक भाषा, तमिल संस्कृति और वास्तुशास्त्र मंत्री श्री के.के. पांडियाराजन, तमिलनाडु सरकार के अवर मुख्य सचिव श्री अशोक डोंगरे और महाबलीपुरम के गर्वमेंट कॉलेज ऑफ आर्कीटेक्चर एंड स्कल्पचर के प्राचार्य डॉ. राजेन्द्रन और अन्य अध्यापक उपस्थित थे।