Saturday, February 29, 2020

राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस समारोह में 21 विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए

राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने देश के वैज्ञानिक उद्यम की गुणवत्ता और प्रासंगिकता बढ़ाने पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि हमारे विज्ञान को लोगों के विकास और भलाई के लिए काम करना चाहिए। आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में राष्ट्रपति ने शिक्षा तथा अनुसंधान संस्थानों में लैंगिक विकास और समानता के लिए तीन प्रमुख कार्यक्रमों की घोषणा की।


इस वर्ष के राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का विषय है  “विज्ञान में महिलाएं”


विज्ञान ज्योति कार्यक्रम हाईस्कूल में पढ़ने वाली मेधावी लड़कियों को उच्च शिक्षा में विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग तथा गणित (एसटीईएम) की पढ़ाई जारी रखने में बराबरी का अवसर प्रदान करेगा। संस्थानों को बदलने के लिए लैंगिक विकास (जीएटीआई) से विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग तथा गणित (एसटीईएम) में लैंगिक समानता के मूल्यांकन के लिए विस्तृत चार्टर और रूपरेखा विकसित करेगा। महिलाओं के लिए विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी समाधानों का ऑनलाइन पोर्टल महिला विशेष सरकारी योजनाओं, छात्रवृत्तियों, फेलोशिप तथा केरियर काउंसलिंग से संबंधित ई-संसाधन उपलब्ध कराएगा। इसमें साइंस टेक्नोलॉजी में विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों का विवरण होगा।


राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का मुख्य उद्देश्य विज्ञान के महत्व के संदेश को फैलाना है। उन्होंने कहा कि इसके दो पहलू हैं। पहला, शुद्ध ज्ञान की चाह के रूप में स्वयं में विज्ञान तथा जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए उपाय के रूप में समाज में विज्ञान। उन्होंने कहा कि दोनों आपस में जुड़े हुए हैं।


राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने विज्ञान संचार और लोकप्रियता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए। इन पुरस्कारों में मेधावी महिला वैज्ञानिकों के लिए महिला उत्कृष्टता पुरस्कार शामिल हैं। पुरस्कारों में राष्ट्रीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी पुरस्कार, स्पष्ट अनुसंधान के लिए लेखन कौशल को सशक्त बनाने (एडब्ल्यूएसएआर) का पुरस्कार, केसीआरबी महिला उत्कृष्टता पुरस्कार और सामाजिक लाभ के लिए टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन के माध्यम से उत्कृष्टता प्रदर्शन के लिए महिला पुरस्कार शामिल हैं।


विज्ञान और प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने विज्ञान दिवस के विषय  “विज्ञान में महिलाएं” की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारतीय विज्ञान में लैंगिक समानता की संस्कृति बनाने के लिए हमें सांकेतिक प्रयासों से संपूर्णता की ओर बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि नेशनल साइंस फाउंडेशन (अमेरिका) की हाल की रिपोर्ट के अनुसार भारत विज्ञान और इंजीनियरिंग प्रकाशनों में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है।


ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इस्टीट्यूट (टीएचएसटीआई) फरीदाबाद के कार्यकारी निदेशक प्रो. गगनदीप कांग ने विशेष व्याख्यान दिया। प्रो. कांग भारत की प्रथम महिला एफआरएस हैं।


इस अवसर पर सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के. विजय राघवन, डीबीटी की सचिव डॉ. रेणू स्वरूप, सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. शेखर मान्दे उपस्थित थे।



रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि बालाकोट हवाई हमला एक संदेश था कि सीमा पार आतंकवाद शत्रु के लिए एक सस्‍ता विकल्प नहीं होगा

2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट हवाई हमले केवल सैन्य हमले ही नहीं थे बल्कि शत्रु के लिए एक मजबूत संदेश थे कि सीमा पार से आतंकवादी बुनियादी ढांचे का भारत के खिलाफ सस्‍ती जंग छेड़ने के लिए एक सुरक्षित शरण स्‍थल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। यह बात रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने आज बालाकोट हवाई हमले की पहली वर्षगांठ के अवसर पर ‘सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज’ द्वारा आयोजित ‘युद्ध नहीं, शांति नहीं परिदृश्‍य में वायु शक्ति’ नामक एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कही।


      देश की सेवा में सशस्‍त्र बलों के बलिदान का स्‍मरण करते हुए और पुलवामा हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्‍होंने कहा कि देश शहीदों के बलिदान को कभी नहीं भूलेगा।


      उन्‍होंने कहा कि बालाकोट हवाई हमलों में भारत द्वारा दर्शायी गई जबरदस्‍त प्रतिक्रिया में नियंत्रण रेखा के पार अनेक सिद्धांतों को दोबारा लिखने के लिए मजबूर किया और यह बताया कि शत्रु को भविष्‍य में ऐसा दुस्‍साहस करने के लिए सौ बार सोचना होगा। उन्‍होंने कहा कि इन हमलों में भारत की रक्षा क्षमता का प्रदर्शन हुआ है और आतंकवाद के खिलाफ अपनी रक्षा करने के अधिकार की पुष्टि हुई है।


      श्री राजनाथ सिंह ने बालाकोट हवाई हमले को सैन्‍य सटीकता और प्रभाव की एक विलक्षण घटना के रूप में वर्णन करते हुए कहा कि आतंकवाद के विरूद्ध हमारा दृष्टिकोण नैदानिक सैन्‍य कार्रवाई और परिपक्‍व तथा जिम्‍मेदार राजनयिक पहुंच का न्‍यायोचित संयोजन था। उन्‍ह‍ोंने राष्‍ट्र को आश्‍वासन दिया कि सरकार भविष्‍य में भी राष्‍ट्र सुरक्षा के लिए किसी भी खतरे का माकूल जवाब देगी। सरकार ने भविष्‍य में किसी भी खतरे से निपटने के लिए बड़े संरचनात्‍मक बदलाव शुरू किए हैं। उन्‍होंने सभी हितधारकों से इन बदलावों को प्रभावी और कुशल बनाने में योगदान देने का अनुरोध किया।


      श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज दुनिया आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ी है। सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिए सामूहिक राजनयिक और वित्‍तीय दबाव के महत्‍व पर जोर देते हुए उन्‍होंने कहा कि हमने अभी हाल में पाकिस्‍तान पर सामूहिक, राजनयिक और वित्‍तीय दबाव के प्रभाव को देखा है। वीआईपी और नायकों की तरह सम्‍मान पाने वाले हाफिज़ सईद जैसे आतंकियों को जेल में डाला गया। हमने महसूस किया है कि जब तक पाकिस्‍तान को जवाबदेह नहीं माना जाता है, यह कदम पर्याप्‍त नहीं हैं, क्‍योंकि पाकिस्‍तान नकल और छल की पुरानी नीति जारी रखेगा। इस दिशा में काम करने के सभी प्रयास किए जा रहे हैं।


      श्री राजनाथ सिंह ने संकर युद्ध को एक वास्‍तविकता की संज्ञा देते हुए इस युद्ध द्वारा उत्‍पन्‍न चुनौतियों से निपटने के लिए सैनिकों के प्रशिक्षण को पुनर्गठित करने की जरूरत पर जोर दिया। शंकर युद्ध के विभिन्‍न पहलुओं का उल्‍लेख करते हुए उन्‍होंने कहा कि ऐसे परिदृश्‍य में कृत्रिम बुद्धिमत्‍ता, उच्‍च गति वाले हथियार, अंतरिक्ष आधारित सेंसर्स उपकरण महत्‍वपूर्ण प्रभाव डालेंगे। उन्‍होंने नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने और मौजूदा क्षमताओं का नवाचारी तरीकों से उपयोग करने की जरूरत पर जोर दिया।


      इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्‍टाफ जनरल विपिन रावत ने कहा कि विश्‍व में भू-राजनीति बदल रही है और भारत इस क्षेत्र में अनेक झड़पों का गवाह है। उन्‍होंने हर समय भूमि, वायु और समुद्र में विश्‍वसनीय निष्‍ठा बनाए रखने का आह्वान किया। उन्‍होंने क‍हा कि तीनों सेनाओं का किसी भी संभावित खतरे से निपटने के लिए मिलकर साथ-साथ काम करना चाहिए। विश्‍वसनीय निष्‍ठा, कठिन निर्णय लेते समय सैन्‍य नेतृत्‍व और राजनीति वर्ग की इच्‍छा से आती है। कारगिल, उरी और पुलवामा हमलों में यह निष्‍ठा तेजी से देखने को मिली।


      वायुसेना प्रमुख, एयर चीफ मार्शल श्री आर के एस भदोरिया ने कहा कि 2019 में पाकिस्‍तान के भीतर आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों पर हमला करने का साहसिक निर्णय लिया था। उन्‍होंने कहा कि उप-पारंपरिक परिदृश्‍य में वायुसेना का उपयोग एक प्रमुख बदलाव था। उन्‍होंने उत्‍पन्‍न स्थिति से शीघ्रतापूर्वक निपटने के लिए किए गए राजनयिक और राजनीतिक प्रयासों की सराहना की। सफल हवाई हमलों के कार्य में लगे विभिन्‍न संगठनों में तालमेल की प्रशंसा करते हुए उन्‍होंने कहा कि इस तरह के ठोस प्रयास किए गए कि इन हमलों में किसी नागरिक की मौत न हो। उन्‍होंने हाल के दिनों में भारतीय वायु सेना को नवीनतम प्रौद्योगिकी से लैस करने के लिए राजनीतिक नेतृत्‍व की सराहना की। बेहतर क्षमताओं को हासिल करने के संघर्ष में डेढ़ दशक से भी अधिक का समय लग गया। उन्‍होंने स्‍वदेशी क्षमता निर्माण पर भी जोर दिया।


      इस सेमिनार में ‘युद्ध नहीं, शांति नहीं परिदृश्‍य में’ शत्रु के खिलाफ राष्‍ट्रीय इच्‍छा शक्ति के प्रयोग के कारण आवश्‍यक हुई परिस्थितियों में वायु शक्ति के उपयोग के बारे में


ध्‍यान केंद्रित किया गया। रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव  डॉ जी सतीश रेड्डी, सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज़ के निदेशक एयर मार्शल के के. नोहवार (सेवानिवृत्त), पूर्व वायुसेनाध्यक्ष, विद्वान, सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारी भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।  



एसिम्‍प्‍टोमैटिक मलेरिया के लिए निदान

जैव प्रौद्योगिकी विभाग के भुवनेश्वर स्थित संस्‍थान इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस) और बेंगलूरु के जिग्‍सॉ बायो सॉल्यूशंस के वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम के कारण मलेरिया के खिलाफ लड़ाई आसान हो सकती है।यह टीम एक ऐसी पद्धति तैयार कर रही है जो इस रोग स्‍पर्शोन्‍मुख (एसिम्‍प्‍टोमैटिक) वाहककी पहचान न होने की समस्या को दूर करने का भरोसा देती है।


इस रोग की जांच के लिए सामूहिक जांच एवं उपचार कार्यक्रमों में और मलेरिया नियंत्रण के उपायों की निगरानी में माइक्रोस्कोपी और प्रोटीन प्रतिरक्षा आधारित रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट (आरडीटी) का उपयोग किया जाता है। हालांकि इसके तहत करीब 30 से 50 प्रतिशत कम घनत्‍व वाले संक्रमण छूट जाते हैं जिसमें आमतौर पर दो परजीवी/ माइक्रोलीटर होते हैं। इन्‍हें अक्सर स्पर्शोन्मुख वाहक में देखे जाते हैं जो संक्रमण के मूक भंडार के रूप में कार्य करते हैं और वे मच्छरों के माध्यम से रोग को संक्रमित करने में समर्थ होते हैं। स्थानिक क्षेत्रों में स्पर्शोन्मुख वाहक की पहचान मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रमों की एक प्रमुख बाधा मानी जाती है। इसके लिए अधिक संवेदनशीलता के साथ नए नैदानिक ​​तरीकों की आवश्यकता है।


इस नए अध्‍ययन में इंस्टीच्‍यूट ऑफ लाइफ साइंसेज के डॉ. वी. अरुण नागराज और जिग्‍सॉ बायो सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के श्रीनिवास राजू के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम शामिल है। इस टीम ने जीनोम खनन की एक नई अवधारणा का इस्तेमाल कियाजो पूरे मलेरिया परजीवी जीनोम में मौजूद मल्टी-रिपीट सीक्वेंस (आईएमआरएस) की पहचान कर उसे विकसित होने से रोकने के लिए लक्षित करती है। इसे मलेरिया निदान के लिए ‘अति संवेदनशील’क्‍यूपीसीआर परीक्षण कहा गया है।


भारत के मलेरिया प्रभवित क्षेत्रों से एकत्र किए गए क्‍लीनिकल नमूनों के सत्यापन से पता चलता है कि यह जांच पारंपरिक तरीकों से लगभग 20 से 100 गुना अधिक संवेदनशील थी। इसके जरिये सबमाइक्रोस्‍कोपिक नमूनों का भी पता लगाया जा सकता है। अत्‍यधिक संवेदनशील अन्‍य तरीकों की तुलना में यह चार से आठ गुना बेहतर दिखी। साथ ही यह प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के लिए बेहद खास दिखी जो मलेरिया परजीवी की सबसे घातक प्रजाति है। जबकि  प्लास्मोडियम विवैक्स प्रजाति के साथ क्रॉस-रिएक्शन नहीं किया जो अपेक्षाकृत कम घातक मलेरिया की पुनरावृत्ति का सबसे प्रुखख कारण है।


इंडिया साइंस वायर से बातचीत करते हुएडॉ. नागराज ने कहा कि विभिन्न प्रजातियों की एक साथ पहचान के लिए बहुविकल्‍पी जांच प्रक्रिया विकसित करने की गुंजाइश है। उन्‍होंने कहा, ‘हमारे अध्ययन से अति संवेदनशील, पॉइंट-ऑफ-केयर मौलिक्‍यूलर  निदान का विकास हो सकता है जिसे लघु, आइसोथर्मल, माइक्रोफ्लूडिक प्लेटफॉर्म और लैब-ऑन-ए-चिप उपकरणों के जरिये खोजा जा सकता है। आईएमआरएसदृष्टिकोण अन्य संक्रामक रोगों के निदान के लिए एक प्रौद्योगिकीमंच के रूप में भी काम कर सकता है।’


भारत ने 2030 तक मलेरिया का उन्‍मूलन करने और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक राष्ट्रीय ढांचा विकसित किया हैजो प्रभावित क्षेत्रों में स्पर्शोन्मुख वाहक की पहचान करता है और उसेके संक्रमण को साफ करता है। नई खोज इसमें मदद कर सकती है। डीबीटी के जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद ने इस परियोजना का वित्त पोषित किया। (विज्ञान समाचार)


(प्रमुख शब्‍द : प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम, प्लास्मोडियम विवैक्स, वायरलेंट, उन्‍मूलन, संवेदनशीलता, परजीवी, क्‍यूपीसीआर, जांच, पॉइंट-ऑफ-केयर, मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक्स, मिनिएट्राइज्ड, आइसोथर्मल, माइक्रोफ्लूडिक प्लेटफॉर्म, लैब-ऑन-ए-चिप)



सेंटर फॉर एयर पॉवर स्टडीज और भारतीय वायुसेना की अनुरक्षण कमान ने संयुक्त रूप से नई दिल्ली के वायुसेना स्टेशन तुगलकाबाद में ‘भारत के समक्ष उभरती खतरनाक चुनौतियां’ पर गोष्ठी का आयोजन किया

 सेंटर फॉर एयर पॉवर स्टडीज (सीएपीएस) और भारतीय वायुसेना की अनुरक्षण कमान (एमसी-आईएएफ) ने संयुक्त रूप से नई दिल्ली के वायुसेना स्टेशन तुगलकाबाद में 25 फरवरी, 2020 को ‘चैलेंजेस ऑफ द इवॉल्विंग थ्रेट्स फेसिंग इंडिया’ (भारत के समक्ष उभरती खतरनाक चुनौतियां) पर गोष्ठी का आयोजन किया। इस गोष्ठी में वायुसेना के अनुरक्षण कमान की इकाईयों के अधिकारियों तथा सेंटर फॉर एयर पॉवर स्टडीज के विशिष्ट वरिष्ठ शोधकर्ताओं ने हिस्सा लिया। एयर मार्शल शशिकर चौधरी एवीएसएम वीएसएम एमसी-आईएएफ के एयर ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ ने आयोजन का उद्घाटन किया।


      गोष्ठी में तीन सत्र हुए। उद्घाटन सत्र की शुरूआत सीएपीएस के महानिदेशक एयर मार्शल के.के. नोहवार पीवीएसएम, वीएम (सेवानिवृत्त) के संबोधन से हुई। इस सत्र में ‘पोलिटीको-मिलिट्री एनवायर्मेंट विथ रेस्पेक्ट ऑफ इंडिया-चाइना रिलेसन्स पोस्ट वुहान एंड महाबलीपुरम’ पर चर्चा की गई। इस विषय पर श्री जयदेव रानाडे ने प्रकाश डाला। सीएपीएस की विशिष्ट फेलो डॉ. शालिनी चावला ने ‘इंडिया-पाकिस्तान रिलेसन्स पोस्ट-बालाकोट एंड एब्रोगेशन ऑफ आर्टिकल-370’ पर व्याख्यान दिया। दूसरे सत्र में ‘न्यू चैलेंजेस विथ रेस्पेक्ट टू ट्रेजेक्ट्री ऑफ चाइनाज न्यूक्लियर वैपन्स प्रोग्राम एंड सेफगार्डिंग इंडियाज क्रिटिकल इन्फोर्मेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर’ पर चर्चा की गई। इस सत्र की अध्यक्षता सीएपीएस की विशिष्ट फेलो डॉ. शालिनी चावला ने की। गोष्ठी के अंतिम सत्र में ‘केपेबिलिटी बिल्डिंग एट बेस रिपेयर डीपोज एंड एक्विपमेंट डीपोज ऑफ द आईएएफ’ पर चर्चा की गई। इस सत्र की अध्यक्षता एयर वाइस मार्शल वी.सी. वानखेडे एओईएस एमसी-आईएएफ ने की।