Tuesday, February 2, 2021

यह बजट किसानों,गरीबों, महिलाओं के उम्मीदें पूरी ना कर रही है

यह बजट किसानों की आय को दुगना करने के लिए पूरी तरह अपर्याप्त है, यह भी देखने की बात है कि  वित्त मंत्री जी ने जो किसानों के आय में वृद्धि की बाते कहीं है ये आखिर  वृद्धि  किसान की लागत में कितनी वृद्धि होगी  ,हर वर्ष बजट में बड़ी बड़ी बाते तो कहीं जाती है ,लेकिन उस पर सरकार 10 प्रतिशत भी अमल कहां करती है , वहीं देखे तो   यह भी वित्त मंत्री ने इस बजट में नहीं बताया है कि अन्नदाता का आय 2022 तक कैसे दुगुनी होगी , इसलिए किसान की आय में शुद्ध वृद्धि बहुत कम ही दिखती है। सरकार का उद्देश्य बीते वर्षों में ही किसान की आय को दुगना करने का था, लेकिन दुगना करने के स्थान पर सरकार अधिकतम केवल पांच प्रतिशत की वृद्धि हासिल कर सकी है। इसलिए इस दिशा में और ठोस कदम उठाने चाहिए थे, जो कि बजट में नहीं उठाए गए हैं। कुल मिलाकर यह बजट विशिष्ट नहीं, बल्कि किसान ,महिला , युवाओं के उम्मीद का बजट नहीं कहा जा सकता है ।तमाम दावों के बावजूद किसानों की आशंकाओं को दूर करने में सरकार अब तक असफल रही है। यही सच है कि कोरोना महामारी ने सरकार की ही नहीं, आम आदमी की भी बैलेंस शीट बिगाड़ी है,अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा है। ऐसे में सरकार और वित्त मंत्री से सबकी उम्मीदें बहुत ज्यादा थी ,लेकिन इस बजट में सरकार किसानों ,महिलाओं, युवाओं सभी को निराश ही किया है , लॉकडाउन में बहुत से लोगो का नौकरी चली गई, बहुतों का रोजगार काम सब चौपट हो गया ,लेकिन सरकार इन वर्गों को मदद होने वाली बजट के जगह पर बल्कि लगभग 23 सरकारी विभागों को निजी क्षेत्र को देने की घोषणा कर रही है ।


व्यास जी

 (दैनिक अयोध्या टाइम्स)

*इटावा व्यूरो चीफ*
(नेहा कुमारी गुप्ता)


एक दस्ता है अनकही सी मेरे जसबातों में  
जो आज लिख रहा हूं मेरे अल्फाजों में ।

जो कभी सपने थे मेरे  लब्जों में तेरे 
वो आज  बन गए है सपने  मेरे ।।

कागज की एक कास्ती थी मेरी 
तुझसे ही एक हस्ती थी मेरी ।

समुंदर को पार करने की तमन्ना थी 
कभी ना रुकने की एक सक्ती थी ।

पर आज राहें अधूरी सी लगती है 
चल तो रहे है पर तेरी यादें ही चलती हैं।।

बहुत समझाते है अपने आप को हर वक्त
पर जब तुझे ना सोचें ऐसा नई कोई वक्त ।

कभी बढ़ते है कदम तो कभी रुक जाते हैं
जब आती है तेरी यादें तो सांस रुक जाती है ।

वैसे तो है बहुत गुरूर अपनी सक्सियत का मुझे ।
पर जब हो बात तेरे प्यार की तो हम झुक जाते हैं।।

खुद को लिखना है अभी वाकी 
जो पा लिया वो नहीं है काफी ।

अभी तो बस सुरूवात है मेरी 
हर जीत दिखती है बस हार तेरी।

वो सब मेरी कहानी का हिस्सा है 
जो गुजर गया वो एक किस्सा है ।

अभी वो बस पंख खोलें है 
पूरी उड़ान वाकी है 

जा  जीले तू अपनी जिंदगी 
अभी भी मुझमें जान वाकी है ।

लोगों  के दिल में आज भी हूं में
क्योंकि मेरे कर्मो की शान वाकी है।।

एक दिन पा लूंगा मंजिल अपनी 
क्योंकि मेरे भोले की पहचान काफी है ।।

व्यास जी की कलम से सप्रेम भेंट

 (दैनिक अयोध्या टाइम्स)

*इटावा व्यूरो चीफ*
(नेहा कुमारी गुप्ता)

एक आशियाँ हो मेरा भी छोटा सा जिसमे दो प्रेमी रहते हो ।
कभी वो मेरे लिए संगर्ष करे कभी में उसके लिए संगर्ष करूँ।।
कभी वो मेरी ख़ुशी को अपना समझे और कभी मै उसके दुःख को अपना मानु।।
जब भी चले नयी राहों पे तो उड़ान साथ भरे आसमां की ओर ।
वो मुझे सहारा दे  होसला बढाये और में उसका सहारा बनू।।
ऐसा हो मेरी खुशियों का आशियाँ जिसमे वो हो और में हूँ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
मंजिये मिलें अगर तो एक साथ रहकर मिले न काँटों की चुभन हो न हरने का डर हो।।
न उसको मुझसे कोई सिकायत हो न में उसो कभी सिकायत का मौका दूँ।
न कभी वो मुझसे दूर हो न मुझे उससे दूर होने का ख्याल आये ।।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
वो मेरी गलती को भूल जाये में उसमी गलती को भूल जाऊ।
जब भी नया सबेरा हो नए जीवन की सुरुबात हो सूर्य की नयी किरण सफलता की सुरुवात हो।।
मेरा  भी कोई हो जो मेरा हमसफर बने मुझे समझे और मुझसे प्यार करे।।
न कोइ मज़बूरी हो सांसारिक न  कोई रिश्तों की  रकावट हो ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।

 हो मेरा भी छोटा सा जिसमे दो प्रेमी रहते हो ।
कभी वो मेरे लिए संगर्ष करे कभी में उसके लिए संगर्ष करूँ।।
कभी वो मेरी ख़ुशी को अपना समझे और कभी मै उसके दुःख को अपना मानु।।
जब भी चले नयी राहों पे तो उड़ान साथ भरे आसमां की ओर ।
वो मुझे सहारा दे  होसला बढाये और में उसका सहारा बनू।।
ऐसा हो मेरी खुशियों का आशियाँ जिसमे वो हो और में हूँ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
मंजिये मिलें अगर तो एक साथ रहकर मिले न काँटों की चुभन हो न हरने का डर हो।।
न उसको मुझसे कोई सिकायत हो न में उसो कभी सिकायत का मौका दूँ।
न कभी वो मुझसे दूर हो न मुझे उससे दूर होने का ख्याल आये ।।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
वो मेरी गलती को भूल जाये में उसमी गलती को भूल जाऊ।
जब भी नया सबेरा हो नए जीवन की सुरुबात हो सूर्य की नयी किरण सफलता की सुरुवात हो।।
मेरा  भी कोई हो जो मेरा हमसफर बने मुझे समझे और मुझसे प्यार करे।।
न कोइ मज़बूरी हो सांसारिक न  कोई रिश्तों की  रकावट हो ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।

Monday, February 1, 2021

बजट की हुंकार कोरोना के वार और महंगाई से हाहाकार .....बीच में पिसता मध्यवर्गीय संसार

प्रत्येक वर्ष के बजट की तरह  इस वर्ष का बजट भी सभी वर्गों के लिए अच्छा है घोषणा ही करता नजर आ रहा  है लेकिन मनों के बीच उठते सवाल और सच परिस्थितियों के आगे खामोश ही नजर आ रहे हैं।

परिस्थितियों ने लोगों को कोरोना जैसी महामारी और एक वर्ष की  गतिहीनता कोरोना में जहां लोग अपना काम धंधा छोड़ के घरों में बैठ गए हैं।  कुछ  समय तक तो जोड़ी हुए पूंजी से खाने की जरूरतों को पूरा करता हुआ आम इंसान अपना समय निकाल  रहा था।  
         इस दौर  का ज्यादा असर मध्य वर्गीय परिवारों और उन लोगों के ऊपर पर पड़ा है जिनके घर में एक भी सरकारी नौकरी वाला नहीं । कोरोना काल में ज्यादातर प्राइवेट नौकरियों से भी लोगों को हाथ धोना पड़ा । मध्यवर्गीय परिवारों की यह विडंबना रही है और सबसे ज्यादा असर भी उनके ऊपर पड़ा है, जिनके पास ना तो उच्च वर्ग की तरह जमा पूंजी है और ना ही निम्न वर्ग की तरह कुछ भी मांग कर अपनी जरुरतों को पूरा करने की हिम्मत है। 
क्योंकि यह  परिवार ... ना तो निर्धन रेखा से नीचे आते हैं । ना ही कमाई के ऐसे सशक्त साधन है कि अपना उत्पादन करके बेच सकें ।
ऐसा नहीं है कि कोरोना काल में लोगों ने कमाई नहीं की है । जो लोग अपना उत्पादन बेच सकते थे ,इन हालातों में बाजारों  में दुकानदारों ने जरूरी चीजों के दाम इतने ज्यादा कर दिए हैं कि हर चीज के लिए कीमत चौगनी चौगनी वसूल कर रहे हैं इस बीच मध्य वर्गीय परिवार जो मकान का किराया, बिजली -पानी के बिल ,  बच्चों के स्कूल की ऑनलाइन क्लासेस की फीस  और ऊपर से बेरोजगारी के कारण आठ महीने से घर पर बैठकर अपने भविष्य की चिंता कर रहा है । आर्थिक त्रासदी के साथ-साथ मानसिक त्रासदी को भी भोग रहा है ।
लोग ज्यादातर बाजार में जरूरत की चीजें  लेने जाते हैं जरूरत के दूसरे समान अगर किसी ने लेने की जरुरत पड़ गई है तो उस वस्तु की कीमत  दुकानदार ज्यादा वसूल रहे हैं।  इस महामारी में जहां हर तरफ मौत अपना पांव पसारे खड़ी है। आए दिन सैकड़ों मामले कोरोना के  आ रहे  है फिर भी इंसान का यह लालच थम नहीं रहा है वह और ज्यादा और ज्यादा जो ग्राहक भी आ रहे हैं उसे मन माना दाम वसूल कर रहे हैं। हर चीज के भाव बहुत ज्यादा हो गए हैं। खाने-पीने और राशन की जरूरतों तो हर इंसान ने पूरी करनी ही है।  सब्जियों के दाम भी पहले से बहुत ज्यादा हो गए हैं। 
 देश के हालात आर्थिक स्थितियां चिंताजनक स्थितियों से गुजर रही है।
    इस तरह की वसूली बहुत ही चिंता जनक है। जो लोग दुकानदार नहीं है और प्राइवेट नौकरियों के तहत जिनके काम बंद थे अब हालात बदलने पर  कुछ लोगों को ही नौकरी के अवसर मिल पाए हैं ।अपना रोज का काम- धंधा चलाना मुश्किल हो गया है क्योंकि जरूरी चीजें तो सब ने ही लेनी है। जिसके पास जो चीज है वह अपनी चीज के दाम  जो भी ग्राहक आ रहा है एक ही व्यक्ति से वसूल करना चाहता है।  प्रधानमंत्री जी का आत्मनिर्भर भारत मन की बात तक ही सीमित होकर रह गया है । क्योंकि इन मध्यवर्गीय परिवारों जिनकी हमारे समाज में बहुत बड़ी संख्या है अवसर नहीं देख पाने से मानसिक अवसाद सभी बातों को धोता हुआ नजर आ रहा है कोरोना  की मार से जो लोग बच गए हैं लगता है महंगाई और और देश की नीतियों और बजट की मार से नहीं बच पाएंगे।
 स्वरचित रचना 
 प्रीति शर्मा "असीम "